शोध आलेख : बालवाणी पत्रिका की कहानियों में बाल मनोविज्ञान / सचिन कुमार

बालवाणी पत्रिका की कहानियों में बाल मनोविज्ञान
- सचिन कुमार

शोध सार : 'बालवाणी' उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा प्रकाशित एक प्रमुख द्वैमासिक बाल पत्रिका है, जो बच्चों के मानसिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक विकास के लिए समर्पित है। पत्रिका में कहानियाँ, कविताएँ, चित्रकथाएँ, पहेलियाँ और ज्ञानवर्धक सामग्री प्रकाशित की जाती हैं, जिनका उद्देश्य बच्चों में साहित्य के प्रति रुचि जगाना और उनकी कल्पनाशक्ति को विकसित करना है। पत्रिका की सामग्री बच्चों को नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों से भी परिचित कराती है। इसके लेख और कहानियाँ सरल और आकर्षक हैं, जो बच्चों के मन में गहरी छाप छोड़ते हैं। 'बालवाणी' पत्रिका के लेखक और चित्रकार मनोरंजक और शिक्षाप्रद सामग्री प्रस्तुत करते हैं, जो बच्चों की रचनात्मकता को प्रोत्साहित करती है और उन्हें नई चीजें सीखने में मदद करती है। इसमें मानसिक और सामाजिक विकास के लिए विभिन्न कहानियाँ जैसे ‘चिंकी की शरारत’, ‘राजू के ईयर फोन’, ‘मेहनत बेकार नहीं जाती’, और ‘खुशी के आँसू’ बच्चों के व्यवहार और सोच पर केंद्रित हैं, जो उन्हें नैतिक मूल्यों और सही जीवन शैली के बारे में सीख देती हैं। फ्रायड ने माना है कि यौन कारक संस्कृति के मानदंडों का खंडन करते हैं, जोकि अक्सर बच्चे के विकास को प्रभावित करते हैं। एडलर ने बच्चे के स्वयं के प्रति धारणा और जीवन के प्रति दृष्टिकोण के निर्माण में सामाजिक भावना (social interest) और हीन भावना (inferiority complex) के व्यापक प्रभाव को बताया है। इस पत्रिका की कहानियों के माध्यम से बाल मनोविज्ञान को समझ सकते हैं।

बीज शब्द : बालवाणी, पत्रिका, बाल मनोविज्ञान, हिन्दी संस्थान, बाल साहित्य, बाल पत्रकारिता, जयप्रकाश भारती, सामूहिक अवचेतन, आर्कटाइप्स, आज़ादी, मानवता, शपथ, राजू का ईयर फोन।

मूल आलेख : ‘बालवानी’ उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ से प्रकाशित एक लोकप्रिय द्वैमासिक हिंदी बाल पत्रिका है, जो बच्चों के मानसिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक विकास के लिए समर्पित है। यह पत्रिका बच्चों को साहित्यिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए कहानियाँ, कविताएँ, चित्रकथाएँ, पहेलियाँ, और ज्ञानवर्धक सामग्री प्रकाशित करती है। इस पत्रिका का उद्देश्य बच्चों में साहित्य के प्रति रुचि उत्पन्न करना और उनकी कल्पनाशक्ति को विकसित करना है। इस पत्रिका में प्रकाशित सामग्री बच्चों के मानसिक विकास के साथ-साथ उन्हें सांस्कृतिक मूल्यों और नैतिक शिक्षा से भी परिचित कराती है। इसके लेख और कहानियाँ सरल और आकर्षक होती हैं, जो बच्चों के मन में आसानी से बस जाती हैं। पत्रिका के लेखकों और चित्रकारों का प्रयास होता है कि वे मनोरंजक और शिक्षाप्रद सामग्री प्रस्तुत करें, जो बच्चों की रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ उन्हें नई चीज़ें सीखने में मदद करें।

बाल मनोविज्ञान बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास का अध्ययन है, जिसमें यह देखा जाता है कि बच्चे जन्म से लेकर किशोरावस्था तक कैसे सोचते हैं, महसूस करते हैं, और व्यवहार करते हैं। यह अध्ययन बच्चों की मानसिक प्रक्रियाओं जैसे सीखने, याद रखने, समस्याओं को हल करने, और भावनात्मक प्रतिक्रिया को समझने का प्रयास करता है। बाल मनोविज्ञान के दो प्रमुख अध्ययन विधियाँ हैं :-

1.अक्षांश अध्ययन (Longitudinal Study) - इस प्रकार के अध्ययन में, एक ही समूह के बच्चों का लंबे समय तक अध्ययन किया जाता है, जिससे उनके विकास की प्रक्रिया को विभिन्न आयु समूहों में समझा जा सके।

2.दशांश अध्ययन (Cross-sectional Study) - इस अध्ययन में, अलग-अलग उम्र के बच्चों के समूहों का एक ही समय पर अध्ययन किया जाता है, ताकि यह समझा जा सके कि विभिन्न उम्र के बच्चों में मानसिक प्रक्रियाओं और विकास में क्या अंतर होता है। इन दोनों तरीकों से बच्चों के विकास के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद मिलती है, जैसे कि उनकी सीखने की क्षमताएँ, सामाजिक व्यवहार, भावनात्मक विकास, और अन्य मानसिक प्रक्रियाएँ।

“सिगमंड फ्रायड द्वारा विकसित बाल विकास का सिद्धांत इस विश्वास पर आधारित है कि बच्चा हमेशा समाज के साथ संघर्ष में रहता है। फ्रायड के अनुसार, जैविक और विशेष रूप से यौन कारक संस्कृति के मानदंडों का खंडन करते हैं, इसलिए सांस्कृतिक कारक अक्सर बच्चे के विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते है।"1 फ्रायड ने बाल मनोविज्ञान के विकास में मनोविश्लेषण की दृष्टि से योगदान दिया। उनके अनुसार, बाल्यावस्था के अनुभव और स्मृतियाँ व्यक्ति के व्यक्तित्व और मनोवैज्ञानिक समस्याओं को आकार देती हैं।

फ्रायड के बाद ‘एडलर’ ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चे का व्यवहार और व्यक्तित्व माता-पिता की परवरिश, पारिवारिक संरचना, और सामाजिक संदर्भों से प्रभावित होता है। उन्होंने "जीवन शैली" (Lifestyle) के विकास की बात की, जो कि बचपन में विकसित होती है और व्यक्ति के जीवनभर के व्यवहार को प्रभावित करती है। एडलर ने बाल मनोविज्ञान समझने के लिए सामाजिक और पारिवारिक परिवेश को समझना आवश्यक बताया है। साथ ही इन्होंने बच्चे के स्वयं के प्रति धारणा और जीवन के प्रति दृष्टिकोण के निर्माण में सामाजिक भावना (social interest) और हीन भावना (inferiority complex) के व्यापक प्रभाव को बताया है।

युंग का मानना था कि बच्चों का मन केवल जैविक और यौनिक प्रेरणाओं से संचालित नहीं होता, जैसा कि फ्रायड ने बताया था। उन्होंने मानसिक विकास के लिए गहरे और सार्वभौमिक प्रतीकों (आर्कटाइप्स) और सामूहिक अवचेतन (Collective Unconscious) की अवधारणाओं को महत्व दिया। इनके अनुसार, बच्चों का विकास केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों का परिणाम नहीं है, बल्कि उनके ‘सामूहिक अचेतन’ (collective unconscious) से प्रभावित होता है।

इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका में बाल मनोविज्ञान को इस तरह से समझाया गया है - "child psychology, the study of the psychological processes of children and, specifically, how these processes differ from those of adults, how they develop from birth to the end of adolescence, and how and why they differ from one child to the next. The topic is sometimes grouped with infancy, adulthood, and aging under the category of developmental psychology"।2 अर्थात् बच्चों का मनोविज्ञान कैसे जन्म से लेकर किशोरावस्था के अंत तक किस तरह से विकसित होती हैं, और वे एक बच्चे से दूसरे बच्चे में कैसे और क्यों भिन्न होते हैं।

साहित्यकारों ने बच्चों की मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, और सामाजिक विकास की विभिन्न प्रक्रियाओं को समझने और व्यक्त करने के लिए अपनी रचनाओं का सहारा लिया है। हिन्दी की प्रमुख बाल पत्रिकाओं- चन्दामामा, बाल सखा, बाल दर्शन, खिलौना, मेला, चंपक, बालक, गुड़िया, नंदन इत्यादि में बाल मनोजगत की विविध पक्षों पर लेखन हुआ है। इसमें बालवानी पत्रिका का महत्वपूर्ण योगदान है। बालवानी पत्रिका में लेखन के विविध पक्ष है - स्मरण, कहानी, नाटक, ज्ञानवर्धक लेख/आओ सीखें, कविता, बाल लेखनी, पावन स्मृति, आवरण चित्र। इस आलेख में बालवानी पत्रिका के 'जनवरी-फरवरी 2016' अंक से 'जनवरी-अप्रैल 2024' अंक में आए कहानियों में उपस्थित बाल मनोविज्ञान का अध्ययन करेंगे।

बाल पत्रिकाओं में मनोविज्ञान को लेकर ‘बाल पत्रकारिता स्वर्णयुग की ओर’ पुस्तक में ‘जयप्रकाश भारती’ ने लिखा है - "बालक को बहकाया नहीं जा सकता। उसके प्रश्न अनन्त होते हैं, उसकी जिज्ञासा का कोई ओर-छोर ही नहीं। उसकी कल्पना का विस्तार सारे ब्रह्माण्ड में है। वह पाँच मिनट में किसी को भी निरुत्तर कर सकता है। बालक की जिज्ञासा को हम बाँधना चाहेंगे तो उसमें कुंठा को जन्म देंगे। उचित तो यह है कि हम उसके कल्पना-जगत को विस्तार दें। उसका भावनात्मक सम्बन्ध सृष्टि के साथ, प्रकृति के साथ, पेड़-पौधों, फूलों, पशु-पक्षियों के साथ जोड़ दें। मानव मात्र के लिए उसके मन में प्रेम के अंकुर रोप दें।"3

बालवानी पत्रिका में बाल मन को दिशा देने के लिए कला, साहित्य, पर्यावरण, विज्ञान और तकनीक जैसे ज्ञान की विभिन्न विधाओं को लेकर लेखन कार्य हुआ है। इस पत्रिका में दो तरह से लेखन हुआ है - पहला बालकों के ऊपर लिखा गया कार्य तथा दूसरा बालकों द्वारा लिखा गया कार्य।

डॉ अलका जैन द्वारा लिखित 'चिंकी की शरारत' कहानी में बचपन में शरारत करने तथा गलती होने पर रोना और डरना तथा उसके बाद के बाल मनोविज्ञान को बताया गया है। इस कहानी में चिंकी द्वारा शरारत करने पर भाई मोनू का पैर टूट जाता है। अलमारी से खिलौना उतारने के बाद मोनू स्टूल पर उतरता है किंतु पिंकी मजाक में शरारत हेतु स्टूल हटा लेती है, जिससे मोनू गिरता है तथा पैर में प्लास्टर करवाना पड़ता है। इस घटना के बाद चिंकी के बाल मन को कहानीकार ने बताया है कि - "चिंकी को बहुत रोना आ रहा था और उसे डर भी लग रहा था कि मोनू दादी और मम्मी-पापा को बता देगा कि स्टूल चिंकी ने हटाया था।"4 इसमें कहानीकार सहज ही बच्चों की शरारत के बाद की मनोस्थिति को बताते हैं। ऐसी शरारतों वाली घटनाएं बच्चों से होती रहती है। इसमें कहानीकार ने शरारती बच्चों की मनोविज्ञान को यथार्थ रूप में उपस्थित किया है।

‘राजू के ईयर फोन’ कहानी में कुसुम अग्रवाल ने बच्चों को तकनीक के फायदे और नुकसान के बारे में बताया है। इस कहानी में राजू अपने माँ को ईयर-फोन का फायदा बताकर कान में ईयरफोन लगाकर पढ़ रहा था। एक दिन माँ आँगन में फिसलकर गिर गई। चोट लगने और सिर पर खून बहने से परेशान होकर माँ ने राजू को अवाज लगाई। किंतु राजू सुन नहीं सका। पड़ोसी लड़का दीपक सुनकर आया, डॉक्टर के पास ले जाकर इलाज करवाया। बाद में राजू को मालूम चलने पर शर्मिंदा हुआ। कुसुम अग्रवाल ने राजू के बाल मन को इस प्रकार से बताया है कि "वह बहुत शर्मिंदा हुआ। वह दीपक के सामने तो चुप रहा। परंतु उसने मन ही मन कसम खाई कि अब से वह हर वक्त कानों में ईयर-फोन पहनकर नहीं रहेगा क्योंकि यह हानिकारक है। वह इनका उपयोग यदा-कदा तथा आवश्यकता पड़ने पर ही करेगा”।5 इस प्रकार इस कहानी में कहानीकार ने तकनीक के समुचित उपयोग करने को लेकर बच्चों को संदेश दिया है। उदाहरण के लिए इस कहानी में ईयर-फोन का उपयोग पढ़ने के लिए और गाने सुनने के लिए, शोरगुल के बीच एकांत के लिए अच्छा है किंतु हर वक्त लगाए रहना, अपने परिवेश से कट जाना, इस तकनीक की खामियाँ भी हैं। बच्चों को तकनीक का समुचित उपयोग करना आना चाहिए, इसके लिए कहानीकार ने अच्छा प्रयोग किया है।

जूही श्रीवास्तव की कहानी 'मेहनत बेकार नहीं जाती' बच्चों को मेहनत करने की सीख देती हैं। इन्होंने समझाया है कि “मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। लक्ष्य ने बराबर प्रयास किये, जिससे वह पढ़ाई में अव्वल आया। उसने कभी हार नहीं मानी, जो सोचा वो किया। वहीं मोहन को सीख मिल चुकी थी कि योग्यता पर घमंड करने के बजाय हमें दूसरों की मदद में अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल करना चाहिए। हमें कभी-कभी दूसरों की सहायता भी करनी पड़ सकती है। ऐसे में कभी भी घबराना नहीं चाहिए। शिक्षा एक ऐसा धन है जो बांटने पर बढ़ता है”।6 इसमें दो बच्चों के माध्यम से बाल मनोभावों का चित्रण किया है। जिसमें मोहन होनहार और बुद्धिमान लड़का है, उसका विश्वास था कि ज्ञान बाँटने से घट जाता है तथा लक्ष्य गणित में कमजोर विधार्थी था। जब लक्ष्य गणित का सवाल हल कराने मोहन के घर आता है तो मोहन अपने ऊपर काम का बोझ होने का बहाना बनाकर टाल देता है। उसके बाद लक्ष्य लगातार मेहनत करके अपना विषय तैयार कर लेता है। जब परीक्षा से पहले मोहन दो महीने टाइफाइड बुखार में सब पढ़ाई भूल जाता है तो लक्ष्य मदद कर पढ़ता है तथा दोनों परीक्षा में सफल हो जाते है।

तन्मय द्विवेदी ने 'जैसा साथ वैसी सोच' कहानी में बच्चों को यह सिखाया है कि हम जिसके साथ रहते हैं, उसके जैसा सोच भी होने लगता है। हमारे बाल मन पर अपने आसपास के परिवेश का गहरा प्रभाव होता है। इस कहानी में तीन दोस्त - भगत, वैश्य, पहलवान जंगल में घूमने जाते हैं, जो अलग अलग परिवेश से आते हैं। तीनों मिलकर चिड़ियों की आवाज को सुनकर अनुमान लगाते है कि चिड़िया क्या कह रही है। भगत कहता है - 'राम, कृष्ण, भरत', वैश्य कहता है -'हींग, हल्दी, अदरक' और पहलवान कहता है- 'दण्ड, बैठक, कसरत'। तीनों दोस्त मिलकर महसूस करते हैं कि वह चिड़िया के बोलने का जो अर्थ लगा रहे थे, उसके पीछे प्रमुख कारण था कि उनका अलग-अलग स्थितियों में विकास हुआ है। कहानीकार यह बताने का प्रयास करते हैं कि “महत्वपूर्ण यह नहीं है कि चिड़िया क्या कह रही है बल्कि यह है कि तुम्हें हमेशा अच्छे वातावरण और दोस्ती को प्रमुखता देनी चाहिए। यह वातावरण और तुम्हारे आसपास के लोग अच्छे होंगे तो तुम्हें अच्छे संस्कार मिलेंगे और गर इसका उलटा हुआ तो उतना ही तुम्हारे भविष्य के लिए नुकसानदेह होगा”।7 इस तरह लेखक ने बच्चों को अपने दोस्ती और वातावरण के अच्छे होने की प्रेरणा देते हैं, जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके।

पवन कुमार वर्मा ने 'खुशी के आँसू' कहानी में बच्चों के मन पर यह प्रभाव डालना चाहते हैं कि घर के कामों में एक दूसरे का सहयोग करने से बहुत सुख मिलता है। इस कहानी में गर्मी की छुट्टियों में खुशी और पूजा दो दोस्तों के धूप में खेलने से पूजा के बीमार होती है। सृष्टि पूजा से मिलकर घर आने पर अपनी माँ को दिन-रात काम करते हुए देखकर दुखी होती है तथा अगले सुबह माँ के कामों में सहयोग करती है। जिससे उसके पापा पूछते हैं कि तुम्हारे मन में यह विचार कैसे आया? सृष्टि बताती है कि “मम्मी पूरे साल हमारे लिए बहुत मेहनत करती रहती हैं। हमारे लिए खाना - नाश्ता तैयार करती हैं। घर की साफ सफाई करती हैं। मैंने सोचा कि अपनी इस छुट्टी में मैं उनकी मदद करके उन्हें आराम करने का मौका दूंगी! आखिर मम्मी हमारे लिए इतना करती हैं, तो हमें भी तो उनका ध्यान रखना चाहिए”।8 इस तरह से कहानीकार इस कहानी में बच्चों के मन पर घर के कामों में सहयोग करने की प्रेरणा देने में सफल होते हैं। साथ ही बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ घर का काम करना भी सीख जाते हैं।

सुरेश बाबू मिश्रा ने अपनी कहानी 'शपथ' में बच्चों को ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए पेड़-पौधे लगाने के लिए प्रेरणा देते हैं। इस कहानी में ‘ग्लोबल पब्लिक स्कूल’ के चौथी कक्षा से सातवीं कक्षा तक के विद्यार्थी पिकनिक मनाने के लिए जाते हैं, जहाँ शारदा बांध देखते हैं तथा बांध से बनने वाली बिजली तथा बांध द्वारा नहरों के माध्यम से खेतों में सिंचाई हेतु पानी पहुंच जाने के लाभ को देखते हैं। साथ ही एक पार्क में पेड़ पौधे के मुरझाए होने को लेकर सवाल पूछते हैं जिसमें प्रिंसिपल मैडम बताती हैं कि “इन दिनों चिलचिलाती धूप, शरीर को झुलसा देने वाली गर्मी और सूरज के लगातार चढ़ते पारे के कारण पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मानव सब बेहाल हैं। पार्क के यह पेड़-पौधे भी भीषण गर्मी की वजह से मुरझाए हुए हैं, और इस सब का कारण है ग्लोबल वार्मिंग”।9 इसके बाद बच्चों ने ग्लोबल वार्मिंग से बचने का कारण पूछा तथा वृक्षारोपण की शपथ ली। पृथ्वी पर हरियाली बढ़ाने के लिए बच्चे अपने आसपास पड़ोसियों को भी प्रोत्साहित करने के लिए उत्साहित हो गए। इस तरह की कहानियों से बच्चों के बाल मन पर पर्यावरण सुरक्षा के प्रति सतर्क रहने की चेतना जागृत होती है।

प्रियंका ने ‘तीन मछलियाँ’ कहानी में बच्चों को यह शिक्षा देती है कि “भाग्य के भरोसे हाथ पर हाथ धर कर बैठते रहने वाले का विनाश निश्चित है”।10 इस कहानी में नदी से सटे एक जलाशय में तीन मछलियां है- पिया, रिया और चिया। पिया का मानना है कि संकट आने का लक्षण दिखने पर ही संकट टालने का उपाय कर लेना चाहिए। रिया का मानना था कि संकट आने के बाद उससे बचने का प्रयत्न करना चाहिए। तथा चिया इन दोनों से विपरीत संकट को टालने या संकट आने पर बचने की बात को बेकार बताते हुए कहती है कि करने कराने से कुछ नहीं होता है, जो किस्मत में लिखा होता है, वह होकर रहेगा। एक दिन मछुआरे की नजर उस जलाशय पर पड़ती है तो कहता है कि आज शाम हो चुकी है, कल आएंगे जाल बिछाने। यह बात सुनकर तीनों मछलियों में पिया मछली नहर के रास्ते नदी की ओर भाग निकली तथा सुबह मछुआरे के आने पर रिया मछली संकट से बचने का प्रयत्न कर बच जाती है। किंतु हाथ पर हाथ धर बैठे चिया मछली जाल में फंसकर मछुआरे के द्वारा तड़प-तड़प कर मर जाती है। इस कहानी के माध्यम से कहानीकार प्रियंका ने बच्चों के बाल मन पर यह प्रभाव डालने का प्रयास करती हैं कि बच्चे हाथ पर हाथ धर कर बैठे ना रहे। अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें तथा लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयास करते रहे, मेहनत करते रहे। इस तरह की कहानियों से बच्चों को मानसिक मजबूती मिलती है।

अशोक अंजुम ने अपनी कहानी 'बरगद का पेड़' में बच्चों के मन में पर्यावरणीय चेतना का निर्माण करते हैं। इस कहानी में कॉलोनी के मैदान में एक बरगद का पेड़ था, जिसे बिल्डर काटकर फ्लैट बनाना चाहता था किंतु उस बरगद के पेड़ के पास मैदान में बच्चे खेलने जाते थे। बच्चों का उसे पेड़ से लगाव था। बच्चे उसे बरगद के पेड़ को बचाने के लिए अपने मम्मी-पापा के साथ वन अधिकारी से मिलते हैं। वन अधिकारी से सुरक्षा नहीं मिलने पर, जिलाधिकारी से जाकर मिलते हैं तथा अंत में पेड़ को बचा लेते हैं। इस कहानी से बच्चों के बाल मन पर यह प्रभाव जाता है कि पर्यावरण की रक्षा की जाए। इस कहानी में नमन कहता है कि "हम आंदोलन करेंगे; धरना देंगे... लेकिन अपने इस प्यारे बरगद को नहीं कटने देंगे... गांधी जी ने तो आंदोलन से, अहिंसा से अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था"।11 पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से बाल मनोविज्ञान की यह कहानी अद्वितीय है, जहाँ बच्चे पर्यावरण बचाने हेतु आंदोलन करने को भी तैयार हैं।

रूपनारायण काबरा ने अपनी कहानी 'आज़ादी का एहसास' में बच्चों को आज़ादी का सही अर्थ समझाते हैं। आज़ादी का मतलब यह नहीं है कि आप दूसरे को परेशान करें, जानवरों और पशु-पक्षियों को छेड़े, गुलेल से निशाना बनाकर उन्हें परेशान करें। इस कहानी में पीटर आठवीं कक्षा में पढ़ने वाला चंचल और नटखट लड़का है, जो राह चलते जानवरों को और उड़ते पक्षियों को गुलेल से निशाना बनाता है। पक्षियों से प्रेम के नाम पर पिंजरे में बंद कर रखता है। किंतु एक दिन डाकुओं द्वारा कैद किए जाने पर पीटर को यह समझ में आता है कि किसी पक्षी को पिंजरे में नहीं रखना चाहिए तथा किसी जानवर को तंग नहीं करना चाहिए। कमरे में कैद पीटर सोच रहा था कि "मेरे मम्मी-पापा कितने दुखी हो रहे होंगे। हे भगवान, मैं कैसे निकलूंगा इस जेल से। आज समझ गया हूं कमल तेरी बात! वास्तव में जिन पक्षियों को मैं पकड़ लाता था वे और उनके माता-पिता भी इतने ही दुखी होते होंगे"।12 बच्चे को आज़ादी का सही अर्थ समझाने में कहानीकार को सफलता मिली है।

हरिंदर सिंह गोगना ने 'आओ खेलें' कहानी में बच्चों को यह संदेश देते हैं कि शारीरिक खेल अच्छी सेहत के लिए जरूरी है। इस कहानी में चिंकी और पिंकी दोनों बहनों ने ज्यादातर समय मोबाइल पर गेम्स खेलने तथा टीवी देखने में बिताती हैं। इससे न केवल उनका नजरे कमजोर होता है बल्कि पढ़ाई का समय भी खराब होता है। पिताजी फुटबॉल खेलने के लिए के मैदान में दोनों को बुलाते हैं तथा यह बताते हैं कि "मैं यह नहीं कहता कि नई तकनीक का इस्तेमाल न करें। हमें कंप्यूटर का लाभ उठाना चाहिए, खोजें करनी चाहिए, मनोरंजन भी करें मगर सेहत का भी ख्याल रखें”।13 अब दोनों बहने रोजाना थोड़ा समय शारीरिक खेलों के लिए निकलती हैं तथा आसपास अपने सहेलियों को भी खेलने के लिए बुलाती हैं। बच्चों शारीरिक खेलों से कसरत होने के साथ ही आंखों को ताजगी मिलती है, दिमाग तरोताजा रहता है, स्मरण शक्ति तेज होती है। इस तरह कहानीकार ने इस कहानी द्वारा बच्चों को शारीरिक खेलों के फायदे बता कर, तकनीक और बीमारी का शिकार होने से बचाने का प्रयास किया है।

विनोद रंजन ने अपनी कहानी 'मानवता' में बच्चों को मानवीय बने रखने की सीख देते हैं। बच्चे पढ़ लिख कर चाहे कितनी भी ऊंचाई प्राप्त कर ले, किसी भी पद पर क्यों ना हो, अपने माता-पिता और गुरु का हमेशा सम्मान करना चाहिए। इस कहानी में अध्यापक दीनानाथ के दो शिष्य बलवंत और जगन अच्छा जॉब में हैं। किंतु अपने गुरु के बीमार पड़ने पर लखनऊ में सहयोग करने की बजाय बलवंत की पत्नी अपमान करती है, जिससे अध्यापक दीनानाथ वहां से चले जाते हैं जबकि जगन अध्यापक दीनानाथ की हर तरह से मदद करता है। उनका इलाज करवाकर देखभाल कर घर भिजवाता है। इस कहानी में जगन कहता है कि "मास्टर जी, मैं तो कच्ची मिट्टी था जिसे कुम्हार की तरह गढ़ कर आपने इंसान बनाया।"14 इस तरह इस कहानी के माध्यम से कहानीकार विनोद रंजन ने बच्चों को शिक्षा दी है कि सच कहा जाता है 'मनुष्यता ही सर्वश्रेष्ठ है'।

विमल रस्तोगी ने अपनी कहानी 'कहां गए बच्चे' में बच्चों को यह संदेश देना चाहते हैं कि बिना बताए घर से बाहर बच्चों को नहीं जाना चाहिए। इस कहानी में शिवेन और किशन दो भाई हैं। उनके घर के पीछे बागवानी हैं, जहां तरह-तरह की सब्जियां उगाई जाती हैं। वही एक पेड़ पर एक चिड़िया ने अपने घोसला बनाकर दो बच्चों को जन्म दिया। चिड़िया के बच्चे बिल्ली से बचने हेतु टमाटर की क्यारियों में छिप गई, जिससे चिड़िया परेशान थी। शिवेन उनके बच्चे को खोजकर घोसले में रख देता है। इसके बाद शिवेन की माँ कहती है कि "देखा बेटा, अपने बच्चों के बिना माँ कितना बेचैन होती है।"15 इस तरह कहानी में बच्चों को यह शिक्षा दी जाती है कि बिना अपने मम्मी-पापा को बताए, घर से बाहर नहीं जाना चाहिए।

निष्कर्ष :- 'बालवानी' पत्रिका बच्चों के मानसिक, शैक्षिक, और सांस्कृतिक विकास के लिए एक महत्वपूर्ण पत्रिका है। यह पत्रिका स्मरण, कहानी, नाटक, ज्ञानवर्धक लेख/आओ सीखें, कविता, बाल लेखनी, पावन स्मृति, आवरण चित्र आदि के माध्यम से बच्चों की कल्पनाशक्ति को उड़ान देती है और उनमें साहित्य के प्रति रुचि उत्पन्न करती है। यह पत्रिका बाल मनोविज्ञान के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए विभिन्न साहित्यिक रचनाओं का उपयोग करती है, जो बच्चों के मानसिक विकास, सामाजिक व्यवहार, और भावनात्मक प्रतिक्रिया को गहराई से समझने में मदद करती हैं। इसमें विभिन्न कहानियों के माध्यम से बच्चों को नैतिक मूल्यों, मेहनत करने, सहयोग की भावना, पर्यावरण सुरक्षा, और तकनीक के समुचित उपयोग के महत्व को सिखाया गया है। इस प्रकार, 'बालवानी' पत्रिका बच्चों के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

सन्दर्भ :
  1. https://psychologywriting.com/freuds-child-development-theory/
  2. ://www.britannica.com/science/neuropsychology
  3. जयप्रकाश भारती, बाल पत्रकारिता स्वर्णयुग की ओर, परमेश्वरी प्रकाशन, प्रीत विहार दिल्ली, संस्करण-1993, पृ.–6
  4. डॉ अलका जैन, चिंकी की शरारत(कहानी), बालवानी, अंक-3-4, मई-अगस्त 2023, पृ.-44
  5. कुसुम अग्रवाल, राजू के ईयर फोन(कहानी), बालवाणी, अंक-3-4, मई-अगस्त 2023, पृ.-55
  6. जूही श्रीवास्तव, मेहनत बेकार नहीं जाती(कहानी), बालवाणी, अंक-6 , नवम्बर-दिसम्बर 2016, पृ.-9
  7. तन्मय द्विवेदी, जैसा साथ वैसी सोच(कहानी), बालवाणी, अंक-5, सितम्बर-अक्टूबर 2021, पृ.-47
  8. पवन कुमार वर्मा, खुशी के आंसू(कहानी), बालवाणी, अंक-5, सितंबर-अक्टूबर 2020, पृ.-26
  9. सुरेश बाबू मिश्रा, शपथ(कहानी), बालवाणी, अंक-6, नवंबर-दिसंबर 2019, पृ.-9
  10. प्रियंका, तीन मछलियां(कहानी), बालवाणी, अंक-6, नवंबर-दिसंबर 2017, पृ.-14
  11. अशोक अंजुम, बरगद का पेड़(कहानी), बालवाणी, अंक-3, मई-जून 2016, पृ.-21
  12. रूपनारायण काबरा, आज़ादी का एहसास(कहानी), बालवाणी, अंक-2, मार्च-अप्रैल 2017, पृ.-4
  13. हरिंदर सिंह गोगना, आओ खेलें(कहानी), बालवाणी, अंक-4, जुलाई-अगस्त 2019, पृ.-13
  14. विनोद रंजन, मानवता(कहानी), बालवाणी, अंक-1, जनवरी-फरवरी 2021, पृ.-35
  15. विमल रस्तोगी, कहां गए बच्चे(कहानी), बालवाणी, अंक-5-6, सितम्बर-दिसम्बर 2023, पृ.-25

सचिन कुमार
शोधार्थी, हिंदी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी

बाल साहित्य विशेषांक
अतिथि सम्पादक  दीनानाथ मौर्य
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-56, नवम्बर, 2024 UGC CARE Approved Journal

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