शोध आलेख : काशी से बनारस : धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से / डॉ. शशिकला

काशी से बनारस : धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से
डॉ. शशिकला

शोध सार : विश्व की प्राचीन नगरी वाराणसी प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा का केन्द्र रही है। भारतवर्ष की आध्यात्मिक ज्योति काशी से होकर गुजरती है, यहाँ के आध्यात्मिक वातावरण में भक्ति, संगीत, कला, साहित्य, संस्कृति, शिल्प, शिक्षा इत्यादि का अद्भुत संयोग है। यह नगरी आज भी भारतीय संस्कृति का सजीव केन्द्र है क्योंकि इसने संस्कृति के विभिन्‍न रंगों को अपने आँचल में समाहित कर रखा है। इसकी ख्याति खान-पान-गान और श्मशान तक फैली हुई है। यहीं नहीं यह भारत के सबसे घनी आबादी वाले शहरों में से एक है, यहाँ की गंगा आरतीदेखने प्रतिदिन हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं, यह आस-पास के जिलों का व्यावसायिक केन्द्र भी है। इस नगरी में सम्मोहन है, पौराणिक मान्यता है कि काशी शिव के त्रिशूल पर स्थित है और भगवान शिव ने इस नगरी को 5000 वर्ष पूर्व गंगा के साथ स्थापित किया था। काशी समुद्र है, यहाँ गंगा-जमुनी तहजीब रूपी समस्त धाराएं आकर मिलती हैं

बीज शब्द : काशी, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, संस्कृति, पर्यटक, गंगा, विश्वनाथ।

मूल आलेख : काशी का अर्थ है- प्रकाश का स्रोत या प्रकाश स्तम्भ इस नगर के अस्तित्व में आनें का कोई निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं है। इसकी पुरातनता के बारे में कहा गया है कि- “जब एथेंस की कल्पना भी नहीं की गई थी, तब भी काशी थी। जब रोम का कोई अस्तित्व नहीं था, तब भी काशी थी। जब इजिप्ट नहीं था, तब भी काशी थी।1  यह शहर अपनी सांस्कृतिक सभ्यता, संस्कृति एवं पौराणिक महत्व के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। भीड़-भाड़ वाली संकरी गलियां और गलियों में स्थित हर कदम पर धार्मिक आस्था से जुड़े सैकड़ों छोटे-बड़े मंदिर काशी को सबसे अलग और लोकप्रिय बनाते हैं। ब्रह्मांडीय शरीर और काशी का गहरा सम्बन्ध है, क्योंकि मनुष्य शरीर में जितनी नाड़ियां हैं, काशी में छोटे-बड़े उतने ही मंदिर हैं- “इस शहर में 72,000 मंदिर थे और ये संख्या वही है, जो हमारे शरीर में नाड़ियों की होती हैं। इस शहर की रचना एक विशाल मानव शरीर की अभिव्यक्ति है, जिसके जरिये ब्रह्मांडीय शरीर के साथ संपर्क किया जा सके। इसी वजह से ये परंपरा बनी थी कि अगर आप काशी चले जाते हैं, तो आप वहीं के हो जाते हैं।2

प्राचीन समय में काशी, वाराणसी की राजधानी थी, जो आज एक दूसरे का पर्याय बन गये हैं।बौद्ध साहित्य में वाराणसी नगर को प्राचीन काशी राज का केन्द्र माना गया है, क्योंकि काशी राज्य के फैलाव की सीमाओं को वाराणसी नगर से ही मापा गया है जातक कथा विवरण में वाराणसी के काशीराज सीमा का माप मिलता है 3   वाराणसी विश्व के प्राचीन नगरों में धर्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से सर्वप्रमुख होने के साथ ही प्राचीन नगरों के समान ही नदी किनारे स्थित है। गंगा नदी के किनारे बसा यह शहर अपने घाटों मंदिरों एवं महलों की श्रृंखला के लिए प्रसिद्ध है। यह नगरी कवि, लेखक, भारतीय दार्शनिक एवं संगीतकारों की जननी भी मानी जाती है। धर्म, दर्शन, शिक्षा, संगीत का केन्द्र होने के कारण पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करती है। यहाँ पर घाटों की संख्या लगभग 88 है। इन घाटों पर बने पत्थरों की ऊँची सीढ़ियों से गंगा का नजारा, मंदिर से निकलती घंटों की मोहक ध्वनि, गंगा और घाटों पर उदित होते हुए सूर्य की पड़ती सुनहली किरणें तथा मंदिरों में होने वाले मंत्रों के उच्चारण अनायास ही पर्यटकों को भक्ति के सागर में गोते लगाने के लिए विवश करती है।

हिन्दू धर्म में मान्यता है कि गंगा मोक्ष प्रदायिनी है और काशी की भूमि पर मरने से आवागमन के बन्धन से मुक्ति मिलती है, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए दोहरा लाभ है- एक तरफ उन्हें मन की शान्ति और परम आनन्द की प्राप्ति होती है, तो दूसरी ओर यह कला और शिल्प का केन्द्र भी है। गंगा के विषय में व्योमेश शुक्ल लिखते हैं – “बनारस का जादू हैं गंगा। बनारस में से गंगा को घटाकर देखिये, शिवजी के साथ दूसरे देवता भी यहाँ से चले जायेंगे और रेत-भर बची रह जाएगी।4   प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट का अपना ऐतिहासिक महत्व है। द्वितीय शती 0 उत्तर भारतीय नागवंशी राजा के बारे में प्रसिद्ध है-“इस वंश के राजा शिव के परम उपासक थे तथा युद्ध में विजय प्राप्त करने के पश्चात्‌ ये अपने आराध्यदेव शिव की निवासस्थली काशी में अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान करते थे। यह अनुष्ठान गंगा तट पर ही संपन्न होता था। गंगा तट के जिस भाग पर अश्वमेध यज्ञ किया जाता था उसे ही कालान्तर में दशाश्वमेधघाट कहा जाने लगा। पुराणों के अनुसार इसका प्राचीन नाम रुद्रसर था। कालान्तर में ब्रह्मा द्वारा दस अश्वमेध यज्ञों के करने से ही इसका नाम दशाश्वमेध हुआ है।5  निश्चित रूप से यह प्राचीन यज्ञ परम्परा ही आधुनिक युग में विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती का प्रेरणा स्रोत है।

प्राचीन गंगा नदी का महत्वपूर्ण अस्सी घाट जिसका नामकरण असी नदी पर किया गया है। यहाँ के सुन्दर वातावरण में प्रतिदिन सुबहे- बनारस, योगाभ्यास एवं गंगा आरती के माध्यम से अलौकिक आभा का निर्माण होता है, इसके अलावा देशी एवं विदेशी पर्यटकों के लिए सितम्बर महीने से सायबेरियन पक्षियों का आगमन विशेष आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों की अड़ी भी है- यह अस्सी घाट इसके धार्मिक महत्व के विषय में डॉ० हरिशंकर लिखते हैं- “घाट पर दैनिक स्नानार्थियों की संख्या अधिक है किन्तु चैत्र (मार्च / अप्रैल) एवं माघ (जनवरी / फरवरी) महीने में स्नान का सर्वाधिक महत्व माना गया है। सूर्य-चन्द्र ग्रहण, गंगादशहरा, प्रबोधिनी एकादशी, मकर संकान्ति, मौनी अमावस्या जैसे पर्वों पर स्नानार्थियों की संख्या अधिक होती है 6

विश्व के ऐतिहासिक तीर्थस्थलों में काशी विश्वनाथ मंदिर सबसे प्राचीन एवं सम्मानित तीर्थ स्थलों में से एक है, जो दुनिया भर से पर्यटकों एवं तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। भले ही यह मंदिर हिन्दू देवता शिव को समर्पित है, किन्तु गंगा-जमुनी तहजीब को समेटे हुए बनारस का यह मंदिर सभी धर्मों के पर्यटकों/अनुयायियों के लिए शिव का द्वार खुला रहता है। मान्यता है कि बारह ज्योतिर्लिंगों में से काशी विश्वनाथ में भगवान शिव का वास्तविक स्वरूप है। मंदिर का गुंबद स्वर्णजड़ित होने के कारण इसे बनारस का स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है। काशी परंपरा एवं आधुनिकता का सम्मिलित रूप है। परंपरा के रक्षक राजा दिवोदास थे तो आधुनिकता के भगवान शिव। वैद्यनाथ सरस्वती की मानना है कि- “काशी हमारी परा संस्कृति का परिचायक है तो बनारस हमारी अपरा संस्कृति का। इसी से काशी के राजा का अभिवादन यहाँ के लोगहर हर महादेवकी ध्वनि से करते हैं। काशी के परा संस्कृति के राजा दिवोदास थे।7 कोरोना काल के दौरान अन्य पर्यटक स्थल के समान बनारस में भी जहाँ पर्यटकों की संख्या शून्य पर चली गई थी वहीं विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के पश्चात्‌ पर्यटकों की संख्या में असिमित वृद्धि दर्ज की गई, अर्थात्‌ 2022 के पहले पर्यटकों की वार्षिक औसत संख्या लगभग पचास लाख तक रहती थी, जो अब बढ़कर अनुमानत: डेढ़ से दो करोड़  हो गई है, जिससे बनारस के व्यवसाय में भी रिकार्ड वृद्धि दर्ज की गई है वाराणसी के कमिश्नर दीपक अग्रवाल का कहना है- “विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के बाद पर्यटन, होटल, ट्रांसपोर्ट व्यवसाय में काफी उछाल आया है। देश, दुनिया से लोग काशी विश्वनाथ धाम आना चाहते हैं।8  

मान्यता है कि काशी में देवता निवास करतें हैं और इसका सीधा संबन्ध स्वर्गलाक से है इसलिए यहाँ हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को देव-दीपावली मनायी जाती है। इसे मनाने के लिए दुनिया भर से अत्यधिक मात्रा में पर्यटक आते हैं। इस पवित्र दिन बनारस के आस-पास के जिलों से गंगा में डुबकी लगाने वालों का उत्साह देखते ही बनता है। इस पर्व की खुबसूरती देखने के लिए कई महीने पहले से ही होटलों और नावों को आरक्षित कर लिया जाता है, पूरी गंगा जैसे नावों और मनुष्यों का महासमुद्र बन जाती हैं। भादों महीने (अगस्त-सितम्बर) के षष्ठी को अस्सी के भदैनी स्थित लोलार्क कुंड पर लक्खा मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे सूर्य षष्ठी या लोलार्क षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है, भगवान सूर्य का पर्व लोलार्क छठ अत्यन्त धूमधाम से मनाया जाता है, हजारों की संख्या में श्रद्धालु आस्था के इस पर्व पर कुंड में डुबकी लगाते हैं, मान्यता है कि कुंड में स्नान करने से संतानकामिनी स्त्रियों की कामना पूरी होती है। इस मन्दिर की सजावट अहिल्याबाई होल्कर ने कीमती पत्थरों से करवाई है। इसके ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व के विषय में कहा गया है- “देवासुर संग्राम के दौरान भगवान सूर्य के रथ का पहिया इस जगह पर गिरा था, जिसके बाद यहां पर कुंड का निर्माण हुआ, आज भी काशी में उदय होने वाले सूर्य की पहली किरण इस कुंड में पड़ती है।9  धार्मिक आस्था की नगरी काशी, जहाँ आकर सभी के मन को विश्राम मिलता है। गंगा के तट पर बसी काशी का स्वरूप अर्द्धचन्द्राकार है, इसी अर्द्धचन्द्र को भगवान शिव अपने मस्तक पर विराजते हैं और ऐसी मान्यता है कि पंचक्रोश का आकार भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग है। बनारस के पंचक्रोशी यात्रा का आरम्भ प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट पर स्थित मणिकर्णिका कुंड से होता है, इस कुंड को उपख्यानों में भी वर्णित किया गया है। यात्री, यात्रा से पहले कुंड में डुबकी लगाकर अंजुली में पानी लेकर यात्रा पूरा करने का संकल्प लेता है। इसके महत्व के विषय में कहा गया है- “पंचक्रोशी यात्रा काशी की सभी यात्राओं में शीर्षस्थ है यह यात्रा एक से पांच दिन में पूरी करने की परम्परा है। कोई-कोई सात दिन भी लगाते हैं।10

वाराणसी से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित सारनाथ शांत एवं आध्यात्मिक स्थल है, जो कई बौद्ध स्तूप, संग्रहालय प्राचीन मंदिरों के साथ ऐतिहासिक स्थल है। यह बौद्धों का प्रमुख तीर्थ स्थान है, जहाँ गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। महात्मा बुद्ध के जीवनकाल के महत्वपूर्ण पक्षों का साक्षी होने के कारण यह देशी एवं विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इस क्षेत्र को अन्तर्राष्टीय सुविधाओं से जोड़े जाने के लिए सरकार ने 100 करोड़ के लागत से विकास कार्य कराने के लिए तत्पर है, इसी क्रम में यह भी प्रस्तावित किया गया है कि यहाँ पर बौद्ध एवं जैन धर्म पर आधारित आध्यात्मिक पुस्तकालय भी बनाया जायेगा।11   महात्मा बुद्ध के जीवन के ऐतिहासिक  पक्षों से परिचित कराने के लिए पर्यटन विभाग ने लाइट एंड साउंड शो प्रारम्भ किया गया है, जो पर्यटकों के उत्साह का केंद्र है।

युनेस्को की विश्व सांस्कृतिक विरासत में शामिल रामनगर की रामलीला 31 दिनों तक चलती है। अनन्त चतुर्दशी से प्रारम्भ होने वाले इस रामलीला की शुरूवात गोस्वामी तुलसीदास और मेघाभगत ने तुलसीघाट पर 1590 में की थी, जो बाद में रामनगर में स्थापित हो गईं। इसके धार्मिक और सामाजिक महत्व के बारे में कहा गया है- “उस समय लीला का धार्मिक महत्व तो था ही, सामाजिक महत्व भी कम नहीं था। अश्विन में काशी में पूर्ण चहल-पहल रहती थी। विजयदशमी हिन्दुओं का बहुत बड़ा त्यौहार है। इस अवसर पर भारत के कोने-कोने से यात्री आते थे जिसमें साधु, सन्त, गृहस्थ, राजा, महाराजा एवं अमीर-गरीब सभी वर्ग के लोग रहते थे। उन दिनों गोस्वामी जी का दर्शन बहुत बड़ी चीज समझी जाती थी।12

गंगा विलास क्रूज  वाराणसी के पर्यटन में चार चाँद लगाने का कार्य करेगा। 13 जनवरी 2023 से प्रथम क्रूज  यात्रा डिब्रूगढ़ के लिए प्रारम्भ की गई जो दुनिया का सबसे लंबा रिवर क्रूज है। आने वाले समय में इस क्रूज  से व्यापार एवं पर्यटन दोनों को बढ़ावा मिलेगा और पर्यटकों को-“हिन्दुस्तान की धर्म, कला, संस्कृति, पर्यावरण, नदियों और समृद्ध खानपान से रूबरू हाने का अवसर मिलेगा।13  भारत विश्व पर्यटन के क्षेत्र में बहुत तेजी से उभर रहा है, जिसमें बनारस का महत्वपूर्ण योगदान है। हॉट एयर बैलून पर्यटन का ऐसा माध्यम है जो रोमांच के साथ-साथ देशी-विदेशी पर्यटकों को खूब आकर्षित भी कर रहा है। काशी की बनावट और सुन्दर घाटों के दृश्य का आनन्द लेना और गंगा के ऊपर से गुजरना लोगों को बेहतरीन अनुभव प्रदान कर रहा है। आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध काशी ने अपने पर्यटकों के लिए एक नया प्रयोग किया है-टेंट सिटी का निर्माण करके। गंगा नदी के किनारे बसाई गई यह सिटी बनारस की समृद्ध संस्कृति एवं परंपरा का अनुभव कराने, गंगा दर्शन एवं गंगा आरती को दिखाने तथा आध्यात्मिकता के रस में सराबोर करने के लिए पर्यटकों को आकर्षित करेगा।

यही नहीं काशी विश्वनाथ धाम की प्रसिद्धि के साथ वाराणसी से लगभग 30 किलोमीटर दूर गाजीपुर के कैथी गांव के पास स्थित मारकंडेय महादेव मंदिर भी धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मान्यता है कि यहाँ आनें वाले भक्तों की मनोकामना की पूर्ति होती है। महाशिवरात्रि के दिन यहाँ लाखों की संख्या में पर्यटक एवं श्रद्धालु आते हैं, गंगा एवं गोमती का संगम विशेष आकर्षण का केन्द्र है। उमरहा में स्थित स्वर्वेद महामन्दिर आधुनिक वास्तुकला और नक्काशी के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। यह इतना विशालकाय है कि इसमें एक साथ 20 हजार लोग बैठकर मेडिटेशन कर सकते हैं। निश्चित रूप से आने वाले समय में पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होगा।

 शहर के दक्षिण दिशा में स्थित शूलटंकेश्वर मंदिर को ऋषि-मुनियों ने स्थापित किया है, यहाँ आने वाले भक्तों के कष्ट दूर होते हैं। पौराणिक मान्यता है कि गंगा जब अवतरित हुई और रौद्र रूप धारण कर काशी में प्रवेश करने लगीं तो भगवान शिव ने दक्षिण में त्रिशूल फेंककर उन्हें रोक दिया और उनसे वचन लिया कि वह काशी का स्पर्श करते हुए सदा प्रवाहित होंगी और तब अपना त्रिशूल वापस लिया था। धार्मिक एवं पर्यटन की दृष्टि से यहाँ का प्राकृतिक वातावरण भी शोभनीय है। बनारस से लगा हुआ चुनार का किला जिसे देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास चन्द्रकान्ता में चुनारगढ़ के नाम से जाना जाता है, अपने अद्भुत वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध, इस किले का ऐतिहासिक महत्व है। किले से सटा दुर्गा मन्दिर हिन्दू शक्ति का केन्द्र था, हिन्दू काल के भवनों के अवशेष अभी भी इस किले में सुरक्षित है। वाराणसी की सीमा से लगा मिर्जापुर जो विन्ध्य पर्वत के लिए प्रसिद्ध है, उसी विन्ध्य पर्वत पर स्थित सिद्धपीठ विन्ध्यवासिनी जो मणिद्दीप नाम से विख्यात हैं। यह मान्यता है किमां विन्ध्यवासिनी सशरीर यहाँ निवास करती हैं, यह संसार का एक मात्र ऐसा स्थल है जहाँ मां सत, रज, तम गुणों से युक्त महाकाली, महालक्ष्मी और अष्टभुजा तीनों रूपों में एक साथ विराजमान हैं, आदिकाल से ऋषि- मुनियों की तपस्थली रही है।14  इस मंदिर में दर्शन के लिए सैकड़ों भक्त / पर्यटक प्रतिदिन आते हैं। विन्ध्य कॉरिडोर परियोजना के पूर्ण होने पर यह बनारस के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में शामिल हो जायेगा।

धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से वाराणसी का महत्व सदियों से रहा है, यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए बाबा विश्वनाथ का दर्शन, गंगा का किनारा, देव दीपावली, सारनाथ, पंचक्रोशी यात्रा के साथ साथ बाबा कालभैरव का दर्शन, मानस मंदिर, संकट मोचन, दुर्गा मंदिर, बनारसी पान, बनारस की गलियां, बनारसी साड़ी, यहाँ का शिल्प उद्योग, गंगा आरती तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय भी आकर्षण का केन्द्र रहा है। बनारस की सीमा से लगे चन्दौली, सोनभद्र एवं मिर्जापुर जनपद अपने प्राकृतिक सौन्दर्य, पहाड़ों, दरी एवं झरनों से पर्यटकों को लुभाते हैं तो भदोही विश्वप्रसिद्ध कालीन के लिए जाना जाता है। बनारस आने वाले पर्यटकों के भ्रमण से केवल बनारस ही नहीं अपितु आस-पास के जनपद भी आर्थिक लाभ की दृष्टि से आसमान छू रहे हैं। इसके अलावा रुद्राक्ष कन्वेंशन सेन्टर ने बनारस के पर्यटन में चार चाँद लगा दिया है।

यह सच है कि बीते कुछ वर्षों में बनारस की शक्ल में तेजी से परिवर्तन हुआ है। धर्म स्थलों के विकास एवं जीर्णोद्धार के कारण पर्यटन में लगातार वृद्धि हुई है। विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण के पश्चात्‌ तो बनारस की रूप-रेखा ही बदल गई, जिससे पर्यटकों की संख्या में कई गुणा बढ़ोत्तरी हुई है, किन्तु इसका विपरीत प्रभाव भी पड़ा।बीते दो दशकों में बनारस की शक्ल तेज़ी से बदली है। गंगा घाटों का होटलीकरण हुआ है। नगर की स्काइलाइन ख़तरे में है।15   चूँकि बनारस सांस्कृतिक नगरी है, गलियों का शहर है, इसका विस्तार आसानी से नहीं किया जा सकता और अचानक आयी पर्यटकों की बाढ़ से काशी की जनता कहीं भीषण ट्रैफिक से जूझ रही है तो कहीं प्रदूषण से। फिर भी मस्तमौला काशी, कभी सोने वाली काशी अपने अल्प विस्तार में सबको शरण देती यहाँ आने वाला कभी निराश नहीं होता है।

संदर्भ :
1 - जागरण.कॉम, 13 दिसम्बर 2022
2 -आग और पानी: व्योमेश शुक्ल, रूख पब्लिकेशन प्रा0 लि0, नई दिल्ली, पृ0 17
3 -आदिकाशी से वाराणसी तक-विदुला जायसवाल, आर्यन बुक इन्टरनेशनल, नई दिल्ली, पृ0 57
4 -जागरण.कॉम, 13  दिसम्बर 2022
5 -काशी के घाट कलात्मक एवं सांस्कृतिक अध्ययन-डॉ0 हरिशंकर विश्वविद्यालय प्रकाशन,
वाराणसी, पृ0 5
6 -काशी के घाट कलात्मक एवं सांस्कृतिक अध्ययन-डॉ0 हरिशंकर, विश्वविद्यालय प्रकाशन,
वाराणसी, पृ0 38
7 -भोग-मोक्ष समभाव काशी का सामाजिक-सांस्कृतिक स्वरूप-वैद्यनाथ सरस्वती, डी0 के0
प्रिंटवर्ल्ड प्रा0 लि0, नई दिल्‍ली, पृ0 7
8 - live vns 18 aug 2022
9 - smart.livehindustan.com 18th Jul 2021
10 -भारत के सांस्कृतिक केन्द्र काशी-वाराणसी-वेद प्रकाश सोनी, अक्षरमाला साहित्य संस्थान, दिल्ली, पृ0 163
11  - अमर उजाला 28 जून 2018
12 - भोग-मोक्ष समभाव काशी का सामाजिक-सांस्कृतिक स्वरूप-वैद्यनाथ सरस्वती, डी0 के0
प्रिंटवर्ल्ड प्रा0 लि0 नई दिल्‍ली, पृ० 272
13 -newsonair.com 13 jan 2023
14 -https://www.bhaskar.com/news/UP-VAR-vindhyachal-mandir-special-4397054-PHO.html
15  - आग और पानी: व्योमेश शुक्ल, रूख पब्लिकेशन प्रा0 लि 0 नई दिल्ली, पृ0 15
 
डॉ. शशिकला
एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, वसन्त कन्या महाविद्यालय, कमच्छा, वाराणसी

  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-46, जनवरी-मार्च 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव 
चित्रांकन : नैना सोमानी (उदयपुर)

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