चिट्ठी-पत्री / सीमा

चिट्ठी-पत्री
- सीमा

प्रिय दिवाकर!

आजकल तुम बहुत याद आ रहे हो।

कई दिनों से अपने आसपास बहुत सुन रही हूँ कि एक स्त्री और पुरुष दोस्त नहीं हो सकते। दोस्ती की आड़ में पुरुष हमेशा मौके की तलाश में रहता है। हो सकता है, कहने वालों का अनुभव ऐसा ही रहा हो।

इसलिए सोचा कि आज इस पत्र के माध्यम से तुम्हें साथ लेकर दुनिया को हमारी दोस्ती के बारे में बताऊँ। अतीत के पन्नों को खोलना शुरू किया तो हँसता मुस्कराता एक ऐसा सुदर्शन युवक आँखों के सामने आ गया जिसने हमेशा अपनी दोस्ती के मान और मर्यादा को बनाये रखा।

हम दोनों के पिताओं की मित्रता के नाते ही हमारा परिचय नहीं था बल्कि स्कूल में भी तुम मेरे सीनियर थे। वक्त के साथ-साथ धीरे-धीरे यह परिचय दोस्ती में बदलता चला गया। तुम साइन्स के स्टूडेंट और मैंने प्रवेश लिया आर्ट्स में। हमारा कॉलेज अलग, रूचियाँ अलग लेकिन रास्ते अलग होते हुए भी हमारी दोस्ती बनी रही।

एम.ए. में प्रवेश लेते ही मेरा विवाह हो गया। मुझे याद है कितने उत्साह के साथ तुम मेरे शादी के सभी कार्यक्रमों में शामिल हुए लेकिन एम.एन.आई.टी. से पास आउट इंजीनियर दूल्हे के बारे में तुम्हारी तल्ख़ टिप्पणी ‘‘काग के हाथ मोती लग गया और देखना उसे इसकी कदर भी नहीं होगी‘‘ सुनकर मैं सन्न रह गई। किसी भी प्रकार के घटियापन से अछूते और सुलझे व्यक्तित्व वाले दोस्त की बातों में मुझे ईर्ष्या नहीं, पीड़ा नजर आई थी। शायद तुमने मेरा भविष्य देख लिया था। जानती थी कि किसी से पहली मुलाकात के बाद ही तुम्हें उसके व्यक्तित्व की भीतरी तहों तक पहुँचने का कमाल हासिल था। शादी के कुछ दिनों के बाद ही तुम्हारी बात सही साबित होने लगी।

तुम्हारी और मेरी इस खालिस मित्रता के कारण मेरी मम्मी को तुम पर अगाध विश्वास और स्नेह था। यही कारण है कि साल भर बाद ही जब मैं त्रासद वैवाहिक जीवन के घोर तनाव से गुजर रही थी और वह मुझसे कुछ भी नहीं उगलवा पाई तो मेरी सहेलियों के बजाय तुम्हारी बुलाहट हुई (यह तुमने सालों बाद मुझे बताया था) थी। हालाँकि तुम्हारी घण्टों की मगज़मारी के बाद भी तुम्हें मैंने कुछ नहीं बताया लेकिन तुम मेरे बिना कहे ही शायद सब समझ चुके थे। तुमने उस समय मुझे दुखी होकर समझाते हुए जो कहा था, वह मुझे अब तक याद है, ‘‘तेरे और उसके चरित्र में, सोच-विचार और मानसिकता में, व्यवहार में जमीन-आसमान का अन्तर है। अपने दिल-दिमाग से इस गलतफहमी को निकाल दे कि स्थितियाँ सुधर जाएँगी। भविष्य में स्थितियाँ और भी बदतर होंगी। जितना मैं तुझे जानता हूँ या तो तू ये रिश्ता खत्म करेगी या फिर इस रिश्ते को निभाने के लिए इस दुनिया में ही नहीं रहेगी। जो फैसला तू कल करेगी, उसे आज ही क्यों नहीं कर लेती?‘‘

इसके बाद तुम मुझे तलाक लेने के लिए देर तक समझाते रहे। तुम्हारे समझाने के बाद भी स्थितियों के बेहतर होने की उम्मीद में मैं सालों तक इस रिश्ते को ढोती रही।

कई बार मुझे लगता है कि बिना मुझ से बात किए और बिना मिले भी तुम्हें मेरे बारे में सब पता रहता था। लगभग दस वर्षों के लम्बे अन्तराल के बाद तुम फिर मुझसे मिलने आए। उस समय मैंने अपने दाम्पत्य जीवन को कानूनी रूप से खत्म किया ही था। मैं अपने शहर आई हुई थी। सर्दियों के दिन थे और मैं छत पर अकेली बैठी थी। तुमने अचानक आकर मुझे सुखद आश्चर्य में डाल दिया। हम घण्टों बातें करते रहे। दोपहर कब रात में बदल गई, पता ही नहीं चला। मुझे पहले की तरह हँसते मुस्कराते देख तुम बहुत खुश थे। बाद में समझ आया कि उस बार भी तुम्हारे आने का एक खास मकसद था - मुझे जीवन को नये सिरे से शुरू करने के लिए मनाना। हालाँकि उस वक्त मैंने भी तुम्हारी बात को यह कहकर नकार दिया था कि अपनी स्वतन्त्रता को खोकर मैं किसी नये बंधन में बँधने के लिए तैयार नहीं हूँ। फिर भी तुमने मुझसे यह वादा तो ले ही लिया था - ‘‘जब भी तुम जीवन का नया सफर शुरू करोगी, सबसे पहले मुझे बताओगी।‘‘ मैं जानती हूँ कि इसके पीछे तुम्हारी कोई दुर्भावना नहीं बल्कि भीतर का वह भय था जो तुम्हें डराता था कि कहीं दुनियादारी से अनजान तुम्हारी इस दोस्त के जीवन में फिर से कोई गलत व्यक्ति आकर तबाही ना मचा दे।

तुम्हारे जैसा निस्वार्थ, परवाह करने वाला, स्नेही दोस्त हर किसी को नहीं मिलता लेकिन मुझे मिला था। वक्त और परिस्थितियों के कारण मेरे हाथों से दोस्ती की डोर जो एक बार छूटी तो फिर नियति ने भी उसे थामने का दूसरा मौका नहीं दिया। काल के क्रूर पंजों ने तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए दूर कर दिया। तुम मेरे सच्चे हितैषी थे, तुम्हारी कमी आज भी मन को ही नहीं आँखों को भी भिगो जाती है।

मुझे पूरा विश्वास है कि प्रकृति दुबारा हमें कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में फिर मिलवाएगी, तब तक के लिए शेष।

तुम्हारी प्रतीक्षा में

तुम्हारी दोस्त

सीमा

अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
  चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-59, जनवरी-मार्च, 2025
सम्पादक  माणिक एवं जितेन्द्र यादव सह-सम्पादक  विष्णु कुमार शर्मा छायाचित्र  विजय मीरचंदानी

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