अमृतलाल नागर का बाल साहित्य
- ऋचा पुष्कर

बीज शब्द : संस्कार, नैतिक मूल्य, मानवता, वैज्ञानिकता, बौद्धिक विकास, प्रतिस्पर्धा, राष्ट्रीयता, कल्पनालोक, मनोरंजन, सभ्यता, संस्कृति।
मूल आलेख :
“यन्नवे भाजने लग्नः संस्कारो नान्यथा भवेत
कथाच्छलेन बालाना नीतिस्तदिह कथ्यते।”¹
‘पंचतंत्र’ में ‘विष्णु शर्मा’ द्वारा लिखित यह श्लोक, बाल साहित्य के स्वरूप को प्रतिबिंबित करता है, जिसका अर्थ है कि जिस प्रकार किसी नए पात्र के कोई संस्कार नहीं रहते, उसी प्रकार बच्चों की स्थिति होती है। इसलिए उन्हें कथा आदि के द्वारा ही नीति के संस्कार बताना चाहिए। बहरहाल, बच्चे देश के भावी कर्णधार एवं राष्ट्र निर्माता होते हैं। उनके चरित्र निर्माण और मानसिक विकास को अनदेखा कर, देश में एक नवीन चेतना की नींव रखना असंभव है। निः संदेह बच्चों को ऐसे साहित्य की जरूरत है जो उन्हें कल्पनाशील बनाए एवं जीवन के नैतिक तथा शास्वत मूल्यों से परिचित कराने में समर्थ हो। बालकों के लिए रचे गए ऐसे साहित्य, ‘बाल साहित्य’ कहलाते हैं। ‘द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी’ के अनुसार,
“बाल साहित्य मेरी दृष्टि में वह साहित्य है जो चार वर्ष से चौदह वर्ष तक के बालक-बालिकाओं के लिए कविता, कहानी, नाटक, निबंध, जीवनी, वार्तालाप आदि विधाओं में लिखा गया हो। जो बाल पाठकों को मनोरंजन एवं आनंद प्रदान करते हुए उनका सर्वांगीण विकास करें और साथ ही बौद्धिक विकास में सहायक हो ”²
बाल साहित्य, बाल जिज्ञासाओं को तृप्त करने के साथ-साथ उन्हें ज्ञान और संस्कार देने के दायित्व का भी निर्वहन करता है। क्योंकि बचपन के निर्माण में पारिवारिक वातावरण के साथ-साथ विद्यालय एवं बच्चों की पाठ्य सामग्रियों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।
प्राचीन काल में संस्कृत ग्रंथों, यथा श्रीमद्भागवत, उपनिषद एवं पुराणों में बाल लीला के रूप में बाल साहित्य के बीज पड़े थे। साथ ही इन ग्रंथों में गुरुजन, बच्चों को उच्च चरित्र एवं नैतिकता आदि का ज्ञान दिया करते थे।
हिन्दी साहित्य के विकास के क्रम में आदिकाल के अंतर्गत बाल साहित्य, साधारण ज्ञानबोध तक ही सीमित था। इस काल में पहेलियों, मुकरियों तथा नीतिपरक दोहों के माध्यम से बालकों में ज्ञान का संचार हुआ। इस संदर्भ में ‘अमीर खुसरो’ को एक प्रतिनिधि साहित्यकार माना जा सकता है। इनकी मनोरंजक पूर्ण पहेलियाँ बच्चों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुईं। इसके उपरांत भक्तिकाल में भक्त कवियों के द्वारा रचित दोहे, कवित्त एवं राम – कृष्ण की बाल लीलाओं से संबंधित पद यद्यपि बच्चों के लिए नहीं लिखे गए थे तथापि इसके अन्तर्गत व्याप्त उदेशात्मक प्रवृत्ति एवं नीतिपरक अभ्यर्थना बच्चों के लिए उपयुक्त बाल साहित्य माना जा सकता है। इस संबंध में, ‘डॉ. चक्रधर नलिन’ लिखते हैं– “सूर की बाल मनोवैज्ञानिक दृष्टि बच्चों को आनंद तथा वात्सल्य से विभोर कर देती है। तुलसी ने बच्चों में शक्ति, प्रेरणा और ब्रह्म तत्व का जागरण करने के लिए श्रीराम कथा तथा हनुमान संबंधी बालकाव्य का सृजन किया। दृश्य काव्य के रूप में रामलीला, कृष्ण लीला, सत्यवादी हरिश्चंद्र आदि का विकास इसी काल की देन है जो बच्चों के लिए लिखित साहित्य का आधार बिंदु है।”³
मध्यकाल के अन्तर्गत काव्य के रूप में कवियों की ये रचनाएँ बाल मनोविज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। क्योंकि नीति एवं उपदेश तथा शक्ति परक दोहे बालमन पर एक गहरी छाप छोड़ते हैं जो आजीवन उनके लिए पथ प्रदर्शक का काम करती है। बाल मनोविज्ञान की दृष्टि से इस युग का साहित्य महत्वपूर्ण है। अपितु ये साहित्य मुख्यतः बच्चों के लिए नहीं लिखा गया था, अतः अपेक्षित रूप से बालकों तक पहुँचने एवं उनकी संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने से अलग रहा।
आधुनिक काल में बाल साहित्य ने अपने चरम को प्राप्त किया। बाल साहित्य की दृष्टि से यह युग स्वर्ण काल रहा है। इस काल में न सिर्फ बालकों से संबंधित विषय वस्तु अर्थात नवीन ज्ञान-विज्ञान एवं उनमें एक व्यापक जीवन दर्शन की समझ विकसित करने वाला साहित्य रचा गया बल्कि इस साहित्य को पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से उन तक पहुँचाया भी गया। इस युग में रचित बाल साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण आयाम है कि इस युग में स्वंत्रता प्राप्ति के लिए किए जा संघर्षों को केंद्र में रखकर अत्यंत मनोरंजक पूर्ण शैली में बाल कविता, बाल कहानी, बाल नाटक एवं बाल उपन्यासों का सृजन किया गया। बच्चों में राष्ट्रीय जागरण का मंत्र फूंकना इस युग के बाल साहित्य का प्रमुख उद्देश्य है।
हिन्दी में बाल साहित्य लेखन के इतिहास में अमृतलाल नागर एक महत्वपूर्ण लेखक हैं। इनके द्वारा लिखित बाल साहित्य का फलक काफ़ी विस्तृत है। हिन्दी साहित्य में इन्होंने एक तरफ प्रौढ़ साहित्य के रूप में कथा साहित्य , संस्मरण एवं रिपोर्ताज के माध्यम से साहित्य को समृद्ध बनाया तो वहीं दूसरी तरफ बालकों के लिए साहित्य रचकर उन्हें मूल्यवान संपत्ति से संपृक्त किया। अमृतलाल नागर के बाल साहित्य का सृजन काल लगभग 20वीं सदी का चौथा दशक रहा है। इनका बाल साहित्य अपनी विशिष्ट जीवन दृष्टि एवं मानवीय तत्वों से परिपूर्ण होने के कारण बच्चों में एक नवीन चेतना को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अपने बाल साहित्य सृजन कर्म के संबंध में नागर जी स्वयं लिखते हैं – “अब सबसे ज्यादा ताज़गी मुझे बच्चों से मिलती है। उन्हें नित नई कहानियाँ गढ़कर सुनाने में मन का खिलवाड़ भी पूरा होता है।”⁴
अमृतलाल नागर ने बच्चों के मानसिक विकास हेतु नैतिक मूल्यों से संपृक्त साहित्य को महत्व दिया है। इन्होंने अपने बाल साहित्य में ऐसे विषयों को प्रमुखता दी है जिसमें भारतीय सभ्यता और संस्कृति का गौरव विद्यमान है। बाल साहित्य में ऐसे विषयों को प्रमुखता देने के पीछे नागर जी मूल उद्देश्य बच्चों को पाश्चात्य सभ्यता के अनुकरण एवं आधुनिक युग में उत्पन्न कुछ नकारात्मक प्रभावों से बचाना है। इन्होंने बच्चों में कल्पनाशीलता एवं साहस को बढ़ावा देने के लिए पौराणिक घटनाओं को समायोजित कर उसे एक नए अर्थबोध के साथ रोचक एवं मनोरंजक रूप में प्रस्तुत किया जिससे बालकों में ज्ञान की नई चेतना विकसित हो सके। इस संदर्भ में नागर जी द्वारा लिखित ‘बाल महाभारत’ को हम देख सकते हैं। इनके बाल साहित्य में ‘बजरंगी पहलवान’, ‘आ जा री निंदिया’, ‘नटखट चाची’, ‘अक्ल बड़ी या भैंस’, ‘बहादुर सोमू’, ‘रानी मक्खी की चतुराई’, ‘सात पूँछों वाला चिंकू’ आदि रचनाएँ बेहद महत्वपूर्ण हैं। अपने बाल साहित्य के उद्देश्य को प्रकट करते हुए ‘बाल महाभारत’ की भूमिका में इन्होंने लिखा है- “अपने पुरखों की कहानियों को ठीक तरह से जानो ताकि उनपर तुम्हारी श्रध्दा बराबर बनी रहे। मुझसे महाभारत सुनकर तुमको लगेगा कि पुरानी महान कथा तुम्हारे इस रॉकेट युग में भी सुनने योग्य है। विश्वास रखो बच्चों मैं तुम्हें बड़े ही रोचक ढंग से तुम्हारी जानी पहचानी कथाओं को एक नया अर्थबोध देकर तुम्हें सुनाऊंगा।”⁵
अमृतलाल नागर के बाल साहित्य में वो सभी प्रवृत्तियाँ परिलक्षित होती हैं जो बालमन की चेतना को प्रभावित करती है तथा उन्हें एक नए दृष्टिकोण के साथ नवीन कल्पना करने की राह में प्रवृत्त करती है। यथा – राष्ट्रीय चेतना, सामाजिक एवं सांस्कृतिक चेतना तथा वैज्ञानिकता, कल्पनाशीलता, जिज्ञासा, नैतिकता आदि । ये विषय वैविध्य अमृतलाल नागर के बाल साहित्य के प्राण तत्व हैं जो बच्चों के मस्तिष्क को प्रेरित एवं प्रोत्साहित करने का काम करती है। इन्हीं विषय वैविध्य के आधार पर हम अमृतलाल नागर के बाल साहित्य की अंतर्वस्तु का विश्लेषण कर सकते हैं।
हिन्दी साहित्य के अंतर्गत 20वीं सदी का चौथा दशक अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं के कारण उथल- पुथल का दशक रहा है। ऐसे दौर में साहित्यकारों का मुख्य उद्देश्य आम जनता के बीच राष्ट्रीयता का प्रचार-प्रसार करना था। अतः एक सफल बाल साहित्यकार होने के दायित्व का निर्वहन करते हुए अमृतलाल नागर ने अपने कथा साहित्य के माध्यम से बच्चों में राष्ट्रीयता के बीज बोने का प्रयास किया। इन्होंने भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान घटित घटनाओं को समायोजित कर बच्चों के समक्ष अत्यंत मनोरंजक शैली में पेश किया। इस संदर्भ में बाल उपन्यास ‘बजरंगी पहलवान’, ‘इकलौते लाल’ और ‘बलिया के बाबा’ कहानी उल्लेखनीय है। ‘बलिया के बाबा’ कहानी में नागर जी ने एक बाबा के माध्यम से बच्चों को ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान उत्पन्न परिस्थितियों से रु ब-रु कराया है। राष्ट्रीय आंदोलनों को कथा के माध्यम से बच्चों के समक्ष प्रस्तुत कर लेखक ने देशभक्ति का संदेश दिया है। साथ ही अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की प्रेरणा दी है। ‘बलिया के बाबा’ कहानी का बाबा भी बच्चों को यही शिक्षा देता है – “ लड़कों बाबा तो सदा नहीं रहेंगे पर बाबा की यह बात सदा याद रखना कि ज़ुल्म और अन्याय से लड़ने का नाम ही जवानी है।”⁶
चूंकि बालक किसी भी देश के भविष्य का निर्माता है। अतः एक बाल साहित्यकार का दायित्व है कि वह बच्चों के समक्ष ऐसी कथाएँ परोसे जो उनमें, अपने देश के प्रति प्रेम जागृत कर सकें।
बहरहाल,इस दौर में पूंजीवाद की जड़ें मजबूत होने के साथ ही समाज का कलेवर बदलता है। मुट्ठी भर पूंजीपतियों का अधिपत्य समाज की संपत्ति पर होने के कारण, देश का भविष्य एवं वर्तमान निर्धारित करने वाली शक्तियाँ भी इनके हाथों में थी। फलस्वरूप समाज में स्वार्थ, ईर्ष्या और घृणा जैसे भावों का बड़े स्तर पर उदय हुआ। समाज में प्रचलित इस प्रकार की प्रवृत्तियों के प्रति बच्चों को सचेत करने के लिए अमृतलाल नागर ने एक महत्वपूर्ण उपन्यास लिखा – ‘बजरंगी नौरंगी’। इस उपन्यास में एक पहलवान तथा एक जादूगर द्वारा शोषित एवं पीड़ित लोगों की रक्षा तथा दुश्मनों से उन्हें मुक्ति दिलाने की कथा को प्रस्तुत किया गया है। उपन्यास में नौरंगी एक जादूगर है जिसमें तमाम अच्छाइयों के बावजूद एक बुराई भी है कि वह समाज में लोगों के बीच भूत-प्रेत एवं बीमारियाँ भगाने हेतु ढोंग भी करता है। उपन्यास के अंत में चांगचू द्वीप की जनता को दुष्टों से छुटकारा दिलाते हुए नौरंगी को अपने ढोंग पर पछतावा होता है। वह बजरंगी को कहता है – “ मैं वचन देता हूँ। कभी-कभी नीतिवश तो उचित समझने पर यह ढोंग अवश्य करूँगा, पर धन या स्वार्थों के लिए कभी ढोंग नहीं करूँगा।”⁷
उपर्युक्त उद्धरण बालकों में नैतिकता के मंत्र फूंकने का प्रयास करती है। सामाजिक जीवन में प्रचलित स्वार्थलोलुप प्रवृत्ति को नियंत्रित करने तथा बच्चों को उचित दिशा में अग्रसर करने में अमृतलाल नागर के बाल उपन्यास महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि बच्चों के लिए उपन्यास एक ऐसी विधा है जो उनके मन की अनेक हलचलों एवं गुत्थियों को सुलझाने में अपना योगदान देती है। चूंकि उपन्यास में घटनाएँ तेजी से बदलती हैं।अतः बच्चों के अंदर उत्सुकता बनी रहती है। ‘हरिकृष्ण देवसरे’ के अनुसार – “ बच्चों के उपन्यास का अपना विशिष्ट महत्व इसलिए भी है कि बच्चे साहसिक, रोमांचक, ऐतिहासिक, एवं वैज्ञानिक विषयों पर लंबी कहानियाँ पढ़ने में रुचि लेते हैं। बाल उपन्यास उन्हें पूरा मनोरंजन और संतोष देत हैं।”⁸
अमृतलाल नगर के बाल साहित्य की एक प्रमुख विशिष्टता है कि इन्होंने पुराणों, उपनिषदों, रामायण एवं महाभारत के महत्वपूर्ण चरित्रों को बच्चों के समक्ष प्रस्तुत किया। राम, कृष्ण आदि चरित्रों के जीवन में घटित घटनाओं को देख कर बच्चों में कठिनाइयों से जूझने का साहस, वीरता, दृढ़ संकल्प, बुद्धि कौशल एवं सुझ-बुझ विकसित हो सके, यही लेखक का उद्देश्य है। इस दृष्टिकोण से नागर जी का ‘बाल महाभारत’ महत्वपूर्ण है। इन्होंने, इस रचना के माध्यम से बच्चों को भारतीय इतिहास की झलक दिखाने के साथ-साथ उनकी चेतना को वैज्ञानिक चिंतन के धरालत पर पहुँचाने का प्रयास किया है। कर्मयोगी श्रीकृष्ण का जीवन वृतांत बताते हुए ‘बाल महाभारत’ में अमृतलाल नागर लिखते हैं – “तुम्हारे सामने मानव इतिहास का एक ऐसा महापुरुष आ रहा है जिसने हम सबके जीवन को अपने कर्म रूपी रंगों से भर दिया था। वह बूढ़े-बुढ़ियों के लिए नटखट कान्हा था, साथियों के लिए माखन चोर गोपाल, राजनीतिज्ञों के लिए जननायक , योगियों के लिए परम ब्रम्ह और अन्याय के विरुद्ध विद्रोह करने वालों के लिए आदर्श नायक था।”⁹
बहरहाल, अमृतलाल नागर के बाल साहित्य का एक प्रगतिशील पक्ष है कि इन्होंने बच्चों के जीवन को आकार देने वाले सामाजिक विचारों एवं अनुभूतियों को उनके समक्ष, शहद की बूंदों की तरह परोसने का प्रयास किया है। इन्होंने सामाजिक विकृतियों एवं असंगतियों से बच्चों को रु- ब- रु कराया साथ ही उनका समाधान भी प्रस्तुत किया। दरअसल कुछ घटनाएँ बाल मनोविज्ञान पर सकारात्मक प्रभाव के साथ-साथ नकारात्मक प्रभाव भी डालती हैं। इस संदर्भ में इनकी महत्वपूर्ण कहानी है – ‘ चोर बना कोतवाल’।इस कहानी में दिव्यांग लोगों के साथ समाज का नकारात्मक रवैया प्रस्तुत किया गया है, साथ ही बच्चों को यह संदेश दिया गया है कि अपंगता शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक होती है। समाज में, दिव्यांग लोगों के प्रति मानवीय व्यवहार हो, यही इस कहानी का मुख्य ध्येय है। इसके अतिरिक्त इस कहानी के मुख्य पात्र ‘सुनार’ को केंद्र में रख , बालकों को चरित्र निर्माण की शिक्षा देना भी लेखक का उद्देश्य रहा है। कहानी में ‘सुनार’ मेहनती एवं कार्यकुशल होने पर भी परिस्थितिवश चोरी करता है एवं अपने अपराध को सबके सामने स्वीकारता है तो वहाँ यह कहानी बाल पाठकों को यह शिक्षा देती है कि अपने गलतियों की प्रायश्चित उसे स्वीकार करने पर ही हो सकती है। इसी बात के मद्देनजर, अपनी सच्चाई एवं ईमानदारी दिखाते हुए ‘सुनार’ कहता है – “ मैं सचमुच चोर नहीं हूँ ,भूख के मारे लाचार होकर चोर बना हूँ। मैं अच्छा सुनार हूँ पर काना होने के कारण सब मुझे मनहूस समझते हैं, देखना भी नहीं चाहते, इसलिए चोरी करने लगा।”¹⁰
उद्धरण में हम देख सकते हैं कि दिव्यांग होने के कारण सामाजिक अवहेलनाओं का दंश ‘सुनार’ को झेलना पड़ता है। ये हमारे समाज का नकारात्मक पक्ष है जिसे लेखक ने बच्चों के समक्ष प्रस्तुत किया है और इसका एक आदर्श समाधान दिया है। समाधान वही है जो राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने दिया था – “वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।”
दरअसल, बच्चों का मन कोरे कागज़ के समान होता है, अतः उन्हें सही दिशा में अग्रसर करने हेतु शुरू से नैतिकता का मूल्य समझाना होगा। इस दृष्टिकोण से अमृतलाल नागर का बाल साहित्य महत्वपूर्ण है।
बालकों के लिए कहानी लेखन का शुभारंभ जिस उद्देश्य को लेकर हुआ उसमें ‘बालकों का मनोरंजन’ एक प्रमुख उद्देश्य था। क्योंकि मनोरंजन से परिपूर्ण कहानियों, कविताओं के माध्यम से बच्चे ज्ञान-विज्ञान से अनजाने में ही परिचित हो जाते हैं। इसलिए मनोरंजन बाल साहित्य का एक प्रमुख तत्व है। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अमृतलाल नागर ने अपने बाल साहित्य में ज्ञान-विज्ञान से संबंधित बातों को भी मनोरंजक पूर्ण तरीकों से प्रस्तुत किया। इस संदर्भ में इनकी ‘नटखट खरगोश’ कहानी, ‘तीन लफंगे’ कविता तथा ‘बाल दिवस की रेल’ नाटक आदि महत्वपूर्ण हैं। रमेश तैलंग के शब्दों में – “ फैंटेसी के साथ हास्य और रोमांच को मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत करने की कला में सिद्धहस्त पुरानी पीढ़ी के कुछ दिग्गज बाल उपन्यासकारों की बात की जाए तो हिन्दी के मूर्धन्य कथाकार अमृतलाल नागर का नाम सबसे पहले जबान पर आता है। ”¹¹
अमृतलाल नागर ने बच्चों में वन्यजीव जंतुओं के प्रति मानवीय व्यवहार को बढ़ावा दिया है। इनके बाल कहानियों, कविताओं एवं नाटकों के अन्तर्गत जंगल के छोटे बड़े जीव, पात्रों की भूमिकाओं में रहते हैं। जैसे- खरगोश, लोमड़ी, लंगूर, शेर आदि। कहानियों में ये वन्यजीव मानवीय स्वभाव एवं गुणों से युक्त हैं। इन वन्यजीवों को अपने बाल साहित्य में स्थान देने के पीछे लेखक के मुख्यतः दो उद्देश्य सामने आते हैं – एक तो स्पष्ट है कि बालकों का मनोरंजन करना परन्तु दूसरा उद्देश्य है कि बच्चों में वन्यजीवों के प्रति मानवीय संवेदना विकसित करना। क्योंकि आज के इस बाजारवाद के दौर में यह जरूरी है कि बच्चों को शुरू से ही वन्य जीव जंतुओं के प्रति मानवीय रुख अपनाने की शिक्षा दी जाए। बाल साहित्य के अंतर्गत यह प्रवृत्ति रोचकता जैसे तत्वों का समावेश करती है। नागर जी की ऐसी ही एक कहानी है –‘बहादुर सोमू’। इस कहानी में ‘सोमू’ नामक बंदर की बहादुरी को दिखाकर लेखक ने साहस एवं बिना डरे किसी भी समस्या से दो-चार करना एवं उसपर विजय प्राप्त करने की शिक्षा दी है। लेखक का उद्देश्य बालकों में नायकत्व गुण विकसित करना है। नागर जी के बाल साहित्य में यह प्रवृत्ति उस युग के प्रभाव के फलस्वरूप आई है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में संघर्षरत वीरों ने अपने साहस के दम पर, अपने प्राणों की परवाह न करते हुए देश की समस्याओं से जुझने का प्रयास किया था। इस परिस्थिति को लेखक ने अपने बाल साहित्य में बतौर बच्चों के भीतर साहस भरने एवं उन्हें जागृत करने हेतु किया है। तभी तो भूत, प्रेत, डायन आदि इनके यहाँ पानी भरते दिखाई देते हैं - “ उन्होंने बच्चों के लिए यथार्थ लेखन किया बच्चों को सदैव नायकत्व प्रदान किया। नागर जी ने बच्चों के मन में यह बात घर करने में कसर न छोड़ी कि हाँ! तुम राजा हो। कुछ भी कर सकने की प्रतिभा तुम्हारे भीतर है। यही बाल साहित्य का प्रगतिशील पक्ष है, जिसकी धमक उनके साहित्य में उस ज़माने में देखी जा सकती है। ”¹²
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मूर्धन्य बाल साहित्यकार होने के नाते अमृतलाल नागर इस महत्वपूर्ण उद्देश्य से परिचित हैं कि बाल साहित्य का लक्ष्य बच्चों की कल्पनाशीलता को बढ़ाना एवं उन्हें भावी जीवन हेतु एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान करना है। साथ ही इनका मानना है कि बाल साहित्य में कल्पना का प्रस्तुतीकरण बालकों के मनोवैज्ञानिक विकास को ध्यान में रखकर होना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि बालमन का बौद्घिक विकास , वैज्ञानिक स्तर पर होना चाहिए। बच्चों में वैज्ञानिकता का प्रसार सरलता से हो पाए, यह नागर जी के बाल साहित्य का मज़बूत पक्ष है। क्योंकि हम इस तथ्य से वाक़िफ हैं कि बच्चे कहानी, कविताओं के माध्यम से चीजों को आसानी से सीखते हैं। बाल साहित्य की परंपरा में पंचतंत्र की कहानियाँ, परीकथाएँ, हितोपदेश, राजा-रानी की कहानियाँ आदि प्रचुर मात्रा में मिलती हैं। परन्तु आधुनिक युग में विज्ञान की कई शाखाएँ विकसित हो चुकी हैं जिसके कारण नागर जी ने अपने बाल साहित्य में विज्ञान को महत्व प्रदान किया, जो बच्चों के लिए काफ़ी उपयोगी सिद्ध होती हैं। इस संदर्भ में इनकी एक महत्वपूर्ण कहानी है – ‘फूलों की घाटी’। इस कहानी के अंतर्गत वैज्ञानिक युग के फलस्वरूप अंतरिक्ष, स्पेस स्टेशन, ग्रहों की दुनिया आदि को अंत्यंत रोचक शैली में चित्रित किया है जो बच्चों के लिए आसानी से ग्रहणीय है। इस कहानी में एक माँ का, अपने पुत्र से बिछड़ कर दूसरे ग्रह पर जाने की कथा वर्णित है- “ तभी स्पेस स्टेशन के ध्वनि यंत्र पर पृथ्वी ग्रह से आवाजें आने लगीं। पता चला कि शंकु की माँ सुरक्षित रूप से फूलों की घाटी पहुँच गई हैं।”¹³
यहाँ हम देख सकते हैं कि लेखक , बच्चों के लिए कठिन से कठिन शब्दों जैसे अंतरिक्ष यान, ग्रह नक्षत्र, स्पेस स्टेशन आदि को बेहद आसानी से ग्रहणीय बनाते चलते हैं। यही एक सफल बाल साहित्यकार का दायित्व है।
नागर जी का बाल साहित्य में योगदान इस संदर्भ में भी है कि इन्होंने बच्चों के लिए अलग से भारतीय महापुरुषों की जीवनियाँ लिखीं। जीवनियाँ क्या लिखीं, उनके लिए जादू का एक दर्पण तैयार किया, जिसमें उन्हें मानवता, भ्रातृत्व, कर्मयोग, धर्म एवं संस्कृति की तस्वीरें दिखाई। महापुरुषों के जीवन में आए उतार-चढ़ाव को देखते हुए, वो बच्चों को उस युग की राजनीतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों से परिचित कराते चलते हैं। बच्चों के लिए लिखित इनकी जीवनियाँ, इतिहास की कई कड़ियों को जोड़ने वाली सामग्री के रूप में सामने आती हैं, जो बेहद लाभप्रद सिद्ध होती हैं। इस संदर्भ में इनकी ‘चैतन्य महाप्रभु’ की जीवनी देखी जा सकती है। डॉ. गायत्री लाम्बा के अनुसार, - “नागर जी ने चैतन्य महाप्रभु की जीवनी लिखते-लिखते भारत वर्ष के विभिन्न भागों में व्याप्त धार्मिक, सामाजिक स्थिति और मान्यताएँ तथा देश की भौगोलिक जानकारी सहज रूप से बच्चों के समक्ष प्रस्तुत कर दी हैं।”¹⁴
यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी कि नागर की की रचनाएँ बच्चों के लिए ज्ञान का सागर है। गंभीर विषयों को भी ये अपनी लाज़वाब किस्सागोई शैली से रोचक बना देते हैं। बच्चों को कल्पना की सुंदर दुनियाँ की सैर कराते हुए वो ज्ञानवर्द्धन करने वाले, बोझिल विषयों में हास्य का पुट डाल, उसे मनोरंजक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। कहने का तात्पर्य है कि बच्चों के साथ गप्प करने की यह प्रवृत्ति उन्हें एक कुशल बाल साहित्यकार का दर्ज़ा देती है। ‘नवाबी मसनद’ इनकी ऐसी ही एक कहानी है। “ ‘नवाबी मसनद’ को पढ़कर पाठकों को यह एहसास होना स्वाभाविक है कि गप्प लिखना एक आर्ट है और यह कल्पना की तगड़ी कसरत पर निर्भर है।”15
अमृतलाल नागर यह भलीभाँति समझ रहे थे कि अत्याधुनिक शिक्षा के विकास के कारण विभिन्न प्रतियोगिताएँ, प्रतिस्पर्धा एवं बस्ते के बोझ वाले वातावरण में बच्चों को ऐसी खुराक की आवश्यकता है जो उन्हें जीवन के उन प्रसंगों से जोड़े, जहाँ वो सहज रूप से हँसने- गाने में सक्षम हों। इस दृष्टिकोण के मद्देनजर, अपनी कविताओं तथा कथा साहित्य में इन्होंने हास्य-विनोद का पुट शामिल किया है। इसके लिए उन्होंने नाटकीयता का भरपूर प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए इनकी प्रसिद्ध बाल कविता ‘निंदिया आ जा’ के कुछ अंश उद्धृत हैं –
“ बैर फूट का राक्षस आया
तोप टैंक एटम बम लाया
कृष्ण कन्हैया की बंसी ले
प्रेम राग मुन्नी ने गाया
भागा राक्षस भागी रात
आशाओं का हुआ प्रभात।”16
अतः स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि अमृतलाल नागर ने बाल साहित्य की दुनिया में उल्लेखनीय कार्य किया है। इन्होंने बच्चों के मन की बात को उनकी भाषा में लिखते का सफल प्रयास किया है। जिसका मुख्य उद्देश्य है बच्चों को संकीर्णताओं से उठाकर, विश्वकल्याण हेतु एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान करना।
निष्कर्ष : निःसंदेह, अमृतलाल नागर एक अनूठे बाल साहित्यकार एवं किस्सागो हैं। बच्चों के लिए इन्होंने अपने साहित्य में न केवल मनोरंजन जैसे तत्वों का समावेश किया अपितु उन्हें देश एवं समाज में घटने वाली घटनाओं से रु-ब-रु करा कर अपने लेखकीय दायित्व का निर्वहन किया। एक तरफ इन्होंने कहानियों में पेड़-पौधे एवं वन्य जीवों के प्रति बच्चों में मानवीय संवेदना एवं प्रकृति प्रेम विकसित किया तो वहीं दूसरी तरफ़ रोचकता एवं कौतूहल जैसे तत्वों का समावेश कर बालमन को गुदगुदाने का प्रयास भी किया। अमृतलाल नागर ने अतीत की घटनाओं को वर्तमान के परिपेक्ष्य में दिखाकर, एक नए कलेवर के साथ राम एवं कृष्ण जैसे चरित्रों के माध्यम से बालकों में नायकत्व गुण तो विकसित किया ही, साथ ही साथ उन्हें साहस, वीरता तथा दृढ़ संकल्प जैसे तत्वों से संपृक्त किया। इन्होंने आधुनिक युग एवं नई शिक्षा प्रणाली के फलस्वरूप बच्चों को ज्ञान-विज्ञान की नई-नई शाखाओं से परिचित कराने हेतु कहानियाँ लिखीं तथा विज्ञान की दुनिया को बच्चों के समक्ष प्रस्तुत किया।
संदर्भ :
1. हरिकृष्ण देवसरे, हिन्दी बाल साहित्य:एक अध्ययन, राजपाल एंड संस, नई दिल्ली, 1969, पृष्ठ संख्या - 5
2. सं. विनोद चंद्र पांडेय, भारतीय बाल साहित्य के विविध आयाम, हिन्दी संस्थान, लखनऊ, 1996, लेख – बाल साहित्य की रूपरेखा, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, पृष्ठ संख्या-11
3. डॉ. चक्रधर नलिन, हिन्दी बाल साहित्य का विधागत विकासक्रम, किताब घर , संस्करण 2003, पृष्ठ संख्या-77
4. सं. शरद नागर, संपूर्ण बाल रचनाएँ : अमृत लाल नागर, लोकभारती प्रकाशन, 2013, पृष्ठ संख्या – 128
5. वहीं , बाल महाभारत, पहला भाग, पृष्ठ संख्या-29
6. वहीं, बलिया के बाबा , पृष्ठ संख्या-67
7. वहीं , बजरंगी नौरंगी, पृष्ठ संख्या- 114
8. हरिष्कृष्ण देवसरे, बाल साहित्य:रचना और समीक्षा, शकुन प्रकाशन, 1979 , पृष्ठ संख्या- 85
9. डॉ गायत्री लाम्बा, अमृतलाल नागर के साहित्य का मूल्यांकन, हरमन पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 1996, पृष्ठ संख्या- 170
10. सं. शरद नागर, संपूर्ण बाल रचनाएँ, अमृतलाल नागर, लोकभारती प्रकाशन, 2013, चोर बना कोतवाल , पृष्ठ संख्या- 48
11. पुस्तक संस्कृति, पत्रिका, वर्ष 3 , अंक 3, जुलाई-सितम्बर राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली, 2018, पृष्ठ संख्या-8
12. वहीं , पृष्ठ संख्या-9
13. सं. शरद नागर, संपूर्ण बाल रचनाएँ, अमृतलाल नागर, लोकभारती प्रकाशन, 2013, फूलों की घाटी, पृष्ठ संख्या- 77
14. डॉ गायत्री लाम्बा, अमृतलाल नागर के साहित्य का मूल्यांकन, हरमन पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली, 1996, पृष्ठ संख्या- 171
15. वहीं
16. अमृतलाल नागर, श्रेष्ठ बाल कविता, राजपाल एंड संस, 2017, निंदिया आ जा , पृष्ठ संख्या – 4
ऋचा पुष्कर
शोधार्थी, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
richapushkar1049@gmail.com, 9973528990
बाल साहित्य विशेषांक
अतिथि सम्पादक : दीनानाथ मौर्य
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-56, नवम्बर, 2024 UGC CARE Approved Journal
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