शोध आलेख : ग्राफ़िक उपन्यास का उद्भव, विकास और अनुवाद / राजीव रंजन

ग्राफ़िक उपन्यास का उद्भव, विकास और अनुवाद
- राजीव रंजन

शोध सार : इस शोध आलेख में कॉमिक्स से ग्राफ़िक उपन्यास का उद्भव और विकास के बदलते स्वरूप पर विश्लेषण किया जायेगा। कथा मानव जीवन से कभी भी अलग होने वाला अंग है। जब से सभ्यता का विकास हुआ है तब से कथाएँ विभिन्न रूप-स्वरुप में अग्रिम पीढ़ी की मार्गदर्शिका बनी हुई है। श्रुति और द्रैश्यिक परंपरा द्वारा कहानी कहने की परंपरा प्राचीन है। विश्व की सभी संस्कृतियों में कहानी कहने और सुनने की परंपरा अनेक रूप में विद्यमान है। शब्द जब गौण थे तब भी आकृतियाँ संचार का माध्यम थी और अब जब शब्द मौन हैं तब भी आकृतियों और चित्रों के द्वारा सम्प्रेषण हो रहा है। 'ध्वनि' और 'शब्दों' के प्रयोग से पहले प्रतीक और चित्र का प्रयोग मानव संचार के लिए किया करते थे। कहानी वर्तमान की स्मृतियों में छुपे हुए अतीत का प्रतिबिंब है। चित्रांकन स्मृतियों में शेष रह जाता है। इसीलिए ये साक्षी है इतिहास और समाज का। चित्र का कहानी से और कहानी के लोक से जुड़ाव ने कभी उसे सीमित नहीं होने दिया और ये हर काल में प्रतिनिधि रहे हैं। इस आलेख में साहित्य के इस विधा के बदलते स्वरुप और वैश्विक ग्राम की अवधारणा के कारण कॉमिक्स और ग्राफ़िक उपन्यास के अनुवाद में आने वाली समस्या पर प्रकाश डाला गया है।

बीज शब्द : ग्राफ़िक उपन्यास, कॉमिक्स, सिनेमा की भाषा, समकालीन साहित्य, कार्टून पैनल, कॉमिक स्ट्रिप्स, साहित्य में यमपट्ट, पट्टचित्र, मौखिक परंपरा शब्द, चित्र, महानायक (Super Hero), बाल साहित्य, नवम कला’ (Ninth Art), पंचतंत्र।

मूल आलेख : ग्राफ़िक उपन्यास सिनेमा की भाषा, समकालीन साहित्य की संवेदना और मॉस मीडिया यानि संचार तंत्र का संश्लेषण है जो कलात्मकता, रचनात्मकता और तकनीक का बेजोड़ मिश्रण है।[1] साहित्य को ऐतिहासिक रूप से सराहनीय तभी माना जाता है अगर इसमें पर्याप्त विवरण पाठक के मानस पटल पर कथानक का चित्र बिम्बित कर सके। ग्राफ़िक उपन्यास उसी प्रारूप पर काम करता है। ग्राफ़िक साहित्य के लिए कोई नई अवधारणा नहीं है। हाल ही में युवा पाठकों के लिए जो इंटरनेट युग से जुड़े है उनके लिए बहुत ही सरल माध्यम बनकर उभरा है। ये आधुनिकता और मुख्यधारा के विषय को एक साथ समाहित किये हुए है। हर वर्ग के लोग इसे आसानी से समझ सकते हैं। साहित्य के हर विधा के साथ-साथ शिक्षा के हर क्षेत्र में बड़ी ही सुगमता से इसका विस्तार हो रहा है। अधिकांश लोगो के पास चित्रों या छवियों का मानसिक बैंक होता है जो अवचेतनपूर्वक चित्रों का अनुवाद करता है। जैसे ही वह लिखे हुए शब्दों को देखता है तब उसके वर्णों को नहीं देखता है लेकिन उस शब्द का चित्र उसके दिमाग में उभर जाता है। जब कोई 'गु-ला-' ये तीनों वर्णों को देखता है तब अवचेतन में गुलाब के फूल में अनुवाद हो जाता है। 'ध्वनि' और 'शब्दों' के प्रयोग से पहले मानव ने प्रतीक और चित्र का प्रयोग संचार के लिए किया करते थे। भाषा वास्तविकता में प्रतीक, संकेत, भाव भंगिमा, हाव-भाव और विभिन्न प्रकार के मुद्रा के प्रयोग से शुरू हुई।[2]

ग्राफ़िक उपन्यास का उपयोग उस दुनिया के पुनर्निर्माण में सहायक होता है जो लेखक के मानस पटल पर पहले से ही चित्रित है और जिसे शब्दों में पूर्णतः व्यक्त करने में असमर्थ है। चित्रांकन से अमूर्त विचार अथवा भावना की पुनर्निर्मिति करता है और इन चित्रात्मक स्थितियों का पाठक चाक्षुक अनुभव कर पाता है। यहाँ चित्रकला और शिल्पकला का समागम संवाद के लिए हुआ है। यहाँ मौखिक भाषा और चित्र आपस में इस तरह गुँथे है कि एक को दूसरे से अलग नहीं देख सकते।[3]

मध्य युग की प्रबुद्ध पांडुलिपियों और धार्मिक पुस्तकों में चित्र उपलब्ध थे। उस ज़माने में शिक्षा आसानी से सर्व साधारण को उपलब्ध नहीं थी। अशिक्षित समाज में शिक्षा और धर्म को फ़ैलाने का सबसे आसान तरीका चित्रों के माध्यम से ही संभव था।[4] फ्रांसीसी शासक लुईस चौदहवेंके लिए जो कविता संग्रह लिखा गया था उसमें ईसा मसीह (जीसस) के विभिन्न चित्रों के साथ शब्दों में कवितायें भी लिखी गयी थी। नौवीं शताब्दी में यहूदियों ने भी कहानी के आधार पर चित्र बनाये जो मौखिक और दृश्य में सामंजस्य स्थापित करता है। चर्च में भी चित्रों का उपयोग बाइबल में कहे गए विचारों को समझाने के लिए किया गया है ताकि अशिक्षित जनता में भी धर्म का प्रचार-प्रसार हो सके।

आज भी तख्तियों या कार्डों पर संतो के चित्र और उनके कथन छपे होते हैं। अशिक्षितों के लिए यह आधुनिक बाईबल का स्वरूप है। मध्यकाल के ग्राफ़िक पाठ जो पत्रक पर थे वही आज ग्राफ़िक उपन्यास के रूप अवतरित हुआ है। ग्राफ़िक उपन्यास की शुरुआत पहले कॉमिक स्ट्रीप, उसके बाद कॉमिक बुक से हुआ।[5]

कॉमिक्स की शुरुआत रोडोल्फ टॉपफेर के 'लाइट सटायरिक पिक्चर स्टोरीज' (light satiric picture stories) के साथ सन् 1800 के मध्य में की।[6] वह मुख्यतः कार्टून पैनल था। सर्वप्रथम शब्दों और छवियों के समायोजन से स्वतंत्र कॉमिक बुक टॉपफेरने ही लिखा और कॉमिक्स के पिता के रूप में प्रसिद्ध हुए। कालांतर में नए कलाकारों ने इसी सीमा का अतिक्रमण कर अंतिम परिणति में ग्राफ़िक उपन्यास दिया।

जनसंचार माध्यमों या पत्र पत्रिकाओं में इसकी शुरुआत सन् 1800 के अंतिम दशक में रिचार्ड फेल्टन ऑउटकॉल्ट (Richard Felton Outcault) के 'होगानस एले' (Hogan's Alley) से हुई जो बाद में 'यलो किड' (The Yellow Kid) के शीर्षक से प्रसिद्ध हुआ।[7] ऑउटकॉल्ट (Outcault) का कॉमिक्स एक फ्रेम में बहुत सारे दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है। एक फ्रेम से शुरू हुआ कॉमिक्स बाद में कॉमिक स्ट्रिप बन गया। ये कॉमिक स्ट्रिप समाचार पत्रों में 'फनी पृष्ठ' (The Funny Pages) हास्य पृष्ठ के रूप में अवतरित हुआ। अशिक्षित लोगों के कॉमिक्स की तरफ बढ़ते आकर्षण को देखकर प्रकाशकों में इसे छापने कि एक होड़ सी लग गयी थी।[8]

टोपलर, फेल्टोन और पुलित्ज़र के प्रयास से एक ही फ्रेमयुक्त चित्रों से बना हास्य पृष्ठ, अनुक्रमिक चित्र तक पहुँच गया।अनुक्रमिक कला ने एक कहानी से लेकर कई कहानियाँ एक साथ कहने का अवसर प्रदान किया और आज यही कॉमिक्स का मूल आधार है। निरक्षर पाठको का छवियुक्त पृष्ठ की तरफ आकर्षण और बाजार में अचानक बढ़ती माँग ने इस दिशा में पठनीय मुद्दों पर शोध को वैचारिकता प्रदान की। कॉमिक स्ट्रिप्स के छोटे और बड़े कहानियों के संग्रह के रूप में सन् 1930 के में आया। कॉमिक्स बुक्स की शुरुआत कॉमिक्स संग्रह के रूप में सन् 1934 में 'फेमस फनीज़' शीर्षक से हुआ।

आधुनिक समय के कॉमिक्स बहादुरी, साहसिक, विनोदी, व्यंग्य और सामाजिक विषयों को आधार बनाकर निरंतर लिखे जा रहे हैं। मनुष्य और समाज को व्यापक रूप से प्रभावित करने वाले विषयों को लगातार आधार बनाया जा रहा है। विल आइज़नर के अनुसार ये कथानक विश्व युद्ध से फैली अशांति की प्रतिक्रिया है। युवा वर्ग अपने रोजमर्रा की जिंदगी से हताश और निराश होकर नए तरीके ढूंढ रहा था। कॉमिक्स और ग्राफ़िक नावेल में उन्हें सब कुछ मिला जो एक पाठक को 'सुपर मैन' बनाकर विश्वरक्षक बना देता तो कभी 'टार्जन'
बनाकर जंगली जानवरो के साथ भी रहना सीखा देता है। शुरुआत में कॉमिक्स के कथानक, सुपर हीरो का साहसिक कारनामा होता था जो युवा पाठकों को बहुत ज्यादा तक आकर्षित करता था।[9] विल आइज़नर ने इसी प्रारूप को आगे बढ़ाते हुए सन् 1978 में पहला ग्राफ़िक उपन्यास ' कॉन्ट्रैक्ट विद गॉड' (A Contract With God) का सृजन किया।[10]

कॉमिक्स से लोग भली भांति परिचित थे लेकिन ग्राफ़िक उपन्यास एक भ्रामक अवधारणा थी। यह बहुत ही गंभीर विषयों को कथानक का रूप दे रहा था और साथ ही व्यंग्य का बहुत ही सटीक प्रयोग कर रहा था। हर उम्र और तबके के लोग बहुत तेज़ी से इसकी तरफ आकर्षित होने लगे। इस प्रकार ग्राफ़िक उपन्यास की नई अवधारणा ने जहाँ बाज़ार में बड़ी मजबूती से अपनी जगह बनाई वही शैक्षणिक संस्थानों में लगातार चर्चा का विषय बनने लगा। लगातार बढ़ती लोकप्रियता से ग्राफ़िक उपन्यास को परिभाषा की जरुरत होने लगी और चालीस साल बाद भी इसकी परिभाषा प्रगति पर है।[11] ग्रेचेन स्च्वार्ज़ (Gretchen Schwarz) ग्राफ़िक उपन्यास के विद्वान के अनुसार ग्राफ़िक उपन्यास कॉमिक्स से अधिक लम्बी, उससे अधिक कलात्मक है और असली किताब के रूप में हैं।

कथा मानव जीवन से कभी भी अलग होने वाला अंग है। जब से सभ्यता का विकास हुआ है तब से कथाएँ विभिन्न रूप-स्वरुप में अग्रिम पीढ़ी की मार्गदर्शिका बनी हुई है। श्रुति और द्रैश्यिक परंपरा द्धारा कहानी कहने की परंपरा प्राचीन है। कहानी का लिखित स्वरूप बहुत बाद में आया। शब्दों ने कथाकारों को वर्णन करने की शक्ति दी जिससे साहित्य के विभिन्न रूप अपनी सुषुप्ता से पूर्णतया की ओर बढ़ चले। साहित्य परिवार का हर एक सदस्य चाहे उपन्यास हो, छोटी कहानी, यात्रा वृत्तांत हो, रेखाचित्र, संस्मरण या आत्मकथा सबके अस्तित्व की अपनी ही कहानी है। उसी प्रकार ग्राफ़िक उपन्यास की भी।

कॉमिक्स और ग्राफ़िक उपन्यास की दुनिया में शब्दों और छवियों के बीच सम्बन्ध हमेशा मजबूत रहा है।[12] शब्दों और चित्रों की अवधारणा भारत में हमेशा से ही चली रही है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में श्री राम के अद्वितीय रूप का वर्णन किया है। वे कहते हैं कि सीता जब राम के मनोहारी रूप की एक झलक राजा जनक के पुष्प वाटिका में देखती हैं तब वे उनपर मुग्ध हो जाती हैं। जब उनकी सखियाँ श्री राम के मनोहारी रूप के बारे में जानना चाहती है तब सीता इसे वर्णन करने में अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए कहती हैं, हे सखी, “गिरा अनयन, नयन बिन वाणीअर्थात शब्दों में दृष्टि नहीं होती है और दृष्टि शब्दों से वंचित होती है। यह संक्षिप्त वार्तालाप एक तरह से वैचारिक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है जोमौखिक और लिखित कथाओंके बीच मौजूद है।

विश्व की सभी संस्कृतियों में कहानी कहने और सुनने की परंपरा अनेक रूप में विद्यमान है। कहानी वर्तमान की स्मृतियों में छुपे हुए अतीत का प्रतिबिंब है। कथा वाचन मानव सभ्यता के संचार के सबसे प्राचीन माध्यमों में से एक है जो आदि काल से ही लोक से समाज को समाज से राष्ट्र को जोड़ता है।

कहानीकार अतीत के रहस्यों को विभिन्न माध्यम से श्रोता समाज के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। केवल रेखाओं का ताना बाना, चित्रित पट्टिका, पट्टचित्र, शैलचित्र, गुफा चित्र, भित्तिचित्र, रंगोली या आलेपन आदि अपने मौन संवाद से लोक को आज भी अभिभूत कर रही हैं। भारत में कथा और कथा वाचन की बहुत ही समृद्ध विरासत है। कहानी कहने और सुनाने की कला हमारी संस्कृति, परंपरा और अस्तित्व को परिभाषित करती है।

शब्द जब गौण थे तब भी आकृतियाँ संचार का माध्यम थी और अब जब शब्द मौन हैं तब भी आकृतियों और चित्रों के द्वारा सम्प्रेषण हो रहा है। चित्रांकन स्मृतियों में शेष रह जाता है। इसीलिए ये साक्षी है इतिहास का। भित्तियाँ हो, कैनवास हो, पत्थर हो, स्तूप हो, चैत्य हो या संघाराम या फिर साहित्य हो, संगीत हो, पट्टचित्र हो, चित्रकला हो, या हो रंगोली, हर तरफ बीज बनकर हर तरफ उभरे है। चित्र का कहानी से और कहानी का लोक से जुड़ाव ने कभी उसे सीमित नहीं होने दिया और ये हर काल में में प्रतिनिधि रहे हैं

भारतीय कहानी कहने की परंपरा चित्रित पट्टिका, पट्टचित्र, शैलचित्र, गुफा चित्र, भित्तिचित्र, रंगोली या आलेपन में निहित हैं। इसका साहित्यिक प्रमाण पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में दूसरी शताब्दी . पू. से मिलता है। ब्राह्मण और जैन साहित्य में पट्टचित्र का प्रयोजन लोगों को शिक्षित, सुसंस्कृत और मनोरंजन के लिए किया जाता था।

लौकिक संस्कृत साहित्य में यमपट्ट के कई सन्दर्भ हैं।[13] पट्टचित्र आज भी भारत के अनेक भागो में कहानी परंपरा का हिस्सा है जिसमे राजस्थान का फड़ चित्र, गुजरात का गरोडा चित्र, बिहार का मिथिला चित्र, .बंगाल का कालीघाट चित्र, उड़ीसा का पट्टचित्र, आँध्रप्रदेश का कलमकारी आदि महत्वपूर्ण हैं। प्राचीनतम पट्टचित्र के सन्दर्भ प्रारंभिक जैन साहित्य में मिलते हैं। मौखिक परंपरा में शब्द, चित्र के सहचर है। साहित्यिक परंपरा में शब्द और चित्र पहली बार ताम्र पत्र पर एक साथ आये।

राजा अकबर के समय की पुस्तक हमजा नामह में भी चित्रों के साथ कहानी कहने की परम्परा को देखा जा सकता है। यह इतिहास और स्थानीय किवंदती का काल्पनिक मिश्रण था। अकबर की सब प्रिय पुस्तकों में से एक था और और इसे पूरा करने में 15 वर्ष लगे थे। यह पैगम्बर मोहम्मद के चाचाहमीर नामज़ाके साहसिक कार्यों का संकलन था। हर पृष्ठ के ऊपर चित्र था और नीचे वाले खाली पृष्ठ पर शब्द लिखे हुए थे। चित्रित पृष्ठ के पीछे वाले पृष्ठ में शब्द लिखा था। अकबर ने पंचतंत्र का पर्सियन रूपांतरअनवर सोहैलीनाम से करवाया था। दोनों में ही चित्र और उसका वर्णन करते हुए शब्द थे जो आज के ग्राफ़िक उपन्यास के समकक्ष हैं। [14]

CNBDT[15] (The French national graphic novel center) के अनुसार ग्राफ़िक उपन्यास की शुरुआत रुडोल्फ टॉपफेर (Rodolphe Töpffer) के (L’histoire de Monsieur Vieux Bois) के प्रकाशन के साथ ही सन् 1827 में हुई।[16] बेल्जियम के CBBD के अनुसार (फ्रांस के CNBDI के समकक्ष) ग्राफ़िक उपन्यास अमेरिकन रिचार्ड ऑउटकॉल्ट (Richard Felton Outcault) के The yellow kid and new phonograph’ प्रकाशन के साथ ही सन् 1896 शुरू हुआ। इस बात पर संदेह नहीं कि ग्राफ़िक उपन्यास की शुरुआत पश्चिमी देशों से हुई है। पूरी उन्नीसवीं सदी और अधिकांशतः बीसवीं सदी तक ग्राफ़िक उपन्यास साहित्य परिवार के छोटे सदस्य के रूप में था। हाल ही के कुछ वर्षों में सभी कलाओं के अंतर्गत इसे नवम कला’ (Ninth Art) के रूप में स्वीकार किया गया है। कोई भी कला जिसे दो सौ साल भी पूरे नहीं हुए हैं उसे ऐसी ख्याति मिलना बहुत बड़ी बात है जब संगीत, नृत्य, चित्रकला और साहित्य सभ्यता के प्रारम्भ से मनुष्य के सहचर बने हुए हैं।

ग्राफ़िक नावेलशब्द का पहली बार प्रयोग रिचार्ड काइल (Richard Kyle) के द्धारा किया गया था। उन्होंने अमतीउर प्रेस एसोसिएशन’ (Amateur Press Association) के सभी सदस्यों को सन् 1964 लिखे गए एक पत्र में लम्बी कॉमिक्स के लिए इस शब्द का प्रयोग किया था। आन्य देजिओ’ (Agnes Deyzieux)[17] के अनुसार कॉमिक एक ही चरित्र और कार्टून का बार बार प्रयोग करता है जिससे कहानी कहने में एक अवरोध सा उत्पन्न होता है। हर बार एक जैसा नायक, खलनायक, चरित्र और कथानक आदि से सभी भली-भांति परिचित थे। मानस पटल सब कुछ पहले ही घटित हो चूका जैसा प्रतीत होने लगा था। संपादक अब बच्चों के साथ-साथ वयस्कों को भी इसमें शामिल करना चाहते थे। इसीलिए पहले से ज्यादा साहित्यिक, गंभीर और तत्कालीन ज्वलंत विषयों को कथानक बनाकर एक नए प्रारूप में इस अनुक्रमिक कला को पेश किया। शुरू में यह सिर्फ श्वेत और श्याम रंगावरण में था लेकिन सन् 1970 के बाद रंगीन पृष्ठों भी आने लगा।

उपन्यास के दृष्टिकोण को पूरा ध्यान रखकर साहित्यिक गुणवत्ता और बौद्धिक दक्षता का समावेश किया गया। इसके अतिरिक्त ग्राफ़िक उपन्यास में कॉमिक्स की अपेक्षा कम रंगीन, परिपक्व विषय और शीर्षक तथा सख़्त और अधिक पृष्ठ लिए हुए था। कॉमिक्स के सुपर हीरो को भी नायक और कथानक बनाकर ग्राफ़िक उपन्यास में प्रयोग किया गया है। बैटमैन शृंखला का डार्क नाईट (The Dark Night) सर्वोत्तम उदहारण है।

ग्राफ़िक उपन्यास एक प्रारूप है कोई शैली नहीं।[18] इसे नई पहचान दिलाने का मकसद कॉमिक्स को साहित्य के नजदीक लाना था। विशेष रूप से उपन्यास के निकट। इसके अलावा बाल साहित्य की भारी विरासत को कॉमिक्स से बाहर लाकर पाठकों की वैद्यता भी प्राप्त करना था।[19] इस प्रकार जब 'कॉमिक बुक इंडस्ट्री' ने अधिकाधिक पुस्तकों का प्रकाशन शुरू किया तब वो बच्चों से ज्यादा प्रौढ़ के लिए था। इन कॉमिक्स के कथानक बहुत ही सुदृढ़ थे। उनके नायक महानायक (Super Hero) होकर सामाजिक और पारिस्थितिक स्थितियां थी। इसी समय 'ग्राफ़िक नावेल' शब्द का प्रयोग इसे नयी पहचान देने के लिए किया गया। ग्राफ़िक शब्द का प्रयोग कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। यह हमेशा ही कॉमिक्स के साथ मौजूद रहा है लेकिन प्रकाशन उद्योग ने हमेशा ही कॉमिक्स की ही संज्ञा दी, जब तक ग्राफ़िक नावेल शब्द का प्रयोग नहीं किया गया।

जहाँ तक ग्राफ़िक उपन्यास की भाषा का प्रश्न है यह किसी अन्य साहित्यिक माध्यम की तरह ही होता है। इसमें कहानी, कथानक और भाषा के कई स्तर होते हैं। बाल कहानी से किशोर और किशोर से लेकर वयस्क तक, सबमें भाषा अलग-अलग होती है। प्रत्येक श्रेणी में एक प्रकार की विशेषता होती है जो एक दूसरे से दोनों को अलग करती है। उदाहरण के लिए स्टर्ज बोत्ज़ाकिस[20] जो ग्राफ़िक उपन्यास को शिक्षा के पाठ्यक्रम के रूप में उपयोग करने के पक्षधर हैंवो डिम शूम वारियर्स’ (Wo Dim Sum Warriors)[21] औरकोलिन गोहऔरयेन येन वो’ (Colin Goh and Yen Yen woo)[22] आदि ग्राफ़िक उपन्यास को बाल साहित्य के लिए सर्वोत्तम मानते हैं क्योंकि यह हास्य, कलाबाजी, जासूसी और साज़िश का बेजोड़ मिश्रण है।

TEOTFWएक प्रकार का ग्राफ़िक उपन्यास[23] जिसे वे निश्चित रूप से वयस्क के लिए मानते हैं क्योंकि इसमें कठिन शब्दावली और ग्राफ़िक हिंसा का अत्यधिक प्रयोग किया गया है। इस प्रकार बहुत सारी समानताएं विभिन्न प्रकार के ग्राफ़िक उपन्यास में विभिन्न प्रकार के पाठकों के लिए मिल जाती हैं, जैसे श्याम और श्वेत या रंगीन चित्रांकन, यथार्थवादी या काल्पनिक मानवीय चरित्र, वैज्ञानिक कथानक या रहस्यवादी तत्त्व आदि।

मुख्य रूप से भाषा और कहानी की स्तर और गंभीरता से ही ग्राफ़िक उपन्यास में अंतर देखा जा सकता है। इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि विभिन्न प्रकार की अवधारणा जो ग्राफ़िक उपन्यास के विकास में सहयोग करती हैं प्रायः एक जैसी ही दिखती है और इसे भाषाई, विषय और कथानक के आधार पर ही अलग किया जा सकता है।

ग्राफ़िक उपन्यास और कॉमिक्स के अनुवाद

कॉमिक्स की शुरुआत ही व्यंग्य के लिए हुई थी। समाज में हो रही तथाकथित तत्कालीन घटनाओं को बहुत ही साधारण तरीके से असरदार व्यंग्य करना ही इसका मुख्य उद्देश्य था। हर एक संस्कृति का अपना ही व्यंग्य का तरीका होता है। यह एक दूसरे संस्कृति से बहुत ही अलग होते हैं। इनका समतुल्य किसी दूसरी संस्कृति में ढूँढना बड़ा मुश्किल होता है और यही अनुवादक के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। ग्राफ़िक उपन्यास के कथानक की भौतिक संस्कृति, सामाजिक संरचना, विचारधारा, मूल्यों का विचलन आदि कारक में ही कही कही व्यंग्य छुपा होता है और अनुदित पाठ में उसका समतुल्य नहीं होने के कारण पाठक उसे नहीं पकड़ पाता है। इसके अलावा कॉमिक्स के वाक्य कभी-कभी अपूर्ण होते हैं और छवियों के योग से पूर्ण होते हैं। इन्ही सब कारणों से कॉमिक्स का अनुवाद बहुत मुश्किल होता है।[24]

ग्राफ़िक उपन्यास और कॉमिक्स के अनुवाद में तकनीकी समस्याओं में से एक सीमित जगह जो कोष्ठक के अंदर ही अनूदित वाक्य को लिखना पड़ता है। विस्मयबोधक शब्दआह’, ‘ओह’, ‘धिक्’, ‘छिःजोदुःख’, ‘प्रसन्नता’, ‘घृणा’, ‘विस्मयआदि के बोधक है उनका अनुवाद अत्यंत कठिन है। अगर ये शब्द चित्रित हों तो और भी मुश्किलें आती हैं। उचित नाम, उपनाम और नव निर्मित शब्द या नियोलिज्म, ध्वनि सूचक (Onomatopoeic) जैसे कि बिल्ली कीम्याऊंया कबूतर कीगुटरगूंआदि का अनुवाद बहुत ही सावधानी से किया जाना चाहिए।

संदर्भ :
[1] “Graphic novel synthesize the language of cinema, the sensibilities of contemporary literature, and the appeal of mass media in a format that calls attention to artistry and technique” McCloud, S, Understanding comics: The invisible art. New York: Harper Perennial, 1993
[2] http://www JSTOR.org/stable/23025030
[3] “The graphic novel creates a new medium for literacy because it fuses art and text, the visual and the verbal (Bucher & Manning, 2004). Both the art and the text must be read”.
  Bucher, K. T. & Manning, M. L. (2004). Bringing graphic novels into a school’s curriculum  (Electronic version). The Clearing House, 2004 pp.67-72.
  Bucher, K. T. & Manning, M. L. (2004). Bringing graphic novels into a school’s curriculum  (Electronic version). The Clearing House, 2004 pp.67-72.
[4] Chute, Hillary and Marianne Dekoven Introduction: Graphic Narrative. MFS: Modern
Fiction Studies 52.4, 2006  pp.767-782.
[5] Enberg. G, The Booklist interview, Gene Luen Yang.Booklist, 2007, pp.75.
[6] http://www.upress.state.ms.us/books/869
[7] Olson, Richard D (2007)Truth About the Creation of the Yellow Kid. 17 October. (Retrieved on neponset.com.)
[8] Barker, Kenneth, The Comic Series of Joseph Pulitzer's New York. Sunday World, 1995, pp. 26–32.
[9] Eisner, W. Comics and sequential art, Paramus, NJ: Poorhouse Press. 1985.
[10]Eisner. Will, A Contract with God and Other Tenement Stories. New York: DC Comics. 1978
[11] Eisner. Will, Graphic Storytellig and Visual Narrative: Principles and Practices from the Legendary Cartoonist. New York: W.W. Norton & Company. 2008
[12] http://www.jstor.org/stable/23025030
[13] Coomaraswamy, A.K, An Early Passage on Indian Painting. Figures of Speech or Figures of Thought. New Delhi, 1981 pp. 210
[14] http://www.idc.iitb.ac.in/pdf/Comics_and_Graphic_Novels.pdf
[15] Centre National de la Bande Dessinée et de l’Image, Angoulême cedex, France.
[16] Miller Ann, Reading bande dessinée: Critical Approaches to French language Comic Strip, Intellect, Bristol, UK/ Chicago, USA, 2007 pp.15
[17] Dezieux Agnès, Les grands courants de la bande dessinée, Le français aujourd'hui, 2008 pp.63.
[18] https://scholar.lib.vt.edu/ejournals/ALAN/v32n2/fletcherspear.pdf
[19] Dezieux Agnès, Les grands courants de la bande dessinée, Le français aujourd'hui, 2008 pp.62
[20] http://graphicnovelresources.blogspot.in/
[21] http://colinandyenyen.com/
[22] Ibid.
[23] http://graphicnovelresources.blogspot.in/2013/12/teotfw.html
[24] Raphaelson-West, Debra S. “On the Feasibility and Strategies of Translating Humor”. Meta34:1, 1989. http://www.erudit.org/revue/meta/1989/v34/n1/ (12/10/2003) 


राजीव रंजन
शोधार्थी, भारतीय भाषा केंद्र, जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
सम्पर्क : rajeevmsb@gmail.com, 9811976738

  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-45, अक्टूबर-दिसम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव चित्रांकन : कमल कुमार मीणा (अलवर)

1 टिप्पणियाँ

  1. शिक्षा के क्षेत्र में ग्राफिक नॉवेल की उपादेयता को सिद्ध करता सार्थक लेख | बधाई |

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने