प्रवासी दुनिया:अभिमन्यु अनंत की कविताओं में चित्रित प्रवासी जीवन – ऐश्वर्या पात्र

त्रैमासिक ई-पत्रिका
वर्ष-3,अंक-24,मार्च,2017
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प्रवासी दुनिया:अभिमन्यु अनंत की कविताओं में चित्रित प्रवासी जीवन – ऐश्वर्या पात्र

   
चित्रांकन:पूनम राणा,पुणे 
पिछले कुछ दशकों से विदेशों में जो हिंदी साहित्य का सृजनात्मक विस्फोट हुआ है, उससे हिंदी का वैश्विक स्वरुप काफी विकसित हुआ है। इसमें प्रवासी साहित्यकारों का एक विशिष्ट योगदान रहा है। यदि आज विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली पाँच भाषाओं में हिंदी का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है तो इसमें कोई दोराय नहीं है कि उसका श्रेय उस विशाल प्रवासी समुदाय को जाता है जो भारत से इतर देशों में जाकर बसने के बावजूद हिंदी को अपनाए हुए हैं, उसे जिंदा रखे हैं। अपनी भाषा और जमीन से जुड़े रहे। घर से दूर रहने की पीड़ा को झेलते हुए भी साहित्य के माध्यम से अपने देश की संस्कृति को जीवित और सुरक्षित रखे हैं। 

  प्रवासी साहित्य के अंतर्गत वे सारी साहित्यिक विधाएँ मौजूद हैं जिनके द्वारा साहित्य की जड़ आज इतनी समृद्ध हुई है। इन प्रवासी साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति और परंपरा को न केवल सुरक्षित रखा है बल्कि उसे एक नया आयाम भी प्रदान किया है। मॉरिशस के प्रसिद्ध हिंदी लेखक अभिमन्यु अनत भी उन्हीं में से एक हैं। जिन्होंने अपनी रचनाओं के दम पर हिंदी साहित्य को पूरे विश्व में प्रतिष्ठित किया है। 

    हिंदी जगत के शिरोमणि तथा मॉरिशस के महान कथा-शिल्पी अभिमन्यु अनत का जन्म 9 अगस्त, 1937 ई. को त्रिओली, मॉरिशस में एक गरीब परिवार में हुआ था। आर्थिक कठिनाईयों की वजह से उनकी माध्यमिक शिक्षा अधूरी रही पर उन्होंने अपने श्रम और लगन से हिंदी का अध्ययन घर पर ही किया। घर पर हिंदी का वातावरण होने के कारण उनमें बचपन से ही हिंदी पढ़ने-लिखने का शौक उत्पन्न हो गया। हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अभिमन्यु अनत का पदार्पण पहले पहल कहानीकार के रूप में हुआ था जब पहली बार उनकी कहानी ‘रानी’ पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। तब से वे निरंतर लिखते गये। हिंदी साहित्य के प्राय: हर विधा पर उन्होंने अपनी कलम चलायी है। अभिमन्यु अनत एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न लेखक हैं। वे एक साथ कवि, नाटककार और कथा लेखक तीनों हैं। अभिमन्यु अनत ने अपनी प्रतिभा के द्वारा हिंदी कविता को एक नयी दिशा दी है। जिसके कारण हिंदी कविताएँ न केवल मॉरिशस में बल्कि पूरे विश्व में अपनी काया विस्तारित करती चली जा रही है। इनकी कविताओं में वैविध्यपन साफ झलकता है। व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह, सर्वहारा वर्ग के प्रति सहानुभूति, शोषण के प्रति आक्रोश, अभिमन्यु अनत के कविताओं की विशेषता रही है।  इनकी  चार काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनके नाम कुछ इस प्रकार हैं – ‘नागफनी में उलझी साँसे’ 1977, ‘कैक्टस के दांत’ 1982, ‘एक डायरी बयान’ 1987 तथा ‘गुलमोहर खौल उठा’ 1994 । इसके अतिरिक्त आपने ‘मॉरिशस की हिन्दी कविता’ और ‘मॉरिशस के नौ हिन्दी कवि’ नामक  काव्य-संग्रह का संपादन भी किया है। 

    अभिमन्यु अनत ने अपनी कविताओं में अधिकतर मजदूरों के शोषण, अन्याय, अत्याचार  तथा दमन के खिलाफ आवाज बुलंद किया है, जिसका उदाहरण हमें इन पंक्तियों में देखने को मिलता है :- 

“मेरे पूर्वज़ों के साँवले बदन पर 
जब बरसे थे कोड़े 
तो उनके चमड़े 
लहूलुहान होकर भी चुप थे 
चीत्कारता तो था 
गोरे का कोड़ा ही 
और आज भी 
कई सीमाओं पर 
बंदूकें ही तो चिल्ला-कराह रही हैं 
भूखे नागरिक तो 
शांत सो रहे हैं 
गोलियाँ खाकर ।”1

  अभिमन्यु अनत अपने खुद के जीवन में एक मजदूर रह चुके हैं इसलिए उनकी कविताओं में मजदूरों के प्रति संवेदनात्मक भाव की उपज स्वभाविक है। ‘अधगले पंजरों पर’ कविता इस बात की साक्षी है। इस कविता का मुख्य स्वर मॉरिशस में बसी उन तमाम श्रमजीवियों की वेदना है जिसको कवि ने बड़े ही मार्मिक ढ़ंग से अभिव्यक्त किया है। जैसे :-

“मॉरीशस के उन प्रथम 
मज़दूरों के 
अधगले पंजरों पर के 
चाबुक और बाँसों के निशान 
ऊपर आ जायेंगे
उस समय 
उसके तपिश से 
द्वीप की सम्पत्तियों पर 
मालिकों के अंकित नाम 
पिघलकर बह जायेंगे”2

  कभी–कभी इतिहासकारों से भी इतिहास की कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ छूट जाती हैं जिन्हें संपूर्ण करने का दायित्व एक साहित्यकार को उठाना पड़ता है। अभिमन्यु अनत को भी यह दायित्व उठाना पड़ा ओर मॉरिशस के इतिहास में घटी उस समय को दिखाना पड़ा जिसे कई बार इतिहासकारों ने महत्वपूर्ण नहीं मान कर छोड़ दिया था। वर्षों पूर्व भारत से गये गिरमिटिया मजदूर किस कदर मॉरिशस के जमीन पर अपनी जड़ और अस्मिता की तलाश में भटक रहे हैं उसकी व्याख्या उन्होंने अपनी इस कविता के माध्यम से किया है  –

“आज अचानक हवा के झोंकों से 
झरझरा कर झरते देखा 
गुलमोहर की पंखुड़ियों को 
उन्हें खामोशी में झुलसते छटपटाते देखा 
धरती पर धधक रहे अंगारों पर 
फिर याद आ गया अचानक 
वह अनलिखा इतिहास मुझे
इतिहास की राख में छुपी 
गन्ने के खेतों की वे आहें याद आ गयीं 
जिन्हें सुना बार-बार द्वीप का 
प्रहरी मुड़िया पहाड़ दहल कर काँपा 
बार-बार डरता था वह भीगे कोड़ों की बौछारों से 
इसलिए मौन साधे रहा 
आज जहाँ खामोशी चीत्कारती है 
हरयालियों के बीच की तपती दोपहरी में 
आज अचानक फिर याद आ गये 
मज़दूरों के माथे के माटी के वे टीके 
नंगी छाती पर चमकती बूँदें 
और धधकते सूरज के ताप से 
गुलमोहर की पंखुड़ियाँ ही जैसे 
उनके कोमल सपने भी हुए थे 
राख आज अचानक 

हिन्द महासागर की लहरों से तैर कर आयी 
गंगा की स्वर-लहरी को सुन 
फिर याद आ गया मुझे वह काला इतिहास 
उसका बिसारा हुआ वह अनजान आप्रवासी देश के 
अन्धे इतिहास ने न तो उसे देखा था 
न तो गूँगे इतिहास ने कभी सुनाई उसकी पूरी कहानी हमें 
न ही बहरे इतिहास ने सुना था 
उसके चीत्कारों को 
जिसकी इस माटी पर बही थी 
पहली बूँद पसीने की 
जिसने चट्टानों के बीच हरियाली उगायी थी 
नंगी पीठों पर सह कर बाँसों की 
बौछार बहा-बहाकर लाल पसीना 
वह पहला गिरमिटिया इस माटी का बेटा
जो मेरा भी अपना था तेरा भी अपना ।”3 

वास्तव में यह कविता प्रलोभन से लायी गयी उन तमाम भारतीय अप्रवासी मजदूरों की,  उनके पूर्वजों की संघर्ष-गाथा को तथा अन्याय और अत्याचार से मुक्ति पाने की छ्टपटाहट को दर्शाता है, जिनकी मृत्यु इतिहास की मृत्यु थी। अभिमन्यु अनत की दृष्टि समकालीन बेरोजगारी एंव आर्थिक संकटों की ओर भी गया है। इसलिए उन्होंने व्यवस्था के ऊपर व्यंग्य बाण कसा है और उस गरीब समुदाय को दिखाया है जो इस व्यवस्था के द्वारा सताये जा रहे हैं। भूखे पेट दिन रात काम करने की व्यथा, वर्तमान की आर्थिक संकट से उपजी यथार्थता को बड़ी जीवंतता के साथ रेखांकित किया है – 

“ तुमने आदमी को खाली पेट दिया 
ठीक किया 
पर एक प्रश्न है रे नियति
खाली पेट वालों को 
तुमने घुटने क्यों दिये? 
फैलानेवाला को हाथ क्यों दिया?”4 

वास्तव में अभिमन्यु अनत की कविताएँ अपने आप में संपूर्ण हैं। उनकी कविताएँ आम आदमी के जीवन से सरोकार रखने वाली कविताएँ हैं। जो समाज के शोषित, पीड़ित एवं निर्धन आदमी के दुख-दर्द को अभिव्यक्ति देती हैं। साधनहीन मजदूरों के प्रति पूंजीपतियों के कटुता को व्यंग्यपूर्ण ढंग से व्याख्यायित करती है। साथ ही साथ इनकी कविताओं में निर्धन वर्ग की आर्थिक विपन्नता तथा विवशता की झांकियाँ भी हैं।   

  अभिमन्यु अनत ने अपनी कविताओं के माध्यम से अप्रवासी समाज के अनुभव और यथार्थता को बड़े मार्मिक ढ़ंग से चित्रित किया है। उनकी कविता उत्पीड़ित समाज के उन मुश्किल भरे जीवन संघर्ष की ओर संकेत है जिससे आज का समकालीन समाज जूझ रहा है। वर्षों पूर्व मुख्यधारा का समाज गरीबों के साथ जिस प्रकार अमानवीय व्यवहार कर रहा था वह बर्ताव तथा रवैया आज भी हमारे समाज में मौजूद हैं। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक अस्मिता, आर्थिक विषमता, राजनीतिक घपलेबाजी, सामाजिक न्याय से वंचित नागरिक, ऊचें पदों पर अयोग्य व्यक्तियों की नियुक्ति तथा अपने देश और लोगों से अलग होने की विडबंना आदि कुछ ऐसे सवाल हैं जो उनकी कविताओं को दूसरे कविताओं से अलग कर विशेष बना देती हैं। उनकी कविताओं की दूसरी एंव महत्वपूर्ण विशेषता उनकी भाषा है, जिसके संबंध में श्रवणकुमार लिखते हैं- “अभिमन्यु की भाषा भी “अपनी” है। मैं चाहता हूँ इस का सही विकास हो। अभिमन्यु में सामर्थ्य है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि कलात्मक दृष्टि से भी उसमें और-और निखार आयेगा।” वास्तव में हिंदी भाषा के प्रति उनका लगाव उनकी कविताओं में साफ-साफ नजर आता है।      


संदर्भ सूची –
  1. अभिमन्यु अनत, कविता-खामोशी, संग्रह - गुलमोहर खौल उठा,कविता कोश ऑन लाइन साईट से लिया गया है।
  2. हिंदी समय . कॉम ऑन लाइन वेव साइट से यह कविता लिया गया है।
  3. हिंदी समय . कॉम वेव साइट से यह कविता ली गयी है।
  4. हिंदी समय . कॉम वेव साइट से यह कविता ली गयी है।
  5. डॉ. मुनीश्वरलाल चिंतामणि, मॉरिशसीय हिंदी साहित्य (एक परिचय) , पृष्ठ – 56


सहायक संदर्भ ग्रंथ :- 
  1. मॉरिशसीय हिंदी साहित्य (एक परिचय), डॉ. मुनीश्वरलाल चिंतामणि, प्रकाशन 
  2. वेव सामग्री- हिंदी समय. कॉम , कविता कोश ऑनलाईन साईट

ऐश्वर्या पात्र
शोधार्थी, हिंदी विभाग, 
अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद -500 007
संपर्क:aisoryapatra@gmail.com,7382549517
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