शोध आलेख : बच्चों की दुनिया में कॉमिक्स / सुशील सिंह

बच्चों की दुनिया में कॉमिक्स 
- सुशील सिंह

शोध-सार : कॉमिक्स के प्रति बच्चों का एक अलग ही लगाव रहता है। इसका प्रमुख कारण इसकी चित्रात्मक शैली के साथ-साथ, रोमांच, रहस्य, चमत्कार एवं अद्भुत कारनामें हैं। कॉमिक्स का नायक काफी साहसी होता है। यही वजह है कि कामिक्स के नायक से बच्चे आसानी से जुड़ जाते हैं। जब दुनिया में तकनीक का बोलबाला नहीं था तो बच्चों के मनोरंजन के लिए सबसे बड़ी भूमिका कॉमिक्स की ही थी। बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों का मतलब होता था ढेर सारी कॉमिक्स और खूब सारी मस्ती। बच्चे अपने दोस्तों के साथ मिलकर किराये पर कॉमिक्स लिया करते थे। नागराज उस समय इंडियन कॉमिक्स का सबसे बड़ा हीरो हुआ करता था। इस कॉमिक्स के किरदार ने बच्चों के बीच में काफी लोकप्रियता हासिल की। 1964 में प्रकाशित इंद्रजाल कॉमिक्स ने भी बच्चों को खूब मनोरंजन प्रदान किया।

बीज शब्द : कॉमिक्स, किरदार, कॉमिक्स संहिता, सुपरमैन, डोगा, नागराज, स्पाइडरमैन, इंद्रजाल, सुपरहीरो।

मूल आलेख : कॉमिक्स की शुरुआत 1933 के लगभग अखबारों में विज्ञापन पट्टियों के रूप में हुई। धीरे-धीरे मौलिक कहानियों को भी लिखने की शुरुआत हुई। सन 1938 में ‘एक्शन कॉमिक्स’ का प्रकाशन हुआ, जिसमें जेरी सीगल द्वारा ‘सुपरमैन’ को प्रस्तुत किया गया। यह सुपरमैन बड़े-बड़े कारनामें करता था। ‘फैंटम’ और ‘टार्जन’ आदि भी ऐसे ही चरित्र थे। सुपरमैन के चरित्र को व्यक्त करते हुए महान बाल साहित्यकार डॉ० हरिकृष्ण देवसरे जी कहतें हैं- “सुपरमैन एक ऐसा चरित्र था जो सताए हुए लोगों के लिए सभी सामाजिक और भौतिक नियमों से टक्कर लेता था, और उनकी भलाई के लिए बड़े-बड़े साहसिक कार्य करता था। कॉमिक्स कथाओं के लिए इस तरह का ‘हीरो’ बड़ा महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। शीघ्र ही सभी कामिक्स प्रकाशकों ने ऐसे ही बलशाली और साहसिक चरित्रों की कल्पना कर उन्हें लोकप्रिय बना दिया। ‘फैंटम’, ‘टार्जन’ आदि ऐसे ही चरित्र हैं। इसके साथ ही कॉमिक्स-शैली की लोकप्रियता देखकर वाल्ट डिस्नी ने बच्चों के प्रिय पशुओं को हीरो बनाकर कॉमिक्स बनाये, जैसे ‘मिकी माउस”1

दूसरे विश्व युद्ध के बाद कॉमिक्स पुस्तकों में युद्ध कथा का प्रचलन बढ़ गया। इस तरह इसमें हिंसात्मक घटनाओं का चित्रण बढ़ता गया। इसके बाद हथियारों और अंतरिक्ष की कपोल-कल्पनाओं के विषय कॉमिक्स में बढ़ते चले गये। इसके साथ-साथ कॉमिक्स कथाएं इतनी अधिक लोकप्रिय होती चली गई कि इनकी बिक्री में तेजी के साथ वृद्धि दिखाई पड़ी। अमेरिका में एक बच्चे द्वारा ‘सुपरमैन’ जैसा कपडा पहनकर खिड़की से कूदने और जान गवां देने की घटना ने वहाँ के माता-पिता को डरा दिया। ऐसी घटनाओं के कारण ही कॉमिक्स प्रकाशकों ने कॉमिक्स संहिता बनाई। कॉमिक्स संहिता बनने के बाद भी कॉमिक्स में हिंसा एवं भयानक घटनाओं के विषय प्रकाशित होना बंद नहीं हुए।

‘लूनीट्यून्स’, ‘मिकीमाउस’ और ‘आर्ची’ आदि रोचक कॉमिक्स छपते रहे। हमारे देश के भीतर लगातार विदेशी कामिक्स आते रहे। सन 1977 के लगभग देश में छपने वाले प्रमुख कॉमिक्सों में ‘इंद्रजाल’ और ‘अमरचित्र कथा’ थे।

डॉ. हरिकृष्ण देवसरे, बालसाहित्यःमेरा चिंतन, पृष्ठ- 181

इन दोनों प्रकाशकों ने महाभारत, रामायण, भारतीय इतिहास, धर्म और संस्कृति के चरित्रों की कथाएं प्रस्तुत की। एक के बाद एक कई प्रकाशकों ने कॉमिक्स छापना शुरू किया। कुछ तो पहले अंक से ही आगे नहीं बढ़ पाए। अनुवाद की समस्या के कारण बहुत बच्चे कुछ कॉमिक्सों से दूर रहे।

पॉकेट बुक्स प्रकाशित करने वाले कॉमिक्स ने सुपर कमांडों ध्रुव, नागराज परमाणु, और डोगा जैसे चरित्रों को चित्रित किया। देखते ही देखते ऐसे किरदार बच्चों के बीच लोकप्रिय हो गये। दूरदर्शन के विस्तार ने ‘स्पाइडरमैन,’ ‘स्टारट्रैक’ और ‘स्ट्रीटहॉक’ को लोकप्रिय बनाया। पहले से लोकप्रिय चाचा चौधर, राजन इकबाल, बांकेलाल सहित बहुत से चरित्र देखने को मिले। इन पर टी.वी. सीरियल बनाने की योजनाएं भी बनाई जाने लगी।

80 और 90 के दशक के दौरान कागज की कीमतों में काफी वृद्धि देखने को मिली। इसी समय बच्चों के मनोरंजन के लिए वीडियोगेम्स और दूसरे विकल्प भी उपलब्ध होने लगे। इन कारणों की वजह से कॉमिक्स का प्रकाशन बुरी तरह प्रभावित हुआ। लेकिन धीरे-धीरे कॉमिक्स में नये जमाने के अनुसार बदलाव होने लगे और उसकी मजबूती और बेहतरी के लिए कोशिशें शुरू की जाने लगी। नये-नये किरदार सामने आने लगे। कॉमिक्स को इंटरनेट पर पेश किया जाने लगा। जिससे इसके पढ़ने में तेजी आई। फेसबुक ने इसे पढ़ने में और भी आसान बना दिया।

अब पुराने कॉमिक्स किरदारों पर बहुत से टी.वी. सीरियल बन रहें है और चर्चित किरदार चाचा चौधरी सहित तमाम कॉमिक्स किरदारों पर बने सीरियल न सिर्फ टी.वी. के लिए प्रसिद्ध रहे बल्कि इनकी वजह से कॉमिक्स की बिक्री बढ़ने लगी। पहले लोगों को कॉमिक्स दो माध्यम से प्राप्त होते थे- प्रकाशक और विक्रेता। धीरे-धीरे अब बाजार में कॉमिक्स आने के कई कई माध्यम हो गए हैं। तकनीक के माध्यम से आनलाइन कॉमिक्स लाई गई और डिजिटल कॉमिक्स की मांग बढ़ी। इसके अलावा एक और चीज महत्वपूर्ण रही की पढ़ने वाले खुद को कॉमिक्स किरदारों से जोड़ पाए। कुछ सुपरपावर्स के चरित्रों को छोड़ दिया जाय तो हर देश, हर संस्कृति से ताल्लुक रखने वाला किरदार ही उस देश में फिट होता है। अभी हाल ही में आई.पी.एल. पर आधारित एक कॉमिक्स निकाला गया। यह अपने देश में प्रसिद्ध हो जाता है, क्योंकि क्रिकेट का यहाँ बोलबाला है, लेकिन दूसरे देशों के बच्चे शायद खुद को इससे जोड़ न पाएं।

प्रसिद्ध फिल्मकार अनुराग कश्यप कहतें हैं कि- “कॉमिक्स के जरिये ही मैं फैंटेसी को समझ पाया। डोगा के किरदार के पीछे मै पागल था। वह मेरे जहन में बस गया था, मेरे लिए वह पहला ‘सुपर हीरो’ था। कॉमिक्स से बचपन की अनगिनत यादें जुड़ी हुई हैं। अब तमन्ना है कि डोगा को परदे पर उतारूं”2

डायमंड कॉमिक्स के प्रबंध निदेशक गुलशन राय का कहना है- “ऐसा लगा कॉमिक्स का वह क्रेज नहीं रहेगा जैसे पहले था, लेकिन यह अनुमान गलत साबित हुआ। कॉमिक्स से जुड़ा उद्दोग फिर से जोड़ पकड़ रहा है। माता-पिता को भी यह बात समझ में आ गई है कि कॉमिक्स बच्चों के बेहतर रचनात्मक मनोरंजन का जरिया बन सकतें हैं।”3

‘अमरचित्र कथा’ की शुरुआत पाश्चात्य प्रभाव को कम करने के लिए की गई। इस चित्रकथा कड़ी के मुख्य संपादक अनंत पै थे, जो उस समय ‘टाइम्स आफ इण्डिया’ में बच्चों के पन्नो के अन्तर्गत चित्रकथा की पट्टी का प्रयोग करते थे। टाइम्स समूह ने चित्रकथा की किताबों का निर्णय लेते हुए ‘इंद्रजाल’ शीर्षक से वेताल नामक चित्रकथा शुरू की। यह अमेरिका में ‘फेंटम’ नाम से प्रकाशित चित्रकथा का पुनक्रथन था। इस तरह कई अमेरिकी चित्रकथाओं का प्रकाशन किया गया।इन्होंने भारतीय मूल के चरित्रों की चित्र कथा के प्रकाशन के उद्देश्य से ‘इंडिया पब्लिशिंग हाउस’ से चित्रकथाओं का प्रकाशन शुरू किया। भारतीय मूल से अनंत पै ने पहली चित्रकथा का शीर्षक ‘कृष्ण’ को चुना।चित्रकथा के लिए ‘कृष्ण’ को चुनने के पीछे अनंत पै की रणनीति का वर्णन आर्यक गुहा ने किया है-

2. हिंदी कॉमिक्स डॉट काम, पृष्ठ- 7

3. वही, पृष्ठ- 7

“विषय के तौर पर कृष्ण का चुनाव सावधानी के साथ किया गया था, जो भारतीय देवी-देवताओं के समूह में सबसे ज्यादा मशहूर और प्यारे बाल भगवान हैं।उनके अनुयायियों की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मौजूदगी उल्लेखनीय है। भारत के बाजार उनकी तस्वीरों व छवियों से भरे पड़ें हैं। उनकी जन्म गाँठ बच्चों और बूढ़ों, दोनों के ही द्वारा एक मांगलिक अवसर की तरह मनाई जाती है। हर गली में युवा उनकी शरारतों का समारोह पूर्वक अभिनय करते हैं। पै जानते थे कि कृष्ण को लेने से उनसे बाजार में कोई चूक हो ही नहीं सकती।”4

अनंत पै ने जिस समय भारतीय मिथकों का प्रकाशन शुरू किया, उस समय तक भारतीय मिथकों पर कोई प्रसिद्ध चित्रकथा मौजूद नहीं थी। 1960-70 के दशक में भारतीय परिवारों के बीच शहरी मध्यवर्ग विकसित हो रहा था। दूसरी महत्वपूर्ण परिस्थिति यह थी कि भारतीय राष्ट्र-राज्य का राष्ट्रवादी स्वरूप आगे बढ़ रहा था और स्वदेशी पर जोर दिया जा रहा था। इस समय पर अनंत पै ने हिंदू मिथकों का अच्छे से प्रयोग किया। इसके बाद धीरे-धीरे अमर चित्रकथा की लीक पर चलकर अनेक टी.वी. के धारावाहिक भी हिंदू मिथकों पर बनते चले गए।

अमरचित्रकथा की उत्पत्ति के बारें में आर्यक गुहा ‘शिक्षा-विमर्श’ में छपे अपने आलेख में कहते हैं- “अमरचित्र कथा शुरूवात से ही एक जबरदस्त राष्ट्रवादी भाव से संचालित हो रही थी। ब्रिटिश औपनिवेशकता का अनुभव अभी ताजा ही था और उसका तगड़ा असर अभी जारी रहने वाला था। उस वक्त की तात्कालिक जरुरत राष्ट्र को दोबारा गढ़ने की थी।अमरचित्रकथा ने इस जरुरत को एक उत्पाद के तौर पर पूरी तरह से इस्तेमाल किया और जल्द ही व्यापक पहचान हासिल कर ली। खुले तौर पर इस उत्पाद का मकसद मुख्यतः अंग्रेजी माध्यम के विद्दालयों में जाने वाले बच्चे थे जिनमें(ऐसा माना गया) किसी भी भारतीय चीज को घटिया समझने की आदत का विकास किया जाता था।”5

4. रोहित धनकर(संपा), शिक्षा-विमर्श पत्रिका, पृष्ठ- 27

5. वही, पृष्ठ- 31

आर्यक गुहा आगे अपने लेख में कहते हैं- “पै ने खुद इस मिथक को तोड़ने के लिए नवाचारी कदम उठाये कि चित्र कथाएं सिर्फ मासूम पाठकों को असलियत के बारे में बेतुकी धारणाओं को बनाने के लिए बहकाती हैं। उन्होंने अमरचित्रकथा के बारे में जानकीपरक पर्चे बांटे और इसके साथ ही ध्यान आकर्षित करने वाले अंदाज में सैधांतिक मुद्दों जैसे ‘चित्रकथा क्या है?’ या ‘उसकी सामाजिक भूमिका क्या है?’ आदि पर लिखे गए पर्चे बांटे।”6

इस कड़ी को पुरे विश्व में बड़ी-बड़ी संस्थाओं द्वारा महत्व दिया गया, पै विद्दालयों के बच्चों के बीच में ख़ास एतिहासिक मुद्दों व घटनाओं पर प्रश्नोत्तरी के मुकाबले भी आयोजित किया करते थे, और इनाम के रूप में अमरचित्रकथा के अंक दिया करते थे। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह रही कि यह पाठकवर्ग को अपनी परम्परा में दीक्षित करता है। अमर चित्रकथा को पढ़ना ऐसी वैयक्तिकता की तलाश करना था कि उन्हें अपने देश व अपनी पहचान पर नाज करने वाला ‘भारतीय’ नागरिक बनाती थी। अमरचित्र कथा के संदर्भ में आर्यक गुहा अपने लेख में कहते हैं- “इसकी बिक्री अपने शिखर पर 1984 में पहुँची। आम महीनों में, सभी भाषाओं में कुल मिलाकर इसकी बिक्री का आकड़ा करीब तीन लाख तक पहुँच जाता था जबकि गर्मियों व त्योंहारों के महीनों में इसकी बिक्री बढ़कर चार लाख या पाँच लाख तक पहुँच जाती थी।”7

1980 और 90 के दशक में प्रचलित राज कॉमिक्स को अब हम आनलाइन खरीद सकते हैं। अनुराग कश्यप जैसे बड़े फिल्म निर्माता इसके चरित्र डोगा पर फिल्म बनाने की योजना बना रहे हैं। राज कॉमिक्स का एक लोकप्रिय किरदार ‘वकील विश्वनाथ’ है। विश्वनाथ का परिचय एक सरकारी वकील प्रतापनाथ के इकलौते पुत्र के रूप में दिया गया है।विश्वनाथ ने अपनी कानून की पढ़ाई इंग्लैण्ड से पूरी की। इसके बाद अपने पिता से बहुत कुछ सीखने के लिए भारत आये। उसे यह जानकार यह आश्चर्य हुआ कि मेरे पिता केवल पैसों को महत्व देते हैं।

6. रोहित धनकर(संपा), शिक्षा-विमर्श पत्रिका, पृष्ठ- 32

7. वही, पृष्ठ- 28

‘जौहर’ राजकॉमिक्स के शुरुवात में आता था। जौहर एक पत्रकार है। वह ‘दनादन’ अखबार में काम करता है। वह एक पढ़ा लिखा व्यक्ति है। वह एम.एससी. पास है और उसने पीएच.डी. की हुई है। उसके पास एक कुत्ता है- ‘प्रदेशी’, जो इंसान जैसा बोलता है। जौहर के साथी हैं- कप्तान तिरंगा, जिनका तकिया कलाम है- “किसी जमाने में”। इस कॉमिक्स में सब को हसाने का काम पुलिस स्पेशल फोर्स के दो मूर्ख जासूस खड़क सिंह और कड़क सिंह करते हैं। दोनों का तकिया कलाम है- ‘खड़क सिंह के खड़कने से खड़कती हैं खिड़कियाँ, कड़क सिंह के कड़कने से कड़कती हैं बिजलियाँ। ये कॉमिक्स काफी मनोरंजक होते थे।

डायमंड बाल कॉमिक्स में इंस्पेक्टर गिरीश की कहानियाँ राजीव ने लिखी हैं, जिन्होंने शायद सभी डायमंड बाल पॉकेट बुक्स की कहानियाँ लिखी होंगी। डायमंड कॉमिक्स में ताऊ जी और जादूगर का डंडा के अलावा कभी भी किसी और किरदार के बारें में पढ़ा-सुना नहीं जाता। इंस्पेक्टर गिरीश बहुत ही अज्ञात कृति है।

‘नागराज कॉमिक्स’ का पहला अंक प्रसिद्ध लेखक परशुराम शर्मा द्वारा लिखा गया था और इसे प्रताप मलिक ने चित्रित किया था। मलिक ने 1995 तक लगभग 50 अंकों के लिए इस किरदार का चित्रण किया था। 1995 के बाद से इसके चित्रण का कार्य अनुपम सिन्हा ने संभाल लिया। आज नागराज जो कुछ भी है वह भारतीय कॉमिक्स उद्दोग के इन दो व्यक्तियों प्रताप मलिक और अनुपम सिन्हा की वजह से है। नागराज का चरित्र पौराणिक इच्छाधारी नाग ऐतिहासिक ‘विषैला मानव’ से प्रेरित माना जाता है। इसकी कहानियों में पुराण, जादू, कल्पना और विज्ञान गल्प का अच्छा मिश्रण है।

‘इंद्रजाल’ कॉमिक्स ने एक बहादुर नाम का भारतीय चरित्र को चित्रित किया है। बहादुर के रचयिता थे हिंदी एवं गुजराती के मशहूर लेखक एवं डब्बू जी के रचयिता आविदसूरती। काफी अध्ययन के बाद चंबल की पृष्ठिभूमि पर कहानी बनाई गई और गोविन्द के स्टाइल में फ्रेम की गई तस्वीरों में बहादुर को भारत का क्लासिक कॉमिक्स बना दिया है। सन 1980 तक इसकी लोकप्रियता काफी थी, लेकिन कुछ दिन बाद इसका प्रकाशन बंद हो गया। कॉमिक्स धीरे-धीरे घरों से दूर होने लगे, कागज की कीमतें और प्रकाशक की लागत बढ़ने के कारण इंडिया बुक हाउस को भी कीमतें बढ़ानी पड़ी और फिर कॉमिक्स मध्यवर्ग की पहुँच से बाहर हो गए।

“कॉमिक्स और बाल साहित्य के क्षेत्र में काम कर रही संस्था सीबीआर के मुताबिक़ भारत में कॉमिक्स का बाजार 1100 करोंड़ रूपये सालाना का है, जिसमें भारतीय हिंदी कॉमिक्स का योगदान सिर्फ 10 से 12 करोड़ रूपये तक का ही है।’’8 यानी कॉमिक्स का बाजार पहले की अपेक्षा तो बढ़ा है, लेकिन कमी आई है हिंदी में छपकर जगह-जगह स्टॉल पर मिलने वाली किताबों में। बच्चे कॉमिक्स तो पढ़ रहें हैं, लेकिन एक जमाने के चर्चित किरदार चाचा चौधरी, साबू, पिंकी और बिल्लू का मार्केट कम हो गया है। अब बच्चों की पसंद भारतीय चरित्रों के बजाय विदेशी चरित्र हो गयें हैं। भारत का बाल साहित्य जिसमें कॉमिक्स का बहुत बड़ा योगदान रहा है, विदेशों की तुलना में कम विकसित रहा है।

8. https://www.bhaskar.com

सन्दर्भः
  1. डॉ. कृष्ण देवसरे, बालसाहित्यःमेरा चिंतन, मेधा बुक्स, दिल्ली, प्रथम संकरण, 2000, पृष्ठ- 181
  2. हिंदी कॉमिक्स डॉट काम, पृष्ठ- 7
  3. वही, पृष्ठ- 7
  4. रोहित धनकर(संपा), शिक्षा-विमर्श पत्रिका, सितंबर-अक्टूबर, जयपुर, 2009, पृष्ठ- 27
  5. वही, पृष्ठ- 31
  6. वही, पृष्ठ- 32
  7. वही, पृष्ठ- 28
  8. https://www.bhaskar.com

सुशील सिंह 
शोध छात्र, हिंदी विभाग, इलाहाबाद डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज।

बाल साहित्य विशेषांक
अतिथि सम्पादक  दीनानाथ मौर्य
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-56, नवम्बर, 2024 UGC CARE Approved Journal

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