- नैना सोमानी
शोध सार : प्रागैतिहासिक से मनुष्य ने प्रगति करते हुए अभिव्यक्ति का माध्यम खोजा एवं उसमे उत्तरोत्तर विकास भी किया। प्रागैतिहासिक काल में मनुष्य अपनी भावनाओं को गुफाओं की दीवारों, पेड़ों की छालों पर रेखा द्वारा अभिव्यक्त करता था। धीरे-धीरे कला एवं उसके व्यवस्थित आधार का विकास हुआ। कला की अभिव्यक्ति का मुख्य माध्यम कागज बना। जिसे सर्वप्रथम 2,000 साल पहले चीन ने ईजाद किया। कागज के आविष्कार से
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बीज शब्द : समकालीन कला, आधुनिक कलाकार, आधुनिक दृश्य कलाकार, कागज की खोज, सौंदर्यशास्त्र, कागज का माध्यम, कागज की मूर्तिया, कागज कलाकार, अभिव्यक्ति, इतिहास।
मूल आलेख : यह शोध पत्र कला के विकास में कागज के योगदान को दृष्टिपात करता हैं। पारंपरिक कला से आधुनिक युग तक कागज को सृजन के आधार के रूप में उपयोग में लेते आए है। कागज पारम्परिक रूप से लेखन एवं चित्रांकन की दृष्टि से मुख्य सृजन का आधार रहा हैं। कालान्तर में कागज को सृजन आधार की प्रमुखता देकर नव-नविन प्रयोग भी हुए। कागज की जन में सामान्य उपयोग की दृष्टि से ऐतिहासिक यात्रा रही है। विभिन्न कालान्तर में विकसित हुए विचार एवं बदलते स्वरूप भी सामने हैं। यह लंबे समय से संचार एवं अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में भी पूजनीय रहा है। कागज की इसी ऐतिहासिक यात्रा के बिच कागज सृजन माध्यम से धीरे-धीरे सृजन का विधा के रूप में विकसित होता गया। इस समकालीन नव कागजी सृजन विधा पर गंभीरता से छानबिन करता यह एक शोध आलेख हैं। अब कागज स्वयं एक विधा के रूप में विकसित होकर कागज की कलाकृति के रूप से सामने आया। क्यूंकि कागज पर रंग, रेखा एवं लेखन सृजन आधार की परम्परा अब पुरानी हो गई। अब कागज स्वयं ही कलाकृति का रूप धारण कर रहा हैं।
पारंपरिक कला से उत्तर-आधुनिक एवं समकालीन कला दौर में, ऐसे कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कलाकार हुए जिन्होंने कागज के माध्यम के रूप में कागज के प्रयोग की स्वतंत्रता से अपना कार्य किया और यह शोध पत्र उनके विविध दृष्टिकोण पर प्रकाश डालता है। यह शोध पत्र कागज के माध्यम की स्वतंत्रता जो प्रकृति में स्पर्शनीय है। इसके अनेक बनावटों और रूपों में खोजा जा सकता है, उसे प्रदर्शित और अभिव्यक्त करता है। इस शोध पत्र में प्रमुख चित्रकारों जैसे सोमनाथ होरे, जरीना हाशमी, अंकन मित्रा, और आधुनिक एवं अंतर्राष्ट्रीय चित्रकारों जैसे डेनियल पापुली, रे बेसरडिन के अध्ययन का उपयोग प्रमुख बिन्दुओं और विषयों को चित्रित करने के लिए किया जाएगा। एक विश्लेषणात्मक दृष्टि डाली हैं।
2. राष्ट्रिय एव अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कागज का तकनिकी माध्यम से सृजनात्मक प्रयोग - भारत में कागज को दृष्टिगत रखते हुए यह कहा जा सकता है कि कागज का लम्बा इतिहास रहा है, जिसकी जड़ें प्राचीन काल तक जाती हैं। भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कलाकारों ने व्यक्तिगत कहानियों और अनुभवों को प्रस्तुत करने के लिए विभिन्न माध्यमों का उपयोग किया है, पर कागज एक ऐसा माध्यम है जिससे गुज़र कर कलाकार अपने आप की कल्पनाओं को आध्यात्मिक रूप से अभिव्यक्त करता है। दृश्य कला के क्षेत्र में, कागज को लंबे समय से सिर्फ संचार के माध्यम के रूप में ही नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति के लिए कैनवास और परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में भी सम्मानित किया जाता रहा है। इसकी स्पर्शनीय प्रकृति अन्वेषण और सृजन को आमंत्रित करती है।
"कागज अपने उपयोगितावादी कार्य से आगे बढ़कर मानवीय अभिव्यक्ति और परिवर्तन का वाहन बन गया है। यह समय बीतने और विचारों के विकास का गवाह है। संस्कृति, रचनात्मकता और संचार पर इसके गहन प्रभाव को रेखांकित करता है। इसकी सादगी में इसकी शक्ति निहित है -प्रेरित करने, रिकॉर्ड करने और हमारे जीवन की कहानियों को आकार देने की”।(1)
हमारी तरह ही कागज भी हमारी उम्र के साथ पुराना होता है और जीवन भर की यात्रा के निशानों को ढोता है। हमारी तरह कागज की भी एक ऐसी स्मृति होती है जो अविश्वसनीय होती है।
2.1 सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व : पूरे इतिहास में, "कागज ने सांस्कृतिक आख्यानों को प्रलेखित करने और कलात्मक परंपराओं को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पारंपरिक कागज बनाने की तकनीकें संस्कृतियों में व्यापक रूप से भिन्न होती हैं, जिनमें से प्रत्येक बनाई गई कलाकृतियों में अद्वितीय बनावट और गुणवत्ता का योगदान है”।(2) समकालीन कला में, कलाकार इन पारंपरिक तरीकों को आधुनिक तकनीकों के साथ एकीकृत करते हैं, जिससे अतीत और वर्तमान के बीच एक पुल का निर्माण होता है।
2.2 विचारों का रूपांतरण : कलाकार अक्सर कागज का इस्तेमाल सिर्फ सतह के तौर पर नहीं करते, बल्कि नई अवधारणाओं के साथ प्रयोग करने और अपनी कलात्मक आवाज़ को निखारने के लिए एक माध्यम के तौर पर करते हैं। शुरुआती विचारों को कागज पर मूर्त रूपों में बदलने की प्रक्रिया अन्वेषण और खोज की और ले जाती है, जिससे कलात्मक अभिव्यक्ति की सीमाओं को आगे बढ़ाया जा सकता है।
3. प्रमुख समकालीन कलाकार और उनकी कृतियाँ :
3.1 सोमनाथ होरे : सोमनाथ होरे, एक ऐसे कलाकार जो आसमान के नीले रंग, रेत की चमक या फुसफुसाते पेड़ों की हरियाली को चित्रित करने वाले कलाकार नहीं थे, बल्कि फर्श पर गिरे हुए एक क्षीण शरीर से जुड़े कांपते हाथ की लाचारी को चित्रित करने वाले कलाकार थे। "होरे की वाउंड्स नामक व्हाइट-ऑन-व्हाइट सीरीज जो कागज के माध्यम को लेकर की गई और साथ ही, 1970 के दशक में अति सूक्ष्मवाद और अमूर्तता का एक स्तर देखा गया। मानवीय चित्रण से रहित, घावों की अवधारणा उनकी कला का केंद्र बन गई। घाव श्रंखला में, होरे द्वारा खुद हाथ से बनाए गए कागज पर गहरे घावों, चीरों और कटों के माध्यम से उन्होंने शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक आघात के चित्रण की अभिव्यक्ति को व्यक्त किया है”।(3) "व्हाइट-ऑन-व्हाइट सीरीज किसी को न केवल देखने देती है, बल्कि अपनी उंगलियों से न भरने वाले घाव की शारीरिक रचना को महसूस करने का प्रयास करवाती है। उन्होंने घाव, युद्ध, भुखमरी और मानवीय पीड़ा के विषय को दर्शाया हैं”।(4) होरे ने युद्ध के प्रभावों को दिखाने के लिए, घाव जैसे घाव दर्शाने के लिए, सफेद कागज को ढाला है।
वह सोमनाथ होरे, रवींद्रनाथ टैगोर, नंदलाल बोस, और बिनोद बिहारी जैसे कलाकारों के काम से प्रभावित थे। यहाँ उन्हें कला सृजन के अनंत अवसर मिले। उन्होंने बिनोद बिहारी, रामकिंकर और दिनकर कौशिक जैसे महान कलाकारों के साथ काम किया। के.जी. सुब्रमण्यन भी उनके बहुत अच्छे मित्र और मार्गदर्शक थे। (चित्र -1)
3.2 ज़रीना हाशमी : एक भारतीय कलाकार और प्रिंटमेकर, जिनके कागज और मूर्तियों पर उनकी जीवनशैली और एक जगह को घर बनाने की जटिल धारणा का उन्होंने दस्तावेजीकरण किया। ‘‘ज़रीना स्पष्ट रूप से कहती हैं, "हर विचार कला बनाते हैं। बहुत से लोग हैं जो चित्र नहीं बना सकते, लेकिन वे बेहतरीन कला बना सकते हैं, क्योंकि कला विचारों से आती है। आप कौशल सिखा सकते हैं, लेकिन आप विचार नहीं सिखा सकते”।(5)
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वह कहती है, "मुझे कहीं भी घर जैसा महसूस नहीं होता, लेकिन घर का विचार मुझे जहाँ भी जाती हूँ, पीछा करता है। ज़रीना स्पष्ट रूप से कहती हैं, "घर कहाँ है? कई सालों के बाद, आपको वे सारी यादें याद आती हैं, जो आपको परेशान करती हैं; इसीलिए कहावत है कि सभी महान कलाओं में उदासी का एक किनारा होता है। दर्शक अपने विचारों और भावनात्मक आवेगों से जुड़ाव महसूस करता है, जिसे ज़रीना यादों के बोझ तले दबने के रूप में व्याख्या करती है। ज़रीना हाशमी कहती हैं, "घर मेरी कल्पना में है।"(6) उन्हें अमूर्त सौंदर्यबोध का आभास एक तीव्र राजनीतिक चेतना के साथ महसुस हुआ, जो भारतीय स्वतंत्रता और 1947 के विभाजन की शुरुआती यादों से उत्पन्न हुआ है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमा को सीमांकित करता है, जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोगों का हिंसक विस्थापन और मौतें हुईं। ज़रीना की कृतियाँ प्रवासी, उदासीनता और स्मृति के विषयों की खोज करती हैं। एक मास्टर प्रिंटमेकर के रूप में स्थापित, ज़रीना के शुरुआती काम कागज और प्रिंटमेकिंग के माध्यम की संभावनाओं में एक औपचारिक विसर्जन को प्रदर्शित करते हैं, साथ ही साथ अमूर्तता के प्रति प्रतिबद्धता भी दर्शाते हैं। उनके परिपक्व काम कागज पर हस्तक्षेप प्रदर्शित होते हैं, जो एक साथ उग्र और नाजुक प्रतीत होते हैं - वह छेदती हैं, मोड़ती हैं, खरोंचती हैं, और एक रंग के आधार को काटती हैं - बनावट वाली सतहें बनाती हैं जो अंतरंग देखने और विस्तारित चिंतन को आमंत्रित करती हैं। ज़रीना मूर्तिकला की संवेदनशीलता पर जोर देती है जो प्रिंटमेकिंग को रेखांकित करती है, जो लकड़ी के ब्लॉक की नक्काशी में उत्पन्न होती है। 1980 के दशक में, उन्होंने कागज की लुगदी से त्री आयामी काम करके इस रुचि को शाब्दिक रूप दिया, उन्होंने कांस्य की ढली हुई मूर्तियाँ बनाई। उर्दू कविता और सुलेख ज़रीना को बहुत प्रभावित और प्रेरित करते हैं, जो वे अपने काम में भावपूर्ण उद्धरण और संदर्भों के रूप में शामिल करती हैं। उनके छह फीट ऊंचे कागज के कामों में संवर्धित पैमाने के साथ, ज़रीना दर्शकों के दिमाग को शून्यता और अनंतता, बोझ और ज्ञान, अनंत काल और कभी नहीं के विचारों की ओर निर्देशित करती है। कागज कलाकार की आजीविका का एक सर्वेक्षण प्रस्तुत करता है जिसमें यात्रा की गई दूरी और बिताए गए समय की आत्म कथात्मक स्थलाकृतियाँ शामिल हैं, जो अकथनीय है, फिर भी आवश्यक विचार के माध्यम से ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तिगत अनुभवों को दर्शाती हैं। ज़रीना का काम भारत, पेरिस, बैंकॉक और जापान में सीखी गई विभिन्न तकनीकों को दर्शाता था, जिन्हें उन्होंने इन मूर्तियों को बनाने के लिए संयोजित किया था। "दृश्यकला अभ्यास का विकास केवल भौतिक नहीं है; यह मानसिक रूप से और साथ ही प्रकृति में गतिशील परिवर्तनों के रूप में अधिक गहराई से निहित है। उनकी कलाकृतियाँ उनके सौंदर्यबोध की गतिशीलता का प्रमाण हैं; समय, स्थान और पर्यावरण के अमूर्त रूप के साथ उनके उदासीन अस्तित्व को केवल अनुभव किया जा सकता है, और शब्दों को उचित ठहराना मौन हो जाता है। वह कहती है- मेरी मातृभाषा, कला है (7)(चित्र-2)
3.3 अंकन मित्रा : अंकन मित्रा पेशे से आर्किटेक्ट हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित कलाकार हैं। प्रशिक्षण से एक वास्तुकार हैं, और मुख्य रूप से एक लैंडस्केप डिजाइनर के रूप में काम करते हैं। वे कहते हैं कि "बचपन से ही, उन्हें हमेशा इंसानों से ज्यादा पौधे पसंद रहे हैं। उन्हें लगता है कि वह एक पेड़ हैं, जिसे गलती से एक मानव शरीर से बदल दिया गया। वह ज्यादातर समय इंसानों से हैरान रहते हैं। दूसरी ओर, वह पौधों की दुनिया को अच्छी तरह समझते हैं। प्रकृति ने उन्हें तह करने की कला सिखाई है। वे कहते है-‘‘तह, पेड़ों की पत्तियों और शाखाओं में, हिमालय में, दुनिया के महाद्वीपों की तटरेखाओं में, हमारी उंगलियों में, हमारे दिमाग में है। तह हर जगह है।''(8) और इस विश्वदृष्टि के कारण, उन्हें आस-पास के कुछ लोग कलाकार कहने लगे। इस भ्रम के बावजूद कि वह एक वास्तुकार हैं या कलाकार। उन्होंने ‘ऑरिटेक्चर, यानी ओरिगेमी + आर्किटेक्चर' शब्द गढ़ा, जो तह करने की क्रियाओं से बनने और विलीन होने वाले ब्रह्मांड की एक अनूठी दृष्टि साझा करता है। "वह दो कहावतों में पूरी लगन से विश्वास रखते हैं- पहली- ज्यामितिय शाश्वत पर लक्ष्य रखती है (प्लेटो), और दुसरा- ब्रह्मांड गणित है (मैक्स टेगमार्क)”(9) ये सबसे संक्षेप में उनकी कला के प्रयास को परिभाषित करते हैं, वे मानव, अनुभव को प्रकाश, छाया, तह और रंगों की भाषा के माध्यम से ब्रह्मांड से जोड़ने की कोशिश करते हैं, ताकि मानव भाषा और सांस्कृतिक सीमाओं को पार करने में सक्षम हों। उनका कहना है, वास्तुकला प्रशिक्षण पैटर्न पहचान और विश्लेषण में एक मजबूत आधार बनाता है। ओरिगेमी- पेपर फोल्डिंग की एक ऐसी कला जो सामान्यतः जापानी संस्कृति से जुड़ी हुई है, कैसे एक समतल कागज को एक विशिष्ट आकृति के रूप में दर्शाया जाता है, और कैसे वह एक स्वरूप बताता है कि कागज त्री आयामी रूप में परिवर्तित होगा। (चित्र-3)
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3.4 डैनियल पापुली : "मिलान स्थित कलाकार डेनियल पापुली 1993 से ही कागज के प्रति मोहित हैं और उनकी कलाकृतियाँ और साइट-विशिष्ट स्थापनाएँ दर्शाती हैं, कि इस माध्यम में उनकी समझ कितनी गहरी है। वे 10,000 शीटों को लहरों की तरह दिखा सकते हैं या उन्हें ट्यूब से निकले ताजा निचोड़े गए पेंट की तरह बहा सकते हैं। भारी, संकुचित आयतन या तैरते रिबन से, पापुली कागज से अद्भुत परिदृश्य और बनावट बनाते हैं|"(10) डेनियल इटली के अपुलिया की भूमि के रंगों से प्रेरित हैं, उन्होंने बुकबाइंडिंग से प्राप्त अपनी खुद की तकनीक विकसित की। वह कहते हैं “मेरे शिल्प के बारे में जो बात मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित करती है, वह यह है कि जब लोग मेरी किसी कलाकृति को देखते हैं, तो वे तुरंत समझ नहीं पाते कि यह किस चीज से बनी है।"(11) वे अक्सर उसे लकड़ी या किसी तरह के जीवाश्म समझ लेते हैं। जब वे करीब से देखते हैं, तभी उन्हें पता चलता है कि यह कागज से बनी है। डेनियल पापुली ने संयोग से मिलान में एकेडेमिया डि बेले आर्टी डि ब्रेरा में अध्ययन करते समय बर्लिन में एक कार्यशाला में भाग लेने के बाद कागज के माध्यम में काम करना शुरू किया। हालाँकि उनका प्रशिक्षण शास्त्रीय मूर्तिकला में है, लेकिन इस मास्टर शिल्पकार ने कागज की पतली पट्टियों का उपयोग करके कलाकृतियां बनाने का फैसला किया, जिसके साथ वे मंत्रमुग्ध करने वाली आकृतियों को जीवन देते हैं, जिनकी विशिष्टता को केवल करीब से ही सराहा जा सकता है।(चित्र-4)
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3.5 रे बेसरडिन : मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया के एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित पेपर स्कल्पचर कलाकार जिनका कार्य शीट-फॉर्मेड पेपर्स के साथ आयामी रूप से मूर्तिकला बनाने की पूरी तरह से स्व-सिखाई गई तकनीक मैं उजागर होता है, बहुत हद तक बास-रिलीफ की तकनीक में उन्होंने अपना कार्य जाहिर किया, उन्होंने बचपन में ही कागज के साथ अपना कार्य शुरू कर दिया था, लगभग उसी समय जब वे प्रकृति से भी मोहित हो गए थे। फ्रांसीसी चित्रकारों से प्रेरित प्रभाववादी काल में, रे ने अग्रणी भूमिका निभाई और अपनी उपलब्धि हासिल करने के लिए एक तकनीक विकसित की, त्री -आयामी रूप से सौंदर्याभिव्यक्ति का एक प्रकार दर्शाने का प्रयास किया, जो नक्काशीदार फटे कागज को काम में लेकर किया, उन्होंने दो-आयामी पेंट का उपयोग भी अपने कार्य में किया। वह मानते है की यह उनकी विशिष्ट शैली है जिसको उन्होंने ‘‘इंप्रेशनिस्ट मूर्तिकला कागज" का नाम दिया। भावना, जीवन और अभिव्यक्ति को कैद करके फटे, कागज के टुकड़ों का उपयोग करके अति यथार्थवाद विषय को प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया। रे की कलाकृतियां अपने दर्शकों के दिलों को छुती है। उनका पसंदीदा विषय और उनकी कलाकृतियाँ दुनिया भर के संग्रहकर्ताओं और कला प्रेमियों द्वारा सराही जाती है। वे कहते हैं कि "बचपन से मैं कागज़ के टुकड़े को देखता था और सोचता था कि इससे मैं क्या-क्या बना सकता हूँ। लेकिन कुछ भी नहीं बदला है।" (12)(चित्र-5)
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निष्कर्ष : दृश्य कला में कागज केवल एक आधार नहीं है, बल्कि एक गतिशील माध्यम है जो कलाकारों को अभिव्यक्त करने, बदलने और नया करने में सक्षम बनाता है। इसके स्पर्शनीय गुण, सांस्कृतिक महत्व और स्थिरता इसकी स्थायी अपील में योगदान करते हैं, जो समकालीन कलात्मक अभ्यास में इसकी निरंतर प्रासंगिकता सुनिश्चित करते हैं। कागज के माध्यम से, कलाकार कथाएँ बनाते हैं, रूढ़ियों को चुनौती देते हैं, और दर्शकों से गहन और सार्थक तरीकों से जुड़ते हैं। भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कलाकारों ने समकालीन कला प्रथाओं में योगदान दिया और गहरा प्रभाव डाला है, जिससे कलाकारों की नई पीढ़ियों को पहचान और अपनेपन के विषयों का पता लगाने के लिए प्रेरणा मिलती है।
दृश्य कला के क्षेत्र में, कागज अन्वेषण और प्रचार के एक लचीले और अनुकूलनीय साधन के रूप में सामने आता है, जो कलाकार को एक ऐसा कैनवास प्रदान करता है जो रचनात्मकता और परिवर्तन की राह आसान बनाता है। व्याख्या में, दृश्य कला में कागज केवल एक आधार नहीं है, बल्कि एक उत्साही माध्यम है जो कलाकारों को अपनी कल्पनाशीलता संप्रेषित करने, रूपांतरित करने और स्थापित करने में सक्षम बनाता है। इसके सहज गुण, सांस्कृतिक मूल्य और पर्यावरण मित्रता कलात्मक अभ्यास में योगदान करते हैं। कागज के माध्यम से, कलाकार इतिहास रचते हैं, परंपराओं को चुनौती देते हैं और परिणामी तरीकों से दर्शकों के बीच एक पुल बनाते हैं। कागज- कलाकार, विचार और कलाकृति के बीच एक नया मंच है। आखिरकार, कागज अपने उपयोगी उद्देश्य से परे जाकर मानवीय अभिव्यक्ति और परिवर्तन के लिए एक माध्यम प्रस्तुत करता है। यह समय के प्रवाह और विचारों की प्रगति का साक्षी है, संस्कृति रचनात्मकता और संचार पर इसके गहन प्रभाव को रेखांकित करता है। इसकी सुलभता में इसकी ताकत निहित है- प्रेरित करने, दस्तावेजीकरण करने और एक नई कथा या कहानी को गढ़ने के लिए। इस माध्यम ने कलाकारों को एक नई दृष्टि प्रदान की है और अभिव्यक्ति के दायरे को विस्तृत किया है। यह माध्यम प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज के आधुनिक जीवन तक निरन्तर प्रगति मूलक परिवर्तन लेते हुए अनुभव के शिखर पर पहुँच चुका है।
संदर्भ :
1.https://edurev.in/question/1847157/When-did-paper-come-into-existence-Comment-on-the-role-of-paper-in-the-field-of-painting--[1]
2.https://en.m.wikipedia.org/wiki/History_of_paper#:~:text=After%20its%20origin%20in%20central,the%20years%20280%20and%20610 [2]
3.somnath, Hore, prinseps, somnath-hore-centenary-auction-volume-6, april 2022, page no.14-15 [3]
4. E-Booklet of Somnath Hore, https://anyflip.com/qvuo/nzxr/basic, Curated by K S Radha Krishnan, Published by 9971490706.shaiju, 2022-03-19, page. No. 17 [4]
5. जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल नेगेटिव रिजल्ट्स, वॉल्यूम-14, विशेष अंक 2, 2023, page no.-212 [5]
6. जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल नेगेटिव रिजल्ट्स, वॉल्यूम-14, विशेष अंक-2, 2023, page no. 215[6]
7. जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल नेगेटिव रिजल्ट्स, वॉल्यूम-14, विशेष अंक 2, 2023, page no. 217 [7]
8. https://www.artamour.in/post/ankon-mitra-the-art-of-oritecture [8]
9. https://indianoceancrafttriennial.com/artists/ankon-mitra/ [9]
10. https://www.homofaber.com/en/discover/papuli-daniele-gfkmnt [10]
11. https://plainmagazine.com/daniele-papuli-waves-paper/ [11]
12. https://www.papersculptureartist.com/about1/about [12]
13. Henya Melichson, the Art of Paper cutting, Quarry Books, 2009
14. Robert Henderson, Claperton, The Paper Making Machine: Its Invention, Evolution and Development, Pergamon, 2014
15. https://www.homofaber.com/en/discover/papuli-daniele-gfkmnt
16. https://www.papersculptureartist.com/about1/about
17. https://en.m.wikipedia.org/wiki/Kaagaz
नैना सोमानी
शोध छात्रा, दृश्यकला विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्धालय, उदयपुर, राजस्थान
nainacreation26@gmail.com, 8619384821
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