शोध सार : मणिपुर में सिनेमा की यात्रा 9 अप्रैल 1972 को फिल्म मतमगी मणिपुर
के प्रदर्शन के साथ शुरू हुई थी। 9 अप्रैल को "ममी नुमित" (सिनेमा दिवस) के रूप में मनाया जाता है। मणिपुरी सिनेमा ने शुरुआत में कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन धीरे-धीरे इस क्षेत्र ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई। राजकुमार प्रियव्रत ने 1936 में मणिपुर की पहली डॉक्यूमेंट्री बनाई, और इसके बाद कई अन्य प्रयास किए गए। 1972 में
मतमगी मणिपुर को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला, और इसके बाद मणिपुरी सिनेमा ने कई महत्वपूर्ण फिल्मों का निर्माण किया, जिनमें
इमागी निङथेम और
शाफबी जैसी फिल्में शामिल हैं। 1990 के दशक में डिजिटल फिल्मों का दौर शुरू हुआ और मणिपुरी सिनेमा ने वैश्विक मंच पर भी अपनी जगह बनाई। मणिपुरी फिल्म उद्योग में अब हर साल कई नई फिल्में बनती हैं
और इसे अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में सराहा जाता है। 2024
में समलैंगिक थीम पर आधारित वननेस जैसी फिल्म भी आई, जो मणिपुरी सिनेमा में एक नई दिशा को दर्शाती है।
बीज शब्द : मैतैलोन (मणिपुरी भाषा), अर्थाभाव, मुकाम, अंतरराष्ट्रीय, ऐतिहासिक पहल, आरकाइव, मिथकीय चरित्र, टूरिंग सिनेमा, अर्थार्जन, महत्वकांक्षी प्रयास, जूरी स्पेश्यिल मेंशन अवार्ड, अस्तित्व, नवीनता ग्रहण।
मूल आलेख : भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित राज्य मणिपुर में सिनेमा ने 9 अप्रैल 2024 को अपनी फिल्म-यात्रा का 52वाँ वर्ष पूरा किया। मणिपुर में इस दिन को प्रति वर्ष "ममी नुमित" अर्थात “सिनेमा दिवस” के नाम से मनाया जाता है। वास्तव में पहली मणिपुरी सिनेमा मानी जाने वाली ‘मतमगी मणिपुर’ 9
अप्रैल, 1972
को मणिपुर के विभिन्न जिलों में प्रदर्शित किया गया था। इस दिन को स्मरणीय बनाते हुए प्रति वर्ष “ममी नुमित” का आयोजन किया जाता है। मणिपुरी सिनेमा के अंतर्गत मुख्यतः मणिपुरी यानी ‘मैतै लोन’ में निर्मित सिनेमा
आती है। मणिपुरी सिनेमा के इतने वर्षों की यात्रा आसान नहीं रही, बल्कि अनंत बाधाओं से भरी रही है और शुरुवाती दौर में तो मणिपुरी सिनेमा को कठिनाइयों के अंबार से होकर गुजरना पड़ा है। अर्थाभाव और साधनों के अभाव के चलते चाहकर भी सिनेमा प्रेमी अपने सपनों को रूपाकार देकर साकार करने में असफल रहे हैं, परंतु सिनेमा के क्षेत्र में मणिपुर की पहचान दिलाने के इच्छुक कुछ गिने-चुने लोगों ने तमाम कठिनाइयों के बावजूद सिनेमा निर्माण का कार्य शुरू किया। कठिनाइयों को पार कर मणिपुरी सिनेमा ने जो यात्रा आरंभ की उस संबंध में यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत के इस छोटे से राज्य मणिपुर में बनने वाली फिल्मों को अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ है। इस तरह मणिपुरी फिल्म उद्योग ने विश्व स्तर पर अपना एक मुकाम हासिल किया है। “मणिपुर कला एवं संस्कृति की भूमि है । मणिपुरी फिल्म इंडस्ट्री एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे पहचान मिलनी चाहिए और इसका सावधानीपूर्वक अध्ययन किया जाना चाहिए।”1 मणिपुरी सिनेमा को समझने के लिए उसके ऐतिहासिक विकास को जानना समीचीन होगा।
मणिपुरी सिनेमा की यात्रा का आरंभ उस समय से माना जाता है, जब राजकुमार प्रियव्रत ने सन् 1936 में छोटी सी फिल्म का निर्माण किया था। कहा जाता है कि महाराज कुमार प्रियव्रत ने डॉक्टर टेलर के कहने पर 8 एम.एम. के मूवी कैमरे से राजमहल तथा समाज में संपन्न मणिपुरी संस्कृति से संबंधित आयोजनों को कैद कर समय-समय पर प्रदर्शित किया। सबसे पहले उन्होंने महल में संपन्न नौका दौड़ जिसे मणिपुरी में ‘हियाङ तान्नबा’ कहा जाता है का आयोजन रिकॉर्ड किया था।2 मणिपुरी सिनेमा के क्षेत्र में यह एक ऐतिहासिक पहल थी। इस फिल्म को महल में राज परिवार और अधिकारियों के बीच दिखाने के अलावा चित्रांगदा नाट्य मंदिर में आम लोगों को भी दिखाया गया
था। स्पष्ट है, मणिपुर में डोक्यूमेंटरी या वृत्तचित्र फिल्म निर्माण की परंपरा स्वर्गीय महाराज कुमार प्रियव्रत सिंह द्वारा शुरू की गई थी। इनके द्वारा निर्मित डॉक्यूमेंट्री फिल्में आज भी मणिपुरी फिल्म डेवलपमेंट कोरपोरेशन लिमिटेड(एम एफ डी सी) के आर्काइव में सुरक्षित है। “मणिपुर में फिल्म बनाना उस समय असंभव सा सपना माना जाता था।
कारण- यहां की कमजोर अर्थव्यवस्था, कम जनसंख्या और सीमित दर्शक वर्ग था। इसके लिए विशाल निवेश, श्रमिक बल और सभी संसाधनों की आवश्यकता थी, इसके अलावा राज्य से बाहर से क्रू सदस्य और उपकरणों की आवश्यकता भी थी।” 3 ऐसा होते हुए भी सिनेमा निर्माण का कार्य शुरू हुआ।
‘मतमगी मणिपुर’ से पहले
भी मणिपुर में फिल्म बनाने के अनेक प्रयास किए गए थे। सिनेमा के रूप में सबसे पहले 1948 में ‘माइनु पेम्चा’ नामक एक मिथकीय चरित्र पर केन्द्रित फिल्म इसी नाम से बनाने का प्रयास किया गया था। इस काम को अनजाम देने के प्रयास में रत प्रारंभिक मणिपुरी सिनेमा प्रेमियों में अयेकपम बिरमंगल, सौगाइजम नवकुमार और सिनाम कृष्णमोहन आदि थे। इन्होंने अयेकपम श्यामसुन्दर द्वारा लिखित नाटक ‘माइनु पेमचा’ का विट्ठल दास द्वारा हिंदी में अनुवाद करवाकर हिंदी में फिल्म निर्माण का प्रयास किया था, लेकिन दुःख की बात यह है कि किसी कारणवश यह महत्वकांक्षी प्रयास अंतिम चरण तक नहीं पहुंच पाया। फिल्म पूरी न हो सकी। यदि पूरी हो गई होती, तो निश्चित रूप से यह एक ऐतिहासिक फिल्म साबित हाती।
मणिपुरी फिल्म की प्रारंभिक यात्रा में कोङब्राइलात्पम इबोहल शर्मा की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। वे एक कुशल फोटोग्राफर तो थे ही, साथ ही सिनेमा में भी रुचि रखते थे।उन्होंने मणिपुर की जमीन के अनुकूल अनेक छोटी फिल्में तैयार कीं। प्रारंभिक दिनों में उनके द्वारा तैयार फिल्में निङथेमचा अहुम
(1961), इचेल (1962), मोङफम (1962), कल्चरल हेरिटेज (1964), इंफाल डायरी पार्ट-1, पार्ट-2 (1965-68) आदि हैं। ये मूक फिल्में थीं। सिनेमा के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए उन्होंने अपने बनाए हुए फिल्मों को टूरिंग सिनेमा के रूप में मोहल्ले-मोहल्ले जाकर दिखाया। कोङब्राइलात्पम इबोहल शर्मा ने मणिपुरी फिल्म के प्रचार और प्रसार के लिए 15 अप्रिल 1968 को ‘फिल्म इस्टिट्यूट मणिपुर’ की स्थापना कर अनेक सिनेमा कला प्रेमी युवाओं का मार्ग दर्शन किया।
मणिपुरी फिल्म यात्रा में 1970 से एक नया मोड़ देखने को मिलता है। मणिपुरी सिनेमा हॉल में दिखाई जाने वाली पहली डॉक्यूमेंट्री फिल्म मिस्टर इंडिया की उपाधि पाने वाले मणिपुर के बॉडी बिल्डर नोङथोम्बम माइपाक के जीवन पर आधारित
‘माइपाक सन ऑफ़ मणिपुर’ है। के.टी. फिल्मस प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले निर्मित यह फिल्म 9 नवंबर सन् 1971 को प्रताप टॉकीज में दिखाया गया था। 35 एम.एम. में निर्मित यह फिल्म ब्लैक एण्ड व्हाइट में है और केवल 10 मिनट लंबी है। इसका निर्देशन बंगाल के देव कुमार बोस ने किया था और इसके प्रोड्यूसर थे कराम अमुमचा के नाम से जाने जाने वाले कराम मणिमोहन। इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म के बाद केटी फिल्म
प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले 9 अप्रैल 1972 को देव कुमार बोस द्वारा निर्देशित मणिपुरी फिल्म ‘मातमगी मणिपुर’ रिलीज हुई। 35 एम.एम की यह फिल्म भी ब्लैक एण्ड व्हाइट में बनी थी। वास्तव में यह आर्यन थिएटर में खेले गए आरामबम समरेन्द्र के नाटक ‘तीर्थ यात्रा’ का फिल्मांकन था। इस फिल्म ने 20 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में राष्ट्रपति पदक जीता।
‘मातमगी मणिपुर’ के बाद चांद के नाम से मशहूर सापम नदियाचांद के निर्देशन में मणिपुर की दूसरी फीचर
फिल्म सजातीय पिक्चर्स के बैनर तले ‘ब्रजेंद्र गी लुहोङबा’ बनी। “अपने अथक प्रयासों से एस.एन.चांद
ने 1972
में अपनी फिल्म ब्रोजेन्द्रगी लुहोंङबा पूरी की
और सेंसर बोर्ड ने 30 दिसंबर 1972
को उनकी फिल्म को पास कर दिया। एस.एन.चांद ने फिल्म की रिलीज़ के लिए 26 जनवरी 1973
शुक्रवार की तिथि निर्धारित की और यह फिल्म इम्फाल के उषा सिनेमा, फ्रेंड्स टॉकीज और थौबाल सिनेमा, थौबाल में एक साथ रिलीज़ हुई। मणिपुर के तत्कालीन मुख्यमंत्री, मोहम्मद अलिमुद्दीन, उषा सिनेमा में फिल्म की रिलीज़ के लिए मुख्य अतिथि थे। प्रदर्शन के दौरान, एस.एन.चांद ने कहा, "यदि हम मणिपुर में फिल्म निर्माण को व्यवसाय के रूप में देखें, तो यह एक सफल व्यवसाय नहीं है। हालांकि, कला और कलात्मक कौशल के प्रति समर्पण और इस विचार के साथ कि मणिपुरी संस्कृति इस माध्यम से दुनिया में चमकेगी, मैंने इस फिल्म को बनाने की पूरी जिम्मेदारी ली है, और जो कुछ भी मेरे पास था, उसे बलिदान किया है।”4 35 एम.एम. में बनी यह फिल्म मणिपुरी साहित्य के नवजागरण कालीन प्रमुख साहित्यकार डॉ. कमल की कहानी ‘ब्रजेंद्रगी लुहोङबा’ पर आधारित थी। इस फिल्म को पहली बार सम्पन्न मणिपुर स्टेट फिल्म फेस्टिवेल में बेस्ट स्क्रीन प्ले अवार्ड दिया गया। अरिबम श्याम शर्मा के निर्देशन में 1974 में ‘लमजा परशुराम’ बनी। इस फिल्म की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस फिल्म के प्रमुख किरदार निभाने वाले काङबम तोम्बा को आज भी ‘लमजा तोम्बा’ के नाम से जाने जाते हैं। इसके बाद अरीबम श्याम शर्मा के निर्देशन में ‘शाफबी’ बनी। 1983
में अरिबम श्याम शर्मा के निर्देशन में पहली रंगीन फिल्म ‘पाओखुम अमा’ बनी। आगे जाकर इन्होंने लम्बी फिल्में भी बनाईं, जिनमें महत्वपूर्ण फिल्म महाराजकुमारी बिनोदिनी देवी द्वारा लिखित इमागी निङथेम को कहा जा सकता है। “श्याम शर्मा को फिल्म के क्षेत्र में जो भी उपलब्धियाँ हासिल हुई हैं, उसमें महत्वपूर्ण भूमिका महाराज कुमारी बिनोदिनी की रही है। शाफबी, इशानौ, पाओखुम अमा, इमागी निङथेम, ओलाङथागी वाङमदसु, सनाबि ही नहीं, श्याम शर्मा के निर्देशन में बनने वाली अनेक डोक्यूमेंटरी फिल्मों की स्क्रिप्ट भी उन्हीं के द्वारा रचित है। स्क्रिप्ट और स्क्रीन प्ले तैयार कर फिल्म को अंतिम रूप देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।”5 अतः मणिपुर के इस महत्वपूर्म रचयित्री ने मणिपुरी सिनेमा के इतिहास में भी अपनी एक खास जगह बनाई है। 1984 में माइबम अमुथोइ सिंह की पहली पूर्ण लंबाई वाली रंगीन मणिपुरी फिल्म ‘लाङलेन थादोई’ बनी, जो पारिवारिक विषय पर केन्द्रित थी।
“मणिपुरी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों की फिल्मी यात्रा कभी भी आसान नहीं रही है। मणिपुर की फिल्म इंडस्ट्री में निदेशक और वित्तीय सहायता की कमी है। अभी तक, एमएफडीसी (मणिपुर फिल्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन) लिमिटेड या राज्य सरकार के तहत फिल्म वित्तपोषण के लिए कोई ठोस योजना और कार्यक्रम नहीं है।”6 जो लोग इस क्षेत्र से जुड़े हैं वे अपने बलबूते पर ही सर्वस्व न्यौछावर करके इस कला के प्रति समर्पित रहे हैं। “मणिपुर को प्रशिक्षित और पेशेवर सिने कलाकारों की आवश्यकता है। वर्तमान परिदृश्य में, अधिकांश कलाकारों को निर्माता स्वयं प्रशिक्षित करते हैं।”7 कई बार निर्माता- निर्देशक अपना सब कुछ दाँव पर लगाकर सिनेमा तैयार करते है, पर उससे आर्थिक लाभ के बदले कई बार पायरेसी के शिकार होने के कारण कुछ हासिल नहीं हो पाता। पायरेसी “मणिपुर फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक बड़ी चुनौती है। पायरेसी एक्ट के कड़े पालन की कमी के कारण, अधिकांश फिल्में रिलीज़ होने के बाद जल्दी से बाजार में उपलब्ध हो जाती हैं। इन फिल्मों को घर पर आराम से मुफ्त में DVD पर देखा जा सकता है। इस समस्या के कारण निर्माता एक झटका महसूस करते हैं और वे फिल्म बनाने में खर्च किए गए पैसे की वसूली तक नहीं कर पाते।”8 इसके अलावा मणिपुरी फिल्म में वीडियो केमरे के प्रयोग से फिल्में बनने लगी थी पर वहाँ भी अनेक समस्याएँ थीं। अब “डिजिटल कैमरा, ऑडियो रिकॉर्डिंग और एडिटिंग टूल्स जैसी एप्लिकेशन की आसानी से उपलब्धता है, फिर भी फिल्मों में सौंदर्य और कलात्मक मूल्य की कमी है, जो मुख्यतः पेशेवर और कुशल व्यक्तियों की कमी के कारण है।” 9 प्रशिक्षित और प्रोफेश्नल लोगों का अभाव कभी-कभी खलता है, पर यह कहना होगा कि अभावों के साथ मणिपुरी सिनेमा की जो यात्रा शुरू हुई, वह कभी नहीं रुकी। रूप-रंग में नवीनता ग्रहण करने के साथ-साथ मणिपुरी सिनेमा अनेक पुरस्कारों से भी सम्मानित हुईं। मणिपुर के सिनेमा प्रेमी लोगों के अनथक प्रयासों से 90 के दशक तक अनेक फिल्में आ चुकी थीं। उनमें से कुछ प्रमुख हैं- ङकइको नङसे, खुथाङ लमजेल, ओलाङथागी वाङमदसु, इमागी निङथेम,खोन्जेल, वाङमा-वाङमा,सना कैथेल, याइरिपोक थम्बालनू, कोम्बीरै, इशानौ, पाप, खोन्थाङ, शम्बल वाङमा, माधवी, मायोफिगी मचा, सना मानबी सनारै , सनाबी, कनागा हिङ्हौनी, खम्बा-थोइबी आदि।
इन फिल्मों में अनेक ऐसी हैं, जिन्हें स्थानीय पुरस्कारों के साथ-साथ राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया है। 1972 में देवकुमार बोस द्वारा निर्देशित मणिपुर की पहली फिल्म ‘मतमगी मणिपुर’ को 20 वें राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड में राष्ट्रपति मेडल प्राप्त हुआ।1976 में राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड में रजत कमल पाने वाली पहली मणिपुरी फिल्म एस.एन. चान्द की ‘शाफबी’ थी। श्याम शर्मा द्वारा निर्देशित ओलाङथागी वाङमदसु’ को 1980 में आयोजित 27 वें नेशनल फिल्म फेस्टिवेल में सर्वश्रेष्ठ मणिपुरी फीचर फिल्म अवार्ड दिया गया। 27 अप्रैल, 1982 को नई दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में अरिबम श्याम शर्मा द्वारा निर्देशित “इमागी निंगथेम” को राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ ही बाल कलाकार
लैखेंद्र सिंह को सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार पुरस्कार राष्ट्रपति श्री एन. संजीव रेड्डी द्वारा प्रदान किया गया। इसी फिल्म को 1982 में ही फ्राँस के नान्टस में आयोजित इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में ‘ग्राण्ड प्रि’ अवार्ड दिया गया। सिनेमा के क्षेत्र में विश्व स्तर पर मणिपुर को ही नहीं, बल्कि भारत को पहचान दिलाने वाली यह पहली फिल्म थी, क्योकि किसी भारतीय फिल्म ने पहली बार ग्राण्ड प्रीक्स अवार्ड जीता था।
1986 में ख्वाइराकपम रामचन्द्र के निर्देशन में बनी पहली वीडियो फिल्म नोङलै का प्रदर्शन किया गया। इसके
बाद अनेक वीडियो फिल्में आईं- हिजम श्यामधनी की जय भारत, मोइराङतेम इनाओ और हुइद्रोम नोरेन के निर्देशन में बनी ऐ हिङखिनी, नीलध्वज खुमन की इपोम अमदै इथक अमा एक के बाद एक फिल्में आईं। इसके बाद 1986 के उत्तरार्द्ध में ओकेन अमकचम की उरित नापङ्बी का सफल प्रदर्शन किया गया। सगोलसेम इन्द्रकुमार के निर्देशन में बनने वाली फिल्म पुन्सिना पुन्सिगी दमक वीडियो फिल्म की उपलब्धी यह रही कि इसे सेन्ट्रेल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेट से सेंसर सर्टिफिकेट प्राप्त कर 11 मार्च 1990 को दूरदर्शन के नेशनल चैनेल से प्रसारित किया गया।
सेल्यूलोइड के सिलवर स्क्रीन के लिए फिल्म तैयार करने में जो धनाभाव और अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था, उससे राहत का जरिया था डिजिटल फोर्मेट की फिल्में। “1993 से, फिल्में डिजिटल प्रारूप में बननी शुरू हुईं। 1993 से अब तक, एक हजार से अधिक फिल्में डिजिटल प्रारूप में बनाई जा चुकी हैं। मणिपुरी फीचर फिल्म "फिजीगी मनी" (माय ओनली जेम) का निर्देशन ओइनम गौतम द्वारा किया गया है।”10
वीडियो फिल्मों के निर्माण में तेजी आने से मणिपुरी फिल्म उद्योग का विस्तार हुआ है। हर साल अच्छी संख्या में फिल्में बनने लगी हैं। प्रति वर्ष निर्मित फिल्मों की संख्या के हिसाब से मणिपुर पूर्वोत्तर भारत का सबसे बड़ा फिल्म उद्योग बन गया है। 2001 से मणिपुर में डिजिटल फिल्मों का दौर आया। ओकेन अमाक्चम ने कङला फिल्मस के सहयोग से 45 दिनों की फिल्म एक्टिंग एण्ड मेकिंग कार्यशाला का आयोजन किया था। इस कार्यशाला में मणिपुर की पहली डिजिटल फिल्म ‘लाम्मई’ बनाई गई।
इसे सेंट्रेल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेट से सेंसर सर्टिफिकेट प्राप्त कर इम्फाल के डी.सी. की अनुमति से 28 मई 2002 को सिनेमा हॉल में दिखाया गया। इसके बाद तो इपु के ‘लाल्लसि पल’, चान हैसनाम की ‘तेल्लबा पुन्सि ईशै’ आदि फिल्में बनने लगीं । 2007 में माखोनमणि मोङसाबा की ‘येनिङ अमदी लिकला’ आई। 2009 में नया प्रयोग करते हुए भुमेनजय कोन्सम की पहली मणिपुरी भाषा में एनिमेटेड फिल्म ‘कबुई कैओइबा’ आई। 2012 में श्याम शर्मा की लैपाकलै, 2013 में माखोनमणि मोङशाबा की ‘नङना कप्पा पकचदे’, इसी वर्ष ई. सुवास की ‘नोङमतङ’ और 2014 में वाङलेन खुनदोङबम की ‘पल्लेपफम’ आई। 2014 में एक नई धारा ने मणिपुरी सिनेमा को समृद्ध करते हुए आर. के. लालमणि ने ‘बामोन इचल’ नाम से 3 डी फिल्म बनाई। यह फिल्म न केवल मणिपुर की बल्कि उत्तर- पूर्व भारत की पहली 3 डी फिल्म है। 2015 में माइपाकसना हाओरोइबम की ‘ऐबुसु याओहनबियु’, 2016 में हेमजित मोइराङथेम की ‘ऐ लाक्खिनी’, 2019 में ओइनाम गौतम सिंह की ‘पान्दम अमादा’ और अजित युमनाम की ‘ऐखोइसिबु’ कनानो आई। 2023 में ओ.सी. मइरा की ‘अशेङबा इरल’ रिलीज हुई। 2024 में लक्ष्मीप्रिया द्वारा निर्देशित मणिपुर की दो समुदायों के बीच हुई हिंसा से प्रभावित वर्तमान स्थिति पर आधारित बूङ बनी। प्रियकांत लाइश्रम की ‘वननेस’ (2024) पहली मणिपुरी समलैंगिक-थीम पर आधरित फिल्म है।
यह अपने रूप और प्रकृति दोनों में पूर्व की फिल्मों से बिलकुल अलग है।
डिजिटल फिल्म के क्षेत्र में भी मणिपुरी फिल्मों के निर्माता-निर्देशकों ने अपनी उपस्थिति दर्ज की है। 2001 में माखनमणि की ‘चतलेदो ऐदी’ को नेशनेल अवार्ड मिला। 2010 में ओइनाम गौतम की ‘फिजीगी मणि’ को 59वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में क्षेत्रीय सर्वश्रेष्ठ मणिपुरी फिल्म का पुरस्कार मिला । 2013 में बनी माखोनमणि मोङसाबा की फिल्म ‘नङना कप्पा पकचदे’ को ‘किनशासा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवेल 2017’ में “एपिक मिरर ऑफ द सेंच्यूरी” के संबोधन के साथ ‘स्पेश्यिल जूरी अवार्ड’ दिया गया। 2015 में बनी माइपाकसना हाओरोङबम द्वारा निर्देशित फिल्म ‘ऐबू याओहनबियू’ ने 63वें राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड में सर्वश्रेष्ठ मणिपुरी फीचर फिल्म का पुरस्कार जीता। माखोनमणि मोङशाबा की ‘मागी मतमबाक्ता’ ने 2019 में सम्पन्न द्वितीय झारखण्ड अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में ‘सर्वश्रेष्ठ मणिपुरी फिल्म’ का पुरस्कार जीता। इसी वर्ष मॉस्को में सम्पन्न ‘यूरेशिया इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवेल’ में इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का पुरस्कार जीता। 2019 में ही अजित युमनाम की ‘ऐखोइशिबू कनानो’ को 10वें दादा साहेब फाल्के फिल्म उत्सव में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का पुरस्कार मिला। ओ सी मइरा की ’अशेङबा इरल’ को नीरी 9 द्वितीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2023 में ‘जूरी स्पेश्यिल मेंशन अवार्ड’ दिया गया। अरिबम श्याम शर्मा की “इशानौ” को कान्स फिल्म महोत्सव 2023 में ‘कान्स क्लासिक सेक्शन’ के तहत विचार की जाने वाली एकमात्र भारतीय फिल्म थी। 2023 तक, इशानौ, वननेस (फिल्म) और एखोइगी युम को आई एम डी बी पर शीर्ष तीन मणिपुरी फिल्मों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
निष्कर्ष : भारत के उत्तर- पूर्व में स्थित इस छोटे से राज्य मणिपुर का क्षेत्रफल 22327 वर्ग किलोमीटर है और जिसकी आबादी लगभग 30 लाख है परंतु यहाँ के कला प्रेमियों ने जिस तरह कला के विभिन्न रूपों में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है, उसी तरह फिल्मों में भी अपनी पहचान दर्ज की है। मणिपुरी सिनेमा ने अब तक अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में देश के लिए ख्याति अर्जित की है। मणिपुरी सिनेमा ने अब तक की यात्रा में अनेक उतार-चढ़ावों का सामना किया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि हॉलीवूड, बोलीवूड या दक्षिण की फिल्मों की तरह मणिपुरी फिल्मों से अर्थार्जन संभव नहीं है। मणिपुरी बोलने वालों की संख्या भी सीमित है। मणिपुर के अलावा असम तथा त्रिपुरा में कुछ मणिपुरी भाषी निवास करते हैं पर उनकी संख्या भी बहुत नहीं है कि मणिपुरी फिल्म उद्योग को प्रभावित कर सके। अनेक बार ऐसा हुआ है कि फिल्म बनाने वाले जितना निवेश करते हैं उसके अनुसार उन्हें लाभ नहीं होता। कुछ फिल्मों से कमाई होती भी है तो उतनी नहीं होती। कभी तो लागत तक पूरी नहीं मिलती। इससे स्पष्ट है कि मणिपुर में सामान्यतः सिनेमा के प्रति प्रेम या जुनून के कारण ही लोग इस उध्योग से जुड़े हुए हैं। फिर भी एक बात अवश्य है कि तमाम मुश्किलों के बावजूद सिनेमा की निरंतरता के लिए ये सदा प्रयासरत रहते हैं। इतना तो स्पष्ट है कि विश्व स्तर पर मणिपुरी सिनेमा ने अपने अस्तित्व को साबित किया है। पर यदि मणिपुरी सिनेमा को हिंदी में डब करके शेष भारत वासियों को उपलब्ध करा सके तो निश्चित रूप से मणिपुरी सिनेमा के दर्शक बढ़ेगे बल्कि कमाई भी होगी इसी के साथ-साथ मणिपुरी समाज और संस्कृति को सिनेमा के माध्यम से व्यापक स्तर पर पहुँचाया जा सकेगा।
संदर्भ :
- जर्नल ऑफ एडवांस्ड रिसर्च इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन, पीयर रिव्यूड जर्नल
वॉल्यूम 5, इश्यू 1&2 - 2018, पृष्ठ सं. 26 - “मणिपुर में फिल्म निर्माण की प्रक्रिया मणिपुर के प्रथम मुख्यमंत्री महाराजकुमार प्रियव्रत ने सन् 1936 में आरंभ किया माना जाता है।” मणिपुरी सिनेमा : ङराङ अमसुङ ङसि, सिनेमा सिनेमा अमसुङ सिनेमा संपादक – याम्बेम तोम्बी देवी, असाङबा कम्यूनिकेशन, इम्फाल, ISBN :
978-81-921569-0-3, पृ- 94
- एस.एन. चंद -
मणिपुरी सिनेमा के पिता ई- लेख-मेघचंद्र कोंगबम, सीनेइंडिया/ जुलाई – सितंबर 2022, पृष्ठ 1,
- एस.एन.चंद -
मणिपुरी सिनेमा के पिता- लेख-मेघचंद्र कोंगबम, ई-सीनेइंडिया/ जुलाई – सितंबर 2022
/ पृष्ठ -3,
- एस.एन. चंद -
मणिपुरी सिनेमा के पिता, लेख- मेघचंद्र कोंगबम ई-सीनेइंडिया/ जुलाई – सितंबर 2022
/ मेघचंद्र कोंगबम / पृष्ठ -1
- जर्नल ऑफ एडवांस्ड रिसर्च इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन, पीयर रिव्यूड जर्नल वॉल्यूम 5,
इश्यू 1&2 - 2018, पृष्ठ सं. पृष्ठ 27
- जर्नल ऑफ एडवांस्ड रिसर्च इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन, पीयर रिव्यूड जर्नल वॉल्यूम- 5, इश्यू 1&2
- 2018, पृष्ठ सं. पृष्ठ 28
- मणिपुरी सिनेमा : ङराङअमसुङ ङसि, सिनेमा सिनेमा अमसुङ सिनेमा –
याम्बेम तोम्बी देवी, असाङबा कम्यूनिकेशन, इम्फाल, ISBN
: 978-81-921569-0-3, पृ-104
- जर्नल ऑफ एडवांस्ड रिसर्च इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन, वॉल्यूम 5, इश्यू 1&2
- 2018, पीयर रिव्यूड जर्नल, पृष्ठ –
26
- जर्नल ऑफ एडवांस्ड रिसर्च इन जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन, पीयर रिव्यूड जर्नल, वॉल्यूम 5,
इश्यू 1&2 - 2018, पृष्ठ सं.-29
एलाङबम विजय लक्ष्मी
हिंदी विभाग, मणिपुर विश्वविद्यालय, काँचीपुर, इम्फास- 795003, मणिपुर
vningthoukhongjam@gmail.com, 9856138333
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