अध्यापकी के अनुभव : कोलम्बिया और हम / दीपक कुमार

अध्यापकी के अनुभव : कोलम्बिया और हम
- दीपक कुमार

एक अध्यापक का पहला दायित्व जो मुझे समझ आता है, वह है- हर समय सीखते रहने की आकांक्षा रखना। जो शिक्षक साथी हमेशा कुछ नया करते हैं; किसी रचनात्मक कार्य से जुड़े रहते हैं और अपने विद्यार्थियों को सृजनात्मक गतिविधियों में संलग्न रखते हैं, ऐसे शिक्षकों के प्रति मेरे मन में अगाध श्रद्धा का भाव रहता है।कमोबेश इसी भाव से भरकर नित नई राहों पर चलने का अभ्यास मैं भी किया करता हूँ।एक शिक्षक के तौर पर एक ओर देश-विदेश में शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले नवाचार मुझे सदैव आकर्षित किया करते हैं वहीं दूसरी ओर भारतीय शिक्षा व्यवस्था की स्थिति के प्रति अनेकानेक बुद्धिजीवियों का निरंतर चिंतिंत रहना भी मुझे व्याकुल किया करता है। इसी क्रम में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विदेश में प्रयोग की जाने वाली विविध शैक्षिक प्रविधियों को जानने की लालसा मेरे मन में सदैव विद्यमान रहती है। मेरी इस उत्कट लालसा को धरातल पर उतारने का अवसर मुझे तब मिला जब राज्य सरकार ने अपने शिक्षकों को विश्व के श्रेष्ठतम 100 शिक्षण संस्थानों में जाकर अध्ययन करने का मौका देते हुए एक अभूतपूर्व और अनूठा कार्यक्रम चलाया। इस कार्यक्रम का नाम है- ‘टीचर्स इंटरफेस फॉर एक्सीलेंस’ (TIE)। एक शिक्षक के तौर पर मेरे लिए यह अवसर एक बिल्कुल नई दुनिया से परिचय कराने वाला था। मेरे पूर्व विद्यालय के एक साथी अंकित भार्गव, जो कि उस दौरान कोलम्बिया विश्वविद्यालय में अध्ययनरत थे, ने मुझे इस कार्यक्रम में भाग लेने में जो सहयोग किया, वह पूरी तरह से एक अलग आलेख लिखे जाने की अपेक्षा रखता है।इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मैंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय के अनेक प्रोफेसर्स को अपनी ओर से पत्र लिखे और एक लम्बी प्रक्रिया के पश्चात कोलम्बिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. डेनियल फ्रेडरिक ने मुझे कोलम्बिया विश्वविद्यालय के करिकुलम एंड टीचिंग डिपार्टमेंट में एक माह की अवधि हेतु अध्ययन करने के लिए आमंत्रित किया। कोलम्बिया विश्वविद्यालय में भारत के जिन विद्वान मनीषियों को अध्ययन का अवसर मिला है उनमें सबसे ऊपर यदि कोई नाम आता है तो वह है- डॉ. भीमराव आम्बेडकर। भारत गणराज्य के नागरिक के तौर पर डॉ. आंबेडकर की शैक्षिक परम्परा से जुड़ने का मौक़ा मिलना अत्यंत रोमांचित और गौरवान्वित कर देने वाला था। कोलम्बिया विश्वविद्यालय पहुँचने से पूर्व मैंने एक ओर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की उच्च शिक्षा के शिक्षकों से की गई अपेक्षाओं को बहुत गहराई से आत्मसात करने का प्रयास तो किया ही, दूसरी ओर पिछले 5 वर्षों से उच्च शिक्षा विभाग में कार्य करते हुए अपने आस-पास के महाविद्यालयी शैक्षिक परिवेश से भी मेरा गहरा परिचय रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में कार्य करते हुए हमारे महाविद्यालयों में विद्यार्थी, शिक्षक, महाविद्यालय और प्रचलित व्यवस्था के स्तर पर शिक्षा की स्थितियाँ अत्यंत चुनौतीपूर्ण हैं, ऐसे में विश्व के श्रेष्ठतम विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल कोलम्बिया विश्वविद्यालय की शिक्षण प्रविधियों को समझना और वहाँ के कक्षा-कक्ष वातावरण का अवलोकन करते हुए उनमें हमारी समस्याओं के समाधान खोजने की एक नई दृष्टि जो मुझे मिली है, यह आलेख उसी अनुभव को सार्वजनिक करने की भावना से लिखा गया है। इस आलेख के शीर्षक के एक छोर पर ‘कोलम्बिया’ है तो दूसरे छोर पर ‘हम’। इसी तरह इस आलेख को भी दो भागों में पढ़ा जा सकता है। पहले हिस्से में एक विजिटिंग स्कॉलर के रूप में कोलम्बिया विश्वविद्यालय में प्राप्त मेरे अनुभवों को प्रकाशित करने का प्रयास किया गया है, वहीं दूसरे हिस्से में हमारे परिवेश के सामान्य महाविद्यालयी व्यवस्था की चुनौतियों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है।


कोलम्बिया विश्वविद्यालय में प्रवास और वहाँ के कक्षा-कक्षों के अवलोकन के दौरान मुझे जिस एक बात ने सबसे अधिक आकर्षित किया, वह यह कि इस विश्वविद्यालय के प्रत्येक विद्यार्थी के पास अपने सेमस्टर के आरम्भ से ही यह सूचना प्राप्त होती है कि पूरे सेमस्टर के दौरान किस तिथि को किस भवन के किस कक्ष में किस प्रोफेसर की किस विषय-उपविषय की कक्षा होगी और इसके लिए कौनसी शिक्षण सामग्री का विद्यार्थी को अध्ययन करना है और किस विषय पर अपना असाइनमेंट बनाकर किस तिथि तक पोर्टल पर अपलोड करना है। इस व्यवस्था से लाभ यह होता है कि आरम्भ से ही विद्यार्थी की शैक्षणिक यात्रा में कहीं कोई भटकाव नहीं होता है और विद्यार्थी सत्र की पूरी अवधि में अपनी शैक्षणिक गतिविधियों का व्यवस्थित रूप से निर्धारण कर पाता है, वहीं हमारे कुछ प्रतिष्ठित और स्तरीय विश्वविद्यालयों को छोड़कर अधिकांश में इस तरह की कोई व्यवस्था नज़र नहीं आती है। कोलम्बिया में एक प्रोफेसर के पास एक सप्ताह में केवल 2 या 3 कालांश की ही कक्षाएँ होती हैं, इसलिए वे पूरे सप्ताह अपनी कक्षाओं के लिए भरपूर मेहनत करते हैं और अपनी कक्षा में की जाने वाली सभी गतिविधियों को पहले से ही तैयार कर लेते हैं, साथ ही लगभग सभी कक्षाओं में तकनीकी माध्यमों का प्रयोग कर वे अपने विद्यार्थियों को उस विषय के न केवल सैद्धांतिक पक्ष अपितु उसके व्यावहारिक पक्ष से भी अवगत कराने का भरसक प्रयास करते हैं। शिक्षण में जिस विद्यार्थी केन्द्रित व्यवस्था की बात अक्सर की जाती है, उसका जीवंत उदाहरण हमें यहाँ देखने को मिलता है, जहाँ कक्षाओं में ग्रुप डिस्कशन का वातावरण होता है जिससे एक ओर कक्षाएँ सजीव रहती हैं, वहीं अलग-अलग परिवेश और संस्कृतियों से जुड़े विद्यार्थियों को एक-दूसरे से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। अनेक कक्षाएँ जिनमें मेरी उपस्थिति रही, वहाँ विद्यार्थियों के एक छोटे समूह ने विषय से जुड़ी विविध गतिविधियों के माध्यम से कक्षाओं का आरम्भ किया। इस दौरान शिक्षक की भूमिका चर्चा में शामिल किसी भी अन्य विद्यार्थी के समान ही रहती है। वह अन्य विद्यार्थियों के समान ही अपनी राय देता है और विषय से जुड़ी अपनी शोधपरक जानकारी विद्यार्थियों के साथ साझा करता है। शिक्षक कक्षाओं को 4 या 5 के छोटे-छोटे समूहों में बाँटकर उन्हें कक्षा में ही किसी समस्या पर चिंतन करने, समूह में विचार-विमर्श करने और समस्या के समाधान खोजने के लिए प्रेरित करता है। इस दौरान कभी-कभी विद्यार्थियों और शिक्षक की आपसी सहमति से मद्धम संगीत भी बजाया जा सकता है, यह मेरे लिए बिल्कुल अनूठा अनुभव था। विद्यार्थियों को मिलने वाले प्रोजेक्ट्स भी कक्षा के विद्यार्थियों को समूहों में बाँटकर पूरा करने के लिए दिए जाते हैं। विद्यार्थी कक्षा में और कक्षा से बाहर इन प्रोजेक्ट्स को तय समय में पूरा करने के लिए एक-दूसरे से मिलते हैं और अपने-अपने दायित्व को पूरा करते हुए अपने प्रोजेक्ट्स को निर्धारित पोर्टल पर अपलोड करते हैं। कक्षा में अध्ययन के बाद एक विद्यार्थी में विषय की समझ कितनी विकसित हुई है, इसका आकलन करने के लिए विद्यार्थियों को हर प्रकरण के रिफ्लेक्शन लिखकर अपलोड करने होते हैं, जिनका मूल्यांकन शिक्षक द्वारा पूरी तन्मयता के साथ किया जाता है। असाइनमेंट्स, प्रोजेक्ट्स, रिफ्लेक्शन्स में किसी भी प्रकार की कमी रहने पर शिक्षक विद्यार्थी से संपर्क स्थापित कर उन्हें सप्रेम कॉफ़ी पर आमंत्रित करते हैं। अपने कार्यालय में बड़ी ही सहजता और लगावपूर्ण वातावरण में प्रत्येक विद्यार्थी की समस्या पर चर्चा करते हुए शिक्षक उनका मार्गदर्शन करते हैं और उन्हें सभी प्रकार का सहयोग देते हुए उसके कार्य को गुणवत्ता के साथ पूर्ण करने के लिए प्रेरित करते हैं। विद्यार्थी को लेखन संबंधी सहायता के लिए ग्रेजुएट राइटिंग सेंटर और व्यक्तिगत, आवास या अध्ययन संबंधी विविध समस्याओं के समाधान के लिए स्टूडेंट सपोर्ट सेंटर जैसी व्यवस्थाएँ एक विश्वस्तरीय संस्थान में ही संभव हैं। कक्षा-कक्ष में शिक्षक या विश्वविद्यालय द्वारा थोपा गया कठोर अनुशासन नहीं रहता है। भारतीय वातावरण से निकले हुए एक व्यक्ति को यह अजीब लग सकता है कि लगभग सभी विद्यार्थी अपने साथ खाने-पीने की सामग्री साथ लाते हैं और कक्षा-कक्ष के वातावरण को किसी भी प्रकार बाधित न करते हुए, अपने लेपटॉप या निरंतर काम करते हैं तथा कक्षा में अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करते हैं

जिन कक्षाओं में मैं शामिल हुआ उन कक्षाओं के पाठ्यक्रम और शिक्षण सामग्री का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने पर मैंने पाया कि एक विश्वस्तरीय संस्थान में केवल संयुक्त राज्य अमेरिका ही नहीं अपितु पूरी दुनिया के विविध देशों के अनेकानेक पहलुओं को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाता है। यहाँ के पाठ्यक्रम में ध्यान देने वाली बात ये है कि इनमें शामिल अध्ययन सामग्रियों में पुस्तकों के साथ-साथ प्रतिष्ठित जर्नल्स में बिल्कुल नए प्रकाशित शोधपत्र भी शामिल होते हैं, जिससे विद्यार्थियों को किसी विषय की केवल घिसी-पिटी और अप्रासंगिक पड़ चुकी जानकारियों से इतर उस विषय के संबंध में हुई नवीनतम खोजों और अध्ययनों के प्रति जागरूक होने की दिशा में आगे बढ़ाया जाता है।


चूंकि मैं कोलम्बिया विश्वविद्यालय के टीचर्स कॉलेज में था, इसलिए यहाँ की कक्षाओं में अलग अलग देशों में प्रचलित शिक्षण पद्धतियों का अध्ययन करने का अवसर मिला, वहीं यह भी अनुभव हुआ कि सूडान, जापान, कोलोम्बिया तथा अन्य अफ्रीकी और एशियाई देशों की शैक्षणिक समस्याओं को केंद्र में रखते हुए और शिक्षा के परास्नातक विद्यार्थियों को वैश्वीकरण के खतरों के प्रति सचेत करते हुए उनके लिए जिस प्रकार का वैश्विक पाठ्यक्रम तैयार किया गया है; उसी से विश्व के अलग अलग देशों में अध्यापन हेतु वैश्विक शिक्षक तैयार किया जाना सम्भव है। यहाँ अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया में मुझे कुछ शब्द बहुतायत में सुनाई पड़े, वे हैं ‘वि-औपनिवेशीकरण’, ‘स्वदेशी समाज’ और ‘समावेशी शिक्षा’। इसी से जोड़कर देखता हूँ तो ध्यान आता है कि हमारे देश में हाल ही में लागू की गई नई शिक्षा नीति 2020 में भारतीय ज्ञान व्यवस्था पर विशेष बल दिया गया है, जो मुझमें भारतीय शिक्षा में निकट भविष्य में दिखाई देने वाले सम्भावित परिवर्तनों के प्रति आशा जगाते हैं।


कोलम्बिया विश्वविद्यालय के पुस्तकालयों ने भी मुझे खासा रोमांचित किया। यूँ तो यहाँ सभी महाविद्यालयों के भवनों में अपने-अपने पुस्तकालय हैं लेकिन एक केन्द्रीय पुस्तकालय के रूप में ‘बटलर लाइब्रेरी’ का विशाल भवन सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह लगभग 12 स्तरों में फैला हुआ एक भव्य और 20 लाख से अधिक पुस्तकों को सहेजे हुए एक अत्यंत समृद्ध पुस्तकालय है, जहाँ पूरी दुनिया के हर कोने के ज्ञान को समेटकर शोधार्थियों के लिए उपलब्ध करवाया गया है। इसी भवन के एक हिस्से में मुझे विभिन्न भारतीय भाषाओं के साथ-साथ राजस्थानी और हिंदी साहित्य की ऐसी अनेक कालजयी कृतियाँ, पांडुलिपियाँ और पत्रिकाओं के पुराने अंक देखने को मिले जिनसे मैं भारत में रहते हुए भी अब तक अछूता रहा था। इसी भवन में बड़े व खुले अध्ययन कक्ष और सेमीनार कक्ष हैं, तो वहीं एकांत में अध्ययन करने के लिए भी छोटे-छोटे अनेक कक्ष हैं, जहाँ विद्यार्थी शांत वातावरण में निरंतर अध्ययन में डूबे रहते हैं। इस पुस्तकालय की जो बात सबसे अधिक रोमांचित करती है वह यह है कि यह पुस्तकालय दिन और रात के सभी चौबीस घंटों के लिए हमेशा खुला रहता है, और यह भी कि कोई भी पंजीकृत विद्यार्थी इस पुस्तकालय से अपनी आवश्यकतानुसार कितनी भी पुस्तकें एक बार में जारी करवा सकता है।


टीचर्स कॉलेज के कैम्पस में सभी विद्यार्थियों के लिए प्रत्येक शनिवार को होने वाली कार्यशालाओं का भी विद्यार्थियों के लिए बड़ा महत्त्व है। यहाँ विद्यार्थी अलग अलग विषयों पर एक बड़े शिक्षक समूह के साथ बैठकर अलग-अलग विषयों पर वार्तालाप करते हैं और विविध गतिविधियों के माध्यम से नवीन ज्ञान का सृजन करते हैं, साथ ही विद्यार्थियों को समुदाय की समस्याओं के समाधान की दृष्टि प्रदान करना इन गतिविधियों का विशेष लक्ष्य होता है। 
यूँ तो कोलम्बिया विश्वविद्यालय में प्रवास के दौरान प्राप्त अनुभवों को लिखने के लिए पूरी एक पुस्तक की सामग्री तैयार हो सकती है, लेकिन आलेख की सीमाओं को ध्यान रखते हुए बहुत संक्षेप में मैं अब इस आलेख के दूसरे हिस्से में हमारी महाविद्यालयी व्यवस्था की चुनौतियों को रेखांकित करना चाहता हूँ। सबसे पहली चुनौती है महाविद्याली शिक्षा के प्रति समाज और विद्यार्थी की उपेक्षादृष्टि। राजकीय महाविद्यालयों में अध्ययन करने वाले विद्यार्थी जिस सामाजिक-आर्थिक परिवेश से संबंध रखते हैं, वहाँ एक ओर उन पर महाविद्यालय में उपस्थित रहने के स्थान पर किसी छोटे-मोटे घरेलू व्यवसाय या कृषिकार्य से जुड़कर घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने में सहयोग देने का दबाव रहता है, वहीं दूसरी ओर विद्यार्थी महाविद्यालय में डिग्री अर्जित करने के साथ-साथ किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हुए यथाशीघ्र रोजगार प्राप्त करने की भावना रखता है। यही कारण है कि बहुत कम विद्यार्थियों में महाविद्यालयी शिक्षण व्यवस्था के प्रति पर्याप्त रूचि और गंभीरता देखने को मिलती है। यद्यपि नई शिक्षा नीति 2020 में महाविद्यालयी शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाए जाने पर अत्यधिक बल दिया गया है, जिससे भविष्य में इस दृष्टिकोण में क्रांतिकारी बदलाव आने की सम्भावना के प्रति आशान्वित हुआ जा सकता है।

दूसरी तथा बड़ी समस्या महाविद्यालय व्यवस्था से जुडी हुई मुझे दिखाई देती है, जहाँ एक ओर महाविद्यालयों में शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात में अत्यधिक अंतर; ग्रामीण क्षेत्र के महाविद्यालयों में विभिन्न विषयों के शिक्षकों की कमी तथा शिक्षकों पर अकादमिक के साथ कार्यालयी कार्यों की अधिकता से पड़ने वाले दबाव से एक ओर शिक्षक के पास शोध गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय नहीं रहता है, वहीं दूसरी ओर शिक्षक के पास अपने सभी विद्यार्थियों से जुड़ने और उनका व्यक्तिशः मूल्यांकन करने की स्थितियाँ भी बन नहीं पाती हैं, जिसके कारण विद्यार्थियों की शैक्षणिक उपलब्धि नकारात्मक रूप से प्रभावित होती हैं। वहीं शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले सुधारों के प्रति पर्याप्त प्रशिक्षण का अभाव भी शिक्षकों की क्षमताओं को प्रभावित करता है।

तीसरी समस्या विश्वविद्यालयी स्तर की है, जहाँ पाठ्यक्रम निर्माण की पारंपरिक व्यवस्थाएँ ही चल रही हैं। पाठ्यक्रम में नवीन शोध सामग्री का प्रवेश नहीं होने से शिक्षक और विद्यार्थी के लिए अध्ययनसामग्री धीरे-धीरे बोझिल होती चली जाती है। वहीं परम्परागत परीक्षा प्रणाली के माध्यम से किए जाने वाले मूल्यांकन की वैधता और विश्वसनीयता भी निरंतर संदेह के घेरे में रहती है। वार्षिक परीक्षा प्रणाली में ही विश्वविद्यालयों में परीक्षा और परिणाम में देरी से सत्र में देरी हुआ करती थी, वहीं अब सेमेस्टर प्रणाली के लागू होने पर विश्वविद्यालयों की चुनौतियाँ और अधिक बढ़ने वाली हैं। एक और समस्या महाविद्यालयों के पास पर्याप्त तकनीकी माध्यमों और संसाधनों के अभाव से संबंधित है। अनेकानेक महाविद्यालयों में व्यवस्थित पुस्तकालय, प्रयोगशाला, स्मार्टरूम आदि जैसी न्यूनतम सुविधाएँ भी उपलब्ध नहीं हैं। यद्यपि राज्य और केंद्र सरकारें निरंतर महाविद्यालयी शिक्षा को समृद्ध करने की दिशा में निरंतर प्रयास कर रही हैं लेकिन भारत देश की विशाल जनसंख्या और विस्तृत विद्यार्थी समूह की अपेक्षाओं को पूरा किया जाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। यदि गहराई से देखें तो नई शिक्षा नीति 2020 और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा महाविद्यालयी विद्यार्थियों के लिए जो लर्निंग आउटकम्स निर्धारित किए गए हैं, उनमें तार्किक और आलोचनात्मक दृष्टिकोण, अन्तःअनुशासनात्मक विषयों की समझ, समस्या-समाधान की दृष्टि, रोजगारोन्मुख शिक्षा, भारतीय ज्ञान व्यवस्था, डिजिटल साक्षरता, सामाजिक दायित्वबोध, रचनात्मकता, टीमवर्क की भावना के विकास, मूल्य आधारित समावेशी शिक्षा आदि विद्यार्थी केन्द्रित शिक्षा के विविध तत्वों का समावेश किया गया है, वहीं कोलम्बिया जैसे विश्व के कमोबेश सभी श्रेष्ठतम विश्वविद्यालयों के लर्निंग आउटकम्स में इन्हीं सब तत्वों को चिह्नित किया जा सकता है। इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि अवधारणात्मक दृष्टि से हमारी महाविद्यालयी शिक्षा की दिशा वैश्विक संस्थानों के समानान्तर ही चल रही है लेकिन मूल समस्या उसके उसी रूप में धरातल पर उतारने से जुड़ी हुई है, जिसके समाधान के लिए हमें अभी एक लम्बी यात्रा तय करनी है। आशा है यह यात्रा निकट भविष्य में अपने लक्ष्य तक अवश्य पहुँचेगी और हमारे महाविद्यालय भी वैश्विक स्तर के संस्थानों से प्रतिस्पर्द्धा कर सकेंगे।

दीपक कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर (हिंदी), राजकीय महाविद्यालय खैरथल (राजस्थान)
विजिटिंग स्कॉलर, टीचर्स कॉलेज, कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क
  
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-57, अक्टूबर-दिसम्बर, 2024 UGC CARE Approved Journal
इस अंक का सम्पादन  : माणिक एवं विष्णु कुमार शर्मा छायांकन  कुंतल भारद्वाज(जयपुर)

6 टिप्पणियाँ

  1. अगर आपकी जैसी सोच अन्य लोगो की भी हो जाए तो ज्यादा समय नहीं लगेगा। तो चलिए हम भी आपके साथ देश को समृद्ध बनाने का प्रयास करते हैं।👍

    जवाब देंहटाएं
  2. हर समय सीखते रहना ही श्रेष्ठ शिक्षक है।।

    जवाब देंहटाएं
  3. शिक्षक वो नहीं जो सिर्फ कक्षा में पढ़ाए, शिक्षक वो जो कक्षा ओर बाहर हर जगह सीखे और सिखाए ओर आप इस क्षेत्र में सूर्य के प्रखर तेज की भांति कार्य कर रहे है। आप का स्थान सर्वोपरी है।🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. मनोज कुमार यादवफ़रवरी 01, 2025 7:20 am

    आप खैरथल - तिजारा जिले के हीरे हो दीपक सर
    जिनका नाम ही दीपक है वह भला क्यूं न जगमगाएगा। दीपक वह है जो खुद जलकर दूसरों को प्रकाशित करता है आपने अपने नाम को सार्थक किया है सर। धन्य हैं वो लोग जिन्हें आपके साथ काम करने का अवसर मिला है। आपकी तारीफ में शब्द भी कम पड़ जातें हैं सर।
    जय हिंद जय भारत।
    वन्दे मातरम्।

    जवाब देंहटाएं
  5. कमलेश कुमारफ़रवरी 01, 2025 7:40 am

    पढ़ने पढ़ाने की परंपरा एवं रचनात्मक कार्यो से जुड़े रहने से ही मैं विष्णु सर से प्रेरित हुआ।।इसी कारण उनके प्रति मेरी अगाध श्रद्धा हुई।।इस परंपरा के सूत्र बीज मैंने नजदीकी से देखा।।
    दीपक सर का यह आलेख प्रेरणात्मक और जानकारी स्वरूप सभी को अवश्य पढ़ना चाहिए।।🙏

    जवाब देंहटाएं
  6. हेमंत कुमारफ़रवरी 03, 2025 12:31 pm

    कोलम्बिया प्रवास के अनुभव को जिस तरह आपने लिखा है , वह आपके भीतर के गंभीर अध्यापक की छवि सामने लाता है। प्रो. पी. डी. शर्मा 'पथिक' का अमेरिकन शिक्षा व्यवस्था संबंधी आकलन भी लगभग इसी तरह का था। यहाँ-वहाँ के अंतर को बखूबी बूझते हुए और यहाँ के सैद्धांतिक और व्यवहारिक स्थितियों के फर्क को जानते हुए भी आप आशान्वित हैं , यह बड़ी बात है दीपक जी!

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने