शोध : देह का उत्सव मनाती प्रियंवद की कथा-नायिकाएं / विष्णु कुमार शर्मा

देह का उत्सव मनाती प्रियंवद की कथा-नायिकाएं / विष्णु कुमार शर्मा 

(‘उस रात की वर्षा में और अन्य कहानियांसंग्रह के विशेष संदर्भ में)


शोध-सार 

    प्रियंवद के कहानी-संग्रहउस रात की वर्षा में और अन्य कहानियांकी कथा-नायिकाएं अपनी देह को अपने अस्तित्व बोध का माध्यम बनाकर निःसंकोच भाव से जीती चली जाती हैं। प्रेम और देह के संबंध में विचार प्रकट करते हुए प्रियंवद कहते हैंदेह के साथ प्रेम हो यह जरूरी नहीं है मगर प्रेम के साथ देह का होना जरूरी है। बिना प्रेम के देह-संबंध बनाना बहुत आसान है। बाजार में लाखों संबंध रोज बनते हैं। वैसे प्रेम देह के बिना भी संभव है लेकिन उसकी संपूर्णता देह के साथ ही आती है।स्त्री का अपनी देह पर अधिकार निश्चित रूप से होना चाहिए किंतु क्या यह लैंगिकता और रिश्तों की मर्यादा का अतिक्रमण करने वाला होना चाहिए? प्रियंवद से पाठक सहमत-असहमत हो सकते हैं पर उनकीजादू जगाती भाषा, अनदेखे-अनजाने परिवेश-पात्र प्रियंवद की कहानियों में ऐसे आते हैं कि पाठक दांतों तले ऊँगली दबाते रह जाते हैं।देह के सत्य और विवाहेतर संबंधों के जिस प्रारूप की प्रस्तावना प्रियंवद करते हैं अंततः वहां क्यूं बूबा के होंठ नीले पड़ जाते हैं? क्यूं वेना कैबरे डांसर बनने पर मजबूर हो जाती है? ये प्रश्न अभी अनुत्तरित हैं।यह तो तय है कि प्रेम में देह बहुत-बहुत उपस्थित होकर भी ... एक मकाम पर आकर अस्तित्वविहीन हो जाती है।प्रियंवद की इसी संग्रह की कहानीअधेड़ औरत का प्रेमयही सिद्ध करती है और उनकी अन्य सभी कहानियों का विलोम रचती है। किंतु इतना तो तय है कि प्रियंवद की ये कथा-नायिकाएं विद्रोही चरित्र हैं और अपने नायकों या पुरूष पात्रों की तुलना में अधिक सशक्त हैं। 

बीज-शब्द : नायिकाएं, स्त्री-पुरुष संबंध, देह, प्रेम, विवाहेतर संबंध, दाम्पत्य पवित्रता, चरम आवेग, गंध, प्रेमी, होंठ, दैहिक संबंध, अवैध संबंध, उत्सव, अस्तित्व, विद्रोही चरित्र आदि 

मूल आलेख  

प्रियंवद हिंदी के अनूठे कथाकार हैं। हिंदी कहानी में उनका अपना मुकाम है। विचारधाराओं और साहित्यिक खेमेबाजी से विलग वे निरंतर साहित्य साधना में निरत है। साम्प्रदायिकता का प्रतिकारस्त्री-पुरुष संबंधों के अंतर्गत देह और प्रेम के समीकरणजीवन में गहरी आस्थास्मृतियों से आलोकित जीवन प्रत्याशा उनके कथा साहित्य के केंद्र में हैं। “प्रियंवद हिन्दी के उन विरले कथाकारों में से एक हैं जिनसे आप असहमत होते हुये भी अथाह प्यार कर सकते हैं। असहमतियों और किन्तु-परंतु के कई अंतःसूत्रों की उपस्थिति के समानान्तर इनकी कहानियाँ अपने पाठकों को जिस तरह सम्मोहन के अनाम जादू में बांध लेती हैवह इनके कथाकार की ऐसी विशेषता है जिसकी कामना दुनिया की किसी भाषा के किसी कथाकार को हो सकती है।[1] उनके अब तक पांच उपन्यास और तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ‘आईनाघर’ भाग – एक व दो तथा ‘कश्कोल’ में उनकी सभी कहानियां संकलित है। इन्हीं कहानियों में से कुछ चुनिंदा कहानियों का संग्रह ‘उस रात की वर्षा में और अन्य कहानियां’ के नाम से अलग से प्रकाशित है। इन कहानियों की केंद्रीय वस्तु ‘प्रेम’ है। हिंदी साहित्य में कहानी विधा में ‘प्रेम कहानी’ की शुरूआत गुलेरी जी की ‘उसने कहा था’ से होती है। इसके पश्चात जयशंकर प्रसादजैनेन्द्ररेणु और निर्मल वर्मा के अतिरिक्त अन्य कोई कथाकार ऐसा नहीं मिलता जिसने अच्छी और पर्याप्त संख्या में ‘प्रेम-कहानियां’ लिखी हों। कथा-सम्राट प्रेमचंद के यहां भी ‘प्रेम-कहानी’ का कोना खाली है। प्रियंवद ‘प्रेम कहानी’ को कहानी-लेखन की कसौटी मानते हैं और स्वयं को निरंतर इस पर परखते रहते हैं। सारिकाजनवरी 1980 में पुरस्कृत और प्रकाशित उनकी लिखी पहली कहानी ‘बोसीदिनी’ एक प्रेम कहानी’ ही थीसे लेकर 2015 में प्रकाशित ‘दिलरस’ तक उनकी यह ‘प्रेम-यात्रा’ जारी है। उनकी लिखी लगभग पैंतालीस कहानियों में से अठारह प्रेम कहानियां इसका प्रमाण है। इस आलेख में उनके कहानी-संग्रह ‘उस रात की वर्षा में और अन्य कहानियां’ को केंद्र में रखकर उनकी कथा-नायिकाओं के दैहिक उत्सव के माध्यम से स्त्री पक्षधरता को चीन्हने का प्रयास किया गया है। 

जेनी - जेनी ‘उस रात की वर्षा में तथा अन्य प्रेम कहानियां’ कथा संग्रह की कहानी ‘नदी होती लड़की’ की नायिका है। वह एक विवाहिता है किन्तु वह अपने पूर्व प्रेमी चार्ली के साथ अपने प्रेम-संबंध को अत्यंत उन्मुक्त भाव से जीती है। जेनी की सगाई और शादी के बीच एक  “रात पार्टी के बाद छत परजब नीबू के पेड़ पर सफ़ेद फूल आने लगे थे और आसमान के आधे कत्थई चांद से मुंडेरों पर ओस गिरने लगी थीचार्ली ने जेनी के होंठों के पासवाला तिल चूम लिया। जेनी उदास और हैरान होकर चार्ली को देखती रही। तिल औरत के शरीर की गांठ होते हैं ... शरीर इन्हीं गांठों से बंधा रहता है . चूमने से ये गांठ खुलती हैं।  ... चार्ली उसके शरीर की गांठे खोलता रहा और उस दिन पहली बार जेनी की देह पूरी तरह खुल गई .”[2] जेनी का पति समुद्र के किनारे स्थित अंग्रेजों की पुरानी बस्ती में रहता था। वह केकड़े और सीपियां बेचता था। वे दोनों एक-दूसरे को स्कूल के दिनों से जानते थे। दोनों की सहमति से ही उनका विवाह हुआ हुआ था। जेनी के पति को इस बात का पूरा शक था कि उसकी अनुपस्थिति में चार्ली उससे मिलने आता है। उसने कई बार उन्हें रंगे हाथों पकड़ने की कोशिश भी की किंतु हर बार वह असफल रहा। अपनी इस  असफलता ने उसके भीतर जेनी के प्रति नफरत को और अधिक गहरा कर दिया। दूसरी ओर “कभी भी जेनी को ‘व्यभिचार’ या ‘दांपत्य पवित्रता’ का दंश नहीं चुभता ... न उसके अंदर कोई हीन-भावना या अपराध बोध जागता … बल्कि वह चार्ली के साथ अपने संबंध को बहुत नैतिक ऊंचाई पर जीती। ईश्वर के प्रति एक अधिकार के साथ। चार्ली की तबीयत खराब होने पर वह चुपचाप उपवास रख लेती और अपने इस ‘मौन-प्रेम’ पर प्रसन्न रहती। ‘महान-प्रेम’ की धारणा के अंतर्गत वह चार्ली के साथ संभोग की मुद्रा में मृत्यु चाहती।[3] इस प्रकार जेनी बिना किसी आत्म-ग्लानि के अपने विवाहेतर प्रेम-संबंध को खुलकर जीती है। विवाहेतर संबंध की पीड़ा से दुखी एक प्रोफ़ेसर जो कि जेनी के पति का मित्र हैउसे कहता है -  “पुरुष के स्पर्श से औरत या तो नदी होती है या पोखर। औरत जब नदी होती है तब कोई भी पुरुष उस पर एक पालवाली नाव की तरह तैर सकता है  .... किसी भी दिशा में कितनी ही देर। पर जब पोखर होती है तब उसके अंदर केकड़े की तरह भी नहीं उतर सकता। औरत कब नदी होगी और कब पोखर यह वह स्वयं नहीं जानती ... पर उसे कुछ -  - कुछ होना पड़ता है। पुरुष के स्पर्श से नदी होना औरत के लिए बड़ा सुख है ... पोखर होना भयानक यातना.”[4]  प्रोफ़ेसर की सलाह के अनुसार एक दिन वह जेनी को पोखर बनाने (बलात्कार की पीड़ा देनेका प्रयास करता है किंतु वह नदी बन जाती है। “अपने पति की सुनियोजित अमानवीयता के बावजूद जेनी का इस तरह नदी हो जाना एक पुरुष की मंशा को नाकामयाब करते हुये उसके प्रति प्रतिरोध दर्ज करने जैसा जरूर है। कहानी की भाषा और प्रस्तुति का सम्मोहक जादू कहानी के इस अंत के साथ जुड़कर स्त्री पक्षधरता का एक झीना पाठ तैयार करते से दिखते हैं।[5]

 वह (लड़की) - वह (लड़की) ‘उस रात की वर्षा में तथा अन्य प्रेम कहानियां’ कहानी-संग्रह की कहानी ‘उस रात की वर्षा में’, जिसके आधार पर कहानी-संग्रह का शीर्षक रखा गया हैकी नायिका है। एक दिन वह खेलकर स्केट-रिंग से आ रही होती है तब उसके हाथ में अमलताश के फूलों का एक गुच्छा होता है। तभी एक पांच साल का बच्चा उसके पीछे आता है और उसके हाथ से अमलताश के फूलों  का वह गुच्छा छीनकर अपने माँ-बाप के पास दौड़कर चला जाता है। वे फूल पाकर उस बच्चे के मुख पर असीम आनंद छाया हुआ है। जब नायिका यह बात अपने कथानायक मित्र को बताती है तब उस समय उसका चेहरा उत्तेजना से लाल हो जाता है। उसके बदन में सनसनाहट-सी उठने लगती है। ऐसा लगने लगता है कि वह संभोग की चरम अवस्था में हो और उसका सुख भोग रही हो। वह कहती है कि फूलों का गुच्छा पाने के बाद उस बच्चे का आनंद से भरा चेहरा जैसा ही कुछ देखने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ।  “कोई भी ऐसी बातजो रसपरक या सुन्दर होती थीउसको इसी तरह बेसुध कर देती थी। इस दुनिया के परे की ऐसी बातें जिन्हें हम कल्पनाओं में जीते हैं या फिर किसी बात को कहने का अनोखा ढंग या कविता के रस से सराबोर उपमाएंउसको इसी तरह चरम आवेग में पहुंचा देती थी।[6] नायक सोचने लगता है कि यदि बातों से ही वह ऑर्गेज्म की स्थिति में पहुंच जाती है तो संभोग के क्षणों में उसकी स्थिति क्या होती होगीयह जानने के लिए वह योजना बनाता है। नायिका का बारिश बेहद पसंद थी और बारिश में वह अक्सर शराब भी पी लेती थी। ये दोनों बातें नायक को अपनी योजना के लिए मुफीद लगी। ऐसी ही एक बारिश की रात में नायिका उसके घर ही पहुंच जाती है। नायक इसी बात की प्रतीक्षा में था। तब नायक स्वयं भी शराब पीकर पीता है और उसे भी उसकी पसंदीदा शराब व्हाइट रम पिलाता है। इसके बाद वह अपनी योजनानुसार धीरे-धीरे नायिका की देह में प्रवेश करने लगता है। इस सारी प्रक्रिया में वह नायक को पूरा सहयोग भी करती है। नायक समझता है कि उसकी योजना कामयाब हो रही है। किंतु उसका “शरीर ढीला था बिल्कुल ... आवेग रहितवह सिर्फ मुझे सहयोग दे रही थीकोई प्रतिक्रिया नहीं थी उसकी। वह निस्पंदशांत और भावहीन थीबसबीच-बीच में कभी मुस्करा देती और तब अचानक उसकी आँखें चमकने लगतीं [7] अंत में नायक अनुभव करता है कि उसकी सारी योजना फुस्स हो गई। इस पूरी प्रक्रिया  में वह एक पल के लिए भी चरम आवेग को प्राप्त नहीं करती है। नायक के पूछने पर वह कहती है -  “कुछ दिन पहले मैंने पढ़ा था कि इस स्थिति में आदमी का चेहरा एक ऐसे बच्चे की तरह होता है जिसे अपनी जिद की चीज मिल जाती है। उतना ही खुश और चमकता हुआ। तभी मुझे वह बच्चा घ्यान आया और मैं एक बार फिर उसे देखने के लिए बेचैन हो गई ...हर समय वही चेहरा घूमता रहता था आंखों …  तभी मैंने यह सारी योजना बनाई … बरसात कीशराब कीऔर उसके लिए तुम्हें इस्तेमाल करने की। इस पूरे समय  मैं सिर्फ तुम्हें देख रही थीबस। …  सच …  उन क्षणों में तुम बिल्कुल उस बच्चे की तरह लग रहे थे।[8]  नायक हैरान रह जाता है कि जिसे वह अपनी योजना के पाश में बांधना चाह रहा थावह स्वयं उसके लिए जाल बुन रही थी और वह इस्तेमाल किया जा चुका था।   

 लड़की – लड़की ‘उस रात की वर्षा में तथा अन्य प्रेम कहानियां’ कहानी-संग्रह की कहानी ‘मायागाथा’ की नायिका है। वह एक पूल डांसर है। सात साल पहले जब वह कथानायक पाशा से मिली तब वह नाटक में अभिनय करती थी। पाशा नाटकों में संवाद लेखन का कार्य करता है। वह उस लड़की से बीस साल बड़ा है। वह थियेटर के ऊपर स्थित बंद हो चुके संग्रहालय की सीढ़ियों पर बैठकर अपने लिखे संवादों को सुना करता था। “एक रात पाशा इसी तरह सीढ़ियों पर बैठा था। तभी लड़की ऊपर आई। नाटक में उसकी भूमिका ख़त्म हो चुकी थी  वह पाशा के पास चुपचाप बैठ गई थी .....  बिना एक शब्द बोले लड़की ने पाशा के होंठ चूमे थे।  पाशा उदास , खाली आँखों से उसे देखता रहा था  बिना एक शब्द बोले ही सीढ़ियों पर उस रात लड़की ने पाशा के साथ संभोग किया था।[9]

 वनि - वनि प्रियंवद के कहानी संग्रह  ‘उस रात की वर्षा में तथा अन्य प्रेम कहानियां’ की कहानी ‘कैक्टस की नाव देह’ की नायिका है। वह कथावाचक से प्रेम करती है। “शादी के छह दिन बाद उसने मुझे छुआ। मेरे मुंह से तुम्हारा नाम निकल गया। मुझे बहुत ख़राब लगा तबलेकिन इसलिए नहीं कि तुम्हारा नाम निकला था।[10] वनि को अपने प्रेम पर किसी प्रकार की कोई ग्लानि नहीं है। वह विवाह के पश्चात भी अपने प्रेम को पूरे गर्वित-भाव से जीती है।

 वेना-वेना कहानी संग्रह ‘उस रात की वर्षा में तथा अन्य प्रेम कहानियां’ की कहानी ‘ये खंडहर नहीं हैं’ की नायिका है। वेना के पति जनार्दन बाबू एक रबर टेक्नोलॉजिस्ट हैं। जनार्दन बाबू इस देश के घोंघे जैसे कारखानों को अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी से युक्त कारखानों में बदलना चाहते हैं। वहीं वेना के लिए संगीत ही जीवन है। जनार्दन बाबू द्वारा अपनी ही धुन में जीने और वेना के भीतर के संगीत-कलाकार के प्रति विरक्ति-भाव के कारण उनका दाम्पत्य जीवन नष्ट हो जाता है। जनार्दन बाबू ऐसे ही एक छोटे कस्बे के रबर कारखाने के मालिक के आग्रह पर वहां चले आते हैं। यहां वेना की मुलाकात कारखाने के मालिक के युवा कवि-हृदय पुत्र से होती है। कमसिन युवक और अतृप्त वेना एक-दूसरे की ओर खिंचे चले आते हैं। “वेना अब शाम को जनार्दन बाबू की जगह मेरा इंतजार करने लगी थी। हमारे बीच भावनाओं का एक ऐसा पुल बना गया था जिस पर होकर हम एक दूसरे के अंदर उतरते रहते। मैं उसके आकर्षण में आकंठ डूब गया था।  इसका कारण शायद यही था कि मेरी कच्ची उमर में वह किसी नारी का पहला सामीप्य था।  बहुत कुछ हम एक-दूसरे के साथ बांटने लगे थे। अपना भविष्य ... अपनी कला और अपना मनवह मेरे अस्तित्व को । कोहरे की तरह ढंक चुकी थी। उसका संगीत ... उसका होना ... उसकी देह ... गंध सब मेरी उमर को लगातार एक अर्थ देते थे। एकदम से टूटकर मैं गिरा था उसकी तरफ़। इन दिनों में ही मैंने उसे पूरा शहर भी घुमाया था। सर्दियों की धूप में ... गर्मियों की शामों में ... दरख्तों के नीचे ... घाट पर ... मंदिरों के प्रांगणों में ... संगीत-कार्यक्रमों में आपस में फुसफुसाते ... एक-दूसरे की गंध निगलते  मैं उसको सुनता रहता था।  शब्द - शब्द करके।[11]  इस तरह वेना आगे बढ़ती जाती है और एक दिन वह अपने युवा प्रेमी से कहती है - “मेरे साथ लेट जाओफुसफुसाई वह। रोशनी के उसी पीले गुच्छे में मैं भी लेट गया। उसने चादर से मुझे भी ढक लिया। हल्के धुंधलाए अंधेरे में उसकी तपिश ... गंध ... सांसों की ... कपड़ों के सिकुड़ने की आवाज़ ... और दुबली - पतली देह। धीरे-धीरे वह कसती चली गई मुझे। वह उठ रही थी ... समुद्र में मिलने वाली नदी की तरह।[12] इसके पश्चात् वेना और जनार्दन बाबू का दाम्पत्य जीवन बिखरता चला जाता है |

लड़की - लड़की कथा संग्रह ‘कश्कोल’ की कहानी ‘गंदी’ की नायिका है। उसके दादा की एक बहुत बड़ी व पुरानी लाइब्रेरी थी जिसमें कथानायक अक्सर अध्ययन के लिए आता है। वह उससे प्रेम करती है। किंतु नायक की निर्णयहीनता से आजिज आकर वह उसके मित्र से ही विवाह करने को तैयार हो जाती है। तब नायक को बहुत बुरा लगता है। विवाह से पहले एक दिन वह नायक को भोजन पर आमंत्रित करती है। उसके लिए वह स्वादिष्ट भोजन तैयार करती हैसत्तू का घोल और अपनी प्रिय शराब परोसती है। दोनों सत्तू के घोल में शराब मिलकर शराब पीते हैं। शराब का नशा और तेज बारिश दोनों को उत्तेजित कर देते हैं। “धीरे से करवट ली और मुझे पूरी तरह ढक लिया ... चक्की के निचले पाट की तरह पड़े रहो ... बस[13] और चक्की के ऊपर वाले पाट की तरह वह हल्की लय में नायक पर गति करने लगती है।                           

 शाश्वती - शाश्वती कहानी संग्रह ‘उस रात की वर्षा में तथा अन्य प्रेम कहानियां’ कहानी-संग्रह की कहानी ‘एक पीली धूप’ की की पात्र है। ‘एक पीली धूप’ दो युवा प्रेमियों की कहानी है। एक रात शाश्वती नायक के पास आती है अपने अंदर उसका अंश ग्रहण करने - “ क्यों चाहती हूं यहजानते हो ... अपने प्यार को मूर्त बनाने के लिए ... और तुम्हारी इकलौती आस्था को जीवित रखने के लिए ... और इस समाजइस व्यवस्था से अपना बदला चुकानेइसकी छाती पर अपनी नफ़रत उगलने के लिए। यह आख़िरी युद्ध है मेरा। जो हम पूरा नहीं कर पाएवह यज्ञ हमारी संतान पूरा करेगी। शाश्वती फुसफुसाई थी, 'यह यज्ञ प्रज्ज्वलित रहेगा ... और तुम्हारा विश्वासतुम्हारा सपना भी हम और तुम इसमें अपनी आहुति देंगे ... और हमारी संतान अपने जन्म पर गर्व करेगी कि वह इस यज्ञ का पुण्य फल हैपाप नहीं ...”[14] शादी के बाद शाश्वती एक बेटी को जन्म देती है। बेटी के युवा होने पर वह उसे उसी शहर के एक हॉस्टल में डाल देती है जहाँ उसका प्रेमी कथानायक  रहता है। कथानायक ही शाश्वती की बेटी का ‘लोकल गार्जियन’ बनता है। शाश्वती का पति इस बात को जानता है कि वो उसकी पत्नी का प्रेमी रहा है। संभवतः ये भी कि उसकी बेटी उसकी खुद की बेटी नहीं है।

बूबाबूबा ‘होंठों के नीले फूल’ कहानी की मुख्य पात्र है। कहानी का दूसरा पात्र एक छोटा लड़का है जो उसे बूबा कहकर बुलाता है। बूबा एकल कामकाजी महिला है। घर में उसके बूढ़े पिता है जिनकी देखभाल का जिम्मा भी उसी का है। वह अत्यंत ममतामयी है। पतंग लेने आए बच्चे के बारे में जब उसे पता चलता है कि वह बिन माँ का बच्चा है तब वह उसके प्रति करुणा से भर जाती है। बूबा यमी को अपना जीवन आदर्श मानती है। “यमी के जीवन की स्पष्टता मेरा आदर्श है . ....... रिश्तों के नाम जीवन को बहुत छोटे-छोटे घेरों में बांध देते हैं। आँखों में कपड़ा बांधे बैल की तरह आदमी उन्हीं घेरों में घूमता रहता है। यह ग़लत है। एक बार में आदमी क्या सब रिश्ते नहीं भोग सकता ? क्या मेरे और तेरे रिश्ते का कोई नाम है ? क्या मैं तेरी सब कुछ नहीं हूंमांदोस्तबहन ... बोल ... ?”[15] लेकिन यमी के जीवन दर्शन को अपना मानने वाली बूबा व्यावहारिक स्तर पर उसे जी नहीं पाती “रात के गहन अंधकार में जो अमृत लग रहा था वही दिन के उजाले में विष प्रतीत होने लगा।[16] क्षण विशेष का सत्य उसे ग्लानि और अपराधबोध से भर देता है और पुत्रसम युवा नायक से दैहिक संबंध बनाने के अपराध-बोध से उसके होंठ नीले पड़ जाते हैं।

प्रियंवद की अधिकांश कहानियों में हम विवाहेतर संबंधों को बिना किसी ग्लानि और अपराध-बोध के साथ जीती नायिकाओं को हम देखते हैं। “विवाहेतर संबंध समाज में आधुनिक भाव-बोध की ही उपज नहीं है। दूसरी औरत हमारे समाज में तब से है जब से स्त्री-पुरुष के रहस्मय संबंध विकसित हुए। ।[17] इन संबंधों को जिन्हें समाज अवैध-संबंध कहता हैप्रियंवद कहते हैं कि “अवैध संबंधों का प्रेम मुझे आकर्षित करता है। मेरा विश्वास है कि प्रेम अपनी पूरी चमकपूरे आवेग के साथ ऐसे संबंधों में ही रहता है। आत्मा के एक खालीअंधेरे कोने में बचाकर रखे हुए आलोकित हीरे की तरह ! ऐसे संबंधों का प्रेम बहुत गंभीर और अर्थपूर्ण होता हैप्रेम के इन्हीं क्षणों में मनुष्य अपनी असली और पूरी स्वतंत्रता का उपभोग करता है। उसका पूरा जीवनव्यक्तित्वशरीर सब तरह की वर्जनाओंसमाज के घिनौने और निर्मम अंकुशों से मुक्त होता है। इन सबसे विद्रोह की एक मूक अंतर्धारा भी उसके अंदर ऐसे ही क्षणों में बहती है। कुल मिलाकर ऐसे संबंधों में प्रेम अपनी पूरी रहस्यमयतागोपनीयताआवेगआलोक और स्वतंत्रता के साथ जीवित रहता है।[18]

हम देखते हैं कि उनकी प्रेम-कहानियों में देह एक आवश्यकता के रूप में सदैव विद्यमान रहती है। “प्रियंवद प्रेम में देह की अनिवार्यता को स्थापित तो करते हैं लेकिन यौन दृश्यों की रचना नहीं करते। शारीरिक सम्बन्धों के स्थूल दृश्यों की रचना में न उलझ कर पात्रों के मनोविज्ञान और परिवेश के सूक्ष्म विश्लेषण के बहाने पाठकों के संवेदना-तन्तु को जागृतझंकृत और उद्वेलित करने की जो असाधारण कलात्मकता  प्रियंवद की कहानियों में दिखाई देती हैवह उनके कथाकार को अलग और विशिष्ट बनाता है।[19] ‘दर्शक’ कहानी में प्रियंवद लिखते हैं कि “गहरे दुख में स्त्री देह एक शरण हैचूल्हे की आंच में जैसे कोई कच्ची चीज़ परिपक्व होती है ... उसी तरह पुरुष के क्षत - विक्षतखंडित अस्तित्व को वह देह सम्हालती है ... धीरे - धीरे अपनी आंच में फिर से पका कर जीवन देती हैस्त्री - देह कितनी ही बारचुपचापकितनी तरह से पुरुष को जीवन दे देती हैपुरुष को नहीं पता होता.”[20] इसी संग्रह की कहानी ‘ये खंडहर नहीं है’ की नायिका वेना का कथन है कि “औरत को कोई पूरी तरह तभी जान सकता है जब उसकीदेह को भी जान लेउससे पार हो जाए .... औरत बहुत कुछ अपनी देह में छिपाकर रखती हैवह सब उसकी देह की एक-एक पर्त के साथ खुलता है. .... प्रतिक्रियायित होता है.”[21] चित्रा मुद्गल की पुस्तक ‘तहखानों में बंद अक्स’ में घरों में झाड़ू-पोंछा व बर्तन साफ करने वाली काशीबाई से जब वह प्रेम के संबंध में पूछती तब उसका उत्तर होता है – “आई के मन में ममता होती है न ! वो पैला बच्चा को लई प्यार करतीदूसरे को पन तीसरे को पन। जास्ती-कमती तो चलता है। ऐसाच प्रेम भी होता है। प्रेम अपना बच्चा सरीखा अपना शरीर से जन्म लेता है। अउर बिगर शरीर के तो होने को नहीं सकता।[22] प्रेम में देह कितनी महत्त्वपूर्ण है और प्रेम एक बार नहीं बार-बार होता है जैसे सूत्र कितनी आसानी से समझा देती हैं काशीबाई। “अपने सहज रूप में प्रेम स्त्री को आज़ाद करता हैमुक्ति का उत्सव है स्त्री के लिए प्रेम। उत्सव अकेले नही मनाया जाता। एक पुरुष को भी यह उतना ही आज़ाद करता है। यह बने-बनाए जीवन सिद्धांतोंपरंपरागत नियमों और स्थापित संस्थाओं को तक पर रखता हैअपने रास्ते व मंज़िलें खुद तय करता हैदोनों में से किसी एक को झुके बिना।[23]   

    इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रियंवद की कथा-नायिकाएं अपनी देह को अपने अस्तित्व बोध का माध्यम बनाकर निःसंकोच भाव से जीती चली जाती हैं। प्रेम और देह के संबंध में विचार प्रकट करते हुए प्रियंवद कहते हैं “देह के साथ प्रेम हो यह जरूरी नहीं है मगर प्रेम के साथ देह का होना जरूरी है। बिना प्रेम के देह-संबंध बनाना बहुत आसान है। बाजार में लाखों संबंध रोज बनते हैं। वैसे प्रेम देह के बिना भी संभव है लेकिन उसकी संपूर्णता देह के साथ ही आती है।[24] स्त्री का अपनी देह पर अधिकार निश्चित रूप से होना चाहिए किंतु क्या यह लैंगिकता और रिश्तों की मर्यादा का अतिक्रमण करने वाला होना चाहिएप्रियंवद से पाठक सहमत-असहमत हो सकते हैं पर उनकी “जादू जगाती भाषाअनदेखे-अनजाने परिवेश-पात्र प्रियंवद की कहानियों में ऐसे आते हैं कि पाठक दांतों तले ऊँगली दबाते रह जाते हैं।[25] देह के सत्य और विवाहेतर संबंधों के जिस प्रारूप की प्रस्तावना प्रियंवद करते हैं अंततः वहां क्यूं बूबा के होंठ नीले पड़ जाते हैंक्यूं वेना कैबरे डांसर बनने पर मजबूर हो जाती हैये प्रश्न अभी अनुत्तरित हैं। “यह तो तय है कि प्रेम में देह बहुत-बहुत उपस्थित होकर भी ... एक मकाम पर आकर अस्तित्वविहीन हो जाती है।[26] प्रियंवद की इसी संग्रह की कहानी ‘अधेड़ औरत का प्रेम’ यही सिद्ध करती है और उनकी अन्य सभी कहानियों का विलोम रचती है। किंतु इतना तो तय है कि प्रियंवद की ये कथा-नायिकाएं विद्रोही चरित्र हैं और अपने नायकों या पुरूष पात्रों की तुलना में अधिक सशक्त हैं। 

सन्दर्भ -

[2] प्रियंवद : उस रात की वर्षा में और अन्य कहानियां, संवाद प्रकाशन, मेरठ, पृष्ठ 22

[3] वही, पृष्ठ 23

[4] वही, पृष्ठ 29-30

[6] प्रियंवद : उस रात की वर्षा में, संवाद प्रकाशन, मेरठ, संस्करण 2018, पृष्ठ 35-36

[7] वही, पृष्ठ 44

[8] वही, पृष्ठ 44

[9] वही, पृष्ठ 96-97

[10] वही, पृष्ठ 110

[11] वही, पृष्ठ 129

[12] वही, पृष्ठ 135

[13] वही, पृष्ठ 157

[14] वही, पृष्ठ 220

[15] वही, पृष्ठ 287

[17] चित्रा मुद्गल : तहखानों में बंद अक्स, पृष्ठ 42

[18] प्रियंवद : उस रात की वर्षा में, संवाद प्रकाशन, मेरठ, संस्करण 2018, पृष्ठ 158

[20] प्रियंवद : उस रात की वर्षा में, संवाद प्रकाशन, मेरठ, संस्करण 2018, पृष्ठ 237

[21] वही, पृष्ठ 130

[22] चित्रा मुद्गल : तहखानों में बंद अक्स, पृष्ठ 15

[23] सुजाता : स्त्री निर्मिति, पृष्ठ 63

[24] प्रियंवद : आईनाघर,संवाद प्रकाशन,मेरठ, 2008, पृष्ठ 265

[25] https://www.jankipul.com/2012/04/blog-post_13-15.html

[26] सं. मनीषा कुलश्रेष्ठ : कहानियाँ रिश्तों की : प्रेम , राजकमल पेपरबैक्स, नई दिल्ली, पृष्ठ 09 


विष्णु कुमार शर्मा

शोधार्थी

हिंदी विभाग मोहनलाल सुखाड़िया विविउदयपुर

एवं सहायक आचार्यहिंदी

मातुश्री शांताबा हजारीमलजी के पी संघवी राजकीय महाविद्यालय रेवदरसिरोहीराजस्थान

 7014180649, vishu.upadhyai@gmail.com         

   अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)

अंक-35-36, जनवरी-जून 2021

चित्रांकन : सुरेन्द्र सिंह चुण्डावत

        UGC Care Listed Issue

'समकक्ष व्यक्ति समीक्षित जर्नल' 

( PEER REVIEWED/REFEREED JOURNAL) 

Post a Comment

और नया पुराने