शोध आलेख : पश्चिमी बनास नदी घाटी, सिरोही में मध्यकालीन पुरास्थलों की खोज : एक सर्वेक्षण / चिंतन ठाकर, प्रियांक तलेसरा, पुनाराम पटेल, अल्ताफ खान

शोध आलेख : पश्चिमी बनास नदी घाटी, सिरोही में मध्यकालीन पुरास्थलों की खोज : एक सर्वेक्षण 

चिंतन ठाकर, प्रियांक तलेसरा, पुनाराम पटेल, अल्ताफ खान


शोध सार : राजस्थान में हुए व्यापक शोध के परिणामस्वरूप कई प्रागैतिहासिक स्थलों की खोज हुई है। यह अध्ययन राजस्थान के सिरोही जिले के पिंडवाडा तहसील के असर्वेक्षित क्षेत्र से संबंधित है, जो थार रेगिस्तान के किनारे पर स्थित है। यह मेड़ों, निचली पहाड़ियों और नदी घाटियों से बना है। अरावली के इस लहरदार भूगोल में, अरावली की सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर भी इसी क्षेत्र में स्थित है। पश्चिमी बनास इस क्षेत्र की प्रमुख नदी है। यह शोध-पत्र सिरोही जिले में किये गए पुरातात्विक सर्वेक्षण की जांच रिपोर्ट को प्रस्तुत करता है। सर्वेक्षण में खोजे गए मध्यकालीन पुरास्थल मुख्य नदी एवं इसकी सहायक नदियों के आस-पास खोजे गए है। सर्वेक्षण में कुल छह नवीन पुरस्थलों की खोज की गयी है जिनका विवरण इस शोध-पत्र में प्रस्तुत है।

बीज शब्द : पश्चिमी बनास नदी घाटी, सिरोही, सर्वेक्षण, मध्यकाल।

मूल आलेखराजस्थान के दक्षिणी पश्चिमी हिस्से में स्थित सिरोही जिला पुरातत्व की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। यह जिला राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में गुजरात की सीमा से लगा हुआ है। जिसका कुल क्षेत्रफल 5136 वर्ग कि.मी. के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस जिले की मुख्य पांच तहसीले आबुरोड, शिवगंज, रेवदर, पिण्डवाडा एवं सिरोही है। भूवैज्ञानिक दृष्टि से यह जिला दिल्ली महाअभिनिती (Delhi Synclinoium) का दक्षिणी-पश्चिमी हिस्सा है।[1] इस जिले के पूर्व एवं मध्य भाग में दिल्ली महासमुह (Delhi Supergroup) के कायांतरित अवसाद स्थित है। ये चट्टानें मैफिक एवं अल्ट्रामैफिक एवं ग्रेनाइट जैसे- सेंधडा-अम्बाजी ग्रेनाइट, मालानी महासमुह, एवं एरिनपुरा ग्रेनाइट है।[1] दिल्ली महासमुह प्राचीनता से घटते क्रम में कुम्भलगढ़ महासमुह, सिरोही महासमुह एवं सिन्द्रेथ महासमुह में प्रदर्शित है।[2, p. 20] इस जिले में बहने वाली मुख्य नदियों में पश्चिमी बनास प्रमुख नदी है इसके अलावा सिपु, खारी, कृष्णावती  एवं कपालगंगा है। बनास एवं सिपु नदी दक्षिण-पश्चिम की ओर एवं खारी एवं कृष्णावती उत्तर-पूर्व की ओर बहती है। बनास नदी इस जिले की सबसे प्रमुख नदी है।[3, p. 5] इस जिले में पायी जाने वाली वनस्पतियों में आम, अमली अंजीर, आन्तेडा, आंवला, अरंड, अरडूआ, अर्जुन, चीड, फराश, घटबोर, बबूल, बहेड़ा, बेर, शीशम काला इत्यादि पमुख है। यहाँ पाये जाने वाले वन्य जीवों में बन्दर, लंगूर, बघेरा, जंगली बिल्ली, कस्तूरी, जरख, बिज्जू, नेवला सियार, लोमड़ी, रीछ, चुचुंदर, चमगादड़, लहरी इत्यादि प्रमुख है। [4, pp. 19–28]

पूर्व में किये गए कार्य :

सिरोही जिले में 18 वीं शताब्दी के उतरार्ध एवं उसके बाद हुए सर्वेक्षणों में कई मध्यकालीन पुरास्थल प्रकाश में आये है। चन्द्रावती पुरास्थल 18 वीं शताब्दी में सर्वप्रथमकर्नल जेम्स टॉडके द्वारा लिखी पुस्तकट्रावेल्स इन वेस्टर्न इंडिया[5] में लिखा है कि उनके कुछ सहयोगियों ने चंद्रावती का दौरा किया और प्राचीन बस्तियों और मंदिरों के अवशेष दर्ज किए। वर्ष 1824 में सर चार्ल्स कॉलविल नेचन्द्रावती[6] का दौरा किया और प्राचीन मंदिरों के अवशेष देखे। इसके पश्चात् 19वीं शताब्दी की अंतिम तिमाही में 1884 में, डॉ. गुस्ताव ले बॉनने चन्द्रावती स्थल का दौरा किया। [7, pp. 1–5] स्थानीय कथनों के अनुसार, चंद्रावती की प्राचीन बस्ती पर आबू शाखा के परमार राजाओं का शासन था और यह एक बड़े क्षेत्र में फैला हुआ था एवं चंद्रावती से लगभग 18 किमी पूर्व में कुम्भरिया और अंबाजी, पूर्व की ओर लगभग 10 किमी, पूर्व में लगभग 10 किमी, उत्तर-पश्चिम में ऋषिकेश, और इसी तरह के कई भाग-समकालीन स्थल हैं। [8, p. 4] वर्ष 1978 में पुरातत्व विभाग एम.एस. बड़ौदा विश्वविद्यालय के आर.एन. मेहता एवं पुरातत्व और संग्रहालय राजस्थान सरकार के कुछ अधिकारियो के द्वारा चन्द्रावती पुरास्थल का विस्तृत सर्वेक्षण किया गया, उन्होंने अपनी खोज में चन्द्रावती प्राचीन बस्ती के उत्तर-पश्चिम में एक विशाल किले की पहचान की, जिसमे कि हिंदू और जैन समुदायों से संबंधित दो दर्जन से अधिक मंदिर परिसरों के अवशेष, बावड़ी, मिट्टी के बर्तन, आदि उपस्थित थे।[8] इसके पश्चात् कई कई अन्य पुराविदो एवं इतिहासकारों ने सिरोही जिले के मध्यकालीन स्थलों के बारे में जानकारी प्रदान की गयी। इस जिले में मध्यकालीन इतिहास का विस्तृत वर्णनसिरोही राज्य का इतिहास[9, p. 20] में मिलता है। हाल ही के कुछ वर्षो में इस क्षेत्र में सर्वेक्षण एवं उत्खनन का उल्लेखनीय कार्य किया गया जिसमे सन 2014 से 2016 में चन्द्रावती मध्यकालीन पुरास्थल के उत्खनन का कार्य जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ के पुरातत्व विभाग के निदेशक जीवन सिंह खरक्वाल के निर्देशन में किया गया। चन्द्रावती के उत्खनन के दौरान हुए सर्वेक्षण में पश्चिमी बनास की ही सहायक नदी सेवारनी नदी के किनारे स्थित जलोढ़ जमाव पर सियावा [10, pp. 54–55] नामक पाषाणकालीन पुरास्थल की भी खोज की गयी। सिरोही जिले में हाल ही के वर्षों में हुए व्यवस्थित सर्वेक्षण से यहाँ मानवों के निवास का सबसे प्राचीन समय मध्यपुरापाषाण [11, p. 116] ज्ञात किया गया है, साथ ही कई अन्य पाषाणकालीन बस्तियों की भी खोज की जा चुकी है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के जयपुर सर्कल के प्रवीन सिंह एवं शिव कुमार भगत ने टी.जे. अलोन के मार्गदर्शन में सिरोही जिले का 2008 में सर्वेक्षण का कार्य किया। इन लोगो के द्वारा किये गए सर्वेक्षण से इस स्थल के कई मध्यकालीन मंदिरों पर प्रकाश पडा।[12, p. 93] कई अन्य पाषाणकालीन बस्तियों की भी खोज की जा चुकी है। यहाँ के ऐतिहासिक एवं मध्यकालीन सुरक्षात्मक संरचनाओं [13]–[15] का भी व्यवस्थित रूप से सर्वक्षण किया जा चूका है

प्रविधि :

 

इस सर्वेक्षण को करने हेतु निम्न प्रविधियों को प्रयोग में लाया गया जिनमे मुख्यतः मध्यकालीन बस्तियों को खोजने के लिए भारतीय भौगोलिक सर्वेक्षण की निम्न को काम में लिया गया, तत्पश्चात गूगल अर्थ के माध्यम से उपग्रहीय चित्रों के माध्यम से इस भूभाग को सर्वेक्षित किया गया। ज्यादातर ये हिस्से जिले में बहने वाली प्रमुख बनास नदी एवं इसकी सहायक नदियों के आसपास खोजे गए। इन स्थलों के सर्वेक्षण करने हेतु गाँव-गाँव जाकर स्वयं के दुपहिया वाहन से सर्वेक्षण को किया गया। खोजे गए पुरास्थलों पर जाकर सर्वप्रथम वहां का जिओ-कोरडीनेट लिया गया जिस हेतुकंपास कोरडीनेट एवं गूगल अर्थसॉफ्टवेयर का प्रयोग किया गया। वहां से प्राप्त मृदभाँड़ो एवं अन्य पुरासामग्री को बेग में एकत्र कर उनको उनके आकार, रंगों एवं प्रकारों में विभाजित किया गया

शोध का उद्देश्य :

पिछले कुछ दशकों में सिरोही जिले एवं पश्चिमी बनास नदी घाटी में हुए शोधो, सर्वेक्षण एवं उत्खनन से यहाँ की संस्कृति के विकास के क्रम पर प्रकाश पड़ा परन्तु अभी भी इस जिले एवं बनास नदी घाटी में ऐसे कई स्थल विद्यमान है जो किचन्द्रावतीनगरी के कालानुक्रम के सामानांतर भी रहे है अतः इन पुरास्थलों को खोज कर इनका चन्द्रावती से समन्वय स्थापित करना इस शोध एवं सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य है

सर्वेक्षण :

निम्बज माता फली : (24°4002”N; 72°5917”E) :

यह पुरास्थल सिरोही जिले के पिण्डवाडा तहसील के रोहिडा नगर पंचायत से 7 कि.मी. उत्तर में स्थित है। इस स्थल की खोज 8 मई 2019 के सर्वेक्षण के दौरान की गयी। यह पुरास्थल पहाड़ की तलहटी में स्थित है एवं इसके लगभग 500 मीटर पश्चिम की ओर एक नाला बहता है। इस पुरास्थल का औसतन फैलाव लगभग 300 मीटर  है। पहाड़ी के तलहटी एवं इसकी ढलानों पर सर्वेक्षण करने पर यहाँ पत्थरों से बनी हुई संरचनाये प्राप्त होती है जिनकी लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊंचाई क्रमशः 20×15×3 फीट है साथ ही इन संरचनाओं के दीवारों की चौड़ाई 2 फीट से अधिक है। ये सारी संरचनाये पत्थरों से बनी है एवं इनमे कहीं कहीं ईंटो का प्रयोग भी किया गया है। सर्वक्षण में कई प्राचीन ईटो को भी प्राप्त किया गया जिनकी लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊंचाई क्रमशः 35×25×8 से.मी. है। सर्वेक्षण के दौरान कई मृदभाँड़ो को भी प्राप्त किया गया जो मुख्यतः काले एवं लाल रंग के है। सर्वेक्षण से प्राप्त मृदभांडों में कटोरे, मटके, ढक्कन, हांडी, मर्तबान इत्यादि को प्राप्त किया गया। इस स्थल के पश्चिमी भाग में कुछ सतिलेख भी विद्यमान है। इस पुरास्थल पर कई मध्यकालीन ईटे भी बिखरी पायी गयी। यहाँ के सर्वेक्षण में धातुमल (स्लेग) को भी प्राप्त किया गया

चित्र संख्या 1 निम्बज माता फली पुरास्थल 

चित्र संख्या 2 पुरास्थल पर स्थित संरचना 

डूबानाडी : (24°3631”N; 72°5134”E) :

यह पुरास्थल सिरोही जिले के पिण्डवाडा तहसील के कासिन्द्रा ग्राम पंचायत से 3 कि.मी. उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित है। इस स्थल को 22 मई 2019 के सर्वेक्षण के दौरान खोजा गया। यह स्थल एक मध्यकालीन टीला है जो बनास नदी के मुहाने पर स्थित है। इस टीले को बीच में से काटकर सड़क के निर्माण का कार्य किया गया है। जहाँ से सड़क निर्माण के लिए टीले को काटा गया वहां पर सड़क के किनारे कटे हुए टीले के अनुभाग पर पत्थर एवं ईटो से बनी संरचनाओं को देखा जा सकता है। इस पुरास्थल के समीप ही उत्तर मध्यकालीन मंदिर भी स्थित है। यह मंदिर टीले के ऊपर ही बनाया गया है शेष टीले का भाग खेती करने के कारण नष्ट हो चुका है। इस पुरास्थल के पार्श्वभाग में नदी के किनारे मंदिर के कई भग्नावशेष बिखरे दिखाई पड़ते है।

इस पुरास्थल का औसतन फैलाव लगभग 200 वर्ग मीटर है। सर्वेक्षण के पश्चात्  यहाँ से मृदभांडो को खोजा गया जिनमे कटोरे, मटके, ढक्कन, हांडी, मर्तबान इत्यादि प्रमुख है। ये सभी मृदभांड लाल एवं काले रंग के है। यहाँ से खोजी गयी ईटो का औसतन आकर 35×25×8 से.मी. है। यहाँ से प्राप्त मृदभाँड़ो में विशेषकर लाल रंग के मृदभाँड़ो में काले एवं सफ़ेद रंग से चित्रकारी की गयी है।

ढिबरा कुंआ : (24°3651”N; 72°5711”E) :

यह पुरास्थल सिरोही जिले के पिण्डवाडा तहसील के रोहिडा ग्राम पंचायत से 500 मीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। इस स्थल की खोज 21 अप्रैल 2019 के सर्वेक्षण के दौरान की गयी। उक्त मध्यकालीन स्थल पर वर्तमान में कृषि कार्य किया जा रहा है एवं यह स्थल प्राचीन जल स्त्रोत के निकट में स्थित है एवं यहाँ मध्यकालीन ईटो से बनी वर्गाकार संरचनाये विद्यमान है जिसकी लम्बाई, चौड़ाई एवं ऊंचाई क्रमशः 6×4×1 मीटर है। इस संरचना पर लगी ईटो का औसत आकार 34×22×5 से.मी. है। इस स्थल की कृषि भूमि के आस-पास सर्वेक्षण करने के पश्चात् यहाँ पड़े मृदभाँड़ो को प्राप्त किया गया। यहाँ से  प्राप्त मृदभांडो में  कटोरे, मटके, ढक्कन, हांडी, मर्तबान इत्यादि प्रमुख है। ये सभी मृदभांड लाल एवं काले रंग के है।


चित्र संख्या 3 ढिबरा कुंवा स्थित मध्यकालीन ईंटो की संरचना 

लोदराव माता : (24°3731”N; 72°5634”E) :

यह स्थल सिरोही जिले के रोहिडा ग्राम पंचायत से 3 कि.मी. उत्तर पश्चिम में स्थित है। इस स्थल की खोज 21 अप्रैल 2019 के सर्वेक्षण के दौरान की गयी। इस पुरास्थल की मुख्य विशेषता यह है कि यह स्थल एक प्राचीन खदान है एवं इसी खदान के पास उत्तर मध्यकालीन चामुंडा माता का मंदिर बना हुआ है और इसी मंदिर से इस खदान के अन्दर जाने का रास्ता भी है। इस मंदिर का हांलाकि जीर्णोद्धार करवा दिया गया है परन्तु यहाँ स्थित महिषासुर मर्दनी की प्रतिमा पर सत्तरवी शताब्दी का लेख अंकित है। जिस पर विक्रम सम्वंत 1748 . भाद्रवद अष्टमीका अंकन किया गया है। इस लेख में बाकी के अंकित अक्षरों को पढ़ा नहीं जा सका है।

चित्र संख्या 4 मूर्ति पर अंकित लेख

 

इस प्राचीन खदान के कई पुराने रास्तो को बंद कर दिया गया है। यहाँ प्राचीन मंदिर के कई भग्नावशेष भी बिखरे पड़े है। 24°3747”N; 72°5628”E पर इस प्राचीन खदान के पूर्व दिशा में प्राचीन जल स्त्रोत भी विद्यमान है। यहाँ के सर्वेक्षण में धातु अयस्को की प्राप्ति की गयी। इस प्राचीन खदान के पास स्थित मंदिर पर कई कलात्मक वस्तुए जैसे कि ओखली जिस पर मूर्तियों का अंकन किया गया है परन्तु जीर्ण अवस्था में होने के कारण इसकी पहचान करना असंभव सा प्रतीत होता है। यहाँ से प्राप्त अन्य वस्तुओं में पत्थर से बनी एक कलात्मक थालीनुमा आकृति भी प्राप्त की गयी है।

भागाडेरा : (24°3304”N; 72°5931”E)

चित्र संख्या 5 उत्तरी गवाक्ष पर स्थित जैन मूर्ति


यह
पुरास्थल पिण्डवाडा तहसील के भुला ग्राम पंचायत से 3 कि.मी. दक्षिण दिशा में स्थित है। इस स्थल की खोज 21 मई 2019 के सर्वेक्षण के दौरान की गयी। इस स्थल पर प्राचीन जैन मंदिर स्थित है जो कि पूर्ण रूप से जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। यह पूर्वाभिमुख जैन मंदिर है एवं यह नागर शैली में बना हुआ है। इस मंदिर का सभामंडप पूर्ण रूप से नष्ट हो चुका है केवल गर्भगृह ही बचा है वो भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में विद्यमान है।


इस मंदिर के उत्तरी गवाक्ष में जैन मूर्ति का अंकन दिखाई देता है। अत्यधिक जीर्ण अवस्था होने के कारण इसकी पहचान करना असंभव है। मंदिर के गर्भगृह के तोरण द्वार पर भी जैन तीर्थंकर की प्रतिमा का अलंकरण विद्यमान है। इस मंदिर के आस-पास मंदिर के ही कई भग्नावशेष भी बिखरे दिखाई पड़ते है। मंदिर तक पहुँचने हेतु सीढियां बनी हुई है। प्रथम दृष्ट्वा यह मंदिर चन्द्रावती पुरास्थल के वास्तुशिल्प से मेल खाता प्रतीत होता है क्योंकि इस मंदिर के नींव में ईंटो का प्रयोग किया गया है जो कि चन्द्रावती के मंदिरों के वास्तुशिल्प के ही समान है।
 

चित्र संख्या 6 भागाडेरा मंदिर की नीवं में लगी ईंटें



चित्र संख्या 7 जैन मंदिर भागाडेरा


इस मंदिर के आस-पास निचले भाग में कई अन्य ईंटो एवं पत्थरों से बनी हुई संरचनाये विद्यमान है। इस स्थल के सर्वेक्षण के पश्चात् यहाँ से भिन्न-भिन्न प्रकार के मृदभाँड़ो को प्राप्त किया गया। ये मृदभांड लाल एवं रखिया रंग के है। इन मृदभाँड़ो में घड़े, हांडी, मर्तबान, कटोरे, ढक्कन इत्यादि प्रमुख है। कुछ रखिया रंग के मृदभाँड़ो पर अलंकरण किया गया है। संरचनाओ में स्थित ईंटो का आकार क्रमशः 34×22×7 से.मी. है।       

वीरोली : (24°5211”N; 72°55211”E) :

यह स्थल सिरोही जिले के पिण्डवाडा तहसील के वीरवाडा ग्राम पंचायत से 3 कि.मी. उत्तर दिशा में वीरोली नामक ग्राम में स्थित है। इस स्थल की खोज 30 मई 2019 के सर्वेक्षण के दौरान की गयी। कनाश्म पहाड़ों की तलहटी एवं यहन स्थित कनाश्म चट्टानों के छोटे-बड़े आवरणों के पास यह स्थल स्थित है। यह स्थल बाकी खोजे गए स्थलों के मुकाबले काफी छोटा है। प्रथम अन्वेषण से यह ज्ञात होता है कि इस स्थल को काफी लम्बे समय के लिए प्रयोग में नहीं लाया गया होगा। इस स्थल पर सर्वेक्षण करने के पश्चात् यहाँ से भिन्न-भिन्न प्रकार के मृदभाँड़ो को प्राप्त किया गया। ये मृदभांड लाल एवं रखिया रंग के है। इन मृदभाँड़ो में घड़े, हांडी, मर्तबान, कटोरे, ढक्कन इत्यादि प्रमुख है।

लाल एवं राखिया रंग के मृदभाँड़ो में अन्य पुरास्थलों की तुलना में कोई विशेष अलंकरण देखने को नहीं मिलता है, साथ ही इस स्थल पर ये मृदभांड अन्य पुरास्थलों के मुकाबले कम मात्र में पाए गए है। सम्भावना है कि इस स्थल को काफी लम्बे समय तक प्रयोग में नहीं लाया गया है।

इस स्थल पर ईंटो से बनी कुछ संरचनाये एवं खंडित ईंटो को भी प्राप्त किया गया। इन ईंटो का औसतन आकार क्रमशः 34×22×7 से.मी. है। इस स्थल पर कई पत्थरो में बड़े-बड़े गोल गड्ढे किये गए है सम्भावना है कि इनका प्रयोग किसी वस्तु को टिकाने या लकड़ी के थम्बो को गाड़ने के लिए किया जाता होगा। इस स्थल पर जो कनाश्म चट्टानों का उभार है उसी के चारो और पत्थर की दीवारे भी बनायीं गयी है।

चित्र संख्या 8 वीरोली पुरास्थल


निष्कर्षउपरोक्त विषय से स्पष्ट है कि पश्चिमी बनास नदी घाटी में पिछली शताब्दी से लेकर अभी तक हुए शोध, सर्वेक्षण एवं उत्खनन से यहाँ संस्कृति के विकास का क्रम पाषाण काल से मध्यकाल तक देखने को मिलता है।चन्द्रावतीनगरी की खोज एवं यहाँ हुए उत्खनन के कार्यों ने इस वैभवशाली नगरी के गौरवमयी इतिहास पर प्रकाश डाला। प्राचीन ग्रंथो एवं अंग्रेजी एवं देश के विद्वानों के द्वारा किये सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि चन्द्रावती एवं इससे जुड़े अन्य पुरास्थलों का विस्तार इस पूरे जिले में था। इन्ही पुरास्थलों की खोज हेतु एवं अपने शोध उद्देश्य की पूर्ति हेतु योजनाबद्ध तरीके से सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण करने के पश्चात् निम्न तथ्य उद्घटित हुए है

  1. योजनाबद्ध सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ है कि चन्द्रावती के उत्खनन से प्राप्त मृदभांड जो कि लाल एवं रखिया रंग के है ऐसे ही मृदभांड सर्वेक्षित पुरास्थलों में भी सामान रूप से पाए गए है।
  2. चन्द्रावती में जो ईंटो का आकार है सामान रूप से लगभग यही आकार की ईटे प्राप्त होती है।
  3. चन्द्रावती से भी धातु को गलाने के प्रमाण प्राप्त होते है जिनमे धातुमल प्राप्त किये गए है इसी प्रकार के धातुमलनिम्बज मातास्थल पर भी प्राप्त हुए है
  4. सर्वेक्षण से यहाँ स्थित प्राचीन खदानों का भी पता चलता है जो कि इस बात का द्योतक है कि धातु बनाने हेतु कच्चा माल यहीं से प्राप्त किया जाता होगा। लोदराव माता प्राचीन खदान है वहीँ से निम्बज माता फली पुरास्थल उत्तर दिशा में 3 कि.मी. की दुरी पर स्थित है यहाँ से भी धातुमल की प्राप्ति की गयी है।
  5. भागाडेरा स्थित जैन मंदिर का स्थापत्य एवं वास्तुशिल्प चन्द्रावती नगर में स्थित मंदिरों के वास्तुशिल्प के समान है। चन्द्रावती में भी मंदिरों की नीवों में ईंटो का प्रयोग किया गया है एवं ऊपर के मंदिरों का निर्माण पत्थरों से किया गया है।  

सन्दर्भ :

[1] आचार्य एस., “डिस्ट्रिक्ट रिसोर्स मेप, सिरोही डिस्ट्रिक्ट, राजस्थान,” चेन्नई, 1998.

[2] परमार शुभेन्द्रपल सिंह, “स्टडी ऑफ़ जिओमोर्फोलोजी एंड हाइड्रोलोजी ऑफ़ सिरोही एंड आबू-रोड ब्लाकस सिरोही डिस्ट्रिक्ट राजस्थान,” मोहन लाल सुखाडिया विश्वविद्यालय, 2018.

[3] ढौंडियाल बी.एन., “राजस्थान डिस्ट्रिक्ट गजेटियर,सिरोही,” गवर्मेंट सेंट्रल प्रेस, जयपुर, 1967.

[4] सिंह हरलाल  एवं  जैन एस.के., “कार्य आयोजना-जिला सिरोही (वर्ष 2012-2013 से 2021-22),” जयपुर, 2021.

[5]  टॉड जेम्स, ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इंडिया. लन्दन: डब्लू,एच , एलिन एंड कम्पनी, 1839.

[6]  “गजेटीयर ऑफ़ बोम्बे प्रेसीडेंसी,” बोम्बे, 1880.

[7] मेहता आर.एन., सोनावने वि.एच., अग्रवाल आर.सी., एवं पारेख वि.एस., “चन्द्रावती (बिंग रिपोर्ट ऑफ़ एक्सप्लोरेशन कंडक्ट इन मार्च 1978),” वड़ोदरा, 1978.

[8] खरकवाल जीवन सिंह, एक्स्केवेशन एट चन्द्रावती. उदयपुर: हिमांशु पब्लिकेशन, 2016.

[9] ओझा गौरिशंकर हीराचंद, सिरोही राज्य का इतिहास, 2nd ed. जोधपुर: राजस्थानी ग्रंथागार, 2006.

[10] तिवारी नुपुर, “स्यावा : मेसोलिथिक साईट इन सिरोही,राजस्थान,” शोध पत्रिका, vol. 67, no. 1–4, 2016.

[11] ठाकर चिंतन, पटेल पुनाराम, खरकवाल जीवन सिंह, एवं  तलेसरा प्रियांक, “पश्चिमी बनास घाटी में पाषाणकालीन स्थलों की खोज: एक सर्वेक्षण,” शोध पत्रिका, vol. 70, no. 1–4, pp. 103–125, 2019.

[12] आई..आर., “इंडियन अर्कियोलोजिकल रिव्यू (2008-2009),” नयी दिल्ली, 2015.

[13] तलेसरा प्रियांक, बहुगुणा अनिरुद्ध, एवं ठाकर चिंतन, “आर्कियोलोजी ऑफ़ बंधियागढ़,सिरोही,राजस्थान,” कोजेंट आर्ट एंड हुमिनीटीज, vol. 8, no. 1, 2021, doi: 10.1080/23311983.2020.1870808.

[14] तलेसरा प्रियांक, बहुगुणा अनिरुद्ध, ठाकर चिंतन, एवं  खान अल्ताफ, “एन अर्कियोलोजिकल डॉक्यूमेंटेशन एंड इन्वेस्टीगेशन ऑफ़ फोर्टीफिकेशन डिसकवर्डइन अरावली रेंज,राजस्थान,” राजस्थान अर्कियोलोजी एंड एपीग्राफी कांग्रेस, vol. 1, no. 1, pp. 280–294, 2019.

[15] तलेसरा प्रियांक, बहुगुणा अनिरुद्ध, एवं ठाकर चिंतन, “अर्कियोलोजिकल एक्स्प्लोरेशन ऑफ़ डिफेंस स्ट्रक्चर्स & फोर्टरेस सिटी बेस्ड ऑन एन्सिएंट फोकलोर ऑफ़ माउन्ट आबू, राजस्थान, इंडिया,” no. 8, pp. 99–103, 2020, doi: 10.35940/ijmh.H0832.044820.

 

चिंतन ठाकर

शोधार्थी, माधव विश्वविद्यालय, पिंडवाडा, सिरोही, राजस्थान

chintanarchaeo@gmail.com, 8209614816, 7688808877


अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-39, जनवरी-मार्च  2022

UGC Care Listed Issue चित्रांकन : संत कुमार (श्री गंगानगर )

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