मिस्र के कालातीत रहस्यों की अविस्मरणीय यात्रा
- दीपिका माली
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चित्र-1 कर्नाक मंदिर |
शोध सार : ’मिस्र नील नदी का वरदान है’ हेरोडोट्स द्वारा कहे इन शब्दों से हम सभी परिचित हैं, कि मिस्र देश नील नदी के किनारे बसा है और यह मिस्र की जीवन रेखा है। यह एक बेहद खूबसूरत देश है, जिसकी आबोहवा में भी आपको ऐतिहासिकता की सुगंध का अनुभव होगा। यह देश सचमुच कई सारे रहस्यों से भरा पड़ा है और जब आप इस देश को एक कलाकार की नजर से देखते हैं तो आपको अपनी कल्पना के नए आयाम मिलते हैं। बचपन से लेकर आज तक हम सभी मिस्र के बारे में पढ़ते और सुनते आए हैं। मेरी तरह कई लोगों की यह जिज्ञासा भी रही होगी कि आखिर 5000 वर्षों पहले किस तरह यह देश इतना समृद्ध और इतना विकसित रहा होगा। हाल ही में की गई मिस्र की इन पंद्रह दिनों की यात्रा ने प्राचीन और आधुनिक कला दोनों के शानदार पहलुओं का अनुभव कराया। प्राचीन पिरामिडो, मंदिरों और मूर्तियों से लेकर आधुनिक कला गैलेरियों और सांस्कृतिक स्थलों तक की यात्रा ने मिस्र की कला की गहराई और विविधता से परिचय कराया।
मिस्र, जिसे हम प्राचीन मिस्र के नाम से भी जानते हैं, इतिहास और संस्कृति का एक अनूठा संगम है। यह देश अपनी अद्भुत धरोहर, भव्य पिरामिडों और रहस्यमय ममीकरण की प्रक्रिया के लिए प्रसिद्ध हैं। इस यात्रा के दौरान मैंने मिस्र के ऐतिहासिक स्थलों का अनुभव किया, जो मेरे जीवन के सबसे यादगार अनुभवों में से एक है।
यात्रा की शुरुआत लक्सर से हुई, यहाँ किंग्स वैली, कर्णाक और लक्सर मंदिरों का भ्रमण करने का अवसर मिला। इन प्राचीन स्थलों पर जाकर मुझे मिस्र की प्राचीन सभ्यता और उनके धार्मिक विश्वासों की गहरी समझ प्राप्त हुई। यहाँ के भित्तिचित्र और चित्रलिपि भी बेहद आकर्षक और रहस्यमय थी। जो प्राचीन जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं।
काहिरा में स्थित गीजा पिरामिड और स्फिंक्स ने मुझे अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व से अभिभूत कर दिया। पिरामिडों की विशालता और उनके निर्माण की प्राचीन तकनीक आश्चर्यचकित करने वाली है। स्फिंक्स जो एक विशाल सिंह-मानव आकृति है, उसकी रहस्यमय उपस्थिति ने मेरे मन में अनेकों प्रश्न उत्पन्न किए। इन संरचनाओं के दर्शन ने मुझे प्राचीन मिस्र की शक्ति, ज्ञान और उनकी वैज्ञानिक क्षमताओं का गहराई से परिचय कराया।
बीज शब्द : मिस्र, कर्नाक मंदिर, लक्सर मंदिर, राजा की घाटी (वैली ऑफ किंग्स), हाथोर मंदिर, हाइपोस्टाइल हॉल, मिस्री खानपान, गीजा के महान पिरामिड, मिस्र संग्रहालय, काहिरा शहर।
मूल आलेख : मिस्र देश की यात्रा हमेशा से ही मेरी इच्छा सूची में सबसे ऊपर रही है। बचपन से जब भी मिस्र देश के बारे में पढ़ा या सुना है हमेशा किसी न किसी तरह का जुड़ाव महसूस किया है। मिस्र एक ऐसा देश है जो
इतिहास, संस्कृति और रहस्यों से भरा हुआ है। जब भी आप मिस्र की यात्रा पर निकलते हैं तो आप न केवल प्राचीन सभ्यताओं की गहराई में उतरते हैं बल्कि एक ऐसा अनुभव प्राप्त करते हैं जो आपके जीवन भर की यादों में बसा रहेगा। पर्यटक शुरू से ही इस देश की ओर आकर्षित होते रहे हैं। इसका विविधतापूर्ण और समृद्ध इतिहास हर मोड़ पर स्पष्ट दिखाई देता है। रेगिस्तानी परिदृश्य से लेकर पूरे मिस्र में फैले प्राचीन किले, मंदिर और मठ मिस्र के सबसे प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षण रहे और निश्चित रूप से गीजा में प्रतिष्ठित पिरामिड और स्फिंक्स दोनों को दुनिया के प्रमुख आश्चर्यों में से एक माना जाता है, जो मिस्र के दर्शनीय स्थानों में से सबसे लोकप्रिय है।
मिस्र की यात्रा मेरे लिए एक सपना जैसा था और इस सपने को जीने का मौका था, लक्सर आर्ट सिम्पोजियम में भारत की ओर से कलाकार के रूप में प्रतिनिधित्व करना। मिस्र की यात्रा के लगभग एक माह पूर्व मुझे मेल मिला, जिसमें लक्सर आर्ट सिंपोजियम का निमंत्रण था, मेल पढ़कर मन ही मन बहुत खुशी हुई। जाहिर था बचपन का सपना सच होने जा रहा था, लेकिन मन में थोड़ी घबराहट थी जिसका कारण गाजा पट्टी पर चल रहा विवाद था। मैं इतने अच्छे मौके को छोड़ना भी नहीं चाह रही थी इसलिए कुछ विद्वतजनों से सलाह ली कि इस समय वहाँ जाना सुरक्षित होगा भी या नहीं। इसी के साथ कुछ परिचित मित्र जो पूर्व में मिस्र की यात्रा कर चुके थे, उनसे भी फोन पर वीजा संबंधित जानकारियां ली। खैर एक महीने तक यात्रा की सारी तैयारी कर 9 मई 2024 आखिरकार वह दिन आ ही गया। यात्रा का प्रारंभ उदयपुर से हुआ। मैं उदयपुर से मुम्बई एयरपोर्ट पहुंची जहाँ वीरांगना मेरा पहले से इंतज़ार कर रही थी। मुम्बई से रात तीन बजे की फ्लाइट थी जिसने हमें जेद्दा (अरब देश) सुबह 6:50 पर पहुंचाया।
जेद्दा एयरपोर्ट पर हमें पांच घंटे का ठहराव मिला। जिससे हमें थोड़ा आराम करने का मौका मिल गया। अगली उड़ान जेद्दा से 12:30 पर काहिरा (मिस्र की राजधानी) के लिए थी। फ्लाइट की पास वाली सीट पर एक मित्र बनी जो काहिरा की निवासी थी। लगभग तीन घंटे तक बातचीत के दौरान उन्होनें हमें मिस्र देश की महत्त्वपूर्ण जानकारियां प्रदान की और वहाँ के पर्यटन स्थलों तक कैसे पहुंचा जा सकता है वह भी बताया। काहिरा में लैंड करने के लगभग 10 मिनट पूर्व विमान में घोषणा हुई कि यात्री दाईं ओर से पिरामिड को देख सकते हैं। सौभाग्य से हम इस ओर खिड़की वाली सीट पर ही बैठे थे तो मोबाइल के कैमरे से इस अविस्मरणीय दृश्य को कैद कर बड़ी खुशी का अनुभव कर रहे थे।
काहिरा एयरपोर्ट पर हम विमान से बाहर निकले और सामने हमें रिसीव करने आए मिस्र टूरिज्म डिपार्टमेंट से जिनके हाथों में हमारे नाम की तख्ती थी। जिस पर हमारे नाम के साथ ’वेलकम टू इजिप्ट’ लिखा था। मुस्कुराते चेहरों से उन्होंने हमारा स्वागत किया और हमें टैक्सी में बिठाकर डोमेस्टिक एयरपोर्ट पर ले गए जहाँ हमें लक्सर की उड़ान भरनी थी शाम को साढे सात बजे लक्सर के लिए उड़ान ली और तारों की तरह जगमगाते काहिरा को आसमान से देखते हुए हम रात 9 बजे मुख्य गंतव्य स्थान पर पहुंचे। एयरपोर्ट से बाहर आते ही लक्सर आर्ट सिंपोजियम की तख्ती पर हमारे नाम दिखे और ’वेलकम टू लक्सर’ कहते हुए उन्होंने हमारा सामान लिया और हमें होटल की गाड़ी में बिठाया। होटल पहुंचने पर हम लक्सर आर्ट सिंपोजियम के क्यूरेटर इब्राहिम रेडा से मिले जिन्होंने हमें इस दस दिवसीय आर्ट सिंपोजियम की संक्षिप्त जानकारी दी। क्योंकि दिन भर की थकान थी तो डिनर करके हम मिस्र में पहली रात को जल्दी सो गए।
मिस्र में पहली सुबह छः बजे से शुरू हुई। हमारी होटल नील नदी के एकदम किनारे पर थी। जहाँ हमारे कमरे की बालकनी के सामने नदी के उस पार आकाश में उड़ते हुए हॉट एयर बैलून दिखे जो कुल मिलाकर पच्चीस – तीस रहे होंगे। एकदम साफ-सुथरी नीली नीली नदी के ऊपर इन सतरंगी हॉट एयर बैलून को देखकर मानो दिन बन गया। तभी मोबाइल पर मैसेज आया कि सुबह दस बजे आर्ट सिंपोजियम का उद्घाटन किया जाएगा, तो सभी कलाकार जल्दी से नाश्ता करके तैयार होने लग गए। इस आर्ट सिंपोजियम में भारत से हम तीन कलाकार थे। वहीं मिस्र, फिलिस्तीन, रशिया, जॉर्डन से करीब बाइस कलाकार इस आर्ट सिंपोजियम में भाग ले रहे थे। मिस्र देश और इसके लोगों ने खुले दिल से हम सभी कलाकारों का स्वागत किया। कलर किट और कैनवस सभी कलाकारों को दिए गए, जहाँ दस दिन में सभी को दो पेंटिंग बनानी थी।
वाकई मिस्र की यात्रा के ये पंद्रह दिन यादगार रहेगें। हिंदुस्तान को वहाँ अल हिंद कहा जाता है। बाजार में रह रहकर इधर-उधर से आवाजें आती रहती हैं इंडिया...... इंडिया........ जी हां हम इंडिया से हैं। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, करीना कपूर के दीवाने हैं वहाँ के लोग। इजिप्ट बॉलीवुड को बेइंतहा चाहता है। इस बात का अंदाजा नहीं था कि इजिप्ट में भी वे हमारी पहचान है। हर तरफ ’लव यू इंडिया’, ’इंडियन इजिप्शियन ऑर ब्रदर’ की आवाज कानों में आ रही थी। अभिनेताओं के साथ-साथ इंडियनस् को भी बहुत पंसद करते हैं इजिप्ट के लोग।
लक्सर घूमने से पहले इसके बारे में थोड़ा मालूम किया तो पता चला की लक्सर दो भागों में बटां है ईस्ट बैंक और वेस्ट बैंक। लक्सर में जितने भी मंदिर और मठ बनाए गए हैं वह सभी नील नदी के इस किनारे यानी कि ईस्ट बैंक में स्थित है जहाँ पूजा, राज्याभिषेक और समारोह जैसे अन्य आयोजन हुआ करते थे। वहीं दूसरी ओर नील नदी के पश्चिम में वेस्ट बैंक में फरोह को दफनाने के लिए कब्रें बनाई गई हैं यानी की मृत्यु अंत्येष्टि संबंधी सभी कार्य वेस्ट बैंक में किए जाते थे।
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चित्र संख्या- 2 किंग्स वैली |
हमारी यात्रा का प्रांरभ लक्सर से हुआ। लक्सर मिस्र का एक ऐतिहासिक शहर है जिसे प्राचीन समय में थेब्स के नाम से जाना जाता था। आर्ट सिंपोजियम के कार्यक्रम में लक्सर के ऐतिहासिक स्थलों की विजिट भी शामिल थी। लक्सर में हमारी यात्रा का पहला स्थल कर्नाक मंदिर था, जो लगभग 2000 वर्ष पूर्व बना था। कर्नाक मंदिर के मध्य में स्थित ग्रेट हाइपोस्टाइल हॉल 134 विशाल बलुआ पत्थर के स्तंभो का एक जाल सा है जो विशाल दीवारों से घिरा हुआ है। प्रत्येक स्तंभ के शीर्ष पर पेपीरस का फूल बना हैं। सेटी प्रथम1 ने इस विशाल और भव्य हॅाल का निर्माण करवाया था। यहाँ के विशाल स्तंभ, उकेरे गए चित्र और मंदिरों की भव्यता आपको प्राचीन मिस्र की धार्मिकता और साम्राज्य की शक्ति का एहसास कराती हैं। यह स्थल प्राचीन मिस्र के धार्मिक अनुष्ठानों और रॉयल प्रभाव की झलक प्रदान करता है। कर्नाक मंदिर की ऐतिहासिकता से परिचित हो हमारा कलाकार समूह एक यादगार फोटो लेकर फिर होटल की ओर रवाना हुआ। (चित्र सं. 1 )
रात को सभी कलाकारों ने अपनी-अपनी कला का और स्वयं का परिचय दिया। देर रात तक सभी कलाकारों ने एक-दूसरे से खूब सारी बातचीत की।
लक्सर में तीसरा दिन किंग्स वैली को देखने का मौका मिला। किंग्स वैली लक्सर में नील नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। अन्दर प्रवेश करने के लिए टिकिट लिया गया, जो किंग्स वैली की सबसे प्रसिद्ध केवल तीन कब्रों में प्रवेश की अनुमति देता है। तूतनखामुन की कब्र में प्रवेश के लिए एक अलग टिकट की आवश्यकता होती है हालाँकि अतिरिक्त लागत देखते हुए यहाँ थोड़ी निराशा हुई और हम तुतनखामुन की कब्र नहीं देख पाए। यहाँ सबसे प्रसिद्ध फरोह तूतनखामुन, सेटी प्रथम और रामसेस द्वितीय की कब्र हैं। पहली नजर में किंग्स वैली में धूप से झूलसी हुई सफेद चूना पत्थर की चट्टानों की घाटी से अधिक कुछ नहीं दिखता है, लेकिन इस सारी धूल व चट्टानों के नीचे प्राचीन मिस्र के इतिहास के 63 सबसे महत्त्वपूर्ण फारोह की कब्रें हैं, जिनका लगभग 500 वर्षों तक शासन रहा। साथ ही यहाँ रानियां, उच्च पुजारी और उस युग के अन्य लोगों की शाही कब्रें भी देखी जा सकती हैं। इन कब्रों से कई प्रकार के कलात्मक अवशेष व वस्तुएं पाई गई थी जो वर्तमान में काहिरा में मिस्र संग्रहालय में देखी जा सकती हैं। प्राचीन मिस्र के लोग मृत्यु के बाद के जीवन में दृढ़ता से विश्वास करते थे, यही कारण है कि शरीर को सुरक्षित करने के लिए ममीकरण की प्रक्रिया महत्त्वपूर्ण थी ताकि मृत शरीर सुरक्षित रह सके और शाश्वत आत्मा को मृत्यु के बाद फिर से जीवन मिल सके। प्राचीन कब्रों में मृतकों से संबंन्धित वस्तुएं थी क्योंकि ऐसा माना जाता था कि उन्हें अनंत जीवन जीने के लिए इन सभी वस्तुओं की आवश्यकता हो सकती है। (चित्र सं.2)
सन् 1922 में हार्वर्ड कार्टर2 द्वारा की गई खोज में किंग्स वैली में सबसे महत्त्वपूर्ण कब्रों में से एक तूतनखामुन के मकबरे से मिला खजाना है, जो मिस्री इतिहास के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण खोज थी। कब्र के अंदर प्रवेश करने पर खभों वाले कक्ष हैं और लंबे गलियारे के आखिरी छोर में एक दफन कक्ष है जिसमें एक ग्रेनाइट पत्थर का बड़ा ताबूत सरकोफेगस है, जिसमें शाही ममी रखी जाती थी। कब्र की दीवारों पर कहीं भी खाली जगह नहीं दिखेगी। पूरी पूरी दीवार को उकेरे गए चित्रों (हियरोग्लिफ्स- जो प्राचीन मिस्र की चित्रलिपि थी) से सजाया गया है। इन भित्ति चित्रों की सुंदरता प्राचीन मिस्र की कला की गहराई को दर्शाते हैं।
लंच के बाद हमें लक्सर पुरातात्विक संग्रहालय देखने ले गए, जंहा प्राचीन मिस्री साम्राज्यकाल से लेकर इस्लामी काल की उच्च गुणवत्ता वाली कलाकृतियों का प्रभावशाली संग्रह है, लक्सर संग्रहालय में राजाओं, रानियों और उच्च पद वाले अधिकारियों की खड़ी ग्रेनाइट मूर्तियां हैं, जिन्होंने थेब्स मंदिरों में अपनी छाप छोड़ी हैं। संग्रहालय के मध्य भाग में दो लंबे हॉल हैं, जिनमें मध्य में कांच के बने ताबूत हैं, जो महान योद्धा अहमोस प्रथम और फरोह रामसेस प्रथम की ममी के लिए विश्राम स्थल हैं। यहाँ आपको निकास के ठीक पहले बाईं ओर एक छोटा कक्ष मिलेगा, जिसमें 16 प्रभावशाली मूर्तियां दिखाई देगी, जिन्हें 1989 में लक्सर मंदिर में खोजा गया था (जैसा की वहाँ चल रही वीडियो में बताया जा रहा था।) यह सभी मूर्तियां प्राचीन मिस्र की मूर्तिकला के गौरवशाली साम्राज्य के अद्वितीय उदाहरण हैं। संग्रहालय में नई सुविधाओं में एक किताबों की दुकान और कैफेटेरिया शामिल हैं।
लक्सर में तीन शामें हम सभी कलाकारों ने डाउन टाउन एरिया में स्थित उम्म कुलथूम कैफे में बिताई जो बाजार के केंद्र में स्थित है। जहाँ हर तरफ शीशा (हुक्का) पीते हुए लोग नजर आएंगे। कैफे में चारों ओर उम्म कुलथूम की फोटो लगी हुई थी। यह अपने समय की मशहूर गायिका और अभिनेत्री थी जिसे ‘वाइस ऑफ इजिप्ट’ कहा जाता है।
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चित्र- 3 लक्सर मंदिर |
अगला पूरा दिन पेंटिग करने में बीता। शाम को हम सभी लक्सर मंदिर और हबू मंदिर घूमने गए। लक्सर मंदिर नील नदी के पूर्वी तट पर स्थित है और यह प्राचीन मिस्र का सबसे बड़ा और सबसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक केंद्र था। वर्तमान में इस विशाल परिसर के अवशेषों में विशाल कॉलोनेड ग्रेट हॉल शामिल है जो लगभग 61 मीटर लंबा है जिसमें 21 फीट से अधिक ऊंचे स्तंभ है। यह मंदिर 18वें राजवंश का है। मंदिर का मुख्य भाग अमीनेहोतेप तृतीय3 द्वारा बनवाया गया था। लक्सर मंदिर अमून-रा के सम्मान में बनाया गया था, जो फरोह के राज्याभिषेक हेतु समारोह स्थल के रूप में प्रयोग में लिया जाता था। थेब्स शहर में स्थित लक्सर मंदिर ‘‘लगभग 3500 वर्षों’’ के बाद भी खड़ा है। मंदिर में प्रवेश करने के लिए पहले तोरण से गुजरना पड़ता है। तोरण के दोनों ओर रामसेस द्वितीय की विशाल प्रतिमाएं हैं। प्रवेश द्वार पर दो पत्थर के स्तंभों को चिन्हित किया गया था हालाँकि आज केवल एक ही खड़ा है, जिसे ओबेलिस्क कहा जाता है, यह एक लंबा पत्थर का खम्भा होता है जिसके ऊपर पिरामिड जैसा शीर्ष होता है, जिसे फरोह द्वारा उपलब्धियां का जश्न मनाने के लिए बनाया जाता था। (चित्र सं. 3)
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चित्र- 4 हबू मंदिर |
लक्सर के अन्य प्रसिद्ध मंदिरों में मेडिनेट हबू मंदिर हैं। रामसेस तृतीय द्वारा निर्मित यह मंदिर अंत्येष्टि मंदिर के लिए जाना जाता है। इस मंदिर में अद्वितीय सीरियाई गेट से प्रवेश किया जाता है, बाहरी द्वार पार करने के बाद हात्सेपसुट काल का एक चैपल अभी भी ऊपर की ओर छत पर दिखाई देता है। यहाँ भित्ति पर उकेरे चित्रों में मिस्रियों और हितीयों के बीच प्रसिद्ध युद्ध का अंकन मिलता है, जिसमें रामसेस तृतीय को युद्ध में विजेता के रूप में अंकित किया गया है। उकेरे चित्रों में एक भयानक दृश्य भी है जिसमें कई कटे हुए हाथ बने हैं जिनसे शैतानों और मारे गए दुश्मनों की संख्या गिनी जाती है। (चित्र सं. 4)
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चित्र- 6 हाथोर मंदिर |
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चित्र-5 हाथोर मंदिर |
हाथोर मंदिर जो लक्सर से लगभग 60 किलोमीटर दूर है, क्योंकि यह सिंपोजियम की विजिट में शामिल नहीं था इसलिए समय चुराकर हम प्राइवेट टैक्सी कर सुबह जल्दी हाथोर मंदिर की ओर निकल गए, जिसे डेडेंरा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह प्राचीन मिस्र में प्रेम, खेल, नृत्य और संगीत की देवी हाथोर को समर्पित है। इस मंदिर को अवश्य देखा जाना चाहिए क्योंकि यह बहुत अच्छी स्थिति में सुरक्षित है इसकी सुंदरता अभी भी बरकरार है और इस मंदिर की सबसे प्रमुख बात है कि यह एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ आप ऊपर छत तक जा सकते हैं और नीचे तहखानों तक भी जा सकते हैं। यह मंदिर एक ग्रीक रोमन मंदिर है जो प्राचीन मिस्र के मंदिर के खंडहरों पर बना है इसका निर्माण 12वें राजवंश के समय हुआ था। इस मंदिर के अंदर सबसे लोकप्रिय चित्र क्लियोपैट्रा सप्तम, जूलियस सीजर और उनके पुत्र सिजेरियन का है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों ओर हाथोरिक स्तंभ बने हैं जिन पर देवी हाथोर के प्रतीक अंकित है, जो गाय जैसी दो कानों वाली स्त्री के रूप में हैं। मंदिर के स्तंभों वाले हॉल में गए, जहाँ स्तंभों को देवी हाथोर के सिर से सजाया गया है। मुखौटे की तरह स्तंभों की यह छत अद्भुत है जिस पर नीला रंग साफ नजर आता है। इस छत को सात भागों में विभाजित किया गया है, जिसमें मिस्र की पौराणिक कथाओं के साथ अंतिम भाग की छत पर मिस्र के राशि चक्र को सजाया गया है, जिसमें उन सभी राशियों को दर्शाया गया है, जिनका आज हम प्रयोग कर रहे हैं। मंदिर की पिछली दीवार पर एक विशाल दृश्य बना हुआ है जिसमें क्लियोपैट्रा सप्तम को दिखाया गया है। (चित्र सं.5,6)
आर्ट सिंपोजियम की आखिरी शाम को आयोजकों की ओर से सभी कलाकारों के लिए एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें ढेर सारे मिस्री व्यंजनों के साथ-साथ देर रात तक पारंपरिक मिस्री नृत्य बलेडी या बालादी और तनोरा का आनंद लिया।
17 मई की शाम को कैंप में बनी हुई पेंटिग्स को प्रदर्शित किया गया। साथी कलाकारों ने एक-दूसरे के साथ स्मृतियों को कैमरे में कैद किया। आर्ट सिंपोजियम समाप्त होने के साथ ही लक्सर की दस दिन की यात्रा भी समाप्त हुई। लगभग सभी कलाकारों की विदाई हो चुकी थी। हम चार लोगों मिलकर मिनी बस बुक की, बस से अगले दिन सुबह छः बजे निकले जो हमें लक्सर से आस्वान के बीच के मंदिरों को बताते हुए आस्वान तक ले गई। (चित्र सं. 7)
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चित्र- 7 आर्ट सिंपोजियम |
लक्सर से आस्वान तक मिस्र के पांच सर्वश्रेष्ठ मंदिर : आर्ट कैंप समाप्त होने के बाद हमारा अगला ठहराव आस्वान था। जहाँ दो दिन की यात्रा में हमने कोंम ओम्बो मंदिर, इडफु मंदिर, एस्ना मंदिर, फिले मंदिर और अबू सिंबल मंदिर देखे। आस्वान में हम नूबियन विलेज की एक होटल में ठहरे। नील नदी की धारा के किनारे बसा नूबियन विलेज बेहद रंग-बिरंगा, शांत और सादगी से भरे इस गांव का नजारा बहुत खूबसूरत है। यहाँ के लोगों का साधारण जीवन मिस्र की ग्रामीण संस्कृति का एक खूबसूरत दृश्य प्रस्तुत करता है।
कोंम ओम्बो मंदिर लक्सर से 165 किलोमीटर दूर स्थित है। यह मिस्र के सबसे महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों में से एक है, जो यह मिस्र के देवता सोबेक और देवता होरस को समर्पित है, यह अद्वितीय है, इसमें दो प्रवेश द्वार और प्रत्येक देवता को समर्पित दो हॉल हैं, जिसमें दीवारों को प्राचीन मिस्र की पौराणिक कथाओं के विभिन्न दृश्यों से सजाया गया है व चित्रलिपि से सजाए गए स्तंभ हैं। मंदिर के पास एक छोटा संग्रहालय भी है जिसमें ममीकरण से संबंधित कलाकृतियाँ प्रदर्शित की गई है। यहाँ कई ममीकृत मगरमच्छ और प्राचीन काल में इस क्षेत्र में प्रचलित मगरमच्छ पंथ से संबंधित विभिन्न कलाकृतियाँ और वस्तुएँ प्रदर्शित हैं। यह संग्रहालय मंदिर परिसर के भीतर स्थित है, जिसमें प्रवेश मंदिर में जाने वाले टिकट भी शामिल हैं।
इडफु मंदिर 237 और 57 ई पूर्व4 के बीच बना यह टॉलेमिक मंदिर मिस्र के सबसे बेहतरीन सुरक्षित प्राचीन स्मारकों में से एक है, जिसे होरस का मंदिर कहा जाता है। न्यू किंगडम में बना यह मंदिर वास्तव में 2000 वर्ष पुरानी स्थापत्य शैली का सुन्दर उदाहरण है, जो अवधारणा और डिजाइन में फारोनिक वास्तुकला की सामान्य योजना, पैमाने, अलंकरण और परंपराओं का पालन करता है। प्रवेश द्वार पर विशाल 36 मीटर ऊंची दो शानदार ग्रेनाइट मूर्तियां हैं, जिसमें होरस देवता को बाज के रूप में दिखाया गया है। प्रवेश द्वार के भीतरी भाग में परिसर तीन तरफ से 32 स्तंभों से घिरा हुआ है, जिनमें से प्रत्येक पर अलग-अलग पुष्प शिखर (पेपीरस) है। दीवारों को उभरी हुई कलाकृतियों से सजाया गया है। काले ग्रेनाइट में एक होरस की मूर्ति मंदिर के बाहरी हाइपोस्टाइल हॉल के प्रवेश द्वार के किनारे लगी है। मंदिर में आने का एक मुख्य कारण प्राचीन मिस्र की नाव को देखना है जिसे पवित्र नाव के रूप में जाना जाता है। मिस्र के लगभग सभी मंदिरों में नावों या बार्क के कई चित्र देखे जा सकते हैं। ईडफु मंदिर एक ऐसी जगह है जहाँ आप पवित्र नाव के वास्तविक रूप को देख सकते हैं।
एस्ना शहर प्राचीन मिस्र के कुछ सबसे प्रसिद्ध चित्रों का घर है। खनुम सृष्टि के देवता को समर्पित एस्ना मंदिर का निर्माण 40 से 250 ई. के बीच हुआ था। ऐस्ना मंदिर के अवशेषों में 24 स्तंभों वाला एक हॉल है, जिसमें मिस्र के समृद्ध इतिहास के केंद्र में प्राचीन शिल्पकला और धार्मिक भक्ति का एक शानदार प्रमाण छिपा है। एस्ना का खनुम मंदिर मिस्र और रोमन शैलियों में बना बहुत अच्छी तरह से सुरक्षित और बहुत रंगीन है।
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चित्र- 8 फिले मंदिर |
आस्वान पहुंचने के बाद हमारी यात्रा का एक प्रमुख आकर्षण था फिले मंदिर और आस्वान के पास नील नदी पर नाव की सवारी। नील नदी की शांत लहरों ने इस यात्रा को और भी खास बना दिया। फिले मंदिर आस्वान में पुराने आस्वान बांध और उच्च बांध के बीच नील नदी में स्थित एगिलकिया द्वीप पर स्थित है, जहाँ आप नाव से 100 मिस्र पाउंड देकर पंहुच सकते हैं। देवी आइसिस को समर्पित यह मंदिर प्राचीन मिस्र की वास्तुकला और संस्कृति का अद्भुत उदाहरण है। सदियों से विभिन्न शासकों और राजवंशों ने मंदिर का विस्तार और संशोधन किया, जिसमें स्थापत्य शैली और कलात्मक परंपराओं का एक समृद्ध मिश्रण देखने को मिलता है। फिले मंदिर टॅाल्मिक काल और उसके पश्चात रोमन काल में सम्राट ऑगस्टस के समय बनाए गए थे, जो पुराने मंदिर की संरचना के ऊपर ही आधारित था। इसके अलावा ऑगस्टस ने कई अन्य निर्माण भी करवाए जैसे की पुस्तकालय, एम्फी थियेटर और स्नानागार। मंदिर को मिस्र की पौराणिक कथाओं को दर्शाते हुए जटिल नक्काशी और चित्रलिपि के साथ डिजाइन किया गया था इसमें आइसिस, ओसिरीस, होरस और मिस्र के अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी शामिल हैं। (चित्र सं. 8)
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चित्र-9 अबू सिंबल |
अगले दिन सुबह पांच बजे हम मिनी बस में सवार होकर 280 किलोमीटर दक्षिण में सूडान सीमा की ओर अबू सिंबल मंदिर के लिए चल पडे़, इस परिसर में एक ओर मंदिर और दूसरी तरफ विशाल झील है। दूर से आप फरोह की सिंहासनारूढ़ विशाल प्रतिमाएं देख सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि अबू सिंबल दो रहस्यमयी चट्टानी मंदिर फरोह के समय की सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली इमारतों में से हैं। अबू सिंबल मंदिरों की सबसे खास विशेषताओं में से एक है कि प्रवेश द्वार पर रामसेस द्वितीय की बैठी हुई चार विशाल मूर्तियाँ जिनमें से प्रत्येक की ऊंचाई 20 मीटर से अधिक है, वास्तव में विस्मयकारी है। महान फरोह रामसेस द्वितीय को समर्पित यह मंदिर 3000 वर्षों से भी अधिक पुराने इतिहास को समेटे हुए हैं, जो मिस्र के भव्य इतिहास में उल्लेखनीय स्थान रखता है। मूल रूप से पहाड़ी की ढलान पर खुदे हुए यह मंदिर फरोह की शक्ति का प्रदर्शन करता है। मंदिर के आंतरिक गर्भग्रह में एक बेंच पर बैठी तीन मूर्तियाँ हैं, ऐसा कहा जाता है कि वर्ष में दो बार (22 फरवरी और 22 अक्टूबर) सूर्य की किरणों से अभिषेक होता था। 1960 के दशक में आस्वान में हाई डेम के निर्माण के कारण इन मंदिरों को नासिर झील में डूबने से बचाने के लिए हजारों ब्लॉकों में काटने और उन्हें ऊंची जमीन पर फिर से जोड़ने के लिए आवश्यक प्रयास और सटीकता मानवीय दृढ़ संकल्प और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का प्रमाण हैं।
अबू सिंबल मुख्य मंदिर के पास एक दूसरा छोटा मंदिर भी है, जो रानी नेफ़रतिती के लिए बनाया गया है। इस मंदिर के सामने रानी नेफ़रतिती और देवी हाथोर की दो मूर्तियाँ और रामसेस की चार मूर्तियाँ हैं, जिनमें से प्रत्येक की ऊंचाई लगभग 33 फिट है प्रत्येक मूर्ति चित्रलिपि से उकेरी गई बट्रेस के बीच स्थित है। यह मंदिर आज उस स्थान पर नहीं है जहाँ वह प्राचीन काल में था, जिस क्षेत्र में मंदिर मूल रूप से स्थित था, वह अब जल मग्न हो गया है। (चित्र सं. 9)
आस्वान को अलविदा कर हमारी यात्रा का अगला पड़ाव काहिरा था। काहिरा में जिस होटल को हमनें ऑनलाइन बुक किया था। वह बहुत ही ज्यादा बेकार निकला। खैर एक रात मन मार कर हमें वहीं रूकना पड़ा क्योंकि बुकिंग के वक्त हम पेमेंट कर चुके थे। मिस्र की यात्रा में एक यही बुरा अनुभव रहा। उसी रात हम पास वाली होटल ट्विल्पि देख कर उसे बुक कर आए, जो उससे कहीं ज्यादा बेहतर थी। काहिरा का डाउनटाउन एरिया बिल्कुल मुंबई जैसा लगा जहाँ हम ठहरे थे, वैसी ही पुरानी मंजिले, गलियारे और चौराहे। काहिरा में ठहरने के लिए यह एक अच्छी जगह है क्योंकि यहाँ से ताहिर स्कॉयर जो अच्छा बड़ा मार्केट है, मिस्री संग्रहालय और नील नदी (जहां से क्रूज पर जाया जा सकता हैं) के बहुत नजदीक है। हम काहिरा में तीन दिन ठहरे थे। पहले दिन पिरामिड देखे, जो इस पूरी यात्रा का सबसे मुख्य आकर्षण था।
गीजा के महान पिरामिड जिन्हें दुनिया के सात अजूबों में शामिल किया गया है, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि गीजा के पिरामिडों के प्रति आकर्षण सहस्त्राब्दियों से कायम हैं। मेम्फिस क्षेत्र के प्राचीन खंडहर जिसमें गीजा, सक्कारा, दहशूर, अबूरूवेश और अबूसिर के पिरामिड शामिल हैं, जिन्हें यूनेस्को द्वारा सामूहिक रूप से विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है। खुफु, खफ्रें और मेन्कौर पिरामिडो़ के नाम उन फरोह के नाम पर आधारित हैं, जिनके लिए उन्हें बनाया गया था। इनमें से एक है ग्रेट पिरामिड ऑफ गीजा जिसे फरोह खुफु के समय बनाया गया है। यह तीनों पिरामिड में से सबसे बड़ा पिरामिड है, इसका आधार प्रत्येक पक्ष की लंबाई औसतन 755 फिट है और उसकी मूल ऊंचाई 482 फिट थी। वर्तमान समय में अब यह 455 फीट6 के लगभग ऊंचा है। खफ्रें और मेन्कौर के समय बनाए गए पिरामिड की ऊंचाई लगभग 471 फिट और 218 फीट है। खफ्रें मंदिर के पास महान पिरामिड के दक्षिण में स्थित है, ग्रेट स्फिंक्स जो चूना पत्थर से तराश कर बनाए गए हैं, स्फिंक्स का चेहरा मनुष्य जैसा और शरीर बैठे हुए शेर जैसा है, यह लगभग 240 फीट लंबा और 66 फीट7 ऊंचा है। प्रवेश द्वार से टिकट लेकर आप पिरामिड के परिसर में प्रवेश कर सकते हैं। ग्रेट पिरामिड के भीतर प्रवेश करने के लिए आपको एक विशेष टिकट की आवश्यकता होती है, जिसे आप प्रवेश द्वार पर ही खरीद सकते हैं क्योंकि पिरामिड के अंदर राजा के कक्ष तक जाने वाला मार्ग बहुत तंग है इसलिए तेज गर्मी के समय थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए।(चित्र सं. 10)
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चित्र-10 पिरामिड |
अगले दिन मिस्र संग्रहालय देखने गए जो प्राचीन मिस्र की कला और पुरातात्विक वस्तुओं का सबसे बड़ा संग्रहालय है। यहाँ तूतनखामुन का खजाना, जिसमें प्रसिद्ध तूतनखामुन का सोने का मुखौटा एवं उसकी कब्र से निकली अन्य सोने की वस्तुएं जैसे आभूषण, सोने की कुर्सी शामिल हैं। संग्रहालय में प्राचीन मिस्र के अन्य राजाओं, रानियों और देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और अन्य ऐतिहासिक वस्तुओं का भी विशाल संग्रह है। यह संग्रहालय आपको प्राचीन मिस्र की गहराइयों में ले जाएगा और आपको इसकी समृद्धि और संस्कृति के बारे में गहराई से समझने का अवसर देगा।
उसी दिन खुशगवार शाम को नील नदी किनारे गए, जहाँ क्रूज में बैठकर अरबी गानों के साथ शाम को इंजॉय किया। पुलिया पर औरतें, बच्चे, गुब्बारे वाले, कहवा पीते लोग, तांगा गाड़ी और अजगर वाले .... जी हां कुछ लोग गले में भूरा, पीला अजगर लिए पर्यटकों के पास घूम रहे थे, जिनमें से कुछ पर्यटक अपने गले में अजगर लपेट कर फोटो भी खिंचवा रहे थे।
अगले दिन हम खान ए खलीली बाजार गए, जो काहिरा का सबसे पुराना बाजार है और देर रात तक खचाखच लोगों से भरा रहता है। यहाँ वक्त आज और बीते कल में लिपटा है। शीशे के धुएं में गुलता सा जो मिस्र में सबसे आम मंजर है। इस बाजार में मसाले, लकडी की वस्तुएं और भी बहुत सी चीजें देखने को मिलेगीं।
मिस्री पकवान का आनंद लेना भी हमारी यात्रा का महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहा। यहाँ खाने में आपको मांसाहारी व्यंजन ज्यादा नजर आएंगे क्योंकि हम शाकाहारी थे इसलिए यहाँ के पारंपरिक भोजन जैसे कि फलाफल, हुम्मस, कोशारी, मुसाका और मोलुखिया का स्वाद पसंद आया। मिस्र के आधुनिक कलाकार प्राचीन कला के तत्वों को नई तकनीकों और दृष्टिकोणों के साथ मिलाकर अपनी कला प्रस्तुत करते हैं। काहिरा के समकालीन कला गैलेरी और स्थानीय गैलेरियां आधुनिक मिस्री कला को प्रोत्साहित करती हैं। काहिरा में पिकासो आर्ट गैलेरी देखी, जहाँ कई आधुनिक कलाकारों के चित्र प्रदर्शित थे। काहिरा में एक आर्टिस्ट वालिद (जो आर्ट सिंपोजियम में साथ थे) के स्टूडियो भी गए, जहाँ उनके और भी चित्र देखने को मिले।
जैसे-जैसे वापसी का समय करीब आ रहा था मिस्र के इतिहास, संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता के मनोरम ताने-बाने पर विचार करने का समय आ गया था। लक्सर अपने ऐतिहासिक मंदिरों और पुरातात्विक अवशेषों के साथ प्राचीन मिस्र की भव्यता दिखाता है। वहीं आस्वान अपनी न्युबियन संस्कृति, अबू सिंबल जैसे स्मारकीय मंदिरों से मंत्रमुग्ध कर देता है। यह देश सहस्त्राब्दियों तक फरोह के शासन का जीवंत प्रमाण है और राजवंशों और साम्राज्य के विद्रोह और पतन के साक्षी है। उनका ऐतिहासिक महत्व गहरा है जो मिस्र के अतीत के गौरव का प्रतिनिधित्व करता है।
25 मई हमारी मिस्र की यात्रा का अंतिम दिन था। हमने स्वदेश लौटने की तैयारी करने से पहले काहिरा में अंतिम शाम नील नदी के किनारे बिताई। होटल लौटते वक्त पांरपरिक मिस्री व्यंजन कोशारी खाया। यात्रा की समाप्ति पर खरीदी गई सभी वस्तुओं को व्यवस्थित कर सो गए। सुबह दस बजे काहिरा को भरे मन से अलविदा कर रियाद के लिए उड़ान भरी जहाँ से मुम्बई के लिए फ्लाइट थी। अल सुबह तीन बजे हम सकुशल स्वदेश पहुँच गए।
सन्दर्भ :
- Farid Atiya, Ancient Egypt,Farid Atiya Press, page no.171
- Farid Atiya, Ancient Egypt, Farid Atiya Press, page no. 163
- Farid Atiya, Ancient Egypt, Farid Atiya Press, page no. 161
- Farid Atiya, Ancient Egypt, Farid Atiya Press, page no. 265
- Farid Atiya, Ancient Egypt, Farid Atiya Press, page no. 249
- Farid Atiya, Ancient Egypt, Farid Atiya Press, page no. 85
- Farid Atiya, Ancient Egypt, Farid Atiya Press, page no. 95
- Bill Manley, Egyptian Art
- ममता चतुर्वेदी] पाश्चात्य कला
- https://www.britannica.com/art/Egyptian-art
- https://courses.lumenlearning.com/suny-hccc-worldcivilization/chapter/ancient-egyptian-art/
- https://smarthistory.org/ancient-egyptian-art/
- https://mused.com/guided/178/introduction-to-luxor-temple/
- https://www.inside-egypt.com/blog/best-monuments-to-visit-in-egypt.html
- https://www.britannica.com/art/Egyptian-architecture
दीपिका माली
सहायक आचार्य, दृश्यकला विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर।
86dipika.mali@gmail.com, 9785381651
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