शोध आलेख : कौसानी क्षेत्र के चाय बागानों में कार्यरत महिला श्रमिकों की समस्याओं का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन / सावित्री एवं डॉ. एम.पी. सिंह

कौसानी क्षेत्र के चाय बागानों में कार्यरत महिला श्रमिकों की समस्याओं का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन
- सावित्री एवं  डॉ. एम.पीसिंह

शोध सार : वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण के इस दौर में आर्थिक रूप से पिछड़े हुए अविकसित देश, विकासशील और विकसित देशों की श्रेणी में आना चाहते हैं। प्रत्येक राष्ट्र योजनाबद्ध प्रयत्नों के द्वारा एक निश्चित अवधि में कुछ सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहते हैं, अपनी समस्याओं से मुक्ति पाना चाहते है एवं अभावों पर विजय पाना चाहते हैं। महिलाएँ समाज के निर्माण में एक प्रमुख केंद्र बिन्दु के रूप में अपनी समस्त जिम्मेदारियों एवं भूमिकाओं का निर्वह्न करती हैं। घर से बाहर निकलकर काम करने वाले कामकाजी महिलाओं का एक और वर्ग भी है जो महिला-श्रमिक के नाम से देश के विभिन्न कारखानों उत्पादक संस्थानों में काम करती हैं। ये श्रमिक महिलाएँ लगभग दैनिक मज़दूरी पर काम कर अपने परिवार का भरण-पोषण करती हैं। घर के बाहर काम करने वाली महिलाओं में सबसे खराब स्थिति इन श्रमिक महिलाओं की है। इनको कार्यस्थल पर बीमार होने पर छुट्टी मिलना, उपचार की कोई व्यवस्था होना, मालिकों का बुरा बर्ताव आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। प्रस्तुत शोध पत्र में उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ संभाग में स्थित बागेश्वर जनपद के कौसानी क्षेत्र स्थित चाय बागानों में कार्यरत महिला श्रमिकों की समस्याओं को जानने का प्रयास किया गया है।

बीज शब्द : महिला-श्रमिक, सामाजिक लक्ष्य, चाय बागान एवं समस्याएँ।

मूल आलेख : किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में महिला-श्रम का अत्यधिक महत्त्व होता है। प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादन के लगभग सभी क्षेत्रों में महिला श्रमिकों का योगदान रहता है। श्रम एवं श्रमिक की अवधारणा मानव-सभ्यता के विकास के प्रारंभिक काल से ही मौजूद रही हैं, किंतु आधुनिक संदर्भों में श्रमिक, मज़दूर या कामगार शब्दों का इस्तेमाल यूरोप में औद्योगिक क्रांति के बाद होने लगा।1 भारत में स्वतंत्रता के पश्चात मिश्रित अर्थव्यवस्था के अंतर्गत औद्योगिक उत्पादन पर अधिक बल दिया गया तथा औद्योगिक संबंधों एवं श्रमिकों की काम करने की स्थितियों की बेहतरी की दिशा में समय-समय पर अनेक क़ानूनी प्रावधान किए गए।इन कानूनी प्रावधानों का लाभ संगठित श्रेत्र के मज़दूरों को तो मिला, किन्तु असंगठित क्षेत्र के कामगार शोषण तथा मेहनत की तुलना में कम पगार जैसी ज्यादतियों के शिकार होते रहे। इसके अलावा आर्थिक उदारीकरण के बाद उद्योगों में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने से श्रम कानूनों में बदलाव या संशोधन की आवश्यकता महसूस की जाने लगी क्योंकि अब अर्थव्यवस्था का मुख्य लक्ष्य मानव श्रम की बजाय पूँजी तथा टेक्नोलॉजी होने लगा।2 परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर आत्मनिर्भर और समर्थ बनने के लिए नारी को घर-परिवार की चारदीवारी लाँघकर बाहर की दुनिया में जाना पड़ा। कामकाजी महिलाएँ शिक्षित और अशिक्षित दोनों होती हैं। उन्हें घर-बाहर दोनों की जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। उन कामकाजी महिलाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कार्यक्षेत्र में भी महिलाओं का शारीरिक एवं मानसिक शोषण होना एक आम बात है। कार्य के घण्टे अनिश्चित होने के कारण कई बार इन श्रमिक महिलाओं को कई भयानक अनुभवों से गुजरना पड़ता है। लोक-लाज और भय के कारण ये महिलाएँ अपनी पीड़ा किसी दूसरे से साझा नहीं कर पातीं। यद्यपि हमारे देश में महिलाओं की स्थिति ही बहुत अच्छी नहीं है तथापि महिला-श्रमिकों का हाल तो और भी अधिक खराब है। महिला श्रमिकों को आर्थिक सामाजिक समस्याओं के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के शोषण का भी शिकार होना पड़ता है। जो उनके विकास में बाधक सिद्ध होती हैं।

साहित्य पुनरावलोकन :

अनुसंधान से संबंधित साहित्य का सर्वेक्षण शोध के लिए सैद्धान्तिक पृष्ठभूमि को स्पष्ट करता है तथा विभिन्न सिद्धान्तों एवं निहित धारणाओं को समझने में सहायता करता है। शोध विषय से संबंधित साहित्य में विषय के एक पक्ष अथवा सम्पूर्ण विषय पर विचार व्यक्त किया होता है। जिससे शोध में अनावश्यक पुनरावृत्ति से बचा जा सकता है।

दुबुरीय(1989) ने 1961 से 1981 के मध्य महिला कृषि श्रमिकों के सन्दर्भ में किये गये अपने अध्ययन के अन्तर्गत यह निष्कर्ष प्रतिपादित किया हैकि पुरुषों की तुलना में महिलाओं द्वारा कार्य सहभागिता के सन्दर्भ में प्रदर्शित किये जाने वाले निम्न स्तर परिभाषित पक्षपात का परिणाम है, कि कोई अबोध्य सामाजिक प्रघटना है, उनका कहना है कि फैक्ट्री और कृषि में स्वतन्त्रता के बाद महिला श्रमिकों की सहभागिता बढ़ी है, परन्तु अधिकांश सीमान्त श्रम में ही जुड़ी हुई है।3

उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की स्थिति निम्न हैं। महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा कम अधिकार प्राप्त हुए हैं। भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के पास बहुत कम संसाधन मौजूद हैं उन्हीं संसाधनों से वे अपने परिवार का पालन-पोषण करती हैं। ग्रामीण क्षेत्र में कृषि ही रोज़गार का उपयुक्त साधन समझा जाता है परन्तु महिला कृषि श्रमिकों को उनके कार्य के अनुसार आय नहीं दी जाती है। उचित मज़दूरी नहीं मिलने पर उनकी संपूर्ण जीवनशैली प्रभावित होने लगती है।

शर्मा, सुभाष(1997) ‘भारत में बाल मजदूरनामक किताब में स्पष्ट किया है किबालक और बालिका श्रमिकों का यौन-शोषण मालिकों, ठेकेदारों, एजेंटों, सहकर्मियों, अपराधियों आदि द्वारा किया जाता है।4

उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि बालक एवं बालिका श्रमिकों का अनेक प्रकारों से कार्यस्थल पर शोषण हो रहा है, बाल श्रम समाज के लिए एक बड़ी समस्या है। यह समस्या समाज के विभिन्न तहों को प्रभावित करती हैं। समाज, देश या राष्ट्र के भविष्य बच्चे हैं अर्थात बच्चे किसी भी देश के भावी कर्णधार होते हैं परन्तु कई क्षेत्रों में बाल श्रमिकों के प्रति होने वाले शोषण ने बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित किया है। जो इनके व्यक्तित्व विकास में बाधक सिद्ध हो रही हैं। इनके अध्ययन में पाया गया कि समान कार्य करने पर भी पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को कम मज़दूरी दी जाती है एवं अधिकांश क्षेत्रों में जैसे औद्योगिक, अगरबत्ती बनाने, बीड़ी बनाने, माचिस बनाने आदि में बालक श्रमिकों की अपेक्षा बालिका श्रमिकों की संख्या भी अधिक है।

गेल(1992) ने असंगठित उपक्रम विशेष रूप से महिला श्रमिकों पर अध्ययन किया और पाया किमहिला श्रमिकों पर शोषण अनेक स्तरों पर होता है। जिसके कारण उनमें तुलनात्मक अभाव बोध की प्रकृति पायी जाती है तथा यौन उत्पीड़न एवं अनेक प्रकार के शारीरिक दोष एवं प्रताड़ना का शिकार हो जाती है।5

व्यास, मीनाक्षी(2008) ने पाया है कि आज के कामकाजी समाज में हजारों लाखों की संख्या में महिलाएँ हैं। जिनको आये दिन कार्य क्षेत्रों में नियोजकों, सहयोगियों में अजनबी साथियों के साथ कितने ही यौन संबंधी भयावह अनुभवों के बीच से गुजरना पड़ता है लेकिन नारी की विवशता बदनामी के भय के तले दबकर रह जाती है और उन्हें न्याय नहीं मिल पाता जिससे अपराधी पुरुषों को बल मिलता है। नारी डरती है कि मामला ज़्यादा आगे बढ़ जाएगा, परिवार की निंदा होगी इत्यादि। इस प्रकार नारी अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए दुश्चरित्र पुरुषों की रक्षा करती है और दोष मिलता है।6

उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि नारी का कार्यस्थलों पर मानसिक एवं दैहिक शोषण किया जाता है। आए दिन इस प्रकार की घटनाओं को समाज में देखा जा सकता है।

गुप्ता, सुभाषचन्द्र(2008) उत्तर प्रदेश के एटा जनपद के अध्ययन में यह पाया गया किआज महिलाओं की दोहरी भूमिका पारिवारिक(गृहिणी, पत्नी, माँ आदि) एवं व्यावसायिक दोनों में काफ़ी अंशों तक भूमिका संघर्ष उत्पन्न हुआ है। प्रस्तुत अध्ययन में अधिकांश उत्तरदाताओं द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि उनके द्वारा दोहरी भूमिकाओं को सफलतापूर्वक निभाने में उनके सम्मुख अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ जाती हैं।7

इस अध्ययन में महिलाओं की दोहरी भूमिकाओं एवं कार्यदशाओं पर विस्तृत अध्ययन का यह निष्कर्ष निकला है कि कार्य करने वाली महिलाओं के पारिवारिक, सामाजिक, उनके पारिवारिक सदस्यों यहाँ तक कि उनकी नौकरी में भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

त्रिपाठी, मधुसूदन (2011)ने भारत में महिला श्रमिकनामक पुस्तक में स्पष्ट किया है कि अधिकतर महिला श्रमिकों को विभिन्न प्रकार के शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ता है। अधिकतर महिला श्रमिकों को बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। अपना पेट पालने के लिए काम करना, महिला श्रमिकों की मजबूरी होती है और उनकी इसी मजबूरी का फायदा कारखाने और खदान आदि के मालिक उठाते हैं।8

इन्होंने अपने अध्ययन में कार्यस्थल में महिला श्रमिकों के साथ होने वाला यौन उत्पीड़न का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकला है कि कार्यस्थल पर होने वाल यौन उत्पीड़न को रोकने एवं उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की जिम्मेदारी केवल पीड़ित महिला की ही नहीं है, अपितु पुरुष एवं महिला कर्मी का भी कर्तव्य है कि वह इस अन्याय के खिलाफ एकजुट होकर अपनी आवाज़ बुलंद करें। समाज में इस प्रकार की घटनाएँ हमें देखने को मिलती हैं एक पीड़ित महिला लोगों के भय, लज्जा के कारण अपने साथ हो रहे शोषण का विरोध नहीं कर पाती जिसके कारण मानसिक तनाव से ग्रसित होने लगती है।

सिंह, मीनाक्षी(2015) ने अपने अध्ययन में यह मत व्यक्त किया है किमहिला श्रमिकों की स्थिति बेहद दयनीय है। महिला-श्रमिकों को पुरुषों की तरह, समान काम के बदले समान वेतन(मज़दूरी) भी प्राप्त नहीं हो पाती है। अधिकतर महिला-श्रमिकों को पुरुषों की अपेक्षा कम मज़दूरी दी जाती है। महिला-श्रमिकों को किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नहीं दी जाती है, और तो और उन्हें न्यूनतम स्वास्थ्य सेवाएँ भी नसीब नहीं हैं और उपर से महिला-श्रमिकों को विभिन्न प्रकार के शोषण का शिकार होना पड़ता है तथा अपनी मज़दूरी प्राप्त करने के लिए भी उन्हें मालिक के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है।9

इस अध्ययन में महिला श्रम के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की है। इन्होंने कामकाजी महिला एवं महिला श्रमिकके मध्य अन्तर को दर्शाया है। महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा कम मज़दूरी प्राप्त होने की बात स्पष्ट होती है। कम वेतन मिलने से उनके परिवारों का लालन-पालन नहीं हो पाता जिस कारण सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं, जो उनके विकास में बाधक हैं। महिला श्रमिकों की वेतन संबंधी समस्याओं के अलावा स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ, स्त्री हित एवं सुरक्षा आदि समस्या भी दृष्टिगत हुई हैं।

सिद्दीकी, शाहेदा और गुप्ता, दीपिका(2018) नेकालीन उद्योग में कार्यरत् श्रमिकों की प्रमुख समस्या एवं निदान10 के संदर्भ में किए गए अपने अध्ययन में पाया कि स्वास्थ्य का श्रमिकों की कार्यकुशलता पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कालीन उद्योग में कार्यरत् श्रमिक अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं, क्योंकि ऊन के रेशे बारीक कण श्रमिकों की श्वास नली द्वारा शरीर में तथा आँखों में प्रवेश कर जाते हैं। जिससे दमा, टी. बी., कैंसर, नेत्र रोग जैसी कई प्रकार की बीमारी से ग्रस्त होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इन बीमारियों से बचने के लिए श्रमिकों के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। बीमारी से ग्रस्त कई श्रमिक ऋण में डूब जाते हैं तथा शासन द्वारा भी इन उद्योगों में कार्यरत् श्रमिकों के लिए उचित प्रावधान नहीं पाये गये हैं। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के अलावा अशिक्षा, प्रशिक्षण का अभाव, आवास की समस्या भी इन श्रमिकों में पाई गयी।

उपर्युक्त अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि महिला श्रमिकों के विभिन्न पक्षों पर अध्ययन किए जा चुके है किंतु चाय बागानों की महिला श्रमिकों की स्थिति आदि पर अध्ययन अभी तक कम हुए हैं। अध्ययन क्षेत्र की महिलाओं की समस्याओं को आधार बनाते हुए अध्ययन किया गया है।

शोध प्रारूप : प्रस्तुत अध्ययन हेतु अन्वेषणात्मक एवं विवेचनात्मक शोध अभिकल्प का प्रयोग किया गया है। प्रस्तुत अध्ययन समग्र या संगणना पद्धति पर आधारित है। उत्तराखण्ड चाय विकास बोर्ड उत्तराखण्ड के क्षेत्रीय कार्यालय धारानौला अल्मोडा से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार उत्तराखण्ड में बोर्ड योजना के अंतर्गत उत्तराखंड में कुल चाय बागानों की संख्या 33 है जो कौसानी (बागेश्वर), जौरासी (अल्मोड़ा), घोड़ाखाल (नैनीताल), चम्पावत, नौटी (चमोली), जखोली (रुद्रप्रयाग), पौड़ी क्षेत्रों में स्थित है। कौसानी इसका वृहद एवं सबसे पुराना बागान होने के कारण इसको अध्ययन हेतु चयनित किया गया है। जहाँ पर इन बागानों की संख्या 10 है। इन चाय बागानों में कुल 403 श्रमिक हैं जिनमें से 306 महिलाओं को अध्ययन हेतु चुना गया है। तथ्यों का संकलन प्राथमिक द्वितीयक आँकड़ों द्वारा किया गया है। साक्षात्कार अनुसूची के द्वारा प्राथमिक आँकड़ों को एकत्रित किया गया है।

अध्ययन का उद्देश्य : 1. कौसानी स्थित चाय बागानों में कार्यरत् महिला-श्रमिकों की विभिन्न समस्याओं को जानना है।

प्रस्तुत अध्ययन का आँकड़ा-विश्लेषण एवं सारणीयन -

यद्यपि स्वतंत्रता के बाद से ही अनेक सांविधानिक अधिनियम एवं योजनाएँ इन महिला-श्रमिकों के कल्याण के लिए संचालित किए गए है, किन्तु वास्तविक धरातल पर यदि बात करें तो आज भी इन महिला श्रमिकों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना अपने कार्यस्थलों में करना पड़ता है। चाय बागान में कार्यरत् महिलाएँ भी इन समस्याओं से अछूती नहीं है। जिनको मुख्य रूप से स्वास्थ्य, मानसिक शोषण, अधिकारी का बुरा बर्ताव आदि सम्बन्धी समस्याएँ होती हैं। बीमार पडने पर यदि छुट्टी की व्यवस्था नहीं हो तो इनकी स्थिति और भी सोचनीय हो जाती है। शरीर के साथ-साथ इनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ने लगता है। जिससे श्रमिकों की कार्यकुशलता पर गहरा प्रभाव पड़ता है और विकास की प्रक्रिया बाधित होती है। चयनित अध्ययन क्षेत्र की 306 महिला श्रमिकों से इन विभिन्न समस्याओं को प्राप्त किया गया है। जो निम्न सारणियों द्वारा प्रदर्शित किए गए हैं| कार्यस्थलों पर महिलाओं को अनेकों समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वे कई समस्याओं से घिरी रहती हैं। जब अध्ययन क्षेत्र की महिलाओं से जानने का प्रयास किया गया कि कार्यस्थल पर बीमार पड़ने की दशा में छुट्टी दी जाती है? तो प्राप्त प्रत्युत्तर निम्न सारणी द्वारा प्रदर्शित किया गया हैं-

सारणी संख्या-1
कार्यस्थल पर बीमार पड़ने की दशा में छुट्टी दिए जाने संबंधी सारणी

क्र.स.

प्रत्युत्तर का स्वरूप

हाँ

कुछ समय के लिए

नहीं

बिलकुल नहीं

योग

1

छुट्टी की व्यवस्था

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

2

117

38.2

3

1.0

135

44.1

51

16.7

306

100

3

कुल

117

38.2

3

1.0

135

44.1

51

16.7

306

100


उपर्युक्त सारणी से परिलक्षित होता है कि सर्वाधिक 44.1% श्रमिकों को बीमार पड़ने पर छुट्टी नहीं दी जाती। 38.2% को छुट्टी दी जाती है। 16.7% को बिल्कुल भी छुट्टी नहीं दी जाती जबकि 1.0% महिला श्रमिकों को कुछ समय के लिए ही छुट्टी दी जाती है। अनुसंधानकर्ता ने असहभागी अवलोकन में पाया कि छुट्टी लेने पर इनके वेतन से कटौती कर दी जाती है। एक तरफ़ ये चाय बागान इन महिला-श्रमिकों के लिये वरदान स्वरूप हैं तो  दूसरी तरफ़ स्वास्थ्य से संबंधित उचित व्यवस्था होने के कारण इन श्रमिकों को अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।

बीमार होना स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ पहलू है जिसका प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर भी दिखाई पड़ता है। इस दशा के उपचार के लिए किसी प्रकार की कार्यवाही को उचित माना जाता है। रोगग्रस्त शरीर से व्यक्ति की कार्यक्षमता क्षीण हो जाती है। जिससे सोचने, विचारने, कार्य करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। वर्तमान दौर में व्यक्ति को अनेक प्रकार की बीमारियों ने घेरा हैं। जिनका उपचार करना बेहद ज़रूरी है। प्रस्तुत अध्ययन में चयनित महिला-श्रमिकों के कार्यस्थल पर बीमार पड़ने की दशा में उपचार की व्यवस्था को लेकर प्राप्त प्रत्युत्तर को निम्न सारणी द्वारा प्रदर्शित किया गया है-

सारणी संख्या-2
कार्यस्थल पर बीमार पड़ने की दशा में उपचार की व्यवस्था संबंधी सारणी
 

क्र.स.

प्रत्युत्तर का स्वरूप

हाँ

नहीं

थोड़ा-बहुत

योग

1

उपचार की व्यवस्था

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

2

-

-

306

100

-

-

306

100

3

कुल

-

-

306

100

-

-

306

100

 

उपर्युक्त सारणी से परिलक्षित होता है कि शत प्रतिशत महिला श्रमिकों ने कहा है कि कार्यस्थल पर बीमार पड़ने की दशा में उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है। जो सकारात्मक नहीं है। आँकड़ों से स्पष्ट है कि इन चाय बागानों में कार्य करते हुए रोग से पीड़ित होने पर उपचार की किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं है। अध्ययनकर्ता ने अध्ययन में पाया कि बरसाती होने के कारण चाय बागानों में भीगते हुए कार्य करने से अनेक प्रकार के बीमारियों से ग्रस्त होने लगतीं हैं जैसे जुकाम एवं खाँसी, अस्थमा, बुखार, टाइफ़ाइड इत्यादि। कुछ महिला श्रमिकों का कार्य करते हुए हाथ-पाँव टूटा है कुछ को साँप ने काटा है ऐसी स्थिति में छुट्टी लेने पर भी वेतन कट जाता है।

वर्तमान में भरण-पोषण करने के अनेक स्रोत विद्यमान हैं कुछ लोग पूँजी के मालिक हैं, तो कुछ मज़दूर और कामगार बाज़ार में अपना श्रम बेचते हैं। जिसके बदले उन्हें वेतन मिलता है। मालिक का श्रमिक के लिए व्यवहार उसकी कार्यक्षमता के लिए उसी प्रकार महत्त्वपूर्ण है जैसे ऊर्जा के लिये भोजन। मालिक यदि श्रमिक के प्रति सम्मानजनक व्यवहार रखता है तो कार्यकुशलता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। अतः अध्ययन क्षेत्र की महिला श्रमिकों के प्रति बागानों के मालिकों के व्यवहार की जानकारी प्राप्त कर निम्न सारणी द्वारा प्रदर्शित किया गया है-

सारणी संख्या-3
बागानों में उत्तरदाताओं के प्रति मालिक के व्यवहार संबंधी सारणी 

क्र.स.
प्रत्युत्तर का स्वरूप
सम्मानजनक
सामान्य
भेदभाव पूर्ण
योग
1
मालिक का व्यवहार
आवृत्ति
प्रतिशत
आवृत्ति
प्रतिशत
आवृत्ति
प्रतिशत
आवृत्ति
प्रतिशत
2
87
28.4
160
52.3
59
19.3
306
100
3
कुल
87
28.4
160
52.3
59
19.3
306
100

 

    उपर्युक्त सारणी से स्पष्ट है कि चाय बागानों में सर्वाधिक 52.3% महिला श्रमिकों के मालिकों का व्यवहार उनके प्रति सामान्य, 28.4% सम्मानजनक, 19.3% महिला श्रमिकों के साथ उनके मालिक भेदभाव पूर्ण व्यवहार करते हैं।

नोट- अध्ययनकर्ता ने अध्ययन में पाया कि इन चाय बागानों में तीन प्रकार की व्यवस्था बनी हुई है जिसमें श्रमिक, ज़मीन मालिक एवं सुपरवाइज़र है। सबसे नीचे श्रमिक वर्ग इनके ऊपर ज़मीन मालिक एवं सबसे ऊपर सुपरवाइज़र कार्यरत् हैं। ज़मीन मालिकों का दबाव इन श्रमिकों के ऊपर अधिक है। ये चाय बागानों के कार्य के अलावा अपने निजी कार्य घास कटाना, खेत खुदवाना, गोबर ढुलवाना आदि कार्य भी इन श्रमिकों से करवाते हैं। कुछ महिला श्रमिकों ने यह भी स्पष्ट किया है कि निजी कार्य के कारण कई बार चाय बागानों में कार्य करना छोड़ने का विचार भी मस्तिष्क में आता है लेकिन आर्थिक तंगी के कारण नहीं छोड़ पाते एवं कुछ श्रमिक ऐसे भी हैं जो निजी कार्यों को करना ग़लत नहीं समझते, क्योंकि यहाँ से इनके परिवार की रोजी-रोटी चलती है। कुछ मालिक ऐसे भी हैं जो श्रमिकों की आय से प्रत्येक महीने कुछ हिस्सा माँग लेते हैं। श्रमिकों के द्वारा विरोध प्रकट करने पर इनको धमकाया जाता है।

महिला-श्रमिकों को यौन शोषण, लिंग विभेदीकरण, असुरक्षा, छेड़छाड़ जैसी अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अध्ययन क्षेत्र की अधिकतर महिला-श्रमिकों को कार्यस्थल पर शारीरिक शोषण का शिकार होना पड़ता है एवं बेहद प्रतिकूल परिस्थितियों में भी काम करती है। चयनित महिला-श्रमिकों से कार्यस्थल पर किन-किन प्रकार के शोषण का सामना करना पड़ता है। संबंधी प्रश्न पूछे जाने पर प्राप्त प्रत्युत्तर निम्न हैं-

सारणी संख्या-4
चाय बागानों में होने वाले शोषण की सारणी

 

क्र.स.

प्रत्युत्तर का स्वरूप

आवृत्ति

प्रतिशत

1

हाँ

-

-

2

नहीं

306

100

3

यौन शोषण

-

-

4

लिंग विभेदीकरण

-

-

5

असुरक्षा

-

-

6

छेड़छाड़

-

-

7

योग

306

100

 

उपर्युक्त सारणी द्वारा स्पष्ट है कि शत प्रतिशत महिला-श्रमिकों ने चाय बागानों में यौन शोषण, लिंग विभेदीकरण, असुरक्षा, छेड़छाड़ जैसी भयानक समस्याओं का सामना नहीं किया है। चाय बागानों में यौन शोषण, लिंग विभेदीकरण, असुरक्षा, छेड़छाड़ जैसी समस्याएँ नहीं होने के कारण को जानने का प्रयास अध्ययनकर्ता द्वारा किए जाने पर महिला श्रमिकों ने बताया कि चाय बागानों में मालिक एवं पुरुष वर्ग उसी क्षेत्र के निवासी होने के कारण आपस में किसी किसी रिश्ते जैसे- दीदी, बहू, बहिन, भाभी, चाची आदि से संबंधित होते हैं। जिस कारण कौसानी चाय बागानों में अभी तक ऐसी कोई अनैतिक घटनाएँ उनके साथ घटित नहीं हुई हैं। यह एक सकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर हुआ।

मासिक धर्म महिलाओं के लिए एक जैविकीय प्रक्रिया है यह हमेशा पर्वतीय समाज में वर्जनाओं और मिथकों से घिरा रहा है। जो महिलाओं को सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के कई पहलुओं से बाहर रखता है। मासिक धर्म के समय जागरूकता की कमी और आर्थिक कारणों से कई महिलाएँ सैनिटरी पैड का उपयोग नहीं कर पाती हैं और उन्हें इसका ज्ञान भी नहीं होता है। जिस कारण वे गम्भीर बीमारियों से ग्रस्त होने लगती हैं। जब उत्तरदाताओं से मासिक धर्म के समय प्रयुक्त किए जाने वाले साधनों के संबंध में पूछा गया, तो प्राप्त प्रत्युत्तर निम्न सारणी के माध्यम से प्रदर्शित हैं-

सारणी संख्या-5
उत्तरदाताओं के द्वारा मासिक धर्म के समय प्रयुक्त किए जाने वाले साधनों से संबंधी सारणी

 

क्र.स.

प्रत्युत्तर का स्वरूप

कपड़ा

सैनिटरी पैड

कपड़ापैड

अन्य

योग

1

प्रयुक्त साधन

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

2

116

61.70

5

2.65

54

28.72

13

6.93

306

100

3

कुल

116

61.70

5

2.65

54

28.72

13

6.93

306

100

 

उपर्युक्त सारणी के आंकड़ों से स्पष्ट है कि सर्वाधिक 61.70% उत्तरदाता मासिक धर्म के समय पर कपड़े, 2.65% सैनिटरी पैड़, एवं 28.72% कपड़ा एवं पैड़ दोनो का उपयोग करती हैं। जबकि 6.93% उत्तरदाता मासिक धर्म के समय किसी भी प्रकार के साधन का उपयोग नहीं करती हैं। परिणामस्वरूप देखा जा सकता है कि मासिक धर्म के दौरान श्रमिक साधनों का उपयोग कर रही हैं। जो सकारात्मक परिणाम है।

कार्यस्थल पर प्रयुक्त साधनों के बदलने की उचित व्यवस्था को जानने के लिए महिला-श्रमिकों के प्राप्त प्रत्युत्तर निम्न सारणी में प्रस्तुत किए गए हैं-

सारणी संख्या-6
कार्यस्थल में प्रयुक्त साधनों को बदलने की उचित व्यवस्था संबंधी सारणी

 

क्र.स.

प्रत्युत्तर का स्वरूप

हाँ

नहीं

योग

1

साधनों को बदलने की उचित व्यवस्था

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

आवृत्ति

प्रतिशत

2

-

-

188

100

188

100

3

कुल

-

-

188

100

188

100

  

उपर्युक्त प्राप्त आंकड़ों से परिलक्षित होता है कि चाय बागानों में प्रयुक्त साधनों को बदलने की उचित व्यवस्था नहीं है। कार्यस्थल पर महिला प्रसाधन कक्ष नहीं होने के कारण मासिक धर्म के समय तो यह स्थिति और अधिक कष्टदायी हो जाती है। जब वह दिन भर उसी स्थिति में अपना कार्य निरंतर करती रहती हैं। पैड, कपड़ा बदलने के लिए स्थान का अभाव होने पर कई शारीरिक बीमारियों से ग्रस्त होने लगती हैं। अध्ययन से ज्ञात हुआ कि जिन महिला श्रमिकों का कार्यस्थल, अपने निवास स्थान से अधिक दूरी में है वे मध्यान्तर के समय कार्यस्थल पर ही भोजन करती हैं। ऐसी महिला श्रमिकों को मासिक धर्म के समय प्रयुक्त साधनों को बदलने में कष्ट होता है। इन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि आवश्यकता पड़ने पर चाय बागानों के आस-पास जंगलों में जाकर पैड, कपड़ा बदलती है जो उनकी मजबूरी बन जाती है।

निष्कर्ष एवं सुझाव : निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि चयनित महिला-श्रमिक अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए चाय बागानों में कार्य कर रही हैं। उनके सम्मुख अनेक प्रकार की समस्याएँ खड़ी हैं। साँप के द्वारा काटना, बंदरों के द्वारा काटना, हाथ-पाँव टूटना आदि समस्याओं के अलावा कीटनाशकों का कार्यस्थल पर प्रयोग से इनमें गम्भीर बीमारियाँ होने की सम्भावना बढ़ जाती है। जिनका निवारण किया जाना ज़रूरी है। शासन द्वारा चाय बागानों में कार्यरत् श्रमिकों के लिए उचित प्रावधान नहीं किए गए हैं। चाय बागानों में कार्य करने वाली महिला-श्रमिकों के लिये बीमार पड़ने पर छुट्टी एवं उपचार हेतु उचित प्रबंधन किया जाना चाहिए। जो चाय बागान बड़े एवं घर से दूर हैं वहाँ शौचालय की व्यवस्था की जानी चाहिए एवं साथ ही महिला प्रसाधन कक्ष की भी व्यवस्था होनी चाहिए जो महिला श्रमिकों की सुविधा एवं सुरक्षा हेतु अनिवार्य है। चाय बागानों के मालिक(ज़मीन मालिक, सुपरवाइज़र) उसी क्षेत्र के निवासी होने के कारण यौन शोषण, लिंग विभेदीकरण, असुरक्षा, छेड़-छाड़ जैसी अनैतिक घटनाएँ उनके साथ घटित नहीं होती है। जो अध्ययन का सकारात्मक परिणाम रहा।

संदर्भ :
1. सुभाष सेतिया, ‘असंगठित श्रेत्र में महिला कामगारों की स्थिति, योजना, अक्टूबर 2014, पृ066
2. वही, पृ066
3. Duvvurynata, work Participation of women in India, A Study With Special Reference to Female Agricultural Labours (1961) to (1981), A.V. Jose(ed) op. cit, (1989) PP 63-107.
4. सुभाष शर्मा, ‘भारत में बाल मजदूर', प्रकाशन संस्थान अंसारी रोड, दरियागंज नयी दिल्ली, 1997, पृ0140
5Omvedt Gail “The Unorgained Sector” and women workers, Guru Nanak Journal of Socilogy, (1992) 13, 1.1992 : 1961.
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7. सुभाषचन्द्र गुप्ता, ‘कार्यशील महिलाएं एवं भारतीय समाज’, अर्जुन पब्लिशिंग हाउस, 2008, पृ0 194
8. मधुसूदन त्रिपाठी, ‘भारत में महिला श्रमिक', खुशी पब्लिकेशन्स गाजियाबाद नई दिल्ली2011पृ075
9मीनाक्षी सिंह, ‘महिला अधिकार एवं महिला श्रम (सिद्धांत एवं कानून)’, ओमेगा पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली, 2015, पृ0101
10शाहेदा सिद्दीकी, गुप्ता दीपिका, ‘कालीन उद्योग में कार्यरत् श्रमिकों की प्रमुख समस्या एवं निदान’, IJSRSET2018.

कु. सावित्री
शोध छात्रा (समाजशास्त्र), एम. बी. रा. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, हल्द्वानी
Savitijoshi2@gmail.com  

डॉ. एम. पी. सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर (समाजशास्त्र), एम. बी. रा. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, हल्द्वानी
कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल

  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-46, जनवरी-मार्च 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव चित्रांकन : नैना सोमानी (उदयपुर)

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