शोध आलेख :- महिला सशक्तिकरण में प्रधानमंत्री आवास योजना का योगदान / दीपक कुमार दास एवं डॉ रंजीत कुमार झा

महिला सशक्तिकरण में प्रधानमंत्री आवास योजना का योगदान
दीपक कुमार दास एवं डॉ रंजीत कुमार झा

शोध-सार : विश्व के अधिकांश देशों में महिलाओं की दशा को लेकर सिद्धांत और व्यवहार के बीच एक बड़ी खाई देखने को मिलती है और इसी खाई की वजह से उन्हें राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक अधिकारों से वंचित किया जाता रहा है। पुरुष-प्रधान समाज में महिलाओं की स्थिति दयनीय है। भारत के संदर्भ में भी कुछ ऐसी ही व्यथा देखने को मिलती है जब हम ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति को देखते हैं तो बहुधा प्रश्न आत्मा को झकझोर देते हैं। इन समस्याओं के समाधान हेतु महिलाओं को कानूनी अधिकारों के  साथ-साथ सम्पति एवं मकानों में उसकी हिस्सेदारी सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है ताकि उन्हें  किसी भी प्रकार का तनाव और भेदभाव महसूस ना हो तथा लैंगिक समानता की बुनियाद मजबूत हो। ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में बहुत सारे योजनाओं को लागू किया गया है ताकि उनके जीवन स्तर को उन्नत कर एक सम्मानजनक रूप  दिया जा सके इन्हीं योजनाओं में एक है - प्रधानमंत्री आवास योजनाग्रामीण।

मूल शब्द : ग्रामीण विकास, महिला सशक्तिकरण, आवास योजना, समानता, प्रभाव

शोध आलेख का उद्देश्य : इस शोध आलेख का उद्देश्य ग्रामीण विकास में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में प्रधानमंत्री आवास योजना की भूमिका का अध्ययन करना है। साथ ही इस योजना के मार्ग में आने वाली समस्याओं को स्पष्ट कर इसके समाधान को रेखांकित करना है।

शोध आलेख की समस्या : आज भारत में महिलाओं के सामने शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आवास आदि कई तरह की प्रमुख समस्याएं मौजूद है लेकिन इन समस्याओं में सबसे प्रमुख समस्या आवास की समस्या है क्योंकि यह मूलभूत आवश्यकता है इसके बिना किसी भी क्षेत्र में विकास अधुरा है।

शोध आलेख की पद्धति : प्रस्तुत शोध आलेख प्राथमिक एवं द्वितीयक समंक या डाटा पर आधारित है तथा इसमें सैद्धांतिक, ऐतिहासिक, एवं विश्लेषणात्मक शोध प्रविधि का प्रयोग किया गया है।

शोध परिकल्पना : प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण ग्रामीण विकास के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण साधन है।

पूर्व साहित्य की समीक्षा : शोध आलेख लेखन से पूर्व संबंधित प्रकाशित शोध आलेखों, पत्रों का व्यापक परिप्रेक्ष्य में अध्ययन एवं अवलोकन किया गया है। तत्पश्चात जो कुछ बातें उभर के सामने आई हैं वह निम्नलिखित हैं-

माधवी श्री ने अपने शोध आलेख 'अकेली महिलाओं को चाहिए आवास की गारंटीमें अकेली महिलाओं की आवास समस्या को लेकर सरकार की विभिन्न नीतियों की चर्चा और विश्लेषण करती है। उनके आलेख से यह परिलक्षित होता है कि अविवाहित, तलाकशुदा, अकेले रहने वाली महिला को जीवन में हर क्षेत्र में कई तरह के असुरक्षा का सामना करना पड़ता है जिसमें आवास एक प्रमुख समस्या है। उन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार, निजी संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों और समाज को जागरूक होकर एक साथ काम करने की बात की है। (श्री,2017)

राकेश श्रीवास्तव ने अपने कार्यग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण : आगे की राहमें ग्रामीण महिलाओं के सभी आयामों में सशक्तिकरण हेतु उनके आर्थिक, सामाजिक राजनीतिक सभी रूपों में प्रभावी सम्मेलन को आवश्यक बताया है। उन्होंने महिलाओं को समानता का अधिकार देने के लिए संपत्ति के अधिकारों जिसमें आवास भी शामिल है की बात की है। इसके साथ ही साथ उन्हें जागरूक  बनाकर उनकी क्षमता का एहसास कराने की वकालत की है। (श्रीवास्तव,2018)

डॉ अर्चना शर्मा ने अपने अनुसंधानमहिला सशक्तिकरण का आर्थिक और सामाजिक पहलूमें महिला सशक्तिकरण पर जोर देते हुए उनके आर्थिक और सामाजिक पक्षों के सुदृढ़ीकरण की बात करती हैं चूँकि महिलाएं आधी आबादी का नेतृत्व करती हैं इसलिए शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में इनकी  स्थिति को सशक्त करने के लिए संपत्ति में हक को बहुत ही आवश्यक बताती हैं। उनका मानना है कि समाज में पुरुषों के समान महिलाओं को  तो समान अवसर एवं प्रोत्साहन मिलता है और ना ही उन्हें पैतृक संपत्ति में वाजिब हक मिल पाता है इसलिए पुरुषों को अपनी मानसिकता में बदलाव करने की आवश्यकता है। (शर्मा,2018)

अरविंद कुमार सिंह ने अपने पत्रअवसंरचना विकास से सशक्त बनता ग्रामीण भारतमें वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट पर चर्चा करते हुए आत्मनिर्भर भारत की दिशा में आवास निर्माण को महत्वपूर्ण बताया है। उनका मानना है कि आवास से ग्रामीण संरचना की मजबूती के साथ साथ महिला सशक्तिकरण को भी बल मिल रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना को बेहद अहम बताया है। (सिंह,2021)

हिना नकवी ने अपने आलेखसामूहिक नारी शक्ति के प्रतीक स्वयं सहायता समूहमें महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली समस्या की चर्चा करते हुए इसके समाधान में स्वयं सहायता समूह के महत्व की चर्चा करती हैं। उन्होंने महिला सशक्तिकरण हेतु सरकार की योजनाओं को महत्वपूर्ण बताते हुए उसमें स्वयं सहायता समूह की भागीदारी निश्चित करने की बात की है। (नकवी,2022)

परिचय : आजादी के पश्चात नीति निर्माताओं और संविधान विशेषज्ञों ने महिलाओं के पिछड़ेपन के मर्म को समझते हुए उनकी सहभागिता को देश के लिए आवश्यक माना। (सिंह,2015) देश के विकास हेतु महिलाओं का सशक्त होना आवश्यक और अनिवार्य है क्योंकि जब महिलाएँ ही सशक्त नहीं हो पाएंगी तो हम एक सशक्त समाज की परिकल्पना नहीं कर सकते और समाज सशक्त ना हो तो गांव,राज्य देश की नींव ही कमजोर रह जाएगी। महिला सशक्तिकरण का आशय महिलाओं की आध्यात्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, आर्थिक आदि सभी रूपों में इनकी शक्तियों में वृद्धि करना और आत्मसम्मान की भावना भरना है। महिलाएं हर दिन अलग-अलग भूमिका निभाते हुए नजर आती हैं। एक बेटी के रूप में,एक धर्म पत्नी के रूप में, संवेदनशीलता के रूप में, सक्षम सहयोगी के रूप में वे अपनी भूमिका का बड़ी कुशलता और सौम्यता से निभाती रही हैं लेकिन सम्पूर्ण विश्व उनकी इस भूमिका को नजरअंदाज करता रहा है। जिस कारण उन्हें बड़े पैमाने पर उत्पीड़न, असमानता, वित्तीय निर्भरता अन्य सामाजिक कुरीतियों बुराइयों का खामियाजा सहन करना पड़ता है। यही बेड़िया ही महिलाओं के आत्मसम्मान, गरिमा, स्वाभिमान समानता और स्वतंत्रता के मार्ग में बाधक है। यदि सामाजिक असमानता, पारिवारिक हिंसा, अत्याचार और आर्थिक अंतर-निर्भरता से  महिलाओं को मुक्त करना है तो एक ही उपाय है - महिला सशक्तिकरण।

भारतीय दर्शन की बात करें तो दयानंद सरस्वती, राजा राममोहन राय, एनी बेसेंट, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा ज्योतिबा फूले, सावित्री फुले, महादेव गोविंद रानाडे आदि ने तत्कालीन समाज में व्याप्त अज्ञानता और अंधविश्वास, पाखंड, कुरीतियों आदि को तर्क और ज्ञान के आधार पर खंडन कर महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के साथ-साथ महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने का पुरजोर वकालत किया  जिसका समाज पर व्यापक  रूप से प्रभाव पड़ा है।

संविधान की उद्देशिका में वर्णित सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता प्रतिष्ठा और अवसर की क्षमता प्रदान करने के लिए पूर्ण प्रतिबंध की बात कही गयी है। संविधान के कुछ प्रमुख अनुच्छेद 14, 15, 16, 19, 23, 24, 39,42, 47, 243 में महिला सशक्तिकरण के लिए प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख किया गया है इसके साथ ही 73 वें संवैधानिक संशोधन के माध्यम से पंचायती राज संस्थानों में संवैधानिक अधिकारों के साथ-साथ विशेष स्थिति भी प्रदान की गई है। संविधान में महिलाओं के लिए प्रमुख कानूनी प्रावधान इस प्रकार हैं अनुच्छेद-14 में कानून के समक्ष समता की बात कही गई है। अनुच्छेद 15 (3) महिलाओं तथा बच्चों हेतु विशेष सुविधा , अनुच्छेद-16 बिना भेदभाव के नौकरी में समानता , अनुच्छेद 19 में समान अभिव्यक्ति की बात है अनुच्छेद 21 में प्राण दैहिक स्वतंत्रता से वंचित ना करने की बात कही गई है। अनुच्छेद 23 24 में नारी क्रय-विक्रय वह बेगार प्रथा पर रोक लगाई गई है। अनुच्छेद 39 में समान कार्य के लिए समान वेतन , अनुच्छेद 243 पंचायती राज नगरी संस्थानों में 73 वें 74 वें संशोधन के माध्यम से महिला आरक्षण का प्रावधान है। अनुच्छेद 42 में महिला प्रसूति सहायता, अनुच्छेद 47 में पोषाहार जीवन स्तर तथा लोक स्वास्थ्य में सुधार करना सरकारी दायित्व बतलाया गया है। (तिवारी,2020)

वर्ष 1975 को अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष के रूप में मनाए जाने के पश्चात सरकार ने महिला विकास हेतु विशेष प्रयास किए इसी क्रम में सरकार ने वर्ष 2001 को राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण वर्ष के रूप में मना कर महिलाओं की सामाजिक आर्थिक दशा को सुधारने की दिशा में एक साहसिक कदम उठाया। (मोदी,2013) ग्रामीण विकास में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने समय-समय पर नीतियों का निर्माण किया है। महिलाओं और बच्चों के समग्र विकास को  गति प्रदान करने के लिए 1985 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन महिला और बाल विकास विभाग गठित किया गया जिसे वर्ष 2006 में स्वतंत्र मंत्रालय का दर्जा दे दिया गया। महिला और बाल विकास मंत्रालय महिलाओं के विकास की देखरेख करने वाली प्रमुख एजेंसी के रूप में योजनाएं, नीतियां और कार्यक्रम तैयार करता है और महिलाओं के बारे में कानून बनाता है एवं उनमें संशोधन भी करता है इसके साथ-साथ महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम करने वाली सरकारी और गैर सरकारी दोनों ही तरह के संगठनों के प्रयासों का दिशा-निर्देशन और समन्वय करता है। (गौतम,2013)

विभिन्न योजनाओं एवं आवास नीति में महिला और बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार महिलाओं के प्रति संवेदनशील है। यह मंत्रालय सुरक्षित, पर्याप्त और सस्ते घर ग्रामीण और शहरी इलाकों में उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। बेघर, अकेली, प्रवासी, घर की मुखिया, कामकाजी महिला, छात्रा आदि के लिए रिहायशी नीति की वकालत करती है। इसके साथ साथ यह मंत्रालय महिलाओं के आवास नीति के सार्वभौमीकरण पर बल देता है। (श्री,2017)  

महिलाओं को सक्षम एवं सशक्त बनाने हेतु केंद्र सरकार द्वारा विशेष योजनाएं चलाई जाती रही हैं। केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड, महिला और बाल विकास कल्याण विभाग, स्वास्थ्य कल्याण विभाग, श्रम मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय आदि के द्वारा महिलाओं के लिए अनेक उपयोगी योजनाएं कार्यक्रम लागू किए गए जिससे वह आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक और राजनीतिक सभी क्षेत्रों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सके। (गौतम,2013) 

विकास लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु यह बहुत आवश्यक है कि देश की आधी आबादी के योगदान एवं उसके विकास को सुनिश्चित किया जाए ताकि उनका शोषण ना हो सके और इसलिए सरकार द्वारा कल्याणकारी योजनाएं भी संचालित की जाती रही हैं जिनमें प्रमुख योजनाएं हैं- महिलाओं के लिए प्रशिक्षण और रोजगार कार्यक्रम का समर्थन , महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन योजना, राजीव गांधी किशोरी सशक्तीकरण स्कीम (सबला), सुकन्या समृद्धि योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, महिला शक्ति केंद्र योजना, सुरक्षित मातृत्व आश्वासन सुमन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना। (मिश्रा,2020)

प्रधानमंत्री आवास योजना : आजादी के बाद शरणार्थियों के पुनर्वास के साथ देश में आवास हेतु सार्वजनिक आवास कार्यक्रम शुरू हुआ। ग्रामीण आवास कार्यक्रम एक स्वतंत्र योजना के रूप में जनवरी 1996 में इंदिरा आवास योजना के नाम से शुरू हुआ जिसमें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यक, विधवा, अविवाहित विकलांग आदि को प्राथमिकता के साथ लाभ देने का प्रावधान दिया गया। प्राथमिकता के आधार पर सर्वप्रथम यह योजना महिलाओं के नाम से दिये जाने का प्रावधान है अन्यथा संयुक्त नाम का प्रावधान है। (डेवलपमेंट,2011)

1 अप्रैल, 2016 से इंदिरा आवास योजना को एक प्रधानमंत्री आवास योजना के नाम से क्रियान्वयन किया जाने लगा है जिसके अंतर्गत 2022 तक सभी को पक्का मकान उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। वित्तीय आवंटन की बात करें तो समतल क्षेत्र में 1,20,000  रूपये पूर्व में 70,000 तथा पहाड़ी क्षेत्र में 1,30,000 रूपये पूर्व में 75,000 दिए जाने का प्रावधान है जिसमें केंद्र राज्य की हिस्सेदारी क्रमशः 60:40 और 90:10 है। वर्तमान में लाभुकों का निर्धारण सामाजिक आर्थिक जातीय आधारित जनगणना SECC-2011 के आधार पर ग्राम सभा के सत्यापन के बाद  दिया जाता है जिसमें मकान महिलाओं के नाम से होने का प्रावधान को प्राथमिकता दिया गया है। (भानुमूर्ति और अमरनाथ,2018)

वर्ष 1985 से अब तक 1,05,815,80 करोड़ रुपए की लागत से 351 लाख आवासों का निर्माण इंदिरा आवास के जरिए हो चुका है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण इलाकों के 20.6 करोड घरों में से करीब 20.7 प्रतिशत घरों पर आज भी कच्ची छत है। (झा,2016)  

भारत सरकार ने इस योजना के माध्यम से ग्रामीण विकास की बुनियाद रखी है। इस योजना के तहत अब तक 2 करोड़ से अधिक आवास बन चुके हैं और इस योजना में प्राथमिकता के तौर पर आवास का आवंटन घर की महिलाओं के नाम पर किया जाता है एवं सौभाग्य योजना के माध्यम से उस घर में बिजली, उज्ज्वला योजना की से गैस कनेक्शन, स्वच्छ भारत मिशन से शौचालय निर्माण एवं खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत राशन सुरक्षा दी जाती है। भारत सरकार ने गरीब परिवार के मकान को  'घर' बनाने पर सार्थक प्रयास अपने विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कर रही है। (सिंह और सिंह,2021)

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में तलाकशुदा, विधवा, अविवाहित, अकेले रहने वाली महिला जिसकी कुल आबादी 50,709,941 है। यह सभी महिलाएं शहर में नहीं रहती हैं इसकी बहुत बड़ी आबादी गांव और कस्बाई इलाकों में रहती है पर हर जगह अकेली महिलाओं को ना ही ससुराल में और ना तो पिता के घर पर सम्मान पूर्वक रहने दिया जाता है। अकेली महिलाओं के लिए यह यह बहुत बड़ी आवास की समस्या है।  (श्री,2017)

प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत ग्रामीणों के लिए आवंटन को 2016-17 के 15000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 2017-18 में   23000 करोड रुपये कर दिया गया है जिसके अंतर्गत बेघर और कच्चे घरों में रह रहे लोगों हेतु 2019 तक एक करोड़ मकान तैयार करने का लक्ष्य रखा गया था (कश्यप,2017)

ग्रामीण भारत के सामाजिक आर्थिक विकास में गैर-सरकारी संस्थाओं, स्वयं सहायता समूहों एवं निजी क्षेत्र की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह सभी संस्थाएं अपने विभिन्न सामाजिक गतिविधियों और कार्यों में  विभिन्न सामाजिक विषमताओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी, भेदभाव ,भ्रष्टाचार एवं महिला एवं बाल उत्पीड़न इत्यादि  दूर करने में सरकार समाज को अपना बहुमूल्य योगदान दे सकती है। इसीलिए प्रधानमंत्री आवास योजना के संदर्भ में भी इनकी भूमिका को बढ़ावा दिया जाने की आवश्यकता है। (तिवारी और गुप्ता,2019)

ग्रामीण महिलाओं को सभी क्षेत्रों में विकास की मुख्यधारा से जोड़ना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। महिलाएं अपनी क्षमता, शिक्षा और अनुभवों के आधार पर राष्ट्र निर्माण में एक अहम भूमिका निभा सकती है। निरंतर समुचित विकास और संतुलित विकास के लिए महिलाओं को समर्थ बनाना अत्यंत आवश्यक है ताकि वे अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर पूरे  हक के साथ  अधिकारों का प्रयोग कर स्वयं के साथ-साथ समाज   राष्ट्र के हित में निर्णय ले सके।

स्त्री और पुरुष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं सामाजिक धरातल पर पितृसत्तात्मक परिवार में पुरुष मुखिया रहते हैं। परिवार में उनकी आपसी संबंध में से ही परिवार कायम रहता है। यही संबंध समाज में दिखाई दे इसके लिए यह आवश्यक है कि पुरुष भी निष्पक्ष मानसिकता से महिलाओं की प्रगति का प्रारंभ अपने घर से करें। यहां घर का अर्थ बहुत व्यापक है। उसे अपने घर में  समानता  स्वतंत्रता और अधिकार को  व्यवहारिक रूप प्रदान करें तभी हमारे समाज का विकास होगा और जब समाज का विकास होगा तो गांव मजबूत होगा और जब गाँव मजबूत होगा तभी आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना पूरी हो सकेगी। (श्रीवास्तव,2013)



सारणी 1.1 फील्ड सर्वे पर आधारित है जिसमें कुल 204 लाभार्थी एवं कुल 136 गैर-लाभार्थी का सैंपल चांदन प्रखंड के कुल 17 पंचायत से लिया गया है। लाभार्थी से महिलाओं की स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने का प्रश्न पूछा गया है जिसमें कुल 97 (47.5 प्रतिशत) ने दृढ़ता पूर्वक सहमत, 88 (43.1 प्रतिशत ) लाभार्थी सहमत होने की बात, 5 (2.5 प्रतिशत) तटस्थ तथा 14(6.9 प्रतिशत) असहमत एवं दृढ़ता पूर्वक असहमत  की संख्या 0 या शून्य थी। ठीक इसी प्रकार गैर-लाभार्थी से भी भविष्य में आवास योजना का लाभ मिल जाने पर 'महिलाओं की स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा?' का प्रश्न पूछा गया तो उनमें से 90 (66.2%) ने दृढ़ता पूर्वक सहमत, 40 (29.4 प्रतिशत) सहमत, 6 (4.4 प्रतिशत) तटस्थ, 0 या शून्य असहमत एवं दृढ़ता पूर्वक असहमत होने की बात कही। लाभार्थी और गैर-लाभार्थी दोनों में किसी ने भी  दृढ़ता पूर्वक असहमत होने की बात नहीं की अर्थात लगभग सभी ने ग्रामीण आवास के लाभ का महिलाओं की स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष या आंशिक रूप से स्वीकार किया है। यहां तक कि लाभार्थी के 47.5% और गैर-लाभार्थी का 66.2% लोगों ने  दृढ़ता पूर्वक सहमति जताई एवं लाभार्थी का 43.1% एवं गैर-लाभार्थी का 29.4% लोगों ने महिलाओं पर ग्रामीण आवास के लाभ का सकारात्मक प्रभाव पर अपनी सहमति जताई है।

भुवन भास्कर ने अपनी एक आलेख में बताया है कि मार्च 2021 तक 68% घरों का स्वामित्व व्यक्तिगत या संयुक्त रूप से महिलाओं के पास है। (भास्कर,2022)

 

        

 सारणी 1.2 से यह स्पष्ट होता है कि 24 मई 2022 तक प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण का  क्यूमुलेटिव प्रोग्रेस रिपोर्ट के अनुसार भारत के कुल 35 राज्यों संघ राज्य क्षेत्रों मैं (दिल्ली को छोड़करकुल स्वीकृत आवासों की संख्या 24,041,251 है जिसमें 6,271,826 (26.08 %) केवल महिलाओं के नाम तथा 10,260,238 (42.67 प्रतिशत) आवास संयुक्त रूप से पति-पत्नी   दोनों के नाम से है अर्थात लगभग 16,532,064 (68.75%) मकान अकेली महिला और संयुक्त रूप से पति - पत्नी के नाम से है।

 Source-https://rhreporting.nic.in/netiay/newreport.aspx

       

                                 

उपरोक्त सारणी-1.3से यह पता चलता है कि महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के साथ-साथ उनके आत्मविश्वास को सुदृढ करने की दिशा में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार  ने सबसे अधिक संख्या में महिलाओं को घर आवंटित किया है।

Source-https://rhreporting.nic.in/netiay/newreport.aspx

                           

उपरोक्त सारणी-1.4  से यह पता चलता है प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के  वित्तीय वर्ष 2020-21 के वार्षिक रिपोर्ट का अध्ययन करें तो कुल 4, 138,272 आवासों में से केवल महिलाओं के नाम 953,152 (23.03 प्रतिशत)का संयुक्त रुप से 1,933,595 ( 46,72% )आवास पति -पत्नी दोनों के नाम से है अर्थात लगभग कुल 2,886,747(69.75%) मकान ऐसे हैं जिसमें व्यक्तिगत रूप से और संयुक्त रूप से मकान महिला के नाम से है।

 

Source-https://rhreporting.nic.in/netiay/newreport.aspx

                                     

उपरोक्त सारणी-1.5  से यह पता चलता है वित्तीय वर्ष 2021-22 में कुल स्वीकृत मकानों की संख्या 4,383,696 है जिसमें केवल महिलाओं के नाम से 1,146,792 (26.16 प्रतिशत ) तथा संयुक्त रूप से पति-पत्नी दोनों के नाम से 2,065,765 (47.12 प्रतिशत) है अर्थात लगभग 3,212,557(73.28 प्रतिशत) मकान अकेली महिला के नाम से और संयुक्त रूप से पति पत्नी के नाम से है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में  महिलाओं के नाम पूर्णत: और संयुक्त रूप से दोनों को मिलाकर 69.75% था जबकि वित्तीय वर्ष 2021-22 में यह आंकड़ा 73.28% हो गया अर्थात पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में इस वर्ष (2021-22) लगभग 3.53% की वृद्धि मकानों में  महिलाओं के मालिकाना हक के रूप में हुई है जो महिला सशक्तिकरण की दिशा में  सार्थक प्रयास है।

निष्कर्ष : इस आलेख में दिए गए आंकड़ों के व्यापक विश्लेषण से यह परिलक्षित होता है कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण का व्यापक प्रभाव पड़ा है क्योंकि महिलाओं के नाम आवास  उसके आत्मसम्मान, स्वाभिमान, आत्मनिर्भरता, स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनकी स्थिति को बेहतर करती है। इस योजना के प्रभावी क्रियान्वयन के फलस्वरुप ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक शैक्षणिक स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिल रहा है और पीछले कुछ दशक के दौरान इनकी जीवन प्रत्याशा में वृद्धि भी हुई है। इस प्रकार यह योजना अपने उद्देश्यों में काफी हद तक सफल हुई है।

सन्दर्भ :

1अनीता मोदी, ‘ग्रामीण महिला सशक्तिकरण सरकारी प्रयास एवं चुनौतियाँ’, कुरुक्षेत्रअगस्त, 2013, पृ. 9      
2. 
अर्चना शर्मा, ‘महिला सशक्तिकरण का आर्थिक और सामाजिक पहलू’, कुरुक्षेत्र, जनवरी, 2018, पृ. 58-62
3. 
अरविंद कुमार सिंहमार्च, 2021, ‘अवसंरचना विकास से सशक्त बनता ग्रामीण भारत’, कुरुक्षेत्र, पृ. 29-32
4. 
गाइडलाइन फॉर आईएवाई मिनिस्ट्री ऑफ रूरल डेवलपमेंट, 2011, गवर्नमेंट ऑफ इंडिया
5. जगन्नाथ कश्यप, ‘सामाजिक सुरक्षा और महिला सशक्तिकरण पर बल’, कुरुक्षेत्र, मार्च, 2017,  पृ. 21
6. 
निमेश कुमार तिवारी, ‘ग्रामीण भारत के सतत् विकास हेतु महिला सशक्तिकरण’, कुरुक्षेत्र, मई, 2020, पृ. 23
7. 
नीरज कुमार गौतम, ‘ग्रामीण महिला सशक्तिकरण का बदलता स्वरूप अगस्त’, कुरुक्षेत्र, 2013, पृ. 24
8. 
वही, पृ. 26
9. 
निलेक कुमार तिवारी और आकांक्षा गुप्ता, ‘ग्रामीण भारत में गैर-सरकारी संस्थानोंस्वयं सहायता समूह एवं निजी क्षेत्र की सार्थक भूमिका’, कुरुक्षेत्र, जुलाई, 2019, पृ. 42
10. 
एन.आरभानुमूर्ति और एच.केअमरनाथ, ’प्रधानमंत्री आवास योजना और रोजगार सृजनकुरुक्षेत्रअगस्त, 2018, पृ. 24
11. 
प्रभाष कुमार झा, ‘बुनियादी सुविधाओं से बदलेगी गांव की तस्वीर’, कुरुक्षेत्र, दिसंबर, 2016, पृ. -7
12. 
भुवन भास्कर, ‘उद्यमिता में महिलाएं’, कुरुक्षेत्र, अप्रैल, 2022, पृ. 41
13. 
माधवी श्री, ‘योजना अकेली महिलाओं को चाहिए आवास की गारंटी’, योजनासितंबर, 2017, पृ. 53
14. 
वही, पृ. 53-56
15. 
मयंक श्रीवास्तव, ‘महिला सशक्तिकरण सामाजिक बदलाव के लिए आवश्यक’, कुरुक्षेत्र, अगस्त ,2013, पृ. 17
16. 
राकेश श्रीवास्तव, ‘ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण:आगे की राह’, कुरुक्षेत्र, जनवरी, 2018, पृ. 5-11
17. 
संतोष कुमार सिंह : 'महिला सशक्तिकरण एवं सरकारी प्रयास', कुरुक्षेत्र, मार्च, 2015,  पृ. 25
18. 
संतोष कुमार सिंह और रेनू सिंह, ‘वर्ष 2022 तक हर परिवार को घर प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण’, कुरुक्षेत्र, जनवरी, 2021, पृष्ठ संख्या–52
19. 
सात्विक मिश्रा, ‘महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण सरकार की प्राथमिकता’, कुरुक्षेत्र, मई, 2020, पृ. 27-30 
20. 
हेना नकवी, ‘सामूहिक नारी शक्ति के प्रतीक स्वयं सहायता समूह’, कुरुक्षेत्र, अप्रैल, 2022, पृ. 42-45


दीपक कुमार दास
शोधार्थी
स्नातकोत्तर, राजनीति विज्ञान विभाग, सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका
 
डॉ रंजीत कुमार झा
शोध पर्यवेक्षक (एसोसिएट प्रोफेसर)
देवघर कॉलेज, देवघर, सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका

 अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-41, अप्रैल-जून 2022 UGC Care Listed Issue

सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादव, चित्रांकन सत्या सार्थ (पटना)

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