शोध आलेख : प्रेमचंद की प्रतिबंधित कहानियों में स्त्री जीवन / मनीष सोलंकी

प्रेमचंद की प्रतिबंधित कहानियों में स्त्री जीवन
- मनीष सोलंकी

शोध सार : जब साहित्य सत्ता के मार्ग को अवरुद्ध करता है, उस पर प्रश्न चिह्न लगाकर जनजागृति  का कार्य करता है, सत्ता के अन्याय और अत्याचार को जन सामान्य के समक्ष उपस्थित करता है तो सत्ता ऐसे साहित्य पर अंकुश लगाने हेतु साहित्य को प्रतिबंधित करती है। हिंदी साहित्य में भी स्वाधीनता आंदोलन के दौरान अंग्रेजी साम्राज्य के अहं को चोट करने वाली तथा स्वाधीनता आंदोलन के लिए प्रेरणादायक बनी अनेक पुस्तकों को प्रतिबंधित कर उन्हें जब्त कर लिया गया। कथा सम्राट प्रेमचंद का साहित्य भी अंग्रेज सत्ता के इस दमनकारी नीति से नहीं बच पाया। प्रेमचंद का उर्दू कहानी संग्रह सोजे वतन तथा हिंदी कहानी संग्रह समरयात्रा अंग्रेजी शासन द्वारा प्रतिबंधित हुए। दोनों ही कहानी संग्रहों  ने अंग्रेजी साम्राज्य के अन्याय तथा अत्याचार को उजागर करने के साथ ही स्वाधीनता आंदोलन का भी चित्रण कर सामान्य जन के लिए जन जागृति  का कार्य किया। समरयात्रा कहानी संग्रह में शामिल कहानियों से स्वाधीनता आंदोलन में स्त्री की भूमिका मुखर होकर हमारे समक्ष आती है। किस तरह स्वाधीनता आंदोलन में स्त्रियों की भूमिका रही यह इस कहानी संग्रह की कहानियों से समझा जा सकता है।

बीज शब्द ; प्रतिबंधित, साहित्य, प्रेमचंद, कहानी, समरयात्रा, स्वाधीनता आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन, प्रेरणा स्रोत, अन्याय, अत्याचार, स्त्री जीवन। 

मूल आलेख : प्रेमचंद के प्रतिबंधित हिंदी कहानी संग्रह ‘समरयात्रा’ का प्रकाशन वर्ष 1932 ईस्वी में हुआ तथा इसी वर्ष अंग्रेजी शासन द्वारा इस संग्रह को प्रतिबंधित कर दिया गया क्योंकि इस कहानी संग्रह में शामिल कहानियाँ शासन के अन्याय, अत्याचार, स्वदेशी आंदोलन, शराब तथा नशा मुक्ति, भारतीय जो अंग्रेज शासन के नौकर थे, उनके द्वारा ही भारतीय जनता पर घोर अत्याचार विशेष रूप से पुलिस तंत्र के अत्याचार आदि को अभिव्यक्त करने वाली थी।

स्वाधीनता पश्चात इस कहानी संग्रह का प्रकाशन अमृतराय द्वारा करवाया गया। प्रेमचंद के इस कहानी संग्रह में स्वाधीनता संग्राम तथा उससे जुड़े विविध पहलू केन्द्र में थे तो इन सबके केन्द्र में था, स्वाधीनता आंदोलन के समय का स्त्री जीवन तथा स्वाधीनता आंदोलन में स्त्रियों की भूमिका। ‘जेल’ कहानी की मृदुला, क्षमादेवी, ‘पत्नी से पति’ कहानी की गोदावरी, ‘शराब की दुकान’ कहानी की मिसेज सक्सेना, ‘जुलूस’ कहानी की मिट्ठन बाई, ‘आहुति’ कहानी की रूपमणि, ‘होली’ का उपहार कहानी की सुखदा, ‘समरयात्रा’ कहानी की नोहरी आदि ऐसी ही कथा नायिकाएं है जो अपना सर्वस्व होम कर स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेती है तथा अन्य नवयुवकों को स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने हेतु प्रेरित करती है। प्रेमचंद इन कहानियों के केन्द्र में स्त्री पात्रों को रखकर नवयुवकों को स्वाधीनता आंदोलन की ओर अधिक आकर्षित करना चाहते थे क्योंकि भारतीय पुरूष प्रधान समाज में अगर कोई कार्य स्त्री कर ले और उस कार्य को पुरूष नहीं कर पाता है तो यह उसके पुरुषत्व के अहं पर गहरी चोट होती है और प्रेमचंद इसे बखूबी समझते थे, ‘शराब की दुकान’ कहानी में कांग्रेस की सदस्या मिसेज सक्सेना जब उन्हें शराब की दुकान पर धरना देने का कार्य नहीं मिलता है तो कांग्रेस के साथी सदस्य जयराम से कहती है कि “आप लोगों ने इस बात का आज नया परिचय दे दिया कि पुरुषों के अधीन स्त्रियाँ अपने देश की सेवा भी नहीं कर सकतीं।”¹ ‘जेल’ कहानी में दो प्रमुख कथा नायिकाएं क्षमादेवी तथा मृदुला है। क्षमादेवी विधवा थी, उसके पति तथा पुत्र की जलियावाला बाग में आहुति हो चुकी थी और स्वयं एक उद्दंड व्याख्यान के कारण एक साल की जेल की सजा काट रही थी, इस एक पात्र के माध्यम से ही तत्कालीन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझा जा सकता है। मृदुला एक धरना प्रदर्शन में शामिल होने के कारण पहली बार जेल आती है और जज के सामने मुकर जाती है कि वह धरना प्रदर्शन में शामिल थी ही नहीं, इस पर वह मात्र सात दिन में ही बरी हो जाती है, इस कारण जेल में बंद अन्य महिलाएं उसे घृणा भाव तथा हीन दृष्टि से देखती है क्योंकि वे स्वाधीनता आंदोलन की गतिविधियों में शामिल होकर जेल में रहना अपना सौभाग्य समझती है। एक महिला तो मृदुला पर व्यंग्य कर यहाँ तक कह देती है कि “जेल में रहने के लिए बड़ा कलेजा चाहिए।”² मृदुला जब जेल से बाहर आ जाती है तो देहाती क्षेत्रों में अत्यधिक लगान वसूलने तथा पुलिस के बढ़ते अत्याचार के कारण किसानों की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कारकों के विरुद्ध शहर में एक जुलूस निकाला जाता है, इस जुलूस में मृदुला का पति, पुत्र तथा अम्मा (सासु माँ) पुलिस की गोलियों की शिकार बन जाती है अतः मृदुला के परिवार में अब उसके अतिरिक्त कोई नहीं रहा, उसी दिन संध्याकाल में दिनभर में पुलिस की गोलियों के शिकार बने लोगों कि स्मृति में एक शांतिपूर्ण मार्च निकाला जाता है, जिसका नेतृत्व मृदुला करती है, इस कारण उसे पुलिस गिरफ्तार कर जेल में डाल देती है, जहाँ वह पुनः क्षमादेवी से मिलती है। अंग्रेज शासन की क्रूरता से कोई नहीं बच पाता था न तो बच्चे और न ही बुजुर्ग। इसका उदाहरण देती हुई मृदुला क्षमादेवी से कहती है “यही तो विचित्रता है बहन! बन्दूक की आवाज सुनकर कानों पर हाथ रख लेती थी, खून देखकर मूर्छित हो जाती थीं, वहीं अम्मा वीर सत्याग्रहियों की सफ़ों को चीरती हुई सामने खड़ी हो गयी और एक ही क्षण में उनकी भी लाश जमीन पर गिर पड़ी।”³ स्त्री दुर्दशा और किसान जीवन की विडंबना का एक ओर उदाहरण इसी कहानी में देखने को मिलता है जो देहातों में अत्यधिक लगान के विरोध के कारण उत्पन्न होता है, मृदुला क्षमादेवी से कहती है “एक किसान के घर में घुसकर कई कांसटेबलों ने उसे पीटना शुरू किया। बेचारा बैठा मार खाता रहा। उसकी स्त्री से न रहा गया। शामत की मारी कांसटेबलों को कुवचन कहने लगी। बस, एक सिपाही ने उसे नंगा कर दिया। क्या कहूँ बहन, कहते शर्म आती है। हमारे ही भाई इतनी निर्दयता करें, इससे ज्यादा दुःख और लज्जा की और क्या बात होगी?”⁴ ‘क़ानूनी कुमार’ कहानी देश की तत्कालीन दशा, स्त्री जीवन की पराधीनता तथा तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग की सामान्य भारतीय जन के प्रति सोच को उजागर करती है। कहानी का नायक मि. क़ानूनी कुमार पेशे से वकिल है तथा असेम्बली का सदस्य भी है, अति उत्साह में वह हर बात को कानून से बांधने का प्रयत्न करता है तथा प्रत्येक व्यवस्था पर कानून बनवाना चाहता है। मि. क़ानूनी कुमार दोहरे चरित्र का व्यक्ति तथा महत्वाकांक्षी है। वह देश दशा पर विचार तो करता है, लेकिन केवल बातों में ही, वास्तव में जब उसके सामने एक भिक्षुक आ जाता है तो वह उसे सुअर तक कहता है और दुत्कार कर उसे भगा देता है। इसी कहानी में प्रेमचंद लेडी ऐयर नामक स्त्री पात्र के माध्यम से प्रत्यक्ष रूप से स्त्री मुक्ति तो अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय स्वाधीनता को प्रस्तावित करते है, लेडी ऐयर कहती है “मैं खूबसूरत पराधीनता नहीं चाहती, बदसूरत स्वाधीनता चाहती हूँ।”⁵ पत्नी से पति कहानी की पृष्ठभूमि पूर्णतया स्वदेशी आंदोलन है। कथा नायिका गोदावरी स्वदेशी की अग्रदूत प्रतीत होती है वहीं उसके पति मिस्टर सेठ अंग्रेज सरकार में नौकर थे तो उनको अपने अंग्रेज अफसरों की खुशामद करने का मौका मिलना चाहिए बस, इसीलिए वो हिंदुस्तानी वस्तुओं से सख्त नफ़रत करते है। इसी क्रम में उनकी अपनी पत्नी गोदावरी से नहीं बनती थी। भारतीय वर्ग जो अंग्रेज सरकार में नौकर था उनके संदर्भ में गोदावरी कहती है कि “स्वामी अगर अपमान करे, अपशब्द कहे तो नौकर उसको सहन करने के लिए मजबूर नहीं। गुलाम के लिए कोई शर्त नहीं, उसकी दैहिक गुलामी पीछे होती है, मानसिक गुलामी पहले हो जाती है।”⁶ अतः गोदावरी चाहती है कि भारतीय लोग जो अंग्रेज शासन में नौकरी करते है वे केवल नौकर की तरह रहे गुलाम की तरह नहीं रहे, जिस प्रकार उसके पति मिस्टर सेठ गुलामों की तरह रहते थे। प्रेमचंद की यह कहानी आदर्शवादी है अतः जब गोदावरी कांग्रेस के जलसे में मिस्टर सेठ की इच्छा के विरुद्ध शामिल होती है और कांग्रेस के लिए चंदा भी देती है तो मिस्टर सेठ को इस्तीफा देना पड़ता है और अंत में मिस्टर सेठ स्वयं स्वदेशी आंदोलन तथा कांग्रेस के कार्यक्रमों में शामिल होते है तथा स्वदेशी वस्तुओं का समर्थन करते है। प्रेमचंद की चर्चित कहानी ‘ठाकुर का कुआँ’ भी ‘समरयात्रा’ संग्रह में संकलित थी। इस कहानी के केन्द्र में दलित जीवन की विवशता है लेकिन अगर स्त्री दृष्टिकोण को ध्यान में रखा जाए तो गंगी के माध्यम के दलित स्त्रियों की दुर्दशा को समझा जा सकता है तथा इसी कहानी में उच्च कही जाने वाली तथाकथित स्वर्ण जातियों की स्त्रियों की दुर्दशा पर भी प्रेमचंद विचार करते है कि किस तरह उच्च वर्ण की महिलाएं दिनभर केवल पुरुषों की गुलामी करती है इसे पानी लेने आयी दो महिलाओं के संवाद से समझा जा सकता है - 

पहली स्त्री “खाना खाने चले और हुक्म हुआ कि ताज़ा पानी लाओं।”⁷ 

दूसरी स्त्री “हम लोगों को आराम से बैठे देखकर जैसे मरदों को जलन होती है।”⁸ 

पहली स्त्री “हाँ, यह तो न हुआ कि कलसिया उठाकर भर लाते। बस, हुक्म चला दिया कि ताजा पानी लाओं, जैसे हम लौंडियाँ ही तो हैं।”⁹
 
    ‘शराब की दुकान’ कहानी स्वाधीनता आंदोलन के दौरान कांग्रेस द्वारा किए जा रहे नशा मुक्ति के प्रयासों पर केन्द्रित है, इस कहानी में यह बतलाया गया है कि कांग्रेस के कार्यकर्त्ता किस तरह शराब की दुकानों के बाहर खड़े रहकर शराबियों से शराब न पीने के लिए विनती करते थे और उनको इससे क्या-क्या समस्याओं का सामना करना पड़ता था। इसी कहानी का एक पक्ष यह उभरकर हमारे समक्ष आता है कि कांग्रेस कमेटियां किसी भी कार्य के लिए पुरुषों तथा स्त्रियों के लिए अलग-अलग मानती थी। शराब मुक्ति के प्रयासों को वह पुरुष लोगों द्वारा किया जाना उचित समझती थी। इसी पर कांग्रेस कमेटी की सदस्या मिसेज सक्सेना अपने साथी अन्य सदस्य जयराम से कहती है कि “आप भी अन्य पुरुषों ही की भाँति स्वार्थ के पुतले हैं। सदा यश खुद लूटना चाहते हैं औरतों को कोई मौका नहीं देना चाहते। कम से कम यह तो देख लीजिए कि मैं भी कुछ कर सकती हूँ या नहीं?”¹⁰ जुलूस कहानी का केंद्र वह पहलू है जो अंग्रेज शासन की ‘बाँटो और राज करो’ की नीति रही है। पूर्ण स्वराज्य के लिए इब्राहिम अली के नेतृत्व में एक जुलूस निकाला जाता है, जिसे भारतीय व्यक्ति बीरबल सिंह जो अंग्रेज शासन का दारोगा था वह अपने कुछ सिपाहियों के साथ जुलूस को रोकने के लिए कहता है और जब उसे मालूम होता है कि उसके पीछे उसका अंग्रेज अफसर आया है तो वह अपने ही भारतीय लोगों को जो जुलूस में शामिल थे उन्हें पीटने का हुक्म देता है ताकि अंग्रेज अफसर की नज़र में वह अच्छा साबित हो सके। इसी क्रम में पिटाई से इब्राहिम अली की मृत्यु हो जाती है और उनकी शवयात्रा के साथ हजारों की संख्या में लोग शामिल होते है जिसमें बीरबल सिंह की पत्नी मिट्ठन बाई भी शामिल होती है। मिट्ठन बाई स्वाधीनता आंदोलन की पक्षधर थी अतः उसका बीरबल सिंह के प्रति कम ही व्यवहार रहता तथा सदा रूखा व्यवहार रहता। इब्राहिम अली की मृत्यु की खबर मिट्ठन बाई को पहले ही पता चल जाती है और एक सिपाही बीरबल सिंह को एक पत्र देकर जाता है जिसमें बीरबल सिंह के लिए इब्राहिम अली की शवयात्रा के जुलूस के साथ रहने का आदेश होता है, इस पर मिट्ठन बाई बीरबल सिंह पर व्यंग्य करती हुई कहती है कि “क्या तरक्की का परवाना आ गया?”¹¹ जुलूस में भी जब बीरबल सिंह साथ होता है तो वह मिट्ठन बाई से आंखे नहीं मिला पाता है और मिट्ठन बाई तथा अन्य महिलाएं बीरबल सिंह को लज्जित करती है। इस लज्जा से बीरबल सिंह का ह्रदय परिवर्तन हो जाता है तथा वह इब्राहिम अली की बूढ़ी पत्नी के पास क्षमा मांगने जाता है। इस कहानी से यह समझा जा सकता है कि किस तरह अंग्रेज भारतीयों से ही भारतीयों को मरवाते थे और जो अंग्रेज शासन के नौकर होते थे उनकी न तो घर में कोई इज्जत करता था और न ही समाज में कोई उनकी इज्जत करता था, इस कहानी का पात्र बीरबल सिंह इसका उदाहरण है। आहुति कहानी तत्कालीन पढ़े लिखे युवा वर्ग की स्वाधीनता आंदोलन में भूमिका पर केंद्रित है। किस प्रकार शिक्षित युवा वर्ग केवल अंग्रेज शासन में नौकरी चाहता था इसको इस कहानी में चित्रित किया गया है। इस कहानी में तीन पात्र है आनंद, विश्वंभरनाथ तथा रुपमणि। आनंद तथा रुपमणि का जीवन विलासिता में बीता होता है वहीं विश्वंभरनाथ का जीवन निम्न मध्यम वर्ग की भांति व्यतित होता है। विश्वंभरनाथ छात्रवृत्ति पाकर परास्नातक की कक्षा तक पहुँच जाता है तो आनंद भी इसकी कक्षा का ही मित्र है । आनंद पढ़ लिखकर अंग्रेज नौकर बनना चाहता है जबकि विश्वंभरनाथ अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर कांग्रेस कमेटी से जुड़ जाते है तथा देहातों में किसानों पर होने वाले अत्याचारों पर जनजागृत्ति का कार्य करता है। रुपमणि पहले तो विश्वंभरनाथ की बातों से सहमत नहीं होती है लेकिन बाद में वह उससे सहमत होकर उसके कार्यों पर गर्व करती है तथा आनंद को संबोधित कर तत्कालीन पढ़े लिखे युवाओं को उनके दायित्वबोध का परिचय करवाती है, वह कहती है “अगर स्वराज्य आने पर भी संपत्ति का यहीं प्रभुत्व रहे और पढ़ा-लिखा समाज यों ही स्वार्थान्ध बना रहे, तो मैं कहूँगी, ऐसे स्वराज्य का न आना ही अच्छा है।”¹² इसी कहानी में रुपमणि आंदोलन के समय रचित प्रेरणादायक साहित्य के महत्व की ओर इंगित करते हुए आनंद से कहती है “तुमने अभी इस आंदोलन का साहित्य पढ़ा ही नहीं।“¹³ इसी कहानी में स्त्री स्वतंत्रता को समर्थन करने वाला एक कथन प्रेमचंद रुपमणि के माध्यम से कहलवाते है कि “सिद्धांत के विषय में अपनी आत्मा का आदेश सर्वोपरी होता है।”¹⁴ होली का उपहार कहानी स्वदेशी आंदोलन से संबंधित है। जिसमें नायक अमरकांत पहली बार अपनी पत्नी सुखदा से मिलने जाता है तो उपहार स्वरूप वह एक विदेशी साड़ी ले जाना चाहता है और वह एक दुकान से यह साड़ी चोरी-छीपे खरीद भी लेता है फिर भी उसे भय रहता है कि कहीं स्वदेशी आंदोलन के स्वयंसेवक उससे वह साड़ी छीन न ले और यहीं होता है कि उससे स्वयंसेवक वह साड़ी छीन लेते है और इससे सुखदा जो स्वयं खादी और स्वदेशी की समर्थक थी वह अमरकांत को बचाती है। अमरकांत को जब पता चलता है कि सुखदा स्वयं स्वदेशी की समर्थक है तो वह लज्जित होता है और सुखदा से स्वदेशी की प्रेरणा ग्रहण कर स्वदेशी आंदोलन में शामिल होता है और गिरफ्तार कर लिया जाता है तो सुखदा स्वदेशी की प्रेरणा देती हुई कहती है “विलायती कपड़े खरीदना और पहनना देशद्रोह है।”¹⁵ ‘अनुभव’ कहानी स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने वाले स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी के बाद उनके परिवार पर आने वाली विपदाओं से संबंधित है। स्वयंसेवकों के गिरफ्तार होने के बाद उनके परिवार के लोगों पर खुफ़िया के लोग किस प्रकार नज़र रखते थे और उनके परिजनों को सहायता करने वाले लोगों को किस प्रकार प्रताड़ित किया जाता था यहीं इस कहानी के केंद्र में है। ‘समरयात्रा’ प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियों में शामिल है। इस कहानी में यह चित्रित किया गया है कि स्वाधीनता आंदोलन के सिपाही जब किसी गाँव से होकर गुजरते थे तो उस गाँव तथा आसपास के गाँवों में कितना उत्साह रहता था। इस कहानी के केंद्रीय पात्र निर्धन बुढ़िया नोहरी तथा उसका धनवान देवर कोदई है। जब कोदई के गाँव से होकर कांग्रेस के स्वाधीनता आंदोलन के स्वयंसेवक गुजरते है तो सारा गाँव खुशी-खुशी उन स्वयंसेवकों की सेवा के लिए अपनी इच्छा अनुसार आवश्यक सामान कोदई के द्वार पर रख जाता। कोदई के घर के बाहर ही स्वयंसेवकों के लिए रुकने की व्यवस्था की गई थीं। जब स्वयंसेवकों का जत्था आया तो सारा गाँव उनकी सेवा में लग गया। कोदई  के द्वार पर उसके तथा आसपास के गाँवों के लोग जमा थे तो स्थानीय दारोगा जो भारतीय था वह अपने कुछ  सिपाहियों को साथ लेकर भीड़ को खदेड़ता है, एक पल में वहाँ अफरा-तफरी मच जाती है और सारी भीड़ जाकर छुप जाती है तो बुढ़िया नोहरी उन भारतीय पुलिस वालों को जो अंग्रेज शासन के नौकर थे, उनको ललकारती हुई कहती है कि “मर्द होते, तो गुलाम ही क्यों होते ! भगवान ! आदमी इतना निर्दयी भी हो सकता है ? भला अँगरेज इस तरह बेदरदी करे, तो एक बात है। उसका राज्य है। तुम तो उसके चाकर हो, तुम्हे राज तो न मिलेगा ; मगर राँड़-माँड़ में ही खुश। इन्हें कोई तलब देता जाय, दूसरों की गर्दन काटने में इन्हें संकोच नहीं।”¹⁶ नौहरी का यह कथन उन भारतीय नौकरों के लिए है जो अपने अंग्रेज साहबों की खुशामद करने के लिए भारतीय की ही हत्या तक करने से संकोच नहीं करते थे। अंग्रेज भारतीय द्वारा ही भारतीय पर अत्याचार करवाते थे, यह उक्त कहानी से समझा जा सकता है। कोदई को गिरफ्तार कर लिए जाने के बाद उसके गाँव से नोहरी तथा कोदई का छोटा पुत्र गंगा तथा कुछ अन्य लोग भी उन स्वयंसेवकों के साथ मिल जाते है तथा अपना जीवन स्वाधीनता आंदोलन के नाम कर देते है। इसी कहानी में प्रेमचंद लिखते है कि “स्वराज्य चित्त की वृत्तिमात्र है। ज्योंही पराधीनता का आतंक दिल से निकल गया, आपको स्वराज्य मिल गया। भय ही पराधीनता है, निर्भयता ही स्वराज्य है।”¹⁷

निष्कर्ष : ‘समरयात्रा’ कहानी संग्रह में स्वाधीनता आंदोलन को प्रेरित करने वाली कहानियाँ शामिल है। इन कहानियों में समाज के प्रत्येक वर्ग की स्वाधीनता आंदोलन में भूमिका पर प्रकाश डाला गया है। स्त्री वर्ग की स्वाधीनता आंदोलन में भूमिका महत्वपूर्ण रहीं है, इसका हमें इतिहास ग्रंथों उचित उल्लेख नहीं मिल पाता है लेकिन साहित्य के माध्यम से हम इस भूमिका को अच्छे से समझ सकते है। प्रेमचंद ने अपनी इन कहानियों में जो नायिकाएँ गढ़ी है वो समाज के प्रत्येक वर्ग का प्रतिनिधित्व कर समाज के प्रत्येक वर्ग को स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती है। आज जब साहित्य में स्त्री विमर्श और स्त्री साहित्य की बात होती है तो प्रेमचंद के ये स्त्री पात्र न केवल स्वयं के अस्तित्व को महत्व देते हैं बल्कि स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाकर अन्य नवयुवकों को भी इस आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित करती है।  

संदर्भ :
1.प्रेमचंद, समरयात्रा, हिन्दुस्तानी पब्लिशिंग हाउस, इलाहाबाद, 1951, 7वाँ संस्करण, पृष्ठ 61
2.वही, पृष्ठ 6
3.वही, पृष्ठ 13
4.वही, पृष्ठ 10
5.वही, पृष्ठ 21
6.वही, पृष्ठ 32
7.वही, पृष्ठ 56
8.वही, पृष्ठ 56
9.वही, पृष्ठ 56
10.वही, पृष्ठ 69
11.वही, पृष्ठ 82
12.वही, पृष्ठ 101
13.वही, पृष्ठ 102
14.वही, पृष्ठ 103
15.वही, पृष्ठ 110
16.वही, पृष्ठ 126
17.वही, पृष्ठ 130

मनीष सोलंकी
शोधार्थी, हिंदी साहित्य, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)
manishmali1704@gmail.com

  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  प्रतिबंधित हिंदी साहित्य विशेषांक, अंक-44, नवम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक : गजेन्द्र पाठक
 चित्रांकन : अनुष्का मौर्य ( इलाहाबाद विश्वविद्यालय )
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