शोध आलेख : पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी एवं आरक्षण एवं चुनौतियाँ / रेनू भंडारी



पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी एवं आरक्षण एवं चुनौतियाँ

रेनू भंडारी 

 

 


 शोध सार : 73
वें संविधान संशोधन के पश्चात ग्रामीण महिलाओं की स्थिति में निरंतर परिवर्तन आ रहा है। इससे पंचायती राज संस् में महिलाओं की भागीदारी निश्चित रूप से बढ़ी है। अतीत में महिलाओं की सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए ग्रामीण महिलाओं को पंचायतों से जोडकर राजनीतिक व्यवस्था में शामिल कर उनकी भागीदारी सुनिश्चित की गई पंचयती राज की संरचना एक त्रिस्तरीय प्रणाली है, जिसमें ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला पंचायत शामिल हैं।जो कि एक प्रशासनिक स्तर पर लोकतांत्रिक संरचना प्रदान करता है।73वें संविधान संशोधन के बाद महिलाओं को कुल सीटों में से कम से कम एक तिहाई आरक्षण अनिवार्य कर दिया गया जो कि ग्रामीण स्तर की महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के लिए एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है।

 

प्रस्तावना

जब महात्मा गांधी ने एक वास्तविक रूप से स्वतंत्र और लोकतंात्रिक भारत का सपना देखा था तो साथ ही उन्होंने ग्राम स्वराज की कल्पना भी की थी। उनका कहना था कि गांवों में स्वायत्तता तभी प्राप्त हो सकती है जब उस गांव में रहने वाले लोग यानि कि पुरुष व स्त्रियां मिलकर कार्य को करते हैं तथा गांव को आत्मनिर्भर बनाते हैं। पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण - 1992-93 में स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग 45 वर्षो से अधिक समय के उपरांत जब भारतीय संविधान में संशोधन हुआ तो गांधी जी का ग्राम स्वराज स्वराज का सपना पूर्ण होता दिखाई दिया। पंचायती राज अधिनियम 1992 ग्रामीण महिलाओं के लिए एक वरदान सिद्व हुआ, इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत में इस कानून को लागू हाने से महिलाओं की स्थिति में काफी विकास हुआ।

संविधान के 73वें संशोधन- 1992 में गांमीण महिलाओं को पंचायतों में एक तिहाई यानि कि 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। वर्तमान समय में कई राज्यों ने इसे बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक कर दिया हे। यही कारण है कि पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भूमिका और भागीदारी बढ़ी है।भारतीय संविधान में संशोधन के माध्यम से महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया यह कदम मानव जाति के इतिहास में महिलाओं के हित में एक क्रातिकारी कदम था।

एक ओर जहां पूर्व में ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को घूंघट में रहने की बाघ्यता थी, उन्हें समाज या फिर पंचायतों में बोलने का अधिकार बहुत कम था, अपनी समस्याओं के समाधान हेतु उन्हें अपने पिता, पति या अन्य सगे संबधियों पर निर्भर रहना पड़ता था। स्वयं की तथा अन्य महिलाओं की समस्याओं पर वे कुछ नहीं बोल पाती थी या यों कह सकते हैं कि उन्हें अधिकार प्राप्त नहीं थे। आज महिलाओं को अनेक अधिकार प्राप्त हाने से समाज में परिवर्तन हो रहा है और महिलाओं की स्थिति में सुधार हो रहा है।

वर्ष 1959 में जग पहली बार पंचायतों के विकास हेतु बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया तो उस समिति में महिलाओं के हितों व पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी के प्रस्ताव भी कमेटी के सदस्यों द्वारा सूय-समय पर रखे गए तथा महिला सशक्तिकरण हेतु वर्तमान सरकारें भी लगातार कार्य कर रही हैं इस प्रकार कहा जा सकता है कि पंचायती राज अधिनियम 1992 ग्रामीण भारत की महिलाओं हेतु मील का पत्थर साबित हुई।

वर्तमान में प्रत्येक क्षेत्र में महिलायें अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं वैश्वीकरण के इस दौर में आज की महिलायें पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।

किस राज्य में महिलाओं को पंचायतों में कितना है आरक्षण -

भारत की संसद में महिलाओं को 33  आरक्षण भले ही प्राप्त न हो पाया हो परंतु भारत की पंचायतों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित हैं। 27 अगस्त 2009 को भारतीय संसद में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 आरक्षण की स्वीकृति प्रदान कर दी थी।  तथा कई राज्यों में इस आरक्षण को 50 कर दिया गया है तथा प्रत्येक दूसरा पर इन राज्यों में महिलाओं के लिए आरक्षित है। 50 आरक्षण देने वाले राज्यों निम्नलिखित है-

क्रम संख्या          50 आरक्षण देने वाले राज्यों के नाम

1                      आंध्र प्रदेश

2                      असम

3                      बिहार

4                      छत्तीसगढ़

5                      गुजरात

6                      हिमांचल प्रदेश

7                      झारखंड

8                      कर्नाटक

9                      केरल

10                   मध्यप्रदेश

11                   महाराष्ट्र

12                   ओडिसा

13                   पंजाब

14                   राजस्थान

15                   सिक्किम

16                   तमिलनाडु

17                   तेलंगांना

18                   त्रिपुरा

19                   उत्तराखंड

20                   पश्चिमी बंगाल

 

पंचायतों में आरक्षण प्राप्त होने से ग्रामीण महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन-

इसमें कोई संदेह नहीं है कि पंचायतो में महिलाओं की भागीदारी हाने से भारतवर्ष में कई परिवर्तन देखने को मिले हैं। चूंकि महिलाएं पारंपरिक रूप से अपने परिवार की बुनियादी आवश्यकताओं को पूर्ण करने  के लिए बहुत जिम्मेदार होती हैं, इसी आधार पर पंचायतों में भी उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है। पंचायतों मेें निर्वाचित महिलाएं अपने समाज की अन्य महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बन गई हैं, अब पंचायतों में निर्वाचित महिलाएं ग्रामीण विकास से संबधित महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाकर ,उनका समाधान कर समाज में विशेष बदलाव ला रही हैं। 73वें संविधान संशोधन के पश्चात पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है।

पंचायतों में महिलाओं की सफलता की कहानियां आज लाखों में हैं, सड़को की मरम्मत हो, गांवों में विद्युत व्यवस्था , चिद्यालय, शौचालय, स्वास्थ्य संविधाओं की बात हो, खेल के मैदान, पेयजल पूर्ति, पारंपरिक पेयजल के स्रातों की संरक्षण की बात हो या फिर पशुधन व कृषि आधारित योजनायें । ये सभी कार्य आज पंचायतों में महिलाएं बखूबी कर रही हैं। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु आज लगभग प्रत्येक पंचायत में महिला स्वयं सहायता समूहों का निर्माण भी महिला पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा किया गया है। जिससें ग्रामीण महिलाएं भी सशक्त हो रही हैं।

महिलाओं को आरक्षण प्राप्त होने से वे अपने अधिकारों व अवसरों का लाभ उठा रही हैं, बालिका शिा के प्रति लोगों की सोच सकारात्मक हुई है। शिक्षा के प्रति लोगों की रुचि बढ़ी है। भारतीय समाज में महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक  स्थिति में सुधार और बदलाव देखने को निरंतर प्राप्त हो रहा है। आरक्षण प्राप्त होने से महिलाओं में आत्मनिर्भरता व आत्मसम्मान का विकास हुआ है तथा वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर समाज के विकास में अपनी सहभागिता दे रही हैं।

पंचायती राज में महिला आरक्षण होने से अनुसूचित जाति , जनजाति व अन्य पिछड़े वर्गों की महिलाओं को राजनैतिक क्षेत्रों में कदम रखने के अवसर प्राप्त हुए हैं।पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से आज ग्रामीण महिलाओं के पारिवारिक व सामाजिक जीवन में बहुत से सकारात्मक बदलाव देखने को मिलते हैं।सही मायनों में पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को समाज में एक सम्मानजनक स्थिति प्राप्त हुई है। पिछले कई वर्षों में भारत में राजनीतिक भागीदारी के संदर्भ में महिलाओं को काफी आगे बढ़ते हुए देखा गया है।

पंचायती राज में महिलाओं के समक्ष चुनौतियां-

पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की कम से कम एक तिहाई भागीदारी सुनिश्चित करके सरकार ने उनको पर्याप्त अधिकार  दिए हैं पंचायतों में ग्रामीण महिलाएं आज बेहतर कार्य कर रही हैं परंतु अब भी महिलाओं के समक्ष कई चुनौतियां हैं भारतीय समाज में महिलाओं को अभी और आगे जाने की आवशकता है, विभिन्न प्रकार के आरक्षण प्राप्त होने के बावजूद भी कई स्थानों पर उनके पति, पिता ,पुत्र व रिश्तेदारें को उनकी भूमिका निभाते पाया जाता है। अधिकतर महिलाओं को आरक्षण प्राप्त हाने से पंचायतों में पदों की प्राप्ति तो हो जाती है परंतु उनको पंचायती राज के नियमों की तथा ग्रामीण विकास की मूलभूत जानकारी न होने की वजह से ग्राम सभा की बैठकों में व मकूदर्शक बनी रहती हैं तथा परिवार के अन्य सदस्य ही उनकी पंचायतों का संचालन करते हैं।

हालांकि भारतीय संविधान द्वारा मलिाओं को पुरुषों के समान ही कुछ प्रमुख अधिकार दिए गए हैं। जैसे-

1.         समानता का अधिकार - अर्थात अवसरों की समानता, कानून के समक्ष समानता, कानूनी संरक्षण, तथा नौकरी आदि में लिंग आधारित भेदभाव की समाप्ति आदि।

2.         स्वतंत्रता का अधिकार - अर्थात भाषण की स्वतंत्रता, निवास की स्वतंत्रता, एवं व्यवसाय की स्वतंत्रता।

3.         शोषण के विरुद्ध स्वतंत्रता

4.         धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार- अर्थात धर्म का स्वतंत्रतापूर्वक अनुपालन

5.         सम्पत्ति का अधिकार- अर्थात सम्पत्ति प्राप्त करने, रखने तथा बेचने का अधिकार

6.         सांस्कृतिक अथवा शैक्षणिक अधिकार - अर्थात संस्कृति का संरक्षण तथा शैक्षिक संस्ािाओं में प्रवेश प्राप्त करने का अधिकार।

7.         संवैधानिक उपचार का अधिकार - अर्थात मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए न्यायालय की शरण में जाने का अधिकार।

 

इन मूल अधिकारों के अलावाराज्य सरकारों को भी अनेक अधिकर दिए गए हैं कि वे समय-समय पर ऐसे विधान लागू करें जो महिलाओं के हितों की रक्षा करते हों तथा महिला हितों में वरीयता दी जाए।विगत वर्षों में काफी संख्या में कई नए नियमों को लागू किया गया तथा कुछ सुधार किए गए जिनसे महिलाओं के समान स्तर पर एवं अवसरों को सुनिश्चित किया गया है।

अधिकार चेतना -

डा0 राम आहूजा ने महिलाओं के अधिकार चेतना की वृहद स्तर पर विवेचना की है। उनके अनुसार यद्यपि भारत में महिलाओं को अन्य देशों की महिलाओं की अपेक्षा अधिक अधिकार प्राप्त हैं तथापि क्या महिलाएं अपने अधिकारो के प्रति सचेत हैं?

डा0 राम आहूजा ने कुछ वर्ष पूर्व राजस्थान के एक जिले के लिए गांव की 18 से 50 वर्ष की 753 महिलाओं का अध्ययन किया था। अध्ययन का मुख्य उद्देश्य महिलाओं में अधिकारों के लिए चंतना का मूल्यांकन तथा संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रति संतुष्टि के स्तर को जानना चाहा। इस अध्ययन में डा0 राम आहुजा ने महिलाओं की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं धार्मिक अधिकारों की चेतना स्तर से  उनके व्यक्तिगत, पारिवारिक ,सामरजिक, शैक्षिक दुष्टिकोण का विश्लेषण किया।  जो तथ्य अध्ययन के निष्कर्ष स्वरूप में सामने आए वो निम्नलिखित हैं-

1.         महिलाओं को स्वयं संबधी कानूनों की बहुत कम जानकारी है।

2.         परिवार में निर्णय लेने के विषय में महिलाओं की भूमिका किनारे की होती है।

3.         गंावों में से दस में से एक महिला ही कामकाजी व आर्थिक दुष्टि से स्वतंत्र है।

4.         जो महिलाएं परिवार की अर्थव्यस्था में योगदान करती हैं वे अपनी आय को अपनी इच्छा से व्यय करने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं।

5.         बहुत कम संख्या में महिलाओं को अपने राजनीतिक अध्धिकरों का ज्ञान प्राप्त है।

6.         सामान्य महिलाएं किसी भी राजनीतिक दल की समर्थक तो होती हैं पर वे एक सक्रिय सदस्य नहीं होती।

इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि बिना अधिकार चेतना के कई समस्याओं का सामना महिलाओं को करना पढ़ा है अधिकार चेतना ही महिलाओं के स्तर को ऊँचा उठाने में महत्वपूर्ण हैं। महिलाओं को अपने अधिकारों की चेतना में जो प्रमुख समस्याएं या बाधाएं हैं वो हैं- शिक्षा का स्तर, गृहकार्य में व्यस्तता, घरेलू बंधन, तथा पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता आदि।

निष्कर्ष एवं सुझाव -

जहां एक ओर वर्तमान भारत में महिलाओं की आर्थिक सहभागिता के नवीन आयामों का विस्तार हुआ है, उन्हें समानता के अवसर प्राप्त हुए हैं,उनकी शैक्षणिक व आर्थिक विकास हेतु कई कार्यक्रम अपनाये गए हैं। परिणामस्वरूप भारम की सामाजिक, आर्थिक विकास की प्रक्रिया के संदर्भ में ग्रामीण महिलाओं की स्थिति की विवेचना करते हुए ज्ञात होता है कि एक ओर तो सामाजिक, सांस्कृतिक मान्यताओं , मर्यादाओं तथा पुरुष प्रधान समाज एवं पितृ सत्तात्मक पारिवारिक संगठन के परिणामस्वरूप महिलाओं की सामातिक, आर्थिक विकास , ग्रामीण पुनःनिर्माण कार्यक्रम और महिला आरक्षण कार्यक्रम ने पर्याप्त मात्रा में योगदान दिया है वहीं दूसरी ओर निष्कर्ष रूप में यह कह सकते हैं कि यदि ग्रामीण महिलाओं की सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक शक्ति व उसकी प्रभावशीलता का धरातल पर विस्तार करना है तो यह आवश्यक है कि पुरुष प्रधान समाज का महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण परिवर्तित हो। ऐसा होने से सही मायने में ग्रामीण महिलाएं सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक रूप से सशक्त हो सकती हैं।जिससे भारतीय ग्रामीण समाज भी शहरी समाज की तुलना में मजबूत एवं सशक्त होगा।

संक्षेप में कहें तो पंचायती राज व्यवस्था से ग्रामीण महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार तो हुआ है परंतु अभी भी पंचायती राज में महिलाओं की भूमिका इतनी सशक्त नहीं है कि इस व्यवस्था में अपनी भूमिका बेबाकी से निभा सकें। इसके लिए महिलाओं को अपने अधिकरों को समझना होगा तथा निडर होकर आगे आना होगा।

 

सन्दर्भ सूची -

1.           विश्वनाथ गुप्त, 2017 भारत में पंचायती राज, सुरभि प्रकाशन , प्रीत विहार, नई इिल्ली

2.           महीपाल, 2015, पंचायती राज- चुनौतियां एवं संभावनाएंए राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली

3.           प्रमाद कुमार अग्रवाल, 2015, भारत में पंचायती राज, ज्ञान गंगा प्रकाशन , नई दिल्ली

4.           डा0 अशोक नायक एवं प्रो0 हर्षित द्विवेदी, पंचायती राज में महिला नेतृत्व, महिलाएं एवं राजनीतिक

             सहभागिता, पॉइन्टर पब्लिशर ,जयपुर

5.           डा0 जयश्री सिंह, 2018, पंचायती राज में महिला नेतृत्व व राजनीतिक सहभागिता

6.           theruralindia.in.  ( Ministry of Panchayti Raj)

 

रेनू भंडारी (शोधार्थी)

समाज शास्त्र विभाग

लक्ष्मण सिंह महर रा0 स्ना0 महाविद्यालय

पिथौरागढ़ उत्तराखंड

  


अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-43, जुलाई-सितम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादवचित्रांकन धर्मेन्द्र कुमार (इलाहाबाद)

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