उत्तर प्रदेश के किसान रमाकांत जी से शोधार्थी विशाल कुमार सिंह की बातचीत

त्रैमासिक ई-पत्रिका
अपनी माटी
(ISSN 2322-0724 Apni Maati)
वर्ष-4,अंक-25 (अप्रैल-सितम्बर,2017)

किसान विशेषांक

"उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सुखपुरा गाँव के किसान रमाकांत जी से शोधार्थी विशाल कुमार सिंह की बातचीत"

हमारे साथी विशाल कुमार ने उत्तर प्रदेश के किसान रमाकांत जी से विभिन्न मुद्दे पर बातचीत करके किसानों की समस्या को समझने का प्रयास किया है कि इस राज्य में किसान की मुख्य समस्या क्या है और उनको सरकारी सुविधा कितना मुहैया हो पा रही है- सम्पादक 

नमस्कार, सर्वप्रथम अपना परिचय दीजिए?
किसान जी आपको भी मेरा नमस्कार। मेरा नाम रमाकांत है, मैं सुखपुरा गाँव का निवासी हूँ, जो उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित है और पेशे से मैं किसान हूँ।

आपके घर में कितने सदस्य हैं?
किसान जी कुल मिलाकर दस इंसानों का भरा पूरा परिवार है मेरा। 

आपके परिवार का मुख्य आय का साधन क्या है?
किसान मुख्य आय का साधन तो खेती ही है।

क्या खेती के अतिरिक्त आपका अन्य कोई आय का साधन है?
किसान जी हाँ, एक बेटा नौकरी में है तो उससे काफी राहत है।

आपके कुल कितने एकड़ जमीन हैं? और क्या इतनी जमीनें आपके परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त है?
किसान - जी नहीं। मेरे पास दो एकड़ जमीन है जिस पर में खेती करता हूँ। पर इस महंगायी भरी समाज में इतनी जमीनें मेरे परिवार के भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं है। बच्चों की पढ़ाई लिखायी, शादी-ब्याह, दवा-दारू सब कुछ खेती के सहारे हो पाना मुश्किल है।

फिर तो आप को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा। कैसे संभालते हैं आप ये सब कुछ? क्या कोई सरकारी सुविधा का लाभ उठाते है? इसके बारे में खुल कर अपना मत प्रकट कीजिए।
किसान - जी सही कहा आपने। समस्याएँ तो बहुत हैं। जैसे - गरीब किसान होने के नाते हम कभी अपने बच्चों को अच्छे और बड़े स्कूल नहीं भेज सके। वे आज जो भी हैं अपनी मेहनत और लगन के वजह से हैं। रहा सवाल ये कि हम  सब कुछ कैसे संभालते हैं तो उसका मेरे पास एक ही उत्तर है कि भगवान की कृपा से आज तक सब ठीक चल रहा है। सरकारी सुविधा तो कुछ नहीं लेते हैं।   
आप खेत में सिंचाई कैसे करते हैं?
किसान - ज्यादातर मानसून के सहारे हम सिंचाई करते हैं और जरूरत के समय ट्यूबेल से भी काम चला लेते हैं।

 आपके खेत किस तरह के हैं? टुकड़ों में बँटा हुआ छोटा-छोटा प्लॉट या एक जगह बड़ा प्लॉट?
किसान - हमारी खेत छोटे-छोटे प्लॉट में विभक्त है।

जलवायु परिवर्तन का खेती पर क्या असर पड़ रहा है?
किसान - बहुत खराब असर पड़ रहा है। ठीक समय पर बारिश नहीं होने पर हम जैसे किसानों को जो अधिक तर बारिश के भरोसे खेती करते हैं, उनको भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। ठीक समय पर बारिश नहीं होने से अनाज के उत्पादन क्षमता में भी भारी गिरावट हो रहा है। खास तौर पर गेहूँ के फसल में। क्योंकि नमी से गेहूं का उत्पादन अच्छा होता है और उसकी बाली भी सही ढंग से विकसित होती है। पर कम बारिश होने के कारण न ठीक से बाली विकसित होता है और न ही अच्छी फसल हो पा रहा है। पिछले दो सालों से फसल कम हो रहा है। कारण सही समय पर बारिश का अभाव है। इसके अतिरिक्त फसल में नाना प्रकार की बीमारियाँ लग रही हैं। 

आप किस प्रकार की खेती करते हैं?
किसान - हम पारंपरिक तरीके से खेती करते हैं। 

साल भर में आप कितने फसल पैदा कर लेते हैं?
किसान - देखिये पहले से तो फसल अब कम हो गयी है फिर भी कड़ी मेहनत कर के साल भर में दो फसल तक तो अनाज उगा ही लेते हैं। नौ क्विंटल गेहूँ और बारह क्विंटल धान मान कर चलिये।

अगर आपको खेती से नुकसान हो रहा है तो क्या आपने सरकार से कृषि संबंधी सहायता की माँग की या किसी बैंक से कम ब्याज दरों पर ऋण लिया।
किसान -  नहीं।

क्या आपको किसान क्रेडिट कार्ड के बारे में कुछ पता है? आपने कभी इसके इस्तेमाल के बारे में सोचा है ?
किसान -  जी हाँ, किसान क्रेडिट कार्ड के संबंध में थोड़ी बहुत जानकारी है। यह किसानों को पर्याप्त और समय पर ऋण उपलब्ध कराने की प्रक्रिया है। पर इसकी सुविधा से हम कभी लाभान्वित नहीं हुए और न ही इससे सुविधा उठाने के बारे में कभी सोचे हैं।

जानकारी होने के बावजूद आपने इसका इस्तेमाल अपनी खेती की बेहतरी के लिये क्यों नहीं किया?
किसान - जी सरकारी काम है। तो बिना दौड़-भाग के होना मुश्किल है। उसके पीछे पसीना बहाने से अच्छा है कि हम खेत पर अपना पसीना बहाएँ।

कृषि अधिकारी और मौसम विभाग आप लोगों की किस प्रकार सहायता करता है?
किसान - कोई सहायता या मदद नहीं करते हैं।

आप खुद एक किसान है तो किसान आत्महत्या के बारे में आप कुछ कहना चाहेंगे?
किसान - जी ऐसा है कि, किसान आत्महत्या का मुख्य कारण सरकार और कृषि अधिकारियों की उदासीनता है। इसके अतिरिक्त अगर मैं गरीब किसान की बात करू तो खेती के लिए हम अपना समस्त जमापूंजी लगा देते हैं पर प्राकृतिक विपदा के कारण जब फसल नष्ट हो जाता है तो इंसान पूरी तरह निराश और हताश हो जाता है। उजड़ी फसल देखकर कलेजा मुँह को आता है। सर्दी, गर्मी की जी तोड़ मेहनत पानी के बुलबुले जैसे मिंनटों में फट जाता है। चहरे के सामने परिवार की भरण-पोषण चिंता सताने लगती है, साहुकार से ब्याज न लौटा पाने की चिंता से दिल ओर बैठा जाता है। दुनिया को अन्न देने वाले हम किसान जब अपने ही परिवार को मुठ्ठी भर अनाज नहीं दे सकते तो जी कर क्या करें। यही बाते सोचकर किसान बौखला उठता है। तब किसान के सामने एक ही विकल्प रहता है आत्महत्या का। पर मेरी नजर से आत्महत्या कोई विकल्प नहीं। यह एक बुरी बात है। ईश्वर ने जीवन दिया है जीने के लिये खत्म करने के लिये नहीं। आप ही बतायिये अगर मैं मर जाऊँ तो मेरे परिवार को कौन पूछेगा? इसलिये सरकार को इसके बारे में सोचना पड़ेगा। किसान आत्महत्या न करे इसलिए कृषिजनित सुविधाओं को गाँव-गाँव घूम कर समस्त किसान परिवार को समझाना पड़ेगा। अगर सरकार किसानों के लिये कोई अच्छी योजना बना रहा है तो यह कृषि अधिकारियों का फर्ज होना चाहिये कि घर-घर जा कर उसके संबंध में जानकारी दे और सिर्फ जानकारी ही नहीं खुद बैठकर उनका फार्म भरके उनको सुविधा लेने के लिए प्रेरित करे। खेती के लिये आवश्यक संसाधन उपलब्ध करायें। समय पर बीज और खाद मुहईया करवायें। ठीक समय पर बुआई के लिये पानी की व्यवस्था तो कम से कम होनी ही चाहिये। किसान तभी कुछ कर सकता है जब उसके पास समय पर बुआई के लिये बीज हो, बोने के लिये पानी हो, खाद के लिये पर्याप्त धन हो। और वैसे भी आत्महत्या कौन करना चाहता है। किसान इतना अभाव ग्रस्त हो गया है कि दिन प्रति दिन उसके आत्महत्या का आंकड़ा गिरने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। यह बहुत ही दयनीय स्थिति हैं।

 क्या आपको लगता है किसान आंदोलन ही किसानों की समस्या का निदान है?
किसान - किसान आंदोलन सिर्फ आंदोलन नहीं है, एक जरिया है, सरकार तक अपनी समस्याओं को पहुँचाने का। हम किसानों के पास यही रास्ता है जिस पर चल कर हम अपनी बात सरकार के सामने रखते हैं। उनसे मदद की उम्मीद रखते हैं।

ऐसा नहीं है कि सरकार किसानों की मदद नहीं कर रहा है या करना नहीं चाहता है। पर जब तक किसान खुद सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठायेगा तब तक कोई सरकार किस हद तक किसानों की मदद कर सकता है? इसके बारे में आप कुछ कहना चाहंगे।
किसान - किसान की गलती बस यही है कि आधे से अधिक किसान अशिक्षित है। उनमें जागरुकता की कमी है। किसान माटी से जुड़ा आदमी है। उसी में जीता है और उसी में मिल जाता है। इसके अलावा उसने कुछ नहीं सीखा। इसलिये सरकार को किसानों की मदद किसानों के स्तर पर जाकर करनी चाहिये। बस यही कहना है और कुछ नहीं।   
  
क्या सरकार के द्वारा किया जाने वाला ऋणमाफी किसान समस्या का स्थायी हल है?
किसान - नहीं यह कोई स्थायी हल तो नहीं है। इससे कुछ किसानो को लाभ हुआ है जो बिलकुल बुरी अवस्था में थे और किसी भी तरह से पैसे नहीं भर पा रहे थे।           

विशाल कुमार सिंह
शोधार्थी,हिंदी विभाग, अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय
हैदराबाद -500 007,  मो. 9441376867,ई-मेल vishalhcu@gmail.com

Post a Comment

और नया पुराने