बिहार राज्य के किसान अश्विनी सिंह से रविश कुमार की बातचीत

त्रैमासिक ई-पत्रिका
अपनी माटी
(ISSN 2322-0724 Apni Maati)
वर्ष-4,अंक-25 (अप्रैल-सितम्बर,2017)
                     किसान विशेषांक 


   
बिहार राज्य के किसान अश्विनी सिंह से रविश कुमार की बातचीत

बिहार के गाँव सलेमपुर, पोस्ट सूर्यगढ़ा, लखीसराय जिले के किसान अश्विनी सिंह से रविश कुमार ने किसान के मुद्दे को लेकर विस्तृत बातचीत की है –सम्पादक

आप कितने दिनों से खेती में लगे हैं और कितने खेत हैं आपके पास?
किसान हमारे पाँच भाइयों में संयुक्त रूप से लगभग 15 बीघे खेत हैं, जिसे हम स्वयं करते हैं। बाकी चार भाई शहर में रहकर अलग-अलग काम करते हैं। लगभग 20 वर्ष से खेती कर रहे हैं।

आपके खेत किस तरह के हैं, एक फसली या दो फसली। एक जगह या अलग-अलग?
किसान खेत छोटे-छोटे ही हैं ज्यादातर और अलग-अलग जगह हैं। कुछ एक फसली हैं और कुछ दो फसली भी। पर कुछ वर्षों से एक ही फसल हो पा रहा है।

आप किन-किन फसलों को उपजाते हैं?
किसान हमारे गाँव में मुख्यतः रबी फसल उपजाया जाता है, जिसमें गेहूँ, दलहन एवं तिलहन प्रमुख हैं। थोड़ा बहुत भदई फसल भी, जिसमें बरसाती मक्का एवं सब्जी आता है। पर अब भदई फसल नहीं हो पाता है।

भदई फसल क्यों नहीं हो पा रहा?
किसान इसका कारण जलजमाव है। जलजमाव से बहुत नुकसान हो रहा है। कुछ साल पहले अच्छी दलहन और तिलहन होती थी, क्योंकि समय पर बुआई हो जाती थी। अब पानी अधिक समय तक खेतों में जमा रहने के कारण बुआई में देरी हो जाती है। उसके बाद किसी तरह गेहूँ ही बस बो दिया जाता है। दलहन-तिलहन न के बराबर ही। भदई मक्का भी नहीं ही हो पाता है, क्योंकि दो-तीन दफे ही बारिश हो जाती है, तो खेतों में मात्रा से अधिक पानी जमा हो जाता है और फसल गल जाते हैं।

जलजमाव की समस्या उत्पन्न होने का क्या कारण लगता है आपको?
किसान जल निकासी के लिए पइन हैं, जो कि दूसरे गाँवों से भी होकर जाता है। धीरे-धीरे अधिकतर पइन बंद (भर) हो गये। कुछ अपने हित में भी बंद कर दिये। सरकार भी सही से ध्यान नहीं दिया। कभी-कभी सफाई होती है पइन की, पर जैसे-तैसे कर दिया जाता है। कुछ गाँव के प्रभावशाली लोग भी अपने हित में जलनिकासी के रास्ते को अनुचित तरीके से बंद कर दिये।

खेती के साथ और भी कोई काम करते हैं? खेती में जानवर का प्रयोग करते हैं?
किसान केवल खेती से जीवनयापन मुश्किल ही है। खेती के साथ गाय पालते हैं, दूध के लिए। कुछ अपने घर रखते हैं, बाकि दूध बेचना पड़ता है, ताकि बच्चे थोड़ा पढ़ सके और अन्य काम भी हो। साथ ही हमारे गाँव में सबके पास कुछ न कुछ आम के पेड़ हैं। आम के दिनों में आम-व्यापारी, किसान से आम खरीदकर बाजार ले जाते हैं। इससे हमलोगों को अच्छी आर्थिक मदद मिल जाती है।

और भी कोई समस्या है, आपके क्षेत्र की?
किसान इस समय लगभग चार-पाँच सालों से, हमारे यहाँ नीलगाय के आ जाने से फसलों का बहुत नुकसान हो रहा है। गंगा के दियारा क्षेत्र में नीलगाय बहुत हैं। पता नहीं, कैसे, चार-पाँच इधर आ गये, धीरे-धीरे बड़ी संख्या हो गयी इनकी। कभी-कभी ये पूरी फसल भी बर्बाद कर देते हैं। कुछ किसानों के लिए हमारे यहाँ एक अन्य समस्या, मिट्टी कटाई की है। कई जमीन मालिक तुरंत लाभ के लिए अपने खेतों से मिट्टी कटवाकर चिमनी वालों को बेच रहे हैं। कुछ तो बहुत गहराई तक मिट्टी कटवा दिये, जिससे उनके बगल वाले खेतों को भी नुकसान हो रहा है।

इसके लिए समस्या झेल रहे किसान (बगल वाले), किसी सरकारी कार्यालय में शिकायत नहीं किये?
किसान किसान डरते हैं, सरकारी कार्यालय जाने से। पता नहीं, क्या होगा, जाने पर। कौन उतना भागदौड़ करेगा? आखिर जमीन भी तो उनकी अपनी है, जो मन आये करे।

अच्छा आप अपनी उपज को कहाँ बेचते हैं?
किसान गाँव के ही छोटे-छोटे व्यापारी हैं। वहीं घर पर आकर ले जाते हैं। जैसा दाम होता है, वो अपने अनुसार देते हैं।

सरकार के द्वारा अनाज के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण किया जाता है। साथ ही अनाज के लेने की भी व्यवस्था की जाती है, इसके बारे में आप नहीं जानते हैं क्या?
किसान हाँ, सुनने में आता है। पर हमारे गाँव से कोई अपना अपना अनाज लेकर सरकारी जगह नहीं जाते। और जाये भी क्यों, सरकारी कार्य, सरकारी जैसा ही होता है। पता नहीं, अनाज कब लेंगे, और ले भी लिये, तो पैसे कब देंगे? और ले भी लिये तो, पैसे कितने दिन बाद देंगे, पता नहीं? उससे अच्छा तो व्यापारी ही है, सब काम तुरंत ही निपट जाता है। भले ही कितना ही मिले, पर काम के समय पैसे तो मिल जाते हैं।

आप सिचाई कैसे करते हैं?
किसान कुछ किसान अपनी जमीन पर अपना खुद का ट्यूबवेल बोयरबेल लगवाये हैं। आसपास के किसान उन्हीं से किराये पर अपने खेत की सिंचाई करते हैं। प्रति घंटे की दर से पैसा लिया जाता है। सरकार द्वारा बहुत पहले गंगा पंप नहर बनवाया गया था। कुछ दिन चला, अब वर्षों से बंद ही है।

खेती में कोई सरकारी सहायता मिलती है?
किसान कभी-कभी कुछ बीज-खाद मिलता है। खाद का उपयोग कर देते हैं, पर बीज का उपयोग नहीं ही करते हैं। विश्वास नहीं हो पाता है। कुछ गड़बड़ हो जाये, इसलिए दुकान से ही बीज लेकर प्रयोग करते हैं।

किसान के फसल नुकसान होने पर उनके लिए सरकार ने बीमा कराने की व्यवस्था की है? आपने कभी करवाया है, फसल बीमा?
किसान नहीं, कभी नहीं। इसके बारे में कुछ जानते भी नहीं हैं।

भारत सरकार ने किसानों के लिए बहुत सी योजनाएँ चलायी हैं। कृषि मंत्रालय का नाम बदलकर किसान कल्याण मंत्रालय किया गया है। क्या आपको कुछ अनुभव हो रहा है?
किसान सरकार जितना अन्य के बारे में सोचती है, उतना किसान के बारे में नहीं सोचती है। कुछ अंतर नहीं दिख रहा है। एक बार सुने कि जमीन अधिग्रहण कर लेगी सरकार, जब उसका मन करेगा। इससे डर हो गया था, पता नहीं क्या होगा? कम से कम जमीन तो रहने दे सरकार, भले ही कुछ मदद न करे।

कृषि ऋण भी लिये हैं कभी? इसके चुकाने के बारे में क्या सोचते हैं?
किसान हाँ, ऋण तो लिया है। सरकार माफ कर दे, तो, अच्छा ही होगा। थोड़ी राहत मिल जायेगी।

किसान आत्महत्या करते हैं। इस पर क्यो सोचते हैं आप?
किसान पता नहीं, क्यों आत्महत्या करते हैं किसान। हमारे यहाँ, तो वैसी स्थिति नहीं है। किसी तरह जीवन-यापन कर ही लिया जाता है। आत्महत्या करने से क्या होगा? घर में और भी तो लोग हैं, उनके बारे में भी सोचना पड़ता है। वैसे जहाँ के लोग ऐसा करते हैं, ये तो वहाँ जाने पर सही से पता चलेगा। वहां के किसान क्यों करते हैं ऐसा।

अभी कुछ जगह किसान आंदोलन भी कर रहे हैं। सड़क पर दूध-सब्जी फेंककर विरोध कर रहे हैं, क्या लगता है आपको?
किसान आंदोलन, विरोध तो करना सही है, पर हिंसा न किया जाए। किसान तो ऐसा हिंसात्मक नहीं हो सकते। भले ही और लोग हो सकते हैं। और सड़क पर दूध, सब्जी तो नहीं बर्बाद कर सकते हैं। हमें कुछ न कुछ दाम तो मिल ही जाएगा। हो सकता है, यह करवाया जा रहा हो किसानों से और बदले में इसका मूल्य चुका दिया गया हो, तभी ऐसा हो सकता है।

क्या आप अपने बच्चों को खेती में लाना चाहते हैं?
किसान नहीं, किसी तरह पढ़-लिखकर नौकरी या कोई अन्य कार्य करें। खेती तो, जो पढ़ नहीं पाते हैं, कुछ कर नहीं पाते हैं। अंत में खेती करते हैं। अब मजदूरी। पिता जी के समय खेती अच्छी मानी जाती थी। अब तो खेती करना लोग अंत में चुनते हैं।

अच्छा सरकार से आप क्या चाहते हैं?
किसान सबसे पहले तो सरकार रासायनिक खाद से मुक्ति दिलाये और अनाज का सही, उचित मूल्य दिलाने की कोशिश करे। अन्य चीज के दाम तो बहुत बढ़ गये हैं और बढ़ ही रहे हैं। पर अनाज का उस तरह से दाम नहीं मिल पाता है, हमलोगों को।

धन्यवाद, आपने अपना समय दिया।
किसान आपका भी धन्यवाद।

रवीश कुमार
विधि स्नातक, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी। 
ग्राम सलीमपुर, पोस्ट सूर्यगढ़ा, जिला लखीसराय, बिहार
मो.9044260231. ई-मेल raveesh.bhu89@gmail.com

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