अलंकार उसके चेहरे का नम़कपन लगता
वह सबसे कठिन प्रश्न के सबसे सरल उत्तर रही
उसके पाठ ने प्रश्न करना सिखाया
पढ़ाने की जगह उसने खोजना सिखाने की कोशिश की
वह कविता-सी स्त्री जब शब्दों को सिखाती है बोलना
शब्द खिल उठते फूलों की तरह
जब वह कहती है " ब्लेसड् एंड हम्बल"
मैं सुनती हूँ प्रकृति का मनोहर संगीत
और सीखती हूँ परिभाषा विन्रमता की
उस कविता-सी स्त्री से, कविता की खातिर, खुद की खातिर
उसका होना जीवन में एक सुंदर संग्रह जैसा है
जिसमें हो सकती हैं शामिल कई-कई कविताएँ।
ईश्वर और प्रेम
वह कौन- सा मोड़ था
जब सबसे अधिक प्रिय ने साथ छोड़ा
किसे याद नहीं भला
एकबारगी भूलने को भूला जा सकता है ईश्वर का नाम भी
नहीं भूली जाती प्रेम में बिछड़ने की तिथि
प्रेम-सा दुःख
सुख में फुर्सत से कटता है दिन
रात बाँचने को फिर भी नहीं होती कोई कहानी
दुःख था तो लिखी कविताएँ
प्रेम ने केवल जीवन को ही नहीं, दुःख को भी घिस- घिसकर चमकाया है
दूसरी दुनिया में रहवास है मेरा
वह दिन न जाने किसकी बद्दुआ से भरा था
जब प्रार्थनाओं के शब्द किसी देवता ने नहीं सुने
उसके बहते हुए आँसुओं को किसी एक हथेली ने नहीं पोंछा
अजनबीयत से भरी इस दुनिया में
जब आधी रात को लिख रही हूँ कविता
आत्मा दरक रही है
प्रेम में मरने पर, मैं जो बेहयाई कर रही हूँ
मुझे माफ करें
दूसरा उपाय तीसरी दुनिया है
फिलहाल, दूसरी दुनिया में रहवास है मेरा!
पटना, बिहार में रहने वाली युवा कवयित्री दिव्याश्री की कविताएँ विभिन्न हिंदी पत्रिकाओं और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर प्रकाशित होती रही हैं। दिव्याश्री के पास हैं सुंदर भाव, भाषा और शिल्प। साथ ही उनके पास हैं स्त्रीत्व के नए मायने भी। ‘अपनी माटी’ में उनकी कविताओं के प्रकाशन का पहला अवसर है। उनका पहला काव्य संग्रह "आँखों में मानचित्र" वेरा प्रकाशन से प्रकाशित है।
divyasri.sri12@gmail.com, 8102379981
अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-59, जनवरी-मार्च, 2025
सम्पादक माणिक एवं जितेन्द्र यादव सह-सम्पादक विष्णु कुमार शर्मा छायाचित्र विजय मीरचंदानी