राज़ी : स्त्री पराक्रम की ख़ामोश गाथा
- सीमा खड़कवाल
पुरुष वर्चस्व वाला भारतीय समाज स्त्री को हमेशा से घर की चारदीवारी के भीतर के कार्यों के ही उपयुक्त समझता आया है। उसने स्त्री की काबिलियत और उसकी क्षमता को हमेशा सन्देह की दृष्टि से देखा है। हालांकि समय-समय पर अनेक महिलाओं ने अपने कार्यों से इस सोच को गलत साबित किया है। आज 21वीं सदी में स्त्री शिक्षा और स्त्री-सशक्तिकरण के प्रयासों के कारण स्त्रियाँ हर क्षेत्र में आगे बढ़कर समाज की मानसिकता को गलत साबित कर अपने लिए नया आसमान तलाश रही है लेकिन आज भी जासूसी जैसे क्षेत्र को स्त्रियों के लिए जोखिमपूर्ण माना जाता हैं। लेकिन सहमत खान की कहानी भारत के 60-70 के दशक के समाज की कहानी है जब देश में स्त्री-शिक्षा और स्त्री मुद्दों को लेकर जागरूकता नहीं थी। लड़कियों को, विशेषकर मुस्लिम समुदाय में उन्हें घर एवं पर्दे से बाहर आने की इजाजत नहीं थी। ऐसे दौर में एक पिता द्वारा अपनी इक्कीस वर्षीय युवा पुत्री को शत्रु देश में खतरनाक जासूसी मिशन पर भेजने का फैसला असाधारण और अकल्पनीय था। उस समय किसी युवती का जासूस के रूप में कार्य करना सोच से भी परे की बात थी।
सहमत के पिता कश्मीर के प्रसिद्ध मुस्लिम व्यवसायी हिदायत खान (बदला हुआ नाम) भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ (रिसर्च एडं एनालिसिस विंग) के प्रतिष्ठित और विश्वस्त खुफिया एजेन्ट थे। उनका व्यवसाय कश्मीर के बाहर भारत की सरहदों से परे पाकिस्तान के कई शहरों में फैला था और उनका पाकिस्तानी सेना के अनेक उच्चाधिकारियों से मेलजोल था। अपने व्यावसायिक दौरों के दौरान प्राप्त पाक सैन्य गतिविधियों की जानकारी वह रॉ तक पहुँचाया करते थे। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनकी विश्वस्त टीम ने बड़ी मात्रा में गोपनीय दस्तावेज हाथों-हाथ भारत भिजवाकर सैकड़ों भारतीय जवानों की जिंदगियाँ बचाई थी।
सन् 1971 के युद्ध से पूर्व भारत-पाकिस्तान के मध्य तनाव बढ़ रहा था और उस समय कुछ ऐसे जासूसों की आवश्यकता थी जो पाकिस्तान में रहकर भारत के खिलाफ होने वाली हर गतिविधि की सूचना भारतीय खुफिया एजेन्सी‘रॉ’तक पहुँचा सके। बीमार हिदायत खान यह कार्य करने में सक्षम नहीं थे।‘रॉ’के उच्च अधिकारियों के मना करने पर भी उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपनी इकलौती पुत्री को चुना। सेवानिवृत्त नौ सेना अधिकारी हरिन्दर सिक्का ने इसी साहसी युवती के जीवन को लेकर ‘कॉलिंग सहमत* नामक किताब लिखी जो पेंगुईन बुक्स से सन् 2018 में प्रकाशित हुई।‘कॉलिंग सहमत’एक ऐसी स्त्री की कहानी हमारे सामने लाती है, जिसे परिस्थितिवश जासूस के रूप में अपना कर्तव्य निभाने के लिए पाकिस्तानी सेना के एक कैप्टेन से शादी करनी पड़ती है। अपने मिशन के लिए उसे अपने परिवार से, अपने वतन से और अपने सच्चे प्यार से अलग होना पड़ता है।
विवाह के बाद सहमत पाकिस्तान से निरन्तर गोपनीय जानकारियाँ भारत भिजवाने लगी। एक शाम अपने ससुर की टॉप सीक्रेट फाईलें खंगालते हुए उसने भारतीय नौसेना के एकमात्र हवाई जहाज वाहक आई.एन.एस. विक्रांत पर हमला करने की तैयारी के सम्बन्ध में एक आदेश देखा। आई.एन.एस. विक्रांत के नष्ट होने का मतलब था - युद्ध में भारत की हार और जान-माल की अपूरणीय क्षति। यह हमला हजारों लोगों की जान लेने और भारत की नौसैनिक क्षमता नष्ट करने के साथ-साथ भारतीय गौरव को भी बहुत बड़ा नुकसान पहुँचाने वाला था। सहमत ने बिना देरी किये मोर्स कोड़ के द्वारा रॉ के पास वह अहम जानकारी भेज दी और ऐसा करते ही पाकिस्तानी खुफिया एजेन्सी आई.एस.आई. पर उसका भेद खुल गया। मीर ने सहमत को प्रशिक्षण के दौरान ही मोर्स कोड के द्वारा सूचनाएँ भेजने के लिए मना किया था क्योंकि इसके द्वारा व्यक्ति की मौजूदा स्थिति का पता लगाया जा सकता है। सहमत ने उस कोड को ब्रेक करके स्वयं को गम्भीर खतरे में डाल लिया था। मोर्स कोड संदेश भेजने का एक गुप्त तरीका होता है, जिसे टेलीग्राफी भी कहते है। इसमें भाषा के रूप में डॉट ( . ), डैश (-) आदि का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक सेना और प्रत्येक समूह का अपना अलग मोर्स कोड़ (शब्द-संग्रह) होता है।
उस समय के राजनीतिक परिदृश्य के अनुसार पाकिस्तान अपने पूर्वी सूबे बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) में बगावत का सामना कर रहा था। पाकिस्तानी सरकार के सौतेले रवैये के कारण वहाँ की जनता और सेना ने पाकिस्तान से मुक्ति की जंग छेड़ रखी थी। भारत के राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार यह माना जा रहा था कि अपने पूर्वी हिस्से में मुश्किलों का सामना कर रहा पाकिस्तान इस समय भारत से नहीं उलझेगा। लेकिन सहमत खान की भेजी गई सूचना के आधार पर भारतीय खुफिया एजेन्सियाँ सजग हो गई।
3 दिसम्बर 1971 की रात को पाकिस्तान ने भारत के सीमावर्ती क्षेत्र पर हमला करके युद्ध की शुरूआत कर दी। सहमत की सूचना के आधार पर पूर्व में सतर्क भारतीय नौ सेना ने आपरेशन ट्राइडेंट के तहत् 4 दिसम्बर 1971 की रात को ही पाकिस्तान के कराची बन्दरगाह स्थित नौसैनिक मुख्यालय पर हमला करके जल में छुपी दुश्मन की पनडुब्बियों की पहचान करके न केवल इस हमले को नाकाम किया। बल्कि अमेरिकन गाजी (उन्नत पनडुब्बी), अनेक जहाजों और कियामारी तेल भंडार को नष्ट करके पाकिस्तान को नौ सैन्य दृष्टि से पंगु भी बना दिया। 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को बहुत बुरी तरह पराजित किया।
कराची को तहस-नहस करने में भारतीय नौसेना ने जो कारगर कदम उठाये, उसमें अन्य भारतीय जासूसों के साथ सहमत की सूचनाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस अभियान को आधुनिक नौ सैनिक इतिहास का सबसे सफल अभियान माना जाता है। इस विजय की स्मृति में ही हर वर्ष 4 दिसम्बर को भारतीय नौ सेना में विक्ट्री ऑफ कराची के रूप में नौ सेना की उपलब्धियों को याद करते हुए नौ सेना दिवस मनाया जाता है।
अपने मकसद के प्रति पूर्ण समर्पित सहमत ने अपने कार्यों से भारत सरकार एवं भारतीय खुफिया एजेंसियों के मध्य बहुत प्रतिष्ठा हासिल की। एक महिला होकर जो असाधारण साहसपूर्ण कार्य उसने किया था, वह उन सबकी अपेक्षाओं से बहुत ऊपर था।
सुरक्षा कारणों से नायिका ‘सहमत’(छद्म नाम) का वास्तविक नाम और पहचान आज तक सार्वजनिक नहीं की गयी है। कोई भी देश अपने जासूसों की पहचान कभी भी सार्वजनिक नहीं करता और इसीलिए सहमत को देश की इतनी बड़ी सेवा करके भी भारतीय जनता के मध्य वो शोहरत और पहचान नहीं मिली जिसकी वो हकदार थी।वह भारत के उन चुनिंदा जासूसों में शामिल थी जो अपने मिशन को पूरा करके सुरक्षित अवस्था में देश लौटे थे। सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारत की तरफ से सहमत ने एक जासूस के रूप में अप्रत्यक्ष रूप से जो महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी उसके लिए देशवासी हमेशा उसके ऋणी रहेंगे।
फिल्मांतरण -
मेघना गुलजार द्वारा निर्देशित और जंगली पिक्चर्स और धर्मा प्रोडक्शन द्वारा निर्मित ‘राजी‘ फिल्म 11 मई 2018 को प्रदर्शित हुई। ‘राजी‘ फिल्म ‘कॉलिंग सहमत‘ की नायिका सहमत खान के जीवन पर ही आधारित है। कैंसर की बीमारी से जूझ रहे पिता की अन्तिम इच्छा से अनजान सहमत उस समय भारत की राजधानी दिल्ली में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही थी। अर्न्तमुखी स्वभाव की सहमत अपने स्वर्गीय सौन्दर्य और अपने विनम्र व्यवहार के कारण कॉलेज में अत्यन्त लोकप्रिय थी। अपने माता- पिता की तरह ही धर्म के अंतर को मिटाकर सहमत ने भी अपने भावी जीवन साथी के रूप में दिल्ली के एक धनी एवम् प्रतिष्ठित परिवार के अभिनव राज सिंह को चुन लिया था। दोनों जीवन भर साथ रहने का सपना देख रहे थे। लेकिन देश की सेवा के लिए पिता के द्वारा लिए गए निर्णय को स्वीकार करते हुए सहमत ने अपने जीवन की दिशा बदल ली । योजना के अनुसार उसे सीमा पार पाकिस्तान से खुफिया जानकारी इकट्ठा करने वाले नेटवर्क का हिस्सा बनने के लिए पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शेख परवेज सैयद के बेटे कैप्टन इकबाल से शादी करनी पड़ी। अपने सारे सपनों को त्याग कर सम्भवतः पिता के लिए गए फैसले से सहमत होने के कारण ही लेखक ने इस नायिका को ‘सहमत‘ नाम दिया और फिल्म का नाम ‘राजी‘ भी इसी आधार पर रखा गया है।
फिल्म ’राजी ‘ में अकेले पाकिस्तान की सुरक्षा-व्यवस्था को ध्वस्त करने वाली सबसे सुन्दर भारतीय महिला जासूस ‘सहमत’की भूमिका अभिनेत्री आलिया भट्ट ने निभाई है। आलिया नैसर्गिक सौन्दर्य की स्वामिनी, मासूम और प्रतिभाशाली कश्मीरी युवती सहमत के किरदार को पर्दे पर बखूबी निभा ले गयी है। फिल्म में खालिद मीर के साथ प्रशिक्षण के दौरान के दृश्यों में सहमत के जुनून, उसकी हताशा, बैचेनी और झल्लाहट को आलिया ने बेहतर अभिव्यक्ति दी है।
‘राजी‘ फिल्म की पटकथा भवानी अय्यर और मेघना गुलजार ने मिल कर लिखी है। फिल्म की संवाद लेखिका भी मेघना गुलजार है। फिल्म में संगीत शंकर-एहसान-लॉय का है और फिल्म के गीत गुलजार ने लिखे हैं। फिल्म के अन्य किरदारों में सहमत के पति इकबाल सैयद की भूमिका में विकी कौशल है। इसके अतिरिक्त जयदीप अहलावत (खालिद मीर), रजत कपूर (हिदायत खान), शिशिर शर्मा (ब्रिगेडियर/मेजर जनरल परवेज सैयद), सोनी राजदान (तेजी खान), अमृता खानविल्कर (मुनीरा), आरिफ जकारिया (अब्दुल), अश्वत्थ भट्ट (महबूब सैयद), संजय सूरी (सहमत का बेटा समर सैयद) आदि है। ‘राजी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही और इसे दर्शकों ने भी पसन्द किया। फिल्म को पाँच श्रेणियों में फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए आलिया भट्ट को, सर्वश्रेष्ठ निर्देशन के लिए मेघना गुलजार को, सर्वश्रेष्ठ गायक के लिए अरिजीत सिंह (ए वतन)को , सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए गुलजार (ए वतन) को सम्मानित किया गया, साथ ही इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म का भी फिल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ।
पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक (1977) के शासन से पूर्व साड़ी पहनने पर पाबन्दी नहीं थी और वहाँ की उच्च वर्ग की महिलाओं में साड़ी एक आकर्षक परिधान के रूप में लोकप्रिय थी। यही वजह है कि फिल्म में सहमत और अन्य मुस्लिम युवतियों को मुस्लिम पहनावे के साथ -साथ कहीं-कहीं साड़ी पहने भी दिखाया गया है।
सहमत की कहानी उन लोगों के लिए सबक है जो स्त्री को पुरुष से शारीरिक, बौद्धिक एवं मानसिक रूप से कमजोर समझकर सेना एवं सुरक्षा क्षेत्रों में उसके कार्य करने की योग्यता एवं क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाकर उनके लिए बाधाएं पैदा करते हैं। मूल कथा की भाँति फिल्म में भी दिखाया गया है कि अपना राजफाश होने पर भी सहमत हिम्मत नहीं हारती। योजनाबद्ध ढंग से वह पाकिस्तानी सेना के दूसरे सबसे बड़े अधिकारी लेफ्टिनेन्ट इम्तियाज खान की बेगम सुरैया को अपने विश्वास में लेकर उनका सहयोग हासिल कर अपने आपको इस मुसीबत से निकाल लेती है। परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बदलती है कि सहमत को सकुशल वापस लाने के लिए पाकिस्तान गये रॉ के उच्चाधिकारी मीर को न चाहते हुए भी सहमत को बम से उड़ाने के लिए अपने सहयोगियों को निर्देश देना पडत़ा हैं। स्पष्ट है कि सहमत जासूस के रूप में अपने मिशन को पूरा करते हुए पाकिस्तान में कदम-कदम पर अपनी जान को जोखिम में डालती है और आखिरकार वह सारे खतरों को पार कर मीर तक पहुँच जाती है। फिल्म में भी दिखाया गया है कि देश के लिए जासूसी करते समय सहमत खान पाकिस्तान में कदम-कदम पर असुरक्षा का सामना करती है। उसकी एक हल्की सी लापरवाही उसके मिशन को तहस-नहस करने के साथ उसके जीवन को खत्म करने के लिए पर्याप्त थी।
फिल्म में सहमत को साहसी होने के साथ बेहद भावुक भी दिखाया गया है। बम हादसे में इकबाल, मुनीरा और नफीसा की मौत के बाद सहमत अपना संयम खो देती है, वह मीर से सवाल पूछती है, “नहीं समझ आती आपकी ये दुनिया, न रिश्तों की क़दर है ना जान की। इससे पहले कि मैं पूरी आप जैसी बन जाऊँ, मुझे इन सबसे निकलना है। मुझे अपने घर जाना है।”1
फिल्म में सहमत के जो संवाद आये हैं वह वास्तविक सहमत की सोच और विचारों से पूर्णतया भिन्न है। वास्तविक जीवन में सहमत को अपने कार्य और अपनी देश सेवा पर गर्व था, यही कारण है कि उसने अपने बेटे समर खान (कल्पित नाम) को भी देश सेवा के लिए भारतीय सेना में भेजा। सहमत हमेशा उसे सेना की वर्दी में सजा देखकर गर्व और खुशी महसूस करती थी।2 उसने अपने बेटे से कहा था, “बेटा, इस वर्दी को इज्ज़त देना, तुम्हारी आत्मा तुम्हें इज्ज़त देगी। खतरों का सामना करने में कभी नहीं डरना। इनसे ही तुम बहादुर बनोगे। तुम्हारा अपने देश के प्रति कर्तव्य है, कभी भी थोड़े बहुत भौतिक लाभ से इसे नहीं तौलना। अपने देश के लिए जीने और उसी के लिए मरने से बढ़कर कोई इनाम नहीं होता।”3
फिल्म सहमत की सोच, कार्यो और देश सेवा को जिस दृष्टि से प्रस्तुत करती है, इसके लेखक हरेन्द्र सिक्का भी उससे असन्तुष्ट और आहत थे। एक इन्टरव्यू के दौरान वे अपनी पीड़ा प्रकट करते हुए कहते हैं कि उनकी किताब के साथ फिल्मकार ने न्याय नहीं किया। फिल्मकार की लेफ्टिस्ट एप्रोच के कारण फिल्म में सहमत के लौटने पर न तो तिरंगा दिखाया गया और न ही जन-गण-मन की धुन बजायी गयी। इसके बजाय फिल्म में पाकिस्तान के झण्डे दिखाये गये और भारतीय खुफिया एजेन्सी को नीचा दिखाया गया। फिल्म दर्शाती है कि सहमत भारत आने के बाद रॉ के अधिकारियों द्वारा उपेक्षित होती है और उसके त्याग, बलिदान का देश के लिए कोई महत्व नहीं होता। इसके विपरीत किताब में सिक्का बताते हैं कि पाकिस्तान से वापस लौटने पर सहमत का हवाई अड्डे पर भारतीय सेना और रॉ के उच्च अधिकारियों द्वारा अभूतपूर्व स्वागत किया जाता है। उसके स्वागत में लाल कालीन बिछाया जाता है, सैनिक बैंड उसके स्वागत में राष्ट्रीय धुन जन-गण-मन बजाता है। फिल्म के विपरीत किताब में सहमत खुशी और गर्व के साथ तिरंगे को सलाम करती है और रोने या अवसाद में जाने के बजाय वह अपनी मिट्टी को चूम कर कहती है, “ओ मेरी मातृभूमि, मैंने तुम्हारी कमी महसूस की। मुझे वापस लेने के लिए शुक्रिया।”4
सिक्का इस किताब के माध्यम से भारत की आधुनिक पीढ़ी को यह बताना चाहते थे कि कश्मीर में रहने वाले सभी मुस्लिम आतंकवादी नहीं होते बल्कि वे भी इस देश से, इसकी मिट्टी से उतना ही प्रेम करते हैं जितना देश के अन्य लोग। फिल्म सहमत के किरदार को जिस तरीके से प्रस्तुत करती है उससे लगता है कि सहमत को अपने राष्ट्र-प्रेम पर ही सन्देह है। मीर से उसका सवाल यही दर्शाता है, “इकबाल की मौत तो नहीं थी इस प्लान में, क्यूँ मारा उन्हें, किस वफादारी का सबक देते हैं आप लोग?” 5 किताब के अनुसार वास्तविक सहमत धर्म और जाति से परे एक सच्ची देशभक्त और सच्ची स्त्री थी। उसने देशभक्त के रूप में अपने जासूसी मिशन को सफल बनाने के लिए सब कुछ बलिदान कर दिया तो एक अच्छी इन्सान के रूप में उसने इकबाल के बच्चे को जन्म देकर सरहदों और जंग से परे एक सच्ची माँ होने का गौरव भी हासिल किया।
फिल्म हरिन्दर सिक्का की किताब ‘कॉलिंग ‘सहमत’पर आधारित है फिर भी फिल्म अपने मूल आधार से कुछ प्रसंगों में अलग है। फिल्म में सहमत के प्रेमी अभिनवराज सिंह को कहीं नहीं दिखाया गया है जबकि किताब में अभिनवराज सिंह की सहमत की जिन्दगी में पाकिस्तान जाने से पूर्व और भारत आने के बाद महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सहमत की मानसिक स्थिति को देखते हुए अभिराज सिंह ने सहमत के पुत्र को गोद ले लिया था। उन्होंने बच्चे का धर्म बदले बगैर उसकी बेहतरीन परवरिश की और स्वंय जीवन भर अविवाहित रहे।
अपने मिशन के प्रति समर्पित सहमत कदम-कदम पर जोखिम उठाते हुए पाकिस्तान से अहम गोपनीय जानकारियाँ भारतीय खुफिया एजेन्सी रॉ तक पहुंचाती है, इसके लिए वह अनेक कुर्बानियाँ देती है। उसे अनेक ऐसे कार्य करने पड़ते है, जो उसकी आत्मा पर बोझ बन जाते हैं। अपने मिशन को पूरा करने के लिए जो कार्य उसने किए, उससे उसका पूरा ससुराली खानदान तबाह हो गया। उसने बुजुर्ग नौकर अब्दुल को ट्रक से रौंद दिया, अपने जेठ महबूब की हत्या की, जेठानी मुनीरा और पति इकबाल उसी की वजह से विस्फोट में मरे और उसी के कारण उसके ससुर को कोर्ट मार्शल से बचने के लिए आत्महत्या करनी पड़ी। सहमत ने अपने मिशन को सफल करने के लिए अच्छा-बुरा जो आवश्यक था, वह सब किया। लेकिन लक्ष्य को पाने के बाद उसने जब अपने उन कार्यों का विश्लेषण किया तो वह निराशा और अवसाद का शिकार हो गयी। इन समस्त घटनाओं की वजह से सहमत भारत लौटने पर अपराधबोध से ग्रस्त हो अवसाद में चली जाती है। इसी अपराध बोध के कारण वह अपने नवजात बेटे को भी अपनाने को तैयार नहीं होती। फिल्म में भारत आने के बाद सहमत की सम्पूर्ण जिन्दगी अवसाद में गुजरती दिखायी गयी है। जबकि सिक्का की किताब में सहमत निराशा और अपराध बोध में अवश्य डूबती है। लेकिन धीरे-धीरे वह इनसे उबर कर एक शांत और सुकून भरी जिन्दगी जीती है जिसमें वह आध्यात्म और सेवा को महत्वपूर्ण स्थान देती है।एक फकीर के मार्गदर्शन में अपनी आत्मा को अपराधबोध और अवसाद से मुक्त करके वह ईश्वर प्रेम की राह में आगे बढ़ती है।
अभिराज सिंह सहमत के भारत लौटने के बाद भी उससे विवाह करना चाहते थे। वह उसके बच्चे के साथ उसे अपनाने को तैयार थे, लेकिन सहमत इसके लिए राजी नहीं थी। सहमत चाहती तो अभिनवराज के साथ विवाह करके खुशहाल जिन्दगी व्यतीत कर सकती थी लेकिन उसने प्रेम से ऊपर कर्तव्य को रखकर अपने लिए संघर्ष की राह चुनी। फिल्म मलेरकोटला में आने के बाद सहमत के जीवन में आये बदलावों और संघर्ष के बारे में खामोश है जबकि किताब में हरिन्दर सिक्का ने सहमत के मलेर कोटला के जीवन के बारे में जानकारी दी है।
मलेरकोटला आने के बाद जब वो सामान्य मनोस्थिति में आती हैं, उसके बाद वह मलेरकोटला के सामान्य नागरिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष करती है। उनके मध्य उसकी अलग ही छवि थी, ‘‘ औरतें उस पर बहुत श्रद्धा रखती थी। जिस तरह वह उनके अधिकारों के लिए लड़ी थी और उन्हें उनका आत्मसम्मान दिलाने में उनकी मदद की थी, उससे वे प्रभावित थीं। आदमी भी उसके दूर तक फैले असर की वजह से उसकी इज्ज़त करते थे। सरपंच उससे प्रायः डरता था, क्योंकि वह उसके अत्यधिक मददगार और दुर्बल बाहरी रूप के पीछे छिपे उसके फौलादी निश्चय और रहस्यमय बुद्धि का गवाह था। वह बहुत बार उसके नवोन्मेषी तरीकों से ताज्जुब में पड़ जाता था, निज के द्वारा वह गाँव के बहुत से मुद्दों को हल कर देती थी। वह गाँव की पंचायत के विचारकों का अभिन्न हिस्सा होती थी, क्योंकि उसके पास सब समस्याओं के हल तैयार रहते थे।’’6
फिल्म में दिखाया गया है कि सहमत को, उसकी देश के प्रति वफादारी को, कोई भी याद नहीं रखता है जबकि मूल कथा के अनुसार भारत लौटने के बाद भी भारतीय खुफिया एजेन्सी और उसके उच्चाधिकारी सहमत का पूर्ण ख्याल रखते हैं और उसके सम्पर्क में रहते हुए उसे पूरी सुरक्षा और सम्मान देते है।
फिल्म सहमत के भारत लौटने के बाद की जिन्दगी को जिस तरह दिखाती है वह वास्तविक सहमत खान के मलेर कोटला के संघर्ष, उसकी समाज सेवा और उसकी आध्यात्मिक उन्नति को अनदेखा कर उसके व्यक्तित्व की असाधारणता के प्रति आँखें मूँद लेती है। फिल्म में प्रस्तुत सहमत की छवि ‘कॉलिंग सहमत‘ की नायिका की छवि से कमजोर है। सहमत की कहानी दर्शाती है कि वक्त आने पर एक साधारण भारतीय स्त्री भी धर्म, जाति, क्षेत्रीयता के भेदभाव से ऊपर उठकर निःस्वार्थ भाव से देश और समाज के लिए बड़े से बड़ा बलिदान करने की सामर्थ्य रखती है। सहमत अपने संघर्षमय व्यक्त्तिव के साथ समाज के हितार्थ अपनी सेवाएं देते हुए मलेरकोटला के लोगों के दिलों में अपनी खास जगह बना पाने में सफल होती है। मलेरकोटला के लोग सहमत को अपनी संरक्षिका समझते थे और वह मलेरकोटला की एक नामी हस्ती के रूप में जानी जाती थी। देश के लिए की गई उसकी सेवा से आम जन अपरिचित था लेकिन फिर भी उसकी नेक शख्सियत ने उसे गुमनामी और अवसाद की मौत नहीं मरने दिया।
सन्दर्भ :
- फिल्म-राज़ी, 2018, संवाद।
- हरिन्दर सिक्का, कॉलिंग सहमत पृ. IV (आमुख)
- हरिन्दर सिक्का, कॉलिंग सहमत, आमुख, पृ. XIII
- हरिन्दर सिक्का, कॉलिंग सहमत, हिन्दी अनुवाद-उमा पाठक, पेंगुइन बुक्स, गुड़गाँव, प्रथम संस्करण-2019, पृ.151.
- फिल्म-राजी, 2018, संवाद।
- कॉलिंग सहमत, (आमुख), पृष्ठ -X,XI
सीमा खड़कवाल
आचार्य, हिंदी विभाग, स्व. राजेश पायलट राजकीय महाविद्यालय, बांदीकुई, जिला दौसा (राजस्थान)
6378458535
सिनेमा विशेषांक
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
UGC CARE Approved & Peer Reviewed / Refereed Journal
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-58, दिसम्बर, 2024
सम्पादन : जितेन्द्र यादव एवं माणिक सहयोग : विनोद कुमार
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