पाठकों का स्नेह @अपनी माटी (कुछ विशेष चयनित टिप्पणियाँ)

पाठकों का स्नेह @अपनी माटी
(कुछ विशेष चयनित टिप्पणियाँ)

1. राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से माणिक एवं जितेन्द्र यादव के सम्पादन में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और शानदार त्रैमासिक पत्रिका निकलती है; 'अपनी माटी' का हर अंक एक प्रकार से विशेषांक ही होता है। अभी थोड़े दिन पहले मुझे इस पत्रिका के तीन अंक मिले, जिनमें एक सामान्य अंक व दो विशेषांक हैं। दो विशेषांकों में से एक है, 'प्रतिबंधित साहित्य' विशेषांक तथा दूसरा है, भक्ति आंदोलन और हिन्दी की सांस्कृतिक परिधि' विशेषांक। इन दोनों ही विशेषांकों में हिन्दी के नामचीन विद्वानों, साहित्यिकों के लेख हैं। ये दोनों ही विशेषांक बृहदाकार हैं और ए-4 साइज़ के पृष्ठाकार में हैं। भक्ति आंदोलन वाला अंक 506 पृष्ठों का है, जबकि प्रतिबंधित साहित्य वाला विशेषांक 310 पृष्ठ का। तीसरा सामान्य अंक भी लगभग इतना ही बृहद है। ये तीनों ही अंक बेहद पठनीय व संग्रहणीय हैं। :- शम्भु गुप्त अलवर

2. अपनी माटी का 56 वां अंक "बाल साहित्य विशेषांक" कुछ महीनों पहले वेब फॉर्मेट में आया था लेकिन अब हार्ड प्रिंट में आ गया है। इस अंक में बचपन की गूंज और बचपन के रंग समाहित है। आखिर हमारा साहित्य बच्चों के बचपन को किस तरह से संजो रहा है? किस तरह से दर्ज कर रहा है? यह अंक माकूल जवाब है इन प्रश्नों का। :- पारस इलाहबाद

3. बाल साहित्य पर केंद्रित "अपनी माटी" का एक महत्वपूर्ण अंक प्रकाशित हुआ है। इस अंक में बाल साहित्य पर ढेर सारी शोधपरक सामग्री है। बाल साहित्य को जानने समझने की दृष्टि से यह अंक उपयोगी बना है। यदि आपकी बाल साहित्य में रुचि हो तो इस अंक को जरुर पढ़ सकते हैं। एक शिक्षक के लिए तो यह अंक बाल मन को समझने की दृष्टि से विशेष उपयोगी है। :- महेश पुनेठा, पिथौरागढ़

4. हर अंक हार्डकॉपी में निकाला जाए और बीच-बीच के पन्नों में बची खाली जगहों पर पर पेंटिंग्स/चित्र/फोटोग्राफ लगाएं। :- विजय राही, दौसा

5. लेखन के लिए फिर से प्रेरित करती अपनी माटी सृजन की एक नयी दुनिया दिखला रही है। शुक्रिया। कभी भी वाद में न बंधे अपनी माटी। अपनी माटी, सबकी माटी बनी रहे, जैसी आज है। शुक्रिया। :- सूर्य प्रकाश पारीक, भीलवाड़ा

6. नव रचनाकारों को अवसर प्रदान करने वाली, रचनात्मकता को तराशने वाली, लेखकीय-पाठकीय कसौटी पर प्रतिबद्ध पत्रिका है अपनी माटी। :- डॉ. अखिलेश कुमार शर्मा, मिजोरम

7. खास बात यह है कि पत्रिका सहकार भाव से संचालित है और सिफारिश संस्कृति से मुक्त है। अन्य पत्रिकाएँ जहाँ प्रतिष्ठित नामों को छापती है, वहीं यह पत्रिका पाठकों में लेखक तलाशती है। :- डॉ. हेमंत कुमार, सीकर

8. साहित्य संवर्द्धन की दिशा में अपनी माटी द्वारा दिया जा रहा योगदान सराहनीय है। :- डॉ. दीपक कुमार, अलवर

9. AMIT KAMRA @ "शोध आलेख : भारतेन्दु मण्डल के नाटककार राधाकृष्णदास और उनके सामाजिक नाटक / अमित कुमार" Aug 5, 2024 : पहले तो अपनी माटी में प्रकाशित होने के लिए बधाई। बाकी बात रही लेख की तो हमने एक बैठकी में पूरा पढ़ डाला और इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि भारतेन्दु विषय इतनी बारीकी से शोध शायद ही आस-पास के दिनों हमें पढ़ने को मिला है। आपने यह किया है और काफ़ी मेहनत से किया है। इस कार्य को करने के लिए अमित जी आपको पुनः बधाई, भविष्य आपके हाथों में है।

10. हेमंत कुमार @ "अफ़लातून की डायरी(4) : मैं कहता आँखन की देखी / डॉ. विष्णु कुमार शर्मा" Aug 5, 2024 : शुरूआती दो पेरेग्राफ नदी नीर-सी बहती हुई कविता है जिसे पाठक एक ही साँस में पढ़ जाता है- बनारस माने ये..बनारस माने वो…। फिर जरा विलम्बित स्वर है। सगुन -निरगुन में यकसा समाया प्रतीकवाद! मगर जल्दी ही कलम कैमरा बन जाती है। साथ के मुसाफिरों के उछाह,ऊब-उबासी, थकन और थिरकन से मणिकर्णिका में जागती चिताओ, धार में छानकर बटोरे जा रहे कोयले, होटल के कमरे, चाय के ठीए, नामचीन नाश्ते, मिठाई , मैत्री, बीएचयू, आशीष सर, बुद्ध, सारनाथ, लमही, प्रतीक्षारत प्रतीक्षा जी सब एक आत्मीय गद्य लय में बँधे प्रतीत होते हैं।
जीवन के प्रति लगाव अब 'वैष्णवी' लेखन का स्थायीभाव बनता जा रहा है।

11. Dr. P. Kumar @ "संस्मरण : इराक के पेन का बाप (अतीत-बोध) / डॉ. हेमंत कुमार" Aug 5, 2024 : पढ़ते वक्त गांव ढाणियों की इस यात्रा को महसूस किया। सचमुच आंख सी भर आई। अध्यापकी की भूमिका वाला पैरेग्राफ जेहन पर अंकित हो गया। हेमंत जी जैसे करुणामय शिक्षक जब तक व्यवस्था में है एक आस बनी रहती है।

12. Hindi Judwaan @ "शोध आलेख : भारतीय स्वाधीनता संघर्ष में क्रांतिचेता कबीर / डॉ. गोपीराम शर्मा" Aug 4, 2024 : आदरणीय डॉ गोपीराम शर्मा जी का आलेख पढ़ा, संत कबीर जी के शब्द साहित्यिक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, संत कबीर जी की वाणी कालजयी वाणी है जो युगों युगों तक मनुष्य को मनुष्यता का पाठ पढ़ाती रहेगी। उत्तम लेखन और सुंदर रचनांकन की प्रस्तुति के लिए डॉ शर्मा जी को अभिनंदन।

13. माणिक @ अपनी माटी "कविताएँ / रूपम मिश्र" Aug 4, 2024 : रुपम की कवितायेँ बिरले अंदाज़ से हमें अपनी तरफ खींचती हैं। पहली कविता अपने कहन में सरल और एक सीध में चलती हुई इबारत होकर भी कथा सरीखी है और कविताई को छूटने नहीं देती है। अगली कविता से गुजरते हैं तो लगता है कि इनमें बहुतेरे नए लोक के शब्द हैं। क्या कमाल ढंग से प्रेम गूंथा हुआ है इन कविताओं में। हमारे कहने से पढ़ जाइएगा इस कवयित्री को। कठिन शब्दों के अर्थ खोल कर देने से भाव ग्रहण करना आसान हुआ है। कविताओं में उपस्थित प्रेम अपने प्रेमी से संवाद ही नहीं यह हमें प्रकृति से असीम रिश्ते तक लेकर जाती रचनाएं हैं। आखिरी कविता जिगर में कहीं अटक गयी है अब। इन कविताओं को उपलब्ध करवाने के लिए अपनी माटी की सह-सम्पादक डॉ. कविता सिंह का विशेष शुक्रिया।

14. Panchraj yadav @ "साक्षात्कार : डायरी हमारे अतीत के दिनों को आज के संदर्भ में परखने की आँख देती हैं / सत्यनारायण" Jul 24, 2024 कथेतर पर कम शब्दों में अच्छी बातचीत। खासकर डायरी लेखन पर सत्यनारायण जी की बातचीत महत्त्वपूर्ण है। एक मुख्य पक्ष जिस पर हमें लगता है बात होनी चाहिए। डायरी की सैद्धांतिकी एवं उसका मूल्यांकन किस निष्कर्ष पर किया जाना चाहिए है? इस उपयोगी प्रस्तुति के लिए आपका आभार।

15. Hindi Judwaan @ "कहानी : डोनी पोलो / डॉ. शमा खान" May 19, 2024 : आपके लेख के शीर्षक ने काफी प्रभावित किया, तीन बार पढ़ा तब जाकर इस अनुशीलन पर पहुंचा कि मिट्टी के कण कण में ढेरों कथाएं हैं, जो जीवन दर्शन की व्याख्या करती है, पर अफसोस आजकल के विद्यार्थी का अध्ययन सीमित होता जा रहा है वे संस्कृति और जीवन दर्शन से दूर हो रहे हैं।। आदरणीय डॉ शमा खान जी आपको सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार।

16. डॉ. रविन्द्र सिंह @ "आलेख : स्मृति और वर्तमान का अद्भुत संयोजन / मुकेश कुमार मिरोठा" : May 18, 2024 : लेखक ने नए दौर की मानवीय संवेदनाओं की उलझनों और आधुनिकता से उपजे नए विमर्शों को बड़े ही सहजता से सामने रखा है। लेखक ने बड़ी ही साफ़गोई से उजागर किया कि कैसे पूंजीवाद और बाज़ारीकरण के जाल में उलझकर मनुष्य के प्रेम, करुणा और स्नेह जैसे भाव दम तोड़ रहे हैं। किसान-मजदूर की पीड़ा को खासकर जब सत्ताधीशों को पसंद न हो उठाना लेखक के साहस का परिचायक है। ऐसे लेखक अक्सर सत्ता को अपने जूते की नोंक से ठुकरा देते हैं। मैं लेखक को बधाई देता हूं और इच्छा व्यक्त करता हूँ कि इस तरह के लेख हमें पढ़ने को आगे भी मिलते रहेंगे।

17. Hemraj @ "चीकू के बीज : ग्रामीण ओलम्पिक : मेरे जीवन का नया अभ्युदय / सावित्री" May 5, 2024 : अद्भुद! इस तरह अपने संघर्ष की कहानी द्वारा अभिभूत करने की ताकत! 'अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी' की धारणा को तोड़ने वाली कहानी। हर सावित्री की अपनी कहानी है। अगर उन्हें इस तरह कबीर सर की तरह बंधन की कारा तोड़ने के लिए कोई प्रोत्साहित करें, तो वह कितने ही बड़े पक्षपाती रेफरी से आंख से आंख मिलाकर भिड़ सकेगी।

18. Dr. P. Kumar @ "समीक्षा : नई खेती - रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ / आँचल पारीक" May 3, 2024 : बहुत सुंदर समीक्षा। आज के दौर में जब विद्यार्थी केवल अंकों की दौड़ में लगे है और सोशल मीडिया की तीस सेकंड रील्स में उलझे है। ऐसे मे अध्ययन लेखन में संलग्न टीम जैसे प्रशिक्षणार्थी उम्मीद की किरण के रूप में नजर आते है। उज्ज्वल अकादमिक भविष्य हेतु ढेर सारी शुभकामनाएं।

19. लीलाधर मंडलोई @ "साक्षात्कार : वरिष्ठ आलोचक प्रो. अरविन्द त्रिपाठी से युवा आलोचक शशिभूषण मिश्र की बातचीत" May 2, 2024 : बहोत सुलझे हुए सवाल हैं,उत्तर भी माकूल हैं। कम होता है कि एक बार में कुछ पढ़ या पढ़ा लिया जाए। साधुवाद।

20. डॉ. हेमंत कुमार @ "कविता कादंबरी की कुछ कविताएं" Mar 4, 2024 : नारियल की जटा की तरह बेहद मजबूती से जिंदगी पर जम चुकी परतों को उधेड़ कर विशुद्ध जिंदगी को ढूँढ लाने का काम कविता जी की कविताएँ करती हैं। पहली कविता में माँ का किरदार खालिस इंसान का किरदार है। पोथी-पंथ के बोझिल आवरणों के परे जिंदगी जीने में मददगार औजार कुछ और हैं जिन्हें दूसरी कविता कहती है। 'दाढ़ियों में से चोरों की पहिचान तीसरी कविता बखूबी करती है तो चौथी तिनके और चोर के अलहदा मायनों को खोलती है।अपने आस-पास को इतनी सावचेती से देखना-परखना और उसे इस तरह कह पाना इन रचनाओं को नये मुकाम तक ले जाती है।

21. एच आर शर्मा @ "संस्मरण : म्हनेस बदी दाल ताड! (अतीत-बोध)/ डॉ. हेमंत कुमार" Jul 18, 2023 :यों लेख में ऐसा कुछ घटित नहीं जिसे घटना कहा जा सके और न कोई पात्र ऐसा है जिसमें पात्र हो सकने की पात्रता हो पर प्रस्तुतीकरण ऐसा चुलबुल है कि पाठक आद्यान्त एक ही घूंट में गटक जाता है। लेखक का भाषा पर ऐसा अधिकार और विनोदपूर्ण ललित शैली का मनमोही प्रभाव कुछ ऐसा कि तीन दशक पहले के गाँव-देहात का परिवेश (शैक्षिक) जीवंत हो खिलखिला उठा है। पाठक उस खिलखिलाहट में खिल-सा जाता है। कुल मिलाकर दारोमदार अभिव्यक्ति की कुशलता पर ही टिका समझना चाहिए। समय की आँच में जलकर अतीत की हाँडी के तल पर चिपके स्मृतियों के दूध को लेखनी ने खुरचकर खुरचन बना दिया है, जिसका आस्वादन आस्वाद्य है। बधाई!

(अपनी माटी पत्रिका के पोर्टल पर अगर आप भी अपने नाम और परिचय सहित कुछ लम्बे कमेंट्स करते हैं तो हम आने वाले अंकों में उन्हें शामिल करने का प्रयास करेंगे। आशा है आप जब भी आपके लिए सुविधाजनक होगा पोर्टल पर विजिट करेंगे।)

अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
  चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-60, अप्रैल-जून, 2025
सम्पादक  माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक  विष्णु कुमार शर्मा छायाचित्र  दीपक चंदवानी

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