शोध आलेख : ‘अग्निस्नान’: पौरुष को अग्निस्नान कराने वाली फिल्म / रीतामणि वैश्य

‘अग्निस्नान’: पौरुष को अग्निस्नान कराने वाली फिल्म
- रीतामणि वैश्य

शोध सार : भारतीय फिल्म जगत में असमीया फिल्मों का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है। डॉ॰ भबेंद्रनाथ शइकीया असमीया फिल्म जगत के श्रेष्ठ फिल्म निर्देशकों में गिने जाते हैं। उन्होंने कुल आठ फिल्में असमीया फिल्म जगत को दी हैं। अपने उपन्यास ‘अंतरीप’ पर 1985 ई. उन्होंने ‘अग्निस्नान’ फिल्म का निर्माण किया। इस फिल्म में पुरुष के अन्याय और विश्वासघात का जवाब एक स्त्री द्वारा बड़े साहस से दिया गया है। इस फिल्म में एक संभ्रांत घर के मझले बेटे महीकान्त अपनी पत्नी और चार बच्चों के रहते हुए भी एक गरीब घर की रूपवती युवती किरण को ब्याह लाता है। महीकान्त के इस कदम से उसकी पहली पत्नी मेनका को बेहद आघात लगता है। अपने प्रति सहानुभूति रखने वाले पड़ोसी मदन चोर से मेनका गर्भ धारण करने का निर्णय लेकर मानो अग्निस्नान करती है। और जब महीकान्त को मेनका के गर्भधारण का पता चलता हैं तब वह बौखला जाता है। पर लाख डराने धमकाने पर भी मेनका अपने बच्चे के पिता का नाम बताने से मना कर देती है, ना चाहते हुए भी अपनी पत्नी के गर्भ में पल रहे दूसरे पुरुष के बच्चे को लोकलाज के भय से अपनी छत्रछाया में पालने की बेबसी महीकान्त के लिये भी अग्निस्नान ही है। यह फिल्म स्त्री की एक बेहद साहसी तस्वीर पेश करती है।

बीज शब्द : अग्निस्नान, महीकान्त, मेनका, मदन चोर, संभ्रांत, गर्भधारण, असमीया फिल्म, डॉ॰ भबेंद्रनाथ शइकीया, विवाह, शराब

मूल आलेख : भारतीय फिल्म को समृद्ध करने में असमीया फिल्म का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। असमीया फिल्म को अस्तित्व में लाने का श्रेय रूपकोँवर ज्योतिप्रसाद आगरवाला (1903-1951) को जाता है। 1935 ई. में ज्योतिप्रसाद ने ‘जयमती’ का निर्माण कर असमीया फिल्म की नींव डाली। असमीया फिल्म की इसी परंपरा में कई और निर्देशक हुए, जिन्होंने असम की सीमा ही नहीं, भारत की सीमा का अतिक्रम कर असमीया फिल्म को दुनिया के तमाम देशों के दर्शकों को इसके स्वाद से तृप्त कराया। ऐसे निर्देशकों में डॉ॰ भबेंद्रनाथ शइकीया (1932-2003) का नाम अन्यतम है।

डॉ॰ भबेंद्रनाथ शइकीया ने कुल आठ फिल्मों का निर्माण किया है, वे हैं ‘संध्याराग’ (1977), अनिर्बान (1981), ‘अग्निस्नान’ (1985), ‘कोलाहल’ (1988), ‘सारथि’ (1991), ‘आवर्तन’ (1993) और ‘इतिहास’ (1996)। इन फिल्मों को असमीया दर्शकों के साथ-साथ देश-विदेश के दर्शकों ने सादर ग्रहण किया है। इन आठों फिल्मों के लिए उन्हें श्रेष्ठ क्षेत्रीय फिल्म का ‘रजत कमल पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया है। डॉ॰ भबेंद्रनाथ शइकीया की फिल्में कई अर्थों में विशेष हैं। उनकी फिल्मों में समाज के उन सूक्ष्म मुद्दों को उठाया गया है, जिन पर अक्सर लोगों का ध्यान नहीं जाता और जाता है तो उन पर बात करना पसंद नहीं करते। अपने ‘अंतरीप’ उपन्यास के आधार पर बनायी गयी फिल्म ‘अग्निस्नान’ (1985) में डॉ॰ भबेंद्रनाथ शइकीया ने स्त्री के अन्तर्मन को टटोलकर परंपरागत पुरुष प्रधान समाज और मानसिकता पर प्रचंड प्रहार किया है।

विश्लेषण :

‘अग्निस्नान’ शीर्षक से ही यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस फिल्म की कथा में कुछ जटिलताएँ हैं। घनकान्त एक संपन्न एवं सम्मानित व्यक्ति है, जो एक छोटे शहर में रहता है। बूढ़ा हो जाने से उसने घर की ज़िम्मेदारियाँ अपने बेटों-रन्तकान्त और महीकान्त को सौंप दीं, तीसरे बेटे भद्रकान्त के पास अभी भी अपनी आजीविका नहीं थी।

‘अग्निस्नान’ का कथानक घनकान्त के बेटे महीकान्त की दूसरी शादी को लेकर बुना गया है। फिल्म के प्रमुख चरित्र तीन हैं-महीकान्त, उसकी पत्नी मेनका और चोर मदन। इन तीनों चरित्रों के साथ-साथ कुछेक गौण चरित्रों से ‘अग्निस्नान’ की कथा को पूर्णता दी गयी है।

महीकान्त सामंती अभिमान और घमंड का प्रतीक है। वह एक सभ्य परिवार की ईमानदार, खूबसूरत लड़की मेनका से शादी करता है। मेनका खुद को एक आकर्षक, समर्पित पत्नी बनाती है और समय के साथ चार बच्चों की माँ बन जाती है। महीकान्त एक ब्रिटिश डिप्टी कमिश्नर की मदद से शहर में एक चावल मिल स्थापित करता है। मिल की स्थापना के बाद महीकान्त तेजी से अमीर हो जाता है। बनठन कर रहने का आदी महीकान्त शरीर में इत्र लगाने का शौक रखता है, शराब और मांस उसकी आदत बन जाते हैं। नशे की हालत में वह पत्नी मेनका पर जान छिड़कता है और नशा उतर जाने के बाद असली रूप में आता है। पति महीकान्त, बूढ़ी सास योगेश्वरी, बूढ़े ससुर घनकान्त, बच्चे, अड़ोसी-पड़ोसी को लेकर मेनका का जीवन-चक्र घूमता रहता है।

महीकान्त अपनी चावल मिल के लिए धान खरीदने के लिए अक्सर आस-पास के गांवों में जाता है। घोड़ा-गाड़ी, धान कल, शराब और मांस के उत्तेजक माहौल से निकलकर एक बार महीकान्त पेड़-पौधों,नदी से भरी प्रकृति की एक शांत दुनिया में प्रवेश करता है। उस गाँव में उसकी मुलाकात गरीब परिवार की खूबसूरत युवती किरण से होती है और किरण के प्रति वह आकर्षित होता है।

महीकान्त किरण से शादी करने का निर्णय करता है और मेनका को यह जरूरी संवाद मदन चोर की माँ रेवती बूढ़ी देती है। रेवती बूढ़ी अक्सर नशे के लिए मेनका से पैसे मांगती है और मेनका उसे पैसे देती है। उस दिन भी बूढ़ी को देखकर मेनका उसे देने के लिए कुछ पैसे ले आयी पर बूढ़ी शायद महीकान्त की दूसरी शादी से इस तरह आश्चर्यचकित हो गयी थी कि वह खबर सुनाकर वहाँ से चली गयी। फिल्म में रेवती बूढ़ी का संवाद है –

“इयार बियार कथा, महीकान्तइ ये आकौ बिया कराब ओलाइछे, कथाटो शुना नाइ?”1

(भावार्थ : इसकी शादी की बात, महीकान्त फिर से शादी करने निकला है, तुझे पता नहीं?)

और मेनका के हाथ से बूढ़ी के लिए लाया गया पैसा गिर पड़ता है। रेवती बूढ़ी की बात सुनकर मेनका निस्तब्ध हो कर रह गयी। रेवती के गिरे हुए पैसे की तरह ही मानो मेनका भी उपेक्षित हो गयी हो।

रात को महीकान्त मेनका से बातें करना चाहता है पर मेनका किसी भी बात का उत्तर नहीं देती। मेनका की चुप्पी को तोड़ने की कोशिश करता हुआ महीकान्त अपने निर्णय के समर्थन में तर्क देता है। लंबे-लंबे संवादों से मेनका को समझाने की कोशिश करता है। पर मेनका नि:शब्द क्रंदन से महीकान्त का विरोध करती है।

महीकान्त वर बनकर शान से हाथी पर सवार होकर किरण को ब्याह लाता है। शांतचित्त मेनका पूरे प्रकरण को चुपचाप देखती रह जाती है। वह अपने शयनकक्ष को पुनर्व्यवस्थित करती है, जबकि महीकान्त किरण के साथ एक नये शयनकक्ष में रहने जाता है। इस शादी के बाद मेनका महीकान्त से शारीरिक संबंध खत्म कर देती है। फिल्म में मेनका महीकान्त के शारीरिक संबंध की इच्छा जताने पर उससे कहती है –

“किरण टोपनि योवार पिछत मोर कोठालै आहिब? आहिले सकलोवे जनाकै देखाकै आहिब।”2

(भावार्थ : किरण के सोने के बाद मेरे कमरे में आयेंगे? अगर आना है तो छुपकर नहीं, खुले तौर आना होगा।)

महीकान्त के वृद्ध माता-पिता भाग्य के भरोसे मूक दर्शक बन जाते हैं। लेकिन भद्रकान्त और उसका दोस्त मदन चोर, महीकान्त के पुनर्विवाह से क्रोधित हो जाते हैं। मेनका का सबसे बड़ा बेटा इंद्र घर के माहौल से ऊबकर भद्रकान्त और मदन के करीब चला जाता है। फिल्म में मेनका इंद्र से पूछती है –

“तइ मदनर घरत कि कर? कि सुधिछो नकव किय? मदनर घरत तइ कि करगै?”3

(भावार्थ : तुम मदन के घर क्यों जाते हो? क्या पूछ रही हूँ, बोलो? मदन के घर तुम क्यों जाते हो?”)

वह अपनी माँ की मदद करना चाहता है और अपने पिता से किसी भी प्रकार से बदला लेने का निर्णय करता है। इंद्र के चरित्र के प्रस्तुतिकारण में डॉ. भबेंद्रनाथ शइकीया की दक्षता को रेखांकित करते हुए फिल्म समीक्षक अपूर्व शर्मा ने कहा है –

“एइखिनिते उल्लेख करा प्रयोजन ये इंद्रर क्षुद्र चरित्रटोर बिकाशर क्षेत्रत डॉ. शइकीयाइ अद्भुत दक्षता प्रदर्शन करिछे। केइटामान मात्र श्वटत प्राय संलापहीन एइ चरित्रटोर आहत आरु बिभ्रांत मानसिकता तेखेते सुंदर रूपत फुटाइ तुलिछे।”4

(भावार्थ : इंद्र के चरित्र के प्रस्तुतिकरण में डॉ. शइकीया ने अद्भुत दक्षता का परिचय दिया है। कुछ ही शॉटों में प्रायः संवादहीन इस चरित्र के आहत और विभ्रमित मानसिकता को उन्होंने सुंदर ढंग से पेश किया है।)

महीकान्त के आचरण और सौत के रूप में किरण की उपस्थिति से मेनका की आंतरिक दुनिया बिखर जाती है। बहू और माँ होने के नाते वह अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाती है, सौत के रूप में किरण उसके घर में आ ही गयी है तो उसके साथ मिलकर रहने की भी वह कोशिश करती है। उसे महीकान्त की तरफ से अब कोई अपेक्षा नहीं रह गयी थी, पर महीकान्त से किरण की शादी करने की वजह वह जानना चाहती थी। जबकि किरण और उसके परिवार को महीकान्त के शादीशुदा होने और चार बच्चे के बाप होने का पता था, महीकान्त के प्रस्ताव को उन्हें मना करना था। मेनका किरण से पूछती है कि पत्नी और चार बच्चों के रहने के बावजूद क्यों किरण ने महीकान्त से विवाह किया। इसका उत्तर परंपरागत रूप से देकर किरण कहती है –

“पिताइहँत दुखीया मानुह। छोवाली बिया दिब लागे, सुबिधा पाइछे दि दिछे। एखेतसकले धरिछे, बियार खरचपाति दिछे पिताइक धान माह किनिबलै पइछा दिछे।”5

(भावार्थ : अच्छा दूल्हा मिला तो उसकी शादी करा दी गयी।)

किरण के इस उत्तर ने समाज के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि अच्छे दूल्हे की धारणा क्या है। जिसके पास धन है, भले ही वह अधेड़ हो, शादीशुदा हो, चार-चार बच्चों का बाप हो, वह अच्छा दूल्हा बन जाता है। किरण के इस उत्तर का जवाब देती हुई मेनका कुछ इसी तरह से बोलती है और गरीब घराने की किरण को चुप करा देती है।

जब आधी रात को किरण के शयनकक्ष से संगीत मेनका के कानों में गूंजता है, मेनका का बत्तीस वर्षीय शरीर और दिमाग अस्थिर हो जाते हैं। वह अपने चारों बच्चों को सुलाते हुए खुद से संघर्ष करती रहती है।अपने पति को किसी अन्य स्त्री के साथ दाम्पत्य जीवन बिताते हुए देखते रहना किसी भी पत्नी के लिए आसान नहीं होता, मेनका के लिए भी यह सह पाना कठिन था। मेनका का तन-मन हर पल आग में झुलसने लगता है। पुरुष है तो मेनका को शादी कर लाया,चार-चार बच्चों का बाप बना और अब किरण को देखा तो उसे शादी कर लाया। इस निर्णय के लेते समय उसने मेनका को एक बार भी बताना उचित नहीं समझा। ऐसा इसीलिए कि वह पुरुष है, वह अगाध संपत्ति का मालिक है। पर मेनका महीकान्त की संपत्ति नहीं है, न ही वह जड़ है कि पति की हरकतों को चुपचाप सहती रहेगी। उसने पति को उसी की तरह बदला लेने का निर्णय लिया। पर यह निर्णय किसी भी स्त्री के लिए सहज नहीं था। समाज आज भी पुरुषों का सात खून माफ कर देता है पर स्त्री का रत्ती भर दोष भी माफी लायक नहीं समझता। मेनका उस समाज की इन मान्यताओं पर आघात करने का प्रण लेती है। महीकान्त ने उसकी आत्मा पर चोट कर अपने वैवाहिक बंधन की मर्यादा लांघी थी,जिससे मेनका के हृदय में विद्रोह का ज्वालामुखी फटने लगता है।

एक रात मेनका को बाहर शोर सुनाई देता है। वह दरवाज़ा खोलती और सामने मदन चोर को पाती है। मेनका को सामने पाकर वह काँपने लगता है। हतप्रभ मेनका तुरंत खुद को संभालती है और मदन को घर के पीछे बाँस के झुरमुट के नीचे एक एकान्त स्थान पर ले जाती है। मदन को वहाँ पड़े एक लट्ठे पर बिठाकर उसे मेनका के कमरे में घुसने का कारण पूछती है। मदन टूट जाता है और मेनका से कहता है कि उससे मेनका की मूक पीड़ा और सही नहीं जाती। बदला लेने के उद्देश्य से उसने इंद्र को घर के अंदर से उसकी मदद करने के लिए राजी किया है और इन्द्र ने मदन से चोरी करवाने के लिए कमरे का दरवाजा खोल दिया है। उसे लगता है कि पैसा और संपत्ति ही महीकान्त की क्रूरता का कारण है। फिल्म में मदन का संवाद है –

“यदि टका संपत्ति धने सोनेरे मनुहटोवे एइबोर करिछे, सेइसोपाके लै गॉले केने हय?”6

(भावार्थ : अगर पैसे के जोर पर वह यह सब कर सकता है तो अगर उसका पैसा ही न रहे तो कैसा हो?)

इसलिए, वह उसका कुछ कीमती सामान चुराकर उसकी अमीरी के मद को तोड़ने का फैसला करता है। अपने प्रति मदन की भावनाओं से अभिभूत होकर मेनका चुप रहती है। फिर वह उसे सलाह देती है कि वह इन मामलों में इंद्र को शामिल न करें। लेकिन उसे अगली रात उसी समय उसी स्थान पर आने के लिए कहती है।

मेनका के कमरे की खुली हुई खिड़की मदन को बुलाने का इशारा है। मेनका ने मदन को बुला तो लिया,पर रात को वह जाये कि न जाये इस बात को लेकर वह चिंतित होती है, उसके मन में द्वंद्व होता है और इस संदर्भ में वह अपना अंतिम निर्णय मदन से मिलते रहने का ही लेती है। मेनका मदन के सहारे अपने बेवफा पति महीकान्त से प्रतिशोध लेना चाहती है। फिल्म में क्रोध में मेनका मदन से कहती है –

“ कोन किमान पुरणि, कोन किमान नतुन, एनेकै बुजाम, एनेकै बुजाम…।”7

(भावार्थ : कौन कितनी पुरानी है, कौन कितनी नई है, ऐसे समझाऊंगी, ऐसे समझाऊंगी कि…।)

कुछ दिनों के बाद मेनका मदन के बच्चे की माँ बनने वाली होती है। इसका पता चलते ही मेनका मदन से कहती है कि उसका मकसद पूरा हो गया है। अब से अगर उसके कमरे की खिड़की किसी कारण खुली भी रह गयी, मदन को उस ओर ध्यान नहीं देना चाहिए। अब वे इस तरह कभी नहीं मिलेंगे।

इधर किरण भी गर्भवती होती है। इस संदर्भ में फिल्म में मेनका किरण से कहती है –

“शुना, तोमार गा बेया हय आछे, केइदिनमानर पाछर परा तोमार लगत लागि थाकिबलै मानुह एजनी तोमार ओचरे-पाजरे थाकिले भाल हॉब, किंतु तुमिटो मोर कथा जानाइ, मइ तोमार सतिनी, मइ खोला मनेरे तोमाक सहाय करिब नोवारिम।”8

(भावार्थ : सुनो, मां बनने वाली हो, कुछ दिन बाद से कोई मदद के लिए तुम्हारे आस-पास रहे तो अच्छा होगा, पर तुम तो मेरे बारे में जानती ही हो, मैं तुम्हारी सौतन हूँ, मैं खुले मन से तुम्हारी मदद नहीं कर सकूंगी।)

किरण अपने पहले बच्चे के जन्म से ठीक पहले कुछ दिनों के लिए मायके जाती है। किरण की अनुपस्थिति में महीकान्त की आँखों के सामने मेनका रहती थी और रहता था मेनका की गहरी अस्वीकृति का भाव। उससे महीकान्त अधिक कठोर होकर मेनका पर अत्याचार करता है। इस स्थिति में भी मेनका एक अच्छी माँ और एक अच्छी गृहिणी बनी रहने के लिए दृढ़ संकल्पित रहती है। वह महीकान्त से स्पष्ट रूप से कहती है कि वह मेनका के लिए जो कुछ भी लायेगा उसे वह स्वीकार है, लेकिन उसे एक शर्त माननी होगी कि वह उसे स्पर्श नहीं करेगा। महीकान्त,जो अपने आस-पास की हर चीज का आनंद लेना चाहता है, हक जाताना चाहता है,मेनका से मिली उपेक्षा से क्रोधित और क्रूर हो उठता है।

एक बच्चे को जन्म देने के बाद किरण ससुराल आ जाती है। रात के समय वह महीकान्त को मेनका के गर्भधारण करने की खबर सुनाती है,जिससे अति क्रोध से महीकान्त चिल्ला पड़ता है। अपनी बेवफाई के प्रतिशोध में मेनका द्वारा किए गये इस कुठाराघात से इस बार महीकान्त ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ा। किरण से शादी के बाद उसने मेनका को कभी नहीं छुआ तो वह कैसे फिर से माँ बन सकती है। वह अपनी उन्मत्त पीड़ा में बेचैन हो जाता है और अधीर होकर कमरे से बाहर निकल आता है। वह देखता है कि मेनका के कमरे से इंद्र बाहर आया है। बेटे को देखकर महीकान्त के मन में उसके प्रति प्यार आता है। वह उसकी पढ़ाई की खबर लेता है और पढ़ाई की प्रगति की बात जानकार वह खुशी से उसका आलिंगन करता हुआ पूछता है कि उसकी पढ़ाई की जरूरतें कौन पूरी करता है। बेटा कहता है कि उसका चाचा भद्रकान्त उसकी किताबों, कॉपियों का बंदोबस्त करता है। महीकान्त के मन में संदेह जगता है कि कहीं भद्रकान्त ही मेनका के होने वाले बच्चे का बाप तो नहीं है? इसी संदेह के आधार पर महीकान्त भद्रकान्त को घर से निकाल भेजता है।

महीकान्त मानसिक रूप से अस्थिर हो पड़ता है। अंतिम दृश्य में महीकान्त और मेनका की भेंट महीकान्त की शक्ति का प्रतीक कलघर में होती है। यहाँ महीकान्त मेनका के सामने अपना वक्तव्य रखती है। बातचीत के बीच कलघर की मशीन बंद हो जाती है, जिसे मेनका फिर से चलाने के लिए कहती है। यहाँ मेनका के तर्क के सामने महीकान्त के पराभूत होने के साथ-साथ कलघर पर मेनका का अधिकार प्रकाशित होता है। वहाँ उसने मेनका से पूछा कि क्या उसने जो सुना वह सच है। मेनका ने महीकान्त के आरोप को स्वीकार किया। महीकान्त उस पर गरज उठा। अब सवाल यह आया कि आखिर यह पुरुष है कौन।

मेनका ने उससे कहा कि वह अपने पूरे जीवन में इस प्रश्न के उत्तर की उम्मीद न करें। चावल मिल के शोर के बीच महीकान्त के उतरे चेहरे के सामने मेनका धीरे-धीरे स्त्रीत्व की प्रतिनिधि में बदल जाती है। रौंदी उत्पीड़िता अब विद्रोही बनकर खड़ी हो गयी। फिल्म के अंत में महीकान्त मेनका के सामने लाचार दिखता है। फिल्म में असमीया में मेनका का संवाद है –

“मइ एटा मानुहर लगत लुकुवाइ लुकुवाइ सदाय लेतेरा है थाकिब पारिलोहेंतेन, किंतु सेइटो मोक नालागे। मोक आपोनाक देखुवाबलै एटा प्रमाण लागे – आरु तार पाछत आकौ चाफा है थाकिबलै लागे।”9

(भावार्थ : मैं किसी के साथ छुप-छुपकर हमेशा गंदा बनकर रह सकती थी, पर वह मैं नहीं चाहती। मुझे आपके लिए एक प्रमाण चाहिये था – और उसके बाद फिर साफ-सुथरा बनकर रहना था।)

पहले वह मेनका को डराता-धमकाता है,पर बाद में मेनका के सामने हथियार डाल देता है। मेनका कहती है- अब हमारे छह बच्चे हैं,उनमें से एक की माँ मैं नहीं हूँ और एक के बाप आप नहीं हैं। हिम्मत है तो सारी दुनिया के सामने चिल्ला-चिल्ला कर कहिए कि आप मेरे पास नहीं आते और यह बच्चा आपका नहीं है। उसने महीकान्त से कहा –

“सीता थाकिब हॉले रामो थाकिब लागे, तेहे।”10

(भावार्थ : मैं सीता बनना चाहती थी, पर अगर मुझे सीता बनकर रहना है, तो मुझे पति के रूप में राम भी मिलना चाहिए।)

पुरुष राम नहीं बनेगा तो स्त्री को सीता के रूप में पाये जाने की कल्पना करना गलत है। महीकान्त के पास से मेनका चली जाती है, वह मेनका के चलाये गये मशीन के तीव्र शब्दों के बीच रह जाता है।

मदन चोर है, यह जानकर भी महीकान्त ने उसे पुलिस के हाथों से बचाया है और पूरे विश्वास के साथ उसे अपने चावल मिल का प्रबंधक नियुक्त किया। महीकान्त मदन से कहता है – “तइ डाङर चोर धरिब लागिब।”11

( भावार्थ : तुझे बड़ा चोर पकड़ना होगा)

मदन खुद को एक वफादार, समर्पित कार्यकर्ता साबित कर महीकान्त के धानकल का चोर पकड़ता है।

‘डाङर चोर’, अर्थात् बड़ा चोर – इन दो शब्दों के जरिये मेनका के होने वाले बच्चे के बाप की ओर इशारा किया गया है। पर मदन ही वह बड़ा चोर है। महीकान्त को मेनका और मदन के गुप्त संबंध के बारे में कुछ भी अंदाजा नहीं है। मदन को चोर न बनाकर एक साधारण युवक भी रखा जा सकता था। पर चोर मदन को कहानी के अंत में बड़ा चोर पकड़ने के लिए ज़िम्मेदारी देने से मदन का चरित्र अधिक आकर्षक बन पड़ा है। चोर मदन को पुलिस के हाथों से बचाकर लाने वाले महीकान्त की पत्नी के बच्चे का बाप बनने से कहानी अधिक रोचक बन पड़ी है।

इस फिल्म की कहानी के बारे में अपूर्व शर्मा ने कहा है –

“एइ चलचित्र डॉ. शइकीयार निजरे उपन्यास ‘अंतरीप’र आधारत निर्मित, किंतु काहिनीर मूल भित्ति आमार बाबे किछु थरक-बरक येन लागिछे।”12

(भावार्थ : यह फिल्म डॉ. शइकीया के अपने उपन्यास ‘अंतरीप’ पर बनी है, पर कहानी का मूलाधार मेरी दृष्टि में थोड़ा डगमगा गया है।)

‘अग्निस्नान’ का मूल चरित्र मेनका है और अन्य दो प्रमुख चरित्र हैं महीकान्त और मदन। फिल्म के प्रारम्भ में महीकान्त के चरित्र को प्रधानता मिली है। पर उसकी दूसरी शादी से ही मेनका का चरित्र उज्ज्वल हो उठा है। इस घटना के परिणामस्वरूप उद्भूत विपरीत स्थिति में दोनों के चरित्रों का विकास हुआ है। इस संघात से दोनों चरित्र अपनी-अपनी राह पर चलने के लिए विवश हैं। दोनों का अपना-अपना लक्ष्य है,पर अलग। महीकान्त का लक्ष्य स्पष्ट है, जबकि मेनका का गुप्त।

इन चरित्रों की अपेक्षा मदन का चरित्र कुछ जटिल है। मदन मेनका और महीकान्त की कठपुतली की तरह आचरण करता है। वह मेनका के कहने पर उसके साथ शारीरिक संबंध बनाता है और महीकान्त के कहने पर उसके कल घर में विश्वस्त नौकर भी बनता है।

मेनका एक प्रतिवादी चरित्र है। वह महीकान्त से बदला लेने के लिए,उसे अपनी गलती का एहसास कराने के लिए एक कठोर निर्णय लेती है। पड़ोसी चोर मदन से ,जिसे वह अपना देवर मानती है, शारीरिक संबंध बनाती है। यह निर्णय और वह समय उसके लिए अग्निस्नान का है। अपने संसस्कार को तिलांजलि देकर मदन के सामने खुद को समर्पित करते समय मेनका को अग्नि का स्नान करना पड़ा है। पर इससे महीकान्त के घमंड को चकनाचूर कर मेनका उसे लाचार छोड़ने में कामयाब होती है। मेनका के विरोध के इस ढंग पर टिप्पणी करते हुए फिल्म समीक्षक उत्पल दत्त ने कहा है –

“मेनकार प्रतिवादर धरणटि ग्रहणयोग्य हय ने नहय, सेइ बिषयत बितर्कर अवकाश थाकिलेओ, एटा जटिल काहिनीक चलचित्र भाषारे आवेदनपूर्ण रूपत आउल नलगाकै आगबढ़ाइ नि बक्तव्यटिरे पाठकक चिंतार खोराक योगाब पराटोवे चित्रनाट्यकारर दक्षतार परिचय उज्ज्वल रूपत प्रकाश करिछ।”13

(भावार्थ : मेनका के विरोध का ढंग सही है या नहीं, इस संदर्भ में दो मत हो सकते हैं, एक जटिल कहानी को फिल्म के रूप में रोचक शैली में सरल ढंग से प्रस्तुत करके अपने संदेश से दर्शकों को सोचने पर मजबूर करना ही फिल्मकार की दक्षता का परिचायक है।)

मेनका तब भी महीकान्त की पत्नी थी,पर उसकी कोख में किसी और का बच्चा पल रहा था। न मेनका ने अपने होने वाले बच्चे के बाप से शादी की और न ही वह महीकान्त से अलग हुई। महीकान्त की आँखों के सामने उसकी पत्नी किसी और पुरुष के बच्चे को जन्म देने वाली है और भविष्य में भी वह बच्चा महीकान्त के घर में उसकी छत्रछाया में पलने वाला है। लोकलज्जा के कारण वह मेनका के इस कदम का विरोध नहीं कर सकता। उसे सारी जिंदगी अग्निस्नान करते रहना पड़ता है। युगों से स्त्री पर लांछन लगता आया है,उसे वंचना का शिकार होना पड़ा है;पर इस फिल्म में पुरुष प्रधान समाज में पौरुष को उसी के पैंतरे से प्रहार कर पराभूत कर दिया है। सीता को क्या अग्निस्नान करना पड़ा था कि मानो अग्निस्नान स्त्री को परखने की कसौटी बन गया हो। पौरुष को अग्निस्नान कराने पर मजबूर कर निर्देशक ने ‘अग्निस्नान’ फिल्म को समाज में स्त्री अधिकार के स्तम्भ के रूप में प्रस्तुत किया है। यही ‘अग्निस्नान’ की खूबसूरती और उसकी सफलता का मूलाधार है।

इस फिल्म में इंद्र बणिया, काश्मीरी शइकीया बरुवा, चेतना दास, अशोक डेका, मलया गोस्वामी, अर्जुन गुह ठाकुरीया, अरुण नाथ और बीजु फुकन आदि कलाकारों ने अभिनय किया है। खासकर महीकान्त,मेनका और मदन चोर के संवादों से दर्शक मंत्रमुग्ध बने रह जाते हैं।

निष्कर्ष : असमीया फिल्मों का भंडार बड़ा समृद्ध है। असमीया में कुछ फिल्में मनोरंजन के लिये बनाई जाती रही है, तो वहीं कुछ फिल्में गंभीर संदेश देने के लिये। ‘अग्निस्नान’ फिल्म इनमें से दूसरी कोटि में आती है। यह फिल्म अपने प्रति हुए अन्याय के जवाब के लिये स्त्री के साहस के जिस हद को दिखाती है वह अनोखा है। समाज में नाजायज संबंध कई स्त्रियां रखती हैं। पराये पुरुष से गर्भ धारण भी कई स्त्रियां कर लेती हैं। पर इस फिल्म में जिस सन्दर्भ में यह घटित होता है वह बेहद विलक्षण है। संवादों और दृश्यों में प्रतीकात्मकता के संयोजन से फिल्म अधिक आकर्षक बन पड़ी है। हॉल से बाहर आने के बाद भी लंबे समय तक फिल्म की कथा दर्शकों को अभिभूत कर रखने की क्षमता रखती है। यह असमीया फिल्म जगत की एक मास्टरपीस है।

संदर्भ :
  1. ‘अग्निस्नान’ फिल्म से
  2. वही
  3. वही
  4. शर्मा, अपूर्व. असमीया चलचित्रर छाँ-पोहर.गुवाहाटी: आँक बाँक प्रकाशन,2001, पृष्ठ 90
  5. वही
  6. वही
  7. वही
  8. वही
  9. वही
  10. वही
  11. वही
  12. शर्मा, अपूर्व. असमीया चलचित्रर छाँ-पोहर. गुवाहाटी; आँक बाँक प्रकाशन, 2001, पृष्ठ 86
  13. शइकीया, डॉ. भबेंद्रनाथ. अग्निस्नान. गुवाहाटी, स्टुडेंट्स स्टोर्स, 2018, पृष्ठ X


फिल्म : अग्निस्नान, भबेन्द्रनाथ शइकीया,1985

रीतामणि वैश्य
सहयोगी प्राध्यापिका,हिन्दी विभाग, गौहाटी विश्वविद्यालय
9435116133
  
सिनेमा विशेषांक
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
UGC CARE Approved  & Peer Reviewed / Refereed Journal 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-58, दिसम्बर, 2024
सम्पादन  : जितेन्द्र यादव एवं माणिक सहयोग  : विनोद कुमार

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