कहानी: गुट्टन चाची - अनुपमा तिवाड़ी

                           गुट्टन चाची अनुपमा तिवाड़ी   

मोहल्ले में गुट्टन चाची सोलह साल की ब्याह कर आई थीं. यूँ नाम तो उसका चंदा था. शुरू शुरू में तो प्यार से सब उन्हें गुड़िया चाची कहते थे क्योंकि वो एक छोटी गुड़िया सी,गोरी चिट्टी, लम्बे काले बालों की स्वामिनी और काली मिर्च- सी टिमटिमाती आँखों वाली थीं. चाचा की शादी भी बड़ी मुश्किल से हुई थी सो चाचा उन्हें सर आँखों पर रखते. जल्दी ही चाची ने चाचा की निगाह में अपनी क़द्र भाँप ली और तुरंत ही पति से उनके दिमाग की चाबी लेकर अपने पल्ले में बाँध ली. यूँ चाची को उनकी माँ ने विदा करने से पहले पट्टी पढ़ा दी थी कि कैसे किसी को अंगुली पर नचाया जाता है. लेकिन चाची उनकी पढ़ाई से भी दो तिल आगे निकलीं. समय की नज़ाकत को देखते हुए वे घर के निर्णयों को टंडा कर- कर के खाने लगीं. उनकी कारस्तानियों को सुनते देखते हुए अब वो मोहल्ले भर की गुड़िया चाची से बदल कर गुट्टन चाची हो गई थीं. माँ की पढ़ाई का फायदा देख उन्होंने यह सीख अपनी बेटी को भी दी, सो बेटी ने भी अपने ससुराल मेंमाँ की सीख और अपने ननिहाल की परंपरा की लाज रखी.

गुट्टन चाची के ससुराल में एक जेठ थे जो कि जेठानी को ले कर उनकी शादी से पहले ही अलग रहने लगे थे. ससुराल में अब एक देवर और दो ननद के अलावा सिर्फ सास ससुर ही थे. ससुराल में जेठानी के न रहने से गुट्टन चाची  स्वयंभू बड़ी बहू बन गई. घर में ससुर से बोलना घोषित तो नहीं था लेकिन घर में किसी के न रहने पर या देवर - ननद की शादी में वे ससुर से थोड़ा आड़ा तिरछा पल्ला करके काम की बात कर ही लेतीं थीं.

बाजार हाट की जिम्मेदारी में वो खूब बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेतीं. शुरुआत में बाजार हाट से लौटकर वो ससुर को आधा- अधूरा हिसाब देतीं. ससुर सोचते, अब बहू से क्या हिसाब लें ? घर की ही तो बात है. माज़रा देखते हुए अब वे पूरा पूरा हिसाब ही दबाने लगीं. घर में ब्याह- शादी का कोई काम होता तो वे हाटबाजार की जिम्मेदारी भाग कर ले लेतीं. काम हो जाने के बाद वो ससुर जी से वे इनाम लेने में भी नहीं चूकतीं. मौका पाकर कहतीं -बाऊजी मैंने इतना काम किया, मुझे सोने की कोई चीज दो” ससुरपहले तो हँसकर टाल देते लेकिन बहू की जिद्द के आगे हार जाते फिर यह भी सोचते कि, अंत में तो बेटे - बहुओं को ही छोड़कर जाना है. सो चुपके से उन्हें कभी अंगूठी, तो कभी कुंडल दे देतेतो कभी वायदा करके रख लेते कि हाँ, तनख्वाह मिलने पर वे उन्हें अंगूठी बनवा देंगे. तकाज़ा करने में गुट्टन चाची होशियार थीं तो वो बाऊजी का वायदा, पूरा करवा कर ही दम लेतीं. इस बीच वे सोचते रहते कि काम तो सभी ने किया है लेकिन सबको कुछ कुछ कैसे दूँ? चलो, अब ये जिद्द कर रही है तो इसे ही दे देता हूँ. अभी तो इस,एक को ही देना पड़ रहा है.सो वो चुपके से गुट्टन चाची को सोने की कोई चीज थमा देते. वो भी चुपके से ले लेतीं. देते समय ससुर जी सोचतेसबके सामने देता तो सबको देना पड़ता. चाची सोचतीकिसी को कुछ नहीं मिला, मुझे ही मिला, सो इनाम पाकर ठंडक पातीं.

घर पुराने शहर में था तो वो अपनी दीवारें कहाँ फैलाता ? ऐसे में देवर ने अपनी शादी से ठीक पहले घर की तीसरी मंजिल पर दो कमरे चढ़वा दिए. शादी के डेढ़ साल बाद ही देवर का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया तो देवरानी को भी साथ जाना पड़ा. बीच में दोनों ननदें भी ब्याह दी गईं.

अब गुट्टन चाची खुश थीं, थोड़ी बहुत जिम्मेदारी के साथ साथ मुखिया बनने का सुख जो था. सात बरस बाद एक दिन ससुर जी सोए, तो उठे ही नहीं. ननदें, देवर जेठ आए और बारहवें के बाद अपने अपने घरों को चलते बने. अब गुट्टन चाची के पति हर महीने बैंक में माँ को लेकर पेंशन निकलवाने लेकर जाते. पहलेतो माँ के खर्च लायक ही पेंशन निकाली जाती लेकिन धीरे धीरे उसकी राशि बढ़ती गई. माँजब और बूढ़ी हो गई तो घर पर ही अँगूठा लगवाकर पूरी पूरी पेंशन निकाली जाने लगी. माँ क्या करती. लगा देती,  काँपते हाथों से कागज़ पर अँगूठा. हिसाब किताब पूछने वाला कोई था नहीं. जेठ और देवर दिलदार थे, थोड़ा हिसाब किताब पूछ्ने में हिचकते भी थे और यह भी सोचते थे कि घर में जैसे तैसे शांति बनी रहे.

एक घोटाले में गुट्टन चाची के पति कीजब कंपनी से नौकरी छूट गई तो उन्होंने जूस सेंटर शुरू कर दिया. जूस सेंटर पर तरह तरह के जूस बिकते. सेंटर पर आमरस बनाने के लिए जो दूध मँगवाया जाता, चाची उस दूध को गरम कर के उसकी मलाई उतार कर घी निकाल लेतीं और फोका दूध बेटे के साथ सेंटर पर भिजवा देतीं. अब सास बहुत बूढ़ी हो चली थीं. चाची भुनभुनाते हुए उन्हें रोटी देतीं. सब चले गए,  बस मैं ही हूँ करने को”. सास ने भी कभी किसी बहू को प्यार नहीं किया था तो बहुएँ भी उनसे लगाव महसूस नहीं करती थीं. हालाँकि सास बीमार हुईं तो सब बहुओं ने अस्पताल में उनके साथ रहने की पारी बाँध ली. अब सास की सेहत में सुधार होने लगा.

अचानक एक सुबह उन्होंने चाय पीने के बाद एक लम्बी सांस ली जो कि उनकी अंतिम साँस थी. एक दो दिन जमकर रोना- धोना चला. जब बारहवें पर बड़ी ननद को विदा करने की बारी आई तब गुट्टन चाची ने उनके लिए चाँदी की भारी पायजेब की जगह अपनी हल्की पायजेब ननद को पकड़ा दी. जेठानी और देवरानी समझ तो गईं कि गुट्टन ने पायजेब बदल दी है. लेकिन कई बार चोर को चोर कहने में,  कहने वाले को शर्म आती है. सो बातेंआँखों ही आँखों में हो कर रह गईं. ननद तक बात तो पहुंची लेकिन दान का क्या ? दान की चीज पर क्लेम तो बनता नहीं, जो मिल जाए वो सर आँखों पर.

सास ससुर ने घर और सामान के हिस्से किए नहीं थे इसलिए घर में जो रह रहा था, वह रह रहा था. अब गुट्टन चाची ने सास का जमा पैसा निकलवाया और अपने लिए एक कमरा और बनवा लिया. बच्चे बड़े हो रहे थे. बेटे बहू को भी कम से कम एक कमरा तो चाहिए ही था.अब चाची ने छोटे बेटे के लिए देवर के कमरे में अपने बेटे की बड़ी सी फोटो लगा दी. यह अघोषित कब्ज़ा था. यूँ चीजें हथियाने में वे शुरू से ही माहिर रही थीं. चाची यह तो चाहती थीं कि देवर जेठ से रिश्ता तो रहे लेकिन इस मकान में रहने, कोई नहीं आए. बस आए और चाय पी कर चला जाए. बिना आदमी के लगातार धंधे और बिना खुद की कोई कमाई धमाई के चाची की जिंदगी मज़े से चल रही थी.

दूसरे शहर में देवरानी ने कपड़ों का बुटीक शुरू किया. तो गुट्टन चाची ने अपने छोटे लड़के के लिए कहा कि -इसका पढ़नेलिखने में तो ध्यान है नहीं इसलिए तू इसको अपने साथ ले जा. ये काम भी सीख जाएगा और तुझे भी काम में मदद हो जाएगी”.सो अब गुट्टन चाची का छोटा लड़का वीरअपनी चाची के साथ जा कर उनके काम में हाथ बंटाने लगा. बेटे में भी तो आखिर माँ का खून था इसलिए अपनी चाची से ज्यादा कमाई गुट्टन चाची का बेटा करने लगा. चाची ने उसके तौर तरीके देखते हुए गुट्टन चाची के बेटे की जगह किसी और लड़के को रख लिया. अब तो गुट्टन चाची आगबबूला हो गईं. गुट्टन चाची किसी न किसी स्यानेभोपे को पकड़े रहतीं. किसी ने बताया कि यदि किसी आदमी को वश में करना है तो पहले पक्षी को वश में करो. सो चाची ने दो तोते खरीदे और उनके पंख कतरकर, बिना पंखों के तोतों को पिंजरे में रख लिया. जब वो पिंजरे को साफ़ करतीं तब भी तोते, बिना पंखों के उड़ नहीं पाते थे. चाची खुश होतीं, अब पक्षी तो वश में हो गए. अब घर के आदमियों को वश में करना बचा था.

अब वो एक चाय भीदेवर जेठ पर खर्च नहीं करना चाहती थीं इसलिए उन्होंने छोटे बेटे में पीर बाबा के आने का खेल रचा और खुद में ससुर के आने का.

होली पर देवरानी घर आई. उसके सामने गुट्टन चाची के बेटे वीर ने सफ़ेद कपड़े पहने, उन पर गुलाब के फूलों की माला पहनी, सिर पर हरा कपड़ा बाँधा और घुटने के बल आँख बंद कर के बैठ गया. उसके सामने धूप जल रही थी. अब वो वीर नहीं, पीर था.  धूप की धुँआ से सारा कमरा और आँगन धुंधला हो गया था. पीर बाबा की बहन सारा माहौल बनाने का काम कर रही थी और अपनी चाची को पीर बाबा को ढोक देने को कह रही थी, अब पीर बाबा अपने को स्थापित करने की जुगत में थे. पीर बाबा ने चाची को कहापीर बाबा से कुछ पूछ लेजो परेशानी हो. चाची को हँसी आ गई. लेकिन गुट्टन चाची ने गंभीर बने रहने के लिए देवरानी को टोका, आखिर उन्हें तो ये खेल जमाना था न ! देवरानी ने कहा

कुछ नहीं पूछना, कोई दिक्कत है ही नहीं ! जब तक कोई पीर बाबा कोई समाधान नहीं बताये तब तक काहे का पीर बाबा ? पीर बाबा, सयाने, भोपे होते ही इसलिए हैं कि वो कुछ बताएं. इसलिए कुछ नहीं पूछना हो तब भी मजमा जमवाने वाले, आने वाले को पीर बाबा या सयाने के सामने कुछ कुछ समस्याएं रखकर उनके समाधान पूछने के लिए उकसाते रहते हैं. ऐसे मजमे में पीर बाबा और सयानों की सौ गालियाँ और सारे दुष्ट कृत्य माफ़ होते हैं. घर में ऐसी सिटिंग के कई छोटे बड़े अभ्यास हो चुके थे.

थोड़ी देर के खेल - तमाशे के बाद देवरानी अपने बच्चों के साथ लौट गई. चार महीने बाद देवर आया. अब गुट्टन चाची ने पूरा मेकअप किया. लाल साड़ी पहनी, फ्रिज में रखे फूल अपने चारों तरफ सजाए, चेहरे पर शहद लगा कर फूलों की पंखुड़ियां चिपकाई और धूप जलाई. गुट्टन चाची अब गुट्टन चाची नहींबाऊजी बन गई थीं. थोड़ी देर तक तो वो आँखें बंद कर के बरामदे के फर्श पर घुटने के बल बैठी रहीं फिर अचानक से बोलीं- मैं बाऊजी हूँ, “तू और तेरी लुगाई तो चले गए हमें छोड़ कर,  अब क्या लेने आया है ? भाग जा यहाँ से !अब घर में कोई हिस्सा विस्सा नहीं है तेरा. मेरा सब कुछ गुट्टन ने किया है ये घर वर अब इसी का है.

 खेल तमाशा चल ही रहा था कि किसी ने तेजी से दरवाजा भड़भड़ाया. देवर ने उठकर दरवाजा खोला. दरवाजा खुलते ही गुट्टन चाची का बेटा हड़बड़ाता हुआ घर में घुसा और बोला- मम्मी जल्दी चल, पापा का एक्सीडेंट हो गया”  चाची ने एक मिनिट में चेहरा धोया और देवर से बोली भैया जल्दी से अस्पताल चलो आपके भैया.....देवरने गुट्टन चाची से कहा बाऊजी, ठीक कर देंगे भैया को !
गुट्टन चाची बोलीं - बाऊजी क्या करेंगे, जल्दी चलो और गुट्टन चाची बाऊजी को वहीं छोड़ कर स्कूटर पर देवर के साथ फुर्र हो गईं.

अनुपमा तिवाड़ी
जयपुर, राजस्थान,सम्पर्क anupamatiwari91@gmail.com

             अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-5, अंक 30(अप्रैल-जून 2019) चित्रांकन वंदना कुमारी 

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