शोध आलेख : ‘मैला आँचल’ के गीतों में राजनीति / डॉ. पवनेश ठकुराठी

मैला आँचलके गीतों में राजनीति
- डॉ. पवनेश ठकुराठी

शोध सार : कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु का पहला उपन्यासमैला आँचल1954 में प्रकाशित हुआ। इस आंचलिक उपन्यास ने रेणु जी को हिंदी साहित्य संसार में अपार ख्याति दिलाई। रेणु जी के बिहार के पूर्णिया जनपद  से संबद्ध इस आंचलिक उपन्यास में यत्र-तत्र गीत, भजन, लोकगीत, लोकगाथा, दोहे, श्लोक कविताओं का भरपूर मात्रा में प्रयोग हुआ है। प्रस्तुत शोध पत्र मेंमैला आँचलमें चित्रित गीतों एवं गीतों में निहित तत्कालीन राजनीति परिस्थितियों के सामानांतर विवेचन-विश्लेषण किया गया है।

बीज शब्द : आंचलिक, गीत, लोकगीत, जोगीरा, फगुआ, नौटंकी, राजनीति, संस्कृति, आजादी।

मूल आलेख : फणीश्वर नाथरेणुका जन्म 4 मार्च, 1921 को बिहार के अररिया जिले में फॉरबिसगंज के पास औराही हिंगना गाँव
 
में हुआ था। उस समय यह पूर्णिया जिले में था। उनकी शिक्षा भारत के फारबिसगंज तथा अररिया में और नेपाल के हाईस्कूल (विराटनगर आदर्श विद्यालय) में हुई। इन्टरमीडिएट की पढाई काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1942 में करने के बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। फिर 1950 में नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी सक्रिय हिस्सेदारी ले कर नेपाल में जनतंत्र की स्थापना में सहयोग किया। आगे चलकर रेणु पटना विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के साथ छात्र संघर्ष समिति में भी सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति में अहम भूमिका निभाते हैं।

        अपने समकालीन आन्दोलनों में सक्रिय रेणु के कहानी लेखन की शुरुआत 1936 ई० के आसपास होती है। आरंभिक अपरिपक्व कहानियों के बाद 1942 के आंदोलन में गिरफ्तारी से 1944 में रिहाई के बाद, उनकीबटबाबाके रूप में परिपक्व कहानी आती है। वर्ष 1972 में रेणु जी ने अपनी अंतिम कहानीभित्तिचित्र की मयूरीलिखी। उनकी अब तक उपलब्ध कुल कहानियों की संख्या 63 है। ठुमरी, अगिनखोर, आदिम रात्रि की महक, एक श्रावणी दोपहरी की धूप, अच्छे आदमी, सम्पूर्ण कहानियां, मेरी प्रिय कहानियाँ, प्रतिनिधि कहानियाँ आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं।

लेकिनरेणुको जितनी प्रसिद्धि उनके पहले उपन्यासमैला आँचलसे मिली, वह काफी आश्चर्यजनक थी। 1954 में प्रकाशित इस आंचलिक उपन्यास ने रेणु जी को हिंदी साहित्य संसार में अपार ख्याति दिलाई।मैला आँचलके बाद रेणु जी के परती परिकथा, जुलूस, दीर्घतपा, कितने चैराहे, पलटू बाबू रोड आदि उपन्यास प्रकाशित हुए। इस उपन्यास की प्रसिद्धि ने रेणु जी को पद्मश्री से सम्मानित भी करवाने का काम किया।

रेणु जी को प्रेमचंद की सामाजिक यथार्थवादी परंपरा को आगे बढ़ाने वाला कथाकार कहा जाता है। इसीलिए इन्हें आजादी के बाद के प्रेमचंद की संज्ञा भी दी जाती है। रेणु जी के उपन्यास हों या फिर कहानियाँ, सबमें बिहार की आंचलिक बोलियों का जैसा स्वाभाविक समावेश हुआ है, वैसा शायद ही किसी अन्य कथाकार के कथा साहित्य में हुआ हो। आलोचक रामचंद्र तिवारी ने मैला आँचल कोप्रेमचंद के बाद ग्रामीण जीवन को उसकी समग्रता में चित्रित करने वाला एक सशक्त उपन्यास1 कहा है। मैला आँचल में रेणु का उद्देश्यएक पिछड़े अंचल के बहुमुखी यथार्थ के चित्रण के साथ-साथ पूरे देश के राजनीतिक माहौल और बदलती हुई मानसिकता का चित्र अंकित करना है।2

मैला आँचलउपन्यास की कथाभूमि बिहार के पूर्णिया जनपद कामेरीगंजनामक ग्राम है और इसकी समस्त घटनाएँ इसी गाँव के भीतर या इसी गाँव के इर्दगिर्द घटित होती हैं। आलोचक डॉ० उपेंद्र नारायण सिन्हा के अनुसार, वर्तमान में मेरीगंज गाँव कोरानीगंज3 के नाम से जाना जाता है, जो कोशिका की फरियानी और कमताहा नदी के मध्य अवस्थित है। डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना के अनुसार, इस उपन्यास में ही पहली बार किसी अंचल-विशेष के उपेक्षित जीवन की संपूर्ण सुंदरता और कुरूपता, सीमा, विवशता, अंधविश्वास, संभावना आदि के साथ-साथ वहाँ की राजनीति, अर्थनीति, धर्म नीति आदि का जीवंत चित्र प्रस्तुत किया गया है।4

रेणु ने इस उपन्यास में ग्राम जीवन की अनुपम झांकी प्रस्तुत करते हुए मेरी गंज के भौगोलिक एवं सामाजिक परिवेश का यथार्थ चित्रण किया है.. राजनीतिक वातावरण की सृष्टि करके वहाँ की राजनीतिक चेतना का वर्णन किया है।5 कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु नेमैला आँचलउपन्यास में अपने भावों को व्यक्त करने के लिए यत्र-तत्र गीत, भजन, लोकगीत, लोकगाथा, दोहे, शेर--शायरी, श्लोक कविताओं का भरपूर मात्रा में प्रयोग किया है। रेणु के उपन्यासमै'ला आँचलमें गीतों, लोकगीतों, भजनों, कविताओं आदि का जितना अधिक प्रयोग हुआ है, उतना शायद ही किसी अन्य उपन्यास में हुआ हो।

वस्तुतःमैला आँचलउपन्यास की आंचलिकता को सशक्त समृद्ध बनाने में इस उपन्यास के गीतों ने महती भूमिका अदा की है। इसके गीतों, लोकगीतों, भजनों कविताओं ने उपन्यास को सांस्कृतिक दृष्टि से समृद्ध तो किया ही है, साथ ही आजादी के आसपास की राजनीति का उद्घाटन भी किया है। इस लेख का उद्देश्यमैला आँचलमें प्रयुक्त राजनीतिक गीतों के महत्त्व को उजागर करना तो है ही, साथ ही पाठकों को संदर्भित गीतों के भाव का रसास्वादन कराना भी है।

मैला आँचलमें चित्रित लोकगीतों के माध्यम से आजादी के आसपास की भारतीय राजनीति का चित्रण हुआ है। समाजवादियों द्वारा गाया गया प्रस्तुत गीत प्रतिरोधी संस्कृति का द्योतक है-

उठ मेहनतकश अब होश में
हाथ में झंडा लाल उठा
जुल्म का नामोनिशान मिटा
उठ होश में बेदार हो जा।6

मैला आँचलमें सादा कागज वाले फार्म में गांधी जी की तस्वीर के नीचे दो काव्यात्मक पंक्तियाँ लिखी चित्रित हुई हैं- “सादा कागज वाला एक फाहरम बाँट हुआ है। फाहरम पर महातमा जी की छापी है और नीचे लिखा है...बापू कहते हैं-

जो पहने सो काते,
जो काते सो पहने।

सोशलिट पाटीवालों ने भी फाहरम बाँट किया था। लेकिन वह लाल रंग का था और उसमें एक दोहा ज्यादा था....

जो जोतेगा सो बोएगा।
जो बोएगा सो काटेगा।
जो काटेगा वह बाँटेगा।7

            इस उपन्यास का चरित्र कालीचरन जोगीरा गाने में दक्ष है। इसीलिए तो गाँव के छोटे-मोटे दल कालीचरन के दल में शामिल होकर जोगीरा गीत गाते चित्रित हुए हैं, जिसमें तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों पर संकेतात्मक व्यंग्य की छाप है  -

जोगीड़ा सर रर.. जोगीड़ा सर रर...
+   +   +   +
होली है! कोई बुरा माने होली है !
बरसा में गड्ढे जब जाते हैं भर
बेंग हजारों उसमें करते हैं टर्र
वैसे ही राज आज कांग्रेस का है
लीडर बने हैं सभी कल के गीदड़... जोगी जी सर रर..
चर्खा कातो, खध्धड़ पहनो, रहे हाथ में झोली
दिन दहाड़े करो डकैती, बोल सुराजी बोली
जोगी जी सर रर....8

      वस्तुतः उपन्यास में फगुआ (होली) गीतों के माध्यम से भी तत्कालीन राजनीति में गांधी और अन्य समकालीन नेताओं के यथार्थ को उभारा गया है-

आई रे होरिया आई फिर से !  आई रे !
गावत गांधी राग मनोहर
चरखा चलावे बाबू राजेन्दर
गूंजल भारत अमहाई रे ! होरिया आई फिर से !
वीर जमाहिर शान हमारो
बल्लभ है अभिमान हमारो
जयप्रकाश जैसो भाई रे ! होरिया आई फिर से !“9

 मैला आँचलमें चंदनपट्टी की सभा चुन्नीदास से जुड़े संदर्भों के दौरान काव्यात्मक पंक्तियों की सर्जना हुई है। इन काव्यात्मक पंक्तियों के माध्यम से रेणु जी ने तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक स्थितियों का उद्घाटन किया है-

अरे देसवा के सब धन-धान विदेसवा में जाए रहे।
महंगी पड़त हर साल कृसक अकुलाय रहे।
... का करें गांधीजी अकेले, तिलक परदेश बसे।
कवन सरोजिनी के आस, अबहिं परदेस रही।10

             मैला आँचलमें डाक्टर प्रशांत से जुड़े संदर्भों के माध्यम से भारत की ग्रामीण संस्कृति का चित्रण हुआ है। डाक्टर प्रशांत के आत्मचिंतन के क्षणों से लिया गया एक उदाहरण दृष्टव्य है-

भारतमाता ग्रामवासिनी !
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला-सा आँचल !11

             इस उपन्यास का सनिचर लबनी को औंधा कर तबला बजाता किरांती (क्रांति) गीत गाता चित्रित हुआ है। वह यह गीत पूँजीवाद का विरोधी गीत है। इसीलिए यह किरांती (क्रांति) गीत है-

अरे जिंदगी है किरांती से, किरांती में बिताए जा।
दुनिया के पूँजीवाद को दुनिया से मिटाए जा।...
चकै के चकदुम मकै के लावा..
दुनिया के गरीबों का पैसा जिसने चूस लिया,
अरे हाँ, पैसा जिसने चूस लिया,
हाँ जी, पैसा जिसने चूस लिया,
उसकी हड्डी-हड्डी से पैसा फिर चुकाए जा !
हँस के गोली दागे जा !
हँस के गोली खाए जा !“12

              मैला आँचलमें बंगाली चरवाहों के गीत में भी बंगाल के अकाल की पीड़ा दिखाई पड़ती हैI यह केवल सुचना नहीं है बल्कि तत्कालीन राजनीतिक आकाओं पर टिप्पणी भी है

बड़ जुलुम कइलक अकलवा रे
बंगाल मुलुकवा में।
चार करोड़ आदमी मरल...13

             इस उपन्यास में राजबल्ली महतो के हारमोनियम बजाने ग्रामीणों के सुराजी कीर्तन गाने का भी चित्रण हुआ है- “भारत का डंका लंका में

बजवाया बीर जमाहिर ने।14


             इस उपन्यास में आजादी यानि स्वराज की खुशी में ग्रामीणों द्वारा उत्सव मनाने से संबंधित प्रसंगों में गीतों का बहुतायत में प्रयोग हुआ है। आजादी के जश्न में नारे लगाते-लगाते कालीचरन का गला बैठ जाता है, लेकिन फिर भी वह नारे लगाना नहीं छोड़ता। इसी दौरान अमरहा के चानखोल वालों की पिपही पर बिहला नाच का बरातवाला गीत बजता सुनाई देता है-

चांदो बनियां साजिलो बरात हो
एक लाख हाथी सजिलो, दुई लाख घोड़ा
चार लाख पैदल, दुलहा बाला लखिंदर!“15

           आजादी का जश्न मनाने के दौरान गाया जा रहा उजाड़दास का कीर्तन गीत तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों का सजीव चित्रण करता है-

भारत में आयल सुराज
चलु सखी देखन को...
कथि जे चढ़िये आयेल
भारथमाता
कथि जे चढ़ल सुराज, चलु सखी देखन को !
कथि जे चढ़िये आयेल
बीर जमाहिर
कथि पर गंधी महराज। चलु सखी...
हाथी चढ़ल आवे भारथमाता
डोली में बैठल सुराज ! चलु सखी देखन को !
घोड़ा चढ़िये आये बीर जमाहिर,
पैदल गंधी महराज। चलु सखी देखन को!“16


 इस उपन्यास में स्वराज के जश्न के बहाने ही और ही-हिंगना का लोकगायक भठियाली कीर्तन गीत गाता चित्रित हुआ है-

हाँ रे मोरी रे ! हाँ आं आं
आं आं आं आरो हे !
बहु कस्टे सू रा पैलो रे
भारथ संतान रे
कोटि कोटि छयला पोयेला
दि लो बो लि दान रे
हाँ रे मोरी रे ! हाँ आं आं!“17

              मैला आँचल के ग्रामीण सुराज की खुशी में सोशलिस्ट पार्टी द्वारा आयोजितभगत सिंहकी नौटंकी देखने जाते हैं, जहाँ भगत सिंह का किरदार नितलरैनबाबू निभा रहे होते हैं। इस नौटंकी में रेणु जी ने गीतों का भी समावेश किया और इन गीतों के माध्यम से देशप्रेम की खूबसूरत अभिव्यंजना की है-

1. अरे खिस्सा होता गुरु अब सुनहु पंच भगवानों की
गांधी महतमा वीर जमाहिर करे सदा कलियानों की...
अजी बेटा हम मादरे बतन भारथ का
हमें डर नहीं फांसी सूली का....18

2. खादी के चुनरिया रंग दे छापेदार रे रंगरेजबा
बहुत दिनन से लागल बा मन हमार रे रंगरेजबा..
कहीं पे छापो गंधी महतमा
चर्खा मस्त चलाते हैं,
कहीं पे छापो वीर जमाहिर
जेल के भीतर जाते हैं
अंचरा पे छापो झंडा तेरंगा
बांका लहरदार रे रंगरेजबा!19

\देश में एक और सुराज की ख़ुशी थी, तो दूसरी ओर साम्प्रदायिकता की समस्या भी अपना पैर पसारने लगी थीI ऐसे में तैवारी जी के गीत के अपने स्तर पर हिंदू-मुस्लिम की एकता का संकेत उपस्थित करते हैं -

अरे, चमके मंदिरवा में चांद
मसजिदवा में बंशी बजे !
मिली रहू हिंदू मुसलमान
मान- अपमान तजो!“20

             मठ की लक्षमी दासिन और बालदेव जी दोनों गांधी जी को याद करते हुए रघुपति राघव राजाराम भजन गाते चित्रित हुए हैं-

रघुपति राघव राजाराम पतीत पामन सीताराम...बालदेव जी आंखें मूंदकर गाना शुरू करते हैं।..
जै रघुनंदन जै घनश्याम, जानकीबल्लभ सीताराम... लछमी दासिन अगला आखर उठाती है।21

     मैला आँचलउपन्यास में 31 जनवरी, 1948 की रात को कमली के घर पर रेडियो में गीतापाठ होने का चित्रण हुआ है। वस्तुतः यह गीता पाठ महात्मा गाँधी की आत्मा की शांति हेतु हो रहा होता है। इस पाठ में गीता के श्लोक रेडियो में बजते सुनाई देते हैं-

1. अंतवंत इमे देहा नित्यस्योक्ता शरीरिणः 22

2. नैनं छिंदंति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः !23

3. जन्मबंधविनिर्मुक्ता पदं गच्छन्त्यानामयम्..24

              आजादी के बाद जब महात्मा गांधी जी की हत्या कर दी जाती है, तो संपूर्ण देश दु: के सागर में डूब जाता है। इस उपन्यास में गांधी जी की हत्या की खबर सुनने के बाद गाँव के भकतिया लोगों द्वारा अर्थी को कंधे में रखकर जुलूस निकालने के दौरान समदाउन शुरू करने और उसकी प्रारंभिक पंक्तियों के सुनते ही सबके रूदन करने का चित्रण हुआ है-

आं रे कांचहि बांस के खाट रे खटोलना
आखैर मूंज के हे डोर !
हाँ रे मोरी रे हां आं आं रामा रामा !
चार समाजी मिलि डोलिया उठाओल
लई चलाल जमूना के ओर !“25

              गांधी जी के निधन का दु: देशभर के लोगों को होता है। यही कारण है कि रेणु जी ने मैला आँचल में अपने गीतों के माध्यम से भारत की तत्कालीन राजनीति परिस्थितियों के सामानांतर जनता के दु: को वाणी दी है-

हाँ आं रे गोड़ तोरा लागौं हम भैया रे कहरिवा से
घड़ी भर डोली बिलमाव !
माई जे रोवय...26

            अतः स्पष्ट है कि कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु नेमैला आँचलउपन्यास में अपने राजनीति संबंधी विचारों को व्यक्त करने के लिए स्थान-स्थान पर राजनीतिक गीतों का प्रयोग किया है और इन गीतों के माध्यम से तत्कालीन भारतीय समाज पर गांधीवाद और समाजवाद के प्रभाव को अभिव्यंजित किया है। वस्तुतः इस उपन्यास में अपनी कथा भूमि औरही-हिंगना (मैथिल अंचल) के ग्रामीणों के माध्यम से रेणु जी ने भारतीय जनमानस की गांधी जी गांधीवाद पर गहरी आस्था को चित्रित किया है। इसके अलावा भारतीयों की देशप्रेम की भावना, हिंदू-मुस्लिम एकता, स्वराज का उल्लास गांधी जी के निधन का दु: इन गीतों में स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त हुआ है। तत्कालीन राजनीति को सांस्कृतिक आयामों के माध्यम से उद्घाटित कर रेणु जी ने उपन्यास को और अधिक रूचिकर और पठनीय बना दिया है।

संदर्भ :
1. हिंदी का गद्य साहित्य, डॉ. रामचंद्र तिवारी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, 2016, पृ. 1069
2. हिंदी उपन्यास का इतिहास, प्रो. गोपाल राय, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2016, पृ. 249 
3. मैला आँचल का महत्त्व, संपादक मधुरेश, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय संस्करण,   2008, पृ. 167 
4. हिंदी के श्रेष्ठ उपन्यास और उपन्यासकार, डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना, विश्वभारती पब्लिकेशंस, नई दिल्ली, 2004, पृ. 215 
5. वही, पृ. 227 
6. मैला आँचल, फणीश्वरनाथ रेणु, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 27वां संस्करण, 2017, पृ. 66 
7. वही, पृ. 87 
8. वही, पृ. 92 
9. वही, पृ. 93 
10. वही, पृ. 95 
11. वही, पृ. 102 
12. वही, पृ. 119
13. वही, पृ. 131 
14. वही, पृ. 147 
15. वही, पृ. 163 
16. वही, पृ. 163 
17. वही, पृ. 163
18. वही, पृ. 165
19. वही, पृ. 166
20. वही, पृ. 169
21. वही, पृ. 208
22. वही, पृ. 208
23. वही, पृ. 209
24. वही, पृ. 210
25. वही, पृ. 209
26. वही, पृ. 210

डॉ. पवनेश ठकुराठी
लोअर माल रोड, तल्ला खोल्टा, अल्मोड़ा, उत्तराखंड263601,
9528557051
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  फणीश्वर नाथ रेणु विशेषांकअंक-42, जून 2022, UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक : मनीष रंजन
सम्पादन सहयोग प्रवीण कुमार जोशी, मोहम्मद हुसैन डायर, मैना शर्मा और अभिनव सरोवा चित्रांकन मीनाक्षी झा बनर्जी(पटना)

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