शोध आलेख:भारतीय सेवा क्षेत्र-चुनौतियॉ एवं सम्भावनाएं / डॉ.दिनेश कुमार तिवारी



भारतीय सेवा क्षेत्र-चुनौतियॉ एवं सम्भावनाएं

 डॉ.दिनेश कुमार तिवारी


 

शोध सार-

 अपने सेवा क्षेत्र के आकार गतिशीलता के लिए भारत अग्रणी है। भारतीय अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का योगदान कई गुणा रहा है। इस क्षेत्र से संबन्धित डाटा अब भी अपर्याप्त है और इन्हे विविध श्रोतों से एकत्रित करना होता है। यद्यपि नवीनतम उपलब्ध डाटा विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्रोतों से लिया गया है। प्रस्तुत शोध में अवसंरचना जैसे- सड़क, रेलवे, नागरिक उड्डयन, आदि के अतिरिक्त वित्तिय सेवाओं और सामाजिक सेवाओं आदि पर चर्चा की गयी है। यह अध्ययन सकल धरेलू उत्पाद,रोजगार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और राज्यो के घरेलू उत्पाद के सन्दर्भ मंे भारत की अर्थव्यवस्था मंे सेवाओ की भूमिका का अध्ययन करता है। इसमें विभिन्न सेवा उपक्षेत्रों के निष्पादन का अध्ययन करने का प्रयास किया गया है जिसमें घरेलू व्यापार, होटल एवं रेस्तरां सहित पर्यटन, पोत परिवहन, एवं पत्तन सेवाएं, अचल संपदा, भंडारन, दूरसंचार संबन्धी सेवाएं, सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी समर्थित सवाएं, लेखाकरण एवं लेखापरीक्षा सेवाए, अनुसंधान सेवाएं, विकास एवं कानूनी सेवाएं, निर्माण एवं खेलों जैसी कुछ विशिष्ट सामाजिक सेवाएं आदि है।

भारत सेवा प्रधान निर्यात वृद्वि की ओर भी बढ़ रहा है। भुगतान संन्तुलन के आकड़ो के अनुसार 2004-05 से 2008-09 के दौरान माल और सेवा निर्यात क्रमशः 22.2 और 25.3 प्रतिशत बढ़ा है। वैश्विक मंदी के कारण 2009-10 में सेवा वृद्धि में गिरावट आई परन्तु यह गिरावट माल निर्यात वृद्धि में आयी गिरावट से कम थी।

कुंजी शब्द- सेवा क्षेत्र, आयात-निर्यात, भुगतान संतुलन, रोजगार, जनसंख्या

परिचय-

अर्थव्यवस्था का वह क्षेत्र जो सेवा के कार्याे में लगा हुआ है सेवा क्षेत्र कहलाता है। सेवा क्षेत्र में मुख्य रूप से शामिल होने वाली सेवाएं इस प्रकार है- परिवहन,कूरियर,सूचना क्षेत्र की सेवाएं प्रतिभूतियां, रियल एस्टेट, होटल एवं रेस्टोरेंट, वैज्ञानिक और तकनीकी सेवाएं इत्यादि आती है। यह क्षेत्र भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में करीब 60 प्रतिशत का योगदान देता है। इसे अर्थव्यवस्था के तीसरे क्षेत्र के रूप में भी जाना जाता है। हर अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्र होते है। जो इस प्रकार है- प्राथमिक क्षेत्र ( जैसे खनन,कृषि, और मछली पालन), द्वितीयक क्षेत्र ( निर्माण) और तृतीयक क्षेत्र (सेवा क्षेत्र)

विभिन्न देशो के अर्थव्यवस्था के विकास के ट्रंेड का अध्ययन करने के बाद पता चलता है कि जो देश विकास की राह पर आगे बढ़ते है उन देशो की अर्थव्यवस्थाएं कृषि क्षेत्र से हटकर सेवा क्षेत्र की तरफ बढ़ती है और कृषि क्षेत्र घटता जाता है। भारत के मामले में भी यही तथ्य देखने को मिला है। 1951 मंे भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान लगभग 51 प्रतिशत था जोे कि वर्तमान में लगभग केवल 14 प्रतिशत है। भारत के सेवा क्षेत्र ने हमेशा से ही देश की अर्थव्यवस्था में प्रमुख रूप से सेवा की है। सकल घरेलू उत्पाद मे इसका योगदान लगभग 60 फीसदी तक है। इस सम्बन्ध में वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उदारीकरण विनियमतीकरण करने तथा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने सुधारों की शुरूआत की है। इसमें कोई शक नहीं है कि वर्तमान में भारत दुनिया के सबसे आकर्षक वाले पूॅजी बाजारों में से एक है। हालांकि चुनौतियां भी है, लेकिन क्षेत्र का भविष्य उज्जवल प्रतीत होता है। प्रौद्योगिकी के आने से उद्योग के विकास में भी सहायता मिली है। बीमा, पर्यटन, बैक्रिग खुदरा, शिक्षा और सामाजिक सेवाएं आदि जैसे सेवा क्षेत्र में अर्थव्यवस्था के नरम हिस्सा होते है। नरम क्षेत्र के रोजगार में लोग उत्पादकता,प्रभावशीलता,प्रदर्शन में सुधार क्षमता और स्थिरता बनाने के लिए अपने समय का प्रयोेग संपति बनाने, संपति एकत्र करने में करते है।

        सेवा उद्योग में कारोबार के लिए सेवाओं के प्रावधान के साथ-साथ अंतिम उपभोक्ता भी शामिल रहते है। सेवाओं को उत्पादन से एक ग्राहक तक पहुॅचने में परिवहन,वितरण और माल की बिक्री शामिल हो सकती है जो एक थोक और खुदरा व्यापार के रूप में भी हो सकती है अथवा पेस्ट कंट्रोल या मनोरंजन के रूप में भी एक सेवा का प्रावधान शामिल हो सकता है। थोक और खुदरा बिक्री में सेवा एक उपभोक्ता के लिए निर्माता से परिवहन, वितरण, और माल की बिक्री शामिल हो सकती है। माल को एक सेवा प्रदान करने की प्रक्रिया में तब्दील किया जा सकता है। जैसे-रेस्तरां उद्योग में या उपकरणों की मरम्मत में होता है। हालांकि,भौतिक वस्तुओं को बदलने की बजाय मुख्य लक्ष्य,लोगो का एक दूसरे के साथ बातचीत करना तथा ग्राहको की सेवा करना ही होना चाहिए।

भारत में सेवा क्षेत्र-

   1-आजादी के बाद से सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग दोगुनी

     हो गयी है।

   2- वित्त, बीमा, और रियल एस्टेट के बाद व्यापार,होटल,रेस्तरां आदि सकल घरेलू 

    उत्पाद में अधिकतम फीसदी का योगदान देते है।

   3-टेली डेनसिटी जो दूरसंचार के प्रसार का एक महम्वपूर्ण हिस्सा है, में मार्च 2007 केे 

       फीसदी के मुकाबले दिसम्बर 2012 में 74 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

   4-सेवा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह ( निर्माण सहित शीर्ष पांच क्षेत्र) मे 37.6 

      फीसदी की तेज गिरावट आई जो कुल की अब लगभग 6.4 बिलियन डॉलर के स्तर 

    पर गया है।

मजबूत बैंकिग और बीमा क्षेत्र के बूते पर भारत आज विश्व की सबसे आकर्षक अर्थव्यवस्थाओ में से एक है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक भारत के विश्व भर में पाचवां सबसे बड़ा बैकिंग क्षेत्र बनने का अनुमान है।रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि बैंक ऋण के बेहतर माध्यम अवधि में 17 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक वृ़िद्ध दर बढ़ने की उम्मीद है।

GDP में सेवा क्षेत्र का योगदान-

सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का कुल योगदान,जिसमें व्यापार , होटल, परिवहन,भंडारन और संचार, बैंकिंग,बीमा, रियल एस्टेट, समुदाय और व्यक्तिगत सेवाएं शमिल है, लेकिन निर्माण नही, हालांकि, निर्माण को छोड़कर, सकल घरेलू उत्पाद मेें सेवा क्षेत्र का समग्र योगदान 1950-51 में 30.5 प्रतिशत से 2010-11 में 50.8 प्रतिशत तक तेजी से चढ़ गया और फिर 2011- 12 मे घटक लागत ( मौजूदा कीमतो पर) 55.7 ़प्रतिशत। यदि निर्माण को भी शामिल कर लिया जाय तो सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का हिस्सा 2000-01 मेें 56.8 प्रतिशत से बढ़कर 2013-14 में 59.6 प्रतिशत हो गया।

भारत में सेवा क्षेत्र का विकास-

    सेवा क्षेत्र ने सभी क्षेत्रों में अपनी वृद्धि क्ै कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद में अधिक योगदान दिया है। किसी अर्थव्यवस्था की स्थिति का विश्लेषण करते समय सेवा क्षेत्र को सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक माना जाता है। यह उद्योगो से बना है, जो निम्नलिखित श्रेणियों में से एक में आते है-

·                     थोक और खुदरा व्यापार

·                     होटल और रेस्टोरेंट

·                     परिवहन और भंडारण

·                     अचल संपत्ति

·                     व्यापार और वित्तिय सेवाएं

·                     स्ूचना और संचार प्रौद्योगिकी

·                     लोक प्रशासन और रक्षा

·                     शिक्षा

·                     स्वास्थ्य देखभाल

·                     कला और मनोरंजन

·                     अन्य सामुदायिक सेवाएं

 

 

संभावनाएं और चुनौतियां-

संभावनाएं- सेवा क्षेत्र की संभावनाएं जो कि अमरिका में सब-प्राइम संकट और ग्लोबल वित्तिय संकट के दौरान थोड़ा धूमिल हुई थी अब एक बार फिर बेहतर हो रही है। हाल ही में विभिन्न सेवा फर्मो के कारोबार निष्पादन के संकेत बताते है कि विभिन्न 35 क्षेत्र भी इस पूर्वानुमान में सहायक हो रहे है, यहॉ तक की संकट वर्ष के दौरान वार्षिक सेवा वृद्धि 10 प्रतिशत के लगभग मापी गयी थी जोकि 2005-06 से बरकरार है। भारतीय सेवा क्षेत्र अपनी क्षमता और दक्षता के लिए लोकप्रिय है। आजादी के सात दशको में, भारतीय सेवा क्षेत्रों में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गयी है। वित्तिय वर्ष 2020 में भारतीय सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्रों का योगदान 55.39 प्रतिशत है। भारत के सेवा क्षेत्र केवल भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में एक अभूतपूर्व योगदान दे रहे है बल्कि विदेशी निवेशको को अपने औद्यौगीकरण उद्यम के लिए आकर्षित भी कर रहे है। होटल और रेस्तरां,परिवहन,भंडारण और संचार, दूरसंचार, वित्त ,वीमा रियल स्टेट आईटी से संबधित व्यावसायिक सेवाएं, समुदाय,सामाजिक और व्यक्तिगत सेवाएं आदि भारत के सेवा क्षेत्र के अन्तर्गत आते है। भारतीय सेवा क्षेत्र लोगो के लिए रोजगार के अवसर पैदा करता है। 1983 से 2004-05 की अवधि के दौरान भारत ने रोजगार के मामले में एक संरचनात्मक परिर्वतन देखा है। 1983 के पहले कृषि और निर्माण क्षेत्र देश में प्रमुख रोजगार सृजक थे। लेकिन 1991 के बाद कई उप-क्षेत्रों जैसे व्यापार होटल, परिवहन आदि ने रोजगार के बहुत सारे अवसर पैदा किए। अब सेवा क्षेत्र के भीतर वित्त, बीमा और व्यापार सेवाओं में रोजगार के सबसे अधिक अवसर है। निश्चित रूप से अब सेवा क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और उच्चतम रोजगार पैदा करता है। इसलिए भविष्य में भारत सेवा क्षेत्र में संरचनात्मक परिवर्तन देखेगा।

चुनौतियां-

भारत में छोटे और मध्यम उद्यम अत्यधिक श्रम प्रधान है। श्रमिको को पर्याप्त मजदूरी और उन्हे बनाए रखने के लिए पर्याप्त कार्य करने की स्थिति प्रदान नहीं कर सकते। कई कुशल श्रमिक दूसरे देशो में चले जाते है जहां उन्हे बेहतर मजदूरी और काम करने के अनुसार नौकरी मिल सकती है। कुशल श्रम बल की यह कमी उद्योग क्षेत्र के लिए अपना व्यवसाय और उत्पादकता चलाना मुश्किल बना देती है। यह भी उल्लेखनीय है कि सेवा क्षेत्र को वित्त के सम्बन्ध में कुछ समस्याओ का सामना करना करना पड़ता है। बैंक और वित्तीय संस्थानों द्धारा अपनायी जाने वाली जटिल प्रक्रिया से सेवा क्षेत्र के लिए व्यावसायिक ऋण या यहा तक कि अपने कर्मचारियो के लिए व्यक्तिगत ऋण प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा कुशल श्रमिकों की कमी के कारण भारत में अप्रशिक्षित या अकुशल श्रमिको को काम पर रखना पड़ता है, जिससे उत्पादन की गुणवत्ता में कमी आती है। तेजी से विकासमान, रोजगारोन्मुखी, को आकर्षित करती हुयी सम्भावनाएं वाले अवसर हमारे सामने है तथापि चुनौतियां भी कई है। इस क्षेत्र में एक चुनौती सूचना प्रौद्योगिकी और आईटी दूरसंचार जैसे क्षेत्रों मंे जहां भारत पहले से ही अच्छी स्थिति पर पहुचॅ चुका है, अपना प्रति स्पर्धात्मकता को बनाएं रखना है। घरेलू क्षेत्र में गहन और व्यापक उपयोग से अन्य वस्तुओं तथा सेवाओं की उत्पादकता और कौशल में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन होगा।

दूसरी चुनौती सड़को तथा पर्यटन और जहाजरानी जहां अन्य देश स्वमं को पहले ही स्थापित कर चुके है किन्तु जहां भारत के प्रवेश की जबरदस्त सम्भावना अभी भी बनी हुई है ऐसे परम्परागत क्षेत्रों में स्वमं को स्थापित करना है।

तीसरी चुनौती वित्तीय सेवाओं, स्वास्थ्य, रक्षा, शिक्षा,लेखांकन, तथा अन्य कारोबारी सेवाओं, जहां भारत का एक व्यापक घरेलू बाजार है और जहां उसने अन्तराष्ट्रीय बाजार में अपना एक मुकाम बनाने के संकेत भी दिए है तथा जहां उसने अपनी पूरी क्षमताओं को नीचोड़ा भी नहीं है। ऐसे वैश्विक व्यापार सेवाओं के क्षेत्र में खुद को स्थापित करना है। बेहतर आकड़ो सूचनाओं को एकत्र करना तथा उन सभी सूचनाओं को एक साथ बाटनें में बेहतर विकास करना भी एक चुनौती है। विनियामक सुधार भी महत्वपूर्ण है क्योकि नई घरेलू विनियमन तथा बाजार में पहुचने में आने वाली बाधाएं इस तीव्र विकास वाले क्षेत्र में हमें रोक सकती है। चूकिं सेवाओं में विविध क्षेत्र है इसलिए इन मामलों तथा नीतियों को अलग-थलग करके नहीं लिया जा सकता। इन चुनौतियों तथा मामलों के निराकरण हमारे सेवा क्षेत्र को और सशक्त कर सकता है।

लोक प्रमुख-

जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, यह भारतीय सेवा क्षेत्र मानव संपर्क पर निर्भर करता है और जन केन्द्रीत भी है। सामाजिक दूरी के मानदंडो ने उनके जीवित रहने की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, और आंदोलन पर गंभीर प्रतिबंध और संक्रमण का डर दबाव को और बढ़ा देता है। व्यवसायों का एक वड़ा वर्ग स्थायी रूप से बंद होने की संभावना है, जवकि अन्य को जीवित रहने के लिए पर्याप्त सरकारी सहायता की आवश्यकता हो सकती है। महामारी ने कई क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर व्यवधान पैदा किया है, जिसमें कई व्यवसाय अस्थायी या स्थायी रूप से बंद होने की संभावना है। जबकि अन्य को जीवित रहने के लिए पर्याप्त सरकारी सहायता की आवश्यकता है।

बुनियादी ढ़ॉचे की कमी-

बुनियादी सुविधाओं और सेवाओं का विकास केन्द्र और राज्य सरकारों दोंनों की जिम्मेदारी है। भारत में बिजली, शहरी विकास, परिवहन,रेलवे,जल आपूर्ति, सीवरेज, और ठोस अपशिष्ट प्रबन्धन, और दूरसंचार जैसे विभिन्न विभागों और एजेंसिंयों के तहत विभिन्न बुनियादी सुविधाएं मैजूद है। ढ़ांचागत सुविधाओं की कमी के कारण व्यावसायिक संगठनों की लागत अधिक होती है, और यह उन्हे इन सुविधाओं में निवेश के समर्थन के लिए सरकार पर निर्भर करता है। सरकार को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को विकसित करने के लिए निजी क्षेत्र को प्रोेत्साहन करना चाहिए। बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता हमेशा एक बड़ी चुनौती रही है, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में। अधिकांश छोटे व्यवसाय ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में स्थित है जहां बैकिंग और अन्य वित्तिय सेवाओं जैसे बैंकिग उत्पादों , बीमा उत्पादों,ूपजी बाजार उत्पादों आदि की कमी कारण वित्त तक पहुंचपाना मुश्किल है। इसने पिछले कुछ वर्षो में उनके कम विकास मे और योगदान दिया है।

बाजार की बाधाएं-

सेवाओं के क्षेत्र में भारत का व्यापार कई प्रवेश बाधाओं से बाधित हुआ है।  कई बाजार प्रवेश बाधाओं ने उत्पाद और सेवा क्षेत्रों में अपने भागीदार देशों के साथ भारत के वाणिज्य को बाधित किया है।

सेवा क्षेत्र का रोजगार में योगदान- भारतीय अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का योगदान कई गुणा रहा है। सकल घरेलू उत्पाद में इसका हिस्सा 55.2 प्रतिशत है। यह प्रति वर्ष 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। कुल रोजगार में सेवा क्षेत्र की भूमिका की योगदान निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। वर्तमान में भारत में कुल रोजगार का लगभग एक चौथाई का योगदान दे रहा है, जो बेरोजगारी से भारत को लड़ने में काफी सहायक सिद्ध हुआ है।मुख्य रूप से परिवहन, कूरियर, होटल एवं रेस्टोरन्ट आदि के सेवा क्षेत्रों ने रोजगार के नए आयाम स्थापित किए है। यदि सरकार के द्धारा इन क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाय तो इनमें रोजगार के अपार सम्भावनाएं निहित है।

निष्कर्ष-

 भारत वर्तमान उभरते परिदृष्य में सेवा क्षेत्र में संरचनात्मक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। लेकिन इस संरचनात्मक परिवर्तन ने स्वरोजगार और नवाचार के अधिक अवसर पैदा किए है, और हालांकि, इसमें भारत को बेरोजगारी और कौशल रोजगार की समस्याओं का सामना करना पड़ा है। भविष्य में, सेवा क्षेत्रों में ये संरचनात्मक परिवर्तन भारत के विनिर्माण क्षेत्र को अधिक नम्य, अधिक प्रतिस्पर्धी और तकनीकी रूप से परिष्कृत बना सकते है। सेवा क्षेत्र लगभग हर मध्यमवर्गीय परिवार के लिए आवश्यक है। भारतीय समाज के सबसे गरीब लोगों को भी अपने रहने की स्थिति में सुधार करने की आवश्यकता है, लेकिन यह सेवा क्षेत्र की बेहतरी के बिना पूरी तरह से सम्भव नहीं होगा। अतः भारत के सन्दर्भ में यह आवश्यक हो जाता है कि सेवा क्षेत्र पर समुचित ध्यान दिया जाय जिससे बेरोजगारी और निम्न जीवन स्तर से निम्न वर्ग को बाहर लाया जा सके। उन्हे भी वो सारी सुविधाएं प्राप्त हो सके जिससे उनका जीवन स्तर में बृद्धि हो सके।

सन्दर्भ ग्रन्थ सूची-

                 1-जर्नल ऑफ इकोनॉमिक पर्सपेक्टिब्स

   2-https://www.studyadda.com

3.  आरए एमजी/एएम/हिंदीइकाई/3

              4- आर्थिक समीक्षा 2022

 

 डॉ.दिनेश कुमार तिवारी

एसोसिएट प्रोफेसर ( वाणिज्य संकाय )

डी00वीपी0जीकालेज,आजमगढ़

 

 अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-41, अप्रैल-जून 2022 UGC Care Listed Issue

सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादव, चित्रांकन सत्या सार्थ (पटना)

Post a Comment

और नया पुराने