शोध आलेख : गोपालस्वामी खेतांची के चित्रों में नारीत्व सौन्दर्य / रवि प्रसाद कोली

गोपालस्वामी खेतांची के चित्रों में नारीत्व सौन्दर्य
- रवि प्रसाद कोली

चित्र संख्या-1, MONA LISA REIMAGINED
शोध सार : गोपालस्वामी खेतांची का जन्म उत्तरी राजस्थान के सांस्कृतिक रूप से सराबोर एक छोटे से गाँव सरदार शहर में हुआ था। जयपुर में राजस्थान विश्वविद्यालय से ड्राइंग और पेंटिंग में स्नातक की शिक्षा पूर्ण की। उन्होंने मुंबई में बॉलीवुड फिल्मों के लिए सहायक कला निर्देशक एक इलस्ट्रेटर के रूप में काम किया। पूर्णकालिक चित्रकार के रूप में अपने जुनून की ओर मुड़ने से पहले एक पत्रिका के लिए भी कार्य किया था। खेतांची की कला यथार्थवाद, अतियथार्थवाद और अमूर्तता सहित विभिन्न चरणों, शैलियों माध्यमों से गुजर कर निरन्तर सक्रिय रही है। उनकी कलाकृतियां परंपरागत और आधुनिकता के एक बेहतरीन संयोजन का अनोखा और खूबसूरत उदाहरण प्रस्तुत करती है। खेतांची को खूबसूरत राजपूति महिलाओं, राजस्थानी ग्रामीण महिलाओं को देवीय स्वरूप में चित्रित करना बहुत पसन्द हैं। उन्होने नारी के स्वरूप को किसी भी स्थिती में चित्रित किया हो, उसमें नारीत्व के सौन्दर्य को बखूबी देखा जा सकता है। उन्होंने अपनी कलाकृतियों में नारी को परम्परागत संस्कृति कि वेशभूषा में सोने व मोतियों से जड़ीत आभूषणों के साथ चित्रित किया है, जिससे उनके द्वारा चित्रित किया गया नारी का प्रत्येक चित्र देवीय स्वरूप के रूप में दिखाई देता है। उनके द्वारा बनाया गया प्रत्येक चित्र हमें हमारी संस्कृति कि याद दिलाता है। उन्होने राजस्थान के प्राचीन महलों, हवेलियों और किलों को चित्रित करने के साथ-साथ वे शास्त्रीय, यूरोपीय चित्रों को भारतीय संस्करणों में ढ़ालकर चित्र बनाने के लिए जाने जाते है। हाल ही में अपने परम्परागत कार्य से दूर हटकर एब्सट्रेक्ट की ओर कदम बढ़ाया है। शुद्ध चित्र के कुछ वैचारिक प्रतिपादन से हटकर एक अलग प्रयोग के साथ कार्य किया है। पिछले 20 वर्षों में इनके कलात्मक करियर में कई एकल और समूह प्रदर्शनियाँ शामिल हैं। लंदन और दुबई में ओवरसीज के अलावा दिल्ली, मुंबई, जयपुर और अन्य महानगरों में अनेक एकल और समूह प्रदर्शनियां लगाई है। वर्तमान में खेतांची जयपुर शहर के अपने स्टूडियो में निरन्तर अपनी कला में सृजनरत है। उन्होने बारहमासा, बसंत-बहार, शृंगार जैसी अनेकों चित्र शृंखलाओं में कार्य किया है। उनके द्वारा बनाई गई कलाकृति बसंत-बहार अति सुन्दर है।

बीज शब्द : साज-श्रृंगार, वात्सल्य, स्वच्छंदतावाद, यथार्थवादी, संस्कृति, सौन्दर्य, शिल्पकला, ऋतु, शृंगार, ओड़नी, आदि।

मूल आलेख : ''कलाकार गोपालस्वामी खेतांची जो की वर्तमान में राजस्थान के जयपुर जिले में निवास करते है। इनका जन्म 15 फरवरी 1958 को राजस्थान के सरदार शहर नामक गाँव में हुआ था। उतरी राजस्थान के कलात्मक परिवार से सम्बन्ध रखने वाले खेतांची ने जयपुर में कला का अध्ययन किया। उन्होने बॉलीवुड में सहायक कला निर्देशक और पत्र-पत्रिकाओं के लिए बतौर चित्रकार के रूप में काम किया है। वर्तमान समय में उन्हे स्वच्छंदतावाद से गहरा नाता रखने वाले प्रसिद्ध भारतीय यथार्थवादी चित्रकार के रूप में जाना जाता है। खेतांची को खूबसूरत राजपूत महिलाओं, राजस्थानी ग्रामीण महिलाओं और किलों, महलो, को चित्रित करने के साथ-साथ शास्त्रीय यूरोपीय चित्रों का भारतीय संस्करणों में ढ़ालकर चित्र बनाने के लिए जाना जाता है। उनके चित्रों को जयपुर, दिल्ली, मुम्बई, सिंगापुर, दुबई और लन्दन में अनेक एकल और समूह प्रदर्शनीयों में प्रदर्शित किया जा चुका है। भारत के अलावा अनेक देशों की निजी और सरकारी कला दीर्घाओं और संग्रहालयों में उनकी कलाकृतियों का संग्रहण किया गया हैं”।(1)

खेतांची वही कलाकार है, जिन्होने मोनालिसा को राजस्थानी शैली में चित्रित किया है। उन्होने राजस्थान के किलों और संस्कृति, परम्पराओं, ग्रामीण सौन्दर्य, शिल्पकला, वस्त्रकला और यहाँ प्रचलित ग्रन्थो, ऋतुओं आदि का खुब चित्रण किया है। उनके द्वारा बनाये गये चित्रों के विषय बसंत-बहार, बारहमासा, शृंगार, वात्सल्य, राधा-कृष्णा, मयूर-रंजनी, हंस-ध्वनी, कृष्ण-प्रिया, सारंगी, देव-रंजनी, कलावती आदि है।

खेतांची की शिक्षा

''खेतांची के पिता खेताराम एक चित्रकार थे, जो सरदारशहर के एक सरकारी स्कूल में कला शिक्षक के रूप में काम करते थे”।(2) जिस कारण उनका भी बचपन से ही कला के प्रति रुझान था। उनका बचपन ग्रामीण क्षेत्र में बीता है। गांव में जो चूल्हे होते हैं उनमें लकड़ियों को जलाने के बाद जो कोयला (चारकोल) बनता है उनसे ही वो अपनी रसोई के फर्श पर चित्रण कार्य किया करते थे। गांव में धोरों की मिट्टी को प्लेन करके उस पर आड़ी तिरछी रेखाओं से चित्रण करना आदि ही उनके बचपन का काम और खेल का हिस्सा हुआ करता था। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र में जो शादी-ब्याह आदि त्यौहारों पर तोरण सजाना, गमला बनाना, सिपाही, पणिहारी, रेलगाड़ी आदि बनाना। शादीयों के माहोल में अपने आस-पास के पूरे कुटुंब और मौहल्ले की शादियों में उनका चार-पांच दिन के लिए पूरे घर को सजाना यही कार्य होता था। उनका बचपन इसी प्रकार के चित्रण कार्य करने और खेल खेलने से प्रारम्भ हुआ। यही से उनकी कला यात्रा का प्रारम्भ माना जा सकता है।

खेतांची बचपन में जब ग्यारह-बारह साल के रहे थे उसी समय उनके पिताजी उनके लिए एनाटॉमी नामक किताब लेकर आए और उनको सौंप दी। उस समय उनके पास उस किताब के अलावा और कोई साधन नहीं था जिसमें वो कलाकृतियों को देख और सीख सकें। उनके पास बचपन में वही एक किताब थी जिसको वह बार-बार देखते देखते रहते थे। उन्होने उस किताब को आत्मसात कर लिया। वह किताब उनके मस्तिष्क में रच बस गई, उसी को पढ़ना, उसी को समझना, उसी को बार-बार देखते रहने से एनाटामी में उनकी अच्छी पकड़ हो गई।

उनके समय में कलाकृतियों को देखने के लिए केवल कैलेंडर ही एकमात्र साधन हुआ करते थे और उसी से इंस्पायर (प्रभावित) होने का मौका मिलता था। उस समय पंडित जी के नाम से एक कैलेंडर छपता था, जो उस समय बहुत सुर्खियों में था। उस समय वह छुट्टियों पर थे और उस कैलेंडर की नकल कर अनुकृतियां बना रहे थे, तभी रास्ते से चलते हुए एक कलाकार जोशी जी ने खिड़की से झांक कर उनके कार्य को देखा। तब जोशी जी से उनका परिचय हुआ। उन्होंने उनको रंगों का ज्ञान दिया और स्केचिंग का महत्व समझाया। जिसके बाद उनका स्केचिंग के प्रति ऐसा जुनून चढ़ा कि वह हर समय स्केचिंग ही करते रहते थे। उन्होने एक ऐसी ड्रेस बनवाई जिसमें एक झोला था। उसमें वो एक स्केच बुक हमेशा साथ में रखा करते थे। वह ड्रेस एक तरह से उनकी यूनिफार्म ही हो गई थी। उस समय वह जहां भी जाते स्केचिंग ही करते रहते थे, चाहे वह बस स्टैंड हो या रेलवे स्टेशन, स्कूल हो या कॉलेज, कहीं पर भी बैठकर वो हमेशा स्केचिंग ही किया करते थे। इसी कारण वर्तमान समय में वें जिस पेंटिंग का सृजन करते हैं उनका फिगर और एनाटॉमी इतना सजीव होता है। उनके पेंटिंग्स में बने मानव चित्रण को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रत्यक्ष रूप में सामने ही है।

''खेतांची ने जयपुर में राजस्थान विश्वविद्यालय से ड्राइंग और पेंटिंग में कला स्नातक की डिग्री प्राप्त की और बाद में मुंबई से अपने पेंटिंग कौशल को विकसित किया।''(3) गोपाल स्वामी खेतांची क्लासिकल म्यूजिक से बहुत प्रभावित रहें है। उनके कला गुरू कलाकार द्वारिका प्रसाद शर्मा रहे है, जो कि राजस्थान में जाने-माने कलाकार है। उनके रास्ते पर चलने वाला केवल एक व्यक्ति है, लक्ष्य भारद्वाज, जो उनका शिष्य है। लक्ष्य भारद्वाज वर्तमान में खेतांची के बताए रास्ते पर ही आगे बढ़ रहे है और कला सृजन कर रहे है। गुरू-शिष्य का कला सृजन कार्य समान ही सजीवता लिए हुए है। उनके कार्य को एक साथ देखने पर बिना हस्ताक्षर दैखे बता नही सकते, की कौनसा कार्य गुरूजी का है और कौनसा कार्य शिष्य लक्ष्य भारद्वाज ने बनाया है।

बचपन की सबसे सुंदर पेंटिंग

सरदार शहर में एक बी.एड. कॉलेज था, जिसमें चार्ट बनाने पड़ते थे। उसी समय 10-12 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने वह चार्ट बनाना प्रारंभ कर दिया। जिसमें उनको हर एक के बाद एक कार्य में चैलेंज से गुजरना होता था कुछ ना कुछ नया कार्य करना होता था। जैसे कभी तो साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट बनाने हैं कभी किसी चार्ट में किसी कहानी का दृश्यांकन करना है। जिससे उनकी स्मृति प्लानिंग भी अच्छी होती गई और विषय के प्रति सोचने और समझने की क्षमताऐं ओर विकसित होती चली गई। जब वो लगभग 17 वर्ष की उम्र में प्रवेश कर रहे थे तभी उन्होंने रंगों को सीखने और समझने में अपना समय बिताना प्रारंभ किया और सर्वप्रथम अपने पिताश्री का मुखचित्र (पोट्रेट) बनाया जो शायद उनके यथार्थवाद चित्रण की पहली सीडी थी। वह चित्र वर्तमान में भी उनकी बचपन की सबसे सुन्दर कलाकृतियों में से एक है।

फोटोग्राफी व पेंटिंग का सम्बन्ध

''खेतांची ने कलाकार रितु नंदा के साथ लगभग 10 वर्षों तक कार्य किया था। वह उन्ही के हिसाब से फोटोग्राफी के लिए इधर-उधर की यात्राएं किया करते थे। उन्होंने राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों से संबंधित बहुत कार्य किये है जिनमें यहां की गरासिया एवं मांगलिया जनजाती मुख्य रही है। ये जनजातीयां जिन स्थानों पर निवास करती थी वें वहां जाकर फोटोग्राफी किया करते थे और उसी फोटोग्राफी के आधार पर अपनी कलाकृतियों का सृजन किया करते थे। जिससे इस बात का पता चलता है कि फोटोग्राफी से उनकी कलाकृतियों का गहरा संबंध रहा है। इससे उनको राजस्थान की संस्कृति से जुड़ी फोक-आर्ट को सीखने और समझने का अवसर प्राप्त हुआ। कलाकार रितु नंदा उनकी सबसे चहेती कलाकारों में से एक रही है। वें साथ बैठकर घण्टों एक-दूसरे से अपने कार्य के बारे में बातचीत किया करते थे। किसी भी पेंटिंग को बनाने से पहले उसमें कौन-कौनसी वस्तुओं का चित्रण करना है और कौन-कौन सी चीजें छोड़नी है, इसके बारे में बातचीत किया करते थे। इन सब बातों कि चर्चा उन्होंने जयपुर की प्रसिद्ध कला दीर्घा ‘जुनेजा आर्ट गैलरी‘ की औनर संगीता जुनेजा के साथ  साक्षात्कार में की है। उन्होने बताया कि कलाकार रितुनन्दा बहुत शांत स्वभाव वाली थी। वो दोनों घंटों बैठकर अपने काम और विषय पर चर्चा किया करते थे और गहन सोच विचार के बाद अपनी कलाकृतियों का निर्माण किया करते थे”।(4)

फिल्मी-करियर

''मंजूर उलहक एक कलाकार और फिल्म निर्देशक थे। खेतांची ने उनके निर्देशन में बनी बहुतसी फिल्मों जैसे किः- मुकद्दर का सिकंदर (1978), अब्दुल्ला (1980), ज्वालामुखी (1980) और कालिया (1981) जैसी कई बॉलीवुड फिल्मों में सहायक कला निर्देशक के रूप में काम किया”।(5) उस समय फिल्मों की सूटिंग से पहले स्टेज डेकोरेशन का काम हुआ करता था जिसका कार्य भार खेतांची को सौंपा गया था। उसी समय उनकी मुलाकात मंजू अरोड़ा से हुई, वों उनके चित्र और ड्राइंग को देखकर उनसे बहुत प्रभावित हुई। उन्होंने खेतांची को अपना असिस्टेंट बना लिया। उस समय जो भी फिल्में बनती थी, उनकी शूटिंग के लिए एक सेट तैयार होता था, जिसका सम्पूर्ण डिजाइन पूर्व में तैयार करके सर्वप्रथम डायरेक्टर या निर्देशक को दिखाना होता था। जिसके लिए पूरा सीन (बैकग्राउण्ड) बनाना पड़ता है कि कैसे सेट बनेगा, कैसे वहां कलाकारों का आगमन होगा, कैसी-कैसी उनकी वैशभुषा होगी, क्या उनके कलर होंगे, बैकग्राउंड में क्या कलर होगा आदि। इस प्रकार का सारा कार्यभार खेतांची को सौंपा गया था। जब उन्होने किसी भी फिल्म के लिए ऐसा कार्य किया था, तब उनकी आयु लगभग 20 वर्ष की थी। अतः उन्होने लगभग 20 वर्ष की आयु में ही फिल्मों में एक असिस्टेंट आर्ट डायरेक्टर के रूप् में कार्य किया लगभग 25 वर्ष की आयु में उनकी पहली पेंटिंग रश्मिकांत दुर्लभजी ने खरीदी थी। वह बहुत ही सुंदर पेंटिंग थी जिसको उन्होने अभी भी अपने पास संग्रहित कर रखा है।

ओशो आश्रम का भ्रमण, पुणे

खेतांची एक सन्यासी के रूप में ओशो की विचारधारा से काफी ज्यादा प्रभावित रहे। वो लगभग एकवर्ष के लिए पुणे चले गए और वहीं ओशो आश्रम में रहे थे। वह उनके जीवन का बहुत सुखद समय था। उस समय वो अपने अंर्तध्यान से भी जुड़े जिससे उनकी जीवनशैली व विचारधारा भी प्रभावित रही। सन् 1990 के आस-पास से ही उनका जयपुर में आना-जाना लगा रहता था और धीरे-धीरे वही रच बस गए। वर्तमान में जयपुर में ही निवास करते हैं।

सुत्रों से सुनने में आया है कि राजा रवि वर्मा ने उनके लिए ईश्वर को मेल भेजा था कि ''मैं अब थक गया हूं आप मैरी जगह किसी और को धरती पर उतारे'' उनके कार्य को देखकर ऐसा प्रतीत भी होता है कि खेतांची ने उनके ही स्थान पर जन्म लिया है।

उन्होने एक समय ऐसा भी देखा है जब दुनिया में हर तरफ मातम छाया हुआ था। बात सन् 2003 के समय पड़े अकाल की है। वह ऐसा समय था कि आप कहीं से भी गुजर रहे हो, वहां पर हड्डियों के ढांचे पड़े हैं, जानवर सड़ रहे हैं। चारों तरफ मौत ही मौत के भयंकर दृश्य दिखाई पड़ते थे। उनके मन में इन दयनीय दृश्यों को अपनी कलाकृतियों में उतार कर, लोगो को उसके बारे में जागरूक करने विचार आया। उस दयनीय स्थिति को उन्होंने अपनी कलाकृतियों में उतारने की कोशिश की। उन्होंने 2003 में पड़े अकाल के ऊपर एक पेंटिंग सीरीज भी बनाई थी जिसकी प्रदर्शनी उस समय जवाहर कला केंद्र में लगाई गई थी।

भारतीय मोनालिसा या बणी-ठणी 

खेतांची वही कलाकार है जिन्होने विश्व की प्रसिद्ध कलाकृति मोनालिसा को राजस्थानी शैली में चित्रित किया है। खेतांची ने पुराने मास्टस (पूर्व में प्रसिद्धि पा चुके) कलाकारों की कलाकृतियों की एक सीरीज बनाई थी, जिसमें उन्होने उन कलाकारों की चर्चित कलाकृतियों को रिमिक्स करके नवसृजन किया गया था। उन सभी कलाकृतियों में से उनके द्वारा बनाई गई कलाकृति मोनालिसा या ''बणी-ठणी'' (कैनवास पर तैलरंग, 20×30 ईंच, सन् 2006) जिसे भारतीय मोनालिसा के नाम से भी जाना जाता है, सन् 2014 में पेरिस में हुए राइट्र्स ऑफ द इंडिया नामक फेस्टिवल के लिए चुनी गई थी। उस समय सम्पूर्ण पेरिस में एक पोस्टस लगाया गया था जिसमें खेतांची द्वारा बनाई कलाकृति मोनालिसा चयनित हुई थी। उनकी कलाकृति भारतीय मोनालिसा जिसके बारे में आठ क्रिटिक ने लिखा भी है।

चित्र संख्या-1.1 पेज नं 87, MONA LISA REIMAGINED

''खेतांची की बनाई गई कलाकृतियां उनके करियर के दौरान कई अलग-अलग चरणों से गुजरी और अंततः परम्परा और आधुनिकता के परिष्कृत समावेश में परिणत हुई भारत के समृद्ध और रंगीन इतिहास के प्रति उनकी सराहना उनके चित्रों में स्पष्ट दिखाई पड़ती है। विशेष रूप से बहादुर योद्धाओं के प्रति उनकी प्रशंसा और राजपूत महिलाओं कि अद्वितीय सुन्दरता के प्रति उनका शौक जैसा कि उनकी मोनालिसा कलाकृति की पुनर्व्याख्या में संदर्भित किया गया है। उनके द्वारा बनाई गयी कलाकृतियां ‘‘बणी-ठणी‘‘ और ‘‘देवश्री‘‘ एैरिक मैल की पुस्तक MONA LISA REIMAGINED में प्रकाशित की गई है”।(6)

उन्होने राजस्थान के किलों और संस्कृति, परम्पराओं, ग्रामीण सौन्दर्य, शिल्पकला, वस्त्रकला और प्रचलित ग्रन्थो, ऋतुओं आदि का खुब चित्रण किया है। उनके द्वारा बनाये गये चित्रों के विषय बसंत-बहार, बारहमासा, शृंगार, वात्सल्य, राधा-कृष्णा, मयूर-रंजनी, हंस-ध्वनी, कृष्ण-प्रिया, सारंगी, देव-रंजनी, कलावती आदि है।

साज-शृंगार शृंखला

''खेतांची द्वारा बनाई गई कला शृंखला में उन्होने मस्तिष्क से दिव्य स्थिती तक की प्रगति का दर्शाया है जिसमें वों विभिन्न वातावरणों का उपयोग करते है। जिसमें गैर दौहरी एवं अच्छि तरह से परिभाषित विलक्षण व संवेदनशील बनाने के लिए उन्हे खुबसूरती से मिश्रित करते है। आनंदमय दिव्य सुंदरीयों के अपने चित्रण में खेतांची ने उदासी की अवधारण को खारिज कर दिया है, जिसे मुख्य रूप से पाश्चात्य चित्रों द्वारा चित्रित किया गया है। साज- शृंगार के दायरे में संगीत की सरलता पर बहुत अधिक जोर दिया गया है। वाद्य यंत्र कि प्रकृति, वादक का व्यक्तित्व  और मुद्रा, उसका परिवेश, भाव और रंग, सभी तत्व एक सपने कि तरह एक दुसरे के पूरक है। सौंदर्यशास्त्र की सभी सड़के कला के रेशमी गलियारों तक जाती है और साज-शृंगार उस तक पहुंचने का मुख्य मार्ग है। खेतांची के चित्रों मे हम उद्देश्य और आनंद की एकता को महसूस करते है। उनकी कलाकृतियों बनाया  गया मोर का चित्र परम्परागत रूप से भगवान श्री कृष्ण से जुड़ा भव्य पक्षी प्रेम और रोमांस का प्रतिक है। हंस देवी सरस्वती का विशेष वाहक है। बादल, बहती नदियाँ, जंगल, टीले सभी रेखाओं और रंगो के साथ एक प्रभावशाली सारणी बनाते है। कलाकार द्वारा अपने कैनवास पर साज-शृंगार की इस नई शृंखला को बनाने और प्रदर्शित करने का खेतांची का प्रयास रहा है। कलाकार द्वारा साज- शृंगार प्रदर्शनी का आयोजन उस समय में किया गया, जब सारा देश भयंकर महामारी से जुझ रहा था। यह उनकी अपार सकारात्मक ऊर्जा और शानदार जीवन शक्ति है जो रचनात्मकता को जीवंत होने के लिए प्रेरित करता है। बोलचाल की महीमा, सुरम्य सुरम्य सुन्दरता के साथ इस नई कला निधि, साज- शृंगार को आकर्षक जिम्मेदारी और दिव्य आशा के साथ कोरोना बेड लैम की बर्फ को तोड़ना चाहिए। साज- शृंगार की शृंखला के लिए खेतांची ने संगीत वाद्ययंत्रों की विविध प्रकृति, स्वर, कलाकारों के मूड का विस्तृत अध्ययन किया है। इसके बाद इस लम्बी व्यस्तता और अभ्यास की उन्होंने संकल्पना की और कुछ उल्लेखनीय ब्रशवर्क के माध्यम से एक मधुर सामंजस्य बनाया हैं”।(7)

           चित्र संख्या-2 कलर कैनवास पत्रिका पेज

बारहमासा और ‘साज-शृंगार‘ शृंखला में महिला के मुख्य चित्रण की कुछ विशेषताएं

उन्होंने बताया कि वह जो कलाकृति बनाते हैं उसमें हमेशा दिव्य रूप देने की कल्पना करते हैं। दिव्य रूप लाने के लिए उनकी कल्पना में जो आंखें है वह सबसे सुंदर हो सकती है। कल्पना में जो होट है, कान है, नाक है, उनकी कल्पना में जो सबसे सुंदर हो सकता है वो हमेशा वही हमेशा बनाते हैं। इससे वह कलाकृतियां सुन्दर होती जाती है। अपनी पेंटिंग में वह प्रकृति को हमेशा पृष्ठभूमि में चित्रण करना पसंद करते हैं। उन्होंने अलग से कोई भी लैंडस्केप वर्क नहीं किया है। उन्होने मिनिएचर पेंटिंग (लघु चित्रण) और रियलिस्टिक पेंटिंग (यथार्थवादी चित्रण) को आपस में करीब लाने या जोड़ने की कोशिश की है। दोनो में फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि कौनसी कलाकृति मिनेचर शैली में बनाई गई है, कौनसी रियलिस्टीक (यथार्थवादी) शैली में बनाई है, पता ही नही चलता है। पहले उनकी कलाकृतियों में मसल्स दिखाई देती थी परन्तु कलागुरु द्वारिका प्रसाद शर्मा से मिलने के बाद उनसे जो ज्ञान मिला उसके बाद उनकी कलाकृति में मसल्स और शरीर की दिखाई देने वाली हार्डनेश धीरे-धीरे बंद होने लगी और उनकी कलाकृतियों में सॉफ्टनेस व लयात्मकता समाने लगी।

नारी का सौन्दर्य और देवीय स्वरूप

''कलाकार खेतांची ने बहुतसी कलाकृतियों में राजस्थान की नारी के सौंदर्य को चित्रित किया है जिसमें नख से शिख तक किया गया नारी का शृंगार मुख्य केन्द्र रहा है।''(8)

गोपालस्वामी द्वारा बनाई गई एक पेंटिंग ''बंसत-बहार'' (चित्र संख्या-3) है जिसमें बसंत के सुहावने मौसम का चित्रण किया गया है। इस चित्र में उनके द्वार बनाए गये महिलाओं के रूपवादी चित्रों की विशेषता स्पष्ठ रूप से देखी जा सकती है। चित्र में महिला को शांत स्वभाव में बैंगनी रंग की ओड़नी में नीले रंग का लहंगा पहने, मॉडर्न स्टाइल में पैर के उपर पैर रखकर बैठे चित्रित किया गया है। सिर पर ओड़नी ओढ़ रखी है। चित्र में कपड़ों पर स्वर्णिम रंग कि बोर्डर बनाई गई है जो हरे, लाल और नीले रंग की फूल-पतियों से सजाई गई है। लहंगे की बॉर्डर लहरदार रूप में जमीन को स्पर्श कर रहा है। पैरो में पायल पहन रखी है। मुख को अधिक प्रकाशमान लिए चित्रित किया गया है जिससे चेहरा साक्षात देवीय स्वरूप में दिखाई पड़ता है। जिसे देख ऐसा प्रतित होता है माना स्वंय देवी पक्षीयों को दाना चुगाने के लिए धरती पर उतर आयी हो।

चित्र संख्या-3 बसंत बहार

''वह नदी किनारें कुछ पंछीयों को जामुन खिला रही है। उनके एक हाथ में जामुन है जो उड़ते पंछीयों की ओर आगे बढ़ रहा है और दुसरे हाथ टोकरी से फल उठाने की स्थिती में दिखाई पडता है, जिस पर एक तोता बैठा है। टोकरी के अन्दर सेव, जामुन और कुछ अन्य फलों को चित्रित किया गया हैं। इस महिला ने नई नवेली दुल्हन समान शृंगार कर रखा है। गले में आभूषण और मोतियों कि माला, सिर पर बौरला, कानों में झूमकियाँ और हाथों में चुड़ियाँ पहन रखी है। पृष्ठ-भूमी में घाटियों के बीच से बहती कल-कल करती नदी किनारे का चित्रण किया गया जिसके आस-पास कुछ फूलो-पत्तियों को भी चित्रित किया गया है। चित्र का सम्पूर्ण संयोजन बहुत सुन्दर और शांत है। चित्र कि वेश-भूषा और साज-शृंगार हमारी प्राचीन संस्कृति कि याद दिलाते है। पंछीयों का रंग महिला के कपड़ो के जैसा ही है जो चित्र के रंग सन्तुलन को बनाऐ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। महिला जिन पक्षियों को फल खिला रही है वो पक्षी विदेशी जान पड़ते है जबकी टोकरी के पास वाला पक्षी देशज है। इस प्रकार कलाकार द्वारा बनाया गया बसंत बिहार चित्र अपनी सम्पूर्ण बसंत की विशेषताओं को अपने अन्दर समाये हुए दिखाई पड़ता है।''(9)

गोपालस्वामी द्वारा बनाई गई यह कलाकृति चित्र संख्या-4 उनके द्वारा प्रदर्शित ''साज-शृंगार'' शृंखला से ली गई है। इसमें महिला को नदी के बड़े-बड़े पत्थरों के बीच में एक बड़े से सिंहासन रूपी पत्थर के ऊपर बैठे हुए दिखाया गया है। इस चित्र में महिला को साज-शृंगार नाम के अनुरूप सोने-चाँदी और हीरे जवाहरात जैसे आभूषणों से सुसज्जित सौन्दर्यपूर्ण और मनमोहक रूप में सरोद बजाते हुऐ देवीय स्वरूप में चित्रित किया गया है। चमकीली गुलाबी रंग की औढ़नी और लहंगा जिसमें सुनहरी बॉर्डर बनाई गई है।

चित्र संख्या-4 साज-शृंगार

औढ़नी पर बहुत ही महीन और मीनाकारी बेल-बूटियां डिजाइन की गई है। महिला को गौर वर्ण में सिर पर टीका पहने हुए, लाल रंग की बिन्दी के साथ कानों में कर्णफूल, नाक में लोंग, गले में सुनहरें रंग का हार और मोतियों की माला सहीत अन्य आभूषणों के अलावा हाथों में कंगन पहने चित्रित की गई है। आँखों में गहरा काला काजल डाले, हाथो में मेहन्दी लगाये नई नवेली दुल्हन के रूप में चित्रित कि गई है। चेहरे पर शांत भाव एवं मंद मुस्कान दिखाई दे रही है। चित्र कि पृष्ठभूमि को चार भागों में विभाजित किया गया है। प्रथम भाग में छोटी-छोटी घास के बीच मे बड़ी साइज के पत्थर बने है जहां महिला को बैठा चित्रित किया गया है इसी भाग में छोटी-छोटी पहाड़ियों की घाटियाँ चित्रित है। जिन पर हरी-भरी घास व छोटे बड़े पत्थर दिखाई पड़ते है। द्वितिय भाग में बड़ी-बड़ी पहाड़ियाँ बनाई गई है जिनमें बर्फीले स्थानों पर पाये जाने वाले पेड़-पोंधों को चित्रित किया गया है। तृतिय भाग में बर्फीले पहाड़ बनाये गये है। चौथे भाग में नीले आसमान में सफेद बादलों को मन्डराते हुऐ चित्रित किया गया है। यह सम्पूर्ण चित्र बहुत सुखद और शांत वातावरण प्रस्तुत कर रहा है।

खेतांची द्वारा बनाये गये चित्र संख्या 5 में एक महिला को शृंगार करते हुऐ चित्रित किया गया है। यह चित्र भी उनकी चित्र शृंखला ''साज-शृंगार'' से ही लिया गया है। इस चित्र में महिला ने अपने दाहिने हाथ से कांच को पकड़ रखा है जिस का निचला हिस्सा उनकी दाहिने पैर की जंघा पर टिका हुआ है। बाएं हाथ से अपने सिर पर टीका सजा रही है। महिला के दोनों हाथों को बहुत ही लयात्मक रूप में चित्रित किया गया है। उसने दोनों हाथों में चूड़ियां तथा कंगन पहन रखे हैं। हाथों पर गहरे लाल रंग की मेहंदी लगा रखी है। गहरे काले रंग के बाल, काजल डाली हुई गहरी काली मीनाकृति आंखे, नुकीली नाक और गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ चित्रित किए गए हैं। कानों में कुण्डल और सिर पर टीका सजा रखा है। गले में सुनहरी मोतियों की माला और एक सोने का हार धारण कर रखा है। महिला को ब्लाउज पहने चित्रित किया गया है जिसमें से उभरें हुए वक्ष स्पष्ठ दिखाई दे रहे है। महिला ने सुनहरे क्रीम रंग का लहंगा-चुन्नी पहन रखा है। लहंगे-चुन्नी पर सुनहरे स्वर्णिम रंग की अनोखी बॉर्डर बनाई गई है जिसमें लाल-नीले और हरे रंग की छोटी-छोटी फूल पत्तियों से मीनाकारी की गई है।

चित्र संख्या-5 साज- शृंगार

लहंगे पर छोटी-छोटी बूटियां बनाई गई है। महिला के कपड़ों की सलवट इस तरह से चित्रित कि गई हैं कि उसके कपड़े वास्तविक प्रतीत होते हैं। महिला ब्राउन कलर के सोफे के ऊपर लाल रंग की गद्दी लगाये बैठी हुई है जिसने पीठ से दो लाइट ब्राउन कलर के तकीयों का सहारा ले रखा है। बांई तरफ एक नीले रंग का चमकीला वस्त्र रखा हुआ है तथा इसी के पास कोने में एक सोने का पात्र रखा हुआ है। पात्र को राजस्थानी संस्कृति में पाए जाने वाले बेल-बूटियों से सुसज्जित किया गया है। दाईं तरफ एक छोटी सी लकड़ी की गोल मेज के ऊपर एक सुनहरे रंग का चीनी मिट्टी का गुलदस्ता रखा हुआ है, जिसमें पीले रंग के फूल खिले हुए हैं। गुलदस्ते के ऊपर एक गहरे नीले रंग का पर्दे के जैसा वस्त्र लटकता हुआ दिखाई दे रहा है। महिला के पीछे पृष्ठभूमि में एक दीवार दिखाई दे रही है जिसमें राजस्थानी संस्कृति की कुछ छोटी-छोटी खिड़कियों जैसी नक्कासी बनी हुई है। यह हमारी प्राचीन परंपरागत वास्तुकला की संस्कृति की झलक को स्मृत करवाती है। पैरों में पायल पहन रखी है। छत पर नीले कलर का फूल-पत्तियों से सजे गलीचे को बिछा हुआ चित्रित किया गया है। सम्पूर्ण चित्र को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि स्वयं देवी प्रकट होकर अपना साज-शृंगार कर रही है। सम्पूर्ण चित्र एक शांतिपूर्ण सौन्दर्य का भाव प्रदर्शित करता है। महिला के चेहरे पर मंद सी मुस्कान है। कलाकार खेतांची द्वारा ऐसे सैंकड़ो चित्रों का सृजन किया गया है। 

''खेतांची द्वारा 24 से 28 अगस्त 2017 को वैलकम आर्ट गैलरी, जयपुर में लगाई गई ''ईथोज ऑफ राजस्थान'' प्रदर्शनी (एग्जीबिशन) में माँ-बेटी के जज्बाती रिश्ते व संस्कारों की सीरीज खास रही है। उन्होने माँ द्वारा बेटी को दिए जाने वाले संस्कारों की लाइव एक्टीविटीज को जीवंत किया है। इन संस्कारों में सजने-संवरने का अंदाज, घर के उपवन को सजाने की रीति सिखाती माँ, दर्पण में खुद का और बेटी का अक्स निहारती माँ की पेंटिंग्स इतनी जीवंत है मानो अभी बोल उठेगी। ‘ईथोज ऑफ राजस्थान‘ में उन्होने राजस्थान की मूल संस्कृति की मूल आत्मा नारी और महल-किलों के सौन्दर्य को अपने सृजन का माध्यम बनाया है। इन पेंटिंग में 3D इफेक्ट और लाइट और शेड का बेहतरीन संयोजन इन्हें जीवंत बनाता है”।(10)

चित्र संख्या-6 राजस्थान पत्रिका पेज

पधारो म्हारे देश शृंखला

कलाकार खेतांची की कला शृंखला ''पधारो म्हारे देश'' की प्रदर्शनी 27 नवम्बर से 3 दिसम्बर 2018 तक नेहरू सेंटर, मुम्बई में आयोजित की गई। इस कला प्रदर्शनी में कलाकार ने 16 कलाकृतियों का प्रदर्शन किया था। ''खेतांची ने इस एग्जीबिशन में प्रदर्शीत होने वाली कलाकृतियों का कैलेण्डर भी तैयार करवाया था। इस श्रृंखला में उन्होने राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के कई जाने-माने उद्योगपतियों के पुरखों की जर्जर हो चली हवेतियों को रिक्रिएट किया है।

चित्र संख्या-नवभारत टाईम्स पेज


शेखावाटी क्षेत्र में स्थित ये हवेलियां इतनी कलात्मक है, कि अगर इन्हें संरक्षित किया जाए तो ये पर्यटकों को आकर्षित करने के साथ ही हमारी सांस्कृतिक धरोहर का एक और नायाब नमूना बन सकती है। इस प्रदर्शनी के लिए बनाई गई इन सभी कलाकृतियों में चित्रित हवेलियों का मूल रूप जर्जर है, जबकि उन्होंने इन्हें रीक्रिएट कर कल्पना जताई है, कि जब ये इमारतें बनी होंगी तब कितनी खूबसूरत दिखाई देती होंगी। वर्ष 2012 में उनकी राजस्थान के किलो पर बनाई गई चित्र शृंखला बहुता चर्चा में रही थी”।(11)

''रूपवादी चित्रों के लिए जाने-जाने वाले कलाकार खेतांची ने अपने सामाजिक सरोकार भी है। आईटीसी राजपूताना में आयोजित हुई प्रदर्शनी में उन्होंने रूपवादी चित्रों के अलावा एक सेक्सन ऐसा भी था, जिसमें उन्होंने कैनवास पर प्रदेश के जर्जर हो चुके वैभवशाली अतीत वाले किलों को रंगो के माध्यम से जीवंत करके उनके संरक्षण की पुरजोर अपील की है। इनमें बूंदी से करीब 75 किलोमीटर दूर इन्द्रगड़ के किले को उन्होंने जिस खुबसूरती से कैनवास पर सजाया है उसे देखकर लगा कि अगर किले को फिर से संरक्षित किया जाए तो निश्चित ही यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा बन सकती है”।(12)

''खेतांची ने बताया कि राजस्थान में दो सौ के करीब ऐतिहासिक किले और महल है। इनमें से कई जर्जर होकर विलुप्त होने के कगार पर है। वर्ष 1650 में बने इन्द्रगढ़ के किले पर अतिक्रमणकारी हावी है। वे लगातार इस ऐतिहासिक धरोहर को क्षति पहुंचा रहे है, जिससे वे अपना अस्तित्व खोने कि कगार पर है। राजा बलवंत सिंह के पुत्र इंदर सिंह के नाम पर ही इन्द्रगढ़ किले का नामकरण हुआ था। उन्होंने इस पेंटिंग में पहले किले के मूल जर्जर रूप को चित्रित किया फिर उसके दरों दीवार को रंगो से सजाकर पुराने वैभव में जीवंत करने की कौशिश की है।''(13) '''इनके अलावा उन्होंने कुचामन फोर्ट, बूंदी के सुख महल, रावत भाटा के भैंसोरगढ़ किले और जयपुर के विश्व प्रसिद्ध आमेर व जयगढ़ फोर्ट को भी अपनी सोच से कलात्मक अंदाज में चित्रित किया है। आमेर व जयगढ़ के साथ उन्होंने मावठा झील को भी इस अंदाज में चित्रित किया जिससे उसके पानी में इन दोनो किलों का प्रतिबिंब नजर आता है।''(14) ''खेतांची द्वारा बनाई गई कलाकृति ‘‘सामने टीन की एक छत'' को प्रसिद्ध कवि श्री अशोक चक्रधर की कविता के साथ एक समाचार पत्र में प्रकाशित किया गया था”।(15)

चित्र संख्या-8 सिटी एंकर न्यूज पेपर

रियलिस्टिक और सरियलिस्टिक कार्य करने के बाद कुछ समय के लिए वाा छुट्टियां मनाते है और कहते है की- मैरी तो छुट्टियां भी कैनवास पर ही होती है। जैसे साल भर मैंने रियलिस्टिक कार्य कर लिया, उसके बाद कुछ समय के लिए ब्रेक चाहिए तो मैं एब्स्ट्रेक्ट आर्ट करता हूँ, रंगों से खेलता हूँ, कैनवास के साथ खेलता हूँ, पेंटिंग बनाता हूँ और उन्हें वापस भी मिटा देता हूँ। वह जो छुट्टियां होती है वह भी उन्हें कुछ ना कुछ नया सिखा कर जाती है। नवीन प्रयोग करना, नई टेक्निक, नए टेक्चर आदि कुछ ना कुछ सीखने को मिलता ही है। अतः प्रत्येक वर्ष में महीने-दो महीने वो ऐसे ही अपनी छुट्टियां कैनवास और कलर्स के साथ एंजॉय करते हैं।

एब्स्ट्रेक्ट आर्ट और कैनवास पर खेतांची की खोज

उनको पेंटिंग में हमेशा कुछ ना कुछ नया चैलेंज चाहिए होता है। यदि किसी पेंटिंग में कोई चुनौती नहीं होती है तो वह पेंटिंग हमेशा अधूरी रह जाती है। इसलिए उन्होंने बताया कि रियलिस्टिक में उन्होने बहुत काम किया है जो विषय को लेकर ही है। मेरी प्रत्येक प्रदर्शनी किसी न किसी विषय को लेकर ही होती है। एक विषय होता है तो आपके एक्सप्रेशंस हमेशा कंटिन्यू होते है। हम इसमें और क्या-क्या कर सकते हैं और इसमें क्या नया ला सकते हैं वही सब चलता रहता है। कुछ समय पहले ही जब महामारी आई तो उसमें कलाकार अर्जुन प्रजापति जी चल बसे। मैं उनको याद करना चाहता हूँ क्योंकि वो मैरे कलागुरु भी रहे हैं। उनके गुजर जाने के बाद में उनमें थोड़ा बहुत परिवर्तन आने लगा और वह खुद की तलाश में लग गए हैं। उन्होंने लोगों के लिए बहुत कुछ बनाया है। अब वह खुद की खोज में लग गए हैं और अपने रंगों और कार्य को क्लासिकल रूप में लाने की इच्छाएं रखते है। जिसे बनाने में लगे हैं और उसी को उन्होंने महसूस भी किया हैं।

चित्र संख्या-9 अनटाइटल

उनके द्वारा रची गई कलाकृति चित्र संख्या-10 में उन्होने वो दिखाने की कोशिश है जो इंसान असल में जैसा होता है वैसा वह दिखता नहीं है। जैसे कि कवि उदाहरण देकर कहते हैं कि तू तो कौवे जैसा चतुर है या तू तो गधे जैसा सीधा है। वही चीज उन्होंने अपनी पेंटिंग में लाने की कोशिश की है। यह सीरीज उनकी प्रारंभ होने से पहले ही किसी कारण वश अधूरी रह गई और पूर्ण नहीं हो सकी। कभी भविष्य में इस सीरीज के ऊपर वह कार्य करने की बात करते हैं। उन्होंने रियलिस्टिक पेंटिंग के साथ बहुत सी क्रिएटिविटी वाली पेंटिंग भी बनाई है।

चित्र संख्या-10 अनटाइटल

खेतांची का मानना है कि किसी भी पेंटिंग को बनाने में उन्होने जो महसूस किया है, जो एंजॉय  किया, उतना ही या उससे भी अधिक आनंद उसको देखने वाले दर्शक को महसूस हो। उन्होंने बताया कि वह अपनी कला को बनाने में वो जो महसूस करते हैं वही सब कुछ कलाकृति से वापस रिटर्न में मिलता है। यही उनकी हमेशा से खोज रही है कि वो अपनी पेंटिंग में ऐसा क्या चित्रण करें जो उनको खुद को ही प्रभावित करें। जो कला उनको प्रभावित नहीं कर पाती वह हमेशा अधूरी रह जाती है। उन्होंने बताया कि खोज निरंतर जारी है उनको खुद को भी नहीं पता कि वो क्या खोज रहे हैं, और क्या कर रहे हैं। वह लगातार पेंटिंग बनाते जा रहे हैं उसी में लगे रहते हैं अपना सारा समय स्टूडियो में ही बिताते हैं, वही सोते हैं, वही खाते हैं, वहीं पर रहते हैं।

इस पेंटिंग में प्रत्येक चेहरे के अलग-अलग भावों को उन्होंने एक ही व्यक्ति के अनेक चेहरों में दिखाने की कोशिश की है। एक व्यक्ति के सबकॉन्शियस माइंड (अवचैतन मन) की लगभग सात परतें होती है। उन सभी परतों का उस व्यक्ति के जीवन पर क्या-क्या प्रभाव पड़ता है उन्हीं को इस कलाकृति के माध्यम से अभिव्यक्त कर दर्शकों को दिखाने का प्रयास किया है। इस पेंटिंग का सीधा मतलब यही है कि जो व्यक्ति जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है, जैसा होता है वैसा दिखता नहीं है। उसके आंतरिक मन में जो चल रहा है, कभी वो खुश है, कभी वह दुखी है, उसके मन में किसी विचार को लेकर गंभीर सोच और कुंठाऐ भरी पड़ी है। उसका किसी को पता नहीं होता। वह क्या-क्या कर चुका है, इसका तो हमें पता होता है परंतु आने वाले कुछ ही पल में वह क्या करेगा, क्या सोचेगा, क्या कर सकता है इसका हमको कोई ज्ञान नहीं होता है। इस कलाकृति के माध्यम से उन्होंने यही अभिव्यक्त करने की कोशिश की है जिसमें वह बहुत हद तक सफल भी रहे हैं। 

''म्यूजियम ऑफ बेल्जियम में उनकी तीन पेंटिंग प्रदर्शनी के लिए चयनित की गई थी जिनमें एक तो राधाकृष्णन दूसरी महात्मा गांधी तृतीय श्री लक्ष्मी जी की हैं”।(16)


निष्कर्ष : आधुनिक जमाने के इस दौड़ में कलाकारों ने अपनी कलाभिव्यक्ति का चिंतन कर अपने सौन्दर्यपूर्ण विचारों को अपनी पूर्ण लगन के साथ प्रस्तुत कर नई-नई शैलियों में उभार कर अपनी कला को सम्पूर्ण अभिव्यक्ति देने में जुटे हुए है। कलाकार प्राचीन विषयगत बन्धनों से मुक्त होकर नवीनतम आधार व सतहों का प्रयोग करके निरन्तर बदलाव में नवीनता लाने का प्रयास कर रहें है। कलाकार खेतांची ने भी ऐसे तैलीय रंग के माध्यम का प्रयोग कर अपने कार्य को विकसीत किया है जिसमें वें अभी भी नये प्रयोग करते रहते है। वर्तमान समय में उनकी कलाकृतियां समसामयिक कला में महत्वपूर्ण योगदान निभा रही है। कला के शुरूआती दौर से देखे तो यह बात तो पूर्ण स्पष्ट हो गई कि कलाकार अपने आस-पास के दृश्य जगत को प्राभमिकता देकर उसे चित्रित करता आया है। कला के क्षेत्र में भारतीय कलाकारों को खूब सफलता प्राप्त हुई, जहाँ कलाकारों के दृश्य यथार्थ के भीतर छिपे वस्तुनिरपेक्ष गुणधर्मो को पहचान कर उनके सौन्दर्य को स्वीकारा है। कलाकार खेतांची ने अधिकतर राजस्थान की संस्कृति से प्रभावित दृश्यों का चित्राकंन किया है। उनके चित्रों में मुख्य रूप से राजपूती महिलाओं का चित्राकंन अधिक देखने को मिलता है, जिनका दिव्य स्वरूप हम उनकी चित्र शृंखला ‘साज-शृंगार‘ में आसानी से देख पाते है। इनके अलावा उन्होने राजस्थान की हवेलियां, महलों, किलों आदि को सजीव रूप में चित्रित किया है। उन्होने विश्व प्रसिद्ध कलाकृति मोनालिसा को दो अलग-अलग रूपों में चित्रित किया इसके साथ ही उन्होने विभिन्न प्रकार की कला संस्कृति के चित्रों के साथ नवीन प्रयोग कर कलाकृतियों में अपनी काल्पनिक अभिव्यक्ति को प्रमुख स्थान देकर चित्रण किया है। इनकी कला आधुनिक व समसामयिक कला के क्षेत्र में विशेष स्थान रखती है। उनकी कला ने न केवल भारत में बल्की विदेशों में भी अपनी पहचान बनाई और सफलता हांसिल की है। उन्होने नये कलाकारों को सृजनात्मकता के क्षेत्र में नवीन रास्ते दिखाए जिससे नये कलाकार उनकी कला से प्रभावीत होकर स्वतंत्र रूप से सृजन कर रहें है।

कलाकार-श्री गोपालस्वामी खेतांची

सन्दर्भ :
  1. Art Positive, Edited by Shushma K Bahl, E-General, Imaging Sai, Page No. 12
  2. https://en.wikipedia.org/wiki/Gopal_Swami_Khetanchi
  3. https://en.wikipedia.org/wiki/Gopal_Swami_Khetanchi
  4. https://youtu.be/xYWK5IiqI0Y?si=lcfX2GmNRar12veZ
  5. https://en.wikipedia.org/wiki/Gopal_Swami_Khetanchi
  6. Maell’s, Erik, Mona Lisa Reimagined, Goff Books Publication, San Francisco, New York, 2015, Page No. 87
  7. Colour Canvas, New Delhi, 16-31 March 2022, Page No. 7
  8. राजस्थान पत्रिका, सिटी रिपोर्ट, जयपुर, दिनांक 24 अगस्त 2017
  9. रंग शब्द, प्रदर्शनी पत्रिका, दिनांक 19 अप्रेल 2021
  10. राजस्थान पत्रिका, सिटी रिपोर्ट, जयपुर, दिनांक 24 अगस्त 2017
  11. राजस्थान पत्रिका, सिटी रिपोर्ट, जयपुर, दिनांक 22 नवम्बर 2018
  12. नवभारत टाइम्स, न्यूज पेपर, दिल्ली, दिनांक 30 नवम्बर 2018
  13. राजस्थान पत्रिका, सिटी एंकर, सिटी रिपोर्ट, जयपुर, दिनांक 24 अगस्त 2017
  14. राजस्थान पत्रिका, सिटी एंकर, सिटी रिपोर्ट, जयपुर, दिनांक 15 अगस्त 2017
  15. सिटी भास्कर, जयपुर, दिनांक 17 मार्च 2020
  16. Art Positive, by Gopal Swami Khetanchi, E-General, Gandhi Giri, Page No. 6

रवि प्रसाद कोली
शोधार्थी, चित्रकला विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
Dangara160@gmail.com8955883011


दृश्यकला विशेषांक
अतिथि सम्पादक  तनुजा सिंह एवं संदीप कुमार मेघवाल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-55, अक्टूबर, 2024 UGC CARE Approved Journal

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