शोध आलेख : माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत विद्यार्थियों के व्यक्तित्व और समायोजन पर सोशल मीडिया का प्रभाव / पिंटू रंजन प्रसाद

माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत विद्यार्थियों के व्यक्तित्व और समायोजन पर सोशल मीडिया का प्रभाव
- पिंटू रंजन प्रसाद
 
शोध सार : प्रस्तुत शोधपत्र में माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत विद्यार्थियों के व्यक्तित्व और समायोजन पर सोशल मीडिया का प्रभावका अध्ययन किया है। शोध हेतु विवरणात्मक अनुसंधान प्ररचना का प्रयोग किया गया है। शोध उपकरण के रूप में छात्रों की समायोजन क्षमता हेतु ए. के. पी. सिन्हा एवं आर. पी. सिन्हा द्वारा निर्मित समायोजन मापनी एवं व्यक्तित्व मापन हेतु डॉ. महेश भार्गव द्वारा विकसित 6 व्यक्तित्व कारक प्रश्नावली डी.पी.आई परीक्षणके हिंदी संस्करण का प्रयोग किया गया है। जनसंख्या के रूप में बिहार राज्य के सारण जिले से चयनित दसों प्रखंड से 10 माध्यमिक विद्यालय अर्थात् प्रत्येक माध्यमिक विद्यालय से उत्तरदाताओं के रूप में 15 छात्रों एवं 15 छात्राओं, कुल 300 विद्यार्थियों का चयन किया गया है। आँकड़ों के विश्लेषण हेतु मध्यमान, प्रतिशत, मानक विचलन एवं टी-परीक्षण आदि सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग किया गया है। निष्कर्षतः माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत विद्यार्थियों के व्यक्तित्व और समायोजन पर सोशल मीडिया का प्रभाव पड़ता है।
 
मूल शब्द :  शिक्षा, माध्यमिक स्तर, व्यक्तित्व, समायोजन, सोशल मीडिया, छात्र एवं छात्राएँ।
 
मूल आलेख : आज का युग ‘सोशल मीडिया’ का युग है। रामायण की पौराणिक कथा के अनुसार रामभक्त हनुमान रावण की लंका में दूत बनकर गए थे। मेघदूत की रचना करने वाले कालीदास ने अपने संदेश को प्रेषित करने के लिए मेघ को माध्यम बनाया। अतः इन माध्यमों से अपने विचारों, भावनाओं और संदेशों को एक-दूसरे तक संप्रेषित किया करते थे। संवाद के माध्यम तकनीक के साथ बदलते चले गए। मुद्रित माध्यम भी हमें खूब भाया। कहा जाता है मनुष्य सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ जीव है। आदिमानव के काल से वह 21वीं शताब्दी में कहाँ से कहाँ पहुँच गया है। 2000 के दशक के शुरू में सॉफ्टवेयर विकास कर्ताओं ने अंतिम इस्तेमाल कर्ताओं को इस बात में सक्षम बनाया कि वे वर्ल्ड वाइड वेब पर स्थिर और निष्क्रिय पृष्ठों को देखने के बजाय अधिक परस्पर क्रियाशील बन सके, ऑनलाइन या वास्तविक समुदायों में प्रयोक्ता-जनित सामग्री का इस्तेमाल कर सके। इसकी परिणीति वेब 2.0 के रूप में हुई और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह हुई कि इससे एक अद्भुत प्रयोग का सृजन हुआ जिसे अब हम सोशल मीडिया कहते हैं।[1]
 
पहली बार सोशल मीडिया की चर्चा तब हुई जब 1994 में सबसे पहला सोशल मीडिया ‘जी.ओ.साइट’ के रूप में सामने आया। परन्तु आज फेसबुक, ट्विटर, गूगल प्लस, यू-ट्यूब, व्हाट्सएप्प, टेलीग्राम जैसी तमाम सोशल मीडिया साइट्स दुनिया को एक सूत्र में बाँध रही हैं। सूचना के आदान-प्रदान, जनमत तैयार करने, विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों के लोगों को आपस में जोड़ने, भागीदार बनाने और महत्त्वपूर्ण यह है कि नए ढंग से सम्पर्क करने में सोशल मीडिया एक सशक्त और बेजोड़ उपकरण के रूप में तेजी से उभर रहा है। वर्तमान समय में आई.सी.टी (सूचना संचार प्रोद्यौगिकी) आधारित सोशल मीडिया के आविर्भाव ने अध्ययन और शिक्षा में नवाचार की गति को उल्लेखनीय तेजी प्रदान की है।[2] ऐसे ही 21वीं शताब्दी इंटरनेट और वेब मीडिया (सोशल मीडिया) के युग की शताब्दी मानी जा रही है। मानो तो इंटरनेट ने मनुष्य के जीवन को एकदम सरल और सुगम बना दिया है। अब हमें सक्रिय इंटरनेट कनेक्शन वाला फोन, लैपटॉप या कम्प्यूटर लेने की आवश्यकता होती है। आज का दौर सोशल मीडिया का है। हर आयु वर्ग के लोगों में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का क्रेज दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। जिसमें विद्यार्थी वर्ग मुख्य रूप से शामिल है।
 
सोशल साइट एक शांतिपूर्ण परिवर्तन सीखने सिखाने तथा भविष्य की पीढ़ियों को तैयार करने के क्षेत्र में विश्व-व्यापक स्तर पर नई सार्थक उपलब्धि है। कहा जाता है कि अब वह समय आ गया है जब सबसे बड़ी शक्ति मनुष्य की मस्तिष्क की होगी जो दिमाग का सही उपयोग कर सकेगा। बड़े स्तर पर वैश्वीकरण को ध्यान में रखते हुए वही देश एवं पीढ़ी सफल होगी तथा जिसकी शिक्षा I.C.T. से परिपूर्ण होगी। केवल स्कूल कॉलेज में मिलने वाले ज्ञान की सीमा बंधी न होकर स्वयं समाज और विश्व के बीच समरसता का आधार बनाकर प्राप्त की गई होगी, ऐसी शिक्षा के लिए सूचना एवं संचार तकनीक के उपयोग की सर्वाधिक आवश्यकता है।[3]
 
मीडिया विस्फोट के इस दौर में जब पूरे विश्व की सूचना एक छोर से दूसरे छोर तक त्वरित गति से पहुँचती हो, ऐसे में युवाओं के विकास में सोशल मीडिया के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। संचार माध्यमों के विकास और बढ़ती भूमिकाओं के स्वीकार व अंगीकार करने के बावजूद कुछ वर्ष पहले तक किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि सोशल मीडिया का अंतर्जाल युवाओं की सोच, विचार, समझ एवं दृष्टिकोण को इस कदर प्रभावित करेगा।[4]
 
सोशल मीडिया के इस नेटवर्क ने सभी यूजर्स, खासतौर से युवाओं को अभिव्यक्ति का सशक्त मंच दिया है। युवाओं ने इसे संवाद के साथ ही सृजन का भी माध्यम बनाया है। जब संपूर्ण विश्व में युवाओं और सोशल मीडिया की बात की जाए तो भारत पहले पायदान पर बना हुआ है। कारण साफ है कि भारत युवाओं का देश है। देश की कुल आबादी का लगभग 70 प्रतिशत भाग 35 वर्ष से कम आयु का है। यह युवा अपने आबादी के साथ अनूठे जनसांख्यिकी लाभ के द्वार पर खड़ा है। देश का सरकारी तंत्रा युवाओं के इस रुचि को देखते हुए सरकारी योजनाओं को सोशल मीडिया के माध्यम से विद्यार्थियों तक पहुँٕचाने की कोशिश कर रहा है।[5]
 
भारत में सोशल साइट (Facebook, WhatsApp, Email) आदि का प्रभाव बढ़ता ही जा रहा है जिससे विद्यार्थियों पर सकारात्मक के साथ-साथ नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। मानव व्यक्तित्व को प्रतिबिंबित करने के लिए फेसबुक प्रोफाइल एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। शब्द ‘व्यक्तित्व’ वास्तव में लैटिन शब्द से निकला है, जो एक कलाकार की विभिन्न भूमिकाओं का प्रतिनिधित्व करने के लिए नाटकीय टोपी के लिए खड़ा है। हॉल और लिन्से ने बताया कि व्यक्तित्व की कई व्याख्याएँ हैं, क्योंकि विभिन्न सिद्धांतकारों ने इसकी अलग-अलग व्याख्या की है। इसके अलावा, हम आमतौर पर व्यक्तित्व का वर्णन लक्षणों या विशेषताओं के संग्रह के रूप में करते हैं, जैसे कि व्यवहार, भावनाएँ, विचार पैटर्न और भावनाएँ जो किसी व्यक्ति के लिए विशिष्ट हैं। इन नकारात्मक प्रभावों के प्रति लोगों का सचेत होना बहुत जरूरी है।[6]
 
इंटरनेट हब के द्वारा विद्यार्थियों को अनेक प्रकार की जानकारियाँ प्राप्त होती है ये क्षेत्र निम्नवत् है-व्यापार, खेल-जगत, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कृषि, विदेश, रक्षा, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, फिल्म, मनोरंजन, अपराध, सामाजिक घटनाएँ आदि जिनके बारे में केवल पुस्तकीय ज्ञान पर्याप्त नहीं होता है। अतः सोशल साइट विद्यार्थियों के ज्ञान क्षेत्र को विस्तृत बनाते हैं यह ज्ञान कुछ हद तक तो उचित है किन्तु कुछ हद तक अनुचित भी है।[7]
 
विद्यार्थी वर्ग पर इंटरनेट हब का उनके व्यक्तित्व एवं समायोजन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? एवं उस प्रभाव से उनके जीवन शैली किस प्रकार परिवर्तित हो रही है? यह परिवर्तन उसके लिए लाभप्रद है या नहीं? इन विभिन्न प्रश्नों का हल करने के संदर्भ में प्रस्तुत अध्ययन इसी आवश्यकता का ही परिणाम है।
 
वर्तमान में माध्यमिक स्तर के विद्यार्थी जोकि सोशल मीडिया के मुख्य उपयोगकर्ता हैं, वे अपने साथ कुछ उद्देश्यों को लेकर चल रहे हैं। इन उद्दश्यों में सामाजिक उद्देश्य व शैक्षिक उद्देश्य शामिल होते हैं। इन्हीं दोनों पर आधारित उनकी समस्त क्रियाएँ सम्पादित होती रहती हैं। वास्तविकता में सोशल मीडिया का विभिन्न रूपों में उपयोग विद्यार्थियों को कई तरीकों से प्रभावित करता है।
वर्तमान अध्ययन का मुख्य उद्देश्य माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के व्यक्तित्व एवं समायोजन पर सोशल मीडिया कैसे प्रभाव डालता है, की जाँच करना है।
 
समायोजन एक ऐसी प्रक्रिया और क्षमता का भाव है जो बालक का उसकी अपनी योग्यताओें और क्षमताओं के संदर्भ में, उसकी अपनी परिस्थितियों के अनुसार उसे आगे प्रगति के मार्ग पर ले जाने में सहायता करती है। बालक के जीवन में यह प्रक्रिया कभी रुकने का नाम नहीं लेती क्योंकि जीवन कभी रुकता नहीं है और परिवर्तनों के साथ-साथ ही समायोजन की प्रक्रिया को भी बदलना पड़ता है। इस परिवर्तन और अनुकूलन क्षमता में बच्चे का सर्वांगीण विकास उसकी प्रगति, संतुष्टि और खुशी के लिए जिम्मेदार होता है।
 
अतः यह कहा जा सकता है कि माध्यमिक स्तर के अध्ययनरत विद्यार्थियों पर सोशल मीडिया कई तरीकों से अपना प्रभाव डालता है और उसमें मुख्य रूप से उनका व्यक्तित्व एवं समायोजन का समावेश ही मुख्य रूप शामिल हैं और यही समस्या की पृष्ठभूमि का आधार व अध्ययन का विषय है।
 
प्रस्तुत शोध में “माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत विद्यार्थियों के व्यक्तित्व और समायोजन पर सोशल मीडिया का प्रभाव” का अध्ययन किया गया है।

  समस्या कथन :-
माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत विद्यार्थियों के व्यक्तित्व, समायोजन एवं शैक्षणिक उपलब्धि पर सोशल मीडिया का प्रभाव।”

संबंधित साहित्य का पूनरावलोकन :-
 
फोवेट, एफ. (2009) [8] के शोध का मुख्य उद्देश्य “माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों पर सामाजिक, संवेगात्मक एवं व्यावहारिक कठिनाइयों के सन्दर्भ में फेसबुक के प्रभावों का अध्ययन” करना था। इसके लिए मिश्रित शोध पद्धति (गुणात्मक एवं गणनात्मक) का प्रयोग किया गया। कुल 12 विद्यार्थियों का चयन स्नोबॉल विधि से किया गया। उपकरण के तौर पर अर्ध संरचित प्रश्नावली का प्रयोग किया गया। शोध परिणामों में पाया गया कि विद्यार्थियों की सामाजिक, संवेगात्मक एवं व्यावहारिक कठिनाइयों के बारे में अध्यापकों को सजग रहना चाहिए तथा फेसबुक के शैक्षिक उपयोग के बारे में उन्हें मार्गदर्शन देना चाहिए।
 
कविता (2015)[9] ने 16 से 22 वर्षीय विद्यार्थियों एवं किशोरों पर सोशल मीडिया के प्रभाव संबंधी अध्ययन में पाया कि लगभग 97.7 प्रतिशत इंटरनेट यूजर्स ने सोशल नेटवर्किंग साइट्स की सदस्यता ले रखी है और 85 प्रतिशत इनका उपयोग प्रतिदिन करते हैं जिनमें से 41 प्रतिशत यूजर्स 12 से 16 वर्ष के तथा 40 प्रतिशत 17 से 21 वर्ष की आयु के हैं। शोधार्थी ने निष्कर्ष के रूप में पाया कि इन विद्यार्थियों एवं किशोरों की शिक्षा पर सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। विद्यार्थियों द्वारा सोशल मीडिया पर अनावश्यक व्यय किए गए समय का भुगतान उनके लिए आवश्यक अध्ययन-घंटों को करना पड़ रहा है। सोशल मीडिया की एप्लीकेशन्स 2-डी एवं 3-डी डिसप्ले पर आधारित होती हैं, जिनके अधिक उपयोग से विद्यार्थियों को रक्तचाप की समस्याएँ आ रही हैं। यह शारीरिक दुष्प्रभाव उनके सामाजिक व्यवहार एवं अकादमिक प्रदर्शन को भी प्रभावित कर रहा है।
 
इंटरनेट एंड मोबाइल ऐसोसिएशन ऑफ इंडिया[10] की रिपोर्ट के अनुसार शहरी क्षेत्रों में सोशल मीडिया के प्रयोक्ताओं की संख्या दिसंबर 2012 तक 6.2 करोड पर पहुँच चुकी थी। शहरी भारत में प्रत्येक चार में से तीन व्यक्ति सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं।
 
इस रिपोर्ट के कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू इस प्रकार है-
·         मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल करते हुए सोशल नेटवर्किंग ऐक्सेस की औसत आवृति एक सप्ताह में सात दिन।
·         फेसबुक को भारत में 97 प्रतिशत सोशल मीडिया प्रयोक्ताओं द्वारा ऐक्सेस किया जाता है।
·         भारतीय सोशल मीडिया पर हर रोज औसत लगभग 30 मिनट व्यतीत करते हैं। इन इस्तेमाल कर्ताओं में अधिकतम युवा (84 प्रतिशत) और कॉलेज जाने वाले विद्यार्थी (82 प्रतिशत) है।
 
सस्ते मोबाइल हैंडसेट आसानी से उपलब्ध होने के कारण यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि इंटरनेट का इस्तेमाल और नतीजतन सोशल मीडिया नेटवर्किंग के इस्तेमाल में भारत में आने वाले कुछ वर्षों में जबरदस्त बढ़ोत्तरी होगी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आज यह देखा जा रहा है कि मोबाइल फोन के जरिए सोशल नेटवर्किंग के इस्तेमाल में निरंतर बढ़ोत्तरी हो रही है। मोबाइल फोन का प्रसार अत्यंत तीव्र गति से हो रहा है और ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग ऐसे फोन अपना रहे है जिनमें अनेक विशिष्टताएँ होती है अथवा स्मार्ट फोनों की संख्या लोगों के पास बढती जा रही है। जो इंटरनेट ऐक्सेस प्रदान करने वाले होते हैं, जिससे सोशल नेटवर्किंग साइट्स भारत में सक्रिय इंटरनेट प्रयोक्ताओं के आधार का तेजी से प्रसार कर रही है। मोबाइल इंटरनेट सस्ता होने के कारण भी इसमें वृद्धि हो रही है।
 
डेजेन टेका एट ऑल (2019) [11] ने अपने शोध में “हवासा शहर में माध्यमिक और प्रारंभिक निजी स्कूल किशोरों के मनोसामाजिक समायोजन पर सोशल मीडिया के प्रभाव” का अध्ययन किया है। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य माध्यमिक और प्रारंभिक निजी स्कूल के किशोरों के मनोसामाजिक और शैक्षणिक समायोजन पर सोशल मीडिया के प्रभावों की जाँच करना था। अध्ययन में यादृच्छिक रूप से चयनित 337 छात्रों ने भाग लिया। आँकड़ों का विश्लेषण करने के लिए मात्रात्मक अनुसंधान डिजाइन को नियोजित किया गया था। सोशल मीडिया के उपयोग के तीन आयामों और मनोसामाजिक समायोजन के पाँच आयामों पर डेटा एकत्र करने के लिए पाँच बिंदुओं वाले लिकर्ट स्केल के साथ एक प्रश्नावली का उपयोग किया गया था। खोज से पता चला कि फेसबुक, व्हाट्सएप और वाइबर के उपयोग का शैक्षणिक प्रदर्शन और किशोरों के आत्म-सम्मान के साथ एक महत्त्वपूर्ण नकारात्मक संबंध है; सोशल मीडिया के इन तीन आयामों का मनोसामाजिक समस्याओं जैसे अवसाद, सामाजिक चिंता और सामाजिक जुड़ाव के साथ एक महत्त्वपूर्ण सकारात्मक संबंध है; किशोरों के आत्म-सम्मान और सामाजिक जुड़ाव के लिए फेसबुक का उपयोग सबसे अधिक योगदान देने वाले चर के रूप में पाया गयाय किशोरों के शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए फेसबुक और वाइबर के उपयोग को नकारात्मक योगदानकर्ता के रूप में पाया गयाय व्हाट्सएप और वाइबर का उपयोग किशोरों की सामाजिक चिंता के कारक के रूप में पाया गयाय वाइबर, व्हाट्सएप और फेसबुक के उपयोग को किशोरों के अवसाद में पहले, दूसरे और तीसरे महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ताओं के रूप में पहचाना गया। इसके अलावा, टी-टेस्ट परिणाम ने मनोसामाजिक समायोजन के संदर्भ में पुरुष और महिला छात्रों के बीच सांख्यिकीय रूप से महत्त्वपूर्ण अंतर प्रकट किया। निष्कर्षों के आधार पर, यह सिफारिश की गई थी कि स्कूल के प्रधानाचार्यों, परिवारों, शिक्षकों, स्कूल परामर्शदाताओं जैसे जिम्मेदार निकायों को उचित सोशल मीडिया के उपयोग पर ध्यान देना चाहिए जो किशोर छात्रों के मनोसामाजिक समायोजन को बढ़ाता है।
 
बी.बी.सी समाचार अनुसंधान (2013)[12] के अनुसार वे चर्चा करते हैं कि 67% फेसबुक उपयोगकर्ता बहुत ही सामान्य और प्रसिद्द ‘सोशल मीडिया’ पोर्टल हैं जिसमें युवा और छात्र शामिल हैं, इसलिए ये इस तथ्य की प्रशंसा करते हैं कि युवाओं और छात्रों का अधिक ध्यान और संबंध है। देश के किशोर अक्सर एक-दूसरे के साथ संचार और जानकारी इकट्ठा करने के लिए वैब, मोबाइल फोन, ऑनलाइन गेम का उपयोग करते हैं। कैलिफोर्निया में सर्वेक्षण के अनुसार नीचे दी गई तालिका से पता चलता है कि ‘सोशल मीडिया’ कैलिफोर्निया के वयस्कों के व्यवहार संबंधी स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है|[13]
                        
गोंजालेस और हैनकॉक (2011)[14] ने इसे आगे समझाया, “सोशल मीडिया’ को खोजने से विद्यार्थियों में आत्म-जागरूकता के सामाजिक कार्यों के साथ आत्म-सम्मान बढ़ सकता है। जब फेसबुक की तीव्रता, अमेरिकी कॉलेज के छात्रों की दोस्ती, आत्म-सम्मान और व्यक्तित्व के बीच संबंधों की खोज की, तो एक सकारात्मक लिंक की खोज की। उदाहरण के लिए, जो छात्र दोस्ती के लिए अपने सम्मान से संबंधित हैं, वे फेसबुक पर अधिक सक्रिय और जुड़े हुए हैं।

शोध अध्ययन की आवश्यकता :-
किसी भी शोध कार्य के लिए समस्या का चयन महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। किसी भी कार्य को करने के पीछे कोई न कोई कारण होता है। वर्तमान समय में सोशल मीडिया सबसे अधिक प्रचलित व सशक्त माध्यम है। सोशल मीडिया का विद्यार्थियों पर बहुत अधिक प्रभाव दिखाई देता है। सोशल मीडिया के विकास के साथ-साथ समाज में परिवर्तन हो रहा है विशेषकर विद्यार्थी वर्ग पर इसका अमिट प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव सकारात्मक व नकारात्मक दोनों प्रकार से दृष्टव्य हुआ है। वर्तमान में सोशल मीडिया के साधन प्रत्येक घर में उपलब्ध है। जिससे इन साधनों का प्रभाव जीवन के हर पक्ष (यथा सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक इत्यादि) पर दिखाई देता है। इसके माध्यम से जहाँ हमें नवीन जानकारियों का पता लगता है, वहीं दूसरी तरफ नयी परम्पराएँ (सांस्कृतिक तथा सामाजिक) तथा अनेकानेक नवीन समस्याओं का भी प्रादुर्भाव हुआ है। साथ ही हमारे मूल्यों (सामाजिक, नैतिक तथा सांस्कृतिक) का भी ह्यस दिखाई देता है। सोशल मीडिया के माध्यम से विद्यार्थी अपने ज्ञान में तो वृद्धि कर रहे हैं परंतु कुछ अनेक अपराधिक कार्यों में लिप्त होते जा रहे हैं। अतः विद्यार्थियों पर सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं। इसलिए इस तथ्य को ध्यान में रखकर इस समस्या पर ध्यान केन्द्रित किया।
 
प्रस्तुत अध्ययन के द्वारा सोशल मीडिया के सारे प्रभावों की जाँच करना है जिससे यह समझा जा सके कि वे सकारात्मक पड़ रहे हैं या नकारात्मक। उन्हें जानकर व समझकर ही सोशल मीडिया के उपयोग की सीमाओं को निश्चित किया जा सकता है; जिससे उनके व्यक्तित्व एवं समायोजन में तो वृद्धि होगी ही। इसके साथ ही साथ शिक्षक स्वयं भी अपने विद्यार्थियों के साथ परस्पर वार्ता स्थापित करने में सोशल मीडिया का यथोचित उपयोग कर पाऐंगे। प्रस्तुत शोध के माध्यम से माता-पिता भी अपने बच्चों की देख-रेख कर पाऐंगे व उन्हें सही मार्ग देने में उनकी सहायता करेंगे। इस तरह से विद्यार्थी, शिक्षक तथा माता-पिता को सोशल मीडिया से होने वाले लाभ के संदर्भ में माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के व्यक्तित्व व समायोजन पर सोशल मीडिया के प्रभाव संबंधी समस्या को चुनना एक औचित्यपूर्ण कदम कहा जा सकता है।
 
विद्यार्थियों के व्यक्तित्व एवं समायोजन केवल दी जाने वाली शिक्षा से ही नहीं होता वरन् वह अपने आस-पास के वातावरण से भी सीखता हैं। जिसमें सोशल मीडिया के साधनों में आई क्रान्ति की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। टेलीविजन, रेडियो, कम्प्यूटर आदि भी विद्यार्थियों के व्यक्तित्व एवं समायोजन में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। स्वस्थ मनोरंजन उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि शिक्षा। जो छात्र नियमित रूप से सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, उनका बौद्धिक स्तर निश्चित रूप से उन बच्चों से बहुत ऊर्चा होता है जो छात्र सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं करते हैं। हाल ही में हुए कुछ अनुसंधान से यह भी निष्कर्ष निकला है कि सोशल मीडिया का छात्रों की अध्ययन आदतों पर पूरा-पूरा प्रभाव पड़ता है। ज्यादा सोशल मीडिया के इस्तेमाल से छात्र कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं जिससे उनका अध्ययन प्रभावित होता है। अतः वर्तमान अध्ययन आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है।

अध्ययन परिसीमन :-
प्रस्तुत शोधकार्य बिहार राज्य के सारण जिला के माध्यमिक विद्यालय तक ही सीमित रहेगा।

शोध उद्देश्य :-
प्रस्तुत शोध के अन्तर्गत निम्न उद्देश्यों का निर्धारण किया गया हैः-
·         सोशल मीडिया का विद्यार्थियों के व्यक्तित्व पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना।
·         सोशल मीडिया का विद्यार्थियों के समायोजन पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना।

शोध परिकल्पनाएँ :-
·         सोशल मीडिया का विद्यार्थियों के व्यक्तित्व पर कोई सार्थक प्रभाव नहीं पड़ता है।
·         सोशल मीडिया का विद्यार्थियों के समायोजन पर कोई सार्थक प्रभाव नहीं पड़ता है।

शोध प्ररचना :-
किसी भी शोध कार्य का महत्त्वपूर्ण अंग शोध विधि होता है। जब कभी वर्तमान संदर्भ में शिक्षा के विकास को देखने का प्रयास किया जाता है तथा वर्तमान स्थिति से प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण कर भविष्य में सुधार हेतु सुझाव दिया जाता है। प्रस्तुत शोध हेतु विवरणात्मक अनुसंधान प्ररचना को निर्धारित किया गया है। जिसमें सर्वेक्षण विधि के माध्यम से प्रश्नावली, साक्षात्कार भरकर तथ्यों का संकलन किया गया है।

प्रयुक्त न्यादर्श चयन विधि :-
प्रस्तुत शोध अध्ययन के अंतर्गत शोधकर्ता ने समस्या के न्यादर्श के चुनाव हेतु स्तरित दैव निदर्शन पद्धति के आधार पर चयनित प्रत्येक माध्यमिक विद्यालय से उत्तरदाताओं के रूप में 15 छात्रों एवं 15 छात्राओं अर्थात् कुल 300 छात्रों का चयन किया गया है।
v  प्रयुक्त जनसंख्या विवरण:-
उन समस्त जनसंख्या से तात्पर्य समस्त व्यक्तियों से जो उत्तरदाता सकते हैं अर्थात् शोध का विषय जिन व्यक्तियों पर केंद्रित है, तथा जिसमें से न्यादर्श (Sample) का चुनाव होता है।
प्रस्तुत शोध कार्य में चयनित समस्या के अध्ययन के लिए जनसंख्या के रूप में लॉटरी पद्धति के आधार पर बिहार राज्य के सारण जिले से चयनित दसों प्रखंड से एक-एक माध्यमिक विद्यालय अर्थात् 10 माध्यमिक विद्यालयों का चयन कर तथ्यों का संकलन किया गया है।

प्रयुक्त चर :-
  • स्वतंत्र चर - व्यक्तित्व एवं समायोजन।
  • आश्रित चर - माध्यमिक विद्यालयों के छात्र एवं छात्राएँ तथा सोशल मीडिया।
प्रयुक्त शोध उपकरण :
प्रस्तुत शोध के सर्वेक्षण स्वरूप के कारण शोधकर्ता द्वारा अध्ययन के उद्देश्यानुरूप शोध संबंधी उपकरणों का चुनाव किया गया है। प्रस्तुत शोध उपकरण के रूप में छात्रों की समायोजन हेतु ए. के. पी. सिन्हा एवं आर. पी. सिन्हा द्वारा निर्मित समायोजन मापनी, छात्रों के व्यक्तित्व मापन हेतु डॉ. महेश भार्गव द्वारा विकसित 6 व्यक्तित्व कारक प्रश्नावली ‘डी.पी.आई परीक्षण’ के हिंदी संस्करण का एवं स्वनिर्मित साक्षात्कार अनुसूची का प्रयोग किया गया है।

प्रयुक्त सांख्यिकीय विधि
प्रस्तुत शोध में शोधकर्ता द्वारा आँकड़ों के विश्लेषण हेतु मध्यमान, प्रतिशत गणना, मानक विचलन, टी-परीक्षण आदि सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग किया गया है।

उत्तरदाताओं की जनसांख्यकिय रूपरेखा

तालिका सं. 1.1
लिंग के आधार पर उत्तरदाताओं का चयन

 

आवृत्ति

प्रतिशत

वैध प्रतिशत

संचित प्रतिशत

वैध

छात्र

150

50.0

50.0

50.0

छात्राएँ

150

50.0

50.0

100.0

कुल

300

100.0

100.0

 

 


लेखाचित्र सं. 1.1 लिंग के आधार पर उत्तरदाताओं का चयनित प्रतिशत को दर्शाया गया है।
उपरोक्त तालिका सं. 1.1 एवं लेखाचित्र सं. 1.1 के माध्यम से शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में चयनित उत्तरदाताओं का लिंग के आधार पर विश्लेषण किया है तथा स्पष्टतः उल्लेखित है कि 100 उत्तरदाताओं में से, 50 (50 प्रतिशत) उत्तरदाता छात्र एवं 50 (50 प्रतिशत) उत्तरदाता छात्राएँ हैं।

तालिका सं. 1.2
पारिवारिक स्वरूप के आधार पर उत्तरदाताओं का वर्गीकरण

 

 

आवृत्ति

प्रतिशत

वैध प्रतिशत

संचित प्रतिशत

वैध

संयुक्त

163

54.3

54.3

54.3

एकांकी

137

45.7

45.7

100.0

कुल

400

100.0

100.0

 




लेखाचित्र सं. 1.2 पारिवारिक स्वरूप के आधार पर उत्तरदाताओं का चयनित प्रतिशत को दर्शाया गया है।
उपरोक्त तालिका सं. 1.2 एवं लेखाचित्र सं. 1.2 के माध्यम से शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में चयनित छात्र-उत्तरदाताओं का परिवार के आधार पर विश्लेषण किया तथा स्पष्टतः उल्लेखित है कि 300 उत्तरदाताओं में से, 163 (54.3 प्रतिशत) छात्र संयुक्त परिवार से, 137 (45.7 प्रतिशत) छात्र एकांकी परिवार से हैं।

तालिका सं. 1.3
माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत विद्यार्थियों द्वारा सोशल मीडिया यूज़र्स की गणना को दर्शाया गया है। 

नेटवर्किंग साइट

आवृति

प्रतिशत

मान्य प्रतिशत

संचयी प्रतिशत

फेसबुक

90

29

29

29

यूट्यूब

98

32

32

61

व्हाट्सएप

62

20

20

81

इंस्टाग्राम यूजर

20

11

11

92

अन्य

20

8

8

100

कुल

300

100.0

100.0

 


 


लेखाचित्र सं. 1.3
माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत विद्यार्थियों द्वारा सोशल मीडिया यूज़र्स (प्रतिशत) को दर्शाया गया है। 

उपरोक्त तालिका सं. 1.3 एवं लेखाचित्र सं. 1.3 के अन्तर्गत अध्ययन में शामिल उत्तरदाताओं में सर्वाधिक 32 प्रतिशत यूट्यूब का इस्तेमाल करते हैं, 29 प्रतिशत फेसबुक का, 20 प्रतिशत व्हाट्सएप तथा 11 प्रतिशत इंस्टाग्राम का इस्तेमल करते हैं। वहीं 8 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो किसी अन्य सोशल साइट से जुड़े हुए हैं। निष्कर्षतः सोशल नेटवर्किंग साइट यूट्यूब एवं फेसबुक ज्यादातर लोगों के द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।

प्रदत्तों का विश्लेषण:-

तालिका सं. 1.4
सोशल मीडिया का विद्यार्थियों के व्यक्तित्व एवं समायोजन पर प्रभाव विश्लेषण को दर्शाया गया है।
 

 

लिंग

संख्या

माध्य

मानक विचलन

मानक त्रुटि माध्य

टी-मान

सार्थकता स्तर

व्यक्तित्व

 

छात्र

150

132.7400

10.25672

1.84423

2.489

.013

छात्राएँ

150

129.4800

12.33031

समायोजन

 

छात्र

150

47.9267

8.36908

1.04238

-2.090

.037

छात्राएँ

150

49.5400

4.39742





लेखाचित्र सं. 1.4 सोशल मीडिया का विद्यार्थियों के व्यक्तित्व एवं समायोजन के माध्य एवं मानक विचलन को उपरोक्त आकृति में प्रस्तुत किया गया है।

उपरोक्त तालिका सं. 1.4 एवं लेखाचित्र सं. 1.4 सोशल मीडिया का विद्यार्थियों के व्यक्तित्व एवं समायोजन पर प्रभाव का अध्ययन किया गया है। उपरोक्त आँकड़ों की गणना करने से स्पष्ट होता है कि सोशल मीडिया का छात्रों एवं छात्राओं के व्यक्तित्व पर माध्य अंक क्रमशः 132.7400 व 129.4800 एवं मानक विचलन क्रमशः 10.25672 व 12.33031 प्राप्त हुए तथा मानक त्रुटि मध्य 1.84423 एवं टी-मान 2.489 प्राप्त हुए। इसी प्रकार, सोशल मीडिया का छात्रों एवं छात्राओं के समायोजन पर माध्य अंक क्रमशः 47.9267 व 49.5400 एवं मानक विचलन क्रमशः 8.36908 व 4.39742 प्राप्त हुए तथा मानक त्रुटि मध्य 1.04238 एवं टी-मान 2.090 प्राप्त हुए।

उपरोक्त तालिका सं. 1.4 के अंतर्गत सोशल मीडिया का विद्यार्थियों के व्यक्तित्व एवं समायोजन पर प्रभाव के अध्ययन हेतु आँकड़ों की स्पष्टता हेतु टी-परीक्षण का प्रयोग किया गया है। तथ्यों के माध्यम से यह अनुमान लगाया गया है कि विद्यार्थियों के व्यक्तित्व एवं सोशल मीडिया के संबंध में सार्थकता स्तर .013 पाया गया। इसी प्रकार, विद्यार्थियों के समायोजन पर सोशल मीडिया के संबंध में सार्थकता स्तर .037 पाया गया। सार्थकता स्तर 348 की डिग्री के लिए महत्त्व के स्तर के 5 प्रतिशत से कम पाया गया। अतः निर्धारित शून्य परिकल्पना को अस्वीकृत कर दिया गया है। निष्कर्षतः आँकड़ों के विश्लेषण से स्पष्ट है कि सोशल मीडिया का विद्यार्थियों के व्यक्तित्व एवं समायोजन पर सार्थक प्रभाव पाया गया।

निष्कर्ष
  • सोशल मीडिया का विद्यार्थियों के व्यक्तित्व पर सार्थक प्रभाव पाया गया।
  • सोशल मीडिया का विद्यार्थियों के समायोजन पर सार्थक प्रभाव पाया गया।
 सुझाव

सोशल मीडिया के आने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्राता का स्वरूप बदला है। पहले की तरह अंकुश, नियन्त्राण और शर्तें अब नहीं रह गई हैं। आज सोशल मीडिया प्रत्येक व्यक्ति की दिनचर्या का अंग बन गया है। व्यक्ति इससे जुड़कर अपनी प्रतिक्रिया, भाव व विचार व्यक्त कर सकते हैं। अतः सोशल मीडिया के द्वारा विकास से जुड़ी सूचनाओं और कार्यक्रमों की जानकारियाँ को विद्यार्थियों तक पहुँचाया जाना चाहिए, जिससे कि विद्यार्थी अपना विकास बेहतर ढंग से कर सकें।

उपसंहार
आज का समय इन्टरनेट की मौजूदगी का है। लोग किसी भी सूचना को लेकर सोशल साइट्स के माध्यम से अपनी त्वरित टिप्पणी दे रहे हैं। किसी भी जानकारी या सूचना को युवा तुरंत सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर साझा करते नजर आ रहे हैं। ऐसे में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का भी दायित्व बढ़ता जा रहा है। सोशल नेटवर्किंग साइट विद्यार्थियों के विकास से संबंधित (स्वास्थ्य, शिक्षा, कैरियर, योजना) जानकारी के लिए बेहतर सुविधा प्रदान करते हैं। सोशल मीडिया सूचनाओं का सागर है जहाँ विद्यार्थियों के विकास की सकारात्मक जानकारियाँ ही नहीं होती हैं, बल्कि इसके अलावा अन्य कई प्रकार की सूचना भी होती हैं, जबकि इन्टरनेट पर कई ऐसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स हैं, जो युवाओं के विकास से जुड़ी जानकारियों व प्रतिक्रियाओं से लैस हैं। यही कारण है कि यहाँ मामला एकतरफा नहीं होता है। ऐसे माहौल में विद्यार्थी को बहकाया नहीं जा सकता। इस प्रकार से सोशल मीडिया के द्वारा विद्यार्थी ज्यादा जागरूक हो रहे हैं। इस तरह से कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया ने विद्यार्थियों के विकास हेतु एक नया और बेहतर मंच प्रदान किया है। विद्यार्थियों को बहकाया नहीं जा सकता। इस प्रकार से सोशल मीडिया के द्वारा विद्यार्थी ज्यादा जागरूक हो रहे हैं। इस तरह से कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया ने विद्यार्थियों के विकास हेतु एक नया और बेहतर मंच प्रदान किया है।

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पिंटू रंजन प्रसाद
      शोधार्थी, शिक्षाशास्त्र विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा (बिहार)
सेमरी, पोस्ट- सेमरी, थाना- मशरक, जिला- सारण, राज्य-बिहार, पिन कोड- 841421

अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-43, जुलाई-सितम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादवचित्रांकन धर्मेन्द्र कुमार (इलाहाबाद)

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