चित्र-3, (रामायण का युद्ध कांड, मेवाड शैली, चित्रकार साहिब दीन, उदयपुर, 1650-52 ई, कागज पर जल रंग, लगभग 9x15.38 इंच (ब्रिटिश लाइब्रेरी,15297)5
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शोध सार : चित्र से चलचित्र की जो यात्रा है, उस यात्रा में कला की सभी विधाओं ने मिलकर, एक नई परिभाषा को निर्मित किया है, सिनेमा उसी का उदाहरण है। चलचित्र अपने में चित्रकला, शिल्पकला, वास्तुकला, संगीत, नृत्य, नाट्यकला, लोक कला, लघु चित्र शैली, टेलीविजन, एनीमेशन, डॉक्युमेंट्र, मोशन ग्रैफिक्स, फिल्म, कलात्मक फिल्में, साहित्य, सभी को अपने में समाहित कर चुका है। चलचित्र ने वास्तविकता में चित्र को गति और स्वर दिया है, यह बहुत ही कलात्मक व प्रयोगात्मक और एक क्रांतिकारी अविष्कार है। दृश्य कला इससे पहले मुक कला के समान थी। चलचित्र माध्यम में इसे आवाज मिली, अब दृश्य कला में भी अभिव्यक्ति के लिए स्वर मिल गए हैं।
चित्र-1 ( चलचित्र) 3 चलचित्र (मोशन पिक्चर्स) सिनेमा, फिल्म, एनीमेशन फिल्म, वी.एफ.एक्स, वीडियो आर्ट, सभी तकनीक, आज एक शब्द में समाहित है, चलचित्र। |
बीज शब्द : चलचित्र, चित्र, सिनेमा, फिल्म, टेलीविजन, लघु चित्र शैली, लोक कला, एनीमेशन, मोशन ग्रैफिक्स, डॉक्यूमेंट्री फिल्म, कैमरा, एडिट, साउंड, संगीत।
मूल आलेख :कला का एक पक्ष ‘विषय वस्तु’ से संबंधित है, तो इसका दूसरा पक्ष ‘माध्यम’ से है। चित्रकला ,साहित्य, शिल्पकला, वास्तुकला, छायांकन कला, फिल्म, सिनेमा, चलचित्र, एनिमेशन, यह सभी कला में एक माध्यम के रूप में कलाकार के समक्ष है। यह नवीनता हम माध्यम के स्तर पर देखें तो, सबसे नवीनतम माध्यम चलचित्र को मानते हैं।1 दृश्य कला में चित्रकला व मूर्तिकला का प्रादुर्भाव हमें मानव जीवन के विकास के साथ ही दिख जाता है। अन्य माध्यम भी समय-समय कला क्षेत्र मे खोजे गये। परंतु ’चलचित्र का जन्म 1891 से ही हुआ है।2 कला, भाषा, धर्म, साहित्य, लोक-साहित्य, मूर्तिकला, स्थापत्य कला, चलचित्र इत्यादि कई विधा ऐसी हैं। जिससे मनुष्य अपनी भावनाओं, संवेदनाओं, अभिव्यक्तियों को दूसरों के सामने प्रस्तुत करता है।
चित्र में हम एक ही फ्रेम में बहुत कुछ दिखाना चाहते हैं ,परंतु चित्र में सिमित क्षेत्र होता है, चित्र मे ध्वनि, गति, संगीत, का अभाव दिखता है। वहीं, चलचित्र में ध्वनि, गति, संगीत, वास्तविकता, की सुविधा मिलती है। जिससे जो भाव एक चित्र में कह नहीं पाये, या अभिव्यक्त नहीं कर पाए। वह चलचित्र के माध्यम से अच्छे तरीके से अभिव्यक्त कर सकते हैं। उदाहरणार्थ जैसे कई लघु चित्रशैलियों में राग-रागिनी का चित्रण किया गया हैै। जिसमें चित्र में रागो व रागात्मक भावों को प्रदर्शित करने का प्रयास किया है। चित्र कितना भी अच्छा, उत्तम, हर दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ क्यों ना हो। परंतु जिस राग की बात कर रहे हैं, चित्र से उस राग का आभास तो कर लेते हैं,परन्तु उस राग को सुन नहीं सकतेे। यह चलचित्र (ऑडियो-विजुअल) में संभव है। इसका अर्थ यह नहीं की चित्र और चलचित्र की तुलना करें। दोनों के अपने आयाम है, सुंदरता है। अपितु चलचित्र, चित्र का ही एक उत्कर्ष रूप है। पर समय के साथ-साथ जो बदलाव हम अपने आसपास और वैज्ञानिक तकनीक, जो हम दैनिक जीवन में जी रहे है। उसके अंतर्गत अब, जो सजीवता के और निकट हमें लाती है, हम उसकी और स्वाभाविक रूप से आकर्षित होते हैं । और यही चित्र और चलचित्र को थोड़ा अलग-अलग करती है। अन्यथा एक कलाकार की अभिव्यक्ति शब्दों में, रंगों, चित्र, अभिनय, कविता, कहानी में विभिन्न रूपों में हम देख, सुन, व पढ़ सकते हैं। चलचित्र में हम इंद्रियों मे प्रमुखतः नेत्र और श्रवण इंद्रियों को एक साथ प्रयोग कर, उस अभिव्यक्ति को समझ सकते हैं। जो एक पूर्ण रूपेण आभासी अभिव्यक्ति का आनंद देता है।
भारत में चलचित्र की शुरुआत से पहले, मैजिक लैंटर्न नामक एक उपकरण से, मैजिक लैंटर्न एक धातु का बॉक्स नुमा उपकरण होता था। जिसके मध्य मे प्रकाश की व्यवस्था होती थी। आगे की तरफ एक नली नुमा लेंस से युक्त, भाग लगा होता है और उस नली और बॉक्स के बीच में कांच की स्लाइड्स को घूमाने युक्त स्थान होता है। जो कोई भी चित्र, हमें पर्दे पर या किसी धरातल पर चाहिए होता। उसको हम कांच की स्लाइड्स पर चित्रित करके, उसके मध्य रखकर उसका प्रतिबिंब सामने देख सकते थे। किसी समतल धरातल पर, प्रकाश के माध्यम से उसका प्रतिबिंब, उस समतल धरातल पर देखा जाता था। यह सबसे पहला प्रयोग था। चलचित्र के इतिहास में जहां पर चित्रों को छाया और प्रकाश के माध्यम से, हम एक समतल स्थल पर देख सकते थे।
दक्षिण भारत में जो छाया-प्रकाश के आधार पर, कठपुतलियों का मंचन किया जाता है। उसमें भी छाया-प्रकाश के माध्यम से ही उन पुतलियां को, समतल धरातल पर मुख्यतः सफेद पर्दे पर प्रदर्शित करते है। भारत में कहीं ना कहीं आंशिक रूप से चलचित्र माध्यम, कई लोक कलाओं में भी, इसके कई प्रयोग देखने को मिलते हैं। राजस्थान में भी फड़ वाचन चलचित्र का ही उदाहरण है।
चित्र-2 (मैजिक लैंटर्न)4 |
चलचित्र लघु चित्रशैली मे-
साहित्य हमेशा धर्म, भाषा, जनजीवन ,समय, काल, के साथ जुड़ा रहता है। कला की हर विधा भी, इस समय, काल और जनजीवन से कहीं ना कहीं जुड़ी हुई होती है। उसका चित्रण भी विभिन्न शैलियों में लघु चित्र-पोथियो में हुआ है। प्रमुखतः राजस्थानी शैली में रामायण, महाभारत, गीत गोविंद, आदि साहित्यिक रचनाओं पर चित्रण हुआ है। राजा-महाराजाओं द्वारा, चित्र शैलिया पोषित होती थी। साहित्यिक या धार्मिक ग्रन्थो के आधार पर जो चित्रण किया जाता था। उससे हमें धर्म, समाज के कई रूप देखने को मिलते हैं । रामायण, महाभारत, गीत-गोविंद, राग-रागिनी आदि का जो चित्रण हुआ, वह विभिन्न समय-काल मे, विभिन्न क्षेत्रो में किया गया। मेवाड के जगत सिंह प्रथम (1628-1652) के शासनकाल, वह काल जब चित्रात्मक सौंदर्यशास्त्र का पुनरुद्धार हुआ। गुणी कलाकार साहिबदीन और मनोहर जिन्होंने नई जीवन शक्ति जोड़ी मेवाड़ चित्रकला की शैली और शब्दावली के बारे में। सहिब्दीन रागमाला (1628), रसिकप्रिया, भागवत पुराण को चित्रित किया (1648) और रामायण का युद्ध कांड (1652),। मनोहर का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। रामायण (1649) के बाल काण्ड की, एक और असाधारण प्रतिभाशाली कलाकार जगन्नाथ ने 1719 में बिहारी सतसई को चित्रित किया,जो मेवाड़ स्कूल की अद्वितीय देन है। हरिवंश और सूरसागर जैसे अन्य ग्रंथ भी थे सत्रहवीं शताब्दी की अंतिम तिमाही में चित्रित है।
रामायण के एक दृश्य को इस चित्र मे दर्शाया गया है। जिसमें दो भागों की परिकल्पना की गई है। एक रावण की लंका, दूसरा जहां राम ने युद्ध के पूर्व अपनी छावनी बनाई। इस पूरे चित्र में जो वृतांत है, वह संक्षेप में इस प्रकार है, की रावण मेघनाद को आदेश करता है, कि वह जाकर राम और लक्ष्मण का वध कर दे। मेघनाद (इंद्रजीत) जो मायावी शक्तियों का राजा था। वह अपने पिता की आज्ञा मानकर राम और लक्ष्मण का वध करने निकलता है। लक्ष्मण और मेघनाथ में भीषण युद्ध होता है, और मेघनाद से लक्ष्मण घायल हो जाते हैं । वहीं दूसरी तरफ इसी चित्र में मेघनाद आकाश से लक्ष्मण पर तीर छोड़ता हुआ दिखता है। इसी चित्र में दाये भाग में नीचे की तरफ जो संयोजन किया गया है। उसमें मेघनाद और रावण का संवाद, जहां वह अपने पिता से आज्ञा ले रहा है। वहीं उपर की तरफ इस चित्र में, वह पुनः लक्ष्मण को घायल कर अपने पिता के पास मिलने आता है, और अपनी उपलब्धि बताता है, और उनसे गले मिलता है। पूरे चित्र को एक सेगमेंट के तौर पर, अलग-अलग भाग में अलग-अलग दृश्य को दिखाया गया है, और पूरी कहानी का वर्णन किया है। आज की परिभाषा में, अगर हम इसे परिभाषित करें, तो यह एनीमेशन के पूर्व जो स्टोरी बोर्ड बनाया जाता है। यह उस परिकल्पना का एक रूप है। जहां हम पूरी कहानी कहने से पहले उसके कुछ चित्रों द्वारा, कुछ प्रमुख अंश द्वारा, सूचित कर उस कहानी को समझने का प्रयास करते हैं। जो तकनीक आज हम स्टोरी बोर्ड के तौर पर एनीमेशन फिल्मों के शुरुआती प्री-प्रोडक्शंस में देखते हैं। वही तकनीक आज से कई वर्षों पूर्व भी संज्ञान में थी। हम इन चीजों को पूर्णतः तो नकार नहीं सकते, कि यह विधियां या यह तकनीक उस वक्त रही होगी या नहीं रही होगी। क्योंकि हमारे पास लिखित दस्तावेज नहीं है। पर लिखित दस्तावेज नहीं होने के बावजूद भी, जो चित्र में परिलक्षित हो रहा है। उस जानकारी से यह कह सकते है। यह पूर्णत एक संयोजित स्टोरी बोर्ड है और यह सिर्फ एक चित्र है। पूरी रामायण इसी तरह स्टोरी बोर्ड से निर्मित होती हुई। हमारे सामने भी और उस वक्त भी रही है।
एनीमेशन माध्यम-
’एनीमेशन तकनीक से अभिप्राय इतना है की, फिल्मों में हम कैमरे के माध्यम से, कुछ दृश्य शूट करके, पुनः देखते हैं। वही एनीमेशन में कैमरा माध्यम न रहकर चित्रकला या स्केच या पेंटिंग माध्यम बन जाता है। किसी भी दृश्य को एक वैज्ञानिक और गणितीय दृष्टिकोण से देखने के लिए उसका सामान्यतः एक सेकंड में 24 फ्रेम, एक वैश्विक नियम है।’ की एक सेकंड में 24 फ्रेम हमारे सामने अगर प्रर्दशित होती है, तो वह चीज हमें गति में दिखाई देती है। जब हम एनीमेशन की बात करते हैं। तब सामान्य हाथों से ड्राइंग या पेंटिंग करके अलग-अलग फ्रेम्स बनाई जाती है। जिसमें हर फ्रेम में या हर अगली फ्रेम में कुछ ना कुछ आंशिक परिवर्तन होता रहता है। जो हमें धीरे-धीरे एक गति के रूप में दिखाई देना लगता है और वह सजीवता का आभास कराता है। एनीमेशन मुख्यतः 2डी व 3डी होते है।
प्रमुख एनीमेशन फिल्मों में रामायण, महाभारत, हनुमान, गणेश, स्वामीनारायण, श्री कृष्णा, कई फिल्में है। वह सभी चित्र या कहानियां जो हम सुनते थे, वही हमें एक जीवंत रूप में एक वातावरण में, ध्वनि, संगीत, अभिनय, के संयोजन से सजीव रूप में दिखाई देते हैं, जो हमें हमारे समक्ष प्रतीत होते हैं। भारतीय समकालीन कला में प्रमुख कलाकार में गीतांजलि राव, जिन्होंने दृश्य कला में चलचित्र को अपना माध्यम चुना और एक ’एनिमेटेड फिल्म ‘बॉम्बे रोज’ बनाई। जो कई फिल्म फेस्टिवल्स में सराही गई। आपकी एक व्यक्तिगत विशेष शैली है। जिसमें आप एनिमेटेड फिल्मों का निर्माण करती हैं। इस विशेष शैली की वजह से ही आपकी फिल्मों में एक अलग ही कलात्मक प्रभाव दिखाई देता है।
मोशन ग्राफिक माध्यम-
वही वर्तमान में, अमित दत्ता (जम्मू में 1977 में जन्म) एक भारतीय प्रयोगात्मक फिल्म निर्माता और लेखक हैं। आपने भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान (एफ.टी.आई.आई.) से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। आपको प्रयोगात्मक सिनेमा के सबसे महत्वपूर्ण समकालीन फिल्मकारो में से एक माना जाता है जो कि दृश्यात्मक रूप से एक प्रयोगरत फिल्मकार है। भारतीय सौंदर्य सिद्धांतों और व्यक्तिगत प्रतीकवाद में निहित फिल्म निर्माण की अपनी विशिष्ट शैली के लिए जाने जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप ऐसी छवियां बनती हैं। जो दृष्टिगत रूप से समृद्ध और ध्वनिक रूप से उत्तेजक होती हैं। उनका काम ज्यादातर सिनेमा के माध्यम से कला, इतिहास, और सांस्कृतिक विरासत के विषयों से संबंधित हैं। मेकर ने उन मिनिएचर चित्रों को मोशन ग्राफिक तकनीक के माध्यम से जीवंत कर कहानी कहने की एक नई परिभाषा प्रस्तुत की वही चित्र जो सदियों से सिर्फ चित्र समझे जाते थे। उन्हें संगीत, ध्वनि, और गति प्रदान कर एक नया ही आभास दर्शकों तक पहुंचाने की चेष्टा की है और जब हम उसे देखते हैं, तो अनायासी हमें वह सचमुच सजीव से प्रतीत होते है। यही प्रमुखतः चित्र और चलचित्र का अंतर है। जिनकी कुछ फिल्में ‘‘नैनसुख,’’ सन् 2000 में निर्मित फिल्म जो की 18 वीं शताब्दी में पहाड़ी कलाकार नैनसुख की जीवनी पर है। जो बी.के. गोस्वामी द्वारा लिखित पुस्तक पर आधारित है। फिल्म में जसरोटा महल के खंडहरों और परिवेश के बीच स्थापित रचनाओं के माध्यम से नैनसुख के चित्रों का सूक्ष्म मनोरंजन शामिल है। जहां कलाकार को रखा गया था। वही ‘‘गीत गोविंद’’ जो कि पहाड़ी चित्रकला का एक प्रमुख विषय रहा है। उस पर भी मिनिएचर चित्रो, संगीत, एनिमेशन व अभिनय के द्वारा एक जीवंत फिल्म का निर्माण किया।
चित्र-4, (अमित दत्ता , फिल्म-‘‘नैनसुख,’’ सन् 2000)6 (अमित दत्ता , फिल्म- साउंड पोयम नंबर 4)7
कलात्मक फिल्म माध्यम-
कला के क्षेत्र में अगर हम थोड़ा शुरुवाती दौर मे जाए, तो प्रमुख कलाकारों में से एम.एफ. हुसैन का नाम अग्रणी रूप से सामने आता है। मकबूल फिदा हुसैन (17 सितंबर 1915 - 9 जून 2011) एक भारतीय कलाकार थे, जो संशोधित क्यूबिस्ट शैली में बोल्ड, जीवंत रंगीन कथा चित्रों को निष्पादित करने के लिए जाने जाते थे। वह 20वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त भारतीय कलाकारों में से एक थे। वह बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। एम.एफ. हुसैन 1940 के दशक में भारतीय आधुनिकतावाद से जुड़े। जिन्होंने सर्वप्रथम चित्रकला के अलावा चलचित्र माध्यम में भी अपनी अभिव्यक्ति दी। एम एफ हुसैन का प्रथम प्रयोग उनकी फिल्म ‘थ्रू द आइज ऑफ़ ए पेंटर’ कलाकार की दृष्टि से 1967 को बनाई। फिल्म के शुरुआत में ही उनका यह कथन ‘‘मैंने एक कलाकार होने के नाते , जब कभी कोई भी कलाकृति का निर्माण किया, तो मुझे काफी कम संसाधन लगते थे”। रंग, कलम, कैनवास, जो कि मैं बचपन से प्रयोग कर रहा था, पर मैंने फिर फिल्म मीडियम में प्रयोग करना शुरू किया। वह भी एक कलाकार के माध्यम से मैंने कई असंबंधित चलते हुए चलचित्रों को एक दूसरे के साथ जोड़कर, एक काव्य रूप में प्रस्तुत किया है। जहां एक भी बोले हुए शब्दों का प्रयोग नहीं किया है। सिर्फ चलचित्रों से ही व संगीत के माध्यम से चलचित्रों के मध्य संवाद स्थापित किया जो आप देखेंगे...8\
एम. एफ. हुसैन ने इस प्रयोगात्मक फिल्मों में राजस्थान के विभिन्न प्रदेशों में घूम कर प्रमुखतः जैसलमेर, चित्तौड़, बूंदी, कोटा, में ग्रामीण जीवन, ऐतिहासिक इमारतें, महल, महिलाएं, पुरुष, बच्चे, पशु जीवन, मानवीय दैनिक क्रिया, अलग-अलग भौगोलिक भू-भाग, कुछ वस्तुएं जिनमें मुख्यतः छाता, जूते, लालटेन, और कुछ रेखा चित्र आदि का छायांकन कर, उन्हें संपादित कर, संगीत के साथ काव्यात्मक रूप देकर एक कलात्मक प्रयोगात्मक फिल्म का निर्माण किया। यह फिल्म बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में 1967 मे गोल्डन बियर अवार्ड से पुरस्कृत हुई। 1968 मेलबर्न में पुरस्कृत हुई। यह प्रथम बार हुआ कि किसी भारतीय कलाकार द्वारा एक प्रयोगात्मक फिल्म जो कि पूर्णता एक कलाकार की अभिव्यक्ति थी। जिसका माध्यम चित्रकला ना होकर चलचित्र बन गया। यहीं से भारतीय कला में चलचित्र माध्यम का एक सृजनात्मक योगदान भारतीय कला में शुरू हुआ। इस माध्यम का संचार भारतीय कलाकारों में आरंभ हुआ।
सामान्यत भाषा का अभिप्राय शब्दों पर आधारित माना जाता है। परंतु भाषा एक पक्ष नहीं है, वह बहुपक्षीय रूप में प्रयोग में ली जाती है। भाषा केवल शाब्दिक होती हो, तो मुक व बधिर कैसे संवाद करते है? हाँ भाषा सांकेतिक, भाव रूप में, रंगों में, चित्रों में, रूप में, संगीत, वास्तु, भंगिमा, नाट्य, मुक अभिनय कई माध्यमों में हो सकती है, जिसमें चलचित्र भी एक माध्यम है। वैश्विक स्तर पर समझ में आने वाले तथा समय, सीमा, भाषा, साहित्य, धर्म, भौगोलिक क्षेत्र, वातावरण, संगीत, आदि से ऊपर जो माध्यम सर्वत्र मान्य व समझा गया है। वह माध्यम सिनेमा बना। जो वर्तमान में पूर्ण रूप से वैश्विक पटल पर अपनी जड़े जमा चुका है।
’नलिनी मलानी’ भारतीय महिला चित्रकारों में प्रमुख हस्ताक्षर होने के साथ-साथ पहले भारतीय चलचित्र महिला चित्रकार के रूप में भी काफी प्रसिद्धि प्राप्त की है। आपने मोशन पिक्चर्स, वीडियो फॉर्म, में ही नहीं अपितु राउंड ग्लास पर पेंटिंग करके सर्कुलर मूवमेंट देकर भी मोशन पिक्चर्स का एक प्रभाव चित्रकला के माध्यम से दिया है। कालांतर में आपने डिजिटल फॉर्मेट में आईपेड और अन्य डिजिटल माध्यमों पर स्केच कर, पेंटिंग, छोटे-छोटे स्केचेस मे, एनीमेशन फॉर्मेट की तरह उन्हें प्रदर्शित कर संपूर्ण वीडियो बनाया। आपने कैमरा माध्यम न रखकर एनीमेशन टेक्निक और पेन्टेड स्लाइड्स को प्रमुखता से प्रयोग किया है। उन्हें गति देकर चलचित्रात्मक रूप में प्रदर्शित किया है। आईपैड का उपयोग करके हाथ से तैयार किए गए 25 आकर्षक नए एनिमेशन, चित्रों के विभिन्न पहलुओं को प्रकट और छिपाते है। ताकि उन्हें एक वैकल्पिक और महत्वपूर्ण दृष्टिकोण से फिर से खोजा जा सके। एनिमेशन दर्शकों को लगातार लूप में चलाए जाने वाले नौ बड़े वीडियो प्रक्षेपणों के पैनोरमा में डुबो देता है। अलग-अलग लंबाई के एनिमेशन ओवरलैप होकर छवियों के बीच अंतहीन रूप से बदलते संयोजन और अंतःक्रिया का निर्माण करते हैं, जिससे दर्शक को अपने स्वयं के अर्थ बनाने की अनुमति मिलती है। आपने कोई विषय को या कथा को लेकर चलचित्र नहीं बनाया। बल्कि अपनी ही चित्रकला को एक कदम आगे बढ़ाकर उसे गतयात्मक रूप में सृजन किया और वह कला के क्षेत्र मे पूर्णत एक नया प्रयोग हैं।
कोई भी व्यक्ति जो बौद्विक रूप से सामान्य समझ भी रखता हो। चाहे वह अशिक्षित भी हो, परंतु फिर भी वह दृश्य भाषा को समझ सकता है। उदाहरण हम सभी भाषाओं के ज्ञानी नहीं हो सकते लेकिन जिन भाषाओं का ज्ञान है उनके अतिरिक्त किसी भी भाषा में दृश्यात्मक रूप से हम उन चीजों को समझ जाते हैं। जैसे जर्मनी, रशियन, चाइनीस, किस भाषा में चल चित्रों का निर्माण हो, जो हमें भाषाई स्तर पर चाहे समझ में ना आए। परंतु उसे देखकर हम भाषा से अनभिज्ञ होने के बावजूद भी दृश्यात्मक रूप से उसे देख उसके भाव को समझ जाते है। एक संबंध बना सकते है। सिनेमा में चलचित्र में जो सबसे अनोखी बात है, वह है सत्य के समीप उसको वैज्ञानिक रूप से रिकॉर्ड करना अर्थात जो एक निश्चित समय पर हमारे सामने हो रहा है, उसे हम उसी समय रिकॉर्ड कर लेते हैं। जो वास्तविक रूप में उस समय की सत्य की प्रतिकृति होती है। जो सदैव के लिए रिकॉर्ड हो जाती, इसके लिए कैमरा एक उपकरण का कार्य करता है। और यही सत्य की प्रतिकृति, वास्तविक रूप में सहृदय होने के कारण सत्य व सौंदर्य दोनों का बोध कराती है।
निष्कर्ष : इस वैज्ञानिक युग में जितना हम विज्ञान की तकनीक से अपना जीवन सुगम और सरल बना रहे हैं, वैसे ही हमारे विचार और आचरण भी बदल रहे हैं। आज हम ऑडियो-वीडियो माध्यम से वीडियो कॉलिंग से लाइव एक दूसरे से बात कर सकते हैं, मिल सकते हैं। शिक्षा में भी केवल मात्र पुस्तकों से अध्ययन के अलावा, अब उसमें भी हम चित्रों, ऑडियो-विजुअल माध्यम, प्रायोगिक रूप से चीजों को कर के सीखने में ज्यादा जोर देने लगे हैं। नई शिक्षा नीति के अनुसार हो या तेजी से बच्चों में सीखने की कला को लेकर, उसमें आधुनिकता में कई तकनीको का उपयोग अब इतना अधिक बढ़ गया है। अब हमें नई सोच और नई तरीकों से हमारी भाषा, साहित्य, चित्र या कला के किसी भी माध्यम या विधा को कहीं ना कहीं उन्नत करना ही पड़ेगा। आधुनिकता की दौड़ में उसका सहयोग या प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ हम ले रहे हैं। यह समय साहित्य, चित्र और चलचित्र के लिए कई संभावनाओं को खोजने तथा अनंत प्रयोगात्मक कृतियों को निर्मित करने के लिए उत्तम है। जहां हम सीमाओं से परे सभी माध्यमों में प्रयोग कर सकते हैं। चलचित्र एक ऐसा अनोखा लोकप्रिय और अनंत संभावनाओं के साथ बड़ा ही रोचक माध्यम है, जो इस आधुनिक कला के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं, यह तो अभी सिर्फ शुरुआत है, आगे संभावनाएं अनंत।
2-https://www.scienceandmediamuseum.org.uk/objects-and-stories/very-short-history-of-cinema#:~:text=The%20first%20to%20present%20projected,film%20printer%20all%20in%20one.
3- https://www.videomaker.com/article/f10/15554-the-birth-of-film-the-beginning-of-motion-picture-making
4- The national film development corporation, Indian Cinema-A Visual Voyage , NFDC, 2016,india
5-https://www.khanacademy.org/humanities/art-asia/south-asia/x97ec695a:1500-1850-deccan-south/a/a-page-from-the-mewar-ramayana
6-https://www.youtube.com/watch?v=NxBbvWsG4s8&t=102s
Nainsukh - Amit Dutta (Trailer) 25Oct.2024, 10:25 AM
7-https://www.youtube.com/watch?v=77bg-qxMJBY
Sound Poem no. 4 (A Journey through Sound: A Perfect Day) 25Oct.2024, 09:45 AM
8. https://www.youtube.com/watch?v=qHg2AR8_UeM&t=13s
’’थ्रु द पेंटर्स आई’’ फिल्म से संवाद लिया गया। 24Oct.2024, 08:15 AM
मकान नंबर 1282, कालका माता रोड गणेश नगर, उदयपुर 313001, राजस्थान
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