शोध आलेख : विषय चयन में परामर्श के प्रभाव का अध्ययन / दीप कँवर, डॉ. किरण महेश्वरी

विषय चयन में परामर्श के प्रभाव का अध्ययन
- दीप कँवर, डॉ. किरण महेश्वरी

शोध सार : बदलते परिवेश में पुराने पारम्परिक विषयों और पाठ्यक्रमों की तुलना में नये नये विषय और पाठ्यक्रम अधिक प्रासंगिक हो गए है, जिन्हें देखकर विद्यार्थी का भ्रमित होना स्वाभाविक है। यह शोध पत्र सरकारी एवं निजी विद्यालय के विद्यार्थियों के विषय चयन में परामर्श के प्रभाव के अध्ययन पर आधारित है। इस शोध के परिणाम स्वरूप ज्ञात हुआ है कि विभिन्न विषयों के चयन के प्रति परामर्श के पूर्व परामर्श के पश्चात् सार्थक अंतर पाया गया।

बीज शब्द : शैक्षिक परामर्श, विषय चयन, मनोवैज्ञानिक परीक्षण, माध्यमिक स्तर।

मूल आलेख : अच्छे शैक्षिक भविष्य के लिए सही विषय का चुनाव होना सबसे जरूरी कारक है। 10+2+3 शिक्षा प्रणाली में कक्षा दसवीं उत्तीर्ण होने के पश्चात् प्रत्येक विद्यार्थी को 11वीं कक्षा में प्रवेश के समय अपनी आगे की शिक्षा के लिए एक विषय का चयन करना होता है। विद्यार्थी के इस चयन का प्रभाव उसके पूरे जीवन पर रहता है। उसके द्वारा जिस विषय का चयन किया जाएगा उसी के अनुरूप उसके भविष्य एवं उसके रोजगार की संभावनाएँ निर्भर करती है। विद्यार्थी के जीवन में कक्षा 11 12 की पढ़ाई का सर्वाधिक महत्व इसलिए भी है कि अधिकांश प्रतिस्पर्धाओं और परीक्षाओें में इन कक्षाओं के पाठ्यक्रम का समावेश रहता है। वर्तमान समय में अतिप्रतिस्पर्धा के दबाव और बेरोजगारी के चलते उपयुक्त विषय का चयन कर पाना और भी कठिन हो गया है। इसके अलावा रोजगारमूलकता के नाम पर नए-नए पाठ्यक्रमों के आने से विद्यार्थी का भ्रमित होना भी स्वाभाविक है। इसलिए विद्यार्थी के विषय चयन को लेकर हमें बहुत गंभीर रहना चाहिए।

आधुनिक शिक्षा प्रणाली में मार्गदर्शन का अत्यन्त महत्व है। वस्तुतः सभ्य एवं सुसंस्कृत विश्व का जो भी स्वरूप हमारे समक्ष है उस स्वरूप को हमारे समक्ष उपस्थित करने में निर्देशन परामर्श का विशेष योगदान है। भारत मे परामर्श का प्रारम्भ अभी शिशु अवस्था में है, धीरे-धीरे इसका विकास हो रहा है। शैक्षिक परामर्श वह प्रक्रिया है जिसमें शिक्षण क्षेत्र से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए परामर्श प्रदान किया जाता है। इस प्रक्रिया में परामर्श प्रदान करने वाला व्यक्ति विशेषज्ञ होता है। विषय चयन हेतु विशेषज्ञों की मदद ली जाती है जो कि विभिन्न विषयों के मकड़ीनुमा जाल से विद्यार्थी को बाहर निकालने का प्रयास करते है।

वर्तमान युग युवाओं का युग है और उन्हें उनके सुनहरे भविष्य के लिये उचित शिक्षा प्रदान की जाये। विद्यार्थियों में प्रतिभा होती है, परन्तु उनकी प्रतिभा को पहचान कर उन्हें सही दिशा देने की आवश्यकता है। सही विषय का चयन विद्यालय स्तर पर ही करके भटकाव की स्थिति को बदला जा सकता है। उचित सही मार्गदर्शन के अभाव में आज का युवक बेरोजगारी, भूखमरी, गरीबी आदि समस्याओं में उलझा रहता है। विद्यार्थियों को ना तो अपनी योग्यता का पता होता है ना ही अपनी रूचियों एवं आकांक्षाओं का, इसी असमंजस उचित मार्गदर्शन के अभाव में गलत विषय का चयन कर लेते है।माध्यमिक स्तर पर लिये गये उचित निर्णय विद्यार्थियों के भविष्य निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है। एक कुशल अनुभवी परामर्शक द्वारा दिया गया परामर्श विद्यार्थियों को उचित निर्णय लेने में सहायता कर सकता है।

            प्राचीनकाल में जब मानव जीवन सरल था और समाज मे कोई जटिलता नहीं थी तब परामर्श की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकि तब विषय चयन हेतु बहुत से विकल्प नहीं थे, सीमित विषयों में से अभिभावक, शिक्षक आदि के मागदर्शन द्वारा ही विषय का चुनाव कर लेते थे। परन्तु अब यह इतना सरल नहीं है, अब विषयों के चयन में जटिलता गयी है विद्यार्थी के समक्ष अनेक उपविषय उपलब्ध होते है, समाज में विज्ञान युग के कारण क्रान्तिकारी परिवर्तन हो रहे है। इन परिवर्तनों की मांग के स्वरूप ही कुशल प्रशिक्षित युवकों की मांग बढ़ रही है। इसी मांग की पूर्ति के लिए सही समय पर सही विषय का चुनाव कर विद्यार्थी अपना भविष्य संवार सकते है। अतः विभिन्न क्षेत्रों की जानकारी, समस्याओं के समाधान हेतु हमें विशेष प्रकार की सहायता या परामर्श की आवश्यकता होती है जो विशेषज्ञ ही दे सकता है।

यकीनन भविष्य की ऊँची मंजिले 10 वीं के बाद उपयुक्त विषय चयन पर आधारित होती है। कक्षा 10 के उपरान्त एक अनुभवी परामर्शदाता का मार्गदर्शन उपयोगी होता है। यह जरूरी है कि विद्यार्थी की अभिरूचि दक्षता और क्षमता का मूल्यांकन करके 10 वीं के बाद उपयुक्त विषय चयन पर आधारित उजली डगर पर विद्यार्थी को आगे बढ़ाया जाए। ऐसा होने पर विद्यार्थी अपनी पूरी शक्ति और परिश्रम से निर्धारित केरियर की डगर पर आगे बढ़ पायेंगे।10वीं के बाद विषय चयन और भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए कई ऐसे विद्यार्थी होते है जिनमें औसत योग्यता होती है या फिर उन्हें पारिवारिक परिस्थिति के कारण जल्दी धनार्जन करना आवश्यक है तो उन्हें 10वीं के बाद ऐसे विषय का चयन करना चाहिए जो  कक्षा 12 की पढ़ाई तक विद्यार्थी का व्यवसायी कौशल बढ़ाकर उसे रोजगार दिला सके। यह निर्देशन उसे एक परामर्शदाता द्वारा ही प्राप्त हो सकता है।

समस्या चयन का औचित्य -

प्रस्तुत शोध में कक्षा-10 के उपरान्त उचित विषय चयन के सम्बन्ध में अध्ययन है और विद्यार्थियों से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सही विषय का चुनाव कर अपनी शैक्षिक व्यावसायिक उन्नति कोे मजबूती प्रदान करें। सही समय पर सही विषय के चयन से भविष्य की संभावनायें प्रबल होती है साथ ही विद्यार्थी भटकाव की स्थिति से भी बचते है। इस अध्ययन के द्वारा इस पक्ष पर बल दिया गया है कि विद्यार्थी अपनी रूचि, अभिवृत्ति के अनुसार विषय का चयन करें तथा अपने आगे का मार्ग प्रशस्त करे। इससे विद्यार्थी की अवसाद की स्थिति भी खत्म हो जायेगी क्योंकि कई बार गलत विषय का चयन कर या दबाव में आकर विषय का चयन कर लेते है असफल हो जाते है और एक समय ऐसी स्थिति जाती है कि विद्यार्थी अवसाद का शिकार हो जाता है। गलत विषय के चयन होने पर, असफल होने से समय की भी बर्बादी होती है साथ ही अपव्यय भी होता है। आगे नहीं बढ़ने पर शिक्षा में भी अवरोध पैदा हो जाता है। इस प्रकार सही विषय चयन विद्यार्थी को सही दिशा की ओर अग्रसर कर अपव्यय अवरोध को समाप्त करता है।

            भारत में लगातार शिक्षित बेरोजगारों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है। इसका कारण जनसंख्या मे वृद्धि एवं सीमित रोजगार है। यदि इन युवकों को सही समय पर उचित परामर्श प्रदान कर दिया जाता तो यह स्थिति नहीं होती। समय की मांग, बाजार की मांग, भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखकर शिक्षण कौशल प्रदान किया जाता तो यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती। बालक की योग्यता अभिक्षमता को जानकर विषय का चयन किया जाये तो उसकी सफलता के अवसर अधिक होंगे। आज का विद्यार्थी अभिभावक सजग जागरूक है। अब वह समय नहीं है जब किसान का बेटा कृषि व्यवसाय को ही अपनायेगा या वकील का बेटा वकील ही बनेगा। विद्यार्थी की योग्यता, क्षमता रूचि के अनुसार व्यवसाय का चयन सफलता संतुष्टि प्रदान करता है।

वास्तव में यह वक्त शिक्षा और युवाओें को सम्मान देने वाली व्यवस्था के निर्माण से है। यह वह व्यवस्था हो जिसमें उचित शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा के उपरान्त उचित विषय चयन, उचित कौशल, उचित व्यवसायिक शिक्षा, सही समय पर रोजगार और इस सबकेे लिए यह आवश्यक है कि उचित समय पर उचित निर्णय। उपरोक्त वर्णित सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए तथा शोधार्थी के स्वयं के अनुभव के आधार पर इस अध्ययन कोमाध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के विषय चयन में शैक्षिक परामर्श के प्रभाव का अध्ययन’’ चुना गया।

उद्देश्य - माध्यमिक स्तर के सरकारी निजी विद्यालय के विद्यार्थियों का विज्ञान, वाणिज्य एवं कला विषय के चयन के प्रति परामर्श के प्रभाव का अध्ययन।

परिकल्पना - माध्यमिक स्तर के सरकारी निजी विद्यालय के विद्यार्थियों का विज्ञान, वाणिज्य एवं कला विषय के चयन के प्रति परामर्श से पूर्व पश्चात् सार्थक अंतर पाया जाता है।

शोध में प्रयुक्त विधि - प्रस्तुत अध्ययन की समस्या पर गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए और अध्ययन से संबंधित साहित्य के अवलोकन के पश्चात् प्रायोगिक विधि का चयन किया गया।

शोध विधि के सोपान - विषय चयन हेतु परामर्श: विषय चयन हेतु परामर्श प्रक्रिया में कक्षा 10 के उपरान्त कक्षा 11 में विषय चयन हेतु परामर्श प्रदान करना है। इस हेतु विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के माध्यम से विद्यार्थियों को उनकी अभिरूचि, बुद्धि उपलब्धि परीक्षण, अभिक्षमता का मूल्यांकन कर, विद्यार्थी को विषय चयन हेतु परामर्श प्रदान किया जाता है।

विषय चयन हेतु परामर्श कार्यक्रम की योजना -

1.   प्रथम सोपान : सरकारी निजी विद्यालय के विद्यार्थियों से प्रथम चरण में यादृच्छिक रूप से विद्यार्थियों का चयन करते हुए विद्यार्थियों से अभिवृत्ति मापनी एवं रूचि परिक्षण भरवाया गया। द्वितीय चरण में इन विद्यार्थियों में से विज्ञान, वाणिज्य कला विषय का चयन करने वाले विद्यार्थियों का चयन किया गया।

2.    द्वितीय सोपान : विद्यार्थियों से परामर्श के पूर्व अभिरूचि, बुद्धि, अभिवृत्ति के परीक्षणों को भरवाया गया।

3.   तृतीय सोपान : इसके अन्तर्गत विद्यार्थियों विभिन्न विषयों के प्रति जानकारियां प्रदान की गई तथा विद्यार्थियों के विषय चयन से संबंधित प्रश्नों के उत्तर दिये गये। विषय चयन हेतु परामर्श प्रदान किया गया, परामर्श प्रदान करने हेतु निम्न मानदंड निर्धारित किए गए -

1. रूचि 2. बुद्धि  3. अभिवृत्ति  4. पूर्व कक्षा का परीक्षा परिणाम  5. आर्थिक स्थिति 6. पारिवारिक पृष्ठभूमि  7. उपलब्धियां  8. सामान्य जानकारी (शारीरिक, पारिवारिक, ग्रामीण-शहरी आदि)

4.    चतुर्थ सोपान : इसके अन्तर्गत परामर्श के पश्चात् पुनः विभिन्न परीक्षण भरवाये गये तथा पूर्व पश्चात् परीक्षणों से प्राप्त प्राप्तांकों की तुलना कर निष्कर्ष निकाले गये।

न्यादर्श - प्रस्तुत शोध में न्यादर्श के रूप में जयपुर जिले के माध्यमिक स्तर के सरकारी निजी विद्यालय में से 80 विद्यार्थियों का चयन किया गया है। जिसमें सरकारी निजी विद्यालय में से 40-40 विद्यार्थियों का चयन कर विषय चयन हेतु परामर्श प्रदान किया गया है।

न्यादर्श चयन के मानदंड -

(1)          इस अध्ययन में कक्षा-10 के विद्यार्थियों का ही चयन किया गया।

(2)          इस अध्ययन में पूर्व पश्चात् समान विद्यालय के उन्हीं विद्यार्थियों पर अध्ययन किया गया।

(3)          इस अध्ययन में सम्मलित विद्यार्थियों की आयु 15-17 वर्ष के मध्य है।

(4)          न्यादर्श चयन हेतु यादृच्छिक विधि  का उपयोग किया गया।

शोध में प्रयुक्त उपकरण -

प्रस्तुत शोध में निम्न उपकरणों का प्रयोग किया गया है -

1.            शैक्षिक रूचि प्रपत्र: डॉ. एस.पी. कुलश्रेष्ठ द्वारा निर्मित शैक्षिक रूचि पत्र का प्रयोग किया गया है।

2.            सामान्य मानसिक योग्यता परीक्षण: डॉ. रोमा पाल डॉ. रमा तिवारी द्वारा निर्मित सामान्य मानसिक योग्यता परीक्षण का प्रयोग किया गया।

3.            अभिवृत्ति मापनी: स्वनिर्मित

शोध में प्रयुक्त सांख्यिकी -

            इस शोध में आंकडों का विश्लेषण करने के लिए मध्यमान, मानक विचलन तथा टी परीक्षण का प्रयोग किया गया।

शोध परिणाम  एवं निष्कर्ष -

तालिका संख्या - 1.1

माध्यमिक स्त्तर के सरकारी निजी विद्यालय के विद्यार्थीयों में विज्ञान विषय के चयन के प्रति परामर्श से पूर्व और पश्चात् समूह का तुलानात्मक अध्ययन

विषय

समूह

संख्या

मध्यमान

मानक विचलन

मध्यमान का अंतर

टी मूल्य

परिकल्पना का परिणाम

विज्ञान

पूर्व

28

7.36

1.830

4.734

9.037

स्वीकृत

पश्चात्

22

12.09

1.849

(डी.एफ 48 पर टी का तालिका मान .05 स्तर पर 2.01)

तालिका संख्या 1.1 के अनुसार माध्यमिक स्तर के सरकारी निजी विद्यालय के विद्यार्थियों में विज्ञान विषय के चयन के प्रति परामर्श से पूर्व पश्चात् टी-अनुपात का मान 9.037 प्राप्त हुआ जो कि सार्थकता स्तर 0.05 पर स्वीकृत है।

तालिका संख्या-1.2

माध्यमिक स्त्तर के सरकारी निजी विद्यालय के विद्यार्थीयों के वाणिज्य विषय के चयन के प्रति परामर्श से पूर्व और पश्चात् समूह का तुलानात्मक अध्ययन

विषय

समूह

संख्या

मध्यमान

मानक विचलन

मध्यमान का अंतर

टी मूल्य

परिकल्पना का परिणाम

वाणिज्य

पूर्व

22

6.86

1.983

5.720

10.847

स्वीकृत

पश्चात्

24

12.58

1.586

(डी.एफ 44 पर टी का तालिका मान .05 स्तर पर 2.02)

            तालिका संख्या 1.2 के अनुसार माध्यमिक स्तर के सरकारी निजी विद्यालय के विद्यार्थियों में वाणिज्य विषय के चयन के प्रति परामर्श के पूर्व पश्चात् टी-अनुपात का मान 10.847 प्राप्त हुआ जो कि सार्थकता स्तर 0.05 पर स्वीकृत है।

तालिका संख्या-1.3

माध्यमिक स्त्तर के सरकारी निजी विद्यालय के विद्यार्थीयों के कला विषय के चयन के प्रति परामर्श से पूर्व और पश्चात् समूह का तुलानात्मक अध्ययन

विषय

समूह

संख्या

मध्यमान

मानक विचलन

मध्यमान का अंतर

टी मूल्य

परिकल्पना का परिणाम

कला    

पूर्व

30

7.23

1.794

5.355

13.081

स्वीकृत

पश्चात्

34

12.59

1.480

(डी.एफ 62 पर टी का तालिका मान .05 स्तर पर 2.00)

            तालिका संख्या 1.3 के अनुसार माध्यमिक स्तर के सरकारी निजी विद्यालय के विद्यार्थियों में कला विषय के चयन के प्रति परामर्श के पूर्व पश्चात् टी-अनुपात का मान 5.121 प्राप्त हुआ जो सार्थकता स्तर 0.05 पर स्वीकृत है।

            अतः शोधकर्त्री द्वारा निर्मित पूर्व परिकल्पना माध्यमिक स्तर के सरकारी निजी विद्यालय के विद्यार्थियों के विज्ञान, वाणिज्य कला विषय के चयन के प्रति परामर्श से पूर्व पश्चात् सार्थक अंतर पाया जाता है स्वीकार की जाती है। इसके संभावित कारण यह हो सकते है कि परामर्श से पूर्व विद्यार्थियों को अपनी रूचि, मानसिक स्तर, संबंधित विषय की पूर्ण जानकारी नहीं थी, लेकिन परामर्श के उपरांत विद्यार्थी को अपनी रूचि, क्षमता, योग्यता आदि का आकलन करके विषय का चयन किया। जिसमें परामर्शदाता का सहयोग भी रहा।

शोध की उपयोगिता -

1.         पाठ्यक्रम एवं पाठ्य विषयों के चयन के लिए परामर्श की आवश्यकता- विभिन्न पाठ्यक्रमों एवं विषयों में से विद्यार्थी का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह छात्र की योग्यता क्षमता, रूचि के अनुरूप होना चाहिए। साथ ही वर्तमान समय की मांग के अनुरूप हो तो विद्यार्थी की सफलता के अवसर अधिक होते है। साथ ही माध्यमिक स्तर पर विषय चयन हेतु उचित परामर्श विद्यार्थी के लिए महत्त्वपूर्ण आवश्यक होता है।

छात्र-छात्राओं में व्यक्तिगत विभिन्नताएं पाई जाती है, उसी के अनुरूप उनकी योग्यताएं, क्षमताएं एवं रूचियां होती है। इन क्षमताओं को मद्देनज़र रखते हुए पाठ्यक्रम का चयन करना चाहिए, परन्तु विद्यार्थी बिना किसी पथ-प्रदर्शन के विषय का चयन कर लेते है। यहाँ पर एक विषय विशेषज्ञ द्वारा प्रदान की गई सलाह महत्वपूर्ण हो सकती है, जो विषय चयन में सहयोग करें।

2.         शिक्षा में अपव्यय अवरोध को रोकने में सहायक- विषय चयन का निर्णय विद्यार्थी की रूचि, योग्यता, क्षमता के अनुरूप नहीं होने पर शिक्षा में अवरोध उत्पन्न हो जाता है, जिससे धन, समय शक्ति का अपव्यय होता है। इसको रोकने में विषय चयन हेतु लिया गया उचित परामर्श सहायक हो सकता है।

3.         बालक-बालिकाओं की व्यक्तिगत विभिन्नता का ज्ञान- सामान्यतया यह देखा जाता है कि अभिभावक अपने सपनों, इच्छाओं को अपने बालकों पर लादने का प्रयास करते है, वे बालक की रूचि, क्षमता, बुद्धि तथा योग्यता पर ध्यान नहीं देते। इस समस्या के समाधान में शैक्षिक परामर्श सहयोग करता है।

4.         विद्यार्थी के मानसिक तनाव अवसाद को कम करने में सहायक -वर्तमान प्रतियोगिता के युग में विद्यार्थी आगेे बढ़ने के लिए अभिभावकों के दबाव मित्रमण्डली आदि अनेेक कारणों से विषय चयन तो कर लेेते हैं लेकिन तनाव अवसाद की स्थिति में जाते है। इस स्थिति से बचाव में परामर्शदाता उनका सहायक होगा, वह सही विषय का चयन करा उसका मार्ग प्रशस्त करेगा।

5.         अनुशासन अपराध की समस्या को कम करने में सहायक -शिक्षा में व्यवधान के कारण विद्यार्थी में असंतोष कुंठा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे वह अपराध की ओर अग्रसर हो जाता है अनुशासनहीन बन जाता है। यह स्थिति गलत विषय का चयन कर शिक्षा में अवरोध उत्पन्न होने के कारण होता है। अतः उचित समय पर दिया गया विषय परामर्श उसे इन सभी स्थितियों से बचाता है।

6.         बालकों केे शैक्षिक विकास में सहायक -उचित विषय चयन से विद्यार्थी का शैक्षिक विकास होता है और आगे का मार्ग प्रशस्त होेता है।

सुझाव -

विद्यार्थियों के लिये -

1          विद्यार्थियों को अपनी रूचि, योग्यता एवं क्षमता का आकलन करके ही विषय का चयन करना चाहिये।

2          विद्यार्थी को संबधित विषय जिसका वह चयन करने वाला है उसके बारे में चयन से पूर्व ही जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिये।

3          विद्यार्थी को ऐसे विषय का चयन करना चाहिये जिससे आगे शिक्षा में अवरोध उत्पन्न हो।

4          विषय चयन हेतु विद्यार्थी को परामर्श दाता का सहयोग लेना चाहिये।

5          विद्यार्थी को विषय चयन के पूर्व शिक्षक अभिभावको से चर्चा करनी चाहिये।

विद्यालयों के लिये -

1          विद्यालयों में परामर्श दाता की नियुक्ति होनी चाहिये जिससे कि शैक्षिक क्षेत्र से जुडी सम्पूर्ण समस्याओं का समाधान हो सके।

2          विद्यालय मे समय-समय पर परामर्श कार्यक्रम का आयोजन करना चाहिये।,

3          विद्यालय स्तर पर विषय चयन से पूर्व शिक्षक - अभिभावक चर्चा होनी चाहिये।

4          शिक्षक को स्वयं एक परामर्शदाता के रूप में विद्यार्थियों का आकलन करने के लिये सहयोग करना चाहिये।

5          विद्यालय में भौतिक संसाधनो जैसे विभिन्न मनोवज्ञानिक परीक्षण आदि उपलब्ध होने चाहिये।

6          विषय चयन, पठन सामग्री, व्यवसायिक वार्ता के माध्यम से विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों, व्यवसायों की जानकारी प्रदान करनी चाहिये।

7          विद्यालय में निर्देशन एवं परामर्श समितियों का गठन किया जाए।

निष्कर्ष : माध्यमिक स्तर के सरकारी निजी विद्यालय के विद्यार्थियों में विज्ञान, वाणिज्य कला विषयों के चयन के प्रति परामर्श से पूर्व पश्चात् अंतर पाया गया। परामर्श के उपरान्त विद्यार्थियों पर जब विभिन्न परीक्षणों का प्रशासन किया गया तो विद्यार्थियों ने अपनी बुद्धि, रूचि तथा क्षमता के आधार पर विषय का चयन किया। साथ ही रूचि के विषय के बारे में भी परामर्श दाता से विभिन्न जानकारी प्राप्त की।

सन्दर्भ :

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14. सिह, एच. पी. अन्य (2016): समसामयिक भारत और शिक्षा, जयपुर , राधा प्रकाशन मन्दिर

दीप कँवर
शोधार्थी (मनोविज्ञान विभाग) एपेक्स विश्वविद्यालय, जयपुर राजस्थान
डॉ. किरण महेश्वरी
एसोसिएट प्रोफेसर (मनोविज्ञान विभाग) एपेक्स विश्वविद्यालय, जयपुर, राजस्थान
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-46, जनवरी-मार्च 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव चित्रांकन : नैना सोमानी (उदयपुर)

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