राजस्थानी लघु चित्रकार : विरेन्द्र बन्नू
- प्रीति यादव
शोध सार : भारतीय जन-जीवन की पुष्कल व्याख्या कला के माध्यम से की गई है, जिसमें भारतवर्ष के विचार, धर्म, तत्त्वज्ञान और संस्कृति का समावेश पाया जाता है, जो भारतीय कला के द्योतक रहे हैं, जिसका प्रारम्भिक अंकन राजप्रसादों एवं मंदिरों की भित्तियों पर मिलता है, जिससे चित्रांकन की परिपाटी का पता चलता है, जिसका उल्लेख बाघ और अजंता जैसी विशद व उत्कृष्ट भित्तिचित्र परम्परा में देखने को मिलता है तथा इसका परिवर्तित रूप मध्य भारत की लघु चित्रकला में देखा जा सकता है, जिसका विस्तृत रूप हमें राजस्थानी और पहाड़ी शैली के लघु चित्रों में दिखाई देता है। ऐसे ही ख्याति प्राप्त राजस्थानी लघु चित्रकार विरेन्द्र बन्नू जी हैं, जो 7वीं पीढ़ी के लघु चित्रकार हैं, जिनके चित्रों की शैली परम्परावादी है परन्तु उन्होंने पारम्परिक विषय को साथ में रखकर अपनी एक नई शैली विकसित की है। वह भारतीय कला में लघु चित्रों को नया आयाम देने वाले राजस्थानी लघु चित्रकारों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।
बीज शब्द : भारतीय कला, लघु चित्रकला, प्रज्ञापारमिता, सौन्दर्य, नायिका, नायिका-भेद, राजस्थानी शैली, कुमारसंभवम्, कालिदास।
उद्देश्य : प्रस्तुत शोध पत्र में राजस्थानी लघु चित्रकार द्वारा पारम्परिक रंगों, लय, धरातल इत्यादि का प्रयोग तो वर्णित है, इनके चित्रों में सजीवता के भाव का यथार्थ अंकन भी दर्शाया गया है। उसके साथ ही उन लघु चित्रों का विस्तृत अध्ययन करने का प्रयास भी किया गया है, जिनके चित्रों का आकार तो लघु और परम्परावादी है परन्तु शीर्षक आधुनिक है।
मूल आलेख : भारतवर्ष के विचार, धर्म, तत्त्वज्ञान और संस्कृति का दर्पण ही भारतीय कला है।(1) भारतीय कला कई आदर्शों का साकार रूप है, जो किसी भी युग, स्थान, शैली तथा प्रविधि का अभ्युदय एवं विकास के साथ सभ्यता एवं संस्कृति को सदैव आगे रखती है।(2) मानवीय अभिव्यक्ति को वर्णों और रेखाओं के माध्यम से सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत करने के लिए चित्रकला एक महत्त्वपूर्ण साधन है। चित्रकला से सम्बन्धित उल्लेख हमें प्राचीन भारतीय साहित्य में मिल जाता है, जिनसे राज-प्रसादों एवं मंदिरों की भित्तियों पर चित्रांकन की परम्परा का पता चलता है। भारत में हस्तलिखित पोथियों में चित्रांकन की परम्परा पुरातन काल से रही है। भारतीय लघुचित्रों की शुरुआत ताड़पत्रों पर चित्रित धार्मिक ग्रन्थों में बने चित्रों से हुई है। भारतीय लघु चित्रकला के प्रारम्भिक उदाहरण हमें 11वीं शती की पाल शैली में 'ताड़पत्र' पर 'प्रज्ञापारमिता' ग्रन्थ के दृष्टांत चित्रों से प्राप्त होती है।(3) लघु चित्र आकार में अत्यन्त लघु, सौन्दर्य की दृष्टि से उत्तम एवं तत्कालीन सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों को समझने का महत्त्वपूर्ण साधन भी है, जिसका महत्त्वपूर्ण पड़ाव संभवतः राजस्थानी और पहाड़ी शैली है।(4) कला प्रेमी राजाओं के संरक्षण में इस लघु चित्रकला का विकास हुआ और इसने कला जगत में अपनी एक नई पहचान स्थापित की। ऐसे ही राजस्थानी लघु चित्रकार विरेन्द्र बन्नू जी हैं, जो लघु चित्रकला को नया आयाम देने के लिए प्रयासरत हैं और अपने चित्रों के माध्यम से उसे साकार कर रहे हैं।
भारतीय लघु चित्रकला परम्परा में दक्ष, 7वीं पीढ़ी के लघु चित्रकार विरेन्द्र बन्नू, जिनका जन्म 24 जनवरी, 1964 को जयपुर में हुआ। ये ख्याति प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय लघु चित्रकार श्री वेदपाल शर्मा "बन्नू" जी के पुत्र हैं। 14-15 साल की उम्र में अपने पिताजी से गुरु शिष्य परम्परा के तहत प्रशिक्षण लेना प्रारम्भ किया। धीरे-धीरे वह चित्र बनाने में निपुण हो गये। 1986 ई. में उन्होंने पेंटिंग में मास्टर की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अपने पारम्परिक विषय को साथ में रखकर अपनी एक नई शैली विकसित की। 1980 ई. में उन्हें चित्रकला में राजस्थान राज्य पुरस्कार प्राप्त हुआ तथा कई राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय कला शिविरों में भाग लिया।
इन्होंने राजस्थान राज्य की झाँकी तैयार की जिसको 26 जनवरी, 1966 ई. में राजपथ पर तृतीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। इनके उत्कृष्ट चित्र कई पुस्तकों के फ्रंट कवर पर छपे हैं। हाल ही में हमारे देश के प्रधानमंत्री ने अपनी कनाडा यात्रा के लिए विशेष रूप से सिख स्कूल पर विशिष्ट चित्र का आर्डर दिया, जहाँ उन्होंने इसे कनाडाई प्रधानमंत्री को उपहार में दिया और अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर भी इसका उल्लेख किया है। दिसम्बर 2023 में इन्हें आर्ट बिनाले में आमंत्रित कलाकार के रूप में राजस्थान की तरफ से बुलाया गया। जनवरी 2024 में फ्रान्स के राष्ट्रपति मैक्रोन से मिलने के लिए इन्हें राजस्थान के वरिष्ठ कलाकार के रूप में बुलाया गया।
इनके संग्रह आज भी विदेशों में भारतीय लघु चित्रकला की शोभा बढ़ा रहे हैं।(5) इन्होंने नायिका-भेद, पौराणिक कथाओं, कालिदास के ग्रन्थों, आधुनिक मानवीय संवेदनाएँ आदि पर सैकड़ों अद्भुत रचनाएँ की हैं।
विरेन्द्र बन्नू की कलाकृतियों का विवरण -
(1) सौन्दर्य गर्विता नायिका -
माध्यम - वसली कागज पर जलरंग, 8.3×11.7 इंच
संग्रह - निजी संग्रह
प्रस्तुत चित्र में सौन्दर्य गर्विता नायिका का चित्रण हुआ है, जो शृंगारिक नायिका के अंतर्गत आती है। यहाँ पर नायिका अपने सौन्दर्य व आकर्षण के कारण गर्वित प्रतीत हो रही है, क्योंकि उसकी आँखें धनुष के समान हैं किन्तु भौंहें खिंची हुई कमान की भाँति जो उसके गर्व का प्रदर्शन स्वतः ही कर रही हैं।(6) यह नायिका वस्त्राभूषण से सुसज्जित, सुगन्धित द्रव्य एवं अंजन आदि से सुशोभित है। चित्र को खड़िया व हल्के रंग के माध्यम से पूर्ण किया गया है। नायिका को सफेद व हरे मोतियों के आभूषण से युक्त बनाया गया है। हाथों में वलय, कंकण और केयूर धारण किये, एक हाथ से चुनरी पकड़े तथा दूसरे हाथ को दीवार पर टिकाए हुए द्वार पर खड़ी है। नायिका का रूप कांतिमय है, मोतियों से चमकते अधर, गहरी नाभी, वक्ष आगे उभरे हुए, उस पर झीना सा लाल व हरे रंग की चोली धारण किए हुए, पारदर्शी गुलाबी दुपट्टा ओढ़े नायिका के सौन्दर्य को सुशोभित कर रहे हैं। पृष्ठभाग में वृक्षों के झुंड को हल्के हरे रंग से आभासी रूप में दर्शाया गया है तथा स्थापत्य को अलंकरण युक्त चित्रित किया गया है। इस चित्र में नायिका की रूपगत विशेषताओं में उसके नेत्र और भृकुटि काम-बाण के प्रतिरूप दिखाई पड़ रहे हैं। इस चित्र को जुलाई 2024 में सिंगापुर के ‘विज़ुअल आर्ट्स सेन्टर’ में ‘ओरिज़िन ऑफ आर्ट्स’ नामक ग्रुप शो में प्रदर्शित किया गया है।(7)
(2) वासकसज्जा नायिका -
माध्यम - वसली कागज पर जलरंग, 8.3×11.7 इंच
संग्रह - निजी संग्रह
प्रस्तुत चित्र में किशनगढ़ शैली से प्रभावित होकर बन्नू जी ने वासकसज्जा नायिका का चित्रण किया है, जिसमें हरे रंग की पोशाक पहने गुलाबी रंग की पारदर्शी चुनरी ओढ़े, आभूषणों से सुसज्जित नायिका छत पर नायक की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही है। नायिका का अनिंद्य सौन्दर्य देखते ही बन रहा है। नायिका के गौरवर्णी मुख पर प्रदीप्त आभा है। उसकी पीठ पर लहराते बाल उसके सौन्दर्य में और निखार उत्पन्न कर रहे हैं।
नायिका एक हाथ से अपने आभूषण को संजो रही है और दूसरे हाथ से चुनरी पकड़े हुए है। हाथों में लाल रंग की चूड़ी तथा बाजूबन्द पहने हुए है, जो नायिका के हाथों की शोभा बढ़ा रहे हैं। नायिका छत पर शृंगारयुक्त होकर अपने प्रियतम की प्रतीक्षा कर रही है।(8) पृष्ठभूमि में हल्के हरे वर्ण से घने जंगल को दिखाया गया है। कुछ दूरी पर महल के कुछ भाग का अंकन है। ऐसा प्रतीत होता है मानो उस महल के झरोखे से नायिका और नायक एक-दूसरे से नयनाभिराम करते होंगे। चित्र में हल्के वर्ण का प्रयोग कर पृष्ठभूमि में बादलों की हल्की आभा को दिखाया गया है।(9)
(3) आधुनिक भारतीय नायिका -
माध्यम - वसली कागज पर जलरंग, 8×14 इंच
संग्रह - निजी संग्रह
प्रस्तुत चित्र को दो भागों में विभाजित किया जाता है। पृष्ठभाग में नायिका को पारम्परिक जयपुर तथा किशनगढ़ शैली की पोशाक में चित्रित किया गया है, जो शृंगारिक नायिका की श्रेणी में आती है। यह नायिका हाथ में गिटार लिए हुए है, जो आधुनिकता को दर्शा रहा है। नायिका की पोशाक और साज-सज्जा भारतीय परम्परा को दिखाती है तथा गिटार नयेपन के साथ आधुनिकता को सम्बोधित कर रहा है। इस चित्र में चित्रकार ने अग्रभाग में प्रकाश और साउण्ड को दिखाया है।
गिटार की मनोहर धुन ध्वनि को फैला रही है, कहने का तात्पर्य यह है कि, आज के दौर में नारी भी समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। वह भी अपने हक के लिए लड़ रही हैं। इस चित्र में चित्रकार ने परम्परा और आधुनिकता को एक साथ दिखाने का भरपूर प्रयास किया है। नायिका की पारदर्शी गुलाबी चुनरी और कुन्दन तथा मोती के आभूषण, हाथों में बाजूबन्द, लम्बे घने केस उसके सौन्दर्य की शोभा बढ़ा रहे हैं। चित्र में हल्के खनिज रंगों का प्रयोग किया गया है।(10)
(4) हेजिटेशन -
माध्यम - वसली कागज पर जलरंग, 8×8 इंच
संग्रह - निजी संग्रह
प्रस्तुत चित्र में चित्रकार द्वारा एक नारी की दो अवस्थाओं को चित्रित किया गया है। एक में पारम्परिक नारी जो कि राजस्थानी शैली में वीणा लिए बैठी है और पारम्परिक शृंगार से सुसज्जित है। उसके चेहरे पर प्रसन्नता का भाव स्पष्ट झलक रहा है, क्योंकि वह अपने वर्तमान स्थिति में प्रसन्न है। वहीं दूसरे भाग में एक अन्य नवयुवती चित्रित की गई है, जो आधुनिक वेशभूषा में दर्शायी गई है। जिसका प्रतीकात्मक अर्थ है कि वह आधुनिक युग में कदम बढ़ाने से संकोच कर रही है। उसके मन में अनेक प्रकार के प्रश्न उत्पन्न हो रहे हैं। वो दरवाजे के बाहर से झाँक रही है और बाह्य वातावरण को देखने की कोशिश कर रही है। उसका एक पैर दरवाजे के बाहर तथा दूसरा भीतर अंकित है, जो यह दर्शाता है कि वो आधुनिक दौर में साहस के साथ आगे बढ़ना चाहती है लेकिन समाज की परिस्थितियों को देखते हुए विचार कर रही है कि क्या इस समाज में मुझे वह स्थान मिल पायेगा, जो मैं चाहती हूँ। कहीं न कहीं यह सभी नारियों की मनःस्थिति होती है लेकिन अंततः वह आगे बढ़कर अपने मुकाम को हासिल करती है।(11)
वहीं हाथ में वीणा के साथ दर्शायी गई नारी को पीले रंग के वस्त्र में तथा गुलाबी पारदर्शी ओढ़नी ओढ़े दिखाया गया है, जो पारम्परिक राजस्थानी लघु चित्रशैली से प्रेरित रची गई है। जिसे हरे रंग की पृष्ठभूमि में दर्शाया गया है, जो शीतलता का भाव उत्पन्न कर रही है। दूसरी लड़की को हल्की पीली पृष्ठभूमि में दर्शाया गया है, जो लाल रंग के टी-सर्ट और नीले रंग का जीन्स पहने, हाथ में घड़ी लगाये तथा उसके बाल भी छोटे चित्रित किये गये हैं, उसकी आँखों में एक उम्मीद की किरण दिखाई पड़ रही है। इस चित्र को पतले काले रंग के हाशिये, उसके ऊपर एक सफेद पतली रेखा तथा उसके ऊपर लाल रंग के मोटे हाशिये को दिखाया गया है। चित्र के ऊपरी भाग में हल्के पीले रंग के ब्रश द्वारा छिड़काव किया गया है। इस चित्र में दर्शाये गये सभी तत्त्व आधुनिकता की ओर इंगित करते हैं।(12)
(5) कुमारसंभवम् -
माध्यम - वसली कागज पर जलरंग, 8.3×11.7 इंच
संग्रह - निजी संग्रह
प्रस्तुत चित्र कालिदास के महाकाव्य कुमारसंभवम् के आठवें सर्ग पर आधारित है। पार्वती और महादेव के विवाह के पश्चात् के दृश्य हैं, जिसमें प्रणय लीला को दर्शाया गया है।
यहाँ पर पार्वती जैसे ही महादेव के सम्मुख पहुँची उनके अंग खिलते हुए छोटे-छोटे कदम्ब पुष्पों की भाँति हो उठे, जिससे उनके मन का भाव प्रकट हो उठा।(13) पार्वती अपने कोमल हाथों से महादेव के केश को सँवार रही हैं और महादेव ने उनके नाजुक स्थिति को उनके पीठ पर हाथ रखकर संभाल रखा है। दोनों एक-दूसरे को एक-टक निहार रहे हैं और प्रेमालिप्त हो रहे हैं।(14) विवाह के पश्चात् कई जगह विहार करने का दृश्य इस चित्र में दर्शाया गया है। कभी मेरु पर्वत तो कभी मलय पर्वत तो कभी नन्दन वन में प्रणय-लीला करते दर्शाये गये हैं।(15)
चित्र में पार्वती के नैन-नक्श बहुत ही कोमल और नाज़ुक हैं, वहीं महादेव को सख्त और मजबूत शरीर रूपी दिखाया गया है। यह दृश्य बहुत ही अंतरंग क्षणों का है, उन्हें किसी प्रकार का कोई भान ही नहीं है कि आस-पास परिवेश में क्या हो रहा है। पार्वती की चुनरी उड़ रही है, गले की माला टूटकर कमर में लटक रही है। उनको गुलाबी घाघरे और पीली चुनरी में दिखाया गया है। सोने व कुन्दन के आभूषणों से शृंगारयुक्त है। वहीं महादेव को छाल पहने, गले में रुद्राक्ष, माथे पर भस्म व चन्दन लगाये, बालों का जूड़ा बनाये चित्रित किया गया है।
चित्र को तीन भागों में विभक्त करके दिखाया गया है, जो आकाश, धरती, जल, यहाँ तीनों लोकों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। महादेव को तीनों लोकों का स्वामी कहते हैं। ऊपर की तरफ महादेव को एक छोटे फ्रेम में चित्रित किया गया है, जो बादलों से घिरे हुए हैं। महादेव स्थिर मुद्रा में अर्द्धनिमीलित मानो अपनी ही प्रणयलीला का आनन्द ले रहे हों। उनका जटा-समूह रुद्राक्ष से बँधा है, उसमें से गंगा की जलधारा प्रवाहित हो रही है और चन्द्रमा को धारण किए हुए हैं। कण्ठ में विष धारण किए, मंद मुस्कान लिए, गले में रुद्राक्ष की माला पहने दर्शाया गया है। पृष्ठभूमि को पीले सपाट रंग से दिखाया गया है, जो ऊर्जा और ज्ञान का द्योतक है।
पीछे हिमालय को तथा आकाश को हल्के रंग से दिखाया गया है। मध्य भाग में जल को दिखाया गया है, जो महादेव की जटा से निकल रहा है, जल में मछलियों को दर्शाया गया है। यहाँ जल मन का प्रतीक है, तो मछलियों के उथल-पुथल को चंचल मन का प्रतीक बताया गया है, जो पार्वती के मन की दशा को दर्शाती हैं।(16)
कमल की कलियाँ पार्वती के यौवन को दर्शा रही हैं। चित्र के रंगों में काँगड़ा शैली का प्रभाव है, नाक-नक्श, हाव-भाव किशनगढ़ शैली की हैं, आभूषण में शुद्ध सोने व चाँदी के रंगों का प्रयोग हुआ है। खनिज व प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया गया है। चित्र में पीले रंग की प्रधानता है।
(6) सावन -
माध्यम – वसली कागज पर जलरंग, 8.3×11.7इंच
संग्रह - निजी संग्रह
प्रस्तुत चित्र में सावन की रात्रि का दृश्य है, जिसमें आकाश में काले बादल छाये हुए हैं और मुसलाधार वर्षा हो रही है, बिजली कौंध रही है। राधा और कृष्ण प्रणय-लीला में मग्न हैं।
नीलवर्णी कृष्ण अपनी प्रिया राधिका के गौरवर्णी मुख को निहार रहे हैं। बिजली की कौंध से राधिका डर रही है, जिसे कृष्ण अपनी दुशाला से उन्हें ढक रहे हैं। दोनों प्रेम में आनन्दित हो रहे हैं। पीली धोती व पगड़ी पहने कृष्ण मोतियों की माला व आभूषण से सुशोभित हो रहे हैं। सोलह शृंगार से युक्त राधा, गले में कुन्दन व मोतियों की माला, हाथों में कड़ा पहने अत्यन्त प्रिय लग रही हैं। उनके घने लहराते केश उनके मनमोहक छवि को और मोहक बना रहे हैं। राधा को हरे रंग का पारदर्शी दुपट्टा ओढ़े दिखाया गया है। गुलाबी और हरे रंग की पोशाक में कृष्णप्रिया अधिक मनोहारी प्रतीत हो रही हैं।
चित्र में वस्त्रों का अलंकरण नयेपन को दर्शा रहा है, जिस पर राजस्थानी प्रभाव स्पष्ट रूप से झलक रहा है। आभूषण में यथार्थवादी स्पर्श दिखाई पड़ रहा है। रंगों में काँगड़ा शैली का प्रभाव है। चित्र में हाशिये का प्रयोग हुआ है।(17)
(7) नायिका का पोर्टेट-
माध्यम – वसली कागज पर जलरंग, 8.3×11.7इंच
संग्रह - निजी संग्रह
प्रस्तुत चित्र में नायिका को एक छोटे से फ्रेम के भीतर दर्शाया गया है। चित्र में नायिका को हरे रंग का चश्मा पहने, केश खुले व घुँघराले, आधुनिक वेश-भूषा में चित्रित किया गया है। नायिका को गुलाबी रंग के वस्त्र में, गुलाबी रंग के ही पारदर्शी ओढ़नी ओढ़े मधुर मुस्कान बिखेरते चित्रित किया गया है।
प्रायः सभी लघुचित्रों में नायिका के माथे पर मांगटिका होता है, उसके केशों को सुन्दर ढंग से सँवारा गया है परन्तु इस नायिका के केश घुंघराले हैं और भूरे रंग के हैं, जिन्हें नये ढंग से सँवारा गया है। नायिका को आधुनिक आभूषणों से युक्त दर्शाया गया है। चित्र के पृष्ठभूमि में सफेद रंग लगाया गया है तथा बाहरी आवरण में न्यूजपेपर प्रिंट को चिपकाकर खड़िया में हिंगूल का मिश्रण करके लगाया गया है, जो आधुनिक तकनीक को दर्शा रहा है। वीरेन्द्र बन्नू एक ऐसे लघु चित्रकार हैं, जिन्होंने विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करके अपनी एक नई शैली बनाई है तथा लघुचित्रों में आधुनिकता का प्रयोग किया।(18)
(8) हम और तुम-
माध्यम – वसली कागज पर जलरंग, 8×10इंच
संग्रह – निजी संग्रह
प्रस्तुत चित्र में एक शादी-शुदा नये जोड़े को चित्रित किया गया है। एक नवविवाहित युवती सोलह शृंगार से युक्त, गुलाबी रंग की पारदर्शी बूँदी युक्त ओढ़नी ओढ़े एकाग्रचित होकर अम्बेसडर के सामने वाली सीट पर बैठी वाहन चला रही है। पीछे सीट पर नायक शादी के पोशाक में लाल रंग की पगड़ी पहने विश्राम की मुद्रा में बैठा है। अम्बेसडर को लाल रंग से, अलंकरणयुक्त, एक छोटा सा ‘हम वेड्स तुम’ प्लीज डूनॉट डिस्टर्ब का पोस्टर लगा है, ऊपर कैरियर में एक सुन्दर बक्शा साथ में पोटली बाँधे हुए दिखाया गया है। एक लाल रंग का पताका लगा है, जो विजय का पताका है। अम्बेसडर के पिछले वाले दरवाजे में नींबू-मिर्च टंगा है, जो एक प्रकार का टोटका किया जाता है कि नये जोड़े को नजर न लगे। चित्र में नायिका को यहाँ पर कमान संभाले दिखाने का तात्पर्य है कि, यहाँ नायिका प्रधान है, जो आधुनिकता को दर्शा रही है। आज के आधुनिक युग में महिलाएँ हर क्षेत्र में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं तथा सफलता की सीढ़ी चढ़ती चली जा रही हैं। चित्र में पारम्परिक शैली के साथ-साथ पूर्ण रूप से आधुनिक विचार-धारा को दर्शाने की भरपूर कोशिश की गई है।(19)
निष्कर्ष : इस शोध-पत्र में भारतीय लघुचित्रों में आधुनिक विषय के माध्यम से नयेपन का प्रयोग करके, विभिन्न तत्त्वों का समावेश करके, परम्परावादी लघुचित्रों को नया आयाम दे रहे ख्याति प्राप्त राजस्थानी लघु चित्रकार विरेन्द्र बन्नू जी के चित्रों का विस्तृत वर्णन किया गया है। जहाँ परम्परावादी लघु चित्रों में भाव का अभाव था परन्तु विरेन्द्र बन्नू के लघु चित्रों में भाव, मर्म स्पष्ट रूप से झलकता है। इनके चित्रों में वस्त्रों में सिलवटे, अलंकारिकता, आधुनिक वेश-भूषा, आभूषणों में यथार्थ स्पर्श, आधुनिक तत्त्वों का प्रयोग देखा जा सकता है। वही परम्परावादी खनिज रंग, वही वसली कागज परन्तु विषय का शीर्षक आधुनिक, जो सचमुच लघु चित्रों को नया आयाम दे रहे हैं और युवा पीढ़ी को प्रतिपादन(demonstration) के माध्यम से जागरूक कर रहे हैं।
लघु चित्रकार वीरेन्द्र बन्नू जी से साक्षात्कार के दौरान साथ में ली गयी तस्वीर
सन्दर्भ :
- वासुदेवशरण अग्रवाल. भारतीय कला. वाराणसी : पृथिवी प्रकाशन,1977. पृ.सं. 1
- आर.ए.अग्रवाल. कला विलास भारतीय चित्रकला का विकास. मेरठ : इण्टरनेशनल पब्लिशिंग हाउस, 1979. पृ. सं. 4
- विजय शर्मा. कांगड़ा की चित्रांकन परम्परा. चम्बा : चम्बा शिल्प परिषद्, 2010. पृ.सं.17
- Anjan Chakraverty. Indian Miniature Painting. New Delhi : Lustre Press, 2008. p. 7
- विरेन्द्र बन्नू जी से साक्षात्कार द्वारा प्राप्त
- डॉ. कृष्णदत्त मिश्र और डॉ. जमुनापाठक. भानुदत्तकृता, रसमंजरी. वाराणसी : चौखम्भा विद्या भवन, 2011. पृ. सं. 46
- विरेन्द्र बन्नू जी से साक्षात्कार द्वारा प्राप्त
- Ananda Coomaraswamy. Rajput Painting. London : Oxford University Press, 1916. p. 43
- विरेन्द्र बन्नू जी से साक्षात्कार द्वारा प्राप्त
- वही
- वही
- वही
- कालिदास कृत कुमारसंभव, अष्टम सर्ग. दिल्ली : राजपाल एण्ड सन्ज़, 2008. पृ.सं. 66
- विरेन्द्र बन्नू जी से साक्षात्कार द्वारा प्राप्त
- कालिदास कृत कुमारसंभव, अष्टम सर्ग. दिल्ली : राजपाल एण्ड सन्ज़, 2008. पृ.सं. 66
- विरेन्द्र बन्नू जी से साक्षात्कार द्वारा प्राप्त
- वही
- वही
- वही
प्रीति यादव
आर्टिस्ट, अर्थ एवं संख्या विभाग, विकास भवन, प्रयागराज
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अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-59, जनवरी-मार्च, 2025
सम्पादक माणिक एवं जितेन्द्र यादव सह-सम्पादक विष्णु कुमार शर्मा छायाचित्र विजय मीरचंदानी
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