शोध आलेख : ‘रेत-समाधि’ : भाव व शिल्प का अनूठा प्रयोग / डॉ.सोनल

रेत-समाधि : भाव शिल्प का अनूठा प्रयोग
- डॉ.सोनल

शोध सार : समकालीन लेखकों में गीतांजलि श्री का उल्लेखनीय स्थान है| गीतांजलि श्री का लेखन भाव शिल्प दोनों स्तर पर अनूठा प्रयोग है| उनके लेखन को किसी दायरे में नहीं बाँधा जा सकता| स्त्री-विमर्श, किन्नर-विमर्श,साम्प्रदायिक समस्या, आतंकवाद की समस्या, व्यक्ति-विशेष की समस्या-इन सभी समस्याओं को लेखिका ने अपने कथा-साहित्य में स्थान दिया है| उल्लेखनीय यह है कि ये सभी पक्ष अनजाने ही उनके कथा-साहित्य का हिस्सा बन जाते हैं| गीतांजलि श्री की लेखनी अपनी रौ में बहती है और इस बहाव में ही अपने भाव और शिल्प का रास्ता बनाती है| सन् 2018 . में प्रकाशित तथा अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित भारतीय भाषा की प्रथम कृति रेत-समाधि भाव तथा शिल्प दोनों स्तर पर नवीन प्रयोगात्मक उपन्यास है| इस उपन्यास में लेखिका ने चंदा और अनवर की एक ऐसी प्रेम कहानी को केंद्र में रखा है जो भारत-पाक बँटवारे के कारण अधूरी रह जाती है| इसके साथ ही रोज़ी किन्नर के माध्यम से किन्नर-विमर्श को वाणी दी गयी है| भाव के साथ-साथ शिल्प का भी नूतन प्रयोग उपन्यास में मिलता है|

बीज शब्द : किन्नर-विमर्श, रेत-समाधि, सरहद, अम्मा, पीठ, बॉर्डर, मनोवैज्ञानिक, स्वर-ध्वनि, रचनाधर्मिता, रहस्य|

मूल आलेख : महत्त्वपूर्ण समकालीन लेखिका गीतांजलि श्री की रचनाधर्मिता किसी मुद्दे विशेष को केंद्र में नहीं रखती बल्कि अपनी मौज में बहती है| स्वयं लेखिका का मानना है कि वे किसी मकसद से नहीं लिखती बल्कि अपनी रवानी में आगे बढ़ती है और इस क्रम में उनका लेखन स्वयं अपनी दिशा ढूँढ लेता है| रेत-समाधि ऐसा ही प्रयोग है- “कथा लेखन की एक नई छटा है इस उपन्यास में| इसकी कथा, इसका कालक्रम, इसकी संवेदना, इसका कहन, सब अपने निराले अंदाज में चलते हैं| हमारे चिर-परिचित हदों-सरहदों को नकारते लांघते| जाना-पहचाना भी बिलकुल अनोखा और नया है यहाँ|”1

उपन्यास की शुरुआत होती है पति की मौत के बाद सभी की तरफ़ से माई के पीठ करने से| बार-बार उठाने पर भी वह नहीं उठती| लेकिन धीरे-धीरे उसकी स्वर-ध्वनि बदलती है जोनहीं उठूँगी सेनयी उठूँगी में बदल जाती है और फिर शुरू होती है एक यात्रा, नया बनने की, ज़िन्दगी को नए सिरे से जीने की यात्रा| रेत-समाधि उपन्यास तीन खण्डों में है- पीठ, धूप, हद-सरहद| अपने नाम के ही अनुरूप पीठ खंड में अस्सी वर्षीय अम्मा का अपने पति की मौत के बाद सभी से पीठ करने का उल्लेख है- एक कोने में सिमटी गठरी की तरह पड़ी हुई| यहाँ पीठ करना बतौर रूपक प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ है सभी चीज़ों से उदासीन हो जाना| अस्सी वर्षीय अम्मा उर्फ़ चंदा उर्फ़ चन्द्रप्रभा देवी हमेशा पीठ दरवाजे की तरफ़ किए पड़ी रहती| अम्मा के पति जो सरकारी अफ़सर थे- उनकी मौत हो चुकी है| अब उनके परिवार में आला अफ़सर बेटा, बहू, लेखिका बेटी और दो पोते हैं| बेटा आला अधिकारी है और लेखिका बेटी स्वतंत्र है, बाहर रहती है- शहर में उसका अपना फ्लैट, अपनी व्यवस्था है| उपन्यास में माँ-बेटे और बेटी-माँ का बहुत ख़ास रिश्ता उभरता है| इस सन्दर्भ में लेखिका गीतांजलि श्री खुद कहती हैं- उपन्यास का पहला अंश है पीठ- उसमें माँ और बेटे के रिश्ते का वृत्तान्त है| बेटे के घर में ही माँ रहती है और फिर पूरा परिवार उसमें जुड़ता है| माँ और बेटी का शायद बिलकुल अलग इसलिए दिखता है कि वहाँ पर सम्बन्ध एक तरह से बिलकुल उलट जाता है, वो इक्व़ेशन एकदम बदल जाता है... माँ एक तरह से बेटी हो जाती है और बेटी माँ हो जाती है|”2

यह भरा-पूरा परिवार अपनी हरियाली के साथ उपन्यास में उपस्थित है| इसी अंक में बुद्ध की खंडित मूर्ति का भी जिक्र है जिसे परिवार ने अलमारी में रखा है(चूँकि खंडित मूर्ति बाहर नहीं रखी जाती)| यह खंडित मूर्ति(जिसका यदि मोल भाव किया जाए तो वह लाखों करोड़ों में बिकती) उपन्यास में ख़ासा रहस्य पैदा करती है| कहाँ से आयी, किसको मिली इसका भेद धीरे-धीरे बाद में खुलता है- ‘‘ज़रा-सा कंधा गायब और एक ही लटकौवाँ बौद्ध कान| दूसरा कहीं टूटा छूटा| रेत में|3 इसी अंक में रोज़ी किन्नर का भी जिक्र आया है जो बड़े दिन पर अम्मा से मिलने आती थी| इस किरदार के बारे में आलोचक हरीश त्रिवेदी बताते हैं- “तब एक नया चरित्र आता है और लगता है कि यह चरित्र इतना सम्मोहक है कि ये तो नॉवेल में सबको दबाकर रखेगा, सब लोग फीके पड़ जायेंगे इसके सामने और वो चरित्र है एक हिजड़े का... हिजड़ों के चरित्र का चित्रण अब तक बहुत कम हुआ है|”4 कौन थी रोज़ी, क्या रिश्ता था रोज़ी का अम्मा से, कहाँ और कब मिली थी रोज़ी अम्मा कोउपन्यास के आखिर में इन रहस्यों से पर्दा उठता है|

नहीं, मैं नहीं उठूँगी से अम्मा की स्वर-ध्वनि बदलती है- “नहीं, नहीं मैं नहीं उठूँगी| अब तो मैं नहीं उठूँगी| अब्ब तो मैं नइ उठूँगी| अब्ब तो मैं नइई उठूँगी| अब मैं नयी उठूँगी| अब तो मैं नयी ही उठूँगी|5 और अचानक अम्मा गायब हो जाती है बुद्ध की टूटी मूर्ति के साथ| थाने में वह अपने पति का नाम अनवर बताती है- ये सभी प्रसंग पाठक के मन में रहस्य पैदा करते हैं- कौन है यह अनवर? उपन्यास का यह मनोवैज्ञानिक पक्ष है जिस सन्दर्भ में आलोचक रवींद्र त्रिपाठी का कहना है- यह उपन्यास मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं की एक ऐसी गाथा है जिसमें बीता समय मनुष्य के मन में बना रहता है; दबाये नहीं दबता; और वो आगे चलकर अचानक उबलकर बाहर आता है तथा बहुत कुछ अस्त-व्यस्त कर देता है| अम्मा के साथ तो यही होता है|6 धीरे-धीरे उपन्यास में इन सभी रहस्यों से परदा उठता है|

धूप उपन्यास का दूसरा अंक है जिसमें अम्मा अपनी लेखिका बेटी के यहाँ रहने चली जाती है| यह दुनिया बेटी की दुनिया है जो अब तक मुक्त जीवन जीती आई थी लेकिन अब जब अम्मा साथ रहने लगी है तब अम्मा बेटी और बेटी अम्मा बन गयी- बेटी ने माँ बनकर माँ को बेटी बनाया और उनके माथे पे हाथ फेरा|7 बेटी के साथ रहते माँ के हाव-भाव में एक अलग ही रौनक गयी है| वह रोज़ी के साथ हर पल, हर दिन नई ज़िन्दगी जी रही है- गाउन पहनना, रंग-रोगन लगाना, उबटन मलना- यह सारा उपक्रम अपने पहले पति अनवर से मिलने की तैयारी है जिससे वह भारत-पाक विभाजन के दौरान बिछुड़ गयी थी और मज़बूरी में जिन्हें अपना घर अलग-अलग बसाना पड़ा| धूप अंक में ही रोज़ी किन्नर की हत्या का भी जिक्र है| रोज़ी के साथ ही अम्मा ने पाकिस्तान जाने की योजना बनायी थी| उसकी हत्या के बाद अम्मा अपनी बेटी के साथ पाकिस्तान पहुँचती है और इसी के साथ शुरू होता है उपन्यास का तीसरा अंक हद-सरहद’| थार रेगिस्तान में भारत-पाक विभाजन के समय अपने साथ हुई घटना को अम्मा तितलियों को बताती है जो पहली कहानी- ‘कहानियाँ, दूसरी कहानी- ‘मूर्ति और वो लड़की, तीसरी कहानी- ‘रेत समुंदर, चौथी कहानी- ‘डूबों का होना के माध्यम से व्यक्त हुई है|

कहानियाँ में ज़िक्र है कि किस तरह बलवाइयों ने सोलह वर्षीय चंदा और घर की बाकी महिलाओं को ट्रक पर लाद दिया और बड़े कैदखाने में डाल दिया| यही चंदा को बूढ़े बुद्ध की मूर्ति दिखी थी जिसे उसने कभी अजायबघर में अनवर के साथ देखा था- “एक कमरे में मूर्ति| ऐसी तो अजायबघर में देखी| अनवर के संग| हूबहू| मेरा अनवर|’’7 दूसरी कहानी मूर्ति और वो लड़की में रोज़ी के रहस्य से पर्दा उठता है| जो रोज़ी अम्मा से मिलने-जुलने अक्सर आया-जाया करती थी और जिससे अम्मा का काफ़ी दोस्ताना सम्बन्ध था- वह रोज़ी अम्मा को भारत-पाक विभाजन के समय आपाधापी- भाग-दौड़, बचने-बचाने के क्रम में मिली थी- बाजी, छोटी लड़की सिसकी| जो उसका हाथ पकड़े थी जैसे कभी नहीं छोड़ेगी| दूसरे हाथ में मेरी मूर्ति| बच्ची को खींचती हुई मैं रेत पर भागी| वो बच्ची रोज़ी थी|भारत-पाक विभाजन के दर्दनाक दौर में जिस लड़की ने अम्मा का हाथ पकड़ा था उसे अम्मा जानती भी नहीं थी लेकिन दोनों एक-दूसरे से ऐसे मिले जैसे जन्मों के बिछुड़े हुए मिल रहे हों| और यह सिलसिला जीवनपर्यंत चलता रहा| यही बच्ची आगे चलकर रोज़ी(जो कि एक हिजड़ा है) के रूप में पाठकों के सामने आती है जिसे अम्मा के घर वाले रोज़ी बुआ कहकर बुलाते हैं| तीसरी कहानी रेत समुंदर रेगिस्तान में चढ़ते, फिसलते, गिरते, लुढ़कते लोगों का ज़िक्र है| यह घटना भारत-पाक विभाजन के समय हुई थी जिसमें चंदा और छोटी बच्ची रोज़ी भी शामिल थे| चौथी कहानीडूबों का होना चंदा और रोज़ी के बिछुड़ने की कहानी है| दोनों बचते-बचाते कंटीली झाड़ी में उलझ पड़े थे| पूरी देह घाव से भरी हुई| सुबह नींद खुली तब चंदा ने खुद को किसी छावनी के अस्पताल में पाया| मूर्ति बगल रखी थी लेकिन छोटी बच्ची रोज़ी ग़ायब थी| इसी बीच घोषणा हुई कि दो मुल्कों के बीच सरहद खिंच गयी है| रेत-समाधि उपन्यास में इन चारों कहानियों का जुड़ाव पाठक को फ्लैशबैक में ले जाता है, जहाँ उपन्यास के कई रहस्य खुलते हैं| चंदा का अस्सी साल की उम्र में पाकिस्तान पहुँचने का कारण, रोज़ी और चंदा का सम्बन्ध, चंदा और अनवर का सम्बन्ध और उपन्यास की शुरुआत से ही उपस्थित बुद्ध की मूर्ति का रहस्य भी इन चारों कहानियों के माध्यम से प्रकट होता है|

यह उपन्यास गहरे अर्थों में भारत-पाक विभाजन की त्रासदी व्यक्त करता है| इस विभाजन ने कितने रिश्ते तबाह कर दिए... कितने टूट गए... उलझ गए| नवाज़ भाई जो पाकिस्तानी पुलिस महकमे में है, इन्हीं उलझनों का ज़िक्र करते हुए कहते हैं- ‘‘बस मनाइए कि दोनों मुल्कों में तमीज़ तौफीक लौटे, सयानफ आए, और आज़ादी से आएँ-जाएँ| वर्ना यों ही ढेरों बेमतलब कैद में पड़े रहेंगे| दोनों तरफ़| मेरे ख़ालू सत्रह साल से उधर हैं| उनकी आँख से एक आँसू ढुलक आता है|’’9 सरहद का सही मर्म अम्मा (चंदा) समझाती है- ‘‘गधों, सरहद कुछ नहीं रोकती| दो अंगों के बीच का पुल होती है| रात और दिन के बीच| ज़िन्दगी मौत के| पाने खोने के| वो जुड़े हैं| उन्हें अलग नहीं कर सकते|’10 अम्मा की मौत भी खैबर में हुई- वह पीठ के बल गिरी सीधी सतर- उसकी मौत गोली लगने से हुई| वह रेत में समाधिस्थ हुई| उपर्युक्त विश्लेषण से हम आकलन कर सकते हैं कि रेत-समाधिका कैनवास कितना व्यापक वैविध्यपूर्ण है|

इस उपन्यास में जो बात हमें विशेष रूप से आकृष्ट करती है, वो है इसकी बुनावट, इसका नया रंग-ढंग और ढब और यह शिल्प कथावस्तु के ढाँचे को कलात्मकता प्रदान करना है| लेकिन शिल्प यहाँ कोई अलग से या बाहर से आरोपित नहीं है| शिल्प और कथा एक दूसरे में ऐसे गूँथे हुए हैं की उनको अलगाना संभव नहीं है|”11 लेखिका ने यहाँ बहुस्तरीय प्रयोग किया है| रेत-समाधि का गद्य काव्यात्मक है- हर कतरा हर तिनका हर रेशा पुर-एहसास है| उपन्यास के विस्तृत कथानक पर चर्चा पहले ही हो चुकी है| ‘रेत-समाधि की पात्र-योजना वृहद् है| अम्मा, बेटा-बहू, बहन, पोता, रोज़ी के साथ-साथ भरी-पूरी प्रकृति पूरी धमक के साथ उपन्यास में मौजूद है| चिड़िया, गुलदाऊदी, कौए, तितलियाँ, सूरज, रेनबो, मकड़ियाँ- ये सभी मह्त्त्वपूर्ण भूमिका में है- ‘‘ मकड़ियाँ अलबत्ता झल्लाई घूमती हैं कि जिन वस्तुओं पर अनंतकाल से सूत कात के लपेट रही थीं वो वस्तुएँ उनके पाँव तले से ज़मीन की तरह खींच ली जा रही हैं और वे धराशायी होने के डर से अपने निरे पाँवों में पित पित पितर पितर इधर उधर दौड़ पड़ती हैं|’’12 उपन्यास के तीसरे अंक हद-सरहद में तितलियों का ज़िक्र है जिसे अम्मा अपनी कहानी सुनाती है- ‘‘तितली चुपचाप सुन रही है औरत की कहानी| वो सुनाती है| फिर रुककर फिर सुनाती है|’’13 उपन्यास में कौवों की भी उल्लेखनीय भूमिका है- अम्मा की कैफियत का समाचार बड़े को देने से लेकर उपन्यास के अंत तक इनका महत्त्व बना रहता है| लेखिका ने उपन्यास के मध्य में एक फैंटेसीनुमा नाटकीय वृत्तान्त भी रचा है जो भारत-पाक विभाजन की त्रासदी से सम्बद्ध है| यह नाटक वाघा बॉर्डर पर खेला जा रहा है जिसमें मंटो, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, कृष्ण बलदेव वैद, बलवंत सिंह, कृष्णा सोबती जैसे हिंदी-उर्दू-पंजाबी के लेखक अपनी भूमिका निभा रहे हैं- ‘‘वाघा गए तो गाथा ड्रामा और कथा पार्टिशन| छोटी होती औरत का ये कारनामा है कि हर कहानी होती ही है पार्टीशन स्टोरी- प्यार, मोहब्बत, हसरत, हौसला, दर्द, बिछोह, खौफ, कटाई? ज़ाहिर में हाज़िर नहीं तो फज़ा में रूहें हैं फिरतीं| या बैठतीं क्योंकि एक लाइन में लेखकगण बैठते हैं और जैसे फॉर्मल डिनरों पर हर शख्स के आगे उसके नाम का कार्ड रखा होता है, यहाँ भी लगे हैं| भीष्म साहनी, बलवंत सिंह, जोगिन्दर पॉल, मंटो, राही मासूम रज़ा, शानी, इंतज़ार हुसैन, कृष्णा सोबती, खुशवंत सिंह, रामानन्द सागर, मंज़ूर एहतेशाम, राज़िंदर सिंह बेदी, इतने की गिनते रह जाओ|’14 भाषा की बात करें तो उपन्यासकार ने अपनी भाषा खुद से गढ़ी है| “रेत समाधि की सबसे आकृष्ट करने वाली विशेषता उसकी ध्वन्यात्मकता है| इस उपन्यास को पढ़ते हुए दरअसल आप उसे सुनते हैं| एक तरह से अपने कहन के अन्दाज़ में यह दास्तानगोई के निकट है| लेखिका हर शब्द का ध्वन्यात्मक(ओनोमेटोपोईक) पर्याय ढूँढती चलती हैं मानो, शब्द के अर्थ से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण यह हो, कि उसकी ध्वनि क्या है?”15 यह गढ़न ध्वन्यात्मक है- ‘‘धम्म से आँसू गिरता है जैसे पत्थर| बरसात की बूँद|’16 फक्कड़पन इनकी भाषा को ख़ास बना देता है- ‘‘यानी आरा हिले छपरा हिले देवरिया हिले पर हँसी हिले|’17

सगपहिता, बोका बोका ताकना, जगर मगर मॉल, कागाफूसी जैसे अनेक दुर्लभ शब्दों का प्रयोग गीतांजलि श्री की प्रयोगधर्मिता दिखाता है| “‘रेत-समाधि एक ऐसी रचना है जो उपन्यास को-अपनी विधा को एक नये ही रूप, नयी संवेदना, नयी भाषा, नये शिल्प से समृद्ध कर देती है|’’18

निष्कर्ष : सन् 2018 में प्रकाशित उपन्यास रेत-समाधि हर स्तर से प्रयोगात्मक है| भाव तथा शिल्प दोनों स्तर पर लेखिका ने पुरानी लीक को चुनौती दी है| धूप, पीठ, हद-सरहद तीन अंकों में विभाजित रेत-समाधि अस्सी वर्षीय चंदा के भारत से पाकिस्तान पहुँचने की रोमांचक यात्रा है| पीठ, धूप, हद-सरहद- इन तीनों अंकों से गुज़रते हुए पाठक के सामने रहस्य खुलता है कि अम्मा उर्फ़ चंदा उर्फ़ चंद्रप्रभा का पहला विवाह भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले पाकिस्तान के अनवर से हो चुका था| लेकिन विभाजन के बाद दोनों बिछड़ गए| अस्सी वर्षीय चन्दा का पाकिस्तान पहुँचना उसके इस रहस्य से परदा उठाता है| मूल कथा के साथ किन्नर रोज़ी की कहानी किन्नर-विमर्श को प्रत्यक्ष करती है| प्रकारांतर से कथा में प्रकृति भी जुड़ती चली जाती है| ये सभी पक्ष उपन्यास के कैनवास को व्यापक बनाते हैं| रेत-समाधि संगीत की तर्ज पर ढला उपन्यास है- शब्द-अर्थ, दृश्य, बिम्ब- सबमें संगीत रचा बसा है| यह हर तरह से अलहदा और विशिष्ट है| यही कारण है कि हर स्तर पर यह नयेपन की चुनौती लेकर उपस्थित है| यह पाठक तथा आलोचक वर्ग की ढर्राई समझ को भी अपडेट करने के लिए न्यौतती है|

सन्दर्भ :
1. तद्भव, जनवरी 2022, पृष्ठ-100
2. हंस, अप्रैल 2022, पृष्ठ-10
3. श्री, गीतांजलि, रेत-समाधि, प्रथम संस्करण-2018 ., राजकमल प्रकाशन, पृष्ठ-84
4.  Geetanjali Shree, Harish Trivedi/Ret Samadhi:Meditations on Sand/Jaipur Literature Festival
5. श्री, गीतांजलि, रेत-समाधि, प्रथम संस्करण-2018 ., राजकमल प्रकाशन, पृष्ठ-13
6. समालोचन पत्रिका, अंक-दिसंबर,2019.
7. श्री, गीतांजलि, रेत-समाधि, प्रथम संस्करण-2018 ., राजकमल प्रकाशन, पृष्ठ-125
8.वही, पृष्ठ-305
9. वही, पृष्ठ-307
10. वही, पृष्ठ-331
11.  तद्भव (अंक 37) प्रकाशन तिथि-मई, 2018 ., पृष्ठ-261
12.  श्री, गीतांजलि, रेत-समाधि, प्रथम संस्करण-2018 ., राजकमल प्रकाशन, पृष्ठ-73
13.  वही, पृष्ठ-298
14.  वही, पृष्ठ-267
15.  कथादेश,जुलाई 2022, पृष्ठ-09
16.  श्री, गीतांजलि, रेत-समाधि, प्रथम संस्करण-2018 ., राजकमल प्रकाशन, पृष्ठ-260
17.  वही, पृष्ठ-42
18.  वही, पृष्ठ-42
19.  तद्भव (अंक 37) प्रकाशन तिथि-मई, 2018 ., पृष्ठ-261
 
डॉ. सोनल
सहायक प्राध्यापक, रामवृक्ष बेनीपुरी महिला महाविद्यालय, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुज़फ्फ़रपुर
sonal.20.bhushan@gmail.com, 9044600401 

अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati), चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका 
अंक-47, अप्रैल-जून 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव 
चित्रांकन : संजय कुमार मोची (चित्तौड़गढ़)
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