रामचरित मानस अद्भूत जीवनी
शक्ति का काव्य
गोस्वामी तुलसीदास जी को मध्ययुग का जननायक माना जाता है। तुलसीदास राम काव्य के पुरोधा कवि हैं क्योंकि इन्होनें अपने युग की विशेष परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए समूची मानव जाति के लिए भक्तिपूर्ण सामाजिक संस्कृति प्रधान, मार्गदर्शक ग्रन्थ ‘रामचरितमानस’ की रचना की है। सही मायने में तुलसी की इस काव्यरचना के समक्ष बाकि सभी रामकाव्य के कवि प्रतीत होते है। तुलसीदास उच्चकोटि के रचनाकार है।
प्रसिद्ध इतिहासकार ‘वेन्सेंट स्मिथ’ ने ‘‘इन्हें अपने युग
का सर्वश्रेष्ठ पुरूष माना है और इन्हें अकबर से भी महान इस कारण स्वीकार किया है
कि इन्होनें जो करोड़ो मानव हृदयों पर शाश्वत विजय अपनी रचनाओं द्वारा प्राप्त की
है उनके सामने सम्राट अकबर की राजकीय विजय नगण्य है।’’
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के
अनुसार तुलसीदास जी ने बारह ग्रंथों की रचना की थी जिनमे से रामचरितमानस महाकाव्य
है। बाकि रचनाएं मसलन बरवे रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, वैराग्य संदीपनी, रामाज्ञा प्रश्न, दोहावली, कवितावली, गीतावली, श्रीकृष्ण
गीतावली, विनय पत्रिका, और रामलला नहहूं
आदि मिलती है। यह रचनाएँ खंड काव्य, मुक्तक काव्य, प्रबंधात्मक
मुक्तक और लोकगीतात्मक मुक्तक काव्य रूप में रचित है।
तुलसी रचित रामचरित मानस
वैश्विक साहित्य का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। प्रस्तुत ग्रन्थ में वेद, शास्त्र, पुराण, धर्म, संस्कृति, जीवन मूल्यों आदि
का सार मिलता है। हालाँकि तुलसी ने अपनी काव्य रचना का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए
मानस में लिखा है की वे स्वांतः सुख हेतु रघुनाथ गाथा लिख रहे हैं। लेकिन उनकी सभी
रचनाएँ लोकहित की दृष्टि से ही लिखी गई हैं। तुलसी मानस के उत्तरकाण्ड में कलिकाल
की विस्तृत चर्चा करते हैं और रामकथा का आदर्श प्रस्तुत करते हुए समाज परिवर्तन की
प्रेरणा देते हैं । तुलसी राम के अवतार का कारण बताते हैं।
जब जब होइ धर्म की हानी ।
बाढ़हि असुर महा अभिमानी।
बाढ़हि असुर महा अभिमानी।
तब तब धरि प्रभु मनुज
सरीरा।
हरहिं सकल सज्जन भव पीरा।
हरहिं सकल सज्जन भव पीरा।
भारतीय जीवन मूल्यों की
आदर्श व्याख्या मानस में विद्यमान है। उदात्त मानव जीवन यात्रा की एक परिपूर्ण
कल्पना का साकार रूप इसमें दिखलाई पड़ता है। रामचरित मानस का कलेवर सात कांडों में
विभक्त है। यह ग्रन्थ अवधी भाषा में दोहा - चैपाई छंद शैली में रचित है। प्रत्येक
कांड का आरम्भ संस्कृत भाषा में मंगलाचरण द्वारा किया गया है। यह ग्रन्थ महज सनातन
मूल्यों की पुनः स्थापना नहीं करता अपितु वर्तमान और भविष्य के लिए आदर्श रामराज्य
का यूटोपिया भी प्रस्तुत करता है और राजनैतिक सीख का अत्युत्तम उदाहरण परोसता है।
मानस के नायक श्री राम सर्वप्रथम एक आदर्श मानव हैं जो मानव कल्याण के लिए धरती पर अवतरित हुए हैं। वह धीर वीर और गंभीर हैं।
विप्र धेनु सुर संत हित
लीन्ह मनुज अवतार।
राम का व्यक्तित्व शील, शक्ति और सौंदर्य
का अगाध भंडार है। वह मर्यादा पुरषोत्तम हैं। सनातन मूल्यों की रीति के पालक हैं।
राम का चरित्र से वा धर्म के द्वारा लोक हित की सिद्धि करता है। वह सामान्य जन के
लिए महती प्रेरणास्पद है। लिहाजा वर्तमान में राम विश्वनायक के चारित्रिक मूल्यों
को धारण किये हुए हमारे लिए आदर्श पुरुष के रूप में वंदनीय है।
लक्ष्मण चपल और उग्र
स्वभाव के पात्र हैं। भात्र प्रेमी हैं। भरत का चरित्र शीलता की अंतिम कसौटी है।
भातृ भक्ति का अनूठा आदर्श है मानवीय चरित्र भी इससे ऊपर नहीं जा सकता। भरत का
चरित्र इतना उज्ज्वल है की प्रकृति भी उनके प्रति सहानुभूति रखती है।
‘‘जहँ जहँ जाय भरत
रघुराया,
तहँ तहँ मेघ करहिं नवछाया’’।
तहँ तहँ मेघ करहिं नवछाया’’।
राजा दशरथ सत्यवादी
धर्मनिष्ठ राजा है जो वचन देकर धर्म और प्राण देकर पुत्र प्रेम की रक्षा करते हैं।
रावण, मेघनाथ जैसे
राक्षसी चरित्र वाले अहंकारी पात्र हैं जो धर्म नीति से च्युत हो गए है। ऐसे
पात्रों का अंत हम सभी को बुराई और असत्य की हार से अवगत कराता है। स्त्री पात्रों
में सीता आदर्श भारतीय नारी की प्रतिमूर्ति है जो कर्तव्य और पति के साथ वन जाने
हेतु तर्क पूर्ण उत्तर द्वारा राम को भी निरूतर कर देती है।
जिय बिनु देहु, नदी बिनु वारि।
तैसिये नाथ पुरुष बिनु नारी।
तैसिये नाथ पुरुष बिनु नारी।
कहँ चन्द्रिका चंद्र तजि
जाई।
कौशल्या, सुमित्रा ममतामयी
माँ का प्रतिनिधित्व करती हैं। कैकेयी को अंततः स्वकर्मों का पश्चाताप होता है और
वह भी निर्मल हो जाती है।
‘‘लख सीय सहित सरल
दोउ भाई,
कुटिल रानी पछितानि अघाइ।
कुटिल रानी पछितानि अघाइ।
चित्रकूट की सभा में राम
सर्वप्रथम कैकेयी के चरण स्पर्श कर उन्हें अपराध बोध से मुक्त करते हैं। इस प्रकार तुलसी जहाँ मानस के आदर्श स्त्री
पात्रों के साथ साथ अन्य स्त्री संबंधी कई सवालों से हमें रूबरू करवाते हैं वही
समाधान भी देते चलते हैं। इस महाकाव्य में तुलसी ने विभिन्न संस्कृतियों के
पात्रों को भी महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है मसलन दानव, नर किन्नर वानर
भालू, जांबवान जटायु
आदि के साथ साथ भील, कौल, किरात, शबरी, निषाद, केवट, सभी से संवाद
स्थापित किया है। दरअसल आज के इस दौर में तुलसी द्वारा समाज के हाशिये के सभी
वर्गों से प्रेम और सम्मान दिखाना अत्यंत मानवीय और प्रेरणाप्रद प्रतीत होता है।
रामचरितमानस का प्रमुख
रस शांत रस है। किन्तु इसके साथ ही साथ अन्य रसों का भी समावेश है। अन्य रसों में
हास्य रस भी मिलता है मानस में भक्ति, दर्शन, आचार, धर्म, नीति, संस्कृति सभी भव
उत्कृष्ट रूप में सम्मिलित हैं। कविवर का दृष्टिकोण समन्वयवादी था। इन्होने परस्पर
विरोधी प्रतीत होने वाली वस्तुओं या बातों का विरोध परिहारपूर्वक सामंजस्य में
दर्शाया है.! समन्वय भारतीय संस्कृति की एक अनन्य विशेषता है।
ग्रियर्सन के अनुसार ‘‘भारत का लोकनायक
वही हो सकता है जो समन्वय करना जानता हो’’ तुलसी का मानस समन्वय की विराट चेष्टा हैं। अपनी
युग की आवशयकताओं के अनुरूप महाकवि ने समन्वय का प्रयास किया है। उन्होंने
द्वैत-अद्वैत,
निर्गुण-सगुण, विद्या - अविद्यामाया, जीव का भेद अभेद, कर्म ज्ञान, भक्ति, ब्राह्मण, शूद्र, शैव, शाक्त, वैष्णव समाज
संस्कृति संगम के साथ साथ भाव पक्ष और कलापक्ष का भी समन्वित किया है।
‘‘गिरा अरथ जल -
बीचि सम कहियत भिन्न न भिन्न
कविता करके न तुलसी लसे, कविता लसि पा
तुलसी की कला‘‘
अत्यंत सार्थक तथ्य है।
अत्यंत सार्थक तथ्य है।
तुलसी के मानस में
चित्रकूट सभा का महत्त्व भी रेखांकित किया गया है। आचार्य शुक्ल जी ने ‘‘चित्रकूट की सभा
को एक आध्यात्मिक घटना माना है। जहाँ भारतीय संस्कृति अपने सम्पूर्ण उदात्त रूप्
में प्रकट हुई है। इस सभा के तहत राजा-प्रजा के संबंध कैसे होने चाहिए। अयोध्या की
सारी प्रजा राजा राम के प्रेम में पागल चित्रकूट में ही चैदह वर्ष काट देने चाहती
है। भरत की भात्रभक्ति अमूल्य है। राम सभी माताओं से प्रेमपूर्वक मिलते हैं। सीता
की पति की अनुगामिनी देख जनक अत्यंत हर्षित होते है। वह पुत्रवधु होने का दायित्व
निर्वाह करती है। ब्राह्मण वर्ग का आदर व सम्मान की परम्परा का निर्वाह दिखाया गया
है। केवट द्वारा ऋषि का प्रणाम करना तथा वन के कौल किरातों द्वारा सब की अतिथि
सेवा करना प्रशंसनीय है। इस सभा में मर्यादा का पालन किया जाता है, शालीनता से प्रस्ताव रखे जातें हैं, और गरिमा पूर्ण
ढंग से उत्तर देना दृष्टव्य है। इस सभा की कार्यवाही धर्म के एक एक अंग की
व्याख्या है जिसमे धर्म के इतने स्वरूपों, इतने उदात्त वृत्तियों
की एक साथ योजना की गयी है।
भारतीय संस्कृति के
परिपेक्ष में जीवन के सभी संबंधों का उचित निर्वाह करके दिखाया गया है। चित्रकूट
सभा निसंदेह एक आद्यात्मिक घटना थी जिससे धर्म की ज्योति फूटी, जिसमे
कौल-किरातों तक के जीवन को दिव्य और पवित्र बना दिया। तुलसी के मानस में मार्मिक
स्थलों की भरमार है। मार्मिक स्थलों की पहचान और उसका भावुकता पूर्ण वर्णन करने
में तुलसी बेजोड़ ‘रामचरित मानस’ अदभुत जीवनी शक्ति का काव्य है. किस परिस्थिति
में मानव हृदय में कैसे भाव उठ सकते हैं उन भावों की उदात्त स्थिति क्या हो सकती
है ? इसका पूरा-पूरा ज्ञान तुलसी को था मानस में भी
धनुष भंग, राम वन गमन, ग्राम वासियों से मिलन, दशरथ-मरण, भरत ग्लानि, केवट भक्ति, चित्रकूट की सभा कैकयी का अनुताप, सीता हरण, लक्ष्मण को शक्ति लगना आदि उल्लेखनीय मार्मिक
प्रसंग है।
लिहाजा कहा जा सकता है आज
पांच सौ बीस वर्षों के बाद भी तुलसी काव्य की प्रासंगिकता जस की तस बनी हुई है।
काशी में जिस रामलीला और रामकथा का गायन उन्होंने इतने वर्षों पूर्व करके पुरे
हिंदी क्षेत्र को राममय बना दिया था और मानस द्वारा प्रत्येक हिन्दू घर में प्रवेश
पा लिया था वहीं आज भी भारतीय समाज में रामकथा के मूल्यों का व्यापक प्रसार दिखता
है। शिशुजन्म और विवाह आदि के शुभ अवसरों पर तुलसी रचित रामकथा के मंगल गीत गाए
जाते हैं। विमाताओं की कुटिलता के प्रसंग में कैकेयी की कहानी कही जाती है दुःख के
दिनों में राम के वनवास का स्मरण किया जाता है, वीरता के प्रसंग में उनके धनुष की टंकार सुनाई
पड़ती है। सुंदर कांड का पाठ और अखंड पाठ का आयोजन आज भी मानस को कालजयी रचना सिद्ध
करता है।
बहरहाल, मानस वर्तमान समाज में गार्हस्थ बोध तथा परहित
मूल्यों द्वारा सांसारिक समस्याओं और चुनौतियों में भी संघर्षरत रहने की
जीवनीशक्ति प्रदान करता है। तुलसी का मानस मानवीय एकता और विश्वबंधुत्व के सन्देश
का परचम सम्पूर्ण जम्बूद्वीप में फहरा रहा है और भविष्य में भी फहराता रहेगा। मानस
में तुलसी जिन नैतिक मानदंडों का राम से पालन करवाते हैं वे तुलसीदास की सामंती
विश्व दृष्टि और जीवन मूल्यों की परिचायक है।
सन्दर्भ:
१, रामचरित मानस (मूल गुटका) गीता प्रेस गोरखपुर
२, त्रिवेणी नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी
३, हिंदी साहित्य का इतिहास - डा. सुधींद्र कुमार
४, हिंदी साहित्य का परिचयात्मक इतिहास -
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद्
५, हिंदी साहित्य का इतिहास - आचार्य रामचंद्र
शुक्ल
(डॉ. तृप्ता (असिस्टेंट
प्रोफेसर), अदिति महाविद्यालय, बवाना, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली)
अपनी माटी(ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-4,अंक-27 तुलसीदास विशेषांक (अप्रैल-जून,2018) चित्रांकन: श्रद्धा सोलंकी