‘वर्किंग विमन्स हॉस्टल’ में स्त्री-विमर्श
- ममता दीपक वेर्लेकर एवं बिपिन तिवारी
शोध सार : प्रस्तुत शोध में अनामिका के काव्य-संग्रह ‘वर्किंग विमन्स हॉस्टल और अन्य कविताएँ’ का स्त्रीवादी परिप्रेक्ष्य में अध्ययन किया गया है। संग्रह में संकलित कविताएँ स्त्री के व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक जीवन के अनुभवों और प्रचलित सामाजिक संरचनाओं पर सवाल खड़ा करती हैं। कवयित्री अपनी विशिष्ट काव्य प्रतिभा से समकालीन स्त्री-अनुभवों को मिथकों, ऐतिहासिक आख्यानों और सांस्कृतिक स्मृतियों के माध्यम से नवीन अर्थ देती हैं। वे एक ऐसे संवेदनशील एवं सहानुभूतिपूर्ण पुरुष की कल्पना करती हैं जो समतापूर्ण समाज के निर्माण में योगदान दे सके। अनामिका की भाषा लोक-संस्कृति, व्यंग्य एवं माधुर्य के संतुलित समन्वय के साथ स्त्री जीवन की सूक्ष्म संवेदनशीलता एवं जटिल मनोदशाओं को उद्घाटित करती है। ये कविताएँ स्त्रियों में बहनापे की भावना को पुष्ट करती हैं जिससे ये न सिर्फ एक महत्त्वपूर्ण काव्यात्मक योगदान के रूप सामने आती हैं बल्कि एक जरूरी वैचारिक हस्तक्षेप के रूप में हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज करती है।
बीज शब्द : स्त्री, स्त्री विमर्श, स्त्रीवादी समीक्षा, स्त्री सशक्तिकरण, जेंडर, लैंगिक - भेदभाव, समानता, इंटरसेक्शनलिटी, पुरुष, पितृसत्ता, मिथक, अस्मिता, बहनापा।
मूल आलेख : स्त्रीवाद एक व्यापक शब्द है। इसका संबंध पितृसत्तात्मक यथास्थितिवाद से उत्पन्न, स्त्रियों की स्थिति को कमज़ोर बनाने वाली कई सांस्कृतिक गतिविधियों से है। इस शब्द का प्रयोग 1837 में एक आदर्शवादी दार्शनिक और कट्टर समाजवादी चार्ल्स फुरिएर, द्वारा स्त्रियों के मताधिकार के समर्थन में संघटित सक्रियता की प्रतिक्रिया के रूप में गढ़ा गया था। स्त्रीवाद में विभिन्न दार्शनिक मत, सिद्धांत और नैतिक दृष्टिकोण शामिल हैं। इसके विविध रूपों के बावजूद, इसका उद्देश्य स्त्रियों की परिस्थितियों को निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में संबोधित करना है और आधुनिक समाज के आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक ढांचे को प्रभावित करना है। स्त्रीवादी आंदोलन संस्थागत प्रयासों और जमीनी स्तर पर किए गए 'एक्टिविज़म' दोनों का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका लक्ष्य लिंग आधारित असमानताओं को समाप्त करना और स्त्रियों की सामाजिक स्थितियों में सुधार करना है।1
सुजाता के अनुसार, "स्त्रीवाद जेंडर, वर्ग, नस्ल, जाति और धर्म के जटिल रिश्तों को समझने का औज़ार देता है। वह समाज की शक्ति संरचना में जेंडर की हेजेमनी को समझने की कोशिश है। स्त्रीवाद सिर्फ़ स्त्री का अध्ययन नहीं है, बल्कि वह समाजों के लैंगिक आधार पर बँट जाने के इतिहास का अन्वेषण है, लैंगिक रंगों में पुती हुई भाषा की पड़ताल है, धर्म और कानून के लैंगिक-दमनकारी स्वरूप की आलोचना है। पूरी दुनिया के दो विपरीत लिंगों में बँट जाने की आलोचना है।"2
कहा जा सकता है कि स्त्रीवाद स्त्री के अधिकारों के साथ ही उनके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक सशक्तिकरण की बात करता है। स्त्रीवाद केवल स्त्रियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सर्वसमावेशी दृष्टिकोण है, जो जेंडर के साथ-साथ वर्ग, जाति और धर्म आदि के जटिल संबंधों को समझने और एक समानतापूर्ण समाज के निर्माण की बात करता है।
स्त्रीवाद अब साहित्यिक आलोचना की एक शाखा भी है जिसका मुख्य उद्देश्य साहित्य के माध्यम से समाज में व्याप्त लैंगिक असमानताओं, शक्ति-संबंधों और सामाजिक संरचनाओं का विश्लेषण करना है। स्त्रीवादी साहित्यिक आलोचना स्त्री के अनुभवों, आवाज़ों और दृष्टिकोणों को केंद्र में लाकर पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रहों को चुनौती देती है।
पीटर बैरी के अनुसार, “स्त्रीवादी आलोचना का कार्य पारंपरिक साहित्य की पुनर्समीक्षा, स्त्रियों के अनुभवों का पुनर्मूल्यांकन, स्त्री-चित्रण के विश्लेषण और 'अन्य' के रूप में दिखाई गई स्त्री छवि को चुनौती देना है। यह पाठ और समाज के शक्ति-सम्बंधों की जाँच करती है और यह प्रश्न उठाती है कि क्या स्त्री की कोई विशिष्ट भाषा होती है।”3 स्त्रीवादी साहित्यिक आलोचना के इसी आलोक में प्रस्तुत काव्यसंग्रह पर विचार करने की कोशिश की गई है।
'वर्किंग विमन्स हॉस्टल और अन्य कविताएँ' -
वर्ष 2022 में प्रकाशित 'वर्किंग विमन्स हॉस्टल और अन्य कविताएँ' अनामिका का दसवाँ काव्यसंग्रह है। अपने पूर्ववर्ती संग्रहों की कुछ पुरानी कविताएँ और नयी कविताएँ-भाषा-घर, 'ध' से 'धरम' और 'धमाका' , गगन में गैब निसार उरै, देखी तुम्हारी दुनिया साधो और वर्किंग विमन्स हॉस्टल, इन चार भागों में विभाजित की गई हैं। यह स्पष्ट है कि उनकी संवेदनाएँ उनके हर काव्यसंग्रह के साथ स्त्री जीवन की सूक्ष्मतर परतों की पड़ताल करती जाती हैं और सबसे सहज और साधारण जीवनानुभवों को और अधिक नज़दीकी से देखकर, एक बड़े पब्लिक 'स्पेस' में उकेरकर, उन्हें महत्त्वपूर्ण बनाकर प्रस्तुत करती हैं। जैसे वे भारतीय स्त्री जीवन के हर आयाम को भाषा में बचाए रखना चाह रही हों। ऐसा करते हुए कई जाने-पहचाने संदर्भ भी एक नए आलोक में नज़र आते हैं और एक नया और ताज़ा पहलू सामने लाते हैं। प्रियंवद इस काव्य संग्रह के संबंध में कहते हैं, "अनामिका हिन्दी की ऐसी विरल कवयित्री हैं जिनका परंपरा-बोध जितना तीक्ष्ण है, आधुनिकता-बोध भी उतना ही प्रखर। उनकी पूरी भाषिक चेतना जैसे स्मृति के रसायन से घुलकर बनती है और पीढ़ियों से नहीं, सदियों से चली आ रही परंपरा का वहन करती है। उनकी पूरी कहन में यह वहन इतना सहज-संभाव्य है कि उसे अलग से पकड़ने-पहचानने की ज़रूरत नहीं पड़ती, वह उनकी निर्मिति में नाभिनालबद्ध दिखाई पड़ता है।"4
अनामिका अपने समय की नब्ज़ को टटोलती हैं, उसके ज़रूरी मुद्दों पर प्रतिक्रिया भी समय-समय पर देती हैं और आईना इतिहास की तरफ़ करते हुए उसके समकालीन प्रतिबिंबों को शब्दों के माध्यम से साकार भी करती हैं। उनकी रचनाधर्मिता की निर्मिति स्त्रीवाद की दूसरी लहर, जो युद्ध-विरोधी आंदोलनों, नागरिक अधिकार आंदोलनों और दुनिया भर में विभिन्न अल्पसंख्यक समूहों की बढ़ती आत्मचेतना की पृष्ठभूमि में विकसित हुई,5 तीसरी लहर जिसमें ‘सार्वभौमिक स्त्रीत्व’, शरीर, लिंग, यौनिकता और विषमलैंगिकता जैसे कई पारंपरिक ढांचों को अस्थिर किया गया6 और चौथी लहर, जिसके केंद्र में यौन हिंसा, यौन उत्पीड़न, यौन शोषण, स्त्रियों का वस्तुकरण, कार्यालय में लिंगभेद के साथ-साथ सामाजिक माध्यमों में बढ़ती सक्रियता 'हैशटैग फेमिनिज़म'- तक फैली है और उसकी सैद्धांतिक बारीकियों से वे भली भांति परिचित हैं, उससे प्रेरित और प्रभावित भी हैं।7
अनामिका अपनी पहली कविता में ही भाषा की असीम ताकत को स्पष्ट करते हुए कहती है कि
"जिसके पास और कुछ नहीं होता,
उसके बटुए में
आशा होती है और भाषा भी।"8
अनामिका की भाषा जो भारतीय स्त्री भाषा के कैनन की स्थापना करने में सक्षम है, लोक से होते हुए, गली सड़कों से होकर विमर्श की भाषा का सफ़र तय करती है। जमीन की ठेठ ज़बान के प्रयोग के साथ सर्वोत्तम सौंदर्यशास्त्रीय उपकरणों से सजी अद्भुत साहित्यिक भाषा के प्रयोग से उन्होंने अपने काव्य को समृद्ध किया है। उनका मानना है कि यह भाषा पूर्वजों द्वारा दी गई जादू की पुड़िया भी है और वह अपना रूप कभी कुल्हाड़ी में तो कभी गँड़ासे में भी बदलती है। नाम पूछे तो भुक्कड़ कहती है और धर्म पूछे तो विद्रोह। बड़ी तरलता और होशियारी के साथ वे अपने सरोकारों की भूमिका स्पष्ट करती हैं।
अनामिका की कविताओं में स्त्री-विमर्श आत्मीय गर्माहट से पगी बौद्धिकता और संजीदा स्वर के साथ, धैर्य और माधुर्यपूर्ण भाषा में, समझा-बुझाने के स्वर में, समसामयिक स्थितियों से चिंतित पर उम्मीद से भरे स्वर में आता है। अलका सारावगी उनकी भाषा की प्रशस्ति में कहती हैं, “अनामिका को जिन्होंने जाना, उन्हें मालूम है कि उनकी आत्मीय गर्माहट में पगी मुस्कान के पीछे समृद्ध बौद्धिक चेतना और सशक्त संस्कारवान भाषा है। उनकी टोकरी में दिगंत है, उसे कोई सहज मुसकुराती स्वप्निल आँखों वाली स्त्री की साधारण टोकरी न समझ ले।”9
अनामिका किसी आवेग से भरी और तेज़ाबी भाषा के प्रयोग के बिना, शांतिपूर्ण तरीके से, अनुभव और ज्ञान से उपजी आत्मविश्वासपूर्ण परिपक्वता के साथ बड़े 'सटल' ढंग से, व्यंग्य और उलाहनापूर्ण स्वर में सामाजिक ढाँचे का बारीक निरीक्षण करने, संश्लिष्ट व प्रखर विश्लेषण करने और ज़रूरी सवाल उठाने की कला उन्हें अपने समय की अन्य कवयित्रियों से अलग और विशिष्ट बनाती है।
यह काव्य संग्रह समकालीन समाज, राजनीति, संस्कृति और अस्तित्व की जटिलताओं को गहरे स्तर पर छूता है। इस संग्रह में प्रेम, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और भाषा की असफलता, सांप्रदायिकता, दंगे और उनकी त्रासदियाँ, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, व्यवस्था की विफलता, नागरिकता संशोधन विधेयक जैसे समसामयिक मुद्दे, स्त्री का अस्तित्व और पहचान, मित्रता और संबंधों की ऊष्मा, घरेलू वस्तुओं की सहजता, चरित्र-चित्रण, उम्र, शहरीकरण, निद्रा, साहित्य, महामारी और मृत्यु जैसे विषयों को अत्यंत संवेदनशीलता और गहनता से 44 कविताओं में प्रस्तुत किया गया है। स्त्री से जुड़े हुए विषयों के साथ-साथ अन्य विषयों की, एक स्त्री की दृष्टि से अभिव्यक्ति भी स्त्री विमर्श के व्यापक और ‘इंटरसेक्शनल’ दायरे में समाती हैं और उसे इसी तरह देखी भी जाना चाहिए।
अनामिका अपने स्त्रीत्व को स्वीकारती हैं और अपने स्त्रीत्व का पूरी शिद्दत के साथ अनुभव करती हैं। स्त्री जीवन की हर अवस्था पर वे विचार करती हैं। कभी मैट्रिक के इम्तिहान के बाद दुल्हन फुलकारी सीखती है और सोचती है कि क्या कभी खूखांर चेहरों की क्रूरता को वह पोंछ पाएगी या फिर दिलों का मैल हटा पाएगी? वे अपने स्त्रीत्व को गहरे स्तर पर महसूस करती हैं और पूरी ईमानदारी से उसे जीती व अभिव्यक्त करती हैं। इसलिए गर्भस्थ शिशु के लिए दो लोरी गीत लिख पाती हैं।10 गर्भावस्था के उन शारीरिक अनुभवों को पूरी ममता और आत्मीयता के साथ चित्रित करती हैं लेकिन कही मातृत्व का अतिशयोक्तिपूर्ण महिमामंडन नहीं करतीं। 'दायम तेरे दर पर' कविता में किसी सामान्य-सी पुरानी दरी का चित्रण करते हुए उसे एक वृद्धा की तरह देखती हैं। स्त्रीत्व और वृद्धावस्था की दो पहचानों को लिए आम तौर पर समाज में उपेक्षित और नाकाम समझी जाने वाली स्त्री को वे केंद्र में लाती हैं –
"नयी-नयी माओं को
जब पढ़ने होते हैं
सेमिनार में पर्चे
पीली-सी साटन की फलिया पर
छोड़ जाती हैं ये बच्चे
सभागार की इस
दादी दरी के भरोसे।"11
स्त्री की रोजमर्रा की दिनचर्या की एक सच्चाई, कल्पना और सामान्य बिंबों का एक रोचक मिलाप इस कविता में किया गया है।
अनामिका अपनी कविताओं में केवल स्त्री के सशक्तिकरण की बात नहीं करतीं, बल्कि समाज में एक नए पुरुष के जन्म की परिकल्पना भी प्रस्तुत करती हैं-एक ऐसा पुरुष जो संवेदनशील हो, जो पितृसत्ता की रूढ़ियों से मुक्त हो और जिसकी दृष्टि अधिक सम्यक हो। स्त्री विमर्श केवल स्त्रियों की स्वतंत्रता और समानता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पुरुषों की संवेदनाओं के परिष्कार और सामाजिक संतुलन की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। ‘कोख’ कविता में वे कहती हैं –
"जनम ले रहा है एक नया पुरुष
मेरे पातालों से-
नया पुरुष जो कि अतिपुरुष नहीं होगा-
क्रोध और कामना के अतिरेकी पेचिश से पीड़ित,
स्वस्थ होंगी धमनियाँ उसकी
और दृष्टि सम्यक-
अतिरेकी पुरुषों की भाषा नहीं बोलेगा-
स्नेह-सम्मान-विरत चूमा-चाटी वाली भाषा,
बंदूक-बम-थप्पड़-घुड़की-लाठी वाली भाषा,
मेरे इन उन्नत पहाड़ों से
फूटेगी जब दुधैली रोशनी,
यह पियेगा!
अंधियारा इस जग का
अंजन बन इसकी आँखों में सजेगा,
झूलेगी अब पूरी कायनात झूले-सी
फिर धीरे-धीरे खड़ा होगा एक नया पुरुष"12
यह नया पुरुष अनामिका की कविताओं में अभिव्यक्त होता है - 'धर्मचिंतन बाई बाई' कविता में वह अपनी माँ की चिंता को समझता है, तो कभी ‘मेकअप मैन’ शौकत अली बनकर अपनी प्रेमिका के पति को पत्र लिखता है।13 ये दोनों कविताएँ एक निजी नोट पर शुरू तो होती हैं लेकिन उनका अंत एक गंभीर सामाजिक और राजनीतिक सवाल में होता है। 'धर्मचिंतन बाई बाई' कविता एक माँ के प्रतीक्षा-भाव से शुरू होती है जो अपने बेटे की राह तक रही है, उसके सुरक्षित लौटने की प्रार्थना कर रही है। माँ की यह व्यक्तिगत चिंता धीरे-धीरे एक व्यापक सामाजिक और राजनीतिक प्रश्न में बदल जाती है। यह प्रतीक्षा उन माताओं की प्रतीक्षा बन जाती है, जो सांप्रदायिक दंगों और हिंसा से ग्रस्त इलाकों में अपने बच्चों के लौटने का इंतज़ार कर रही हैं। यह जैसे स्त्रीवाद की दूसरी लहर में उभरे कैरोलीन हैनिश के 'पर्सनल इज पोलिटिकल' का मूर्त रूप है। वे कहती हैं –
"एक तरफ़ तो बम फोडता है धरम
और दूसरी ओर बंधता है गंडे-ताबीज
पढ़ता है रक्षा स्तोत्र
क्या धर्म जुड़वा हुआ था
अपनी माँ के गर्भ से पैदा
राम-श्याम, सीता और गीता
जैकल हाईड: एक भाई महानिरीह
और एक खूंखार-सा हिटलरी?
चलो खुल गई ट्रैफिक लाईट
धर्मचिंतन बाई बाई"14
अनामिका ने मिथकों को आधुनिक संदर्भ में दार्शनिकता के साथ चित्रित करने की सर्जनात्मक और विद्वत्तापूर्ण कोशिश की है। उन्होंने यह कल्पना की है कि कुछ लड़कियाँ, भक्त कवियत्रियाँ, देवियाँ और दस-दस महाविद्याएँ एक वर्किंग विमन्स हॉस्टल में रह रहीं है। अनामिका का यह काव्य-संग्रह पौराणिक और ऐतिहासिक स्त्रियों को एक नए दृष्टिकोण से देखने और उन्हें वर्तमान संदर्भों में पुनर्परिभाषित करने का एक सशक्त प्रयास है। साहित्य में स्त्रियों द्वारा मिथकों का प्रयोग हमेशा से महत्त्वपूर्ण रहा है, क्योंकि मिथक केवल अतीत की कहानियाँ नहीं, बल्कि सत्ता संरचनाओं, समाज की मानसिकता और स्त्री-अस्तित्व की गहराइयों को समझने के उपकरण रहे हैं। जब अनामिका सरस्वती, काली, तारा, मातंगी जैसी देवियों को मीरा, जनाबाई और महाश्वेता देवी के साथ एक वर्किंग विमन्स हॉस्टल में रखती हैं, तो वे केवल कल्पना का विस्तार नहीं कर रहीं, बल्कि इतिहास और वर्तमान के बीच एक संवाद स्थापित कर रही हैं। वे इन स्त्रियों को न केवल उनकी प्रतीकात्मक शक्ति में देखती हैं, बल्कि उनके संघर्षों, उनके भीतर के द्वंद्व, उनकी सीमाओं और उनकी संभावनाओं को भी उजागर करती हैं। पितृसत्तात्मक संरचना ने अकसर स्त्रियों को या तो देवी के रूप में महिमामंडित किया है, या फिर उन्हें त्याग, बलिदान और समर्पण की मूर्ति बना दिया है, लेकिन अनामिका अपनी कविता में इन विभाजनों को ध्वस्त कर देती हैं। वे पौराणिक और साहित्यिक स्त्री-चरित्रों को धरती पर ले आती हैं, उन्हें मनुष्य बनाकर उनकी इच्छाओं, उनकी सीमाओं और उनकी स्वतंत्रता की खोज के प्रश्नों को उठाती हैं।
यह सृजनात्मक प्रक्रिया केवल ऐतिहासिक या साहित्यिक व्याख्या नहीं, बल्कि एक गहरे बहनापे की स्थापना भी है। जब देवी और साहित्यिक स्त्रियाँ एक साथ एक हॉस्टल में रहती हैं, तो वे अपने अनुभव साझा करती हैं, वे अपने दुख-सुख को एक-दूसरे के साथ बाँटती हैं, वे अपने अस्तित्व के बारे में सवाल उठाती हैं और एक-दूसरे में अपनी छवि को खोजने की कोशिश करती हैं। फिर चाहे वह प्रेम करने का हौसला चाहने वाली अभिरूपा हो, इंटरव्यू की हिकारतों से थकी हारी कोई, रंगों की नदी का बिंब उपस्थित करती कला के रूप में बहती सरस्वती, या जनाबाई जिसके एसायनमेंट पड़े हुए हैं, कंप्यूटर हैंग हो गया है, कपड़े भी समेटने है। जनाबाई तब माधव से कहती है-
"हे माधव कैलेंडर से झांकते रहते हो दिनभर, छोह नहीं दोता तुम्हे
माई के बेजे हुए हो
हाथ बडा दो जरा-सा
या फिर तुम हेर दो जुए ही जरा
कुछ तो करो, कुछ करो
ऐसे तो टुकुर-टुकुर मत देखो"15
वे बात करती हैं अण्डाल की, अक्क महादेवी की, सीता की जिसकी कविता का विस्तार उन्होंने अपने उपन्यास ‘तृण धरी ओट’ में किया है, अथवा दस महाविद्याएँ। उनके बीच का यह संवाद स्त्रीवादी चेतना को समृद्ध करता है। वह दर्शाता है कि कैसे सदियों से स्त्रियों के अनुभव एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, भले ही वे किसी पौराणिक काल की देवी हों या आधुनिक युग की लेखिका। अनामिका की यह कल्पना केवल एक साहित्यिक प्रयोग नहीं, बल्कि स्त्रीवादी इतिहास की पुनर्रचना है, जहाँ हर स्त्री, चाहे वह भक्त कवयित्री हो, चाहे विद्रोही लेखिका या फिर कोई मिथकीय शक्ति, वे सब एक साथ आती हैं और अपने अनुभवों को साझा करते हुए पितृसत्तात्मक सत्ता संरचनाओं पर सवाल खड़ा करती हैं। यह दृष्टिकोण न केवल स्त्रियों के बीच बहनापे की भावना को प्रकट करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि स्त्रियाँ जब संवाद में आती हैं, तो वे केवल अपनी कहानियाँ नहीं सुनातीं, बल्कि एक-दूसरे को सम्बल भी देती हैं, संघर्ष के नए अर्थ तलाशती हैं और अपने अस्तित्व को एक साझा चेतना के रूप में महसूस करती हैं। अनामिका का यह काव्य संसार स्त्रीवादी पुनर्लेखन का एक सुंदर उदाहरण है। वह बताता है कि कैसे मिथक, इतिहास और समकालीन स्त्री अनुभव एक विषय के साथ शिल्प और शैली के स्तर पर भी एक प्रखर साहित्यिक टूल बनकर उभरता है।
निष्कर्ष : प्रस्तुत काव्य संग्रह को केवल एक साहित्यिक कृति के रूप में देखना पर्याप्त नहीं होगा। यह एक वैचारिक आंदोलन है, जो न केवल स्त्री के अनुभवों को केंद्र में लाता है, बल्कि समाज की संरचनाओं को चुनौती देने और पुनर्परिभाषित करने का भी प्रयास करता है। अनामिका का यह काव्य संसार स्त्रीवादी दृष्टिकोण, मिथकों के पुनर्लेखन, भाषा की शक्ति और समाज के विभिन्न आयामों को एक साथ समेटे हुए है, जो हिन्दी साहित्य में स्त्री विमर्श की एक नई परिभाषा रचता है।
अनामिका का काव्य-संसार, विशेषतः वर्किंग विमन्स हॉस्टल और अन्य कविताएँ, हिन्दी कविता में स्त्रीवादी हस्तक्षेप का एक सशक्त उदाहरण है। यह संग्रह न केवल स्त्री अनुभवों को केंद्र में रखता है, बल्कि मिथकों, इतिहास और वर्तमान के बीच एक संवाद स्थापित कर, पितृसत्तात्मक संरचनाओं को चुनौती देता है। कवयित्री की दृष्टि निजी जीवन से लेकर सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्यों तक फैली हुई है, जिसमें स्त्री का अस्तित्व, पहचान, संवेदनाएँ और संघर्ष व्यापक परिप्रेक्ष्य में व्यक्त होते हैं। अनामिका ने अपने काव्य में भाषा को सृजनात्मक और प्रतिरोधात्मक दोनों रूपों में प्रयोग कर, लोक और शास्त्र, व्यंग्य और माधुर्य, अनुभव और विमर्श-सभी को एक साथ पिरोया है।
यह कृति स्त्रीवादी पुनर्लेखन और बहनापे की भावना के माध्यम से यह सिद्ध करती है कि साहित्य सामाजिक परिवर्तन का सशक्त साधन बन सकता है। अनामिका का काव्य, स्त्री विमर्श को केवल स्त्री की स्वतंत्रता और अधिकार तक सीमित नहीं रखता, बल्कि समाज में एक संवेदनशील और संतुलित मानवीय दृष्टिकोण के निर्माण की संभावना को भी उद्घाटित करता है। इस प्रकार, यह संग्रह हिन्दी साहित्य में स्त्रीवादी रचनात्मकता और आलोचना की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण और स्थायी योगदान प्रस्तुत करता है।
संदर्भ :
- Ania Malinowska,Waves of Feminism,The International Encyclopedia of Gender, Media and Communication, 2020, Pg.1-7
- सुजाता,2022, दुनिया में औरत: स्त्री संघर्षों का वैश्विक परिदृष्य, राजपाल एण्ड सन्ज़, नई दिल्ली, पृ.13
- Peter Barry,2018,Beginning Theory An Introduction to Literary and Cultural Theory,Viva Books Private Limited, New Delhi, Page No. 135-136
- अनामिका: वर्किंग विमेंस हॉस्टल, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, 2022, फ़्लैप से
- Michael McDonough: second wave of feminism,www.britannica.com, <Second wave of feminism | Definition, Goals, Accomplishments, Leaders, & Facts | Britannica> 05 June 2025, 8.30 pm.
- M.H.A. Karim, A.A. Azlan: Modernism and Post-Modernism in feminism: A conceptual Study on the development of its definition,waves and school of thought, Malaysian Journal of Social Sciences and Humanities, 2019, Pg.1-4
- Julia Castanier:Defining Fourth Wave Feminism, University of Washington Tacoma Sociology Students Work Collection, 2022, <"Defining 4th Wave Feminism" by Julia Castanier> 10 June 2025, 10 a.m.
- अनामिका : वर्किंग विमेंस हॉस्टल और अन्य कविताएँ, वाणी प्रकाशन,नई दिल्ली,2022, पृ.13
- वहीं, पृ.1
- वहीं, पृ.37
- वहीं, पृ.58
- वहीं, पृ.40
- वहीं, पृ.59-61
- वहीं, पृ.23-24
- वहीं, पृ.92
ममता दीपक वेर्लेकर
शोधार्थी, शणै गोंयबाब भाषा एवं साहित्य महाशाला, हिंदी अध्ययन शाखा, गोवा विश्वविद्यालय, तालिगांव पठार, गोवा, 403206
mamata@unigoa.ac.in, 7499129281
बिपिन तिवारी
सहायक प्राध्यापक, शणै गोंयबाब भाषा एवं साहित्य महाशाला, हिंदी अध्ययन शाखा, गोवा विश्वविद्यालय, तालिगांव पठार, गोवा, 403206
bipin.tiwari@unigoa.ac.in, 91305 70121
अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-61, जुलाई-सितम्बर 2025
सम्पादक माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन दीपिका माली
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