कैंपस डायरी - जसवंत सिंह दो_सान

कैंपस डायरी
- जसवंत सिंह दो_सान


7 नवंबर 2023


                 सब मारे जाएंगे तुम्हारी उदासी से, जो बच जाएंगे वो शोक मनाएंगे तुमसे दोस्ती होने का... एक-एक कर सबको नाराज़ कर दोगे और खुद जिंदगी भर एक्टिंग करते रहोगे नाराज़ होने की...  पत्थर पिघलने लगेंगे लेकिन तुम पानी होकर भी बर्फ से जमे रहोगे,... पुरानी हो चुकी गलियों में घूमोगे तो पैर थरथराएंगे, तस्वीरें गालियाँ देगी।  यादों को, यादों में तुम्हारे होने का खेद होगा और वो बदला लेने के इरादे से तुम्हारा पीछा करेगी। तुम्हारा आने वाला वक्त, तुम्हारे आज से नाराज़ होकर तुमपर हमला करेगा लेकिन तुम तब भी बच निकलोगे, बर्फ़ की तरह…


10 मई 2024


                राहगीर की कविता का पात्र जो दुनिया को अपने तरीके से न चला पाने के कारण उसे जलाना चाहता है और ऐसा न कर पा सकने के कारण दुनिया को उपेक्षा से छोड़कर चौराहे पर बैठ जाता है, को अगर कुछ देर के लिए पाठक सर को सुनने का मौका मिल जाए तो वह दुनिया में लौट आएगा। ...सर को सुनने के बाद लगता है कि सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है, गांधी के विचार सिर्फ सपनों की दुनिया में नहीं है।... दुनिया से हारे हुए व्यक्ति के कंधे पर जब पाठक सर हाथ रखेंगे तो वह खुशी से रोने लगेगा कि जिसे मैं हार समझ रहा हूँ वो हार नहीं है, दुनिया बची हुई है…


20 मई 2024


                 अभी तक सबसे अच्छे दिन की कल्पना मैंने की नहीं है लेकिन सबसे बुरा दिन वह होगा जब पानी बरस के थम जाएगा और भीगूँगा नहीं।


23 मई 2024


                तुम्हारे जाने के बाद कहानियाँ उतर रही हैं सीने में, जिनमें तुम कहीं भी नहीं हो। तुम्हारी कहानी इतनी मामूली और गैर- जरूरी है कि वो कभी भी किताबी कहानियों के साथ नहीं बैठ पाएंगी। हाँ! तुम्हारे पात्र का एक हिस्सा जरूर दौड़ा चला आएगा हर एक कहानी में।


                 तुम गए तब सन्नाटा था और अब आँसू लुढ़क रहे हैं। दो_सान के यह आँसू भी तुम्हारी कहानी की तरह गैर-जरूरी हैं लेकिन मामूली नहीं।


                ...तुम्हारा एक हिस्सा पानी-सा है तो दूसरा कठोर बर्फ-सा। बर्फ वाला हिस्सा हमारे हिस्से आया है। तुम इतने अच्छे होकर भी उदास रहे हो यहाँ पर, फिर उस दो_सान का क्या होगा जो बद-तमीज़ है, जो दोस्तों के आँसुओं का मजाक उड़ाता है, किसी को भूल जाता है तो सच में भूल जाता है, जब जरूरत के लोगों को जरूरत पड़ती है तो ऐन वक्त पर कदम पीछे ले लेता है खुद को गद्दार घोषित करते हुए, अच्छे लोगों की अच्छाइयों पर थूकता है और उसे साइकिल के पहिए से कुचलता हुआ चल देता है। ...नास्तिकों की जहन्नुम का हकदार।

    

                बर्फ बनकर जो तूने दोस्तों के साथ बर्ताव किया है उसे नास्तिकों का चित्रगुप्त अपनी डायरी में दर्ज नहीं करेगा और तुम्हें जन्नत मिलेगी जो होती नहीं है। अगर तुम दुबारा नहीं लौटे तो हम कभी नहीं मिल पाएंगे, न इस दुनिया में न उस दुनिया में..... (दोस्त द्वारा छुट्टियों पर घर चले जाने के बाद)


20 जून 2024


             जब हमसे पूछा जाएगा कि जब देश नोचा जा रहा था तब तुम कहाँ थे? तब हमारे पास कोई भी स्पष्ट उतर न होगा। कुछ अटपटे वाक्य कहेंगे उस थूकते सवाल के जवाब में कि हम एक नौकरी की तलाश में कचरे जैसी किताबों के बीच में कचरा पढ़ रहे थे। याद कर रहे थे गुजरी तारीखें और फालतू से नाम, बस एक नौकरी की तलाश में। इस बीच हमेशा एक डर बना रहता था कि एक चेहरा आएगा कैमरे के सामने और झूठ बोलेगा, उसका झूठ हमारी रटी हुई तारीखों, नामों ओर स्थानों पर पानी फेर देगा।... देश का शरीर सुन्न पड़ चुका था। बार-बार कैमरे के सामने आने वाले व्यक्ति के दांतों से निकले कीड़े उस शरीर को नोच रहे थे, लहू टपक रहा था। जैसे ही किसी का ध्यान जाता उस लहू पर तो वह लहू का भूखा निकालता अपनी जीभ और लहू चाट जाता। देश का लहू पीता और वाहवाही लूटता, कीड़े अपना काम करते रहते।


            हम परीक्षाएँ दे रहे थे, परीक्षाओं पर परीक्षाएँ ताकि सुरक्षित हो जाए, सुन्न हो जाए जिससे लहू चाटते कीड़ों की चोटें महसूस न हो। हमारा बुखार जुखाम में बदल चुका था, नाक पोछते हुए परीक्षाएँ दे रहे थे। लगातार परीक्षाएँ। जब भी कोई परीक्षा देकर गाँव की तरफ़, देश की तरफ़ निकलने के लिए समान पैक करता तो वह कैमरे में आता और कहता इस वाली परीक्षा तुम्हें सुरक्षित नहीं कर पाई है, तुम्हारा शरीर सुन्न नहीं हुआ है। ऐसे में जब तुम्हें कीड़े काटेंगे तो तुम छटपटाओगे और छटपटाने वाले को कीड़े निगल जायेंगे, देशद्रोह का इल्जाम लगाकर। ठहरो अभी लगे रहो तुम, करते रहो इंतजार शरीर और मन सुन्न होने का।


17 जुलाई 2024


          समय का याद आना व्यक्ति के याद आने से कम घातक नहीं होता है। एक क्षण आएगा जब सब अच्छा-अच्छा बीता हुआ शून्यता में बदल जाएगा। आँखो से ज़हरीली पर गुनगुनी भाप निकलेगी। मुस्कराने के लिए खुलने की कोशिश करते होठों को दाँत काट लेंगे और उनमें गुलाबी मीठा खून निकलेगा जो उस समय बीत रहे प्रेम पर थक्का बन चिपक जाएगा। तुम उसका स्वाद लेने के लिए होठों को चूमोगी तो मैं रो दूंगा क्योंकि उस क्षण याद आ रहा होगा कि अच्छी वाली बारिश हुई थी और दो_सान भीग नहीं रहा था।


20 जुलाई 2024


          आज दो_सान पूरा दिन भीगता रहा। कैम्पस के बाहर-अंदर, साउथ-नॉर्थ, इस्ट-वेस्ट सब जगह। इकोनॉमिक्स बिल्डिंग के बहार वाले सिक्योरिटी गार्ड अन्ना बोल रहे थे ‘जाओ गर्म पानी से नहाकर सो जाओ नहीं तो बीमार पड़ जाओगे।’ भईया लोगों ने सख़्त लहज़े में कहा है कि तुम बीमार होने पर उतारू हो लेकिन दो_सान को पता है कि बारिश उसे बीमार नहीं करती है। बारिश करवाने वाले राक्षस (राक्षस और देवता में अब क्या ही अंतर करें!) को लगता है कि दो_सान भीगते भीगते थक जाएगा और थककर उस चिड़िया के पास पहुँच जाएगा जो किसी तपस्वी के घूरने से जलकर भस्म हो गई थी। लेकिन बारिश राक्षस की बेटी है जो दो_सान को एक दिन उस पिंजरे का पता बता देगी जिसमें वो तोता रहता है जिसके मरने से राक्षस भी मर जाएगा। एक दिन ऐसे ही भीगते भीगते दो_सान पिंजरे के तोते को आज़ाद कर देगा और बारिश हमेशा हमेशा के लिए उसकी हो जायेगी।


30 अगस्त 2024


         दो_सान ने मछली पकड़ने के लिए धागे से बाँधकर काँटा झील के अंदर फेंक दिया है, खुद धागे से जुड़ा हुआ डंडा लेकर किनारे के पत्थर पर बैठा है। उधर बहुत गहराई में रहने वाली मछली अपनी दोस्त मछली से नाराज़ होकर ऊपर निकल आई है। काँटे से बंधा हुआ आटा पानी में लटक रहा है। नाराज़ होकर आई मछली के गुस्से से पैर निकल आए है और वह बिना आटे की ओर ध्यान दिए आगे पीछे भाग रही है। आटा स्वादिष्ट होता है, स्वादिष्ट आटे को खाकर मछली खुश हो सकती है लेकिन वो आटे को खाने का प्रयास नहीं करती है, दोस्त से नाराज़ होकर खुश हो जाना अच्छी बात थोड़ी ही है। उधर गहराई वाली मछली सोच रही है कि उपर जा चुकी मछली आटा खाकर खुश हो जाए, नाराज़ हो चुकने के बाबजूद दोस्त के खुश हो जाने के मातम में दूसरा दोस्त रो सके। अगर नाराज़ हो चुकी मछली अपनी दोस्त को भूलकर आटा खा लेती है तो दो_सान उसे काँटे के साथ बाहर खींच लेगा और उठाकर जोर से पत्थर पर फेंकेगा जिससे उसका श्वास रुक जायेगा जो बहुत बड़ी त्रासदी होगी। दुनिया की बहुत बड़ी त्रासदी के घटित होने में नाराज़ हो चुकी मछली की ज़िद आड़े आ रही है कि दोस्त से नाराज़ होकर खुश नहीं होना है।


03 नवंबर 2024


            विश्वविद्यालय के जंगल को कटने देना और उसी रोज़ जल, जंगल, ज़मीन की बात करते हुए शर्म नहीं आती है ? कॉमरेड! बीते साल दो साल में जिस गति से जंगल काटा गया है उससे दुगनी गति में ज़मीर मरा है। कटे हुए जंगल से उपजी ज़मीन काम आएगी, अपने अन्दर के मर चुके कार्ल मार्क्स को दफनाने के लिए, अगर कोई जलाना चाहेगा तो कटे हुए पेड़ो की लकड़ियाँ भी हैं।

    

            केन्द्रीय विद्यालय के आगे से होकर जामुन के पेड़ और आगे टैंपल रॉक की तरफ़ जाने वाली कच्ची सड़क तहस-नहस हो चुकी है और सड़क के आस-पास के पेड़ काटे गए हैं। पिकॉक लेक को तोड़कर उसका पानी इस तरह से खाली किया गया हैं कि लेक शैवाल से भर चुकी हैं, बदबू मारती हैं। शैवाल से मरा पानी शायद ही फिर से जीवित हो। पिकॉक लेक के किनारे का मार्ग जहाँ खड़े रह कर पानी की सुंदरता को देखते थे, पर लंबी लंबी घास उग आई हैं, वहाँ एक मिनट खड़ा रहना भी बड़ी बात हो गई है।

    

            मशरूम रॉक पर चढ़ने वाली सीढ़ी गायब है। उस तरफ़ का जंगल सरकार ने छीन लिया है। यह लगभग पक्की बात है कि विश्वविद्यालय को चलाने वाले लोगों ने कोर्ट केस इतनी कमज़ोरी से लड़ा कि यह ज़मीन सरकार के हिस्से आ गई। डील कम पैसे में तो हुई नहीं होगी, करोड़ों से तो उपर का ही मामला है। शायद मसरूम रॉक भी इस छीनी गई ज़मीन के साथ चली जायेगी, अगर नहीं गई तो ऐसी हालत तो बन ही जायेगी कि वहाँ जाने न जाने में कोई फर्क नहीं रहेगा। स्टूडेंट यूनियन चुप है, इसके लिए धन्यवाद तो बनता है। जंगल का बहुत-सा हिस्सा तहस नहस है, जिस पर बात करना शायद जहरीला होता होगा।


            कॉमरेड हम सब जीवित हैं! और मुझे यह सोचकर उल्टी आ रही है। (यह बस गुस्सा था, तब इतनी मजबूती से कोई बात नहीं कर रहा था कि विश्वविद्यालय के जंगल पर खतरा खड़ा है।)

             

जसवंत सिंह दो_सान

विद्यार्थी, हैदराबाद विश्वविद्यालय

jaswantsinghsodha53@gmail.com9001222953


अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
  चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-61, जुलाई-सितम्बर 2025
सम्पादक  माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक  विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन दीपिका माली

1 टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही बढ़िया लिखा भाई वा क्या बात है.......
    ......

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