शोध आलेख: हिन्दी साहित्य की रचनाओं में ‘वृद्ध विमर्श’ का चित्रण डॉ. राजासलीम इमामसाब बिडी

हिन्दी साहित्य की रचनाओं में ‘वृद्ध विमर्श’ का चित्रण

डॉ. राजासलीम इमामसाब बिडी

                                                                                                   

शोध सार :-

प्रस्तुत शोध आलेख के माध्यम से भारतीय वृद्धों की समस्यासों को खूलकर विमर्श किया गया हैलेकिन तेजी से बदलते हुए सामाजिक परिवेश में वृद्धों का स्थान-मान लगातर गिरता जा रहा हैबदलते हुए समाज के साथ लोगों के अंदर जो नैतिकता तथा पारिवारिक एकता के मूल्यों का नाश होता जा रहा है, इसका प्रभाव परिवार तथा समाज में जीनेवाले वृद्धों पर अधिक मात्रा में पढ रहा हैजीवन के अंतिम समय में वह वृद्ध अपने बेटे और परिवार के सुख से वंचित हो रहे हैयह केवल भारतीय समाज में न बल्कि पूरे विश्व के स्तर पर वृद्धावस्था एक बड़ी भारी समस्या बनती जा रही हैमनुष्य एक पेड़ के समान हैजिस प्रकार पेड़ के हरे-भरे डालियाँ है फूल, फल, हरे पतियाँ है, उसी प्रकार मनुष्य भी अपने जीवन में सुखद आनंद का अनुभव करते हैंअंत में एक दिन पेड़ के हरे पत्ते, पीले होकर जमीन पर गिर जाते है, उसी प्रकार मनुष्य बुढापे के कारण अपने बेटे और परिवार से वंचित होना पड़ता हैपूरे देश में, गाँवों में, शहर में, रहनेवाले (वृद्धों) बुजुर्गों को अपनी ही संतानों के कारण अपमानित और दुखित होना पडता हैसमाज में हम देख सकते हैं कि कुछ संतान सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिए अपने वृद्ध माता-पिता की हत्या तक कर देते हैंकुछ संतान ऐसे होते हैं जो अपने वृद्ध माता-पिता से घर संपत्ति को अपने नाम करके उन्हें घर से धक्के मारकर निकाल देते हैंवह वृद्ध दर-दर की ठोकरे खाकर जीवन का निर्वाह करते हैउनका कोई सहारा नहीं होताबुजुर्गों की इस तरह की हालत को देखकर सरकार और विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा “वृद्धाश्रम” (ओल्ड एज होम) खोलकर उन्हें रहने और खाने का प्रबंध किया गया हैवृद्धों की इस तरह घर से बाहर होना और उनकी दुर्दशा पर हिन्दी साहित्य के बहुत से कथाकार, साहित्यकार, उपन्यासकार, कहानीकार अपने रचनाओं के माध्यम से उनकी दुर्दशा का चित्रण किया गया है

बीज शब्द :- वृद्धावस्था, समस्या, समाज, घर, वंचित, नैतिकता, पारिवारिक एकता, संतान, आधुनिक

प्रस्तावना:

हिन्दी साहित्य के रचनाओं में वृद्धों की समस्याओं का एक मार्मिक चित्रण मिलता हैप्रमुख कहानीकार डॉ. भीष्म सहानी की रचना “चीफ की दावत” में वृद्धों की समस्याओं को समाज का दिखावापन तथा बुजुर्ग के प्रति आदर भाव रखने तथा माँ की ममता का परिचय दिया गया हैइस कहानी में हम देख सकते हैं कि शामनाथ के घर में चिफ की दावत थीमाँ उस दावत में बाधा समझी जाती थी, उसी एक माँ के सहारे शामनाथ की तरक्की मिलने का कारण बन सकती हैशामनाथ और पत्नी के बीच माँ को लेकर दूविधा रहती हैशामनाथ कभी नहीं चाहता था कि अपनी माँ चीफ के सामने आ जाए, माँ से कहता है कि तुम जल्दी से खाकर अपने कमरे में चले जाना और रात में सोना नहीं है, बीच में खर्राटे नहीं लेना। ये सभी बातें सुनकर माँ को लज्जित होना पड़ता हैमाँ कहती है कि बेटा जब से बीमार हूँ, तब से नाक से साँस लेना मुश्किल हो गया हैशामनाथ अपनी माँ से कहता है, ‘तुम आज सफेद कमीज और शलवार पहनना’चीफ माँ से मिलता है, वह बहुत खुश होता है क्योंकि चिफ को गाँव के लोग बहुत पसंद है, माँ से हाथ मिलाता हैमाँ के द्वारा शामनाथ गाँव का विवाह गीत गवाता है, यह सुनकर चिफ बहुत खुश होता हैचीफ को फूल्कारी बहुत पसंद आती हैशामनाथ को वृद्ध माँ आज पार्टि में बाधा बन गई थी, लेकिन माँ के कारण चीफ खुश होता है, शामनाथ की तरक्की हो जाती हैशामनाथ अपने माँ से फूल्कारी बनाने के लिए कहता है‘माँ कहती मेरी नजर कमजोर हो गई हैचीफ बहुत खुश है और मेरी तरक्की हो जायेगी’ कहने के बाद माँ अपने बेटे के उज्जवल भविष्य के लिए कामना करती हैशामनाथ को अपनी वृद्ध माँ चीफ की दावत में बाधा बन गई थीआज वही माँ उसके तरक्की का कारण बनती हैइससे जाहिर होता है कि वृद्धों की दुआ बच्चों के भविष्य निर्माण का कारण बन सकती है

प्रमुख उपन्यासकार तथा कहानीकार मुंशी प्रेमचंद जी अपनी कहानी ‘सुजान भगत’ में वृद्धावस्था का चित्रण किया हैजब वह गाँव में दान धर्म करने लगता है। लोगों को जो कुछ घर में है वह देता है, इस कारण गाँव में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ने लगीलोग उसे भगत के नाम से बुलाने लगेइस कारण से सभी अधिकारी, साधू, संत, काँस्टेबल सुजान भगत के घर पर आने लगेगाँव में सभी लोग उसका सम्मान करते, मगर घर में उसका अनादार होने लगाउसके दो बेटे थे और पत्नी उसका आदर नहीं करते, किसे क्या देना है, किससे क्या लेना है, इस विषय में उससे सलाह नहीं ली जाती थीवह वृद्ध हो गया था, उसके साथ ही वह भगत बना बैठा थाजब एक दिन घर में एक भिक्षुक आता है, उसे एक सेर अनाज ले जाता हैउसका बडा बेटा हाथ से छीन लेता है और पिता से कहता है, “भीख, भीख की तरह दी जाती है, लुटाई नहीं जातीछाती फाडकर काम करते हैं, तब हमें रोटी मिलती है”यह सब बातें सुजन को तीर की तरह चूब जाती हैवह घर से चला जाता है। उसी ने घर गृहस्ती बनवाई थीमगर उसी के घर में उसका अनादर किया जाता है, इससे हमें पता चलता है, किस प्रकार वृद्ध होने के कारण उसका अनादर होता है

प्रमुख उपन्यासकार काशीनाथ सिंह ने अपने उपन्यास ‘रेहन पर रग्घू’ में बुर्जुगों पर प्रकाश डाला हैइसमें प्रमुख पात्र मास्टर रघुनाथ के माध्यम से वृद्धों के बदले हुए समय, परिवेश और मूल्यों को अपनी दृष्टि से देखते हैरघुनाथ का बेटा संजय अपने पिता और माता के अनुमति के बीना अपनी मर्जी से प्रोफेसर सक्सेना की बेटी सोनल से कोर्ट म्यारेज(कोर्ट में विवाह) कर लेता हैइससे यह पता चलता है कि आजकल की नयी पीढ़ी अपने बूढ़े माता-पिता की बात मानने से इनकार कर रही हैजो माता-पिता अपना सबकुछ समर्पण करके बच्चों का लालन-पोषण करते हैआज वही बच्चे बडे होकर अपने माँ-बाप की नहीं सुनते

चित्रा मुद्गल की रचना ‘गिलिगडू’ में दो सेवानिवृत्त वृद्धों की तेरह दिन की कहानी में उनकी वृद्धावस्था के अकेलेपन पारिवारिक, त्रास, नई पीढी, नाती-पोते से मोह अपने अरमानों को पूरा न कर पाने की विवशता आदि का चित्रण किया हैइस उपन्यास में जसवन्त सिंह तथा कर्नल स्वामी हैकैसे नौजवान पीढ़ी अपने बुजुर्गों का घर में सम्मान न देते हुए अकेला छोड़ देते हैं यह कृति इस विश्वास को और भी गहरा करती है कि साहित्यिक मूल्यों में सामाजिक सार्थकता का महत्व हमेशा बना रहे

हिन्दी साहित्य की प्रमुख कवयित्री ममता कालिया ने अपने ‘दौड़’ उपन्यास में उन वृद्धावस्था की समस्या का खूलकर चित्रण किया है, पवन घर से दूर अहमदाबाद में नौकरी के लिए जाने की बात घर में बताता है तब माँ-बाप नाराज हो जाते हैं, वह चाहते थे कि पवन वहीं उनके पास रहकर नौकरी करेंपवन उनसे कहता है “पापा मेरे लिए शहर महत्वपूर्ण नहीं है, करियर महत्व हैजो बच्चे बुढापे का सहारा होते है, परंतु विदेशी तथा अपने ही देश के महानगरों में गृहस्थी जमा लेने के कारण बुढापे में अपने बच्चों से वंचित होकर आज वृद्ध अकेलेपन का शिकार होकर जीवन जीने के लिए अभिशप्त हुए हैयहाँ तक की विदेश में रहनेवाली संतान उनके वृद्ध माता-पिता के अंतिम संस्कार में नहीं पहुँच पातेआज के युवा वर्ग अपने सम्पूर्ण समय काम में लग जाते हैं और वृद्ध माता-पिता पर ध्यान नहीं देते

रमेशचन्द्र शाह द्वारा लिखा गया ‘सफेद परदे पर’ उपन्यास वृद्धावस्था की जिस समस्या को उठाता है वह परती या समाज में निरंतर बढ़ती जा रही एक विकट समस्या हैभारत जैसे विकासशील देशों में और संसार के अन्य देशों में भी वृद्धों की बढ़ती आबादी और संयुक्त परिवार के ढाँचे का चर्मरा जाना इस समस्या को और भी बढ़ा रहे है

हृदयेश अपने उपन्यास ‘चार दरवेश’ में वृद्धों का सजीव चित्रण किया हैऐसा लगता है मानों ये बुजुर्ग हमारे ही आस पडोस से उठकर कथा-पात्रों की भूमिका निभा रही हैइस उपन्यास को उन्होंने चार वृद्धों को केन्द्र में रखकर लिखा गया हैवह चार वृद्ध चित्ताहरण शर्मा, रामप्रसाद, शिवशंकर तथा दिलीपचन्द वे सभी अपने परिवार के साथ रह रहे हैंपरंतु उनसे उन्हें काफी शिकायतें है, वे कभी उन शिकायतों को किसी पार्क में बैठकर, तो कभी पुल पर बैठकर एक दूसरे के सामने अपनी भावनाओं को बयान करते हैंकिसी को बेटी-दामाद से शिकायत, कभी तो किसी को अपने बेटे-बहू से, किसी को नाती-पोतों सेये शिकायतें पीढ़ी-अंतराल के कारण मूल्य स्तर पर है, तो कभी परिवार से मिलने वाली दुर्व्यवहार के कारण उन सब वृद्धों पर शोषण को देख सकते हैवृद्धावस्था में मनुष्य का शरीर नियंत्रण से बाहर हो जाता हैरामप्रसाद बूढे हो गए हैंपेशाब का नियंत्रण में न रहने के कारण उनके शरीर की एक विवशता हैउसके कारण उन्हें अपनी बेटी के सामने जलील होना पडता हैदामाद के द्वारा तरह-तरह के मानसिक कष्ट को सहना पड़ता हैइसी प्रकार चिन्ताहरण, दिलीपचन्द तथा शिवशंकर को भी अपने-अपने परिवार से किसी-न-किसी रूप में शिकायतें हैवे सभी सूखे नाले की पुलिया पर बैठकर सुलझाते-बुझाते रहते हैं

अखबार को पढते पढते दिलीपचन्द इस प्रकार विवरण करता है “एक पुत्र वे अपने बीमार वृद्ध पिता को घर से बाहर निकाल दिया था और जब पिता थाने में शिकायत करने गया तो दीवान ने उसे अपनी आप बीत सुना दी थी कि उसके बेटे ने उसके नए मकान पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया है और वह अपने इस मकान में पाँव तक रख नहीं सकता हैआजकल के जमाने को हवा ने अपने ही बीज को जहरिला बना दिया है

उषा प्रियंवदा ने अपनी ‘वापसी’ कहानी में पारिवारिक जीवन की परिवर्तित व्यवस्था एवं प्रेम सम्बन्धों के बदलते स्वरूप को अभिव्यक्त प्रदान की हैउनकी कहानियों में आधुनिक परिवार में बदलते मानवीय सम्बन्धों की व्याख्या बहुत सुन्दर और स्वभाविक ढंग से की गई है ‘वापसी’ कहानी में एक ऐसे व्यक्ति की विडंबना को दर्शाती है, जो अपनी पूरे जीवन की नौकरी के बाद रिटायरमेंट के बाद अपने परिवार के साथ अपना शेष जीवन बिताने के लिए अपने परिवार के पास आता हैं, लेकिन वहाँ पर उन्हें उपेक्षित व्यवहार मिलता हैतो वो वापस अपनी नौकरी पर जाने का निर्णय लेता हैं

‘वापसी’ कहानी में आनेवाले प्रमुख पात्र गजाधर बाबू हैपैंतीस साल की नौकरी के बाद वह रिटायर होकर जा रहे थेइन वर्ष में अधिकांश समय उन्होंने अकेले रहकर काटा थाउन अकेले क्षणों में उन्होंने इसी समय की कल्पना की थी, जब वह अपने परिवार के साथ रह सकेंगेजब वह घर लौटे, इतवार का दिन था और उनके बच्चे इक्कट्ठे होकर नाश्ता कर रहे थेगजाधर बाबू के मुख पर मुस्कान आई, उसी के साथ वह बिना खाँसे अंदर चले आए, उन्होंने देखा कि सब हँस रहे थेउनकी पत्नी बसंती हँस-हँस कर दुहरी हो रही थीगजाधरबाबू अपने परिवार के साथ रहना अपनी बाकी की जिंदगी उनके साथ गुजारना चाहते थे, मगर घर में पत्नी और बच्चे उनका सम्मान नहीं करतेउनके प्रति कुछ अलग व्यवहार हो रहा थाउतना मान-सम्मान उन्हें वहाँ नहीं प्राप्त हो रहा थागजाधरबाबू का मन दु:खी हुआ, वह दोबारा चीनी की मिल की नौकरी पर जाना चाहते थे क्योंकि जब उन्होंने अपनी नौकरी से रिटायर होने के बाद घर वापस आने पर यह देखा कि अपने इस अकेलेपन को दूर करने के लिए अपने परिवार के साथ रहने का सोच कर आए थे, उसी परिवार ने उनकी उपेक्षा करने शुरू कर दी थीइस कहानी से हमें पता चलता है वृद्धावस्था के समय व्यक्ति की चाह होती है उसका सम्पूर्ण विश्वास अपने बच्चों पर पत्नी पर निर्भर होता हैजीवन के अंतिम क्षणों को बडे प्रेम से परिवार के साथ बिताना चाहता हैमगर गजाधरबाबू के नसीब में नहीं है

प्रमुख कथाकार सर्वेशवर दयाल सक्सेना की कविता ‘सूखे पीले पत्तों ने कहा’ इसमें उन्होंने युवा वर्ग और बुजुर्गों की तुलना की हैतेजी से जाती हुई कार इसका प्रतिक समाज के युवा वर्ग को दर्शाया गया हैकार के पीछे दौडने वाले सुखे पीले पत्ते समाज के बुजुर्ग या अनुभवी वर्ग का प्रतिक कहते हैंआजकल युवा वर्ग समाज में आगे बढ़ रहे हैं, मगर वह बुजुर्गों के अनुभव के आधार पर आगे बड़े तो समाज का, देश का, उद्धार हो सकता हैपीले पत्ते इसका मतलब बुजुर्गों के अंदर ताकत कम हो गई है, मगर उनके अनुभव को लेकर हमें आगे बढ़नाआजकल के युवा वर्ग, वृद्धों / बुजुर्गों को अनदेखा करते हैं और उनका सम्मान नहीं करते हैं

 

निष्कर्ष :-

बुढापा जीवन की एक अनिवार्य प्रक्रिया हैवृद्ध वैश्विक आबादी, जनसांख्यिकीय संक्रमण का एक उप-उत्पाद है, जिसमें मृत्यु दर और प्रजनन दर दोनों में गिरावट आती है। वृद्ध मनुष्य के पास अनुभवों का खजाना होता है और यह खजाना उसने जमाने की ठोकर खाकर, अच्छे लोगों की और बुरे लोगों की संगति से प्राप्त किया होता हैइसलिए किसी कार्य को करने के पहले, अगर सफल होना चाहते है तो वृद्धों की सलाह भी ले लेना चाहिएहमें अपने जीवन के हर एक सपने को पूरा कर उसी प्रकार जीने दिया जैसा हम चाहते थेअब हमें भी अपने जीवन का कुछ समय उनकी सेवा में देना होगावे बुजूर्ग हमारे लिए अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व को समर्पित कर देते हैंहर धर्म के धार्मिक ग्रंथों में भगवान के बाद सबसे ऊँचा स्थान माता-पिता या बुजूर्गों को दिया गया हैकिन्तु हमने उनके
लिए क्या किया, कभी मकान का कोई कोना, कभी अपमान भरे कटु शब्द, तो कभी वृद्धाश्रमसंस्कृति, नैतिकता, मानवीयता, इंसानियत, केवल कहने के लिए मात्र शब्द रहेगे मगर उसका अनुकरण कोई नहीं कर रहा है

 

संदर्भ ग्रंथ सूची:

१.     डॉ. भीष्म सहानी,चिफ की दावत, साहित्य गौरव, पृ.सं. 51,56,59

२.     मुंशी प्रेमचंद, सुजान भगत, साहित्य गौरव, पृ.सं. 4,3,6     

३.     काशीनाथ सिंह,रेहन पर रग्घू, पृ.सं. 12,13,15        -    

४.     चित्रा मुद्गल,गीलिगडू उपन्यास,पृ.सं. 61,64,96

५.     ममता कालिया,दौड़’ उपन्यास,पृ.सं. 10,14,15 

६.     रमेशचन्द्र शाह,सफेद परदे पर, उपन्यास, पृ.सं.16,17,21

७.     हृदयेश,चार-दरवेश’ उपन्यास,पृ.सं. 4,7,8

८.     उषा प्रियवंदा,वापसी कहानी, पृ.सं. 18,20,25  

९.     सर्वश्वर दयाल सक्सेना,सुखे पिले पत्तों ने कहा, कविता संकलन, पृ.सं.25  

 

  डॉ. राजासलीम इमामसाब बिडी

  अंजुमन पी.यू. कॉलेज, बेळगाँव

  ईमेल-rajasalim71@gmail.com

  मोबाइल -7353279879

  

          अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-46, जनवरी-मार्च 2023 UGC Care Listed Issue

सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव चित्रांकन : नैना सोमानी (उदयपुर) 

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