शोध आलेख : स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचारों की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में समावेशिता / गिरीश चंद्र एवं अजय कुमार सिंह

स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचारों की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में समावेशिता
- गिरीश चंद्र एवं अजय कुमार सिंह 

शोध सार : स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा को व्यक्तिगत एवं सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख उपकरण माना। उनके शैक्षिक विचार केवल पारंपरिक ज्ञानार्जन तक सीमित नहीं थे, बल्कि नैतिक, आध्यात्मिक, शारीरिक एवं बौद्धिक विकास पर आधारित समग्र व्यक्तित्व निर्माण पर केंद्रित थे। विवेकानंद का मत था कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति में निहित पूर्णता का उद्घाटन एवं चरित्र निर्माण होना चाहिए। वे समावेशी शिक्षा, मातृभाषा में शिक्षा, व्यावसायिक और तकनीकी कौशल विकास तथा सामाजिक समानता को शिक्षा के अनिवार्य आयाम मानते थे। उनके दृष्टिकोण में ब्रह्मचर्य, आत्मसाक्षात्कार और मूल्य आधारित शिक्षा के माध्यम से जीवन की नैतिकता एवं सामाजिक उत्तरदायित्व का विकास निहित है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 विवेकानंद के शैक्षिक आदर्शों का आधुनिक रूप प्रस्तुत करती है। यह नीति बहु-विषयक, लचीली और समग्र शिक्षा प्रदान करने के माध्यम से छात्रों के बौद्धिक, भावनात्मक, सामाजिक और व्यावहारिक क्षमताओं के विकास को सुनिश्चित करती है। नीति में भारतीय भाषाओं, संस्कृति एवं आध्यात्मिक मूल्यों के संवर्धन, व्यावसायिक शिक्षा और डिजिटल साक्षरता के विकास पर विशेष बल दिया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षा में समानता, समावेशिता और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए नीति एवं क्रियान्वयन उपायों को समाहित करती है। स्वामी विवेकानंद एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 दोनों का दृष्टिकोण शिक्षा को मात्र ज्ञानार्जन के साधन के रूप में नहीं, बल्कि व्यक्तित्व विकास, नैतिकता, आत्मबोध और सामाजिक उत्थान का माध्यम मानता है। इस प्रकार, विवेकानंद के शैक्षिक आदर्श और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य एक समग्र, बहुआयामी और सशक्त नागरिक का निर्माण करना तथा राष्ट्र का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक उत्थान सुनिश्चित करना है। इस शोध पत्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उन तथ्यों की खोज करने का प्रयास किया गया है जो स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचारों की पुनर्स्थापना करते हैं।

बीज शब्द : राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार।

मूल आलेख : 

“शिक्षा में सबसे ज्यादा ताकत होती है, जिससे पूरी दुनिया को बदला जा सकता है।” - स्वामी विवेकानंद[1]

भारत के एक प्रमुख आध्यात्मिक नेता और दार्शनिक स्वामी विवेकानन्द ने व्यक्तिगत और सामाजिक परिवर्तन के लिए एक उपकरण के रूप में शिक्षा के महत्त्व पर जोर दिया। स्वामी जी ने देश के सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य का ज्ञान और समझ हासिल करने के लिए पूरे भारत में बड़े पैमाने पर यात्रा की। 1893 में, उन्होंने शिकागो में विश्व धर्म संसद में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और अपना प्रसिद्ध भाषण दिया, जिसने पश्चिमी दर्शकों को वेदांत और योग से परिचित कराया। इस घटना से स्वामी विवेकानन्द के रूप में उनकी यात्रा की शुरुआत हुई। उनके उपदेशों का शिक्षा सहित भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहरा प्रभाव पड़ा है। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से समाज में व्यक्ति की भूमिका का स्थान निर्धारित करते हुए कहा कि हमें ज्ञान तथा दार्शनिक और आध्यात्मिक शक्तियों द्वारा भारत निर्माण करना होगा और अपने राष्ट्र को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठापित करना होगा।

“मनुष्य का गौरव स्वार्थ साधना में नहीं अपितु विश्व कल्याण के लिए आत्म बलिदान में निहित है।”[2] राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक व्यापक रूपरेखा है जिसका उद्देश्य 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए भारतीय शिक्षा की आधुनिक प्रणाली को तैयार करना है।

स्वामी विवेकानन्द का शैक्षिक दर्शन : 12 जनवरी, 1863 को भारत के कोलकाता में नरेंद्रनाथ दत्त के रूप में जन्मे स्वामी विवेकानन्द, हिंदू धर्म के पुनरुद्धार, वेदांत और योग के भारतीय दर्शन को पश्चिमी दुनिया के सम्मुख प्रस्तुत करने वाले एक प्रमुख व्यक्ति थे। स्वामी विवेकानन्द ऐसी शिक्षा में विश्वास करते थे जो अकादमिक शिक्षा से आगे बढ़कर नैतिक, आध्यात्मिक और शारीरिक विकास को शामिल करती है। उन्होंने शैक्षिक प्रक्रिया में आत्म-जागरूकता, आलोचनात्मक चिंतन और चरित्र निर्माण के महत्त्व पर जोर दिया। विवेकानन्द के अनुसार, शिक्षा द्वारा व्यक्तियों को पूर्ण जीवन जीने और समाज में सकारात्मक योगदान देने के लिए सशक्त बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस शिक्षा से हम मनुष्य बन सकें, जीवन का निर्माण कर सकें, विचारों में सामंजस्य स्थापित कर सकें, वहीं वास्तव में शिक्षा है, अर्थात् वह मूल्य आधारित शिक्षा प्रदान करने के पक्षधर थे जिसको राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में स्थापित किया गया है। शिक्षा दर्शन के क्षेत्र में स्वामी विवेकानंद की तुलना महान शिक्षाशास्त्रियों जैसे रूसो, प्लेटो व बर्ट्रेंड रसेल आदि से की जाती है, ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने शिक्षा के उन सिद्धांतों का पर ध्यान आकृष्ट किया जो ज्ञान के उन्नयन हेतु आधार प्रदान करते हैं। स्वामी जी ने व्यक्ति को जन्म से ही पूर्ण माना है, उनका मानना था की संपूर्ण शक्तियां व्यक्ति में पूर्व विशेषण निहित है, बस शिक्षा द्वारा उसका विकास करके प्रकट रूप में लाया जाना चाहिए, स्वामी जी के शब्दों में “मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता को व्यक्त करना ही शिक्षा है।”[3]

उनका मानना था कि ऐसी शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं है जो व्यक्ति पर ज़बरदस्ती आरोपित कर दी जाय और उस व्यक्ति को उसके महत्त्व और मूल्य का आभास ही न हो। यथा खरश्चन्दभारवाही भारस्यवेत्ता न तु चन्दनस्य।[4], अर्थात् यदि गधे के ऊपर चन्दन की लकड़ियां लाद दी जाएं तो वह उसके भार का आभास तो कर पायेगा परन्तु उसके महत्त्व को नहीं जान पाएगा। भारत के आध्यात्मिक और दार्शनिक परिदृश्य में एक प्रमुख व्यक्तित्व स्वामी विवेकानन्द का शैक्षिक विचारों पर गहरा प्रभाव था। उनके शिक्षा दर्शन में समग्र विकास और आत्म-साक्षात्कार का विचार निहित था। स्वामी विवेकानन्द एक दूरदर्शी नेता, आध्यात्मिक शिक्षक और समाज सुधारक थे जिनके योगदान ने भारत और विश्व के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक परिदृश्य पर अमिट प्रभाव छोड़ा है। उनकी शिक्षाएँ जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों के बीच गूंजती रहती हैं और सार्थक, उद्देश्यपूर्ण और जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’ शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अधिकृत एक व्यापक रूपरेखा है जिसका उद्देश्य 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने के लिए भारतीय शिक्षा प्रणाली को बदलना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारत में शैक्षिक विकास के लिए एक मार्गदर्शक दस्तावेज के रूप में प्रस्तुत है, यह मौजूदा प्रणाली में विभिन्न कमियों और अंतरालों को दूर करने का प्रयास करती है और समग्र, बहु-विषयक और लचीली शिक्षा के लिए एक रोडमैप तैयार करती है।

“शिक्षा पूर्ण मानव की क्षमता को प्राप्त करने, एक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण समाज के विकास और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए मूलभूत आवश्यकता है।”[5]

यह नीति अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु कुछ मूलभूत सिद्धांतों पर जिनकी संख्या पांच है, जो पहुंच, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही हैं। सम्पूर्ण नीति का सार इन्हीं पांच सिद्धांतों में समाहित है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मौजूदा 10+2 प्रणाली की जगह नई 5+3+3+4 संरचना का प्रस्ताव करती है। यह स्कूली शिक्षा को बुनियादी (प्री-प्राइमरी के 3 साल, ग्रेड 1-2), प्रारंभिक (ग्रेड 3-5), मध्य (ग्रेड 6-8), और माध्यमिक (ग्रेड 9-12) चरणों में विभाजित करता है। यह बच्चे के विकास में एक महत्त्वपूर्ण चरण के रूप में ईसीसीई के महत्व पर जोर देती है और इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बाल्यावस्था शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करना है। नीति इस नए पाठ्यचर्या ढांचे के प्रस्ताव द्वारा मुख्य अवधारणाओं, अनुभवात्मक शिक्षा और अनुप्रयोग-आधारित ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करती है जो रटने की बजाय योग्यता-आधारित मूल्यांकन की ओर बदलाव का संकेत है। यह लचीली और समग्र मूल्यांकन विधियों की वकालत करती है जो केवल याद रखने के बजाय छात्रों की समझ, कौशल और अनुप्रयोग क्षमताओं को मापता है। यह सीखने को अधिक आकर्षक और प्रासंगिक बनाने के लिए पाठ्यक्रम में सामग्री भार को कम करने का प्रयास करती है। नीति शिक्षकों के लिए निरंतर व्यावसायिक विकास और प्रशिक्षण के महत्त्व पर जोर देती है। इसका उद्देश्य शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों को मजबूत करना, शिक्षण कौशल को बढ़ाना और नवीन शैक्षणिक प्रथाओं को बढ़ावा देना है। यह सीखने के परिणामों को बढ़ाने, गुणवत्तापूर्ण संसाधनों तक पहुंच की सुविधा तथा छात्रों और शिक्षकों के बीच डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा में प्रौद्योगिकी के एकीकरण पर जोर देती है। नीति का उद्देश्य उच्च शिक्षा संस्थानों को बहु-विषयक संस्थानों में बदलना, अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देना तथा उच्च शिक्षा कार्यक्रमों की गुणवत्ता एवं प्रासंगिकता को बढ़ाना है। यह उच्च शिक्षा को अधिक समावेशी, लचीला और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए प्रशासन, मान्यता, वित्त पोषण और पाठ्यक्रम में कई सुधारों का प्रस्ताव करती है।

स्वामी विवेकानन्द के शैक्षिक दर्शन के मूलभूत आदर्श विचार जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में पुनर्स्थापित किए गए हैं इस प्रकार हैं :

भारतीय भाषा और संस्कृति का संवर्धन : राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय भाषाओं, कलाओं और संस्कृति के संरक्षण तथा संवर्धन की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज के रूप में उभरी है। इसमें शिक्षा के माध्यम से भारतीयता के मूल तत्वों भाषा, संस्कृति और आध्यात्मिकता के पुनरुत्थान पर बल दिया गया है। नीति का यह दृष्टिकोण स्पष्ट करता है कि शिक्षा केवल ज्ञानार्जन का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान के संवाहक के रूप में भी कार्य करती है। नीति में यह उल्लेख कि “भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित प्रत्येक भाषा के लिए अकादमी स्थापित की जाएगी…”[6], यह विचार भारतीय बहुभाषिकता के संरक्षण की दिशा में एक दूरदर्शी कदम है। भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अनुभव का आधार है, क्योंकि संस्कृति हमारी भाषाओं में ही अंतर्निहित है। नीति का यह विचार “संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन और प्रसार के लिए हमें उस संस्कृति की भाषाओं का संरक्षण और संवर्धन करना होगा”[7] इस तथ्य की पुष्टि करता है कि भाषा और संस्कृति का संबंध अटूट और पारस्परिक है। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और मूल्यों को शिक्षा का आधार बनाने की वकालत की थी।[8] स्वामी विवेकानंद ने मातृभाषा में शिक्षा को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना था, उनका मानना था कि जन शिक्षा के लिए मातृभाषा सर्वोत्तम माध्यम है।[9] उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवाद के प्रभाव से सावधान करते हुए कहा कि यदि भारत ने अपनी आध्यात्मिकता को त्याग दिया, तो उसकी आत्मा का पतन निश्चित है। आज के परिवेश में, जब उपभोक्तावाद और सांस्कृतिक विस्मरण का प्रभाव बढ़ रहा है, विवेकानंद की यह चेतावनी अत्यंत प्रासंगिक प्रतीत होती है। एनईपी 2020 के भाषा एवं संस्कृति संबंधी प्रावधान विवेकानंद की इसी चेतना के विस्तार के रूप में देखे जा सकते हैं। नीति का लक्ष्य केवल भाषाई विविधता को बनाए रखना नहीं, बल्कि छात्रों में सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रीय गौरव की भावना को विकसित करना है। यह नीति विद्यालय स्तर पर मातृभाषा या स्थानीय भाषा में शिक्षा प्रदान करने की अनुशंसा करती है, जो न केवल शिक्षण की प्रभावशीलता को बढ़ाती है बल्कि बालकों में अपनी संस्कृति के प्रति आत्मीयता भी विकसित करती है। यह विवेकानंद के उस विचार से मेल खाती है जिसमें उन्होंने कहा था कि शिक्षा वही है जो व्यक्ति में निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करे।

चरित्र निर्माण एवं मूल्य शिक्षा : विवेकानंद के अनुसार, शिक्षा का सार व्यक्ति के भीतर स्थित दिव्यता को प्रकट करना है—“शिक्षा वह है जो मनुष्य में पहले से विद्यमान पूर्णता का आविर्भाव करे।” यह दृष्टिकोण शिक्षा को केवल सूचना-संग्रह या रोजगारोन्मुख साधन न मानकर, एक नैतिक एवं आध्यात्मिक प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत करता है। विवेकानंद का कहना था कि “शिक्षा का आदर्श मनुष्य-निर्माण होना चाहिए। परंतु इसके स्थान पर हम सदैव बाहरी चमक पर ध्यान देते हैं”।[10] इस कथन में उन्होंने उस भटकाव की ओर संकेत किया है जो शिक्षा प्रणाली में दिखावटी सफलता, भौतिक उपलब्धियों और अंकों की संस्कृति के कारण उत्पन्न हुआ है। जैसा कि उन्होंने कहा “जो शिक्षा साधारण व्यक्ति को जीवन की समस्याओं से निवृत्ति में समर्थन न करे, चरित्र-बल का विकास न करे, परार्थ की कामना तथा शेर के समान साहस न भर सके, वह शिक्षा नहीं है।”[11] विवेकानंद के लिए चरित्र निर्माण का आशय केवल नैतिकता का उपदेश नहीं था, बल्कि आत्मानुशासन, ब्रह्मचर्य, आत्मविश्वास और निस्वार्थ सेवा की जीवनशैली से था। वे मानते थे कि शिक्षा का उद्देश्य शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य केवल बौद्धिक विकास नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण है तथा ऐसी सशक्त पीढ़ी तैयार करना है जो साहसी, आत्मनिर्भर, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ मनुष्य के रूप में खड़ी हो सके। उन्होंने युवाओं के ब्रह्मचर्य पर विशेष बल दिया, उनका यह कथन “ब्रह्मचर्य एक ऐसा उपाय है जिसका ठीक ढंग से पालन कर लेने पर सभी विद्याएं न्यूनतम समय में हस्तगत हो जाती हैं। हमारे देश का सबकुछ इसलिए नष्ट हो गया क्योंकि ब्रह्मचर्य का अभाव था।”[12] उनके अनुसार, ब्रह्मचर्य—अर्थात् आत्म-संयम, अनुशासन और विचारों की पवित्रता है तथा चरित्र निर्माण का मूलाधार है। उन्होंने स्पष्ट कहा, “ब्रह्मचर्य एक ऐसा उपाय है जिसका ठीक ढंग से पालन कर लेने पर सभी विद्याएँ न्यूनतम समय में हस्तगत हो जाती हैं… हमारे देश का सबकुछ इसलिए नष्ट हो गया क्योंकि ब्रह्मचर्य का अभाव था।”[13] विवेकानंद के लिए मूल्य शिक्षा का तात्पर्य जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, सेवा-भाव, निष्ठा और सत्यनिष्ठा के विकास से था। इसी तरह, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का भी प्रमुख उद्देश्य नैतिक और उत्तरदायी नागरिकों का निर्माण करना है। नीति में कहा गया है कि शिक्षा को ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना चाहिए जो “नैतिक, तर्कसंगत, दयालु और देखभाल करने वाले हो।”[14] यह कथन विवेकानंद के मनुष्य-निर्माण के आदर्श की ही पुनरावृत्ति प्रतीत होता है। एनईपी 2020 स्पष्ट रूप से यह मानती है कि केवल ज्ञान या कौशल पर्याप्त नहीं; बल्कि शिक्षार्थियों में सामाजिक उत्तरदायित्व, संवैधानिक मूल्यों और मानवीय करुणा का विकास आवश्यक है। नीति यह सुनिश्चित करना चाहती है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल जानना नहीं, बल्कि जीना सीखा जाए; ऐसा जीवन जो समाज, राष्ट्र और मानवता के प्रति उत्तरदायी हो। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार, “हमारे संस्थानों की पाठ्यचर्या एवं शिक्षाविधि छात्रों में अपने मौलिक दायित्वों और संवैधानिक मूल्यों, देश के साथ जुड़ाव और बदलते विश्व में नागरिक की भूमिका और उत्तरदायित्वों की जागरूकता उत्पन्न करें।[15] यह दृष्टिकोण विवेकानंद की उस अवधारणा से गहराई से मेल खाता है जिसमें उन्होंने कहा था कि सच्ची शिक्षा वही है जो व्यक्ति को अपने देश और समाज के प्रति कर्तव्यनिष्ठ बनाती है। विवेकानंद और एनईपी 2020 दोनों इस बात पर एकमत हैं कि शिक्षा का केंद्र बिंदु व्यक्ति का संपूर्ण विकास (शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक) होना चाहिए। विवेकानंद ने जहाँ आत्मबल, ब्रह्मचर्य और नैतिक आचरण के माध्यम से आदर्श चरित्र निर्माण की बात की, वहीं एनईपी 2020 ने संवैधानिक मूल्यों, नैतिक चेतना और सामाजिक उत्तरदायित्व पर बल दिया। दोनों ही दृष्टिकोण शिक्षा को मात्र ज्ञानार्जन की प्रक्रिया न मानकर जीवन को सही दिशा देने की साधना के रूप में देखते हैं।

आत्मसाक्षात्कार एवं आध्यात्मिक शिक्षा : आध्यात्मिक शिक्षा से स्वामी जी का अभिप्राय संप्रदाय विशेष की शिक्षा से नहीं था, बल्कि नैतिक जीवन पद्धति और शाश्वत सिद्धांतों - जैसे सत्य, प्रेम और सद्गुणों के विकास से था, स्वामी विवेकानंद ने आत्मसाक्षात्कार को शिक्षा का सर्वोच्च लक्ष्य माना। उनके अनुसार, शिक्षा का कार्य व्यक्ति में निहित दिव्यता और शक्ति का विकास करना है, जिससे वह निम्न चेतना से उच्च दिव्य चेतना की ओर अग्रसर हो सके। उनके अनुसार, “शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को निम्न स्तर से उच्च दिव्य चेतना की ओर ले जाना है। यह आत्म-अनुशासन, आत्म-प्रयास और उचित प्रशिक्षण के माध्यम से संभव है।”[16] विवेकानंद के लिए शिक्षा केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण और आत्मबोध की प्रक्रिया है। इसी दृष्टिकोण को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी प्रतिपादित करती है। नीति में कहा गया है कि “भारतीय परंपरा में ज्ञान, प्रज्ञा और सत्य की खोज को सर्वोच्च मानवीय उद्देश्य माना गया है। प्राचीन शिक्षा का लक्ष्य केवल सांसारिक जीवन की तैयारी नहीं, बल्कि पूर्ण आत्म-ज्ञान और मुक्ति के रूप में माना गया था।”[17] राष्ट्रीय शिक्षा नीति शिक्षा को केवल रोजगार का माध्यम नहीं, बल्कि समग्र मानव विकास का साधन मानती है। इस प्रकार, विवेकानंद की आत्मसाक्षात्कार-आधारित शिक्षा और एनईपी 2020 की आध्यात्मिक दृष्टि एक-दूसरे की पूरक हैं। दोनों इस विचार पर बल देते हैं कि शिक्षा का सच्चा उद्देश्य व्यक्ति में निहित नैतिकता, आत्मबोध और दिव्यता का विकास है, जिससे समाज और राष्ट्र का आध्यात्मिक उत्थान संभव हो सके।

व्यावहारिक व्यावसायिक शिक्षा : स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचारों में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का अत्यधिक महत्त्व है। उनके अनुसार, तकनीकी शिक्षा के माध्यम से प्रशिक्षित कार्यबल न केवल नई तकनीकों और आधुनिक उपकरणों का कुशल उपयोग कर सकता है, बल्कि यह युवाओं को स्वावलंबी और प्रतिस्पर्धी बनाने में भी सक्षम है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि “शैक्षिक योग्यताओं में तकनीकी शिक्षा को शामिल करना आवश्यक था, क्योंकि यह औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करती है और इसके माध्यम से राष्ट्र की आर्थिक समृद्धि सुनिश्चित होती है।”[18] विवेकानंद का यह दृष्टिकोण आज भी अत्यंत प्रासंगिक है, क्योंकि औद्योगिक और तकनीकी विकास सीधे रोजगार सृजन, आर्थिक स्थिरता और राष्ट्र की समग्र प्रगति से जुड़ा है। समकालीन संदर्भ में, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इस आवश्यकता को समझते हुए व्यावसायिक शिक्षा को प्राथमिक स्तर से ही सभी विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध कराने पर जोर देती है। नीति के अनुसार, व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों की संख्या अभी भी बहुत कम है। इसके कई कारण हैं। सबसे प्रमुख कारण यह है कि अतीत में व्यावसायिक शिक्षा मुख्य रूप से कक्षा 11-12 और कक्षा 8 से ऊपर के ड्रॉपआउट्स तक सीमित थी। इस वजह से व्यावसायिक शिक्षा को समाज में व्यापक स्वीकार्यता नहीं मिली और इसे मुख्यधारा की शिक्षा का हिस्सा नहीं माना गया। दूसरा कारण यह है कि उच्चतर माध्यमिक स्तर पर व्यावसायिक विषयों का अध्ययन करने वाले छात्रों के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर अपने चुने हुए व्यावसायिक क्षेत्र में आगे बढ़ने का स्पष्ट मार्ग उपलब्ध नहीं था। उदाहरण के लिए, यदि कोई छात्र इलेक्ट्रॉनिक्स या कंप्यूटर एप्लीकेशन में प्रशिक्षण प्राप्त करता था, तो उसे उच्च शिक्षा में आगे बढ़ने या करियर बनाने के पर्याप्त विकल्प नहीं मिलते थे। सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण भी इस कमी का एक कारण है। परिवार और समाज में व्यावसायिक शिक्षा की प्रतिष्ठा कम मानी जाती थी, जबकि पारंपरिक शैक्षणिक और विश्वविद्यालय शिक्षा को अधिक महत्त्व दिया जाता था। इस मानसिकता ने छात्रों और अभिभावकों को व्यावसायिक शिक्षा की ओर आकर्षित होने से रोका। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में वर्णित है कि “12वीं पंचवर्षीय योजना (2012–2017) के अनुसार, 19–24 वर्ष आयुवर्ग के भारतीय युवाओं में केवल लगभग 5% ने औपचारिक व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त की है। इसके विपरीत, संयुक्त राज्य अमेरिका में यह प्रतिशत 52%, जर्मनी में 75% और दक्षिण कोरिया में 96% है। यह तुलनात्मक आंकड़ा स्पष्ट रूप से दिखाता है कि भारत में व्यावसायिक शिक्षा का प्रसार अत्यंत सीमित है और इसे व्यापक रूप से बढ़ाने की आवश्यकता है।”[19] नीति इस समस्या का समाधान प्रदान करती है। नीति का उद्देश्य केवल छात्रों को कौशल आधारित शिक्षा देना नहीं है, बल्कि उन्हें रोजगारोन्मुखी, आत्मनिर्भर और वास्तविक जीवन की समस्याओं को हल करने में सक्षम बनाना है। विवेकानंद के विचार और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का दृष्टिकोण एक-दूसरे के पूरक हैं, जो शिक्षा को केवल ज्ञानार्जन का माध्यम नहीं बल्कि राष्ट्र और समाज की प्रगति का शक्तिशाली उपकरण बनाते हैं।

जन शिक्षा एवं समावेशिता : भारत में शिक्षा में समावेशिता और समानता बढ़ाने के लिए सरकार ने कई पहल की हैं और नीतिगत स्तर पर सुधार लगातार किए जा रहे हैं। पिछली पंचवर्षीय योजनाओं ने सामाजिक और लिंग आधारित असमानताओं को कम करने की दिशा में कदम उठाए हैं। फिर भी, वास्तविक शिक्षा क्षेत्र में असमानता पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। माध्यमिक शिक्षा स्तर पर विशेष रूप से ऐसे वर्ग और समुदाय दिखाई देते हैं, जो ऐतिहासिक रूप से शिक्षा में पिछड़े रहे हैं जैसे कि दलित, आदिवासी और गरीब वर्ग। ये समूह शैक्षणिक संसाधनों, शिक्षक गुणवत्ता, प्रशिक्षण कार्यक्रम और आर्थिक समर्थन की कमी के कारण उच्च शिक्षा और कौशल विकास में पीछे रह जाते हैं। इस स्थिति से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा में समान अवसर उपलब्ध कराना केवल नीति निर्माण तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि प्रभावी क्रियान्वयन, विशेष सहायता योजनाएं, छात्रवृत्तियाँ और स्थानीय स्तर पर शिक्षा की पहुँच बढ़ाना आवश्यक है। यह दृष्टिकोण स्वामी विवेकानंद के समावेशी शिक्षा और सामाजिक समानता के विचारों से भी मेल खाता है, जिन्होंने कहा था कि राष्ट्र का वास्तविक विकास तभी संभव है जब शिक्षा हर वर्ग और समुदाय तक समान रूप से पहुंचे। विवेकानंद ने सभी वर्गों विशेष रूप से महिलाओं, दलितों और गरीबों की शिक्षा पर बल दिया। उनका विश्वास था कि शिक्षा सामाजिक और वैश्विक बुराइयों का एकमात्र समाधान है। उन्होंने कहा था, “जितनी शिक्षा और बुद्धि जनसाधारण में फैली होती है, उसी अनुपात में राष्ट्र उन्नत होता है।”[20] इस दृष्टिकोण का आधुनिक प्रतिरूप राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में देखा जा सकता है। नीति में कहा गया है कि “शिक्षा सामाजिक न्याय और समानता प्राप्त करने का एकमात्र और सबसे प्रभावी साधन है। समानतामूलक और समावेशी शिक्षा न केवल स्वयं में एक आवश्यक लक्ष्य है, बल्कि समानतामूलक और समावेशी समाज निर्माण के लिए भी अनिवार्य कदम है।”[21] इसका तात्पर्य यह है कि शिक्षा को केवल ज्ञानार्जन या कौशल विकास के साधन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे सामाजिक सुधार और समान अवसर सुनिश्चित करने के उपाय के रूप में अपनाना आवश्यक है। वास्तव में, विवेकानंद का और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का दृष्टिकोण एक-दूसरे के पूरक है। दोनों यह मानते हैं कि जब शिक्षा हर वर्ग और समुदाय तक समान रूप से पहुँचती है, विशेषकर उन समूहों तक जो ऐतिहासिक रूप से पिछड़े रहे हैं तो समाज में सामाजिक समरसता, नैतिक विकास और आर्थिक प्रगति सुनिश्चित होती है। इस प्रकार शिक्षा केवल व्यक्तिगत लाभ का साधन न रहकर राष्ट्रीय और सामाजिक उत्थान का शक्तिशाली उपकरण बन जाती है।

निष्कर्ष : स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचार और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भारतीय शिक्षा के उद्देश्य और दृष्टिकोण स्तर पर गहन सामंजस्य है। विवेकानंद शिक्षा को केवल ज्ञानार्जन का साधन नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के समग्र विकास, चरित्र निर्माण, नैतिकता और आत्मसाक्षात्कार का प्रमुख माध्यम मानते थे। उनके अनुसार शिक्षा का असली उद्देश्य व्यक्ति में अंतर्निहित पूर्णता का विकास करना है, जिससे वह सामाजिक उत्तरदायित्व, आत्मनिर्भरता और साहसशीलता के साथ राष्ट्र और समाज में सकारात्मक योगदान दे सके। इसी दृष्टिकोण को नीति में आधुनिक संदर्भ में पुनर्निर्मित किया गया है, जहाँ शिक्षा को बहु-विषयक, लचीला और समग्र विकास के रूप में परिभाषित किया गया है। यह नीति बौद्धिक, भावनात्मक, सामाजिक, शारीरिक और आध्यात्मिक आयामों में संतुलित शिक्षा पर बल देती है। विवेकानंद की तरह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी भारतीय भाषाओं, संस्कृति और मूल्यों के संरक्षण तथा संवर्धन को शिक्षा का अभिन्न अंग मानती है। मातृभाषा में शिक्षा और सांस्कृतिक चेतना के माध्यम से छात्रों में राष्ट्रीय गौरव, सामाजिक उत्तरदायित्व और नैतिक चेतना का विकास संभव होता है। इसके साथ ही, दोनों दृष्टिकोण तकनीकी, व्यावसायिक और रोजगारोन्मुखी शिक्षा को राष्ट्रीय विकास का आवश्यक उपकरण मानते हैं, जिससे युवाओं की स्वावलंबन और प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता सुनिश्चित हो सके। समावेशिता और समान अवसर दोनों ही विवेकानंद और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के शिक्षा दर्शन का मूल आधार हैं। विवेकानंद ने ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर वर्गों, जैसे दलित, आदिवासी, गरीब और महिलाओं की शिक्षा पर विशेष बल दिया, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के समानतामूलक और समावेशी शिक्षा लक्ष्यों में स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित होता है। अतः, स्वामी विवेकानंद की शिक्षा-दृष्टि और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का मूल संदेश समान है। शिक्षा केवल ज्ञान का माध्यम नहीं, बल्कि चरित्र, आत्मबोध, नैतिकता और कौशल के माध्यम से व्यक्तियों को पूर्ण, जिम्मेदार और समाजोपयोगी नागरिक बनाने का साधन है। यह दृष्टिकोण आधुनिक भारतीय शिक्षा को मानव-केंद्रित, मूल्य-आधारित और राष्ट्रोन्मुख बनाता है। इस प्रकार, स्वामी विवेकानंद की शिक्षादृष्टि और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का अंतःसंबंध भारतीय शिक्षा को मानवीय, नैतिक और सृजनशील दिशा प्रदान करता है जो न केवल व्यक्तियों, बल्कि संपूर्ण समाज के पुनर्निर्माण की आधारशिला रखता है। स्वामी विवेकानंद तकनीकी, व्यावसायिक एवं प्रबंधकीय शिक्षा के प्रबल समर्थक थे, वे प्राचीन और आधुनिक ज्ञान और शिक्षा का समन्वय चाहते थे। परन्तु उनका मानना था कि शिक्षा में मानवीय गुणों का समावेश अवश्य होना चाहिए, शिक्षा ऐसी हो जिसमें भारतीय दृष्टि स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो तथा उसे आध्यात्मिकता से परिपूर्ण होना चाहिए। यदि शिक्षा में इन विशेषताओं का समावेश होगा तो वह निश्चित रूप से भारतीय समाज और अंततः विश्व का कल्याण करने वाली शिक्षा होगी।

सन्दर्भ :
  1. रिंकू सुखवाल. स्वामी विवेकानंद के शैक्षिक विचारों की प्रासंगिकता, 2022, https://failwise.co/articles/v/relevance-of-swami-vivekanandas-educational-thoughts
  2. आदित्य प्रकाश सिंह. स्वामी विवेकानंद का मानवतावादी चिंतन, 2019, पृ० 62-64, https://www.ijhssi.org/papers/vol8(3)/Series-1/K0803016264.pdf
  3. सुशील सरित एवं अनिल भार्गव. आधुनिक भारतीय शिक्षाविदों का चिंतन (प्रथम सं०), भार्गव बुक हाउस, आगरा: वेदान्त पब्लिकेशन, 2005.
  4. विवेकानंद साहित्य. कोलकाता: अद्वैत आश्रम, प्रकाशन विभाग, 1989, पृ० 195, https://epustakalay.com/book/27115-vivekananda-sahitya-khand-5-by-swami-vivekanand/
  5. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020. शिक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली: भारत सरकार, 2020, पृ. 3
  6. वही, पृ. 91
  7. वही, पृ. 87
  8. एस. के. कपूर. द स्टेट ऑफ़ एजुकेशन इन इंडिया इन द लाइट ऑफ़ स्वामी विवेकानंदस आइडिआज. इन विवेकानंद एज द टर्निंग पॉइंट, कोलकाता:अद्वैत आश्रम, 2013, पृ. 184-196.
  9. एस. पी. पाणि एवं पी. पटनायक. विवेकानंद, अरविंदो एन्ड गाँधी ऑन एजुकेशन. नई दिल्ली : अनमोल पब्लिकेशंस प्रा. लि., 2006. पृ. 126
  10. एस. सिंह. मैन-मेकिंग एजुकेशन: द एसेंस ऑफ़ अ वैल्यू-बेस्ड सोसाइटी. माइलस्टोन एजुकेशन रिव्यु, 4(2), 2013, 48-56.
  11. विवेकानंद- राष्ट्र को आह्वान, 28वाँ संस्करण, नागपुर : रामकृष्ण मठ, प्रकाशन विभाग, 2020. पृ. 40
  12. वही, पृ. 41
  13. वही, पृ. 41
  14. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020. शिक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली: भारत सरकार, 2020, पृ. 4
  15. वही, पृ. 8
  16. ए. भट्टाचार्य एवं एस. के. दिआबाग. रेविसिटिंग स्वामी विवेकानंदस एजुकेशनल विज़न इन द कॉन्टेक्स्ट ऑफ इंडिआज एनईपी 2020. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मल्टीडिसिप्लिनरी रिसर्च, 7(3), 2025, 1-6.
  17. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020. शिक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली: भारत सरकार, 2020, पृ. 4
  18. मधुलता पाल. एजुकेशन इन द विजन ऑफ स्वामी विवेकानंद, टेक्नोलर्न: एन इंटरनॅशनल जर्नल ऑफ एजुकेशन टेक्नोलॉजी, टेक्नोलर्न: 9(2):, 2019, पृ. 129, https://ndpublisher.in/admin/issues/TLV9I2j.pdf
  19. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020. शिक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली: भारत सरकार, 2020, पृ. 70
  20. कम्पलीट वर्क्स ऑफ स्वामी विवेकानंद. वो. I-IX. कोलकाता : अद्वैत आश्रम पब्लिकेशन डिपार्टमेंट, 1989. पृ. 342
  21. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020. शिक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली: भारत सरकार, 2020, पृ. 38
गिरीश चंद्र
यू.जी.सी.-जे.आर.एफ., शिक्षा संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी

अजय कुमार सिंह
आचार्य, अन्तर विश्वविद्यालय अध्यापक शिक्षा केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी

अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
  चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-61, जुलाई-सितम्बर 2025
सम्पादक  माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक  विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन दीपिका माली

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