कविताएँ
- महेंद्र नंदकिशोर
(महेंद्र नंदकिशोर पर्यटन प्रबंधन में डिग्रीधारी होने के बाद फिर कॉलेज शिक्षा और अंत में स्कूल शिक्षा की तरफ लौटा हुआ एक युवामन लेखक है. गहरे में सोचता विचारता हुआ उत्साही है. नीमच मध्यप्रदेश का मूल निवासी मगर चित्तौड़गढ़ से गहरा नाता है जिसके कई कारण हैं. वर्तमान में अर्थशास्त्र पढ़ाता है और कविताओं को पढ़ने के साथ उनके ऑडियो रिकोर्ड का लयबद्ध पाठ करने में रुचिशील है. बढ़िया बोलता और बतियाता है. रोज़गार की माथापच्ची के बावजूद अपने भीतर के कलामन को बचा रखने में सफल है. फिलहाल उनकी कविताओं का यहाँ पहला प्रकाशन करके हम महेंद्र को कविताई के लिए प्रेरित कर रहे हैं. - सम्पादक)
(1) विकल्प
हम सब चाहते हैं विकल्प
पर विकल्प होना नहीं चाहते
जब कभी मैं कहता हूँ, तुम जाओ
असल में कहता हूँ, रुक जाओ
पेड़ से पत्ते का झड़ना
उगना नई कोंपल का
कुछ ऐसा जीवन का सार है
पेड़, एक परिवार है
कितनी भी बार काट लो
हर बार निकल आती है
‘कोशिश’ को भी
ऐसा ही होना चाहिए…
एक कविता,
आना था जिसको
आज सुबह
कहीं तो अटक गई,
नामालूम रास्ता भटक गई…
कविता
छोटी होनी चाहिए
बड़ी नहीं
मेरी कविता का
हर एक शब्द
चुराता है
किसी का समय
जो बचाकर रखा है
उसने
किसी ख़ास लिए
स्त्रियां खोजती हैं
पति में एक मित्र
न मिलने पर होकर निराश
ढूँढ लेती हैं
बाहर एक मित्र
न तो वे अकेली हैं
न ही दुःखी
और चरित्रहीन तो बिल्कुल भी नहीं
होना चाहती हैं
बस अभिव्यक्त
जैसे एक कविता
जो इंतज़ार में है
लिखे जाने के
पुरुषों के साथ भी
वो भी अलग नहीं स्त्रियों से
पत्नी में एक मित्र…
एक लंबी चिट्ठी लिखना चाहता हूँ
किसी ख़ास को
पर कहाँ भेजूं?
रहता नहीं वो अब उस पते पर
कब का जा चुका वहाँ से
ये मालूम हुआ मुझे
अभी-अभी
फ़िर भी
चिट्ठी लिख भेजना चाहता हूँ
उसी पते पर
जहाँ रहता था वो
पहली बार जहाँ
मिला था मैं उससे
कर लेता हूँ
एक आख़िरी कोशिश
क्या पता
चला आए कब वो वहाँ
और मेरी चिट्ठी
न पाकर
लौट जाए उदास फिर से
कभी न आने को
जिस किसी से
मैंने प्रेम किया
मैंने कहा उससे
प्रेम है तुमसे
माँ से, भाई-बहन से,
दोस्त से, जीवनसाथी से भी
इज़हार कभी उससे
जो ज़रूरी है सबसे
पर लंबित है कब से
नहीं कह पाया कभी
कि कितना प्रेम है मुझे
पापा आपसे……
सूर्य की तरह पाया
रोशनी में जिसकी
चमकता हूँ मैं
जैसे चमकता है चंद्रमा
अंधेरे में भी
इस कविता को
सबसे लंबी कविता
पर नहीं लिख पाऊँ शायद उतना
पूरा शब्दकोश चाहे तब भी
नहीं समेट सकता
वो जो महसूस करता हूँ मैं
आपके लिए
और फ़िर
आप ही से तो मिला है मुझे
महसूस करना
पर अभिव्यक्त न होना
महेंद्र नंदकिशोर
व्याख्याता (अर्थशास्त्र)
इकोल ग्लोबाल इंटरनेशनल गर्ल्स स्कूल,देहरादून
econ.mahendra@gmail.com, 8875313888
मानसिक जटिलता के उन्मूलन मे सहायक
जवाब देंहटाएंमहेंद्र नंदकिशोर पर्यटन प्रबंधन में डिग्रीधारी होने के बाद फिर कॉलेज शिक्षा और अंत में स्कूल शिक्षा की तरफ लौटा हुआ एक युवामन लेखक है. गहरे में सोचता विचारता हुआ उत्साही है. नीमच मध्यप्रदेश का मूल निवासी मगर चित्तौड़गढ़ से गहरा नाता है जिसके कई कारण हैं. वर्तमान में अर्थशास्त्र पढ़ाता है और कविताओं को पढ़ने के साथ उनके ऑडियो रिकोर्ड का लयबद्ध पाठ करने में रुचिशील है. बढ़िया बोलता और बतियाता है. रोज़गार की माथापच्ची के बावजूद अपने भीतर के कलामन को बचा रखने में सफल है. फिलहाल उनकी कविताओं का यहाँ पहला प्रकाशन करके हम महेंद्र को कविताई के लिए प्रेरित कर रहे हैं. माणिक
जवाब देंहटाएंपहली ही दो पंक्तियाँ पकड़ खर बैठ जाती हैं। दरअसल यह दो पंक्तियों में बँटा एक वाक्य है, जिसमें लगभग सारी दुनिया सिमट आई है। जिधर सोचो, जिस -तिस पर सोचो तो हर शू 'निर्विकल्प विकल्पहीनता' नजर आती है और इसलिए आती है कि विकल्प बनने का विकल्प लेकर हमारा दिल दिमाग नहीं चलता। पुनर्जीवन, घास, मित्र, सखी एक-एक कविता बेहद कोमल अहसास से पाठक को छूती चली जाती हैं। आखिरी 'प्रतिबिम्ब' कविता पहली कविता 'विकल्प' की तरह गहरी व्यंजकता में खुलती-घुलती है। पिता की नियति लगभग हर पुरुष में प्रवेश पा जाती है। भावना, संवेदना और वेदना को अनभिव्यक्त जीए जाने की नियति। महेंद्र नंदकिशोर का कवि व्यक्तित्व संभावना का समंदर है।
जवाब देंहटाएंबहोत सुंदर
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