शोध आलेख : हेमा उपाध्याय : शहरीय कला में नवमाध्यमवादी प्रयोग / पवन यादव

हेमा उपाध्याय : शहरीय कला में नवमाध्यमवादी प्रयोग 
- पवन यादव

शोध सार : हेमा उपाध्याय समकालीन भारतीय कला की एक अग्रणी कलाकार थीं, जिन्होंने पारंपरिक कलात्मक सीमाओं को तोड़ते हुए नवमाध्यम कला (New Media Art) को अपनाया। मिश्रित माध्यमों के उनके अभिनव उपयोग के लिए वह विशेष रूप से जानी जाती थीं। उनकी कलाकृतियाँ प्रवासन, शहरीकरण, पहचान और स्मृति जैसे सामाजिक रूप से महत्त्वपूर्ण विषयों को गहराई से उजागर करती हैं। हेमा ने डिजिटल फोटोग्राफी, वीडियो आर्ट, इंस्टॉलेशन और पुनर्चक्रित (recycled) सामग्री का प्रयोग करते हुए अपने समय की सामाजिक जटिलताओं को रचनात्मक रूप से प्रस्तुत किया। उनकी रचनाओं में न केवल सौंदर्यशास्त्र की गहराई दिखाई देती है, बल्कि वे समाज और राजनीति से जुड़े मुद्दों पर विमर्श को भी प्रेरित करती हैं। उनकी कला का प्रभावशाली दृष्टिकोण और भावनात्मक गहराई उनके कार्यों को न सिर्फ प्रासंगिक बनाती है, बल्कि दर्शकों को भी संवेदनशील बनाती हैं। यह लेख नवमाध्यमवादी कला में हेमा उपाध्याय की भूमिका का विश्लेषण करता है— जिसमें उनके अद्वितीय दृष्टिकोण, विचारोत्तेजक कृतियों और समकालीन भारतीय कला पर उनके स्थायी प्रभाव की विस्तृत विवेचना की गई है। इस अध्ययन में उनके कार्यों पर आधारित प्रकाशित लेखों, समाचार रिपोर्टों, वीडियो साक्षात्कारों और कला गैलरियों द्वारा प्रकाशित कैटलॉग का उपयोग किया गया है, जिससे उनके रचनात्मक योगदान की व्यापक समझ प्राप्त होती है।

बीज शब्द : न्यू मिडिया कला, हेमा उपाध्याय, प्रवासन, शहरीकरण, इंस्टॉलेशन कला, शहरीय जीवन।

मूल आलेख : हेमा उपाध्याय (1972-2015) एक भारतीय दृश्य कलाकार थीं, जो अपनी फोटोग्राफी, इंस्टॉलेशन कला और मिक्स-मीडिया कार्यों के लिए जानी जाती थीं, यह अपने कार्यों द्वारा शहर में प्रवास, शहरीय विकास और सामाजिक-आर्थिक विषयों की खोज करती थीं।[1] 18 मई, 1972 को गुजरात के वडोदरा में हेमा हिरानी का जन्म हुआ। इनकी शैक्षिक यात्रा महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय बड़ौदा से शुरू हुई, जहाँ उन्होंने 1995 में चित्रकला में बैचलर ऑफ़ फाइन आर्ट्स (BFA) की डिग्री हासिल की।[2] ​​उन्होंने उसी विश्वविद्यालय में अपनी पढ़ाई जारी रखी, 1997 में प्रिंटमेकिंग में मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट्स (MFA) अर्जित किया।[3] विश्वविद्यालय में उपाध्याय अधिकतर कलात्मक दृष्टि और कला के प्रति दृष्टिकोण को आकार देने में उलझी रहती थी। यहाँ से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, 1998 में साथी कलाकार चिंतन उपाध्याय से शादी की और अपना विवाहित नाम अपनाया।[4] हेमा उपाध्याय अपने पति के साथ मुंबई चली गईं, जहाँ उन्होंने एक कलाकार के रूप में अपना करियर स्थापित किया।[5] उनके शुरुआती कार्यों में अक्सर फोटोग्राफिक स्व-चित्र शामिल होते थे जिसमें ‘अलगाव और पहचान’ के विषयों का पता लगाया जाता हैं। उनकी पहली एकल प्रदर्शनी, "स्वीट स्वेट मेमोरीज़", 2001 में मुंबई के गैलरी केमोल्ड में आयोजित की गई थी।[6] इस प्रदर्शनी में कागज पर मिश्रित मीडिया कार्यों को प्रदर्शित किया गया था, जो उनके प्रवासन के अनुभवों और एक नए शहर में अनुकूलन की चुनौतियों को दर्शाता है।

विषय-वस्तु एवं रूपांकन : मुंबई में तेजी से हो रहे शहरीकरण के विस्तार पर हेमा उपाध्याय की तीव्र और संवेदनशील टिप्पणियाँ उनके कलात्मक कार्यों में स्पष्ट रूप से प्रकट होती हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से इस प्रकार के विकास के साथ जुड़ी सामाजिक-आर्थिक असमानताओं, पर्यावरणीय गिरावट और मानवीय अस्तित्व की जटिलताओं की गहन आलोचना प्रस्तुत की। उनकी स्थापनात्मक कलाकृतियाँ प्रायः शहर की अनौपचारिक बस्तियों—झुग्गियों और मलिन बस्तियों—का यथार्थपरक पुनर्निर्माण करती थीं, जो दर्शकों को इसके निवासियों की कठोर जीवन-यात्रा और संघर्षों पर गहराई से विचार करने के लिए प्रेरित करती थीं।

यही वह बिंदु है जहाँ हेमा उपाध्याय, नवमाध्यमवादी (New Media) कला की क्षेत्र में अपनी विशिष्टता स्थापित करती हैं। उन्होंने अपनी कला में बहुआयामी और प्रयोगधर्मी दृष्टिकोण अपनाते हुए प्रवासन, शहरीकरण, पहचान, वर्ग विभाजन और स्त्री-जीवन जैसे जटिल और समकालीन विषयों की पड़ताल की। यह विषयवस्तु न केवल व्यक्तिगत अनुभवों से उपजी है, बल्कि वह समकालीन भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को भी मुखर रूप से प्रतिबिंबित करती है। उपाध्याय की कलात्मक भाषा में स्थापनाएं, वस्तु-कला (object art), और मिश्रित माध्यमों का ऐसा संयोजन दिखता है, जो उनके विचारों की गहराई और उनकी संवेदनशीलता को प्रभावी ढंग से संप्रेषित करता है। इसी कारणवश, वह नवमाध्यमवादी भारतीय कला में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण और प्रभावशाली हस्ती के रूप में जानी जाती हैं। उनके कलाकर्मों में सबसे प्रमुख और स्थायी विषय ‘प्रवास और विस्थापन’ है। बड़ौदा से मुंबई तक की उनकी व्यक्तिगत यात्रा और उस प्रवास में प्राप्त अनुभवों ने उनकी रचनात्मक दृष्टि को गहराई और दिशा प्रदान की। वह बार-बार उन सामाजिक समूहों के संघर्ष, अस्थिरता और मानसिक उथल-पुथल का चित्रण करती रहीं, जिन्हें बेहतर जीवन की तलाश में अपने मूल स्थानों से पलायन करना पड़ता है। उनकी कला में यह संवेदना अत्यंत मानवीय और मार्मिक रूप में प्रस्तुत होती है।

उनके 2005 के प्रतिष्ठित इंस्टाॅलेशन “लोको-फोको मोटो” में, उपाध्याय ने रोजमर्रा की वस्तुओं, पुनर्नवीनीकरण (Recycled) सामग्री और लघु स्थापत्य संरचनाओं के माध्यम से शहरीय मलिन बस्तियों का एक अराजक, जटिल किंतु मार्मिक दृश्य प्रस्तुत किया। यह कृति तेजी से फैलते महानगर में प्रवासियों के क्षणिक, अनिश्चित और अस्थिर अस्तित्व का प्रतीक बन गई है। इस कृति के माध्यम से उन्होंने शहरी विकास की उस कठोर सच्चाई को उजागर किया जिसमें हाशिये पर जीते लोग अक्सर अदृश्य रह जाते हैं। हेमा उपाध्याय का समग्र कलाकर्म न केवल सौंदर्यात्मक रूप से समृद्ध है, बल्कि यह सामाजिक यथार्थ की चीर-फाड़ भी करता है। वह अपनी कला के माध्यम से दर्शकों को सोचने, महसूस करने और प्रतिक्रिया देने के लिए मजबूर करती हैं—जो किसी भी कलाकार की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है।[7]


Figure 1 हेमा उपाध्याय, शीर्षक- लोको फोको मोटो, माध्यम- माचिस, चिपकने वाला पदार्थ, प्लाईवुड, आयाम- 183 x 152 सेमी (72 x 60 इंच, वजन- 136 किलोग्राम, स्थान- एबरडीन सेंटर, रिचमंड आर्ट गैलरी, सरे आर्ट गैलरी

उनकी कृति " 8’x12’ " मुंबई के धारावी में एक झुग्गी घर के औसत आकार का प्रतीक है, जिसे अब दुनिया की सबसे बड़ी झुग्गियों में से एक माना जाता है। इस स्थापन में एल्युमिनियम शीट, कार स्क्रैप, इनेमल पेंट, तिरपाल, सस्ते प्लास्टिक, धातु के टुकड़े और अन्य वस्तुएँ शामिल हैं, जिन्हें कलाकार ने धारावी क्षेत्र से एकत्र किया है। इन सामग्रियों को जोड़कर चमकदार और बहुरंगी छोटे घरों की संरचना बनाई गई है। लगभग नौ वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में निर्मित यह स्थापना एक घेरा बनाती है, जो दर्शकों को भीतर आने और झुग्गी की इस उच्च घनत्व वाली संरचना से उत्पन्न संकीर्णता और घुटनभरी भावना को अनुभव करने के लिए आमंत्रित करती है। इसे हवाई दृश्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे झुग्गी की लगातार फैलती घनी बस्तियों की अनिश्चितता, उसकी भेद्यता और संभावित खतरों को उजागर किया गया है। लेकिन साथ ही, यह इसकी उत्पादक और रचनात्मक ऊर्जा को भी दर्शाती है, जो जीविका और अस्तित्व का प्रतीक है।[8] इस स्थापना ने न केवल शहर के घनत्व और जटिलता को प्रदर्शित किया, बल्कि अनियंत्रित शहरीय विकास से उत्पन्न पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों को भी उजागर किया। जो कला में ‘पहचान और अपनापन’ के विषयो पर केंद्रीय हैं। उन्होंने अपने अनुभवों और भारतीय समाज के व्यापक संदर्भ के माध्यम से इन अवधारणाओं की खोज की। जो उनकी कृतियों में अक्सर तेजी से बदलती दुनिया में पहचान की धारणा पर प्रश्न उठाती हैं, जहाँ पारंपरिक मूल्यों और जीवन शैली को आधुनिक प्रभावों द्वारा लगातार चुनौती दी जा रही है।


Figure 2 हेमा उपाध्याय, शीर्षक- 8’x 12’, माध्यम- एल्युमीनियम शीट्स, कार स्क्रैप, एनामेल पेंट, प्लास्टिक शीट्स, फाउंड ऑब्जेक्ट्स, म-सील, रेसिन एंड हार्डवेयर मटेरियल.

हेमा उपाध्याय की 2008 में निर्मित प्रमुख कला- शृंखला "जहाँ मधुमक्खियां चूसती हैं, वहाँ मैं चूसती हूं" में उन्होंने मिली-जुली सामग्रियों (found objects) और मिश्रित माध्यमों (mixed media) का सृजनात्मक उपयोग करते हुए जटिल, बहुस्तरीय रचनाएं प्रस्तुत कीं। यह कृतियाँ व्यक्तिगत और सामूहिक पहचान के मध्य जटिल अंतर्संबंधों को गहराई से उजागर करती हैं। उनके द्वारा उपयोग की गई वस्तुएं—जैसे घरेलू सामग्री, औद्योगिक वस्तुएं और पुनर्प्रयुक्त वस्तुएं—न केवल उनकी कलाकृतियों को ठोस और स्पर्शनीय बनाती हैं, बल्कि सामाजिक संदर्भों जैसे विस्थापन, शहरीकरण और आत्म-पहचान जैसे मुद्दों को भी सशक्त रूप से अभिव्यक्त करती हैं।

हेमा उपाध्याय की कला की एक विशिष्ट विशेषता यह है कि वे दृश्य कथाओं को बनाने के लिए फोटोमोंटाज का उपयोग करती थीं—विभिन्न स्रोतों से प्राप्त छवियों को संयोजित कर वे ऐसे दृश्य संसार रचती थीं जो समकालीन शहरी जीवन की जटिलता, विखंडन और बहुपरतीय प्रकृति को दर्शाते हैं। उनकी रचनाएं केवल रूप या माध्यम की खोज नहीं थीं, बल्कि उनके पीछे एक सशक्त वैचारिक दृष्टिकोण भी था, जो अक्सर प्रवास, स्त्री-अस्मिता और सांस्कृतिक विस्थापन जैसे मुद्दों से गहराई से जुड़ा होता था।

जैसा कि विख्यात क्यूरेटर मार्को मेनेगुज़ो ने टिप्पणी की: “रचनात्मक यथार्थ को सरल और 'लोकप्रिय' रूप में प्रस्तुत करने की जो क्षमता थी, वह उपाध्याय की सबसे विशिष्ट विशेषताओं में से एक थी, और यह उनके समस्त कार्य में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है।”[8] उनकी कृतियाँ आज भी कलाकारों को प्रेरित और प्रभावित करती हैं, उन्हें अपनी रचनात्मक अभिव्यक्तियों में समकालीन विषयों से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।


Figure 3 हेमा उपाध्याय, शीर्षक- वेयर द बीज सक, देयर ई सक. माध्यम- मिक्स्ड-मीडिया इंस्टाॅलेशन, डाइमेंशन्स वेरिएबल.

उपाध्याय ने “इनिशिएर्ट पत्रिका” से बातचीत में बताया कि वे अपने काम को एक समग्र नजरिए से देखती हैं। उनका मानना है कि एक विचार से दूसरा विचार निकलता है, और यही प्रक्रिया उनके कला कार्यों को दिशा देती है। वे केवल किसी विषय के बाहरी या भौतिक पहलू को नहीं देखती, बल्कि उसका मानसिक और भावनात्मक प्रभाव भी समझने की कोशिश करती हैं। उनके अनुसार, कोई भी दृश्य या परिदृश्य— जैसे कि एक शहर का वातावरण या वहाँ की हलचल—किस तरह से लोगों के मन पर असर डालता है, यह भी उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है।

उन्होंने एक उदाहरण के रूप में अपनी एक नई स्थापना कला "ट्विन सोल्स (2010)" का ज़िक्र किया। उन्होंने बताया कि इस स्थापना में उन्होंने गोल घेरे में उड़ते हुए पक्षियों जैसे 60 खिलौनों को शामिल किया है। ये पक्षी लगातार गोल-गोल घूमते रहते हैं। आम तौर पर, जब जानवर ऐसी असामान्य हरकतें करते हैं तो उसे एक बीमारी माना जाता है—जैसे जानवरों का पागलपन। ज़्यादातर बार, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जानवर किसी नए माहौल में खुद को ढाल नहीं पाते।


Figure 4 हेमा उपाध्याय, ट्विन सोल्स, इंस्टाॅलेशन, 2010.

उपाध्याय इस ‘हरकत’ या व्यवहार को एक प्रतीक के रूप में देखते हैं और इसे मनुष्यों की समस्याओं से जोड़ते हैं। जैसे शहरों में रहने वाले लोगों को अक्सर क्लॉस्ट्रोफोबिया (बंद जगहों में घुटन महसूस होना) या सिज़ोफ्रेनिया (एक गंभीर मानसिक बीमारी) जैसी समस्याएं हो जाती हैं। वे कहते हैं कि जिस तरह जानवर नया वातावरण सहन नहीं कर पाते, उसी तरह शहरों का तनावपूर्ण और जटिल जीवन भी इंसानों को मानसिक रूप से परेशान कर सकता है।[9] इस तरह, उपाध्याय की कला केवल सुंदरता या तकनीक नहीं दिखाती, बल्कि समाज में मौजूद मानसिक तनाव, जीवन की जटिलता और मानवीय अनुभवों को भी दर्शाती है।

नवमाध्यमवादी प्रयोग : नवमाध्यमवादी कला में हेमा उपाध्याय का योगदान उनकी नवीन तकनीकों और गहन आख्यानों को व्यक्त करने के लिए अपरंपरागत सामग्रियों के उपयोग से जाना जाता है। उनकी कला पारंपरिक सीमाओं को पार करती है, मिश्रित मीडिया और इंस्टॉलेशन कला के प्रति उनके अद्वितीय दृष्टिकोण के माध्यम से समकालीन कला पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

मिश्रित मीडिया इंस्टॉलेशन, उपाध्याय की सबसे उल्लेखनीय तकनीकों में से एक रहा है। इनसे बड़े पैमाने पर किये गए कार्यों में अक्सर पाई जाने वाली वस्तुएं, रोजमर्रा की सामग्री और औद्योगिक तत्व शामिल होते हैं, जिससे एक ऐसा गहन वातावरण बनता है जो दर्शकों को कई स्तरों पर संलग्न करता है। उदाहरण के लिए, अपने इंस्टाॅलेशन "लोको-फ़ोको मोटो" (2005) में, उपाध्याय ने शहरी जीवन का एक अराजक लेकिन मनोरम प्रतिनिधित्व बनाने के लिए शहरी मलिन बस्तियों से फेंकी गई सामग्रियों का उपयोग किया। इस कार्य ने न केवल हाशिए पर रहने वाले समुदायों के संघर्षों को उजागर किया बल्कि इन परिस्थितियों में रहने वाले लोगों के लचीलेपन और सरलता पर भी जोर दिया।[11] इनकी नवमाध्यमवादी प्रयोग में फोटोमोंटाज और लेयरिंग तकनीक भी शामिल हैं जिसके अभिनव उपयोग से इन्होंने जटिल दृश्य कथाएं बनाने का रास्ता निकला जो समकालीन शहरीय जीवन की खंडित प्रकृति को दर्शाता है। फोटोमोंटेज और लेयरिंग तकनीक में, विभिन्न स्रोतों से तस्वीरों को मिलाकर, उपाध्याय ने जटिल रचनाओं का निर्माण किया जिसमें प्रवासन एवं शहरीकरण की पहचान और बहुमुखी अनुभव व्यक्त होता हैं। उनका कार्य "मॉडर्निज़नेशन" (2010) पारंपरिक समुदायों पर तेजी से शहरीकरण के प्रभाव को चित्रित करने के लिए फोटोमोंटेज का उपयोग करके इस तकनीक का उदाहरण प्रस्तुत की थी। इस कार्य में स्तरित छवियां गहराई और जटिलता की भावना पैदा करती हैं, जो दर्शकों को अतीत और वर्तमान, के आधुनिक अंतर्संबंधों का पता लगाने के लिए आमंत्रित करती हैं। जिनमें मिली हुई वस्तुएं और रोजमर्रा की सामग्रियां उपाध्याय के कलात्मक अभ्यास की एक पहचान बन जाती है जो उनके कार्यों में पाई गई वस्तुओं और रोजमर्रा की सामग्रियों को शामिल करती है।

इस दृष्टिकोण ने न केवल हेमा उपाध्याय की स्थापत्य कृतियों में एक स्पर्शगम्य और गहराई लिए हुए गुणवत्ता को जोड़ा, बल्कि उनके द्वारा उठाए गए विस्थापन और शहरीकरण जैसे विषयों को भी प्रभावशाली रूप से उकेरा। उनकी मूर्तिकला में अक्सर शहरी परिदृश्य के लघु मॉडल देखने को मिलते हैं, जिन्हें सावधानीपूर्वक एकत्रित की गई वस्तुओं और औद्योगिक सामग्रियों से निर्मित किया गया होता है। इन रचनाओं में शहरी जीवन की अराजकता और घनी आबादी के बीच की जटिल संरचनाएं एक विस्तृत और विहंगम दृष्टिकोण के माध्यम से प्रस्तुत होती हैं।

उनकी प्रसिद्ध कृति “ड्रीम अ विश, विश अ ड्रीम” को उनकी सबसे उल्लेखनीय कृतियों में गिना जा सकता है। यह रचना दर्शकों को कई असहज, परंतु ज़रूरी सवालों से रूबरू कराती है — जैसे कि विमान में उड़ते हुए लोग ज़मीन पर रहने वालों को कैसे देखते हैं? झोपड़ियों और गगनचुंबी इमारतों, मस्जिदों और मंदिरों, खेल के मैदानों और नालों के बीच किस प्रकार की संवाद की संभावनाएं उत्पन्न होती हैं? यूटोपिया (आदर्श समाज) और डायस्टोपिया (दुःस्वप्न समान समाज) की परिभाषाएँ कहां एक-दूसरे में विलीन होती हैं? (ध्यान देने योग्य है कि ‘यूटोपिया’ का अर्थ होता है या तो कोई काल्पनिक स्थान, या फिर एक आदर्श स्थान, जबकि ‘डायस्टोपिया’ वह काल्पनिक दुनिया है जहाँ सब कुछ विकृत और असंगत हो।) अंततः, यह प्रश्न उठता है कि हम उन विरोधाभासी दुनियाओं को एक साथ कैसे समायोजित करें जो अक्सर एक-दूसरे को बाधित करती हैं और नकार देती हैं?[12]

हेमा उपाध्याय के कार्यों में महत्वाकांक्षी प्रवासी अक्सर केंद्रीय पात्र होते हैं — वे इमारतों पर चढ़ते हैं, अपने घर की कामना करते हैं, और तेजी से सिकुड़ते हुए शहरी विस्तार को आश्चर्य और पीड़ा से देखते हैं। उनकी कला न केवल तेज़ी से फैलते शहरीकरण की पर्यावरणीय और सामाजिक जटिलताओं को रेखांकित करती है, बल्कि वह उस मानवीय संघर्ष को भी दर्शाती है जो लगातार बदलते शहरों की भीड़भाड़ और असमानता में खो जाता है।

निष्कर्ष : शहरी कला में हेमा उपाध्याय के नवमाध्यमवादी प्रयोग समकालीन भारतीय कला परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ते हैं। मिश्रित माध्यमों, डिजिटल तकनीकों और इमर्सिव इंस्टॉलेशनों के उनके अभिनव उपयोग ने कलात्मक अभिव्यक्ति की पारंपरिक सीमाओं को चुनौती दी और उन्हें पुनर्परिभाषित किया। उनकी कृतियाँ शहरी जीवन, प्रवासन और पहचान की जटिलताओं पर गहन टिप्पणी प्रस्तुत करती हैं।

हेमा उपाध्याय का कार्य न केवल अपनी सौंदर्यात्मक गुणवत्ता के लिए महत्त्वपूर्ण है, बल्कि इसलिए भी कि वह सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों को केन्द्र में रखता है। पारंपरिक एवं समकालीन तकनीकों के मेल के माध्यम से वे उन आवाज़ों को मंच देती हैं जो अक्सर समाज के हाशिये पर रह जाती हैं। सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और संवेदनशील दृष्टिकोण ने कई नवोदित कलाकारों को प्रेरित किया है कि वे अपनी कला के माध्यम से सामाजिक यथार्थ को टटोलें और कलात्मक अभिव्यक्ति की सीमाओं को विस्तारित करती थी। उनकी विरासत मात्र तकनीकी नवाचारों तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें उनकी यह दृढ़ प्रतिबद्धता भी सम्मिलित है कि कला एक सशक्त माध्यम बन सकती है— एक ऐसी दुनिया की कल्पना और निर्माण के लिए, जो अधिक न्यायसंगत, समावेशी और करुणामय हो। हेमा उपाध्याय की कलात्मक यात्रा हमें यह स्मरण कराती है कि रचनात्मकता और सहानुभूति, परिवर्तनशील समाज के निर्माण में केंद्रीय भूमिका निभा सकते हैं।

सन्दर्भ :
  1. https://www.artnet.com/artists/hema-upadhyay/
  2. mapacademy. 'Hema Upadhyay', April 21, 2022. https://mapacademy.io/article/hema-upadhyay/
  3. A sianArtNews, Volume 18, 2008.page no.24. https://books.google.com/books/about/AsianArtNews.html?id=NFQYAQAAMAAJ
  4. Lalit Kala Akademi, 'National Exhibition of Art', Volume 43, 2000. page no 47.
  5. https://www.saffronart.com/artists/hema--upadhyay
  6. mapacademy. ‘Hema Upadhyay’ April 21, 2022. https://mapacademy.io/article/hema-upadhyay/
  7. https://khojstudios.org/project/loco-foco-motto/
  8. https://www.knma.in/city-tales/hema-upadhyay.php
  9. Henri Neuendorf. "Exhibition Pays Tribute to Murdered Artist Hema Upadhyay" artnet, March 8, 2016. https://news.artnet.com/market/hema-upadhyay-tribute-exhibition-444179
  10. https://initiartmagazine.com/2011/01/24/hema-upadhyay/
  11. Loco-Foco-Motto, Hema Upadhyay. vancouver biennale. https://www.vancouverbiennale.com/artists/hema-upadhyay-09-11/
  12. Abhay Sardesai, "What Hema Upadhyay’s art meant, and why it was significant" Hindustan Times News, Dec 15, 2015. https://www.hindustantimes.com/mumbai/what-hema-upadhyay-s-art-meant-and-why-it-was-significant/story-6IBhgjEkUUmnyAdihhDFgO.html
पवन यादव
शोध विद्यार्थी, दृश्यकला संकाय एवं चित्रकला विभाग, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा, उत्तराखंड

अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
  चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-61, जुलाई-सितम्बर 2025
सम्पादक  माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक  विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन दीपिका माली

Post a Comment

और नया पुराने