डायरी / रेखा कंवर

डायरी
- रेखा कंवर

6 जून 2025

जाते हुए मुड़कर न देखना, किसी अपने के ऊपर की हुई सबसे बड़ी क्रूरता है। एकाएक से भरी हुई उन सारी कुर्सियों का खाली छोड़ जाना सबसे बड़ा अपराध है। किसी को आवाज देने के लिए यह आश्वस्ति जरूरी है कि आवाज लगाने पर वह फिर से लौट आएगा। शाम तो घर लौटने का समय होता है न, मगर उन घरों का क्या, जिनके घर शाम तो आती है, मगर उनके घर कोई लौटता नहीं।

पिता को हमेशा घर लौटते हुए ही सुंदर लगते हैं न, पिता तो हमेशा घर लौटते हुए ही सुंदर लगते हैं न। पिता का होना उन्हें पहाड़ बनाता है, तो उनका न होना शायद उन्हें पेड़ बनाता होगा। पहाड़, पेड़, पिता एक ही तो है, एक ही तो अर्थ है इन सबका। फिर क्यों हम अंत तक समझ नहीं पाते उनका एक ही होना? किसी के साथ होने से रास्ता कितना छोटा हो जाता है; वो, जब किसी का साथ न हो, तो वही रास्ता कितना लंबा। उन रास्तों पर चलना कितना अर्थहीन हो जाता है, जिन रास्तों के अंतिम छोर पर हमें, हमारी प्रतीक्षा में कोई खड़ा नहीं मिलता।

किसी को कुछ देने से पहले ही छीन लेना इतना तकलीफदेह नहीं होता, जितना कि किसी को देने के बाद उसे उससे छीन लेना होता है। अनगिनत सड़कों से भरी इस दुनिया में हम भूल चुके हैं कि चलते हुए ठहरना कितना जरूरी है। निरंतर चलते रहने की इस नियति में हम भूल ही गए हैं कि चलते हुए पीछे मुड़कर देखना कितना जरूरी है, ताकि हमारी प्रतीक्षा में खड़े उन लोगों को मिल सके हमारे लौट आने की आश्वस्ति।

हमें रहना था प्रेम में, मगर हम प्रतीक्षाओं में रहे। साथ न आना, देर से आने से बेहतर है; है साथ न आना, बीच रास्ते में साथ छोड़ देने से बेहतर है। अक्सर हम थोड़ी दूर साथ चलने के लिए किसी को बहुत बड़ा दुःख दे जाते हैं। किसी को प्रेम करने की इच्छा रखते हुए भी उससे प्रेम न कर पाना बड़ा तकलीफदेह होता है।

किताबें हमारे लिए सब कुछ करते हुए भी, कुछ न कर पाने की निरर्थकता से बचने के लिए बनाए गए विकल्पों में से मृत्यु के ठीक पहले आने वाला एक विकल्प है।


23 जून 2025

अब पीछे पलट कर देखती हूँ तो केवल पीछे छूटा हुआ खाली रास्ता नजर नहीं आता, बल्कि पीछे छूटी हुई मैं भी याद आती हूँ, अपने आप को। हाँ, वही छोटी लड़की, जिसके पास सपने नहीं, माँ हुआ करती थी। और जब वह भरी दुपहरी में इमली के पेड़ पर अकेले चढ़कर सबसे ऊपर वाली टहनियों से इमली तोड़ते वक्त नहीं जानती थी कि डरना कितना जरूरी है। जो अपनी माँ की टूटी हुई चूड़ियों का अर्थ नहीं जानती थी। जो नहीं जानती थी बाजार में मिलने वाले कांचों के बारे में। जो नहीं जानती थी कि बारिशों में छतरियों का होना कितना आवश्यक है। जो अपनी छोटी सी साइकिल पर अपनी तीन-तीन सहेलियों के साथ घूमने जाते वक्त नहीं जानती थी कि अक्सर इसी वक्त क्यों उतर जाती है बार-बार उसकी साइकिल की चेन। जो नहीं जानती थी कि पैरों में चप्पल पहनना कितना अनिवार्य है। जो नहीं जानती थी कि खिड़कियाँ एक निश्चय समय पर बंद करना कितना आवश्यक काम होता है। जो नहीं जानती थी कि उसके कुछ स्पर्श कितने गंदे होते हैं, और कुछ आँखें बेहद काली। और जो बिल्कुल नहीं जानती थी अपने पापा के साथ आए उस व्यक्ति के बारे में, जिसका हाथ अक्सर उसके हाथों को स्पर्श कर जाया करता था। जो नहीं जानती थी कि जिनसे रात होने में कितना कुछ बदल जाता है। जो नहीं जानती थी कि उससे एक क्लास आगे पाँचवीं क्लास में पढ़ने वाली अपनी सबसे पक्की दोस्त के बारे में, जिसे जिसने रो-रो कर बताया था अपनी कुछ रातों के बारे में। और किसने कहा था कि तुम नहीं जानती रेखा, कि कुछ रात कितनी लंबी होती है। और जो बिल्कुल नहीं जानती थी अपने साथ बहुत दूर तक आए लोगों के बारे में, जो अक्सर बिना ये बताए कि हम जा रहे हैं, लौट जाते थे दबे पाँव अपने घर को। और जो नहीं जानती थी कि ना जानना कितना खूबसूरत होता है, और जान लेना कितना पीड़ादायक।

मैं जानती हूँ कि यह मैं जानती हूँ कि ट्रेनें नहीं जाएंगी वापिस वहाँ जहाँ से मैं आयी हूँ। अगर मुझे लौटना है वापिस तो पैदल ही निकलना होगा मुझे। मगर पैदल भी तो तब जाया जा सकता है जब पहले के सारे रास्ते मालूम हों हमें। पहले के सारे रास्ते मालूम हों मुझे। और मैं तो पीछे लौटने के सारे रास्तों को सिर्फ भूली ही नहीं हूँ, बल्कि अपने पैरों के निशान तक मिटा चुकी हूँ। पीछे के सारे रास्ते अपने ही मिटाए हुए हैं। कि अब जाना ही होगा तुम्हें आगे। कि अब जाना ही होगा मुझे आगे। यह जानते हुए भी कि वहाँ कोई नहीं रहता


2 जुलाई 2025

चौबीस साल की वो लड़की जिसकी छह महीने पहले ही शादी हुई है, जिसे शादी से ठीक पहले तक कहा जाता रहा है बहुत बोलने वाली लड़की, जिसके अपने कमरे में लगे थे कलेक्टर बनी हुई लड़कियों के कई पोस्टर, जो अपने बारे में खूब बातें किया करती थी, जो अपने सपनों के बारे में खूब बातें किया करती थी। वह अब बेहद चुप रहने लगी है, जो शायद अपने सपनों की लाश अपने कंधों पर उठाए कर रही है, हमेशा मौन रहने की प्रार्थना, ताकि उसे अपनी बेटी को ना बोलने पड़े, अपने माँ के बताए हुए वह वाक्य जिसके कारण उसने किया था अपने सपनों को  स्थगित।

दरवाजे पर देर तक अपने पति के घर लौटने की प्रतीक्षा में खड़ी हुई वह स्त्री, जो अपने हाथ पर आयी चोट के निशान, जो कि कल रात उसके पति द्वारा उसे यह कह कर दिए गए हैं कि तुम इसी चोट के लायक हो, देखते हुए भी जो कर रही है दुआ अपने पति के सही सलामत लौट आने की। वो अपने पति को आया हुआ देख कर क्यों लौट चुकी है वापिस घर के भीतर बिना उसे ये बताए कि मैं कर रही थी तुम्हारी प्रतीक्षा हर वक्त।

दूसरी लड़कियों से कम बताई जाने वाली वह लड़की जो इस वक्त बिना कांच की तरफ देखे कर रही है पढ़ाई, जिसके फोन पर सुंदर कही जाने वाली लड़कियों की तस्वीरों के स्टेटस डाले जाने के कई मैसेज आए हुए हैं, मगर वह पढ़ रही है क्योंकि पढ़ने का दूसरा अर्थ उसके लिए सुंदरता पाई हुई लड़कियों के बराबर आना है। उसे यही मालूम है कि सुंदरता पढ़ाई से ढाँकी जाती है।

 वह विधवा औरत जिसका पति मर चुका और जिसके तीन बेटे हैं जिन्हें वो आए दिन मारती रहती है, इसलिए लोग उसे बुरा बताते हैं। ये वही लोग हैं जो उसकी ज्यादा हँसी और अकेलेपन, उसकी साफ सुथरी महँगी ओढ़ी गयी साड़ी को भी बुरा बताते हैं। ये वही लोग हैं जो उसकी निजी हँसी, निजी अकेलेपन और खूबसूरत साड़ी को सामूहिकता में बुरा बताते रहते हैं।

सत्रह साल की वो लड़की जो कि इन सत्रह सालों में अपनी घर की खिड़कियों को खुली रखने के लिए करती आयी है अपने माता-पिता से विद्रोह, वो क्यों बंद रखती है अपनी खिड़कियाँ?

और रुको, देखो जरा वह रही तुम्हारी आज की आधुनिक कही जाने वाली वह लड़की, जो आधुनिकता में लिपटी हुई आजादी का प्रतीक कही जाने वाले पैंट और टॉप पहने हुए, ठीक रात के दस बजे बेतहाशा रोते हुए लौट रही है अपने घर को। यह वही लड़की है जो सुबह हँसते हुए अपने माता-पिता से कहकर गई थी, "बाय पापा, बाय मम्मी, मैं जल्दी लौट आऊंगी"। आखिर दिन से रात होने तक क्या-क्या बदल जाता है? शायद वह नहीं जानती थी कि दिन से रात होने तक कितना कुछ बदल जाता है।

अलग-अलग दुखों से गिरी हुई ये सारी लड़कियाँ जो तुम्हारे बहुत दूर की रिश्तेदार लगती हैं और जो तुम्हारे बारे में बहुत कम जानती हैं, मगर जिनके बारे में तुम बहुत कुछ जान चुकी हो। इन लड़कियों के लिए तुम कुछ नहीं कर सकती, सिवाय उनके नाम हटाकर उनकी जगह वह लड़की लिखकर उनके दुखों को लिखने के अलावा।

क्योंकि तुम जानती हो उन लोगों को जो सामूहिकता में खड़े होकर "अब ऐसा नहीं होता है, अब जमाना बदल गया है" के नारे लगाते हैं। हालांकि "अब ऐसा नहीं होता है" का छुपा हुआ अर्थ अब कुछ और होता है, और "अब जमाना बदल गया है" का छुपा हुआ अर्थ केवल इतना भर है कि जो लड़कियाँ पहले दुखों के दफ्तर में काम किया करती थीं, अब उन्हें उनसे छुट्टी मिल चुकी है और उनकी जगह दूसरी आधुनिक कही जाने वाली कुछ लड़कियों ने ले ली है।


19 जुलाई 2025

इन दिनों जब टूटी हुई चूड़ियाँ कुछ ज्यादा ही नजर आने लगी हैं, तो उन्हें देखकर मैं अक्सर सोचती हूँ कि हमारी हर चीजों को सहज कर और जोड़कर रखने वाली हमारी माँ से हमने कभी नहीं पूछा उनकी टूटी हुई चूड़ियों के बारे में। अक्सर हम देखते रहे झाड़ू निकालते वक्त किसी बारीक चीज से हाथ टकरा जाने के कारण टूटी हुई उनकी चूड़ियों को, तो कभी बर्तन मांजते वक्त अचानक ही टूट चुकी उनकी चूड़ी को, तो कभी घर में जाले साफ करते वक्त कुर्सी के गिर पड़ने पर टूटी उनकी चूड़ी को।

मगर हमने कभी नहीं कहा कि लाओ माँ, जैसे तुम अक्सर हमारी चूड़ियों को जोड़ दिया करती हो, हम भी जोड़ देते हैं तुम्हारी टूटी हुई चूड़ियों को। शायद हम भूल गए कि हमारी माँ भी उन्हीं टूटी हुई चूड़ियों की तरह रही, हमेशा घर में जिन्हें कभी नहीं जोड़ा गया, बार-बार जोड़ती रही हमेशा।


8 अगस्त 2025

बहुत दूर रहने वाले किसी रिश्तेदार से मिलने जाते वक्त,

बिना ये जाने कि हर बंद दरवाजों का अर्थ उन पर ताले लगे होना नहीं होता है,

हम अक्सर लौट आते हैं,

दूर से ही बंद दरवाजों को देखते हुए,

उनके बंद होने की कल्पना कर कर।अपने में खोए हुए जब हम चलते-चलते बहुत आगे निकल जाएंगे,

तो अचानक हमें अपने पीछे चलने वालों की याद आएगी।

ठीक उसी वक्त हम पीछे मुड़कर देखेंगे,

तो पाएंगे कि वे लोग जो हमारे पीछे थे, कब के जा चुके हैं।बहुत दूर रहने वाले किसी रिश्तेदार से मिलने जाते वक्त,

बिना ये जाने कि हर बंद दरवाजों का अर्थ उन पर ताले लगे होना नहीं होता है,

हम अक्सर लौट आते हैं,

दूर से ही बंद दरवाजों को देखते हुए,

उनके बंद होने की कल्पना कर कर।अपने में खोए हुए जब हम चलते-चलते बहुत आगे निकल जाएंगे,

तो अचानक हमें अपने पीछे चलने वालों की याद आएगी।

ठीक उसी वक्त हम पीछे मुड़कर देखेंगे,

तो पाएंगे कि वे लोग जो हमारे पीछे थे, कब के जा चुके हैं।

चलते हुए समय-समय पर पीछे मुड़कर देखना,

हमारे पीछे चलने वालों के लिए बड़ी आश्वस्ति है।

जिस दिन हम पीछे मुड़कर देखने की आदत भूल जाएंगे,

उसी दिन हमारे साथ चलने वाले वे लोग धीरे-धीरे गायब हो चुके होंगे।

हम वह लोग हैं, जो "हम तुम्हें भूल चुके हैं" कह कर उन्हें याद करते हुए अक्सर घर को लौट आते हैं।

अकेले भी बहुत दूर तक आगे जाया जा सकता है, अगर हमारे पीछे खड़े लोगों के कदमों की आहट सुनाई देती रहे।


26 अगस्त 2025

दुनिया भर की व्यस्तता ओढ़े तुम जो हर रोज घर से दफ्तर और दफ्तर से घर आ जाने में लगे हो, क्या कभी सोचा है रास्ते में आने वाले इन फूलों, बादलों, तितलियों, चिड़ियाओं, पेड़ों, नदियों और सूरज के बारे में?क्या करोगे तुम जब तुम्हारे शहर की सारी नदियाँ समुद्रों में बिहार जाने से ठीक पहले तुम्हारे घर के पीछे रहने वाले शर्मा अंकल की भागी हुई लड़की की तरह भाग जाएगी अपने प्रेमियों के साथ? जब बादल अपनी बारिशें देना तुम्हें बंद कर देंगे, जिस तरह तुम्हारे कम पैसे देने की वजह से दूध वाले ने कर दिया था दूध देना तुम्हें बंद। और जब तितलियाँ पकड़ने का तुम्हारा एकमात्र बहाना भी खत्म हो जाएगा, जब सारे पेड़ समझने लगेंगे क्रांति की भाषा और पेड़ों की आत्मा गाने लगेगी प्रेम के गीत। जब सारी चिड़ियाएँ मीठी आवाज में सुंदर गाना गाने के बजाय तुम्हारे घर के बगल में रहने वाले उस पड़ोसी की तरह तुम्हें देने लगेगी गालियाँ जिसे तुम हर वक्त अनदेखा करते हो। जब सारे फूल बदल देंगे, तुम्हें देखते ही अपनी खुश्बूएँ ठीक वैसे ही जैसे तुम्हें देखते ही तुम्हारे पुराने दोस्त बदल देते हैं अपना रास्ता। जब पहाड़ों की मृत्यु अपनी भरी जवानी में ही हो जाएगी, जैसे बूढ़े होने से ठीक पहले ही हो चुकी थी तुम्हारे पिता की मृत्यु। जब सूरज रोज रोशनी देने के अपने काम से छुट्टी लेकर किसी आवारा लड़के की तरह चला जाएगा, किसी लंबी यात्रा पर। जब चाँद तुमसे रूठी हुई पत्नी की तरह चला जाएगा, अपने मायके। जब तुम्हारी दुनिया की सारी गिलहरियाँ चली जाएगी, किसी दूसरी दुनिया में जैसे तुम्हारी बड़ी बहन शादी के बाद गई थी, अपने ससुराल और फिर कभी नहीं लौटी।

चिंता मत करो..! तुम्हें कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। जब ऐसा होगा, तब तुम अपने आप ही मर जाओगे।


15 सितम्बर 2025

भूल जाना चाहिए था हमें उन लोगों को जो भूल चुके हैं हमें। भूल जाने की हद से भी कहीं आगे तक, मगर हम देखते रहे हमेशा उसी तरफ जहाँ से हमें बिल्कुल नहीं देखा गया। अब लौट चलो, हाँ तुमने सारे रास्ते सही चुने थे और इसमें कोई शक नहीं कि तुम्हें इन सही रास्तों का मलाल ज्यादा रहा।

आगे नहीं है कोई, पीछे हो सकता है अगर मुड़कर देखो तो। शायद... हाँ शायद वह कोई है जो देख रहा है तुम्हें लौट आने की आश्वस्ति में। वो नहीं कहेगा, वो नहीं आएगा तुम्हें ये बताने कि मैं था तुम्हारे ठीक पीछे, क्योंकि उसे मालूम है कि अगर उसने ये बताया तो तुम अपने अकेले इतने आगे आ सकने के अभिमान से हाथ धो बैठोगे।

ये वही लोग हैं तुम्हारे पीछे जिन्हें तुम भुला चुके हो, ये वही लोग हैं तुम्हारे पीछे जिन्हें तुम भूल जाने की हद से भी कहीं आगे तक भुला चुके हो, मगर जो तुम्हें ना भूलने के लिए अभिशप्त हैं। तुम भूल चुके हो सब, मगर जो भुलाना है वो अब भी नहीं भुला पाए हो। तुम्हें याद नहीं है कुछ भी, मगर तुम याद करने के लिए इतने अभिशप्त हो कि तुम यह भी नहीं कह सकते कि तुम्हें याद नहीं है कुछ भी।

तुम ठुकराए हुए नहीं हो, मगर तुम्हें ठुकराया जा चुका है। तुम अभिशप्त हो चलने के लिए, मगर फिर भी रुकने में कोई मनाही नहीं है। देखो जरा, आगे नहीं पीछे वो तितलियाँ, वो तितली रही जिसे पकड़ने की इच्छा तुम्हारे मन में कहीं दब चुकी है। अब भी तुम्हारे पास बहाना है लौटने का और ये फूल जिसे देखते हुए भी तुम चुन नहीं पाए। इन्हें अब भी चुन सकते हो उन लोगों के लिए जो रास्ते में हैं मगर अब तक आए नहीं।

तुम बुरा ना मानो तो मैं ये कह सकती हूँ कि ये तुम्हारा जीवन भी एक खूबसूरत बहाना ही है। वो जब भी मिलेंगे, दे देना तुम उन्हें। ऐसे भी मत देखो भला उस आसमान को। तुम चाहोगे तो ये बारिशें नहीं होगी, मगर हाँ बारिशें जब चाहेगी तुम्हें, वो जरूर आएगी तुम्हें भुलाने। और तुम यकीन नहीं करोगे कि बारिशें हमेशा यूँ ही होती रहेगी, बस एक दिन हम उसमें भीगना छोड़ चुके होंगे।

तुम पागल कहलाने की हद तक पागल बने रहो, तुम्हें लोग अच्छा पागल समझेंगे। अगर तुम आसमान को देखकर यूँ गालियाँ ना बकोगे तो। मगर तुम जानते हो कि सच्चा पागल कहलाने से बेहतर है सिर्फ पागल कहलाना।

तुम्हें लगता है कि अगर तुम एक भोले बच्चे की तरह घर से काम और काम से सीधे अपने घर जाओगे और किसी से लड़ाई नहीं करोगे और न ही किसी से द्वेष रखोगे, जो तुम्हारी तरफ देखकर हँसेगा उसकी तरफ तुम भी हँस दोगे, और जो तुम्हें देखकर रोएगा तुम भी वैसे ही रो दोगे, और अपनी छोटी सी दुनिया को ही बड़ी दुनिया मानकर उसी में मस्त रहोगे, तो तुम बचे रहोगे।

मगर ये तुम गलत सोचते हो, वो लोग जो तुमसे बिल्कुल अलग हैं, जो बुरे कहलाने की हद से भी कई ज्यादा बुरे हैं, उन लोगों के लिए बस तुम्हारा अच्छा और मासूम होना ही काफी है तुम्हें मारने के लिए, इसलिए तुम थोड़े बुरे बने रहना, तुम्हारा बुरा थोड़ा बुरा बना रहना ही तुम्हें मरने से बचाएगा।


18 सितम्बर 2025

शुक्रिया मेरे प्यारे खेत की! बिना कोई किताब लिए और अपना आधा सही और आधा खराब फोन लेकर, जो मुझे तुम्हारे यहाँ आने का एक बहाना मिला। अगर मैं यहाँ नहीं आती, तो शायद मैं कभी नहीं जान पाती कि खेत में दाँतलियाँ हाथ में लिए खड़े इंसान, अपने खेत से चारा काटते हुए लोग दुनिया के कितने खूबसूरत लोगों में से एक होते हैं। खेत पर काम करते लोगों को देखना और उनके साथ काम करना प्रेम का ही दूसरा रूप है। नंगे पैर चलना हमारी सबसे अच्छी आदतों में शामिल है। रास्ते में आने वाले दूसरे खेतों से मूँगफलियाँ चोरी करना दुनिया जीतने जैसा ही एक बड़ा काम है। किताबें पढ़ने जितना ही सुंदर काम है खेत में उड़द काटना। चिड़िया हमारे रूठे हुए दोस्तों को मनाने वाली बड़ी बहनों की तरह ही होती है। कुँए में नंगे पैर डालकर बहुत देर तक बैठे रहना अपने इंसान होने को याद करना होता है, जो कि हम भूलते जा रहे हैं।  हमारा अच्छा और मासूम होना दूसरे लोगों के लिए हमें मारने का एक अच्छा बहाना होता है

वो दोस्त जो मेरा इंतजार कर रहे हैं। उन्हें बिना बताए कि मैं लौट रही हूँ। मैं लौटूँगी दबे पाँव ठीक उनके पीछे जाकर उनकी आँखों पर रख दूँगी अपना हाथ और पूछूँगी, बताओ कौन हूँ मैं?

इस तरह जो मुझे भूल चुके हैं, उन्हें मैं अपनी याद दिलाऊँगी।

जैसे चश्मा कहीं रखकर भूल जाती हूँ। ठीक वैसे ही भूल जाना चाहती हूँ इस जीवन को भी कहीं रखकर।मगर मुझे मालूम है कि हमेशा की तरह, चश्मा भूलने के थोड़ी देर बाद ही कोई आकर कहेगा, "ये लो तुम्हारा चश्मा"।


अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
  चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-61, जुलाई-सितम्बर 2025
सम्पादक  माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक  विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन दीपिका माली

2 टिप्पणियाँ

  1. Aapki aate bhut hi sidhi or samjhne layak hai in choti choti lins main itni ghri bate chupi Hui hai ....
    Bhut acha bhut sundar 👍🏻
    Keep it up 👍🏻
    Well done 👍🏻

    जवाब देंहटाएं

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