20वीं सदी का वैश्विक परिदृश्य : स्पेनी और जर्मन भाषा साहित्य-संदर्भ
- पी. कुमार मंगलम एवं शिवम मिश्र

भारत में पंचतंत्र, कथासरित सागर एवं हितोपदेश के रूप में प्राचीन काल से ही बाल-साहित्य की एक समृद्ध परंपरा रही है। इसी तरह यूरोप में ईसब की दंतकथाओं को बाल-साहित्य की आधारशिला के रूप में देखा जाता है। बाद में इन दंतकथाओं का यूरोप की अन्य तमाम भाषाओं में अनुवाद हुआ, जहां अनुवाद के साथ-साथ इनमें सामाजिक परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार कुछ-कुछ परिवर्तन भी होते रहे। 15वीं शताब्दी में लैटिन अनुवाद पर आधारित इन दंत कथाओं के जर्मन अनुवाद से फिर अन्य यूरोपीय भाषाओं में जैसे कि इतालवी, फ्रेंच, अंग्रेजी, चेक, स्पेनी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ।
प्रस्तुत लेख यहाँ उल्लिखित दो भाषाओं, स्पेनी तथा जर्मन, के कुछ विशेष सन्दर्भों पर बात करता है। हम स्पेनी तथा जर्मन भाषा में रचित बाल-साहित्य के प्रतिनिधि लेखकों की कुछ चयनित रचनाओं पर बात करेंगे।। हम यहाँ लातीनी अमरीकी देश चिले (Chile) से आनेवाली स्पेनी भाषी कवियत्री गाब्रिएला मिस्त्राल (Gabriela Mistral, 1889-1957 ) तथा जर्मनी से आनेवाले जर्मन भाषा के साहित्यकार एरिश क्येश्टनर (Erich Kästner, 1899-1974) की बात करेंगे।
यहाँ हम देखेंगे कि कैसे अलग-अलग भौगोलिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक परिदृश्यों से आ रहे साहित्य के ये संदर्भ कुछ मायनों में एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। इस बात के साथ कि यहाँ चयनित दोनों रचनाकार अलग-अलग विधाओं के जरिए अपनी बात कर रहे हैं। जहाँ एरिश क्येश्टनर मुख्य रूप से गद्य और उसमें भी लघु कहानियों तथा उपन्यासों के माध्यम से, तो वहीँ गाब्रिएला मिस्त्राल कविताओं के जरिए अपना बाल-साहित्य रचते रहे हैं। भाषा तथा विधा का अंतर, हालाँकि, इन दोनों रचनाकारों के सरोकारों की दूरी नहीं बनता, जहाँ दोनों एक-दूसरे से नजदीक दिखाई पड़ते हैं। हम देखेंगे कि कैसी दोनों अपनी-अपनी रचनाओं में बच्चों के लिए नए स्वप्न तथा नई आकांक्षाओं का एक वृहद संसार रच रहे हैं, जहाँ अलग-अलग मुद्दे और नजरिये तो हैं, लेकिन कुल मिलाकर दुनिया को बच्चों की दृष्टि से देखने-समझने की कोशिश तथा उनके लिए बेहतर बनाने की एक-सी ख्वाहिश भी मौजूद है।
बाल-सरोकारों की मीठी थपकी: गाब्रिएला मिस्त्राल -
सुदूर लातीनी अमरीका के चिली देश से आनेवाली गाब्रिएला मिस्त्राल का नाम भारत में, और खासकर हिंदी की दुनिया में शायद उतना जाना-पहचाना नहीं है। वैसे यह इस तथ्य की रोशनी में ज़्यादा हैरान नहीं करता कि हमारे यहाँ लातीनी अमरीका से आते कुछ ख़ास नामों और चेहरों पर ही बात होती है। मसलन, फिदेल कास्त्रो, चे गेवारा और बहुत हुआ तो पाब्लो नेरुदा और गाब्रिएल गार्सिया मार्केस। हालाँकि, गाब्रिएला मिस्त्राल की लेखनी से गुजरने के बाद यह बात जरूर साफ़ होती है कि भौगोलिक रूप से इतनी दूर होने के बावजूद लातीनी अमरीका की वृहद सामाजिक, सांस्कृतिक दुनिया में हमारे लिए देखने और सीखने को बहुत कुछ है। गाब्रिएला मिस्त्राल पर बात करें, तो खासकर बाल-साहित्य के नजरिए से वह एक बेहद महत्वपूर्ण नाम हैं। लातीनी अमरीका की पहली नोबेल साहित्य पुरस्कार विजेता मिस्त्राल की लेखनी का बड़ा और सबसे अहम हिस्सा दुनिया की नज़रों से ओझल और उपेक्षित रह जाती जिंदगियों तथा पहचानों को समर्पित है, जहाँ बच्चों की मौजूदगी लगातार महत्वूपर्ण है।
यहाँ दो बातें प्रमुखता से आती हैं। पहली यह कि मिस्त्राल की लेखनी से निकलते प्रचुर बाल-साहित्य का आधार उनके ठोस बाल-सरोकार हैं। दूसरी और इसी से जुड़ी यह बात कि ये बाल-सरोकार मिस्त्राल के खुद के कठिन बचपन से हासिल जीवन-अनुभवों की अभिव्यक्ति हैं। दूसरे शब्दों में, मिस्त्राल के यहाँ बाल-साहित्य उनके बाकी के साहित्य का हिस्सा भर नहीं है। और न ही वह कोई रूमानी ख्याल या उनके कृतित्व को सजाने के लिए किया कोई कृत्रिम प्रयास है। आपस में बारीकी से जुड़ते इन पहलुओं को समझने के लिए मिस्त्राल के आरंभिक जीवन से रू-ब-रू होते हुए उनके बाल-साहित्य को समझना यहाँ प्रासंगिक हो जाता है।
लातीनी अमरीकी देश चिले (Chile) के उत्तरी इलाके में एक सुदूर, छोटे-से गाँव में पैदा हुई गाब्रिएला मिस्त्राल (उनके बचपन का नाम लुसीला गोदोई अलकायागा, Lucila Godoy Alcayaga, था) का आरंभिक जीवन मुश्किलों भरा था। उनके जैसी परिस्थितियों से आनेवाले बच्चे साधनों के घोर अभाव में बचपन और तब की जरूरी पढ़ाई-लिखाई किस तरह जैसे-तैसे कर पाते हैं, यह मिस्त्राल ने खुद देखा और जिया था। उनकी बड़ी बहन की एक स्कूल में नौकरी की बदौलत वह अपनी प्रारंभिक शिक्षा जारी रख पाई थीं। यहीं से मिस्त्राल को एक शिक्षक बनकर बच्च्चों के जीवन में बेहतरी लाने की प्रेरणा मिली।
आगे चलकर मिस्त्राल न सिर्फ एक शिक्षिका बनीं, बल्कि अलग-अलग भूमिकाओं में कई अहम जिम्मेवारियों को निभाते हुए आजीवन बच्चों के अधिकारों तथा उनके लिए गरिमापूर्ण जीवन की मुखर आवाज़ रहीं।
1927 में आईं उनकी महत्वपूर्ण किताब माखिस्तेरियो ई निन्यो Magisterio y nino (माखिस्तेरियो ई निन्यो, शिक्षा और बच्चे) इस सबकी गवाही देती है। यहाँ मिस्त्राल एक न्यायसंगत दुनिया के लिए बाल-अधिकारों को बेहद जरूरी बताते हुए उनकी एक लंबी फेहरिस्त पेश करती हैं। और यह वह संयुक्त राष्ट्र संघ के बाल-अधिकारों के घोषणा-पत्र (1959) से काफी पहले करती हैं। बाल-अधिकारों को एक लेखक की संवेदना से देखने की उनकी ख़ास दृष्टि, जो आगे चलकर उनकी कई कविताओं में दिखती है, यहाँ भी सामने आती है। मसलन, जब वह कहती हैं, "बच्चों के लिए एक घर का अधिकार। घर जो न सिर्फ एक स्वस्थ वातावरण देने वाला हो, बल्कि सुंदर और परिपूर्ण भी हो” (कासाल्स हिल्स 2019)।
बाल-सरोकारों को लेकर जो संवेदना और रचनाशीलता हमें गाब्रिएला मिस्त्राल के विमर्शीय लेखन में मिलती है, उसके कई पहलू उनकी कविताओं में और ज्यादा गहराई से सामने आते है। यहाँ उनके द्वारा रचित बाल-साहित्य की कई कृतियों में दो ख़ास तरह की कृतियों का उल्लेख करना महत्वपूर्ण है। पहली कृतियाँ वे कविताएँ हैं, जहाँ वह बच्चों के वृहद संसार की तमाम छोटी-बड़ी, जानी-अनजानी स्थितियों, चीजों आदि की बात बड़ी ही संजीदगी और अर्थों की गहराई में ले जाने वाले बिंबों के जरिए करती हैं। दूसरी, जहाँ वह बाल-साहित्य की कुछ सर्वप्रसिद्ध, सर्वप्रचलित कहानियों को अपनी कविताओं के रूप में ढालती हैं, उन्हें बच्चों और खासकर बच्चियों के नजरिए से नए मोड़ और नए रूप देती हैं।
बाल-साहित्य का अनछुआ संसार: गाब्रिएला मिस्त्राल -
गाब्रिएला मिस्त्राल का रचा साहित्य काफी वृहद है और बच्चों को लेकर भी इस विपुल साहित्य में कई संदर्भ मिलते हैं। लेकिन बाल-साहित्य के नजरिए से देखें, तो उनका संग्रह Ternura (तेरनूरा, कोमलता) विशेषरूप से उल्लेखनीय है। 1924 में आए इस कविता-संग्रह की कुछ कविताओं को पढ़ना और समझना मिस्त्राल के बाल-साहित्य की कुछ यादगार उपलब्धियों से गुजरना है।
यहाँ उनकी एक विशेष कविता का संदर्भ देना प्रासंगिक होगा। Miedo (मिएदो, डर) शीर्षक की कविता पर बारीकी से नज़र डालें, तो हम देखते हैं कि मिस्त्राल बाल-साहित्य में हमेशा से प्रमुखता से दिखाए जाते, मानक बने प्रतीकों को जमीन की सच्चाइयों तक ले आती हैं। यह वह पहलू है, जो बाल-साहित्य के संदर्भ में बिल्कुल नए नजरिए को सामने लाता है। इस संदर्भ में लिखा गया ज़्यादातर साहित्य जहाँ बच्चों को इस दुनिया से दूर और आगे की एक बेहतर और बल्कि आभासी दुनिया का सपना देता है, वहीं मिस्त्राल की रचनाएँ उन्हें इसी दुनिया में, यहाँ से जुड़े रहकर, यहाँ की तमाम मुश्किलातों से होते हुए एक बेहतर दुनिया बनाने का हौसला देती हैं। इस कविता में वह कहती हैं:
"मैं नहीं चाहती मेरी बेटी
बनाई जाए एक राजकुमारी
गर वो पहनेगी सुनहरी जूतियाँ
तो फिर कैसे खेल सकेगी वह
खेतों में और जमीन पर!
और जब घिर आएगी रात
तब नहीं होगी वह मेरे साथ
मेरी बगल में लेटी हुई!
और सबसे ज्यादा
मैं यह नहीं चाहती कि
उसे एक रानी बनाया जाए
तब उसे जिस सिंहासन पर
बिठाया जाएगा
तब मैं कहाँ पहुँच पाउंगी उसके पास"! (अनुवाद: पी. कुमार मंगलम)
गाब्रिएला मिस्त्राल के बाल-साहित्य का एक बेहद ख़ास और चर्चित हिस्सा लोकप्रिय बाल-कथाओं का पुनर्पाठ करती कविताओं का है, जहाँ बाल-अधिकारों के साथ-साथ स्त्री-अधिकारों की बात भी महसूस की जा सकती है। यहाँ मिस्त्राल दुनिया भर में जानी-पहचानी तथा पीढ़ियों से दुहराई जाती रही कहानियों को अपनी कविताओं में ढालती हैं। यहाँ उनके पात्र अपने निर्णय खुद लेने वाले हैं, वे स्त्री-सौंदर्य की बनी-बनाई धारणाओं से परे जाकर नए प्रतिमान बनाते भी मालूम पड़ते हैं।
इस ख़ास पहलू पर विस्तार से बात करते अपने लेख में Andrea Casals Hills (आंद्रेआ कासाल्स हिल्स, 2019) बताती हैं कि मिस्त्राल के यहाँ 1812 में ग्रिम बंधुओं (Brothers Grimm) के द्वारा लिखी गई कहानी Snow White तथा Charles Perrault की कहानी Little Red Riding Hood, Cindrella आदि का बहुत दिलचस्प पुनर्पाठ मिलता है। यहाँ हम देख सकते हैं कि ग्रिम बंधुओं की कहानियों का जिक्र जर्मन भाषा के बाल साहित्य के संदर्भ में भी आया है। स्पेनी और जर्मन भाषा में लिखे बाल-साहित्य के यहाँ चयनित दोनों लेखकों को यह एक बात दिलचस्प तरीके से जोड़ती है।
कासाल्स हिल्स यह बात जोर देकर कहती हैं कि इन सारी कहानियों के मिस्त्राल के पुनर्पाठ में एक बात हमेशा मौजूद रहती है। और वो यह कि मिस्त्राल इन कहानियों में मौजूद बच्चियों को संजीदगी से, अपने निर्णय खुद लेने में सक्षम किरदार की तरह उभारती हैं, जहाँ वह इन किरदारों को उनकी गरिमा और उनका अपना व्यक्तित्व देती हैं। मसलन Little Red Riding Hood (लिटिल रेड राइडिंग हुड) को अपनी कविता में ढालते वक्त मिस्त्राल मूल कहानी की मुख्य पात्र को मूल कहानी की ही तरह लाल स्कार्फ और सुनहरे बालों में दिखाती हैं, लेकिन उसकी प्रचलित छवि से आगे जाकर वह उसके स्वभाव तथा प्रवृति पर ज्यादा ध्यान दिलाते हुए उसे एक संपूर्णता प्रदान करती हैं। इसी तरह मूल कहानी के उलट, जहाँ वह किरदार अपनी माँ के कहने पर अपनी दादी माँ के यहाँ जाती है, मिस्त्राल की कविता में वह अपनी मर्जी से यह यात्रा करती है।
यहाँ एक दूसरा दिलचस्प उदाहरण एक और सुप्रसिद्ध बाल-कहानी Cindrella (सिंड्रेला) का है। यहाँ मिस्त्राल के पुनर्पाठ का एक और खास पहलू सामने आता है। वह यह कि प्रचलित यूरोपीय प्रतीकों के उलट मिस्त्राल की इस कविता में परी के द्वारा सिंड्रेला को सुनहरे स्कार्फ तथा Amaranth (अमारान्त) फूलों वाले लाल रंग की पोशाक में दिखाया गया है। लातीनी अमरीका की Andes (एंडीस) पहाड़ियों पर उगने वाले Amaranth (आमारान्त) जैसे पौधों के इस तरह आते जिक्र से मिस्त्राल सिंड्रेला तथा अन्य कहानियों को उनके प्रचलित यूरो-केंद्रित परिवेश से निकालकर लातीनी अमरीका के स्थानीय रंग और रूप देने की कोशिश करती हैं। साहित्य में स्थानीय, जमीन से जुड़े संदर्भों को महत्व देने की यह एक खूबसूरत मिसाल है। इसी कड़ी में उनकी कविता cancion quechua (केचुआ गीत) शामिल की जा सकती है, जहाँ स्पेन के साम्राज्वादी कब्जे में आने से पहले लातीनी अमरीका की प्रमुख मूलनिवासी-भाषाओं में से एक Quechua (केचुआ) तथा उसके वृहद सांस्कृतिक संसार से लिए गए खूबसूरत बिंबों का बखूबी इस्तेमाल होता है
जर्मन भाषा में बाल-साहित्य -
जर्मन भाषा के बाल साहित्य पर कोई भी विमर्श ग्रिम बंधुओं के जिक्र के बिना अधूरा है। यहाँ स्पेनी भाषा के बाल साहित्य के सन्दर्भ में भी उनका जिक्र आया है और दुनिया की शायद ही कोई ऐसी भाषा हो, जिसका साहित्य ग्रिम बंधुओं से अपरिचित हो। ईसब की दंतकथाओं के बाद 19वीं सदी में ग्रिम बंधुओं के लोक कथाओं के संग्रह के प्रकाशन ने बाल साहित्य को एक नया आयाम दिया। किंडर उंट हाउस म्येर्शेन (ग्रिम की लोक कथाएं [2]) नामक उनकी पुस्तक, जिसमें लगभग 200 कहानियों का संग्रह है, और जिसका पहला प्रकाशन वर्ष 1812 में हुआ था, 20वीं सदी के आते-आते जर्मनी में बाइबल के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय पुस्तक बन गई थी। इस अभूतपूर्व लोकप्रियता के कारण ग्रिम की लोक कथाओं को बाल साहित्य का स्वर्णिम युग भी कहा जाता है। दुनिया की लगभग हर प्रमुख भाषा में अनुदित इन कहानियों को विश्व साहित्य के क्षेत्र में जर्मन भाषा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है।
इस प्रकार, हम देखते हैं कि 20वीं सदी के जर्मनी में बाल साहित्य की समृद्धि के लिए पहले से ही एक अत्यंत मजबूत आधारशिला मौजूद थी, जिसकी वजह से दो भीषण विश्व युद्धों और तमाम राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल के बावजूद यहाँ बाल साहित्य का उल्लेखनीय विकास हुआ। इस दौर में बाल साहित्य की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ाने में जो एक महत्वपूर्ण नाम सामने आता है, वह है Erich Kästner (एरिश क्येश्टनर) का। 1899 में जर्मनी के ड्रेस्डेन शहर में जन्मे क्येश्टनर एक व्यंगकार, कवि एवं उपन्यासकार थे, किंतु साहित्य की जिस विधा ने एक साहित्यकार के रूप में उन्हें जर्मनी में ख्याति दिलाई, वह है बाल साहित्य[3]। बाल साहित्य के क्षेत्र में उनके आजीवन योगदान को पहचानते हुए 1960 में उन्हें क्रिस्टिआन एंडरसन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपनी अनूठी शैली, सामाजिक आलोचना एवं हास्य के लिए मशहूर उनका साहित्य बच्चों के बीच जितना लोकप्रिय रहा, उतना ही वयस्कों के मध्य भी। जटिल विषयों को बाल सुलभ तरीके से प्रस्तुत करने में सक्षम उनकी रचनाओं में सामाजिक चिंतन, यथार्थवाद एवं हास्य का एक अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है।
इस लेख के लिए उनके बाल साहित्य से दो प्रतिनिधि बाल उपन्यासों एमिल उंट डि डिटेक्टीव: (एमिल एंड द डिटेक्टिव्स)[4] एवम प्युंक्टशेन उन्ट आन्टोन[5] (डॉट एंड आन्टोन) का चयन किया गया है। उन उपन्यासों की संक्षिप चर्चा के जरिए यहाँ 20वीं सदी के जर्मन बाल-साहित्य की एक झलक प्रस्तुत करने कोशिश की गई है। इसके साथ-साथ यह भी समझने का प्रयास किया गया है कि क्येश्टनर का बाल साहित्य किन विषयों पर केंद्रित रहा है।
एमिल उंट डि डिटेक्टीव (एमिल एंड द डिटेक्टिव्स, एमिल और बाकी जासूस) -
एरिश क्येश्टनर के लोकप्रिय बाल साहित्य में जो नाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है, वह है एमिल उंट डि डिटेक्टीव। 1929 में प्रकाशित इस बाल उपन्यास ने उन्हें न सिर्फ जर्मनी, वरन बाहर भी, विशेषकर अंग्रेजी भाषा साहित्य में एक नई पहचान दिलाई । इस बाल उपन्यास का मुख्य पात्र है 12 वर्षीय एमिल टिशबाइन, जिसकी बुद्धिमत्ता एवं साहसिक-कार्य कथानक की विषय वस्तु हैं। एमिल अपनी विधवा माँ के साथ रहता है, उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है। एमिल को किसी चीज की कमी ना रहे, इसके लिए उसकी माँ काफी मेहनत करती है। स्कूल की छुट्टियों के दौरान एमिल जीवन में पहली बार अपने रिश्तेदारों के यहाँ बर्लिन जा रहा है। काम की वयस्तता की वजह से उसकी माँ उसके साथ नहीं जा पाती है। उन्होंने एमिल हाथों उसकी दादी के लिए कुछ पैसे भिजवाए हैं, जिन्हें एमिल ने अपनी जैकेट की अंदर वाली जेब में हिफाजत से से रखा है। ट्रेन में यात्रा के दौरान उसकी आँख लग जाती है और जब वह जागता है, तो पाता है कि उसके सामने की सीट पर जो आदमी बैठा था, वह उसके पैसे चोरी करके भाग गया है। एमिल चोर को पकड़ने का निश्चय करता है और अनजान शहर में उसका अकेले पीछा करता है। इस दौरान उसकी वहाँ बच्चों के एक समूह से दोस्ती हो जाती है और उनके साथ मिलकर जासूसों की एक टीम बनाता है। तमाम मुश्किलों के बावजूद अंत में बच्चे अपनी चतुराई और बुद्धिमत्ता से चोर को पकड़वाने में सफल हो जाते हैं।
क्येश्टनर ने एमिल और उसके साथियों के रूप में ऐसे पात्र गढ़े हैं, जो कि सरलता और बहादुरी के गुणों के प्रतीक हैं, जो विपत्ति से घबराते नहीं हैं, बल्कि उसका बुद्धिमानी से सामना करते हैं। साधारण से ये बच्चे चुनौतियों के समक्ष विवेक, बहादुरी, एकजुटता और सामंजस्य का असाधारण प्रदर्शन करते हैं। उपन्यास मित्रता के माध्यम से सहयोग की भावना एवं साझा उद्देश्य की पूर्ती के लिए सामूहिकता की शक्ति पर प्रकाश डालता है।
मित्रता, साहस के अलावा क्येश्टनर इस उपन्यास में जहाँ एक ओर बच्चों की असाधारण परिपक्वता पर प्रकाश डालते हैं, वहीं दूसरी ओर वह बच्चों को जीवन में संगठन की आवश्यकता, संगठन की कार्य पद्धति एवं नेतृत्व कुशलता का पाठ भी सिखाते हैं। एमिल और एक दूसरा बच्चा जिसे प्रोफेसर नाम से संबोधित किया गया है, एमिल के चोरी हुए पैसों को वापस पाने के लिए प्रशासनिक सोच समझ के साथ योजना बनाते हैं। बच्चों के समूह में जब किसी बात पर आंतरिक मतभेद होता है तो उसे एकदम पेशेवर तरीके से संगठनात्मक दायित्व की भावना से सुलझाया जाता है। प्रोफेसर के निर्णयों को लेकर जब विवाद उठता है, तो उसे तर्क एवं संवाद के माध्यम से सुलझाया जाता है।
कथानक के अंत में एमिल की दादी ने नैतिकता का एक और पाठ समझाया। उन्होंने इस पूरे अभियान की सफलता का श्रेय एमिल या प्रोफेसर को ना दे कर उस बच्चे को दिया, जो पूरे दो दिन टेलीफोन के पास बैठा रहा। काम पसंद ना होने के बावजूद भी उसे एहसास था कि यह कितना महत्वपूर्ण है और दिए हुए काम को समूह के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उसने उसे बखूबी अंजाम दिया। एमिल की दादी के द्वारा की गई यह प्रशंसा नैतिक मूल्यों की श्रेष्ठता के संबंध में क्येश्टनर के विचारों की अभिव्यक्ति करती है। उनके अनुसार समाज के हित में कर्तव्य के प्रति निस्वार्थ समर्पण और अपनी इच्छाओं का दमन एक नैतिक अनिवार्यता है।
प्युंक्टशेन उन्ट आन्टोन (डॉट एंड आन्टोन, डॉट तथा आन्टोन) -
वर्ष 1931 में प्रकाशित इस बाल उपन्यास का नाम उपन्यास के मुख्य पात्रों के नाम पर है। इसकी दिल को छू लेने वाली कहानी के केंद्र में है 10 साल की लुइस पोग, जिसे उपन्यास में प्युंक्टशेन के नाम से संबोधित किया गया है। प्युंक्टशेन एक समृद्ध परिवार से है, उसके पिता एक बड़ी कंपनी में प्रबंधक हैं। वह एक बड़े से घर में रहती है, जहाँ उसके पास खिलौनों से भरा अपना एक अलग कमरा है। इस सबके बावजूद भी वह बहुत अकेला महसूस करती है, क्योंकि उसके माँ-बाप बहुत व्यस्त रहते हैं और उनके पास उस पर ध्यान देने के लिए समय नहीं है।
उपन्यास के दूसरे महत्वपूर्ण किरदार आन्टोन की दुनिया इसके विपरीत संघर्षों से भरी है। वह अपनी माँ के साथ एक छोटे से घर में रहता है, उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। माँ की अस्वस्थता की वजह से उसे घर चलाने के लिए स्कूल के बाद काम करना पड़ता है। साथ ही वह घर के कामों में भी सहयोग करता है। आन्टोन एक बहुत ही जिम्मेदार बच्चा है और अपनी उम्र के हिसाब से काफी परिपक्व भी। इत्तेफाक से आन्टोन और प्युंक्टशेन के रास्ते मिलते हैं और एकदम भिन्न पृष्ठभूमियों से आने के बाद भी दोनों के बीच जल्द ही गहरी दोस्ती हो जाती है।
उनकी दोस्ती की परीक्षा की घड़ी तब आती है जब आन्टोन की माँ अचानक काफी बीमार हो जाती हैं और उनकी आर्थिक स्थिति और भी ज्यादा खराब हो जाती है। आन्टोन की आर्थिक मदद करने के लिए प्युंक्टशेन अपने घर से छिप-छिपाकर माचिस बेचने की एक साहसी योजना बनाती है। उसका यह अभियान उसे एक खतरे की स्थिति में डाल देता है, जब उसका सामना उन चोरों से होता है जिनकी नजर उसके घर पर है। कथानक के चरम बिंदु पर प्युंक्टशेन और आन्टोन पुलिस को समय पर आगाह करके चोर के पकड़े जाने में मदद करते हैं। यह घटना दोनों के जीवन में एक बड़ा बदलाव लाती है। जहाँ एक ओर आन्टोन की माँ को प्युंक्टशेन के घर में नौकरी मिल जाती है, वहीं प्युंक्टशेन के माँ-बाप को भी इस बात का एहसास होता है कि उन्होंने प्युंक्टशेन के प्रति अपने दायित्व के निर्वहन में लापरवाही बरती है और वह अपने जीवन की प्राथमिकताओं के बारे में विचार करने पर मजबूर हो जाते हैं।
दोस्ती, साहस और सामाजिक दायित्व जैसे विषयों पर केंद्रित यह बाल उपन्यास यह दिखाता है कि कैसे दो अलग-अलग दुनिया के बच्चे एक दूसरे का सहारा बन जाते हैं। दो एकदम भिन्न पृष्ठभूमियों से आने वाले बच्चों की असाधारण दोस्ती की कहानी के माध्यम से क्येश्टनर ने एक ओर जहाँ तत्कालीन समाज में व्याप्त विषमता खासकर आर्थिक विषमता पर प्रकाश डाला है, वहीं दूसरी ओर यह संदेश भी दिया है कि सच्ची दोस्ती किसी भी सामाजिक सीमा के बंधन को नहीं जानती है और बच्चों के अंदर परिस्थितियों के हिसाब से खुद को ढाल लेने और सहानुभूति के गुण नैसर्गिक रूप से होते हैं। एरिश क्येश्टनर बहुत चतुराई से तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों पर व्यंग करने के साथ-साथ समाज में मानवता और एकता की भावना की अपील भी करते हैं। कथानक आशा के इस संदेश के साथ समाप्त होता है कि यदि लोग एक दूसरे के लिए खड़े हों और एक दूसरे का सहारा बनने के लिए तैयार हों, तो लोगों के जीवन में और समाज में व्यापक बदलाव लाए जा सकते हैं।
आर्थिक विषमता की पृष्ठभूमि में लिखे गए इस बाल उपन्यास में क्येश्टनर एक अत्यंत महत्वपूर्ण विचार अपने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। समृद्ध परिवार की प्युंक्टशेनऔर गरीबी में पल बढ़ रहे आन्टोन की मित्रता से क्येश्टनर ने समतामूलक सामाजिक परिस्थितियों की वकालत की है। क्येश्टनर के लिए चरित्र का बड़प्पन वर्ग की सीमाओं से परे है। प्युंक्टशेन और आन्टोन एक दूसरे की भौतिक और भावनात्मक जरूरतों को पूरा करते हैं। परस्पर का यह सहयोग मित्रता को समाज में एक सकारात्मक अनिवार्यता के रूप में स्वीकार्यता दिलाता है। आन्टोन जब पढ़ाई में अच्छा नहीं कर पा रहा था और उसके शिक्षक उसकी माँ को पत्र लिखकर इसकी शिकायत करने वाले थे तो प्युंक्टशेन ने आन्टोन की जानकारी के बगैर शिक्षक से मिलकर उन्हें आन्टोन की स्थिति के बारे में बताती है। साथ ही वह अपने बचाए हुए पैसों से भी आन्टोन की मदद करती है। बदले में आन्टोन प्युंक्टशेन के साथ समय बिताकर उसके जीवन में जो अपनेपन की कमी है, उसे पूरा करता है। क्येश्टनर यह दिखाते हैं कि मित्रता के माध्यम से बच्चों में इस बात की समझ विकसित होती है कि कैसे दो विभिन्न वर्गों के लोग एक दूसरे का परस्पर सहयोग कर सकते हैं।
निष्कर्ष : प्रस्तुत लेख में हमने दुनिया की दो मुख़्तलिफ़ भाषाओं, स्पेनी तथा जर्मन, में लिखे गए बाल-साहित्य के दो महत्वपूर्ण लेखकों पर बात की है। उनकी कुछ प्रमुख रचनाओं को सामने रख हमने यह देखने की कोशिश की है कि अलग-अलग भौगोलिक-सामाजिक पृष्ठभूमियों से वास्ता रखने वाले ये लेखक अपने रचे बाल-साहित्य में किन संदर्भों और सरोकारों को सामने लाते हैं। यह भी कि क्या इन संदर्भों तथा सरोकारों के बीच कोई साझा जगह मौजूद है। जाहिर है, दोनों लेखकों में बाल-साहित्य की विधा अलग है, उनके पात्र अपने विशिष्ट सांस्कृतिक-सामाजिक परिवेशों के पात्र हैं, जहाँ कम-से-कम ऊपरी तौर पर कोई समानता नजर नहीं आती। लेकिन, थोड़ी गहराई में जाने पर कुछ बातें खुलती हैं, जो दोनों लेखकों के बाल-साहित्य में देखी जा सकती हैं। सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह कि दोनों ही लेखकों के पात्र, जो साहित्य की अलग-अलग विधाओं में रचे गए हैं, इसी दुनिया के पात्र हैं, इसी दुनिया की सामाजिक-सांस्कृतिक विषमताओं से निकले हाड़-माँस के इंसान हैं, किसी आभासी दुनिया के कल्पित पात्र नहीं हैं। दूसरी प्रमुख साझा बात यह कि दोनों ही लेखकों में गरीब और वंचित पृष्ठभूमियों से आते किरदारों को लेकर हमदर्दी का भाव है, जो कृत्रिम या सिर्फ रूमानी नहीं है और जहाँ इन किरदारों की जिंदगी को सुखद मोड़ देने की कोशिश दिखती है। यह हम मिस्त्राल की अपनी कविताओं तथा बहुप्रचलित बाल-कहानियों के उनके पुनर्पाठ में देखते हैं, तो अपने ख़ास रूप में एरिश क्येश्टनर के उपन्यासों में भी देखते हैं।
यह लेख दो अलग-अलग प्रस्थान-बिंदुओं तथा परिदृश्यों से आनेवाले लेखकों के लेखकीय संसार को साथ रखकर समझने की एक कोशिश है। यहाँ उनके बीच मौजूद अंतर भी उतना महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है, जितना उनके बीच मौजूद साझी चीजों की संभावना, जिसे तलाशने की कोशिश यहाँ ऊपर की गई है। यह लेख इस तरह के अध्ययन को आगे बढ़ाने की दिशा में एक प्रयास है, जहाँ दूसरे विविध संदर्भों को एक साथ लेकर, और गहराई में जाकर नए-नए साझा सूत्र समझने-जानने की बेहद दिलचस्प संभावनाएँ मौजूद हैं।
संदर्भ :
[1]नॉर्टन, डोना:थ्रू दि आइज आफ ए चाइल्ड. ऐन इंट्रोडक्शन टू चिल्ड्रेन्स लिटरेचर. पियर्सन, मार्च 2010
[2]ग्रिम, विलहेल्म; ग्रिम, याकोब: किंडर- उंट हाउस म्येर्शेन. लार्जर स्ट्रीट प्रेस, अक्टूबर 2022
[3]https://www.britannica.com/biography/Erich-Kastner
[4]क्येश्टनर, एरिश: एमिल उंट डि डिटेक्टीव. सेसिली ड्रेसलर, 1991
[5]क्येश्टनर, एरिश: प्युंक्टशेन उन्ट आन्टोन. क्लेट स्प्राखे़न, 2019
- कासाल्स हिल्स, आंद्रेआ. (2019). “गैब्रिएला मिस्ट्रल की चार क्लासिक परी कथाओं की काव्यात्मक पुनर्कथन”. बुकबर्ड: अंतर्राष्ट्रीय बाल साहित्य की एक पत्रिका. 57. 1-12. 10.1353/bkb.2019.0054.
- उर्सुला के. ले गिनी (अनुवादक). गैब्रिएला मिस्ट्रल की चुनिंदा कविताएँ. यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यू मैक्सिको प्रेस. 2023.
- जीन फ्रेंको. स्पेनिश-अमेरिकी साहित्य का परिचय. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 1994
- फिलिप स्वानसन. लैटिन अमेरिकी कथा साहित्य: एक संक्षिप्त परिचय. विले-ब्लैकवेल. 2004
- नॉर्टन, डोना:थ्रू दि आइज आफ ए चाइल्ड. ऐन इंट्रोडक्शन टू चिल्ड्रेन्स लिटरेचर. पियर्सन, मार्च 2010
- क्येश्टनर, एरिश: एमिल उंट डि डिटेक्टीव. सेसिली ड्रेसलर, 1991
- क्येश्टनर, एरिश: प्युंक्टशेन उन्ट आन्टोन. क्लेट स्प्राखे़न, 2019
पी. कुमार मंगलम
सहायक प्राध्यापक (स्पेनी), कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय, कलबुर्गी
pkmangalam@cuk.ac.in, 7291914968
शिवम मिश्र *(करेस्पोंडिंग आथर)
सहायक प्राध्यापक (जर्मन), कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय, कलबुर्गी
mshivam@cuk.ac.in, 8318740665
बाल साहित्य विशेषांक
अतिथि सम्पादक : दीनानाथ मौर्य
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-56, नवम्बर, 2024 UGC CARE Approved Journal
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