मीना कुमारी : भारतीय सिनेमा की त्रासदी क्वीन
- दयाशंकर सिंह यादव
मीना कुमारी हिंदी सिनेमा की एक दिग्गज अभिनेत्री, जिनकी प्रतिभा और खूबसूरती के लाखों दीवाने थे। उन्होंने अपने समय में कई यादगार और चुनौतीपूर्ण किरदार निभाए, जिन्होंने दर्शकों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ी। मीना कुमारी का जीवन और उनका सिनेमाई योगदान वास्तव में असाधारण था। उनके अभिनय में जो गहराई, संवेदनशीलता और वास्तविकता थी, वह उन्हें अन्य अभिनेत्रियों से अलग बनाती थी। उनकी फ़िल्में, चाहे वह पाकीज़ा, साहिब बीबी और गुलाम हो या बैजू बावरा, दर्शकों को भावनात्मक रूप से झकझोरने का सामर्थ्य रखती हैं।उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने अभिनय में समझौता नहीं किया। उनके जीवन के अंतिम वर्षों में उन्हें आलोचनाओं और व्यक्तिगत संकटों का सामना करना पड़ा, लेकिन समय के साथ उनकी महानता को पहचाना जाने लगा। मृत्यु के बाद मीना कुमारी की प्रतिष्ठा और अधिक बढ़ी।मीना कुमारी को हिंदी सिनेमा की वेहतरीन अदाकारा के रूप में याद किया जाता है। कहते हैं कि इंसान बुलंदियों पर पहुंचकर अकेला हो जाता है. इसका उदाहरण फिल्म इंडस्ट्री की सबसे बेहतरीन अदाकाराओं में शुमार रही मीना कुमारी। भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग की सबसे प्रभावशाली अभिनेत्रियों में से एक, मीना कुमारी, न केवल अपनी अदाकारी के लिए बल्कि अपने व्यक्तिगत जीवन की दुखद परिस्थितियों के कारण भी जानी जाती हैं। उनके जीवन की त्रासदी ने उन्हें 'ट्रेजडी क्वीन' की उपाधि दिलाई। यह शोध पत्र उनके जीवन, करियर, संघर्ष, साहित्यिक योगदान पर केंद्रित है।
मीना कुमारी का भारतीय सिनेमा में योगदान अतुलनीय है। मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त 1933 को मुंबई में हुआ था। उनका असली नाम महजबीन बानो था।उनके पिता अली बक्श एक मजे हुए कलाकार थे, जबकि उनकी माँ प्रभावती देवी एक मशहूर नृत्यांगना थीं। कहा जाता है कि उनके पिता उन्हें पैदा होते ही अनाथाश्रम में छोड़ आए थे, क्योंकि उनके पास डॉक्टर को देने के लिए पैसे नहीं थे। मीना कुमारी का बचपन गरीबी में बीता। मीना कुमारी बचपन से ही परिवार की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखा। मीना कुमारी के कई नाम थे- उनका असली नाम महजबीं बानो था। उन्हें उनकी दुखद भूमिकाओं के लिए ट्रेजेडी क्वीन नाम दिया गया था। बचपन में उनकी छोटी आँखों के कारण परिवार वालों ने उन्हें चीनी नाम दिया था।बेबी मीना नाम उन्होंने अपनी शुरुआती फिल्मों में इस्तेमाल किया था।
फिल्मी करियर का प्रारंभ और सफलता- मीना कुमारी पहली बार 1939 में फिल्म निर्देशक विजय भट्ट की फिल्म "लैदरफेस" में बेबी महज़बीं के रूप में नज़र आईं। 1940 की फिल्म "एक ही भूल" में विजय भट्ट ने इनका नाम बेबी महजबीं से बदल कर बेबी मीना कर दिया। 1946 में आई फिल्म बच्चों का खेल से बेबी मीना 13 वर्ष की आयु में मीना कुमारी बनीं। मीना कुमारी की प्रारंभिक फिल्में ज्यादातर पौराणिक कथाओं पर आधारित थीं जिनमें हनुमान पाताल विजय, वीर घटोत्कच व श्री गणेश महिमा प्रमुख हैं। मीना कुमारी का पहला बड़ा ब्रेक 1952 में आई फिल्म बैजू बावरा से मिला, जिसमें उनकी अदाकारी को अत्यधिक सराहा गया। इसके बाद उन्होंने परिणीता (1953), साहिब बीबी और गुलाम (1962), आरती (1962), दिल एक मंदिर (1963) और काजल (1965) जैसी अनेक फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने कुल 93 फिल्मों में काम किया। मीना कुमारी द्वारा अभिनीत गौरी के किरदार ने उन्हें घर-घर में प्रसिद्धि दिलाई। 1954 में उन्हें इसके लिए पहले फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
1953 तक मीना कुमारी की तीन फिल्में आ चुकी थीं जिनमें दायरा, दो बीघा ज़मीन और परिणीता शामिल थीं। परिणीता से मीना कुमारी के लिये एक नया युग शुरु हुआ। परिणीता में उनकी भूमिका ने भारतीय महिलाओं को खास प्रभावित किया था चूँकि इस फिल्म में भारतीय नारी की आम जिंदगी की कठिनाइयों का चित्रण करने की कोशिश की गयी थी। उनके अभिनय की खास शैली और मोहक आवाज़ का जादू छाया रहा और लगातार दूसरी बार उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार के लिए चयनित किया गया। मीना कुमारी की चाँदनी चौक (1954) और एक ही रास्ता (1956) जैसी फिल्में समाज की कुरीतियों पर प्रहार करती थीं। 1955 की फ़िल्म आज़ाद, दिलीप कुमार के साथ मीना कुमारी की दूसरी फिल्म थी। ट्रेजेडी किंग और ट्रेजेडी क्वीन के नाम से प्रसिद्ध दिलीप और मीना के इस हास्य प्रधान फ़िल्म ने दर्शकों की खूब वाहवाही लूटी। मीना कुमारी के उम्दा अभिनय ने उन्हें फ़िल्मफ़ेयर ने फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार के लिए नामांकित भी किया।
मीना कुमारी की भावपूर्ण आँखों के बारे में बहुत कुछ कहा गया है, फिर उनके हाव-भाव और उनकी बॉडी लैंग्वेज हमेशा सूक्ष्म और संयमित होती है, जिससे हमें और अधिक जानने और सुनने की इच्छा होती है। पतले घूंघट और झुकी हुई आँखों से सजी उनकी खूबसूरती हमें उनके भीतर की गहराई में, और उससे भी ज़्यादा गहराई में देखने के लिए कहती है।मीना कुमारी एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने जीवन की नाजुकता और इसके कई धोखे को करीब से अनुभव किया, और उन्होंने खुद को पल-पल जीने के लिए प्रशिक्षित किया और किसी भी ऐसे अवसर को नहीं छोड़ा जो उन्हें खुश कर सकता था। उनकी अनिर्णय और अस्थिरता ने उन्हें जीवन में लगातार एक नया अर्थ खोजने के लिए मजबूर किया, जो अब तक उनके जीवन में था उससे हमेशा आगे बढ़ते हुए।
व्यक्तिगत जीवन और संघर्ष –
मीना कुमारी को नाम और शोहरत तो कम उम्र में ही मिलना शुरू हो गया था। न धन दौलत की कमी, न रंग रूप की कमी, फिर भी मीना कुमारी आजीवन प्यार के लिए तरसती रहीं। मीना कुमारी जितनी सुंदर थीं, उतनी ही दर्दभरी थी उनकी जिंदगी। उनका नाम कई शादीशुदा मर्दों के साथ जुड़ा। उन्होंने टूट कर प्यार भी किया लेकिन हर बार मोहब्बत मुकम्मल न हो सकी।मीना कुमारी की शादी फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही से हुई थी। हालांकि, यह शादी बहुत ही तनावपूर्ण रही और अंततः दोनों अलग हो गए। इस अलगाव ने मीना कुमारी को गहरे अवसाद और शराब की लत में धकेल दिया। कहा जाता है कि कमाल अमरोही के साथ उनकी शादी में उन्हें कई बार मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना सहनी पड़ी।सिनेमा में एक प्रीमियर के दौरान, सोहराब मोदी ने मीना कुमारी और कमाल अमरोही को महाराष्ट्र के राज्यपाल से मिलवाया। सोहराब मोदी ने कहा "यह प्रसिद्ध अभिनेत्री मीना कुमारी हैं, और यह उनके पति कमाल अमरोही हैं"। बधाई देने से पहले, कमाल अमरोही ने कहा, "नहीं, मैं कमाल अमरोही हूं और यह मेरी पत्नी, प्रसिद्ध अभिनेत्री मीना कुमारी हैं"। कमाल अमरोही मीना कुमारी को "एक अच्छी पत्नी नहीं बल्कि एक अच्छी अभिनेत्री के रूप में याद किया, जो खुद को घर पर भी एक अभिनेत्री मानती थी।"
मीना कुमारी निश्चित रूप से, गीत, संगीत और हर दूसरी चीज़ मीना कुमारी के अलग-अलग भूमिकाओं में खुद को पेश करने के तरीके के साथ तालमेल बिठाती है, जिससे एक अविश्वसनीय परिणाम सामने आता है।उनकी स्क्रीन छवियां कोमलता और भेद्यता का एक आकर्षक संयोजन बिखेरती हैं, लेकिन अपनी सारी भेद्यता के साथ, उनमें अपनी स्वतंत्र आत्मा को बाकी सब चीजों से अलग करने और उसे अपनी स्वतंत्र इच्छा से आगे बढ़ने देने की ताकत और साहस था।
मीना कुमारी की जिंदगी में तीन अहम शख्स -
मीना कुमारी की प्रेम कहानी का पहला अध्याय लेखक और निर्देशक कमाल अमरोही के साथ शुरू हुआ। कमाल पहले से ही शादीशुदा थे, लेकिन मीना कुमारी को उनसे प्यार हो गया। दोनों ने शादी कर ली, लेकिन उनका रिश्ता दुखद रहा।उसके बाद मीना कुमारी और धर्मेंद्र के अफेयर की खबरें भी खूब चर्चा में रही थीं। दोनों की मुलाकात फिल्म 'फूल और पत्थर' के दौरान हुई थी। जब धर्मेंद्र फिल्म लाइन में आए, तब तक मीना कुमारी सुपरस्टार बन चुकी थीं। उन्हीं की सिफारिश पर धर्मेंद्र को कई फि्ल्मों में काम मिला। दोनों के दिल में एक दूसरे के लिए सॉफ्ट कॉर्नर था, लेकिन शादीशुदा होने की वजह से इस मामले में कुछ कर न सके। मीना कुमारी की जिंदगी में गुलज़ार का भी अहम स्थान रहा। दोनों अच्छे दोस्त थे और एक-दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। अपनी जिंदगी के अंतिम दिनों में मीना कुमारी ने अपनी वसीयत में एक कीमती चीज गुलजार के नाम की थी। उन्होंने अपनी निजी डायरियां, जिसमें वह शायरी लिखा करतीं, उसे गुलजार को सौंपकर दुनिया से रुखसत हो गईं।
मीना कुमारी ने अपने करियर में विभिन्न प्रकार की महिलाओं के किरदार निभाए, जिनमें सशक्त, आत्मनिर्भर, और विद्रोही महिलाएं शामिल थीं। उन्होंने 'साहिब बीबी और गुलाम' में एक ऐसी महिला का किरदार निभाया जो समाज के बंधनों को तोड़ती है और अपनी पहचान बनाती है। 'बंदिनी' में उन्होंने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया जो प्यार और कर्तव्य के बीच फंसी हुई है। 'पाकीज़ा' में उन्होंने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया जो अपनी कला और अपनी पहचान के लिए संघर्ष करती है।इन किरदारों के माध्यम से मीना कुमारी ने महिलाओं की ताकत, उनकी भावनाओं, और उनके संघर्षों को बखूबी पर्दे पर पेश किया। उन्होंने महिलाओं को सिर्फ सुंदर और सजावटी वस्तुओं के रूप में नहीं दिखाया, बल्कि उन्हें एक इंसान के रूप में, उनकी सभी भावनाओं और जटिलताओं के साथ प्रस्तुत किया।मीना कुमारी ने अपने करियर में कई सशक्त भूमिकाएँ निभाईं, जिनमें उन्होंने महिलाओं को पुरुषों के बराबर या उनसे भी अधिक शक्तिशाली दिखाया। 'मदर इंडिया' में उन्होंने एक ऐसी माँ का किरदार निभाया जो अपने बच्चों को पालने के लिए हर मुश्किल का सामना करती है। 'गाइड' में उन्होंने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया जो अपने पति को छोड़कर अपनी पहचान बनाती है। 'आंधी' में उन्होंने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया जो एक सफल राजनीतिज्ञ बनती है।इन भूमिकाओं के माध्यम से मीना कुमारी ने महिलाओं को आत्मनिर्भर, साहसी और शक्तिशाली दिखाया। उन्होंने महिलाओं को यह संदेश दिया कि वे किसी से कम नहीं हैं और वे अपने जीवन में कुछ भी हासिल कर सकती हैं। मीना कुमारी ने अपने जीवन में कई सामाजिक और व्यक्तिगत संघर्षों का सामना किया। उन्होंने एक ऐसे समाज में काम किया जहाँ महिलाओं को पुरुषों के बराबर नहीं समझा जाता था। इन संघर्षों के बावजूद, मीना कुमारी ने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपने काम के माध्यम से महिलाओं को प्रेरित किया और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। एक नारीवादी दृष्टिकोण से, मीना कुमारी को हिंदी सिनेमा की एक महत्वपूर्ण अभिनेत्री के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने महिलाओं के अधिकारों और उनकी समानता के लिए आवाज उठाई।
मीना कुमारी न केवल एक बेहतरीन अभिनेत्री थीं बल्कि एक संवेदनशील कवयित्री भी थीं। उनकी लिखी हुई ग़ज़लें और कविताएं बाद में गुलज़ार द्वारा संकलित की गईं। उनकी किताब “आई राइट - आई रिसाइट” उनकी काव्य प्रतिभा को दर्शाती है।मीना कुमारी एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री होने के साथ-साथ एक अच्छी गायिका भी थीं।उन्होंने कई फिल्मों में गाने गाए।मीना कुमारी की आवाज़ में एक खास कशिश थी, जो उनके गानों को और भी खूबसूरत बना देती थी। मीना कुमारी का यह क़िस्सा मशहूर शायर फ़िराक़ गोरखपुरी और अभिनेत्री मीना कुमारी के बीच एक दिलचस्प टकराव का वर्णन करता है।फ़िराक़ गोरखपुरी एक मुशायरे में जब उन्हें पता चला कि अभिनेत्री मीना कुमारी भी आ रही हैं, तो उन्होंने आपत्ति जताई। उनका मानना था कि अभिनेत्रियाँ मुशायरों की गरिमा को कम करती हैं, और इससे शायरों का ध्यान भंग होता है।मीना कुमारी, जो ख़ुद भी शायरी की शौकीन थीं, फ़िराक़ की बात से सहमत नहीं थीं। उन्हें लगा कि फ़िराक़ का नज़रिया संकीर्ण है, और वह अभिनेत्रियों को शायरी की दुनिया से दूर रखना चाहते हैं। मीना कुमारी भी एक सशक्त महिला थीं, और उन्होंने फ़िराक़ के विचारों का विरोध करने में संकोच नहीं किया।इस घटना के बाद, फ़िराक़ और मीना कुमारी के बीच संबंध तनावपूर्ण हो गए। फ़िराक़ अपनी कला की रक्षा करना चाहते थे, और मीना कुमारी शायरी में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना चाहती थीं।
निष्कर्ष : मीना कुमारी का जीवन एक ऐसे कलाकार की कहानी है जिसने अपार प्रसिद्धि और सफलता प्राप्त की, लेकिन व्यक्तिगत जीवन में अकेलापन और दर्द सहा। उनकी त्रासदी और काव्यात्मक संवेदनशीलता ने उन्हें भारतीय सिनेमा की अमर हस्ती बना दिया।उनकी अदाकारी, काव्य और संघर्ष की यह विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी। मीना कुमारी को भारतीय सिनेमा की सबसे महान अभिनेत्रियों में से एक माना जाता है। उन्होंने अपने अभिनय से दर्शकों के दिलों को जीता और आज भी उनकी फिल्मों को याद किया जाता है। मीना कुमारी ने अपने अभिनय से भारतीय सिनेमा को अमूल्य योगदान दिया। आज, समय के साथ, उनके इस योगदान का पुनर्मूल्यांकन हो रहा है, और विश्व सिनेमा में उनकी अमिट छाप को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। हाल ही में, ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में आयोजित 'गॉडेस: पावर, ग्लैमर, रिबेलियन' प्रदर्शनी में मीना कुमारी को मर्लिन मुनरो जैसी अंतर्राष्ट्रीय आइकनों के साथ प्रस्तुत किया गया, जो उनके वैश्विक प्रभाव को दर्शाता है। मीना कुमारी का जीवन संघर्ष और कला की उत्कृष्टता का प्रतीक है, और उनकी विरासत सदैव सिनेमा प्रेमियों के बीच जीवित रहेगी।
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- जनसत्ता ऑनलाइन नई दिल्ली August 1, 2017 मीना कुमारी: जन्म से मौत तक कभी नहीं छूटा दुखों से पीछा, शोहरत भी नहीं दिला सकी खुशी
- आज तक नई दिल्ली,01 अगस्त 2023 मौत के बाद नहीं था कोई पूछने वाला, किसने करवाया था मीना कुमारी.का अंतिम संस्कार
- Dainik jagaran KARISHMA LALWANIEDITED BY: KARISHMA LALWANI: 31 MAR 2024
- Gupta, Chidananda Das(1980) New Directions in Indian Cinema,Published by University of California Press
- Jain, J., & Rai, S. (2009). Films and Feminism: Essays in Indian Cinema. (pp.1o) Jaipur, Rawat Publications Julia Knight, Women and the New German Cinema, Verso 1992
दयाशंकर सिंह यादव
समाजशास्त्र विभाग, सकलडीहा पीजी कॉलेज, सकलडीहा, चंदौली
dayashankarcsn@gmail.com 9452302015
सिनेमा विशेषांक
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
UGC CARE Approved & Peer Reviewed / Refereed Journal
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-58, दिसम्बर, 2024
सम्पादन : जितेन्द्र यादव एवं माणिक सहयोग : विनोद कुमार
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