शोध आलेख : सैयद हैदर रज़ा बिन्दुवाद का सौन्दर्यबोध / रमेश मीणा

सैयद हैदर रज़ा: बिन्दुवाद का सौन्दर्यबोध
रमेश मीणा

 

   

शोध सार : सैयद हैदर रज़ा (1922-2016) आधुनिक भारतीय कला के अग्रणी प्रयोगधर्मी चित्रकार थे, जिन्होंने बिन्दुवाद ('पॉइंटिलिज़्म') को कला में समाहित किया। बिन्दुवाद 19वीं सदी के अंत में नवप्रभाववाद के फ्रांसीसी चित्रकारों द्वारा विकसित की गई एक प्रविधि है, जिसमें रंगों के मिश्रण और छाया- प्रकाश के प्रभाव को एक नया आयाम मिलता है। यह शोध पत्र पड़ताल करता है की कैसे रज़ा ने बिंदुवाद को भारतीय सांस्कृतिक प्रतीकात्मकता और आध्यात्मिकता के साथ जोड़कर मौलिक प्रयोग किया? रज़ा की कला में आकर बिंदु; कला प्रविधि एवं अभिव्यक्ति दोनों का एक सार वाहक कैसे है? जबकि बिन्दुवाद में बिंदु कला प्रविधि मात्र का हेतू है।

प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य रज़ा की कला में बिन्दुवाद के सौंदर्यबोध का गहन समीक्षात्मक विश्लेषण करना है। यह रज़ा की कलात्मक यात्रा को बिन्दुवाद के सन्दर्भ में साहित्य समीक्षा, दृश्यात्मक- प्रतीकात्मक विश्लेषण, एवं रूप-वर्ण विश्लेषण इत्यादि शोध प्रविधियों को प्रयुक्त कर निकष पाता है।

बीज शब्द : बिंदुवाद, सौंदर्यबोध, आध्यात्मिकता, ज्यामितिय, प्रतीकात्मकता, मंडल, सांस्कृतिक, नवप्रभाववाद, छाया-प्रकाश, प्रविधि।

मूल आलेख :
बिन्दुवाद: एक परिचय- बिंदुवाद का आरंभ 19वीं सदी के अंत में हुआ था, जब नवप्रभाववाद के फ्रांसीसी चित्रकार जॉर्ज सेराट और पॉल सीनैक ने पॉइंटिलिज़्म (Pointillism) के रूप में इसे विकसित किया। इस प्रविधि में रंग बिंदुओं को इस तरह से लगाया जाता है कि जब चित्र को दूर से देखा जाता है, तो बिंदुओं का सम्मिश्रण एक समान रंग और छाया की अनुभूति प्रदान करता है। यह प्रविधि प्रकाश, छाया और रंगों के जटिल प्रभावों को चित्रित करने के लिए प्रसिद्ध है।(1)

इस प्रविधि में चित्र छोटे-छोटे रंगीन बिंदुओं से बनाए जाते हैं, जो एक साथ मिलकर एक पूरा दृश्य प्रस्तुत करते हैं। बिन्दुवाद की प्रविधि के द्वारा रंगों के मिश्रण और प्रकाश के प्रभाव को एक नया आयाम मिलता है। यह प्रविधि रंगों की गहराई और संरचना को समझने के लिए एक विशिष्ट दृष्टिकोण प्रदान करती है।

सैयद हैदर रजा : बिन्दुवाद-भारतीय चित्रकला के इतिहास में सैयद हैदर रज़ा (20.02.1922 - 23.07. 2016) का नाम एक विशेष स्थान रखता है। रज़ा का जन्म मध्यप्रदेश के दमोह (बावरिया ) में हुआ था, और उनकी प्रारंभिक कला शिक्षा नागपुर और मुंबई में हुई। मुंबई में छ: कलाकारों ने, 1947 में प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप की स्थापना कर डाल। इनमे सामिल थे- चित्रकार एफ.एन. सूजा, के. एच. आरा, एम.एफ. हुसैन, एच.ए. गाड़े, एस.एच. रज़ा, और मूर्तिकार एस.के. बाकर।(2) रज़ा की प्रारंभिक कला में भारतीय ग्रामीण जीवन और प्रकृति के चित्रण का प्रमुख स्थान था। लेकिन समय के साथ, उनकी कला में अमूर्तता और ज्यामितीय रूपों का प्रयोग बढ़ता गया। उनकी कला में भारतीय संस्कृति और आधुनिकतावाद का एक अद्वितीय संगम दिखाई देता है। विशेष रूप से, "बिंदु" का प्रयोग उनकी कला में एक प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक तत्व के रूप में होता है, जिसे बिंदुवाद के रूप में जाना जाता है। रज़ा ने 1950 के दशक में फ्रांस में जाकर अपनी कला को विकसित किया और यहीं पर उन्होंने बिंदुवाद को अपनी कला अभिव्यक्ति का प्रमुख हिस्सा बनाया। रज़ा की कला में बिंदु कला की अभिव्यक्ति एवं अभिव्यंजनागत समष्टि है। 1970 के दशक के मध्य में, रज़ा की कला में बिंदु एक केंद्रीय तत्व बन गया। यह बिंदु भारतीय संस्कृति में ब्रह्मांड और जीवन के स्रोत के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।(3) रज़ा की कला में बिन्दुवाद के प्रयोग ने उनके काम को आधुनिक भारतीय चित्रकला में एक विशिष्ट पहचान दिलाई। रज़ा की चित्रकला में बिंदुवाद का प्रयोग एक स्थायित्व और संतुलन का प्रतीक है।

सैयद हैदर रज़ा ने बिन्दुवाद की प्रविधि को अपनाकर चित्रकला में रंगों, संरचनाओं, और प्रकाश के प्रयोग में एक नई दृष्टि प्रदान की। रज़ा ने बिन्दुवाद की प्रविधि को अपनी व्यक्तिगत शैली में समाहित किया और भारतीय सांस्कृतिक तत्वों के साथ संयोजित किया।(4) रज़ा ने अपने चित्रों में बिन्दुवाद की प्रविधि को इस प्रकार अपनाया कि यह भारतीय कला के पारंपरिक तत्वों के साथ; एक अद्वितीय मिश्रण प्रस्तुत करता है।

रज़ा की कला में बिंदुवाद का विकास :-

रज़ा की कला में बिंदु की अवधारणा एक स्थायी, परिवर्तनशील, और शक्तिशाली प्रतीक के रूप में उभरी। यह प्रतीक न केवल उनकी कला की पहचान बन गया, बल्कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के गहरे तत्वों को भी चित्रित करता है। उनकी कला में बिंदु का प्रयोग विभिन्न चरणों में विकसित हुआ, जो उनकी जीवन यात्रा, सोच, और दर्शन के बदलावों को दर्शाता है। प्रारंभिक चरण में बिंदु का प्रयोग एक साधारण प्रतीक के रूप में हुआ, जबकि उनके अंतिम वर्षों में यह एक गहरे आध्यात्मिक और ब्रह्मांडीय प्रतीक के रूप में उभरा।

इन चरणों के माध्यम से रज़ा की कला में बिंदु की अवधारणा का विकास और उसका विविध प्रयोग देखा जा सकता है। यह चरण उनके कलात्मक जीवन के विभिन्न समयों में उनकी सोच और दृष्टिकोण में आए परिवर्तन को दर्शाते हैं।

1. प्रारंभिक चरण: प्राकृतिक दृश्यों से बिंदु तक -

रज़ा के प्रारंभिक कार्यों में प्राकृतिक दृश्यों का प्रमुख स्थान था। उनके प्रारंभिक चित्रण में ग्रामीण जीवन, भारतीय गाँवों और प्रकृति का चित्रण प्रमुख था। इस समय उनकी कला में बिंदुवाद का कोई स्पष्ट प्रयोग नहीं था। हालांकि, धीरे-धीरे उन्होंने अपनी कला में अमूर्तता और ज्यामितीय आकृतियों का प्रयोग करना शुरू किया। इस चरण में उनकी कला में बिंदु का प्रयोग एक नए प्रतीक के रूप में उभरता है, जो उनके भविष्य के कार्यों का आधार बनता है।(5)

2. मध्य चरण: बिंदु का केंद्र बिंदु -

1970 के दशक में रज़ा की कला में बिंदु का प्रयोग एक केंद्रीय तत्व के रूप में उभरता है। इस समय, रज़ा ने अपनी कला में बिंदुवाद को प्रमुख रूप से शामिल किया। बिंदु का प्रयोग उनके चित्रों में केवल एक ज्यामितीय आकृति के रूप में नहीं, बल्कि एक गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में होता है। यह बिंदु भारतीय तांत्रिक परंपरा और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है। रज़ा की कला में बिंदु का प्रयोग स्थायित्व, संतुलन, और आध्यात्मिक गहराई का प्रतीक बनता है।(6)

3. विकासशील चरण: बिंदु और रंग का संवाद -

रज़ा की कला में 1990 के दशक में बिंदुवाद का प्रयोग रंगों के साथ मिलकर एक नए स्तर पर पहुँचता है। इस चरण में, उन्होंने रंगों और बिंदुओं के माध्यम से अपनी कला को एक नई दिशा दी। बिंदु के साथ रंगों का संयोजन उनकी चित्रण में एक जीवंतता और गतिशीलता को जोड़ता है। इस चरण में रज़ा ने बिंदु को विभिन्न रंगों और आकारों में प्रयोग किया, जिससे उनकी कला में विविधता और गहराई उत्पन्न हुई।

4. अंतिम चरण: बिंदुवाद का आध्यात्मिक उन्मेष -

अपने जीवन के अंतिम वर्षों में (2000 ई. के पश्चात), रज़ा की कला में बिंदुवाद का प्रयोग एक पूर्ण और परिपक्व रूप में दिखाई देता है। इस समय, उनके चित्रण में बिंदु का प्रयोग एक गहरे आध्यात्मिक प्रतीक के रूप में होता है। बिंदु के माध्यम से उन्होंने भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। रज़ा की आखिरी चित्रकृतियों में बिंदुवाद का प्रयोग ब्रह्मांडीय ऊर्जा और आध्यात्मिकता के प्रतीक के रूप में किया गया, जिससे उनकी कला में एक गहरी आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक गहराई दिखाई देती है। (7)

रज़ा: बिन्दुवादी सौंदर्यशास्त्र का विश्लेषण -

रज़ा ने भारतीय परम्परा एवं संस्कृति को अपने चित्रों के माध्यम से जीवंत बनाया है। रज़ा का प्रकृति के उन्मुक्त वैभव की ओर आकर्षण रहा है ....जो एक अभिनव गतिशीलता के प्रभाव में नयें सन्दर्भों को जन्म देती है। रज़ा के चित्रों में प्रकृति का सौन्दर्य व विकसित परिप्रेक्ष्य, यथार्थ के सम्पर्क में अधिक प्राणवान बना है। रज़ा को अनुभव हुआ की प्रकृति चैतन्य शून्य नहीं, अपितु नैसर्गिक सुषमा का अस्तित्व है, सत्य का उद्गम है, उसमे हृदयगत भावनाओं का समावेश हो सकता है।.....नये रूप के आग्रह ने सौन्दर्य के निरपेक्ष, अनवरत क्रम की भर्त्सना करते हुए, ज्यामितीय अथवा निरपेक्ष की भी अनेक स्थलों पर व्यंजना की है।(8)

1. रंग-बिंदु संरचना एवं विविधता -

सैयद हैदर रज़ा की कला में बिंदुवाद का सौंदर्यशास्त्र एक जटिल और गहन विश्लेषण की मांग करता है। रज़ा की कला में रंगों और बिंदुओं का प्रयोग अद्वितीय है। उनकी कला में बिंदु का प्रयोग केवल एक ज्यामितीय आकृति के रूप में नहीं, बल्कि रंगों के संयोजन और मिश्रण के माध्यम से किया गया है। बिंदुओं के माध्यम से रंगों का मिश्रण और प्रकाश का प्रभाव उनकी कला को एक नई दिशा देता है। रज़ा की पेंटिंग्स में रंग बिंदुओं का उपयोग रंगों की गहराई और विविधता को व्यक्त करने के लिए किया गया है। बिंदुवाद की प्रविधि के माध्यम से रंगों का मिश्रण एक नया प्रभाव उत्पन्न करता है, जो उनके चित्रों में एक विशेष सौंदर्यशास्त्र प्रदान करता है। रज़ा की बिन्दुवादी पेंटिंग्स में रंग और संरचनाओं का प्रयोग अत्यंत सूक्ष्म और सुसंगत है। उन्होंने बिन्दुओं के माध्यम से रंगों को इस तरह से प्रस्तुत किया कि प्रत्येक रंग का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सके। उनकी कला में रंगों की यह प्रविधि एक अमूर्त और ज्यामितीय दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है, जो भारतीय सांस्कृतिक तत्वों को एक नई दिशा प्रदान करती है।

2. बिन्दु का प्रतीकात्मक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक सन्दर्भ -

सैयद हैदर रज़ा की कला में बिंदुवाद का प्रयोग केवल एक कलात्मक प्रविधि तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण प्रतीक भी है। रज़ा की कला में भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदर्भों का समावेश बिंदुवाद की प्रविधि के माध्यम से किया गया है। भारतीय सांस्कृतिक प्रतीकों और धार्मिक तत्वों का चित्रण उनके चित्रों में एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक गहराई प्रदान करता है। बिंदु, मंडल, त्रिभुज, और अन्य ज्यामितीय आकृतियों का प्रयोग भारतीय तांत्रिक परंपरा और धार्मिक प्रतीकों के साथ किया गया है। यह केवल एक दृश्य सौंदर्य नहीं है, बल्कि यह भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता के साथ गहरा संबंध बनाता है। रज़ा की कला में बिंदुवाद के माध्यम से भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है।(9)

भारतीय तांत्रिक परंपरा में बिंदु का महत्व अत्यधिक है। इसे ब्रह्मांड ऊर्जा, आध्यात्मिकता के प्रतीक और जीवन के स्रोत के रूप में देखा जाता है। रज़ा ने इस बिंदु को अपने चित्रों में शामिल करके भारतीय सांस्कृतिक और आध्यात्मिक तत्वों को अपनी कला का हिस्सा बनाया। रज़ा के चित्रण में अन्य धार्मिक प्रतीकों का भी प्रयोग होता है, जैसे कि शिवलिंग, चक्र, सूरज, मंडल इत्यादि। इन प्रतीकों को बिंदुवाद की प्रविधि के माध्यम से चित्रित किया गया है, जो उनकी कला को एक गहरी आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक गहराई प्रदान करता है। रज़ा की कला में धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग उनकी भारतीय जड़ों और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति उनकी गहरी आस्था को दर्शाता है।(10)

रज़ा की कला में प्राकृतिक तत्वों का चित्रण भी महत्वपूर्ण है। उनके चित्रों में पञ्च तत्वों यथा- आकाश, जल, वायु, अग्नि, और पृथ्वी के प्रतीकात्मक तत्वों का प्रयोग किया गया है। रज़ा की कला में बिंदुओं का प्रयोग करके इन तत्वों को एक संतुलित और संगठित रूप में प्रस्तुत किया गया है।

3. अमूर्तता और ज्यामितीय तत्व -

रज़ा की बिन्दुवादी कला में अमूर्तता और ज्यामितीय तत्व स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। उन्होंने बिन्दुओं के माध्यम से विभिन्न आकार और संरचनाओं को चित्रित किया, जो उनके चित्रों में एक नई दृष्टि और गहराई जोड़ते हैं । यह दृष्टिकोण भारतीय पारंपरिक चित्रकला के तत्वों को एक आधुनिक प्रविधि के साथ जोड़ता है।(11) इन आकृतियों में मंडल, त्रिभुज, वर्ग आदि शामिल हैं, जो उनकी कला को एक अद्वितीय संरचना और संतुलन प्रदान करते हैं। इन आकृतियों का प्रयोग रज़ा की कला में आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक प्रतीकों को व्यक्त करने के लिए किया गया है।

4. प्रकाश और छाया का प्रभाव -

रज़ा की कला में बिंदुवाद की प्रविधि ने प्रकाश और छाया की सूक्ष्मताओं को चित्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रंग बिंदुओं के माध्यम से प्रकाश और छाया की सूक्ष्मताओं को व्यक्त किया गया है, जो उनके चित्रों में त्रिविमीयता और जीवन्तता को जोड़ता है । इस प्रविधि ने उनके चित्रों में रंगों और प्रकाश के अद्वितीय संयोजन को प्रस्तुत किया है। इस प्रविधि ने उनकी कला में एक नए प्रकार की दृश्यात्मक अभिव्यक्ति को उत्पन्न किया है, जो उनकी निजी मौलिकता है। पूर्ण संयोजन तथा विशुद्ध रंगों की संतुलित लय चित्रों में एक प्रतिध्वनी उत्पन्न करती है.....अद्वितीय चित्र है, जिनमे रंगों का वैभव परिलक्षित होता है....आपकी कला में पूर्व व पश्चिम का ऐसा समन्वय है, जिससे आपको भारतीय कलाकार कहने पर एक कृत्रिम शैली का बोध होता है।(12)

रज़ा का बिन्दुवाद: प्रमुख चित्र -

सैयद हैदर रज़ा ने अपने समृद्ध कृतित्व से भारतीय चित्रकला इतिहास को मौलिक दृश्य संस्कृति से सुसम्पन्न किया है। सैयद हैदर रज़ा के चित्रों पर बिन्दुवाद की प्रविधि का प्रभाव परिलक्षित हैं, जिसमें रंग; बिंदुओं के माध्यम से एक नई दृष्टि और गहराई प्रस्तुत करते हैं। सैयद हैदर रज़ा के प्रमुख बिंदुवादी चित्रों की गहन और विस्तृत विवेचना निम्नलिखित चयनित चित्रों के माध्यम से सुस्पष्ट की गयी है। इनमें बिंदु, रंग, ज्यामिति, और सांस्कृतिक प्रतीकों के प्रयोग के माध्यम से रज़ा की कलात्मक और आध्यात्मिक दृष्टि को समझाने का प्रयास किया गया है। इस विवेचना में प्रमुख चित्रों का संक्षिप्त विश्लेषण बिंदुवाद के संदर्भ में किया जाएगा। यथा-:

1. पृथ्वी (1984)

पृथ्वी, रज़ा की सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है, जो बिंदुवाद की परिपूर्णता का उदाहरण है। इस चित्र में बिंदु को पृथ्वी का प्रतीक माना गया है, जो भारतीय दर्शन के अनुसार, सभी सृजन का केंद्र है। रज़ा ने इस चित्र में बिंदु को गहरे लाल रंग में प्रस्तुत किया है, जो ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है।

2. बिंदु (1989)

बिंदु, रज़ा की सबसे प्रतीकात्मक कृतियों में से एक है, जिसमें बिंदु का प्रयोग एक एकल और शक्तिशाली प्रतीक के रूप में किया गया है। यह चित्र बिंदुवाद की अवधारणा को पूरी तरह से दर्शाता है, जिसमें बिंदु को जीवन की उत्पत्ति, शक्ति, और ऊर्जा के प्रतीक के रूप में देखा गया है।

3.अंकुरण (1995)

अंकुरण शीर्षक चित्र में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग बीज के रूप में किया है, जो जीवन की उत्पत्ति और विकास का प्रतीक है। इस चित्र में बिंदु को केंद्र में रखा गया है, जो जीवन के केंद्र और उसकी निरंतरता को दर्शाता है। (चित्र संख्या – 01, अंकुरण)



4. पुनर्जन्म (1989)

"पुनर्जन्म "रज़ा की एक और महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें बिंदु का प्रयोग पुनर्जन्म और जीवन के चक्र का प्रतीक है। रज़ा ने इस चित्र में गहरे रंगों और बिंदु के माध्यम से जीवन की पुनरावृत्ति और उसकी अनंतता को दर्शाया है।

5. नाग (1991)

"नाग" में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग नाग (सर्प) के प्रतीक के रूप में किया है, जो भारतीय संस्कृति में ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है। इस चित्र में बिंदु और नाग का संयोजन रज़ा की आध्यात्मिकता और भारतीय प्रतीकों के प्रति उनके गहरे संबंध को दर्शाता है। (चित्र संख्या – 02, नाग)


6. प्रकृति (2001)

प्रकृति रज़ा की एक और महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें बिंदु का प्रयोग प्रकृति के रूप में किया गया है। रज़ा ने इस चित्र में बिंदु को विभिन्न रंगों में प्रस्तुत किया है, जो प्रकृति के विविध तत्वों को दर्शाता है। (चित्र संख्या – 03, प्रकृति)



7. सूर्य नमस्कार (1992)

सूर्य नमस्कार में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग सूर्य के प्रतीक के रूप में किया है। इस चित्र में बिंदु को सुनहरे और लाल रंगों में प्रस्तुत किया गया है, जो सूर्य की ऊर्जा और शक्ति को दर्शाता है।(13)

8. महाबिंदु (1993)

महाबिंदु रज़ा की सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है, जिसमें बिंदु को ब्रह्मांड का प्रतीक माना गया है। इस चित्र में बिंदु को गहरे नीले रंग में प्रस्तुत किया गया है, जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा और अनंतता का प्रतीक है।(14)

9. काली (1994)

काली में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग देवी काली के प्रतीक के रूप में किया है, जो शक्ति और विनाश की देवी हैं। इस चित्र में बिंदु को काले और लाल रंगों में प्रस्तुत किया गया है, जो काली की शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है।(15)

10. शांति (2010)

शांति में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग शांति और संतुलन के प्रतीक के रूप में किया है। इस चित्र में बिंदु को सफेद रंग में प्रस्तुत किया गया है, जो शांति और शुद्धता का प्रतीक है।(16)

11. मोक्ष (1996)

मोक्ष रज़ा की एक और महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें बिंदु का प्रयोग मोक्ष के प्रतीक के रूप में किया गया है। रज़ा ने इस चित्र में बिंदु को गहरे रंगों में प्रस्तुत किया है, जो मोक्ष की प्राप्ति और आत्मा की मुक्ति को दर्शाता है। (चित्र संख्या – 04, मोक्ष)


12. "गंगा" (1997)

"गंगा" में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग गंगा नदी के प्रतीक के रूप में किया है, जो पवित्रता और शुद्धता का प्रतीक है। इस चित्र में बिंदु को नीले और सफेद रंगों में प्रस्तुत किया गया है, जो गंगा की शुद्धता और उसकी पवित्रता को दर्शाता है।

13. "मंडल" (1998)

"मंडल" रज़ा की सबसे जटिल कृतियों में से एक है, जिसमें बिंदु का प्रयोग मंडल के रूप में किया गया है। इस चित्र में बिंदु को विभिन्न रंगों और आकारों में प्रस्तुत किया गया है, जो ब्रह्मांडीय ऊर्जा और जीवन के चक्र का प्रतीक है।(17)

14. "प्रार्थना" (2013)

"प्रार्थना" में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग पूजा और श्रद्धा के प्रतीक के रूप में किया है। इस चित्र में बिंदु को सुनहरे रंग में प्रस्तुत किया गया है, जो आध्यात्मिकता और भक्ति का प्रतीक है।(18) (चित्र संख्या – 05, प्रार्थना)


15. "तांडव" (2000)

"तांडव" में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग शिव के तांडव नृत्य के प्रतीक के रूप में किया है। इस चित्र में बिंदु को लाल और काले रंगों में प्रस्तुत किया गया है, जो तांडव की ऊर्जा और विनाश को दर्शाता है।(19)

16. "शून्य" (2001)

"शून्य" रज़ा की एक और महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें बिंदु का प्रयोग शून्यता और अनंतता के प्रतीक के रूप में किया गया है। रज़ा ने इस चित्र में बिंदु को सफेद और नीले रंगों में प्रस्तुत किया है, जो शून्यता और अनंतता का प्रतीक है।

17. "वर्षा" (2002)

"वर्षा" में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग वर्षा के प्रतीक के रूप में किया है। इस चित्र में बिंदु को नीले रंग में प्रस्तुत किया गया है, जो वर्षा की शीतलता और शुद्धता को दर्शाता है।

18. "धरा" (2001)

"धरा" में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग धरती के प्रतीक के रूप में किया है। इस चित्र में बिंदु को भूरे और हरे रंगों में प्रस्तुत किया गया है, जो पृथ्वी की स्थिरता और उसकी प्राण शक्ति को दर्शाता है।(20)

19. "अंतरिक्ष" (2004)

"अंतरिक्ष" रज़ा की एक और महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें बिंदु का प्रयोग अंतरिक्ष के प्रतीक के रूप में किया गया है। इस चित्र में बिंदु को गहरे नीले और काले रंगों में प्रस्तुत किया गया है, जो अंतरिक्ष की अनंतता और उसकी गहराई को दर्शाता है। (चित्र संख्या – 06, अन्तरिक्ष)


20. "आत्मा" (2005)

"आत्मा" में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग आत्मा के प्रतीक के रूप में किया है। इस चित्र में बिंदु को सफेद और सुनहरे रंगों में प्रस्तुत किया गया है, जो आत्मा की शुद्धता और उसकी अनंतता को दर्शाता है।(21)

21. "अग्नि" (2006)

"अग्नि" रज़ा की एक और महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें बिंदु का प्रयोग अग्नि के प्रतीक के रूप में किया गया है। इस चित्र में बिंदु को लाल और सुनहरे रंगों में प्रस्तुत किया गया है, जो अग्नि की ऊर्जा और उसकी विनाशकारी शक्ति को दर्शाता है। (चित्र संख्या – 07, अग्नि)


22. "जल" (2007)

"जल" में रज़ा ने बिंदु को जल रूप में प्रस्तुत किया है। जिसमे बिंदु का प्रयोग जल की गहराई, शीतलता और उसकी तरलता दर्शाने के लिए किया गया है, जो जीवन की उत्पत्ति एवं उसकी निरन्तरता का प्रतिक है ।बिंदु को केंद्र में रखकर रज़ा ने नील व हरे रंग का सामंजस्य पूर्ण प्रयोग किया,जो जल की शीतलता और उसकी गहराई का आभास देते है। बिंदु के चारों और की लहरदार आकृतियाँ जल के प्रवाह और उसकी अनंतता का प्रतीक है। इस प्रकार रज़ा ने बिन्दुओं के माध्यम से जल तत्व की आध्यात्मिक और भौतिक दोनों पहलुओं को उकेरा है। जो उनके बिन्दुवाद के सौन्दर्यबोध का एक जीवंत उदहारण है।

23. "नभ" (2008)

"नभ" रज़ा की एक और महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें बिंदु का प्रयोग आकाश के प्रतीक के रूप में किया गया है। इस चित्र में बिंदु को नीले और सफेद रंगों में प्रस्तुत किया गया है, जो आकाश की अनंतता और उसकी व्यापकता को दर्शाता है। रज़ा ने इस चित्र के माध्यम से आकाशीय ऊर्जा और उसकी अनंतता को रेखांकित किया है।(22)

24. "आरंभ" (2009)

"आरंभ" में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग सृजन के प्रारंभ के प्रतीक के रूप में किया है। इस चित्र में बिंदु को एक उद्गम स्रोत के रूप में दिखाया गया है, जिसमें विभिन्न रंगों का प्रयोग कर जीवन के प्रारंभिक क्षणों को चित्रित किया गया है। रज़ा ने इस चित्र में बिंदु को जीवन के आरंभ के रूप में प्रस्तुत किया है। (चित्र संख्या – 08, आरम्भ)


25. "सृष्टि" (2010)

"सृष्टि" रज़ा की एक महत्वपूर्ण कृति है, जिसमें बिंदु का प्रयोग सृष्टि के प्रतीक के रूप में किया गया है। इस चित्र में बिंदु को केंद्र में रखा गया है, जो सृष्टि के उद्गम और उसकी निरंतरता को दर्शाता है। रज़ा ने इस चित्र में बिंदु के माध्यम से सृष्टि के विस्तार और उसकी अनंतता को रेखांकित किया है। (चित्र संख्या – 09, सृष्टि)


26. "मंत्र" (2011)

"मंत्र" में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग मंत्र के के रूप में किया है। इस चित्र में बिंदु को एक केंद्र बिंदु के रूप में दिखाया गया है, जो ध्यान और साधना के माध्यम से प्राप्त की जाने वाली आत्मिक शांति और संतुलन का प्रतीक है। रज़ा ने इस चित्र में बिंदु को आत्मिक ऊर्जा के स्रोत के रूप में प्रस्तुत किया है। (चित्र संख्या – 10, मन्त्र)


27. "चक्र" (2012)

"चक्र" रज़ा की एक और प्रमुख कृति है, जिसमें बिंदु का प्रयोग चक्र के प्रतीक के रूप में किया गया है। इस चित्र में बिंदु को एक गतिशील ऊर्जा के रूप में दिखाया गया है, जो जीवन के विभिन्न चरणों और उनके परस्पर संबंधों को दर्शाता है। रज़ा ने इस चित्र में बिंदु को जीवन के चक्र के रूप में प्रस्तुत किया है।(23)

28. "शक्ति" (2013)

"शक्ति" में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग शक्ति के प्रतीक के रूप में किया है। इस चित्र में बिंदु को लाल और सुनहरे रंगों में प्रस्तुत किया गया है, जो शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। रज़ा ने इस चित्र में बिंदु को शक्ति के स्रोत के रूप में प्रस्तुत किया है, जो जीवन की निरंतरता और उसकी उत्प्रेरक शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।

29. "कुण्डलिनी" (2011)

प्रस्तुत "कुण्डलिनी" चित्र में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग कुंडलिनी शक्ति के प्रतीक के रूप में किया है, जो भारतीय योग और तांत्रिक परंपराओं में विशेष स्थान रखता है। इस चित्र में बिंदु को एक जागृत ऊर्जा के रूप में दिखाया गया है, जो आध्यात्मिक जागरण और आत्म-साक्षात्कार का प्रतीक है। (चित्र संख्या – 11, कुंडलिनी)


30. "सप्त रस" (1994)

"रस" विषयक चित्र में रज़ा ने बिंदु का प्रयोग रस, या जीवन के स्वाद के प्रतीक के रूप में किया है। इस चित्र में बिंदु को रंगों के विविध प्रयोग के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है, जो जीवन के सप्त रसों और उनकी मिठास को दर्शाता है। रज़ा ने इस चित्र में बिंदु को जीवन के रस के रूप में प्रस्तुत किया है।(24)स (चित्र संख्या – 12, सप्त रस)


द्वंद्ध (2008), ध्वनि (1997), गर्भाधान (1989), बिंदु नाद (2006), बीज (1990), सन्यास (1987), स्वेत बिंदु (2006), वृक्ष (2010), बिंदुतत्व (2011), पुनरागमन (2011), मेरा घर (2011), युगल (2011), ऊर्जा (2011), शौर्य (1978-1980), उत्सव (2012 – 2014), आंतरिक आँख (2003), पंच तत्व (2008), बिंदु पंचतत्व (2011), होली (2015), प्यास (2014), परिक्रमा- गांधी के आसपास (2014), उदय विस्तार (2012), मातृभूमि (2012), प्रकृति-पुरुष (2013), अंतर्र्ज्योती (2012), जीवन सत्व (2013), वितान (2013), अनुगूंज (2013), प्रेम वृक्ष (2013), नाग (2013), समरस (2012), क्षितिज (2012), अंतर्र्ध्वनी (2012), योनी(2012), दिव्य शक्ति (2012), आरम्भ (2015), रक्त बिंदु (2012), प्रात: राग (2008), वृक्ष व बिंदु (2008), योनी (2010), विकिरण (2010), पुरुष-प्रकृति (2010), प्रकृति (2008), दो बिंदु (2002), प्राण (2015), अर्थ (2016), काल (1985), भाव (1994) इत्यादि एवं अन्य महत्वपूर्ण चित्र भी रज़ा के चित्रण में बिन्दुवाद का प्रतिनिधित्व करते हैI

निष्कर्ष : सैयद हैदर रज़ा की कला बिंदुवाद के सौंदर्यशास्त्र का एक जटिल और गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। बिन्दुवाद में बिंदु कला प्रविधि मात्र का हेतू है। पर रज़ा की कला में आकर बिंदु; कला प्रविधि एवं अभिव्यक्ति दोनों का इकसार वाहक है। यह विलक्षण है। रज़ा ने अपने कलात्मक बिन्दुवाद के आलोक में सौंदर्यशास्त्र की भारतीय अवधारणा रस-ध्वनी सिद्धांत के मर्म से सहृदय का साक्षात्कार करवाया है। रज़ा ने बिंदुवाद के माध्यम से भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता, और दर्शन को अपनी कला का केंद्र बनाया। उनके चित्रण में बिंदु केवल प्रयुक्त एक ज्यामितीय आकृति नहीं है, बल्कि यह एक गहरे सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रतीक सिरजती है। यह अस्तित्व, ब्रह्मांडीय ऊर्जा, और जीवन के अंश को दर्शाने का एक साधन था। उन्होंने इस प्रतीक को एक साधारण आकृति से एक दार्शनिक और सांस्कृतिक प्रतीक में परिवर्तित किया, जिससे यह आधुनिक भारतीय कला का एक महत्वपूर्ण तत्व बन गया। सैयद हैदर रज़ा की कला में बिंदुवाद की सौंदर्यशास्त्र न केवल उनकी व्यक्तिगत कलात्मक यात्रा को प्रतिबिंबित करती है, बल्कि यह भारतीय कला के एक विशेष चरण का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें आधुनिकता और परंपरा का गहन सुमेल दिखाई देता है।

सैयद हैदर रज़ा की कला में बिंदुवाद का प्रभाव भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय कला जगत में विख्यात है। रज़ा की चित्रकला में बिंदुवाद का सौंदर्यशास्त्र हमें यह समझने में मदद करता है कि कैसे एक साधारण प्रतीक, जब उसे गहरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं से जोड़ा जाता है, तो वह एक शक्तिशाली कलात्मक उपकरण बन सकता है। बिंदु, जो उनकी कला का केंद्र था, ने न केवल भारतीय सांस्कृतिक तत्वों को जीवित रखा, बल्कि उन्हें एक नई दृष्टि और पहचान दी। रज़ा की कला ने दिखाया कि आधुनिकता और परंपरा के बीच एक संतुलन संभव है, और यह संतुलन भारतीय कला को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाता है।

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* सभी चित्र साभार गूगल के सौजन्य से,


रमेश चन्द मीणा
सहायक आचार्य चित्रकला, राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा (राजस्थान)


दृश्यकला विशेषांक
अतिथि सम्पादक  तनुजा सिंह एवं संदीप कुमार मेघवाल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-55, अक्टूबर, 2024 UGC CARE Approved Journal

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