- कु. सबिता
शोध सार : भूमंडलीकरण से तात्पर्य विश्व की सभी बाजारों के एक होने से है। इस प्रक्रिया में दुनिया की बोली, भाषा,रीति रिवाज,त्योहार एवं वस्तुएं अपनी भौगोलिक सीमाओं को तोड़कर पूरी दुनिया का सफर तय करती है।भूमंडलीकरण के प्रभाव ने अमीरी-गरीबी की असमानता को बढ़ाया है। इसके चलते लोगों में कुंठा, अकेलापन, घुटन, संत्रास जैसी स्थिति देखने को मिलती है।भूमंडलीय दौर यानि की असमानताओं का दौर। इसका प्रभाव समाज के सभी वर्ग के लोगों पर पड़ता है। बच्चे युवा, अमीर-गरीब, शिक्षा-संस्कृति, बोली-भाषा आदि पर भूमंडलीकरण का कब्जा हैं। बच्चों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ा है। बचपन किसी व्यक्ति के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण समय होता हैं। हम वयस्क जीवन में कैसे होंगे, कैसा व्यवहार करेंगे यह बचपन की शिक्षा पर निर्भर होता है। यह समय बच्चों एवं उनके परिवार यानी मां-बाप के लिए बेहद चुनौती पूर्ण होता है। आज इस दौर में असमानता की खाई बढ़ती जा रही है। जैसे-जैसे यह समय बदल रहा है बच्चों के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ रहा हैं। बच्चे अपने आप में सिमट कर रह जा रहे हैं। समाज से उनका ताना-बाना नहीं बन पा रहा है। अपनी भाषा, संस्कृति, परम्परा से बच्चों का जुड़ाव नहीं हो पा रहा है जिसकी वजह वैश्वीकरण की खाई है। समय बदल रहा है और समय के साथ साथ समाज और समाज के साथ उसमे रहने वाले लोग। यह बदलाव बच्चों के मस्तिष्क पर बहुत ही गहरा प्रभाव डाल रही हैं।
बीज शब्द : भूमंडलीकरण, बाजार, शहरीकरण, उपभोक्तावादी,, संस्कृति ,अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी, वैश्वीकरण, परम्परा, सामाजिक असमानता, सूचना-क्रांति, मानवीय मूल्य, अवसाद।
भूमिका : भूमंडलीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से विश्व के विभिन्न हिस्से आपस में जुड़ते हैं और एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। इसमें व्यापार, संस्कृति, तकनीकी और सूचना का आदान-प्रदान शामिल होता है। अर्थात विश्व की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक नीतियों का आपस में विलय ही भूमंडलीकरण कहलाता है। भूमंडलीकरण के केंद्र में बाजार है। बाजार एक उपभोक्तावादी संस्कृति है इसने बड़े रूप में उपभोक्ता को तैयार किया हैऔर बाजार ने शहरीकरण का ऐसा जादू प्रस्तुत किया जिसमें अमीर और गरीब दोनों प्रभावित हैं। भूमंडलीय बाजार में सभी का दाम तय है चाहे वह मनुष्यता हो या उसका मूल्य या उसका अस्तित्व। बाजार ने सब कुछ बिकाऊ बना दिया। भूमंडलीकरण का प्रभाव समाज के सभी वर्गों पर समान रूप से पड़ता है। जो आज की सबसे बड़ी समस्या है यह बच्चो के बचपन को प्रभावित कर रहा है। बचपन सबसे कोमल समय होता है और इस समय में दिमाग इतना विकसित नहीं हुआ रहता है कि हम सही गलत का फैसला ले पाए। आज वैश्वीकरण के समय में बच्चों के कोमल मन पर इसका बहुत गहरा प्रभाव पड़ रहा है। आर्थिक असमानताएं इतनी ज्यादा है की गरीब बच्चे चाह कर भी पढ़ नहीं सकते। शिक्षा से वंचित इन बच्चों के जीवन की डोर वैश्वीकरण के हाथ में है। बदलते तकनीकी दौर एवं गलत पेरेंटिंग की वजह से बच्चों की बागडोर इंटरनेट के हाथों है। जिसके परिणाम स्वरूप बच्चों की संवेदनशीलता में कमी, उनके जीवन शैली में बदलाव, किताबों से दूरी ,शारीरिक गतिविधियों में कमी, अकेलेपन को बढ़ावा, रिश्तो से कटाव मोबाइल फोन पर निर्भरता, ऑनलाइन सोशल मीडिया की वजह से बच्चों में विश्वास की कमी, यौन शोषण को बढ़ावा आदि चीजों पर भूमंडलीकरण का प्रभाव देखा जा सकता है। बच्चे भावनात्मक रूप से बहुत ही कमजोर होते चले जा रहे हैं। अपने ही परिवार समाज संस्कृति से दूरी बढ़ रही हैं। सीखने के उम्र में बच्चे फोन की गलियों में भटक रहे हैं जिससे उनके विकास में अवरोध उत्पन्न हो रहा है। उनकी सृजनात्मक क्षमता खत्म हो रही हैं।
मूल आलेख : भूमंडलीकरण से तात्पर्य विश्व के सभी बाजार के एक होने से हैं। इस प्रक्रिया में दुनिया की बोली-भाषा,रीति-रिवाज,त्योहारएवं वस्तुएं अपनी भौगोलिक सीमाओं को तोड़कर पूरी दुनिया का सफर तय करती हैं जिसे ग्लोबल विलेज की संज्ञा दी गई है।दूसरे शब्दों में कहें तो विश्व के सामाजिक,आर्थिक, राजनीतिक नीतियों का एक होना ही भूमंडलीकरण हैं। जिसमें बोली भाषा, रहन सहन आदि का आदान प्रदान होता हैं। पुष्प पाल सिंह लिखते हैं – “भूमंडलीकरण ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पूरे विश्व की अर्थव्यवस्थाएं व्यापक बाजार की तलाश में तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी के उन्नत रथ पर वाहक सी होती चली जाए जिसमें पूंजी की निर्बाध आवाजाही संभव होती रहे।”¹ विश्व बाजार को एक कर देने की यह नीति समाज के विभिन्न पहलुओं पर अपना प्रभाव जमाती है। समाज में रहने वाले सभी लोगों पर इसका प्रभाव गहरे से दिखाई पड़ता हैं। हमारा समाज आज भूमंडलीकरण के आवेग में अपना मूल्य खोता चला जा रहा है। सच्चिदानंद सिन्हा लिखते है ”भूमंडलीकरण दरअसल पूंजीवाद की ततकालिक एकछत्रता का उद्दघोष है।”²
वैश्वीकरण का यह दौर जहां बाजार अपने चरण सीमा को पार कर रहा है यह एक ऐसा समाज बना रहा है जहां लोग इसके इर्द-गिर्द मंडराते रहें। भूमंडलीय दौर यानि की असमानताओं का दौर। इसका प्रभाव समाज के सभी तपके के लोगों पर पड़ता है ।बच्चे,युवा, अमीर-गरीब, शिक्षा-संस्कृति, बोली-भाषा आदि पर भूमंडलीकरण का कब्जा है। बच्चों पर इसका विशेष प्रभाव पड़ा है। बचपन किसी व्यक्ति के जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण समय होता है। हम वयस्क जीवन में कैसे होंगे कैसा व्यवहार करेंगे यह बचपन की शिक्षा पर निर्भर होता है। यह समय बच्चों एवं उनके परिवार यानी मां-बाप के लिए बेहद चुनौती पूर्ण होता हैं। आज इस दौर में असमानता की खाई बढ़ती जा रही है।बढ़ते बेरोजगारी ने लोगों को शहर जाने पर मजबूर कर दिया हैं। आर्थिक असमानता के केंद्र में गरीबी और अभाव है जो वैश्वीकरण की देन हैं। ज्यादातर बच्चे गरीब एवं कमजोर वर्ग के हैं वैश्वीकरण ने ऑनलाइन सोशल मीडिया के रूप में बच्चों को सीखने समझने के अनेक नए-नए अवसर प्रदान करने की सहूलियत तो दी है परंतु उनसे उनका बचपन छीन लिया है। तकनीकी संचार का ज्यादा वहीं लोग फायदा उठा पाए जो हर चीज में सक्षम हैं। गरीब आज भी गरीब ही है। निचले तबके के लोगों तक यह तकनीकी पहुंच ही नहीं पाती है। अब सवाल यह भी है कि यह सोशल मीडिया का समाज कितने बच्चों तक पहुंच रहा है और जिन बच्चों के पास पहुंच रहा है वह किस रूप में पहुंच रहा है? उसका कितना फायदा कितना नुकसान हो रहा है।
ग्लोबल दुनिया ने जितना लोगों को दिया है उससे कहीं ज्यादा उनसे छीन लिया है। अभाव एवं गरीबों की वजह से बच्चों तक कुछ भी सहजता से पहुंचना कठिन होता जा रहा है। “यूनिसेफ अपनी एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाता है कि साल 2030 तक दुनियाभर में पांच साल से कम उम्र के 16.7 करोड़ बच्चे गरीबी की चपेट में होंगे, जिसमें 6.9 करोड़ बच्चे भूख और देखभाल की कमी से मौत का शिकार हो सकते हैं।”³
शिक्षा जो की समाज में एक विशेष स्थान रखती है। शिक्षा हम सब का अधिकार है। आर्थिक असमानता के कारण गरीब तबके के बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। अमीर और अमीर होते जा रहे हैं,गरीब और गरीब। “एक रिपोर्ट में भारत को चेताया गया है कि अगर सरकार बाल मृत्युदर के वर्तमान दर को कम करने में नाकाम रही तो 2030 तक भारत सर्वाधिक बाल मृत्युदर वाले शीर्ष पांच देशों में शामिल हो जाएगा और तब दुनिया भर में पांच साल तक के बच्चों की होने वाली कुल मौतों में 17 फीसदी बच्चे भारत के ही होंगे।“⁴
वर्तमान, समाज और वैश्वीकरण। वैश्वीकरण की छाप हमारे दिनचर्या को प्रभावित करती है।
अश्वस्थखान-पान, जंक फूड की आदत ने बच्चों के जीवन शैली खान-पान रहन-सहन आदि की आदतों पर गहरा प्रभाव डाला है। भूमंडलीकरण ने बच्चों के बचपन को खत्म कर दिया है। वैश्वीकरण के कारण बच्चों का मनोविज्ञान प्रभावित हो रहा है बच्चे जिनकी भावनाएं कोमल होती हैं वह लगातार बदल रही हैं। बोली-भाषा, रहन-सहन बदलने के साथ-साथ व्यवहार में बदलाव देखने को मिल रहा है। वैश्वीकरण में बच्चों की दिनचर्या टीवी या मोबाइल फोन से शुरू हो रही है। दादी, नानी की कहानीयां सुनकर नींद लेने वाले बच्चे कार्टून देख कर सोने लगे है। आज घंटों बैठकर बच्चे मोबाइल पर समय व्यतीत करते हैं। कहानियों की जगह कार्टूनों ने ले लिया है और कहानियां विलुप्त होती चली गईं।
वैश्वीकरण ने सभी के जीवन शैली को अस्त व्यस्त कर दिया है। पश्चिमी विचारों के वाहक होते जा रहे माता-पिता बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं। जिनकी वजह से उनकी आदतों में बदलाव आया है। जो बच्चे स्कूल से आने के बाद खेलने में समय व्यतीत करते थे वह आज मोबाइल फोन पर गेमिंग की दुनिया में व्यस्त हैं।अब बच्चे पार्कों से ज्यादा रूम में टीवी देखना ज्यादा पसंद करने लगे हैं। जिनकी वजह से उनकी शारीरिक गतिविधियों में कमी आई है जिसका असर सीधा उनके मस्तिष्क पर पड़ रहा है। हेल्दी फूड की जगह बाजार में कब्जा कर चुके पश्चिमी फूड जैसे पिज़्ज़ा, बर्गर इत्यादि ने बच्चों को अपनी ओर आकर्षित किया है। लगातार फोन के संपर्क में रहने से बच्चों के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। जिसके फलस्वरुप बच्चों में अवसाद, विश्वास की कमी, चिंता, जैसी अनेक बीमारियां हो रही हैं। यह वैश्वीकरण का समाज है और इस समाज में बाजार के पास लोगों को अपने तरीके से चलाने की शक्ति है। बच्चों में सहनशीलता की कमी होती जा रही है। उनकी जिद के आगे मां बाप नतमस्तक हो जाते हैं। जो स्वस्थ समाज के लिए हानिकारक है।“प्रसिद्ध विद्वान थॉमस एल.फ्रीडमैन ने इस प्रक्रिया को तीन भागों में विभाजित किया; देशों का वैश्वीकरण, कंपनियों का वैश्वीकरण और व्यक्तियों का वैश्वीकरण। यह सदी तीसरे भाग को कवर करती है – व्यक्तियों का वैश्वीकरण”⁵
बाजार के समय में यहां सब कुछ बिकने का दौर है। इस समय में मनुष्य से ज्यादा वस्तुएं महत्वपूर्ण हैं। बच्चों का व्यवहार समाज में रहने, लोगों को देखने एवं उनके पालन पोषण से सवरता है। बच्चों को समाज में रहकर एवं समाज की मूल्य प्रणाली से जुड़कर बहुत कुछ सीखना होता है। जैसे-जैसे समाज बदलता है लोग बदलते हैं। वैश्वीकरण ने समाज के मूल्य का क्षरण किया है। समाज के नैतिक मूल्य जिससे बच्चे सीखते थे, समझते थे उनका काफी हद तक पतन हो चुका है।लगातार अपनी संस्कृतियों से दूर होते बच्चे अपराध,चिंता, दुख एवं नशीली दवाओं के आदी होते जा रहे हैं। सूचना क्रांति ने आज तरह-तरह के मनोरंजन के साधन उपलब्ध करा दिए हैं। बच्चे इंटरनेट पर गलत संगत एवं साइबर अपराधों में फंस रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम, फेसबुक, ट्विटर ने बच्चों में अकेलेपन को बढ़ाया है। बच्चा दिन भर सोशल मीडिया पर भटकता है जिससे उसका रिश्तों से कटाव होता चला जा रहा है। लगातार फोन की स्क्रीन पर रहने से उसमें सामाजिकता की कमी आती है। लोगों से उसका जुड़ाव नहीं हो पाता है। अकेलेपन के कारण बच्चे कई मानसिक बीमारियों से ग्रस्त होते चले जाते हैं।
उम्र के इस कोमल दौर में बच्चे जिनके अंदर सृजनात्मक क्षमता सबसे ज्यादा काम करती है तकनीकी के संपर्क में आने से इतने व्यस्त हैं कि उनकी सृजन यात्रा ही रुक गई है।“रॉयल सोसाइटी फॉर पब्लिक हेल्थ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में यू.के. में 14-24 वर्ष के बच्चों से पूछा गया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने उनके स्वास्थ्य और कल्याण को कैसे प्रभावित किया है। सर्वेक्षण के परिणामों में पाया गया कि स्नैपचैट, फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम सभी ने अवसाद , चिंता, खराब शारीरिक छवि और अकेलेपन की भावनाओं को बढ़ाया।”⁶
भूमंडलीय दौर ने लोगों को इतना व्यस्त कर दिया है कि वह अपनी परिस्थितियों से निकल नहीं पाते हैं और आजकल पेरेंट्स भी व्यस्त रहते हैं तो बच्चों को समय कैसे दे पाएंगे बच्चों का पालन पोषण आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है। गलत आदतों की चपेट में सिर्फ बच्चे ही नहीं मां-बाप भी हैं। अगर समय भी है तो मां-बाप भी इंटरनेट पर अपना समय व्यतीत करते हैं बच्चा अपनी जिज्ञासा
को इंटरनेट के माध्यम से मिटाता है।सही क्या है? गलत क्या
है ? बच्चा इंटरनेट पर सीख रहा है। इंटरनेट पर फैलने वाली गलत जानकारी और नकली समाचार बच्चों को भ्रमित कर रहें
हैं। उनके सोचने की क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं। पेरेंट्स को समय नहीं है कि वह अपने बच्चों का ध्यान दे सकें।इस बात पर डॉ. स्टीनर-अडायर चेतावनी देते हैं,“जब माता-पिता अपने डिवाइस और स्क्रीन पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, तो यह अलगाव के छोटे-छोटे क्षण होते हैं, जो माता-पिता और बच्चे के रिश्ते को कमजोर करते हैं।“⁷
कहते हैं बच्चे की पहली पाठशाला घर से शुरू होती है वह पहली शिक्षा घर में लोगों की भाव भंगिमाओं को देखकर सीखता है। समाज में रहकर वह अपनी बोली,भाषा, संस्कृति से जुड़ता है। परंतु समय के इस बुरे दौर में परिवार के सभी सदस्य अपनी-अपनी समस्याओं में इतने व्यस्त हैं कि वह बच्चों पर ध्यान नहीं देते जिसकी वजह से बच्चों में संवेदना के स्तर पर बहुत ही ज्यादा नकारात्मक बदलाव आया है। बच्चे बड़े-बूढ़ों के पास समय बिताने से ज्यादा इंटरनेट पर वीडियो देखना पसंद करने लगे हैं। इस बदलते दौर में बच्चे इतना ज्यादा इंटरनेट के आदी हो गए हैं कि उनकी किताबों से दूरी हो गई है। किताबें बच्चों में एक समझ विकसित करती हैं। वैश्वीकरण ने बच्चों के हाथों से वह किताब छीन लिया है। सभी सवाल के लिए तकनीक का सहारा लेते हैं बच्चों की पूरी की पूरी दुनिया फोन से संबंधित हो गई है और मानवीय संबंध खत्म होते चले जा रहे है।डॉ० स्टीनर-अडायर कहते हैं, “तकनीक आपके बच्चों को आपसे ज़्यादा जानकारी दे सकती है, और इसमें आपके मूल्य नहीं हैं।यह आपके बच्चे के व्यक्तित्व के प्रति संवेदनशील नहीं होगा, और यह उसके सवाल का विकास के लिए उचित तरीके से जवाब नहीं देगा।“⁸
वैश्वीकरण ने दुनिया भर में व्यक्तियों और परिवारों के जीने के तरीके और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित किया है,जो माता-पिता और बच्चों के संबंध पर असर डाल रहा है। लगातार इंटरनेट का उपयोग बच्चों की एकाग्रता और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है, जिससे उनकी गतिविधियां प्रभावित होती हैं।“ग्लोबल कम्युनिटी एंगेजमेंट एंड रेसिलिएंस फंड (GCERF) के साथ साझेदारी में अरिगाटो इंटरनेशनल-नैरोबी द्वारा मोम्बासा केन्या में शुरू की गई ‘बिल्डिंग फैमिली रेजिलिएंस: वीमेन ऑफ फेथ इन एक्शन’ परियोजना के माध्यम से, यह पता चला कि माता-पिता और बच्चों के रिश्ते में नकारात्मक बदलाव ने बच्चों को शोषण के प्रति संवेदनशील बना दिया है। साक्षात्कारकर्ताओं ने इस नकारात्मक बदलाव के लिए माता-पिता की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया”⁹
इंटरनेट के अत्यधिक उपयोग से बच्चों में सामाजिक कौशल की कमी आई है क्योंकि वे वास्तविक जीवन की सामाजिक स्थितियों में कम शामिल हो रहें हैं और केवल ऑनलाइन संवाद पर निर्भर हो जाते हैं। जिससे बच्चों में सामाजिक असमानता बढ़ती है। यह प्रतिस्पर्धा का दौर है। एक दूसरे से आगे जाने की होड़ में लोग सब कुछ पीछे छोड़ते चले जा रहे हैं।संस्कृति समाज की धरोहर हैऔर समाज उसका वाहक, एक दूसरे से बढ़ती दूरियों के कारण लोगों के मानवीय मूल्यों में गिरावट आई है। बदलते दौर ने समाज एवं संस्कृति को बदलकर रख दिया जिससे बच्चे संस्कृति एवं परंपरा से छूटते जा रहे हैं।वैश्वीकरण बच्चों की दुनिया पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।
निष्कर्ष : भूमंडलीकरण बच्चों को बहुत ही गहरे से प्रभावित कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप बच्चों की संवेदनशीलता में कमी, उनके जीवन शैली में बदलाव, किताबों से दूरी ,शारीरिक गतिविधियों में कमी, अकेलेपन को बढ़ावा, रिश्तो से कटाव, मोबाइल फोन पर निर्भरता, ऑनलाइन सोशल मीडिया की वजह से बच्चों में विश्वास की कमी, यौन शोषण को बढ़ावा आदि चीजों पर भूमंडलीकरण का प्रभाव देखा जा सकता है। बच्चे भावनात्मक रूप से बहुत ही कमजोर होते चले जा रहे हैं अपने ही परिवार, समाज, संस्कृति से दूरी बढ़ रही है। सीखने के उम्र में बच्चे फोन की गलियों में भटक रहे हैं जिससे उनके विकास में अवरोध उत्पन्न हो रहा है। वैश्वीकरण जो की विश्व के सभी बाजारों को एक कर देने की नीति है जिसमें आज हमारा समाज बाजार के इतने आवेश में है की अपनी संस्कृति, अपनी बोली-भाषा, अपना रहन-सहन, अपना खान-पान सबको भूलता जा रहा है। पश्चिमी संस्कृतियों को अपनाता हमारा समाज अपने मूल्यों को खोता चला जा रहा है। सूचना क्रांति ने बच्चों का बचपन दांव पर लगा दिया है। सूचना क्रांति नेजहां बच्चों को सीखने समझने के लिए कुछ अवसर प्रदान किया हैतो वहीं बच्चों को असुरक्षित भी किया है।
संदर्भ :
- पुष्पपाल सिंह, भूमंडलीकरण और हिंदी उपन्यास, राधाकृष्ण प्रकाशन, संस्करण 2023, पृ० 22
- सच्चिदानंद सिन्हा, भूमंडलीकरण एवं चुनौतियां, वाणी प्रकाशन, संस्करण 2016, पृ०4
- जावेद अनीस, नवोदय टाइम्स, भूमंडलीकरण के दौर में बच्चों की दशा दयनीय, नई दिल्ली,https://www.navodayatimes.in/news/khabre/children-condition-in-globlization/9711/
- जावेद अनीस, नवोदय टाइम्स, भूमंडलीकरण के दौर में बच्चों की दशा दयनीय, नई दिल्ली,https://www.navodayatimes.in/news/khabre/children-condition-in-globlization/9711/
- मौमिता डे, बचपन पर वैश्वीकरण का प्रभाव: उपनगरीय क्षेत्र के बच्चों का एक केस स्टडी, जुलाई,2017,https://www.researchgate.net/publication/318048893_Impact_of_Globalisation_on_Childhood_A_Case_Study_of_the_Children_of_a_Suburban_Area
- लेखक: राचेल एहमके , सोशल मीडिया का उपयोग किशोरों पर कैसे प्रभाव डालता है।,https://childmind.org/article/how-using-social-media-affects-teenagers/
- लेखक: राचेल एहमके , सोशल मीडिया का उपयोग किशोरों पर कैसे प्रभाव डालता है।,https://childmind.org/article/how-using-social-media-affects-teenagers
- लेखक: राचेल एहमके , सोशल मीडिया का उपयोग किशोरों पर कैसे प्रभाव डालता है।,https://childmind.org/article/how-using-social-media-affects-teenagers
- https://gnrc.net/blog/the-influence-of-globalization-on-child-parent-relationships/
शोध छात्रा, हिंदी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज 211006
kmsabita523@gmail.com, 8052400333
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