चित्र-काव्य : सृजन ले रहा है सांसे / सुरेन्द्र सिंह चुण्डावत

सृजन ले रहा है सांसे

1.

सृजन ले रहा है सांसे

संघर्ष का स्वर गूंज रहा है

मधुमास आने वाला है

विश्वास दस्तक दे रहा है

माया कर रही सम्मोहित

कामना का विस्तार कर

माया रच रही संसार है

देह में नेह कर रहा प्रवेश

आत्मा धर रही है वेष

भोग योनियों से

84 लाख का यह चक्कर

सब तो सहा है

नींद,भय और मैथुन

कौन है सम्पूर्ण?

यह कैसी धुन?

गणना प्रारम्भ कर मनुज

भ्रमित क्यों होता है?

क्यों नही जागता?

मर्यादित हो कर्मयोगी

समझना नही है

जो समझ न आये

वही तो माया है

माया से लड़ना है 

स्मरण यह भी तो हो।

जीतना स्वयं को है

पूर्ण होगी कामना

किंतु काम से मोह न

न तो न

सृजन ले रहा सांसे

संघर्ष का स्वर गूंज रहा है

2.

मैं शब्दो से स्वयं को

परिभाषित नही कर सकता

न ही चुप्पी को ओढ़ कर

इस तरह स्वयं को 

खत्म कर सकता

इसलिए रंगों से खेल रहा हूँ

रेखाओं में उलझ रहा हु

और मन के महीन तारो को

सुलझा रहा हूँ

अवकाश में स्वयं को

संयोजित कर रहा हूँ

समायोजित होना नही है

क्योंकि रंग,रेखाये लोगो की भांति

आपके भाव को अलाव लगा

जाड़े में गर्माहट की

जुगाड़ में लगे नही रहते है

वो अंतस के समस्त

मलिन विचारों की गठरी 

बाहर फेंक देते है 

निर्मल हो जाता है मन

मलिन होना और निर्मल होना

तय जब स्वयं ही करना है

तो रंग और रेखाओं में उलझकर

बन जाने दो मुझे

एक सार्थक कृति 

निर्रथक होना अंत है

अर्थ की खोज करना

अर्थ से मोह न रखना

सृजनकार का ध्येय हो

सृजन की जय हो

सृजन की जय हो

3.

अहम और ब्रह्म का

अभिराम आलिंगन

आत्मा का चलना

एक अनवरत यात्रा पर

आरोहित है 

जीवित है

गतिशील है

संघर्षरत है सृजन।

योद्धा सृजन का

अपमानित है स्वयं से

कभी मन मे नही थी

न रही थी, न है

सम्मान की अपेक्षा 

अमृत की इच्छा नही है

विष पीकर ही शिव होगा

यह सृजनकार जब

सृजन करेगा

तब सृजित होगा सत्य

सुंदर है सत्य

अभ्युत्थान तो होगा ही

अग्नि परीक्षा लेनी होगी

स्वयं को जलना होगा

स्वयं की पाशविकता से

स्वयं ही लड़ना होगा

अग्नि प्रश्न के शीघ्र ही

जवाब जन्म लेगे

क्योंकि सृजन कदापि

अनुत्तरित नही होता है 

न ही मौन!

4.

मत समझना मेरी रचनाओ को

क्योंकि,यह तुम्हारे लिए नही रची गयी

यह नही आएगी, तुम्हे यह बताने कि

यह क्यों सृजित की गयी है?

क्या है इन रचनाओं में ?

यह इन्ही में छिपा हुआ है कही

अपने अंतस में उतर कर

अगर स्वीकार कर सकते हो

अपने समस्त अनावृत वृत्तियों को

तो शायद!

कही कुछ समझ पाओगे

मेरी हर रचना को

अपने संघर्ष से मत जोड़ना

नही तो फिर से लड़ने लग जाओगे

मेरी सृजित रचनाओ को

मेरा अवसाद मत मानना

वरना यह फोड़ा बन फुट जाएगा

और मवाद निकल आएगा

तुम्हारे हाथों में

दर्द मुझे नही, तुम्हे ही होगा

क्योंकि मेरा दर्द तुमसे ही है

तुम मेरी रचनाओ में खो मत जाना

क्योंकि तुम्हारा जीवन 

तुम्हे स्वयं को पाने के लिए दिया है

इस जीवन को अपने रचने में लगाओ

मेरी रचना में खुद को यो न उलझाओ

मत समझना मेरी रचनाओ को

क्योंकि यह तुम्हारे लिए नही रची गयी

यह नही आएगी, तुम्हे यह बताने कि

यह क्यों सृजित की गयी है?


सुरेन्द्र सिंह चुण्डावत

सहायक आचार्य, चित्रकला विभाग, बीएन गर्ल्स कोलेज, राजसमन्द

chundawatsurendra@gmail.com



दृश्यकला विशेषांक
अतिथि सम्पादक  तनुजा सिंह एवं संदीप कुमार मेघवाल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-55, अक्टूबर, 2024 UGC CARE Approved Journal

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