- अमृत राज एवं अनिल कुमार
शोध सार : कर्पूरी ठाकुर का नाम भारतीय राजनीति के पटल पर उभरे अबतक के तमाम राजनेताओं में सबसे ईमानदार नेता, ग़ैर-कांग्रेसी सत्ता के सबसे प्रमुख आवाज़, आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करने वाले पहले नेता एवं सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय नीति के रास्ते चलने वाले व्यक्ति के रूप में शुमार है। 1952 ईस्वी में हुए भारत के प्रथम आम चुनाव से लेकर 1988 ईस्वी तक जीवनपर्यंत वे बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। आपातकाल के दौरान वे कांग्रेसी सत्ता की मुखालफत करने वाले प्रमुख आवाज के तौर पर उभरे। तत्पश्चात हुए लोकसभा चुनाव (1977 ईस्वी) में हुए समस्तीपुर संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद-सदस्य बने पर कुछ ही दिनों बाद वे पुनः वापस बिहार की राजनीति में लोकसभा की सदस्यता त्याग कर सक्रिय हो गए। इस पुरे अवधि में उन्होंने अलग-अलग पदों पर आसीन रहते हुए कई सारे सामाजिक कार्य किये एवं कई सारे विषयों पर अपने विचार भी प्रकट किये। यह शोध-आलेख जननायक कर्पूरी ठाकुर के द्वारा सदन एवं सदन के बाहर दिये गये भाषणों में ‘भ्रष्टाचार एवं भूमि सुधार के प्रश्न पर’ उनके विचार को जानने की दिशा में किया गया एक गंभीर प्रयास हैl
बीज शब्द : कर्पूरी ठाकुर, बिहार, बिहार में भूमि सुधार, बिहार में भ्रष्टाचार, बिहार की राजनीति, मुंगेरीलाल आयोग, एंटी करप्शन कमेटी, नेहरु, गैर-कांग्रेसी सत्ता, बिहार विधानसभा
मूल आलेख : कर्पूरी ठाकुर के व्यक्तित्व को समग्रता के साथ देखते हैं तो हमारे सामने एकलव्य और कर्ण का व्यक्तित्व सामने आता है। उन्हें भी एक खास दायरे में एकलव्य माना जा सकता है, यह तो नहीं कहा जा सकता कि इस एकलव्य ने गुरु दक्षिणा में अंगूठा काट कर देने से इनकार किया बल्कि इस एकलव्य से अंगूठा मांगने का साहस ही कोई नहीं कर सका। (नरेंद पाठक : 2016 : 54) कर्पूरी ठाकुर का जन्म एक अत्यंत ही पिछड़े जाति (नाई) एवं निर्धन परिवार में हुआ। उनके उनके पिता का नाम श्री गोकुल ठाकुर और माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था। वैसे निर्धन समाज में बहुत कम ही परिवार ऐसा था जो अपने संतान की जन्म कुंडली बनवाता था। श्री गोकुल ठाकुर का परिवार भी इससे अछूता नहीं था इसीलिए जननायक कर्पूरी ठाकुर की सही जन्म-तिथि किसी को ज्ञात नहीं परंतु कर्पूरी जी अपने हिसाब से अपना जन्म 24 जनवरी को 1924 ईस्वी में मानते थे। (भीम सिंह : 2014 : 2) उनकी प्रारंभिक शिक्षा ताजपुर के प्राथमिक विद्यालय में हुई और आगे चलकर नाम मात्र की कॉलेज की शिक्षा सी एम् कॉलेज दरभंगा से पुरी की। उसके बाद यहाँ से पटना विश्विद्यालय में आई. ए. की परीक्षा में उतीर्ण होकर बी. ए. में दाखिला लिया। अपने कॉलेज शिक्षा के दौरान ही वे गाँधी जी के आह्वान पर 1942 ईस्वी के भारत छोड़ो आन्दोलन में कूद पड़े और इस प्रकार उनके जीवन ने एक नया करवट लिया। यहीं से मूल तौर उनके जीवन की संघर्ष की गाथा प्रारम्भ हुई जो आजीवन चलती रही। इसके पश्चात उन्होनें खुद को हमेशा के लिए शोषितों, वंचितों, महिलाओं एवं आर्थिक तौर पर पिछड़े हर वर्ग के अधिकारों की लड़ाई के लिए समर्पित कर दिया।
राजनैतिक पृष्ठभूमि
कर्पूरी ठाकुर अपने बाल्यकाल से ही 1930 ई. के नमक सत्याग्रह में भाग लेकर राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हो गए थे। 1930 के नमक सत्याग्रह में श्री सत्यनारायण सिंह (मध्य प्रदेश) के नेतृत्व में ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ नारे लगाने से उनकी जीवन की राजनितिक शुरुआत मानी जा सकती है। तब वे गांव-कस्बों में बालकों की टोलियों के साथ नारेबाजी करते फिरते थे। वे विद्यार्थी जीवन में ही कांग्रेस के सदस्य बन गए थे, हाई स्कूल के छात्र-जीवन से ही छात्र-संघ में भी सक्रिय हो गए थे। गाँधी से वे इतने प्रभावित हो चुके थे कि विद्यार्थी जीवन से ही खादी पहनना शुरू कर दिया था। (कृष्ण नंदन ठाकुर : 33) 1938-39 के दशक में बिहार अमीन किसान आन्दोलन अपने चरमोत्कर्ष पर था, मजदूरों के अलग-अलग यूनियन सारे जगहों पर हड़ताल कर रहे थे, इसी क्रम में सन 1938 ईस्वी में 3-4 दिसम्बर को कर्पूरी ठाकुर के ही गाँव पितौन्झिया के पास ओयनी नामक ग्राम में प्रांतीय किसान सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें आचार्य नरेंद्र देव, मोहन लाल गौतम, राहुल संकृत्यायन, रामवृक्ष बेनीपुरी एवं अन्य किसान नेता मौजूद थे। इस सभा में कर्पूरी ठाकुर को इन महान नेताओं के समक्ष बोलने का अवसर का प्राप्त हुआ, जिसके पश्चात वहां उस सभा में मौजूद सभी किसान नेता कर्पूरी ठाकुर के वक्तव्य से प्रभावित हुए। (विष्णुदेव रजक : 2012 : 8) इस घटना को उनके राजनीतिक जीवन की एक औपचारिक शुरुआत मानी जा सकती है।
भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान ही वे भागलपुर जेल में रहे जहाँ उन्होनें कार्ल मार्क्स, हिगेल, कांट एवं समाजवादी दर्शन को पढ़ा, यही पर उन्होंने कांग्रेस समाजवादी दल की सदस्यता भी ली। 1948 ईस्वी में वे हिन्द किसान मोर्चा से जुड़े और आगे चलकर वो इसके जनरल सेक्रेटरी भी बने। 1952 ईस्वी में वे पहली बार ताजपुर विधानसभा से समाजवादी दल के टिकट पर चुनकर बिहार विधानसभा के सदस्य बने, इसके पश्चात वे आजीवन इसके सदस्य बने रहे। 1967 ईस्वी में संविदा की सरकार में वे पहली बार उप-मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री बनें। 22 दिसम्बर 1970 ईस्वी को मात्र 5 महीने 12 दिन के लिए पहली बार मुख्यमंत्री बने एवं जून 1977 में वे दूसरी बार लगभग दो वर्षों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने। अपने दुसरे मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान ही उन्होंने मुंगेरीलाल कमीशन के रिपोर्ट के आधार पर बिहार में 26 प्रतिशत आरक्षण फार्मूला लागु किया जो आगे चलकर बिहार के समाज एवं राजनीति को सबसे ज्यादा प्रभावित किया।
भूमि सुधार को लेकर कर्पूरी ठाकुर के विचार
दिनांक 27 जून 1972 ई को बिहार विधानसभा के सदस्य श्री चंद्रशेखर सिंह द्वारा लाए गए भूमि सुधार अधिनियम, सीमा निर्धारण तथा अधिशेष भूमि अर्जन विधेयक पर चर्चा के क्रम में कर्पूरी ठाकुर ने जो बातें कहीं हैं, वे स्पष्ट तौर भूमि सुधार को लेकर उनके विचार को परिभाषित करते हैं।
इस बिल को लेकर कर्पूरी ठाकुर सदन में कहते हैं कि “ सदन में विचारार्थ प्रस्तुत है, इसे इसी सत्र में निश्चित रूप में पारित किया जाए। मैं आपको स्मरण दिलाना चाहता हूँ कि इसके पूर्व चुनाव के पहले जब विधानसभा की बैठक चल रही थी तो तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री भोला पासवान शास्त्री, तत्कालीन उप मुख्यमंत्री श्री रामजयपाल सिंह यादव और तत्कालीन एवं वर्तमान राजस्व मंत्री श्री चंद्रशेखर सिंह को हम लोगों ने कहा था कि उसी सत्र में भूमि हदबंदी तथा शहरी संपत्ति हदबंदी विधेयकों को पारित किया जाए। माननीय राजस्व मंत्री स्वयं इसके साक्षी हैं और साम्यवादी दल के नेता श्री सुनील मुखर्जी भी इसके साक्षी हैं। मैं माननीय सदस्य श्री सूरजनारायण सिंह का समर्थन करता हूँ कि यह विधेयक 20-22 साल पहले पारित हो जाना चाहिए था। मुझे कल महान दुःख हुआ जब सुनील मुखर्जी और मुख्यमंत्री ने यह कहा कि हम लोगों ने अविश्वास का प्रस्ताव उन्हें तंग करने के लिए तथा इस विधेयक को रोकने के लिए लाया है। राजनीति में न कम्युनिस्ट पार्टी की ईमानदारी से दब सकता हूँ और न कांग्रेस पार्टी की ईमानदारी से ही दब सकता हूँ। हमारी ईमानदारी न किसी अवसर पर किसी के दबाव में आई है और न आगे आएगी। इस चुनाव के पहले अंतिम सत्र में हम लोगों ने कहा था कि इन दोनों विधेयकों को पारित किया जाए। लेकिन मैं अगर कड़े शब्द का व्यवहार करूँ तो यह कह सकता हूँ कि हमारे साथ विश्वासघात किया गया। कार्यमंत्रणा समिति में भी हमने यही कहा था कि इस विधेयक को जल्द पारित किया जाए। अपने प्रस्ताव को उपस्थित करते हुए श्री कपिलदेव सिंह ने भी कहा है कि अगर आप प्रवर समिति में इसे नहीं भेजना चाहते हैं तो रात भर बैठ करके एक संशोधित विधेयक सामने लाया जाए और अगर यह भी मंजूर नहीं हो तो इस विधेयक के संबंध में अनिश्चित रूप से विचार-विमर्श कर लिया जाए तथा राजस्व मंत्री भी अनौपचारिक वार्ता के लिए तैयार थे।” (कर्पूरी का संसदीय जीवन)
उपाध्यक्ष महोदय, मैं सदन को 1953 के साल में ले जाना चाहता हूँ। चूंकि 1952 के आम चुनाव के बाद सोशलिस्ट पार्टी के 23 सदस्य जीतकर आए थे। हमारे तत्कालीन नेता श्री बसावन बाबू ने भूमि हदबंदी विधेयक के लिए 15 एकड़ की अधिकतम सीमा रखी थी और पाँच आदमियों का परिवार माना था। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने सोशलिस्ट पार्टी के उस विधेयक का विरोध किया था। मैं आपको बताना चाहता हूँ लेकिन यह एक लंबा इतिहास है और समय नहीं है। 1949 में श्री राममनोहर लोहिया ने 'गरीबी हटाओ' का नारा 13 सूत्री कार्यक्रम के द्वारा पेश किया था और इस देश के सामने रखा था। हमारे पास न पूँजीपतियों का अखबार है, न अमेरिका, न रूस और न चीन से खबरें भेजनेवाले अखबार हैं, और न आकाशवाणी है कि उनका हवाला दूँ। मगर जो शोध के विद्यार्थी होंगे वे जानते हैं या जानेंगे कि गरीबी हटाओ शीर्षक कहाँ से लिया गया है। श्रीमती इंदिरा गांधी ने उसी शीर्षक से, 'गरीबी हटाओ’ के नारे से यह नारा लाया है। 1949 का अखिल भारतीय कांग्रेस सम्मेलन, जो रीवा में हुआ था, उसमें डॉ. लोहिया ने 35 पन्नों का बयान दिया था जिसे मद्रास सम्मेलन में एक प्रस्ताव के माध्यम से पारित किया गया था, जिसका नाम था ‘प्रोग्राम फॉर नेशनल रिवाइवल’, उसमें विशेष रूप से गरीबी हटाओ पर प्रकाश डाला था। 1952 में हम लोगों ने घोषणा की कि जमीन का बँटवारा करेंगे लेकिन कांग्रेस का कहना था, जमीन का बँटवारा नहीं होगा।
पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपने भाषण में कहा था कि जमीन रबड़ नहीं है कि उसका बँटवारा होगा। हमने कहा था कि जमीन का बँटवारा होगा। 1951 से लेकर 1956 तक जो पंचवर्षीय योजना चलेगी, उसमें जमीन का बँटवारा होगा, हमने उस समय ऐसा कहा था। पं. जवाहरलाल नेहरू का कहना था कि विलेज को-ऑपरेटिव मैनेजमेंट होगा और जमीन ज्यों-की-त्यों रहेगी, एक धूर भी जमीन नहीं बाँटी जाएगी। मैं इतिहास में नहीं जाना चाहता हूँ, मगर 1953 में हम लोगों ने अपने दल को कहा कि 5 आदमी का परिवार होगा और 15 एकड़ जमीन की हदबंदी होगी। आज 1972 है और यह l9 वर्ष की बात है कि इस बात को आज आप मानने को तैयार हुए हैं। इसी सदन में श्री जानकी रमण मिश्र ने 1961 में भूमि सुधार बिल लाया था। उस समय भी कहा गया था कि इसे व्यक्ति का आधार नहीं बनाया जाए बल्कि परिवार का आधार बनाया जाए। इस पर कांग्रेस पार्टी चुप रही। उसने कहा कि तुम कम जायदाद में हो, कम संख्या में हो और हम अधिक हैं एवं हमें बहुमत प्राप्त है, तुम बोलनेवाले कौन हो, परिवार का आधार नहीं बनेगा, व्यक्ति का आधार बनेगा और कांग्रेस पार्टी ने व्यक्ति का आधार उस समय बनाया था। सदन इसका गवाह है और सदन की कार्यवाही गवाह है। हमने कहा था कि 15 एकड़ से अधिक हदबंदी नहीं होनी चाहिए, लेकिन कांग्रेस पार्टीवालों ने कहा कि तुम ऐसे ही बोलते रहो, हम तुम्हारी बात नहीं मानेंगे। (वाद्वृत : 1972)
भूमि हदबंदी कानून एवं बंटाईदार को लेकर उनके विचार
इसी क्रम में आगे कर्पूरी ठाकुर कहते हैं कि -
भूमि अधिसीमा (हदबंदी) संबंधी नए कानून बनाने के लिए औसत पाँच व्यक्तियों का परिवार माना जाए और एक परिवार के अधिकार में लाकर जोत के लिए तीन गुना से अधिक भूमि नहीं रहने दी जाए।
लाभकर जोत की परिभाषा और सीमा तय करने, भूमि अधिसीमा निर्धारित करने तथा अन्य प्रकार के भूमि सुधार हेतु अनुशंसा करने के लिए एक भूमि आयोग का गठन करना। भूमि आयोग अपना प्रतिवेदन इस गठन की तिथि से छह महीने के अंदर ही देगा।
आयोग की अनुशंसाओं को दृष्टिगत रखते हुए भूमि अधिसीमा निर्धारण तथा अन्य भूमि सुधार के साथ भू-राजस्व के मामले में एकरूपता लाने के लिए कदम उठाना।
नए कानून बनने तक मौजूदा हदबंदी कानून को ईमानदारी और मजबूती से लागू करना जमीन की बे-नामी या फर्जी बंदोबस्ती तथा फर्जी हस्तांतरण को रद्द करने के लिए जल्द कदम उठाना।
बँटाईदारों के कानूनी अधिकारों की गारंटी निश्चित करना और उनके हित के संबंध में पारित कानूनों को लागू करना।
हरिजन, आदिवासी तथा अन्य गरीबों के गाँव में पेयजल की व्यवस्था करना।
इसी क्रम में आगे चर्चा करते हुए कहते हैं कि आज के लिए कठिनाई होगी इसलिए कि जमीनवाले सँभल गए और जिस चालाकी से, जिस होशियारी से उन्होंने काम किया, उसके बारे में सभी लोग जानते हैं। फर्जी बे-नामी बड़े पैमाने पर उन लोगों ने बंदोबस्त किया है इसलिए आपको ज्यादा जमीन नहीं मिलने वाली है। यदि आप चाहते हैं कि ज्यादा जमीन मिले तो आप इसके लिए तफ्सील में विचार करते । लेकिन आप ऐसा करना नहीं चाहते हैं। 1971 के मर्दुमशुमारी की एक मजेदार बात सदन के सामने रखना चाहता हूँ। 1971 के मर्दुमशुमारी की रिपोर्ट बतलाती है कि भारत सरकार की जनगणना के अनुसार 1961 में जमीन जोतनेवाले 52 प्रतिशत थे, जो 1971 में घटकर 41 प्रतिशत हो गए। यह मेरी रिपोर्ट नहीं है, भारत सरकार की रिपोर्ट है, जिसे तैयार करने में बड़े-बड़े अफसर और सरकारी कर्मचारी लगे हैं। फिर उसी रिपोर्ट में लिखा हुआ है कि बिहार में 1961 में खेती करनेवालों की संख्या 24 प्रतिशत थी, वह बढ़कर 38 प्रतिशत 1971 में हो गई । इसका मतलब है कि बहुत लोग बे-खेत के हो गए और जो मजदूर थे उनकी संख्या बढ़कर 38 प्रतिशत हो गई । तो मैं कहना चाहता हूँ कि जब आप इस हालत से गुजर रहे हैं तो मामूली कानून से आप आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन नहीं कर सकते हैं। इसलिए मैं कहूँगा कि जमीन ज्यादा मिले या कम, इसे तुरंत पारित करें। हम इसमें बाधक नहीं होंगे, सहायक होंगे। लेकिन इसे पास करने में इसमें सुधार करना होगा। अंत में कहना चाहता हूँ कि भूमि सुधार के साथ चकबंदी और हदबंदी शामिल हैं। मैं कहूँगा कि इसके साथ-साथ चकबंदी भी करनी होगी। मैंने उस दिन भी इस शब्द का प्रयोग किया था। कौन-कौन सी योजना बनेगी ग्राम विकास के लिए, यह भी तैयार करनी होगी। सभी चीजों के लिए प्रबंध करना होगा। इसलिए मैं कहना चाहता हूँ कि जहाँ हदबंदी और चकबंदी है, वहाँ अक्लमंदी भी जरूरी है। अगर हम लोग इस तरह काम करेंगे तो विकास के पथ पर अग्रसर होंगे। अंत में यह कहकर बैठ जाना चाहता हूँ कि अगर कोई क्रांतिकारी कदम उठाया जाएगा तो सोशलिस्ट पार्टी आपके साथ रहेगी। हमारा पीछे रहने का कोई सवाल नहीं उठता है। (वाद्वृत : 1980)
कर्पूरी ठाकुर ने अपने पहले और अंतिम भाषण (31 मार्च 1977 ई. को लोकसभा में) में कहा था कि “हमने जमीन बांटने के लिए सन 1948 ई. में, 1949 ई. में, 1950 ई. में, 195l ई. में, और 1952 ई. में बड़े-बड़े प्रदर्शन किए थे, उसके लिए हमने सत्याग्रह किया था और जेल भी गए थे लेकिन कांग्रेस ने उस समय पर ध्यान नहीं दिया और उन्होंने जब जमीन बांटने की बात सोची तब जमीन बांटने के लिए बची ही नहीं।” (वाद्वृत : 1977)
भ्रष्टाचार को लेकर कर्पूरी ठाकुर के विचार
बिहार विधानसभा की पटल पर दिनांक 11 मई 1953 ईस्वी को कर्पूरी ठाकुर ने भ्रष्टाचार, उसके कारण एवं उसके समाधान पर बात रखते हुए कहा था -
भ्रष्टाचार की परिभाषा हमारे अध्यक्ष महोदय ने हमारे हरिवंश बाबू से पूछा था। “मैं समझता हूँ कि इसकी कोई व्यापक परिभाषा नहीं हो सकती है। भ्रष्टाचार का मतलब यह है कि अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए, चाहे वे उद्देश्य राजनैतिक हों, आर्थिक हों, जैसे भी हों, अपना मतलब साधने के लिए अगर करप्ट प्रैक्टिस का इस्तेमाल करते हैं, घूसखोरी का इस्तेमाल करते हैं, तो उसका नाम भ्रष्टाचार देंगें। इलेक्शन होता है तमाम क्रप्शन है, मुकदमा करने जाते हैं, मुकदमा से बचना चाहते हैं, दारोगाजी करप्ट प्रैक्टिस का इस्तेमाल करते हैं। कचहरियों में जाइये तो बिना पैसे का कागज एक जगह से दूसरी जगह चलेगा ही नहीं। चाहे गला कट जाए लेकिन कागज बिना पैसे का नहीं खिसकेगा। जंगलों की भी यही हालत है। हमारे राजस्व मंत्री सूची दे देते हैं कि जंगल में बहुत कुछ काम हुए हैं, लेकिन जब जंगल में जाइये तो जंगल के ठेकेदार करप्ट प्रैक्टिस के द्वारा अपने आदेश की पूर्ति करते हैं”। (वाद्वृत : 1953)
प्रस्तावक महोदय ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि इन कारणों पर विचार किया जाए। क्या कारण हैं, हम नहीं जानते हैं। लेकिन इसपर विचार किया जाए। कारण दो ही हैं। एक है गरीबी, दूसरा है भ्रष्टाचार।
हर विभाग में भ्रष्टाचार है। हम जानते हैं कि जो दस रुपया पाने वाले चपरासी हैं, चालीस रुपया पाने वाले किरानी, कम मुशायरा पानेवाले घूस लेते हैं, नाजायज काम करते हैं। थोड़े मुशायरा पाने वाले घूस लेते है, नाजायज काम करते हैं। तो बुनियादी कारण है कम मुशायरा दिया जाना, कम पैसा दिया जाना। दूसरा कारण है धन पर बंधन, जमीन-जायदाद पर बंधन नहीं है। जमीन-जायदाद इकट्ठा करने के लिए आज हम करप्ट प्रैक्टिस का इस्तेमाल करते हैं। यही दो बुनियादी कारण हैं, जिनके कारण भ्रष्टाचार होता है। जब ये दो बुनियादी कारण हैं तो कमीशन क्या विचार करेगी?
सवाल यह है कि इसका उपाय क्या है? उपाय काम में लाना चाहिए या नहीं। निवारण करने में 200 वर्ष लगेंगे? तो भी उसका निवारण नहीं हो सकता है। इसका अंत होना असंभव है। लेकिन यह जरूरी है कि भ्रष्टाचार आज जिस पैमाने में हर डिपार्टमेंट में, यहाँ तक कि शिक्षा विभाग तक में आ गया है, इसको कम-से-कम किस हद तक कम कर सकते हैं, यह विचार कर सकते हैं। मैं समझता हूँ कि इस सदन में कांग्रेस पार्टी, जो मेजॉरिटी पार्टी है, वह इस सदन के सामने बिल लाए और गवर्नमेंट ऑफ इंडिया के पार्लियामेंट से कहे कि कंस्टीट्यूशन में परिवर्तन किया जाए। जिस तरह से इलेक्शन कमीशन को इंडिपेंडेंट बनाया, जुडिशियरी को इंडिपेंडेंट बनाया, जिस तरह से इलेक्शन कमीशन को पूरा अधिकार है कि वह जैसे चाहे चुनाव कराए। आज प्राइम मिनिस्टर नेहरू भी इलेक्शन के कामों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। आज इलेक्शन कमीशन बिल्कुल निष्पक्ष है। जिस तरह से इलेक्शन कमीशन की हैसियत कंस्टीट्यूशन में बना दी, उसी तरह से 'करप्शन कमीशन' बनाकर इसकी हैसियत कंस्टीट्यूशन में परिवर्तन लाकर, उसी तरह का इसको अधिकार दीजिए। भ्रष्टाचार के जितने मामले खड़े होते हैं, उनको सेटल करने का इसका काम है; और उसे सेटल करें। नतीजा यह होगा कि दारोगा के खिलाफ इंस्पेक्टर इन्क्वायरी नहीं करेगा, एस.पी. और आई.जी. नहीं करेगा।
कोई ऐसा कमीशन मुकर्रर किया जाये जिसको सारा अधिकार इन्क्वायरी करने का हो और सारी चीजों पर विचार कर वह काम करे और फैसला दे तो हमारा विश्वास है कि भ्रष्टाचार का बहुत कुछ निवारण हो सकता है। वह कमीशन हर साल जितने एम.एल.ए. हैं, जितने मिनिस्टर हैं, जितने दारोगा हैं या और भी जितने अफसर हैं और कचहरी में काम करनेवाले लोग हैं, उनकी संपत्ति का मुआयना करे, उनकी जायदाद की जाँच-पड़ताल करे और उनके बैंक बैलेंस की जाँच-पड़ताल करे तो काम कुछ हो सकता है। सप्लाई विभाग के एक-एक इंस्पेक्टर ने किस तरह से पाँच वर्ष के अंदर लाखों-लाख रुपया कमाकर रख दिया। हमने अपनी आँखों से देखा है कि किस तरह से हमारे गाँव के पास का एक इंस्पेक्टर लखपति बन गया। मालूम होता है कि इन सब चीजों को न कोई देखनेवाला है और न सुननेवाला है। जो एंटी करप्शन कमीशन हो, वह बिना किसी मोह और ममता के जाँच-पड़ताल और फैसला करे। हर सब- डिवीजन से केवल पाँच-पाँच मामले इस तरह के ले लिये जाएँ या हर जिले से इस तरह के पाँच बड़े-बड़े मामले ले लिये जाएँ, इस तरह राज्य में जो 17 जिले हैं, वहाँ से 85 मामले ले लिये जाएँ और उनके लिए सजा की बहुत बड़ी गुंजाइश कर दी जाए, मृत्यु या आजीवन टांसपोर्टेशन की सजा दी जाए तो मेरा विश्वास है कि भ्रष्टाचार करनेवालों की नानी मर जाए, जो भ्रष्टाचार करें। लेकिन यह सरकार क्या इस तरह की हिम्मत कर सकती है, क्या वह इस तरह का कानून बना सकती है? आप जब अच्छा काम करेंगे तो कौन ऐसा बेहूदा होगा, जो आपका साथ नहीं देगा। (वाद्वृत : 1964)
निष्कर्ष : निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार एवं भूमि-सुधार पर इतनी स्पष्ट समझ रखने वाले राजनेता भारतीय राजनीति में बहुत कम ही हुए हैं। कर्पूरी ठाकुर एकमात्र राजनेता हैं जिन्होनें ‘एंटी करप्शन कमेटी’ के गठन की बात कही पर उस समय कांग्रेसी सत्ता को यह बात नागवार गुजरी। कर्पूरी ठाकुर के द्वारा भूमि-सुधार के उपर व्यक्त किये गये विचारों को मुंगेरीलाल कमीशन के रिपोर्ट में भी देखा जा सकता है। यदि उस समय की सत्ता संरचना द्वारा कर्पूरी ठाकुर के द्वारा दिये गये सुझावों को सच में मान लिया जाता तो आज न केवल बिहार की बल्कि पुरी भारतीय राजनीति की दशा और दिशा कुछ और होती। हालाँकि उस वक्त के समाजवादी दलों एवं नेताओं तथा वर्तमान बिहार में खुद को समाजवादी दल एवं नेता कहे जाने वालों ने उनके सुझाये गये रास्ते पर चलने का प्रयास किया जिसमें उन्हें आंशिक तौर पर सफ़लता भी मिली पर भ्रष्टाचार और भूमि-सुधार अब भी उसी रूप में न केवल बिहार की राजनीति में बल्कि पुरे देश की राजनीति में एक गम्भीर एवं भयानक समस्या बनकर खड़ी है। वर्तमान भारत सरकार ने असल मायने में जननायक शब्द को चरितार्थ करने वाले कर्पूरी ठाकुर को उनके 100 वें जन्मदिन पर भारत-रत्न से सम्मानित कर उनके दर्शन को एक नया आयाम दिया है।
संदर्भ :
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डॉ भीम सिंह, गुदड़ी के लाल : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, महान कर्मयोगी जननायक कर्पूरी ठाकुर, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली, खंड 1, प्रथम संस्करण, 2014, पृ. 2
कृष्ण नंदन ठाकुर, राम मनोहर लोहिया के आर्थिक एवं सामाजिक विचार, एस चंद एंड कम्पनी लि. नई दिल्ली, पृ. 33
डॉ विष्णुदेव रजक, कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक दर्शन, जानकी प्रकाशन, पटना, प्रथम संस्करण, 2012, पृष्ठ संख्या 8
वादवृत्त, बिहार विधानसभा, 27 जून 1972
वादवृत्त, बिहार विधानसभा, 12 फरवरी 1980
वादवृत्त, लोकसभा, 31 मार्च 1977
वादवृत्त , बिहार विधानसभा, 11 मई 1953
वादवृत्त, बिहार विधानसभा , 6 अप्रैल 1964
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कर्पूरी ठाकुर, ‘कितना सच,कितना झूठ’ सिटी प्रिंटर्स, पटना
कर्पूरी ठाकुर, निगरानी रखना हमारा फ़र्ज़ है’, साप्ताहिक दिनमान, 24-30 अप्रैल 1977, टाइम्स ऑफ़ इंडिया प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ.13-14
राजेन्द्र शर्मा, कर्पूरी का जीवन संग्राम, पाटलिपुत्र टाइम्स, पटना, 18 फरवरी 1988 .
सदन में जननायक कर्पूरी ठाकुर, प्रश्नोत्तर खंड, भाग-1 (1952-71) एवं भाग-2 (1971 -88), बिहार विधान सभा सचिवालय, पटना
कर्पूरी का संसदीय जीवन, भाग-1 (1952-71) एवं भाग-2 (1971-88), बिहार विधान सभा सचिवालय, पटना
नरेश कुमार विकल, कर्पूरी कुंज, सप्तक्रांति के संवाहक, जननायक कर्पूरी ठाकुर, स्मृति ग्रन्थ, भाग-1 एवं भाग-2, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली, 2019
असीम सत्य प्रकाश, ‘एकलौता आदमी’, कर्पूरी ठाकुर स्मृति अंक, 1989
रमेश दीक्षित, ‘आरक्षण विरोधी राजनीति’, साप्ताहिक दिनमान, 17-23 फरवरी 1980
रामविलास पासवान, ‘ज्वालामुखी फटने वाला है’, देश की सामाजिक एवं आर्थिक समस्याएँ, 1983
जगजीवन राम, ‘भारत में जनतंत्र, लोकतंत्र नही’, साप्ताहिक दिनमान, 8-14 मार्च 1981
कर्पूरी ठाकुर के भाषण, डॉक्टर लोहिया के समाजवादी चिन्तन के आलोक में बिहार में पिछड़ेपन को दूर करने में विपक्ष की भूमिका, 1988
कर्पूरी ठाकुर, नीरे शब्द से कुछ न होगा समाजवाद में अर्थ भये, दिनमान, 27 जनवरी 1986
अमृत राज
वरिष्ठ शोधार्थी अध्येता, ऐतिहासिक अध्ययन एवं पुरातत्व विभाग, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया
amritraj@cusb.ac.in , 8227065305
अनिल कुमार
सहायक आचार्य, ऐतिहासिक अध्ययन एवं पुरातत्व विभाग, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया
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