शोध आलेख : 21वीं सदी में सोशल मीडिया के परिवेश में निजता का संरक्षण : मानवाधिकार के लिए चुनौती / शिव कुमार एवं प्रो. प्रीति मिश्रा

21वीं सदी में सोशल मीडिया के परिवेश में निजता का संरक्षण : मानवाधिकार के लिए चुनौती

- शिव कुमार एवं प्रो. प्रीति मिश्रा


शोध सार : बीसवीं सदी के अस्त एवं इक्‍कीसवीं सदी के उदय की वेला में सोशल मीडिया (सोशल नेटवर्किंग साईट्स व ऐप्स), आर्टीफिशियल इन्टेलीजेन्स (ए.आई.), बिग डाटा जैसे अत्याधुनिक तकनीकी ने मानव जीवन के विभिन्न आयामों में दस्तक दी है। पूँजीवाद पर आधारित सशक्त सोशल मीडिया मध्यवर्ती अपनी नैतिक व कानूनी जिम्मेदारियों की परवाह किये बिना भ्रामक, वंचनापूर्ण गोपनीय नीतियों के माध्यम से मानव के जीवन मेंसकरात्मक व नकरात्मक प्रभाव डाल रहे है। निजता, निजता तथा विचारों की अभिव्यक्ति में टकराव, नागरिकों की सतत निगरानी, साइबर-बुलिंग (साइबर-धमकी), सोशल मीडिया के प्रति बच्चों एवं युवाओं का चिपकाव इत्यादि संवेदनशील मुद्दे सोशल मीडिया से जुड़े हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत सरकार ने सन 2021 में सोशल मीडिया मध्यवर्ती पर लगाम लगाये जाने हेतु सूचनाप्रौद्योगिकी (मध्यवती दिशा निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021’बनाये हैं। इस लेख के माध्यम से सोशल मीडिया के सकारात्मक व नकरात्मक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए मानवाधिकार के रूप में निजता एवं इस संदर्भ में भारतीय विधि का उल्लेख किया गया है।

 

बीज शब्द :  सोशल मीडिया, निजता, मानवाधिकार, डाटा संरक्षण, विधि, सोशल मीडिया मध्यवर्ती।

 

मूल आलेख : 21 वीं सदी के प्रारंभिक दो दशकों में तीव्र इंटरनेट प्रणाली, सोशल मीडिया, आर्टिफिशियल इंटेलीजेन्स (ए.आई.) के विकास ने मानव जीवन के विभिन्‍न पहलुओं को प्रभावित किया है। सोशल नेटवर्किंग साईट्स जैसे फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम, लिंकडिन, यूट्यूब, पिंटरेस्ट, टिंडर, पेरिस्कोप, वर्चूअल गेम तथा ब्लॉग्स और वॉट्सएप इत्यादि सोशल मीडिया के अभिन्न अंग हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्ताओं द्वारा प्रचुर मात्रा में साझा की गयी जानकारी की वजह से जहाँ एक तरफ मानव के विकास के नये दरवाजे खुले हैं; वही दूसरी ओर वेबसाईट्स व एप्स द्वारा उपयोगकर्ताओं की व्‍यक्‍तिगत जानकारियों को आच्छादित व प्राच्छादित रूप से संग्रह कर निजता का हनन किया जा रहा है। सोशल मीडिया का प्रयोग हथियार के रूप में मिथ्या सूचनाओं के प्रचार-प्रसार, चुनाव परिणामों को प्रभावित करने, हिंसा भड़काने जैसी गतिविधियों में भी प्रयुक्त किया जा रहा है। परिणामत: मानवाधिकार हनन संबंधी समस्याएँ भी बढ़ी हैं विशेषकर निजता-संबंधी। यूनाईटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम, 2019 की रिपोर्ट के अनुसार[i] ‘विश्व में सोशल मीडिया यूजर्स के आधार पर भारत का दूसरा स्थान है। भारतीयों द्वारा फेसबुक, यूट्यूब और वॉट्सैप प्रयोग किये जाने वाले प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफार्म हैं। लगभग दो-तिहाई भारतीय युवा सोशल मीडिया से अत्यधिक लगाव, निजता का हनन, भ्रामक सूचनाओं, साईबर बुलिंग जैसे खतरों के शिकार होते हैं।’ डिजिटल युग में सोशल मीडिया की वजह से उपजी समस्याओं ने मानवाधिकार संगठनों, सिविल सोसायटी, नीति एवं विधि निर्माताओं तथा अन्य संस्थानों के समक्ष अनेक विचारणीय प्रश्‍न खड़े कर दिए हैं। भारत सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर नियंत्रण के लिए इलैक्ट्रॉनिक और सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सूचनाप्रौद्योगिकी (मध्यवती दिशा निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021’बनाया है।

 

निजता (प्राईवेसी) की परिभाषा

 सर्वव्यापी सोशल मीडिया के परिवेश में निजता का अधिकार आज केवल भौतिक आयाम तक ही सीमित नहीं रहा है, अपितु सूचनात्मक निजता और संसूचना निजता भी निजता के अभिन्न अंग बन गए हैं। डिजीटल युग में निजता का घनिष्ठ संबंध मानव की व्यक्‍तिगत जानकारी की सुरक्षा व सम्मान से भी है।

 

प्रो. एलन वेस्टीन ने सूचनात्मक निजता (इनफार्मेशनल प्राईवेसी) को परिभाषित किया है कि किसी व्यक्ति के जीवन से जुड़े व्यक्‍तिगत तथ्यों, सूचनाओं को किस सीमा तक, किस समय, किन परिस्थितियों में किनको जानने का हक है, यह सुनिश्‍चित करने का मौलिक अधिकार उसव्यक्‍ति को ही जिससे संबंधित तथ्य व सूचनाएँ हैं। अगर कोई अन्यव्यक्‍ति किसी व्यक्‍ति की व्यक्‍तिगत तथ्यों, सूचनाओं का उस व्यक्‍ति की बिना सहमति के उपयोग में लाता है तो उसके द्वारा दूसरे व्यक्‍ति की निजता का उल्लंघन किया जाता है।[ii]

 

निजता का अधिकार के अंतर्गत सकरात्मक तथा नकरात्मक दोनों स्वतंत्रताओं का समावेश होता है। सकरात्मक स्वतंत्रता के अंतर्गत वैयक्‍तिक जानकारी पर व्यक्‍ति विशेष का अधिकार, संपत्ति पर अधिकार, भौतिक स्थान पर नियंत्रण तथा सुरक्षा शामिल हैं। नकरात्मक स्वतंत्रता के आशय में निजता का संबंध व्यक्‍तियों के अंतरंग, गोपनीय, वैयक्‍तिक मामलों एवं स्थानों में व्यावसायिक प्रतिष्ठानों, सोशल मीडिया मध्यवर्ती एवं सरकार द्वारा  निजता का हनन न होना है।[iii]

 

सोशल मीडिया का स्वरूप  -

टैकनॉलजी दो धारी तलवार की तरह है। इसका उपयोग विवेकपूर्ण व अविवेकपूर्ण दोनों प्रकार से किया जा सकता है। अगर इसका उपयोग विवेकपूर्ण किया जाये तो यह मानवता के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है, अन्यथा यहअभिशाप का रूप ले सकती है। सोशल मीडिया जहाँ एक ओर मानवीय मूल्यों के संवर्धन में सहायक सिद्ध हो रहा है;वहीं लोगों द्वारा भ्रामक सूचनाएँ, घृणा, हिंसा एवं अशांति फैलाने केदुरुपयोग के कारण सोशल मीडिया ने मानवाधिकारों के संरक्षण में अनेक चुनोतियाँ खड़ी कर दी हैं।

 

सोशल मीडिया आजकल सामाजिक प्रतिष्ठा का एक मापदंड बन गया है। जिस यूजर के जितने अत्यधिक मित्र, अनुशरणकर्ता (फॉलोवर) व उसके द्वारा सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर साझा की गयी विषयवस्तु (यथा टेक्स्ट संदेश, फोटो, लिंक, वीडियो) को लोगों द्वारा पसन्द (लाईक) किये जाने वालों की संख्या इत्यादि उसकी प्रतिष्ठा का मापदंड माने जाते हैं। सोशल मीडिया ने विचारों की अभिव्यक्‍ति में समाज के हर वर्ग के व्यक्‍ति चाहे वह किसान हो,मजदूर हो, कम पढ़ा लिखा व्यक्‍तिहो, पुरुष हो या नारी होया फिर अवयस्क इत्यादि सबकी सहभागिता को सुनिश्‍चित किया है।

 

वैश्‍वीकरण के परिवेश में जहाँ आज सोशल मीडिया ने अपनी वेबसाईट्स, एप्लीकेशन के माध्यम से पूरे विश्‍व में अपना जाल बिछा रखा है तथा अपने हित के लिए मनमाने ढंग से नीतियों का निर्धारण करता है। सोशल मीडिया मध्यवर्ती द्वारा बनाये गये नियमों व नीतियों में राज्यों की भागीदारी नगण्य होती है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जो कि आर्थिक रूप से बहुत सशक्‍त होता है, उसके नियमों, नीतियों को किसी भी न्यायालय में एक उपयोगकर्ता द्वारा चुनौती देना मील का पत्थर साबित होता है। सोशल नेटवर्किंग साईट्स यूजर की निजता को बनाये रखने का आश्‍वासन देते हैं परन्तु सोशल नेटवर्किंग साईट्स की भ्रामक गोपनीय नीतियां, यूजर का गोपनीय नीतियों के प्रति असंवेदनशीलता तथा गोपनीय नीतियों के प्रति अज्ञानता सोशल नेटवर्किंग साईट्स के व्यापार का बड़ा स्रोत बनते जा रहे हैं। सोशल मीडिया मध्यवर्ती अपनी बाध्यकारी नीतियों के माध्यम से अपनी किसी भी सेवा के प्रयोग से पूर्व उपयोगकर्ता से उसकी व्यक्‍तिगत जानकारी यथा वायस रिकार्डिंग, विडियो रिकार्डिंग, इमेज, फोल्डर तथा विभिन्‍न प्रकार की फाईलों तक पहुँच बनाने की अनुमति के लिए आग्रह करता है, आग्रह को ठुकराये जाने पर उपयोगकर्ता सोशल मीडिया मध्यवर्ती की सेवाओं का लाभ लेने में असमर्थ होता है।

 

वर्तमान परिवेश में यूजर्स द्वारा अपने जीवन से संबंधित हर छोटी-सी छोटी जानकारी अपनी निजता की परवाह किये बिना सोशल मीडिया पर दूसरों से साझा करने की होड़ लगी हुई है। उपयोगकर्ताओं द्वारा साझा की गयी जानकारी का संग्रह करके सोशल मीडिया यूजर्स के व्यवहार को विभिन्‍न तकनीकी के माध्यम से विश्‍लेषण करते हैं। फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्ताओं का वर्गीकरण विभिन्‍न मानकों के अनुसार करता है जिसमें उनकी आयु, रूचि, लिंग, गतिविधियों आदि को ध्यान में रखते हुए उसके अनुरूप विज्ञापन दिखाये जाते हैं। जिन्हें टारगेटेड एडवरटाइजिंग के नाम से जाना जाता है। सोशल नेटवर्किंग साईट्स यूजर्स द्वारा उपलब्ध करायी गयी व्यक्‍तिगत जानकारी तथा पोस्ट की गयी जानकारी को अन्य कंपनियों को बेचते हैं जो कि सोशल मीडिया की आय का बहुत बड़ा स्रोत है। यूजर द्वारा अपने प्रोफाईल में दी गयी व्यक्‍तिगत जानकारी तथा उसके द्वारा पोस्ट की गयी सामग्री की सोशल मीडिया सतत निगरानी करता है। आई.पी. एड्रेस के माध्यम से सोशल नेटवर्किंग साईट्स को बखूबी पता होता है कि यूजर का स्थान(लोकेशन) क्या है, वह किस देश, किस राज्य में निवास करता है।

 

नेटवर्किंग साइट्स पर उपयोगकर्ता के डाटा हैक की प्रबल संभावनाएँ रहती है। फेक अकाउंट के माध्यम से सोशल मीडिया पर कई तरह से यूजर्स को नुकसान पहुंचने की संभावनाएँबनी रहती हैं। साइबर-बुलिंग (साइबर-धमकी),साइबर स्टाकिंग, अनुपयुक्त विषय सामग्री, सोशल मीडिया के प्रति बच्चों एवं युवाओं का चिपकाव, मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर असर इत्यादि सोशल मीडिया के दुष्प्रभाव हैं।

 

निजता एक मानवाधिकार -

गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत करने हेतु प्रत्येक मनुष्य को कुछ नैसर्गिक अधिकार प्राप्त हैं। वास्तव में मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो प्रत्येक मनुष्य को जन्मजात प्राप्त होते हैं, भले ही उसकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति अथवा राष्ट्रीयता, जाति, लिंग कुछ भी हों। मानव अधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने विश्‍व-शांति को कायम रखने, न्याय को सर्वसुलभ कराने, मनुष्य को प्रदत्त अधिकारों को सुनिश्‍चित करने के प्रयोजन हेतु अनेक दस्तावेजों में नियमों को लिपिबद्ध किया है तथा इनका पालन करने हेतु अपनी वचनबद्धता को दोहराया है। निजता मनुष्य का नैसर्गिक अधिकार हैं जिसका उल्लेख अनेक मानवाधिकार दस्तावेजों में प्राप्त होता है,जो कि निम्नलिखित हैं -

किसी व्यक्ति की निजता, परिवार, घर या पत्र व्यवहार के प्रति कोई मनमाना हस्तक्षेप न किया जायेगा, न किसी के सम्मान और ख्याति पर कोई आक्षेप हो सकेगा। ऐसे हस्तक्षेप या आक्षेपों के विरुद्ध प्रत्येक को कानूनी रक्षा का अधिकार प्राप्त है।[iv]किसी की भी गोपनीयता, परिवार, घर या पत्राचार में किसी तरह का मनमाना या गैरकानूनी दखल नहीं दिया जायेगा, न ही किसी के मान सम्मान पर गैर कानूनी आघात पहुंचाया जायेगा।[v]हर व्यक्ति को इस प्रकार के दखल या आघात से संरक्षण पाने का अधिकार प्राप्त रहेगा।[vi]

 

संयुक्त राष्ट्र ने18 दिसम्बर, 2013 में जनरल असेम्बली द्वारा डिजिटल युग में निजता संबंधित लिये गये संकल्प में जोर देते हुए कहा – गैरकानूनी अथवा मनमाने ढंग से निगरानी करना या संचारण में बाधा डालना, मनमाने ढंग से किसी की सूचनाओं (डाटा) को एकत्र करना, इस प्रकार की अनुचित घुसपैठ निश्‍चित रूप से निजता तथा विचारों की अभिसंभावनाएँ के अधिकारों का हनन हैं, जो कि लोकतांत्रिक समाज के सिद्धांतों के विरुद्ध है[vii]

 

मानवाधिकार इस बात को निर्दिष्ट करते हैं कि कोई भी कार्य संभावनाएँ की इच्छा के विरुद्ध नहीं किया जा सकता है तथा नहीं किया जाना चाहिए।[viii]हम देख रहे हैं कि दुनिया में कई देशों में आज इंटरनेट के स्वतंत्र उपयोग पर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। यह निश्‍चित ही मानवाधिकार का हनन है। कई बार हम इंटरनेट का उपयोग संभावनाएँ की निजता और स्वतंत्रता को भंग करने के लिए होते हुए देखते हैं। किसी की निजी तस्वीरें या वीडियो अपलोड कर देना भी मानवाधिकार का हनन है। यह निश्‍चित ही खतरनाक प्रवृत्ति है क्योंकि संभावनाएँकी निजता भी उसका महत्त्वपूर्ण मानवाधिकार है और इसका सम्मान होना चाहिए।[ix]

 

सोशल मीडिया पर नियंत्रण -

समुचित नियंत्रण न होने के कारण सोशल मीडिया के जरिए ऐसी सामग्रियों का प्रसारण बड़ी आसानी से किया जा सकता है जो देश की एकता और अखंडता को बाधित करने में पूर्ण सक्षम हैं। यही वजह है कि अब सोशल मीडिया पर नियंत्रण लगाने जैसे कवायद जोर पकड़ने लगी है। परंतु सोशल मीडिया अभिव्‍यक्‍ति की आजादी का सबसे बड़ा माध्यम और उदाहरण है, इसलिए अनेक बुद्धिजीवियों का यह मानना है कि अगर सोशल मीडिया को भी नियंत्रित कर दिया गया तो यह अभिव्‍यक्‍ति की आजादी जैसे मौलिक अधिकार पर आघात होगा। अनेक बुद्धिजीवियों का मानना है कि सोशल मीडिया पर नियंत्रण लगाकर हम कभी भी हकीकत तक नहीं पहुँच सकते। वहीं दूसरी और बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो पूरी तरह नियंत्रित सोशल मीडिया के पक्षधर हैं। इस वर्ग के लोगों का यह साफ कहना है कि बिना नियंत्रण के कभी कोई चीज लाभप्रद नहीं हो सकती। सोशल मीडिया पर प्रसारित सामग्रियों पर कोई निगरानी न होने का कारण राष्ट्रीय अखंडता पर हर समय खतरा मंडराता रहता है। कभी-कभी कोई भी व्‍यक्‍ति कुछ भी ऐसा संचालित कर सकता है जो सामुदायिक या जातिगत भावनाओं को आहत कर सकता है। सोशल मीडिया पर नियंत्रण रखने की मांग करने वालों का यह भी कहना है कि निजता का पूर्ण हनन अनियंत्रित सोशल मीडिया का बड़ा दुष्प्रभाव है।[x]

 

सोशल मीडिया और भारतीय कानून -

भारत में डाटा संरक्षण हेतु कोई विशिष्ट विधि नहीं है। डाटा संरक्षण हेतु अनेक अधिनियमों में व्याप्त प्रावधानों का सहारा लिया जाता है। अनेक प्रावधानों में से सूचनाप्रौद्योगिकी अधिनियम 2000, सूचनाप्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम 2008 प्रमुख विधियाँ हैं। निजता का अधिकार को दुनिया के अनेक देशों के साथ भारत ने भी इसे मौलिक अधिकार के रूप में अपनाया है। सन 2017 में माननीय उच्‍चतम न्यायालय, भारत ने न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) के. एस. पुत्तास्वामी बनाम भारत संघ[xi] के मामले में निर्णित किया है कि संविधान के अनुच्छेद 21प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के तहत निजता एक मौलिक अधिकार है। उपरोक्त निर्णय में माननीय उच्‍चतम न्यायालय ने भारत सरकार को डाटा संरक्षण हेतु उचित कानून बनाये जाने के लिए निर्देश दिया है।

 

नागरिकों के व्‍यक्‍तिगत डाटा को सुरक्षा प्रदान करने के लिए व्‍यक्‍तिगत डाटा संरक्षण विधेयक, 2019’ के तहत एक डाटा सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना करना है। यह विधेयक सरकार, भारत की निजी कंपनियों और विदेशी कंपनियों द्वारा व्‍यक्‍तिगत डाटा को एकत्र करने, स्थानांतरित करने तथा इसके प्रसंस्करण की प्रक्रिया को विनियमित करने की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। यह विधेयक सरकार को कुछ विशेष प्रकार के व्‍यक्‍तिगत डाटा को विदेशों में स्थानांतरित करने की अनुमति देने का अधिकार प्रदान करता है, साथ ही यह सरकारी एजेंसियों को नागरिकों के व्‍यक्‍तिगत डाटा एकत्र करने की छूट प्रदान करता है। श्रीकृष्णन समिति द्वारा तैयार किये गए मसौदे में सभी प्रकार के व्‍यक्‍तिगत डाटा को देश के अंदर ही संरक्षित किये जाने पर बल दिया गया था।

 

सूचना एवं तकनीकी मंत्रालय, भारत सरकार ने सन 2020 में देश की संप्रभुता एवं अखंडता को अक्षुण्ण बनाये रखने तथा नागरिकों के निजता को ध्यान में रखते हुए आईटी कानून की धारा 69 (ए) का प्रयोग करते हुए पबजी, टिकटॉक जैसे सैकड़ों चाईनीज ऐप्स को भारत में प्रयुक्त किये जाने पर प्रतिबंध लगा दिया।[xii]

 

सूचनाप्रौद्योगिकी नियम, 2021 - इलैक्ट्रॉनिक और सूचनाप्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार ने फरवरी 25, 2021 को सूचनाप्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का 21) की धारा 87 की उपधारा (2) के खंड () और खंड (यछ) द्वारा प्रदत्त शक्तियों काप्रयोग करते हुए सोशल मीडिया पर नियंत्रण करने के लिए सूचनाप्रौद्योगिकी (मध्यवती दिशा निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021बनाये हैं[xiii]

 

उपर्युक्त नियम 2 (ब) के तहत सोशल मीडिया मध्यवर्ती को परिभाषित किया गया है – सोशल मीडिया मध्यवर्तीसे कोई मध्यवर्ती अभिप्रेत है जो प्रारंभिक रूप से या एकमात्र रूप से दो या अधिक उपयोक्ताओं के बीच आनलाईन इंटरेक्सन को समर्थ बनाता है और उन्हें अपनी सेवाओं का उपयोग करते हुए सूचना का सृजन करने में, अपलोड करने में, उसे बांटने में, उसका प्रसार करने में, उसे उपांतरित करने में या उस तक पहुंच बनाने में समर्थ बनाता है।

 

उपर्युक्त दिशा निर्देशों के माध्यम से सोशल मीडिया मध्यवर्ती द्वारा व्‍यक्‍ति की निजता को संरक्षित करने के लिए अनेक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के लिए कई उपबंध किये गये हैं। यथा – नियम 3 (1) (क) के तहत मध्यवर्ती, यथास्थिति, अपनी वेबसाईट, मोबाईल आधारित अनुप्रयोग या दोनों पर किसी व्यक्ति द्वारा अपने कंप्यूटर संसाधनों तक पहुंच या उपयोग के लिए नियम और विनियम,  प्राईवेसी नीति और उपयोक्ता करार को प्रकाशित करेगा;  नियम 3 (1) (ख) के तहत मध्यवर्ती केनियम और विनियम, प्राईवेसी नीति या उपयोक्ता करार कंप्यूटर संसाधित के उपयोक्ता को किसी सूचना को होस्ट नहीं करेंगे, प्रदर्शित नहीं करेंगे, अपलोड नहीं करेंगे, उपांतरित नहीं करेंगे, प्रकाशित नहीं करेंगे, पारेषित नहीं करेंगे, भंडार नहीं करेंगे, अद्यतन नहीं करेंगे या साझा नहीं करेंगे जो किसी अन्य व्यक्ति से संबंध रखती है जिसके प्रति उपयोक्ता के पास कोई अधिकार नहीं है; जो अपमानजनक है, अश्लील है, कामोद्दीपक है, बालयौनशोषण संबंधी है, किसी दूसरे व्‍यक्‍ति की निजता को भंग करने वाली है, जिसके अंतर्गत शारीरिक निजता, लिंग के अधार पर अपमानजनक  या तंग करने वाली है, निंदाकारी है, मूलवंश या जातीय रूप से आक्षेपकारक है जो धन शोधन या जुआ या उससे संबंधित या बढ़ावा देने वाली है; बालक के लिए हानिप्रद है, जो स्पष्ट रूप से मिथ्या है और सत्य नहीं है तथा उसे किसी ऐसे प्रारूप में लिखा गया है या प्रकाशित किया जाता है जिसका आशय किसी व्‍यक्‍ति, अस्तित्व या अधिकरण को वित्तीय अधिलाभ के लिए तंग करना या किसी व्‍यक्‍ति को कोई उपहति कारित करना इत्यादि। नियम 3 (1) (ग) के तहत यह उपबंध किया गया है कि मध्यवर्ती अपने कंप्यूटर संबंधी संसाधनों के उपयोग के नियमों और विनियमों, प्राईवेसी नीतियों के बारे में उपयोक्ताओं को आवधिक रूप से एक वर्ष में कम से कम एक बार अवश्य सूचित करेंगे।

 

सोशल मीडिया से संबंधित अभिनव न्यायिक विनिश्चय -

करमन्या सिंह सरीन बनाम भारत संघ (2016)[xiv]- वॉट्सएप ने अपनी गोपनीयता सेटिंग्स में परिवर्तन किया जिसके फलस्वरूप वॉट्सएप उपयोगकर्ताओं की सूचनाओं को फेसबुक के साथ साझा करने के विषेष अधिकार प्राप्त करना चाहता था। वॉट्सएप की इस गोपनीयता नीति को दिल्ली उच्‍च न्यायालय में उपरोक्त मामले में चुनौती दी गई। कोर्ट ने निर्देश दिया कि जो उपयोगकर्ता अपना डाटा साझा नहीं करना चाहते हैं, वे अपने खाते हटास कते हैं।

 

फरवरी, 2021 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने वॉट्सएप द्वारा भारतीय नागरिकों के लिए अन्य देशों से भिन्‍न पक्षपाती नीतियों संबंधित एक याचिका की सुनवाई के दौरान कथन किया कि  लोगों का निजता का अधिकार आपके (सोशल मीडिया के) धन से अधिक महत्त्वपूर्ण है।[xv]

 

X”बनाम भारत संघ और अन्य (2021)[xvi] के मामले में याचिकाकर्ता की मुख्य शिकायत है कि उसकी तस्वीरें जो उसने अपने निजी सोशल मीडिया अकाउंट्स फेसबुक और इंस्टाग्राम’  पर पोस्ट की थीं। उसकी जानकारी या सहमति के बिना दे सीकलेक्टरनामक एक अज्ञात संस्था द्वारा एक पोनोग्राफिक वेबसाइट पर अवैध रूप से पोस्ट किया गया है। न्यायालय द्वारा मामले को गंभीरता से लेते हुए ऐसे परिस्थितियों में विद्यमान विधि सूचनाप्रौद्योगिकी (मध्यवती दिशा निर्देश औरडिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021के नियमों को उल्लेख करते हुए पीड़ित व्यक्ति के लिए उपलब्ध उपचार तथा सोशल मीडिया मध्यवर्ती की कर्तव्यों का उल्लेख किया।

 

मनोहर लाल शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य (2021)[xvii] (पेगाशस केस) - इस याचिका के माध्यम से माननीय उच्‍चतम न्यायालय के समक्ष इजरायल द्वारा विकसित पेगाशस स्पाईवेयर के द्वारा सरकार द्वारा निजी व्यक्‍तियों जिनमें वरिष्ठ पत्रकार, राजनेता तथा अन्य लोग शामिल हैं, की निगरानी करने का आरोप लगाया गया है। माननीय न्यायालय ने के. एस. पुत्तास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ के मामले का उद्धरण देते हुए कथन किया कि निजता नागरिकों का एक मौलिक अधिकार है।माननीय उच्‍चतम न्यायालय ने न्यायमूर्ति आर. वी. रवीन्द्रम (सेवानिवृत्त, उच्‍चतम न्यायालय) की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करते हुए मामले के विभिन्न पहुलओं की जाँच के आदेश दिये हैं।

 

निष्कर्ष एवं सुझाव : सोशल मीडिया ने जहाँ एक तरफ मानव के विकास के नये दरवाजे खोले हैंतो दूसरी ओर मानव के जीवन में अनके चुनौतियाँ को भी जन्म दिया है। सोशल मीडिया मानव के विकास का एक अच्छा मॉडल हो सकता है बशर्ते मानवाधिकारों के मूल्यों को भी कोई नुकसान न पहुँचे। यद्यपि सूचनाप्रौद्योगिकी नियम, 2021 निजता के संरक्षण की दिशा में एक सराहनीय कदम है फिर भी समुचित मध्यस्थता तंत्र का विकल्प होना, अभिव्यक्‍ति से जुड़े मुद्दों को निपटाना, डाटा गोपनीयता संरक्षण विधि को अस्तित्व में लाना, उपयोक्ताओं की सूचनाओं को एंड-टू-एंडएनक्रिप्सन के माध्यम से गोपनीय रखना इत्यादि बड़ी चुनौतियाँहैं।वर्तमान समय में सोशल मीडिया के विवेकपूर्ण उपयोग हेतु लोगों में सामाजिक होशियारी (सोशल इंटेलीजेन्स) विकसित करने की आवश्यकता है। इस कार्य में सरकार, नीति निर्माताओं, सिविल सोसाइटी, शिक्षण संस्थानों, गैरसरकारी संगठनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ ही साथ विधि एवं नीतियों का निर्माण किया जाना चाहिए जिससे कि निजता एवं अभिव्यक्‍ति की स्वतंत्रता के बीच सामंजस्य स्थापित हो सके। पूंजीवाद पर आधारित सोशल मीडिया के अन्य विकल्प जिसमें निजता का हनन न हो, को तलाशने की आवश्यकता है।

 

ग्रामीण परिवेश में रहने वाले कम-पढ़े लिखे व्यक्ति तथा युवा वर्ग जो कि सोशल मीडिया का प्रयोग ध ड़ल्ले से निजता के मूल्यों की नासमझ के कारण अनावश्यक रूप से अपनी व्यक्‍तिगत जानकारियों को ऑनलाईन साझा करता रहता है, ऐसे जनसमूह के निजता का मानवाधिकार का संरक्षण किस प्रकार किया जाये, यह मानवाधिकार संगठनों, नीति-निर्माताओं के लिए एक विचारणीय प्रश्‍न है।


संदर्भ :

[i]सोशल मीडिया फार यूथ & सिविक इनगेजमेंट इन इंडिया पर उपलब्ध: www.undp.org

[ii]क्रिस्चियन फक्स, सोसल मीडिया अ क्रिटिकल इंट्रोडक्सन 186(सेज पब्लिकेसन्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, 2017)

[iii]मोनरे इ. प्राईस, स्टीफान जी. वरहल्स्ट एवं लिबि मोरगान इत्यादि (संशोधित), रटलेज हैंडबुक ऑफ मीडिया लॉ 470 (रटलेज, न्यूयार्क, 2013)

[iv]अनुच्छेद 12, मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा, 1948

[v]अनुच्छेद 17.1, नागरिक और राजनीतक अधिकारों की अंतर्राष्ट्र्रीय प्रसंविदा

[vi]अनुच्छेद 17.2, नागरिक और राजनीतक अधिकारों की अंतर्राष्ट्र्रीय प्रसंविदा

[vii]जनरल असेम्बली संकल्प सं. 68/167,पर उपलब्ध: https://documents-dds-ny.un.org/doc/UNDOC/GEN/N13/449/47/PDF/N1344947.pdf?OpenElement

[viii]डॉ. शशि वर्मा, मानवाधिकार संरक्षण में मीडिया की भूमिका,इंटरनेशलन जर्नल ऑफ हिन्दी रिसर्च, वाल्यूम 5;  इस्यू 2; मार्च 2019; पेज सं. 21-23, पर उपलब्धwww.hindijournal.com

[ix]अम्बरीष सक्सेना, मीडिया की नई चुनौतियाँ, 95 (कनिष्क पब्लिशर्स, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 2015)

[x]डॉ. जयसिंह बी. झाला, सोसियल मीडिया एवं समाज, 21-22 (रावत प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 2014)

[xi] (2017) 10 SCC 1

[xii]Indian Express,AliExpress to TikTok to PUBG Mobile: Check out full list of Chinese apps banned in India so faravailable at: https://indianexpress.com/article/technology/tech-news-technology/aliexpress-to-tiktok-to-pubg-mobile-full-list-of-all-chinese-apps-banned-in-india-so-far-7064134/

[xiii]डिजीटल मीडिया गाईडलाईन्स एंड पालिसीज पर उपलब्ध:https://egazette.nic.in/WriteReadData/2021/225464.pdf

[xiv]2016 SCC OnLine Del 5334.

[xv] Privacy of People More Important Than Your Money': Supreme Court Issues Notice on Plea Against What'sApp's New Privacy Policy available at:https://www.livelaw.in/top-stories/whatsapps-supreme-court-new-privacy-policy-facebook-right-to-privacy-169875#

[xvi]2021 SCC OnLine Del 1788: (2021) 280 DLT 57

[xvii] 2021 SCC OnLine SC 985


शिव कुमार

शोधार्थी, मानवाधिकार विभाग,

बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर (केंद्रीय) विश्वविद्यालय, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

 

प्रो. (डॉ.) प्रीति मिश्रा

संकायाध्यक्ष, विधि अध्ययन विद्यापीठ एवं  विभागाध्यक्ष मानवाधिकार,

बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर (केंद्रीय) विश्वविद्यालय, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) 


अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) मीडिया-विशेषांक, अंक-40, मार्च  2022 UGC Care Listed Issue

अतिथि सम्पादक-द्वय : डॉ. नीलम राठी एवं डॉ. राज कुमार व्यास, चित्रांकन : सुमन जोशी ( बाँसवाड़ा )

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  1. मेरा लेख शीर्षक – 21वी सदी में सोशल मीडिया के परिवेश में निजता का संरक्षण – मानवाधिकार के लिए चुनौती ( शिव कुमार एवं प्रो. प्रीति मिश्रा) अपनी माटी के मीडिया विशेषांक अंक 40, मार्च 2022 में प्रकाशित हुआ।
    इसके लिए मैं अतिथि सम्पादक-द्वय : डॉ. नीलम राठी एवं डॉ. राज कुमार व्यास का आभार व्यक्त करता हूं।
    साथ ही साथ पत्रिका के सम्पादक माणिक जी एवं जितेन्द्र यादव जी का भी बहुत आभारी हूं जो कि बहुत ही कुशलता से अपनी माटी पत्रिका का संपादन कर रहे हैं।
    मैं आभार व्यक्त करता हूं अपनी माटी के समस्त सदस्यों का।
    चित्रांकन के लिए सुमन जोशी ( बाँसवाड़ा ) जी का मैं हृदय से धन्यवाद देता हूं जिनकी चित्रकारी की वजह से लेख में चार चाँद लग जाते हैं।

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  2. बहुत सराहनीय कार्य

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