शोध आलेख : प्रेमचंद की प्रतिबंधित कहानियाँ और मुक्ति का स्वर / मुक्ति प्रभात जैन व डॉ. संजय रणखांबे

प्रेमचंद की प्रतिबंधित कहानियाँ और मुक्ति का स्वर 
- मुक्ति प्रभात जैन व डॉ. संजय रणखांबे
शोध सार : साहित्य समाज का दर्पण है। साहित्य ने हर समय समाज को सही मार्ग दिखाने की अपनी भूमिका बखूबी निभाई है। हिंदी साहित्य में भी इस तरह के प्रयास हमें दिखाई देते हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी साहित्यकारों का महत्वपूर्ण अवदान रहा है।भारतीय साहित्यकारों ने अपने साहित्य के माध्यम से विदेशी शासकों और उनकी दमनकारी नीतियों के विरोध में जनता को जागृत करने का, उनमें राष्ट्रीय चेतना उत्पन्न करने का सार्थक प्रयास किया है। ऐसे साहित्यकारों में मुंशी प्रेमचंद का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने अपनी लेखनी के बल पर भारतीय जनमानस को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया। प्रस्तुत शोध पत्र के अंतर्गत पाठकगण का ध्यान प्रेमचंद की ‘सोजे वतन’ कहानी संग्रह की ओर केंद्रित किया है। इस संग्रह को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर लिया था। इस संग्रह में पांच कहानियाँ हैं। इनमें से मैंने अपने शोध कार्य के लिए चार कहानियों का चयन किया है, इन कहानियों में राष्ट्र मुक्ति का स्वर मुखरित होता है। इनके माध्यम से प्रेमचंद ने पराधीन भारतीय जनमानस में राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया।

बीज शब्द : राष्ट्रीयता, स्वदेश प्रेम, बलिदान, मातृभूमि, दमनकारी, जनमानस, गुलामी, पराधीनता, अत्याचार, स्वतंत्रता, सांस्कृतिक, त्याग।

मूल आलेख : राष्ट्र के प्रति आत्मीयता, अगाध प्रेम की भावना, संस्कृति के प्रति गौरव आदि का भाव ही राष्ट्रीयता है। राष्ट्रीयता की भावना अपने देश के प्रति व्यक्ति को बलिदान, त्याग, समर्पण के लिए प्रेरणा देती है। “राष्ट्रीय शब्द अपने वर्तमान अर्थ में आधुनिक है, जिसमें जाति, संप्रदाय, धर्म, सीमित भू – भाग आदि की संकीर्णता के स्थान पर क्रमशः एक समग्र देश और उसके भीतर निवास करने वाली समस्त जातियों, भिन्न – भिन्न भू – खंडों, संप्रदायों और रीति – रिवाजों के लोगों का संश्लिष्ट, सामूहिक रूप उभरता है।”1 भारतीय जनमानस के भीतर यही राष्ट्रीयता की भावना कूट – कूट  कर भरी है। भारत एक समृद्ध राष्ट्र रहा है भारत में विभिन्न भाषाओं के रचनाकारों ने समय-समय पर अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को उजागर करने का प्रयास किया है। जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था। गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारतीय समाज को विभिन्न साहित्यकारों ने अपने साहित्य के माध्यम से राष्ट्र एवं अपनी सांस्कृतिक जड़ों का आभास कराया। मुंशी प्रेमचंद भी ऐसे ही महान लेखकों में से एक है। इनका साहित्य समाज के समसामयिक समस्याओं को पूर्णरूपेण अभिव्यक्त करने में समर्थ है। इन्होंने लगभग 300 से अधिक कहानियाँ लिखी जो तत्कालीन जनमानस की समस्याओं से जुड़ी हुई हैं। प्रेमचंद की अधिकतर कहानियों का विषय गांव का जीवन है, जमीदारों, साहूकारों, शासकीय एवं उच्च पदाधिकारियों की समस्याओं के साथ ही राष्ट्र की मुक्ति, जैसे विषय भी अभिव्यक्त हुए हमें दिखाई देते हैं।
             
हिंदी साहित्य में प्रेमचंद का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनकी ख्याति उपन्यास सम्राट के रूप में अत्यंत प्रसिद्ध है, अगर उन्हें कहानी के क्षेत्र में कहानी सम्राट कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। इनके साहित्य में समाज का यथार्थ का चित्रण मिलता है, ऐसा यथार्थ जिसमें कोई कृत्रिमता न हो, जो सत्य है वह पूरी निडरता के साथ कह दिया। मुंशी प्रेमचंद की शुरुआती रचनाएँ उर्दू में लिखी गई हैं। उनका पहला कहानी संग्रह ‘सोजे वतन’ 1908 में ‘जमाना’ पत्रिका कानपुर से प्रकाशित हुआ, जिनमें ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’, ‘शेख मखमूर’, ‘यह मेरी मातृभूमि है’, ‘सांसारिक प्रेम और देश प्रेम’ और ‘शोक का पुरस्कार’ नामक पाँच कहानियाँ संग्रहीत है। इस संग्रह की केवल एक कहानी ‘शोक का पुरस्कार’ को छोड़कर बाकी सभी कहानियों में देश प्रेम का भाव अभिव्यक्त हुआ है। प्रेमचंद जी के द्वारा किया गया इस प्रकार का लेखन पराधीनता के काल में एक सरकारी मुलाजिम के लिए किसी राष्ट्रद्रोह से कम न था। फिर भी प्रेमचंद ने इस प्रकार का साहस किया जिसके परिणाम स्वरूप अंग्रेज सरकार ने इस ‘सोजे वतन’ कहानी संग्रह को जब्त कर लिया। इसके बाद ही प्रेमचंद जो उर्दू साहित्य में ‘नवाबराय’ के नाम से लेखन करते थे, हिंदी में प्रेमचंद नाम से लेखन शुरू कर दिया।
            
राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत इन कहानियों में स्वाधीनता की ललक, गुलामी से मुक्ति, शासन की दमनकारी नीतियों का विरोध आदि बाते स्पष्ट दिखाई देती हैं। अंग्रेजी शासन द्वारा भारतीयों पर अनन्य अत्याचार हुए। भारतीय जनता अंग्रेजों की इस शोषणकारी नीति से त्रस्त थी। गुलामी भरे जीवन से पीड़ित जनता अत्याचारों को मौन होकर सहन कर रही थी। ऐसे विपरीत समय में साहित्यकारों ने अपने साहित्य के माध्यम से स्वतंत्रता की अलख जगाई। हिंदी साहित्य में प्रचुर मात्रा में स्वतंत्रता की भावना प्रेरित करने वाला साहित्य लिखा गया। पराधीन भारत में ऐसा साहित्य लिखा जाने से अंग्रेज सरकार बौखला गई और उन्होंने राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत ऐसे साहित्य पर प्रतिबंध लगा दिया। क्योंकि उन्हें डर था कि कहीं भारतीय अपनी गुलामी की मानसिकता से उबरकर विद्रोह न कर दे। अगर ऐसा हुआ तो हमें भारत छोड़ना पड़ेगा। इसी भय से उन्होंने ऐसी कृतियों पर रोक लगा दी। प्रेमचंद भी ऐसे लेखकों में हैं जिनका ‘सोजे वतन’ नामक कहानी संग्रह जब्त कर लिया गया था।

‘सोजे वतन’ कहानी संग्रह में संकलित पहली कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ जिसमें प्रेमचंद ने एक ओर एक सच्चे प्रेमी का चित्रण किया है, तो दूसरी ओर देश के लिए बलिदान देने वाले देशभक्त वीरों का वर्णन किया है। कहानी में  प्रेम के आदर्श रूप का सहारा लेकर अनमोल रतन के रूप में देशभक्ति का चित्रण  किया है। कहानी के मुख्य पात्र:1.दिलफिगार(नायक) 2.दिलफरेब(नायिका) और अन्य गौण पात्र राजपूत सैनिक हैं। कहानी में नायिका दिलफरेब अपने प्रेमी दिल फिगार से कहती है कि, अगर तू मेरा सच्चा प्रेमी है तो जा और दुनिया का सबसे अनमोल रतन लेकर मेरे पास आना। तब मैं तुझे अपनी गुलामी में कबूल करूंगी। इसके बाद दिलफिगार दुनिया की सबसे अनमोल रतन की खोज में निकल पड़ता है। दुनिया का सबसे अनमोल रतन ढूंढने में दो बार असफल हुआ, दिलफिगार इस बार युद्ध में घायल एक राजपूत सैनिक से मिलता है । यह एक वीर सैनिक है, जो मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देना अपना धर्म समझता है। उसके रक्त रंजित शरीर से निकली रक्त की बूंद ही दुनिया का सबसे अनमोल रतन है । दिलफिगार अपनी प्रेमिका को सारा घटनाक्रम सुनाता है तो वो उसे स्वीकार करते हुए; दिल फिगार को एक रत्न जड़ित मंजूषा से निकली तख्ती देती है जिस पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा होता है कि– "खून का वह आखरी कतरा जो वतन की हिफ़ाज़त में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज है।"2 देश की वर्तमान शोषणकारी व्यवस्था के प्रति विद्रोह प्रेमचंद की कहानियों में स्पष्ट दिखाई देता है, तो साथ ही हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति ‘अतिथि देवो भवः‘ के दर्शन भी मिलते हैं। जो भारतीय सिपाही लहूलुहान है, पर फिर भी उसे अफसोस है कि वह दिलफिगार का आतिथ्य नहीं कर पाया। वह सिपाही कभी भी काल का ग्रास बन सकता है, उसे अपने प्राणों का मोह नहीं हैं। पर उसके हृदय में वतन के छीन जाने का और अपने ही वतन में गुलामी भरा जीवन जीने का रंज है। अपने ही देश में गुलामी भरा जीवन जीने वालों की व्यथा सिपाही के शब्दों में स्पष्ट दिखाई देती है। परंतु यह गुलामी कब तक ? आखिर अपने ही देश में गुलामी में जीवन व्यतीत करने से तो अच्छा है, आजादी के लिए लड़ते हुए शहीद हो जाना। “खून निकलने दे, इसे रोकने से क्या फायदा? क्या अपने ही देश में गुलामी करने के लिए जिंदा रहूं? नहीं, ऐसी जिंदगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत मुमकिन नहीं।”3 प्रेमचंद के इन शब्दों में भारत की तत्कालीन परिस्थिति एवं गुलामी की पीड़ा स्पष्ट दिखाई देती है। कहानी में देखा जाए तो दिलफिगार एक सच्चा प्रेमी है, अपने प्रेम को पाने के लिए वह पहाड़ों, नदी, दुर्गम वन आदि को पार करता हुआ, दुनिया की सबसे अनमोल चीज खोज लाता है। परंतु, उस घायल सिपाही को देखकर उसके हृदय में भी कहीं न कहीं देश भक्ति की भावना उमड़ती है। एक तरफ अपने प्रेम को महत्त्व देने वाला व्यक्ति दिलफिगार का हृदय अपने व्यक्तिगत प्रेम से प्रवर्तित होकर देशभक्ति की ओर बढ़ता है। तो यह तत्कालीन नौजवानों को संदेश है या कहे कि एक तरह का संकेत है कि अपने व्यक्तिगत प्रेम को छोड़कर देशप्रेम की ओर बढ़े। दूसरा अगर देखा जाए कहानी की नायिका भी शायद दिलफिगार को यह एहसास दिलाना चाहती है, कि जो तत्कालीन परिस्थिति हैं, उनमें व्यक्तिगत दायरे से बाहर निकलकर राष्ट्र प्रेम के बारे में सोचना होगा। लेखक का भी कहानी लिखने का यही उद्देश्य रहा होगा कि प्रत्येक युवा वर्ग के हृदय में इस पराधीनता से मुक्ति पाने की छटपटाहट हो।

‘शेख मखमूर’  कहानी का नायक ‘मसऊद’ देश भक्ति, त्याग और जातीय एकता का प्रतीक है। मसऊद एक दिलेर योद्धा होने पर भी एक गैर मामूली जिंदगी जीता है, चूंकि आपसी फसाद और खून खराबी से बचा जा सके। सरदार नमकखोर के आगे वह अपने पिताजी की दी हुई उसकी सबसे अजीज तलवार तक रख देता है जिससे वह अपनी जान से ज्यादा चाहता है। जबकि उसके साथी इस पद त्याग से नाखुश हो जाते हैं। इस प्रकार वह सल्तनत के अपने दावे को भी दरकिनार कर के वह शेर अफगान को अपनी मल्लिका मान लेता है ताकि अभी मिली हुई स्वतंत्रता फिर खतरे में ना पड़ जाए। अंतः अपने धैर्य, दिलेरी और त्याग के कारण ही वह अपना खोया हुआ राज्य वापस पाने में सफल हो जाता है। जब किशवरकुशा दोयम अपने चाचा पुरतदबीर को बीस हजार सैनिकों के साथ युद्ध करने भेजता है तब इतनी बड़ी सेना देखकर सरदार नमकखोर डर जाता है। उस वक्त मसऊद उसे युद्ध में दृढ़ होकर लड़ने के लिए प्रेरित करता है कि – "क्या बात है, अगर अमीर पुरतदबीर बड़ा दिलेर और इरादे का पक्का सिपाही है। अगर वह शेर है तो तुम शेर मर्द हो; अगर उसकी तलवार लोहे की है तो तुम्हारा तेगा फौलाद का है; अगर उसके सिपाही जान पर खेलने वाले हैं तो तुम्हारे सिपाही भी सर कटाने के लिए तैयार हैं। हाथों में तेगा मजबूत पकड़ो और खुदा का नाम लेकर दुश्मन पर टूट पड़ो। तुम्हारे तेवर कह देते हैं कि मैदान तुम्हारा है।"4 उसकी प्रेरणा से सिपाहियों में जोश भर जाता है और वे विजयी होते हैं। कहानी में राष्ट्रीय भावना, अपने वतन को पुनः प्राप्त करना, वतन के लिए व्यक्तिगत चीजों को त्यागकर राष्ट्र को समर्पित होने का भाव दृष्टिगोचर होता है।

‘यह मेरी मातृभूमि है’ कहानी का नायक लंबे अरसे के बाद अमेरिका से अपने देश भारत  लौटता है। अपने देश की मिट्टी का आकर्षण बड़े भावुकता पूर्ण ढंग से उसे अपनी ओर खींचता है और अपने परिवार की चिंता किए बिना ही वह अपने देश में रुक जाता है ताकि अंतिम समय में अपने देश की ही मिट्टी में मिल जाए।  कहानी में ऐसे व्यक्ति की पीड़ा है, जिसे न चाहते हुए भी अपने देश से दूर रहना पड़ता है, परंतु अपने देश में लौटने के लिए वह हमेशा बैचेन रहता है। जब वह अपने देश लौटता है तो, अपने देश और गाँव में जो बदलाव हुआ है उसे देखकर उसका मन थोड़ा दुखी जरूर होता है। “उस समय मेरी आँखों में आंसू भर आये और मैं खूब रोया, क्योंकि यह मेरा देश न था। यह वह देश न था, जिसके दर्शनों की इच्छा सदा मेरे हृदय में लहराया करती थी। यह तो कोई और देश है। यह अमेरिका या इंग्लैड था; मगर प्यारा भारत नहीं था।”5 वह सोचता है कि अब ये देश पहले जैसा नहीं रहा मेरा कोई देश नहीं है, लेकिन कुछ समय बाद तट पर कुछ स्त्रियों द्वारा गाया हुआ भजन सुनकर उसका मन परिवर्तित हो जाता है जो आत्मिक संतुष्टि अपने देश में आकर मिली वह वर्षों से विदेश में रहने के पश्चात भी महसूस नहीं हो पाई थी। इसी आनंद में वह यह घोषणा कर देता है कि – "मेरी स्त्री और मेरे पुत्र बार-बार बुलाते हैं; मगर अब मैं यह गंगा माता का तट और अपना देश छोड़कर वहाँ नहीं जा सकता। अपनी मिट्टी गंगा जी को ही सौपूंगा। अब संसार की कोई आकांक्षा मुझे स्थान से नहीं हटा सकती, क्योंकि यह मेरा प्यारा देश और यही मेरी प्यारी मातृभूमि है। बस, मेरी उत्कट इच्छा यही है कि मैं अपनी प्यारी मातृभूमि में ही अपने प्राण विसर्जन करूं।"6 भारतीय जनमानस के हृदय में अपने देश के प्रति जो प्रेम है उसकी सार्थक अभिव्यक्ति कहानी में हुई है और साथ ही कहानी में लेखक ने स्वदेस वापसी करने वाले वृद्ध भारतीय नायक के माध्यम से एक ओर सांस्कृतिक अस्मिता का असाधारण महत्व प्रकट किया तो दूसरी ओर हमारे देश की उज्ज्वल परंपरा को आधार बनाकर देश भक्ति को बड़े ही मार्मिक ढंग से रेखांकित किया हैं।

‘सांसारिक प्रेम और देश प्रेम’ कहानी के शीर्षक के समान ही इसमें सांसारिक प्रेम और देश प्रेम की महत्ता को व्यक्त किया गया है। इटली के प्रसिद्ध देशभक्त मैजिनी और उसकी प्रेमिका मैग्डलीन के जीवन और संघर्ष को केंद्र बनाकर लिखी गई कहानी है। जिसमें मैजिनी की देशभक्ति, संघर्ष, त्याग की भावना को बड़े सटीक रूप से पाठकों के सामने लेखक ने कहानी के माध्यम से चित्रित किया है। इस कहानी की विषयवस्तु भले ही भारतीय न हो, लेकिन प्रेमचंद ने उसके माध्यम से देश भक्ति की भावना को जो हमारे देश में शुरू हो गई थी उसे प्रसारित-प्रचारित करने का प्रयास किया है; जिससे हमारे देश में भी स्वाधीनता आंदोलन को बढ़ावा मिल सके। 

मैजिनी अपने देश से अत्यंत प्रेम करता है। मैग्डलीन उसकी प्रेमिका है जो मैजिनी को बेहद प्रेम करती  है। लेकिन मैजिनी चाहता हैं कि वो किसी और से विवाह करके सुखी जीवन व्यतीत करे। जब मैग्डलीन का खत पढ़कर मैजिनी ख्याल में डूब जाता है और सोचता है कि – "दुनिया में बहुत से ऐसे हंसमुख खुशहाल नौजवान है जो तुझे खुश रख सकते हैं जो तेरी पूजा कर सकते हैं। क्यों तू उनमें से किसी को अपनी गुलामी में नहीं ले लेती! मैं तेरे प्रेम, सच्चे, नेक और नि:स्वार्थ प्रेम का आदर करता हूं। मगर मेरे लिए, जिसका दिल देश और जाति पर समर्पित हो चुका है, तू एक प्यारी और हमदर्द बहन के सिवा और कुछ नहीं हो सकती।"7 किंतु ये सुनकर मैगडेलीन का प्रेम उसके प्रति और अधिक बढ़ जाता है। अंत में मैजिनी देश प्रेम के लिए अपने व्यक्तिगत प्रेम को न्यौछावर कर देता है। जीवन के अंतिम समय तक मैजिनी अपने देश हित के कार्य से जुड़ा रहता। कहानी में मैजिनी अपने प्रेम से राष्ट्र प्रेम को सर्वोपरि मानता है। वह चाहता तो मैग्डलीन के साथ एक सुखी जीवन व्यतीत कर सकता था परंतु उसके लिए देश की आजादी से बढ़कर कुछ नहीं था। “आजादी, हाय आजादी, तेरे लिए मैंने कैसे – कैसे दोस्त, जान से प्यारे दोस्त कुर्बान किए। कैसे – कैसे नौजवान, होनहार नौजवान, जिनकी मांएं और बीवियां आज उनकी कब्र पर आंसू बहा रही हैं।”8 देश की आजादी के लिए कितने ही वीरों ने अपने प्राण त्याग दिए। जो देश प्रेमी जीवित थे वह अपने देश एवं देश वासियों पर होनेवाले अत्याचारों को रोकने के लिए अपना सर्वस्व समर्पण करने के लिए तैयार थे। कहानी का नायक भी देश पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तत्पर है। संग्रह की अन्य कहानियों की भांति ही, यह कहानी भी देश प्रेम की भावना को केंद्र में रखकर ही लिखी गई है।

निष्कर्ष : सोजे वतन कहानी संग्रह की चारों कहानियां क्रांतिकारी भले ही ना हो लेकिन इन कहानियों में देश प्रेम, बलिदान, भारतीय संस्कृति सभ्यता का गुणगान, स्वदेश के प्रति अनुराग, पराधीनता से मुक्ति, पराधीनता के प्रति संघर्ष, स्वतंत्रता के प्रति समर्पण का भाव व्यक्त हुआ है। इसी कारण तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने इसे जप्त किया था क्योंकि यह उनके लिए खतरा ना साबित हो। इसके बावजूद भी हम यह कह सकते हैं कि ‘सोजे वतन’ कहानी संग्रह के माध्यम से प्रेमचंद ने तत्कालीन भारतीय जनमानस में राष्ट्रीयता को जागृत करने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इन कहानियों को पढ़कर स्वाधीनता के लिए जो संघर्ष किया गया उसकी झलक साफ दिखाई देती है। प्रेमचंद ने अपनी इन कहानियों के माध्यम से विदेशी शासकों की दमनकारी नीति के विरोध में भारतीय जनमानस के हृदय में राष्ट्रीय प्रेम की भावना जागृत की।

 संदर्भ :
1.डॉ. नगेंद्र(सं), हिंदी साहित्य का इतिहास, मयूर पेपर बैक्स, इंदिरापुरम, 2015, पृ.602
2.मुंशी प्रेमचंद, स्वाधीनता आंदोलन की कहानियां, प्रेमचंद प्रकाशन, शहादरा(दिल्ली), 2015, पृ.16
3.वही - पृ.15
4.वही - पृ.43
5.वही - पृ.28
6.वही - पृ.32
7.वही – पृ.21
8.वही – पृ.17

मुक्ति प्रभात जैन
शोधार्थी
कवयित्री बहिणाबाई चौधरी उत्तर महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, जलगाँव(महाराष्ट्र) 
सम्पर्क : jainmukti92@gmail.com

डॉ. संजय रणखांबे 
हिंदी विभाग प्रमुख एवं सहयोगी प्राध्यापक,
डॉ. अण्णासाहेब जी. डी. बेंडाले महिला महाविद्यालय, जलगाँव(महाराष्ट्र)

  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  प्रतिबंधित हिंदी साहित्य विशेषांक, अंक-44, नवम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक : गजेन्द्र पाठक
 चित्रांकन : अनुष्का मौर्य ( इलाहाबाद विश्वविद्यालय )

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