शोध आलेख : अल्मोड़ा नगरपालिका अध्यक्ष के रूप में मुंशी हरिप्रसाद टम्टा के कार्यो का मूल्यांकन : एक अध्ययन / माला एवं प्रो. संजय कुमार टम्टा

अल्मोड़ा नगरपालिका अध्यक्ष के रूप में मुंशी हरिप्रसाद टम्टा के कार्यो का मूल्यांकन : एक अध्ययन
- माला एवं प्रो. संजय कुमार टम्टा

शोध सार : देवभूमि उत्तराखण्ड में अनेक विभूतियों ने जन्म लिया, जिन्होनें अपने कार्यो व्यक्तित्व से समाज को एक नई दिशा नई प्रेरणा देने का कार्य किया। जिन्होनें सिर्फ उत्तराखण्ड बल्कि पूरे भारतवर्ष में अपने व्यक्तित्व की छाप छोड़ी और अपनी एक अलग पहचान बनाई। ऐसे ही महान समाजसेवी थे - मुंशी हरि प्रसाद टम्टा। वे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे जीवन के हर क्षेत्र में अपने कार्यो से उन्होनें अपनी योग्यता सिद्ध की। एक समाज सुधारक के साथ ही साथ कुशल पत्रकार, शिक्षाविद राजनितिज्ञ भी रहे। राजनीतिक जीवन में रहते हुए एक सबसे महत्वपूर्ण भूमिका नगरपालिका के अध्यक्ष के रूप में भी रही। जहॅा उन्होंने अपने कुशल प्रशासकत्व को सिद्ध कर नगर विकास के चरण को नई ऊँचाईयों पर ला खड़ा किया। अल्मोड़ा नगर को वास्तविक रूप से नगर का रूप देने में मुंशी हरि प्रसाद टम्टा की उल्लेखनीय भूमिका रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, आवागमन, विद्युत परियोजना, पेयजल योजना आदि-आदि अनेकानेक कार्यो से अल्मोड़ा नगर को विकासशील नगरों की श्रेणी में पहुँचाया। 1945 से 1952 के कार्यकाल में नगरपालिका चैयरमेन के पद पर रहते हुए नगर विकास हेतु जो कार्य किए गए उन्हे नगर के अन्तर्गत आज भी प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है।

बीज शब्द : अल्मोड़ा, विकास कार्य, नगरपालिका, समाजसेवा, पेयजल योजना, मुंशी हरि प्रसाद टम्टा, संग्रहालय, शरणार्थी शिविर, मोटर मार्ग, सफाई कर्मचारी, शिक्षा।

मूल आलेख : औपनिवेशिक भारत में उत्तर प्रदेश का पर्वतीय अंचल कहा जाने वाला क्षेत्र वर्तमान उत्तराखण्ड समूचे विश्व में देवभूमि के नाम से विख्यात है। उसी उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल के अंबेडकर कहे जाने वाले मुंशी हरि प्रसाद टम्टा एक कुशल समाजसेवी प्रख्यात नेता के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें मुख्यतः पिछड़े वर्ग, दलित समाज के उद्धारक नेता के रूप में जाना जाता है तत्कालीन समय में जहॅा इस वर्ग विशेष को शिक्षा-साहित्य, समाज के उच्च सम्मानित पदों सार्वजनिक स्थानों तक भी जाने की अनुमति तक नहीं थी, ऐसी विपरीत परिस्थितियॅा होने के बावजूद मुंशी हरि प्रसाद टम्टा समाज में दीपक की भांति चमक उठे, उन्होने शिक्षा ग्रहण कर समाज के पिछड़ें वर्ग को उठाने के लिए अनेकानेक प्रयत्न किये। अपने जीवन काल में अलग-अलग पदों में रहकर समाज अपने प्रदेश के उत्थान हेतु कई कार्य कियें। वे एक निष्काम और कर्मठ कर्मयोगी की भांति सम्पूर्ण जीवन संघर्षरत रहते हुए दलित-शोषित और पिछड़े वर्ग के लिए शिक्षा सुधार, समाज में व्याप्त कुरीतियाँ और अछूतोद्वार का संकल्प लेने एवं राजनैतिक-सांस्कृतिक आर्थिक समानता के सामायिक अपने प्रश्नों को लेकर एक प्रखर आवाज बनकर लोगों के समक्ष खड़े हुए। मुंशी हरि प्रसाद टम्टा का जीवन सिर्फ जाति विशेष की उन्नति तक ही सीमित रहा बल्कि समस्त मानव कल्याण की ओर अग्रसर होता गया। चूँकि उन्होनें अपने जीवन काल में अलग-अलग पदों पर रहकर कार्य किए, जिनमें वे नगर के महत्वपूर्ण पद तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष के रूप में सुशोभित रहे। नगर अध्यक्ष के रूप में चुने जाने पर हरि प्रसाद टम्टा ने अपने कार्यकाल के दौरान नगर विकास हेतु अनेकों कार्य किए जिसमें नगर विकास कार्य, शिक्षा, स्वास्थ्य, विद्युत परियोजना, जल परियोजना जैसे अनेकानेक कार्यो से नगरवासियों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी, जिसके कारण लोग आज भी उन्हें सम्मानपूर्वक याद करते हैं। वे ऐसे महापुरूष थे जिनका जीवन कार्य नई पीढ़ी के सम्मुख एक आदर्श प्रस्तुत करता है, उनके बताये मार्ग पर चलकर समाज का हर वर्ग समानता बंधुत्व के साथ एक साथ आदर्श समाज के निर्माण की ओर अग्रसर हो सकता है।

मुंशी हरि प्रसाद टम्टाः व्यक्तित्व एवं कृतित्व - मुंशी हरि प्रसाद टम्टा का जन्म 26 अगस्त 1887 में अल्मोड़ा में गोविन्द प्रसाद टम्टा सुश्री गोविन्दी देवी के घर में समाज की उस विपरीत परिस्थितियों में हुआ जब पूरा देश गुलामी की बेड़ियों और समाज ऊँच-नीच, जाति-पाति की भावना से ग्रस्ति था। बचपन में पिता के स्वर्गवासी हो जाने से उनका लालन-पालन मामा कृष्ण प्रसाद टम्टा के घर में हुआ। ये वहीं कृष्ण प्रसाद टम्टा थे जो 1913 में प्रथम बार निचली जाति से अल्मोड़ा नगरपालिका के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। उस समय शिल्पकार जाति को समाज में हीन दृष्टि से देखा जाता था उनके समाज के इस उच्च सम्मानजनक पद पर पाने से तथाकथित कहें जाने वाली उच्च जातियों ने जोरदार विरोध करना प्रारम्भ कर दिया, इसके बावजूद कृष्ण प्रसाद टम्टा समाज में परिवर्तन लाने हेतु अपने निश्चय के साथ पद पर ढृढता के साथ बधे रहे। हरि प्रसाद टम्टा का पालन-पोषण ऐसी विचारधाराओं के साथ हुआ, फलस्वरूप वे एक महान समाज सुधारक राजनेता के रूप में उभरे। समाज की संकीर्णता से भरी विचारधाराओं में बदलाव लाना उनके लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। हरि प्रसाद टम्टा ने अपने व्यक्तिव को कुछ इस प्रकार निखारा कि उसकी चमक सदियों तक जनमानस के मन में चमकती रहेगी। कहा जाता है कि ‘‘महान व्यक्ति वही है जो विपरीत परिस्थितियों में जन्म लेकर अपने महान संघर्षो उदारता द्वारा उसे अनुकूल बनाकर लोक कल्याण करता रहे। वही महामानव कहा जाता है वही पुण्य मानव है’’1

मुंशी जी की शिक्षा का आरम्भ अल्मोड़ा नगर केडिग्गी बंगला’ (वर्तमान पल्टन बाजार के पीछे की तरफ) स्थित स्कूल से हुआ। उसके पश्चात् मिशन स्कूल से मिडल तक पढ़ाई। व्यावहारिक शिक्षा का ज्ञान तो घर पर ही मिला, उर्दू भाषा के प्रति उनका अत्यधिक लगाव था। उर्दू में परीक्षा पास कर वे मुंशी कहलाए और बाद में वे उर्दू फारसी के अच्छे ज्ञाता हो गए। उर्दू-फारसी की चिट्ठियां पढ़वाने तथा लिखवाने के लिए नगर नगर के बाहर से भी लोग उनके पास आते थे। समाज घर के प्रति अनेक जिम्मेदारियों के कारण चाहते हुए भी वे आगे नहीं पढ़ पाये और समाजसेवा के कार्यो में जुटे गये। उनका मानना था कि सर्वहारा शिल्पकार वर्ग के पिछड़ेपन का मूल कारण अशिक्षा है, शिल्पकारों में शैक्षिक विकास की धुन का संकल्प लेकर ही उन्होने अपना कार्य आरम्भ किया।2 इसी क्रम में सर्वप्रथम उन्होंने अपने परिवार के बच्चों को स्कूल भेजकर उच्च शिक्षा की ओर प्रेरित किया। सन् 1930 से पूर्व अल्मोड़ा जैसी प्रबुद्ध लोगो की नगरी में जब सवर्ण हिन्दू अपनी लड़कियों को हाई-स्कूल तक पढ़ाने में हिचकतें थे, उस समय में हरि प्रसाद टम्टा ने शिल्पकार वर्ग की अनेक लड़कियों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा दी और शिक्षा प्राप्ति हेतु स्वंय के खर्च से बाहर भेजा। शिल्पकारों की प्रतिभा के आधार पर उन्हें रोजगार परख शिक्षा की ओर सदैव जोर दिया।3 समाज सेवा पिछड़े वर्ग के रचनात्मक सुधार के लिए हरि प्रसाद टम्टा 1903 से सक्रिय हुए। उन्होने सर्वप्रथम जातिय चेतना को जागृत करने के उद्देश्य से 1905 मेंटम्टा सुधारक सभाबनाई, जो आगे चलकर शिल्पकार सभा के नाम से जानी गई। इस सभा के द्वारा तत्कालीन समय में कई आन्दोलनों का जन्म हुआ। जैसे कि पर्वतीय अंचल में तत्कालीन हरिजन वर्ग को अपमानित स्वर में डोम कहा जाता था। 1920 से हरि प्रसाद ने इस सभा द्वारा निरन्तर संघर्षशील रहते हुए 1926 में तत्कालीन प्रशासन से डोम शब्द के स्थान परशिल्पकारनाम को स्वीकार करवाया, उस समय तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के विरूद्ध यह बहुत बड़ा सुधार था।4 मुंशी हरि प्रसाद का कहना था कि ‘‘पर्वतीय शिल्पकार जिनमें ताम्रकार(टम्टा), काष्ठकार, मूर्तिकार, लोहार आदि प्रमुख हैं। पर्वतों की इन अनछुई उपत्यकाओं में पहुँच-पहुँच कर और गंगोत्री, यमनोत्री, सरयू, गोमती के दुर्गम किनारों में जाकर शिल्पकारों ने अद्भुत साहस का परिचय देकर एक ऐसी कला को उजागर किया जो आज भी कुमाऊँ के मन्दिरों, मूर्तियों और प्राचीन भवनों में विद्यमान है।5 उन्हें समाज में सम्मान पाने का उतना ही हक है जितना की समाज के अन्य वर्गो को।

मुंशी हरि प्रसाद की निस्वार्थ सेवा एंव लोकप्रियता को देखकर तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा सन् 1933 में उन्हेंराय बहादुरकी उपाधि दी। सन् 1935 में उनकी न्यायप्रियता को देखकर तत्कालीन सरकार ने उन्हें स्पेशल मजिस्ट्रेड के पद पर नियुक्त किया, साथ ही उनकी कर्मठता निस्वार्थ सेवा से प्रभावित होकर 1934 में उत्तर प्रदेश डिप्रेस्ड क्लास एशोसियेसन के लखनऊ में आयोजित सम्मेलन में दलित-शोषित एवं हरिजनों के नेता चुनकर सभापति का पद देकर सम्मानित किया गया। अकाल से जिस समय गरीबों को कष्ट होने लगा तो मुंशी हरि प्रसाद ने कुमाऊँ प्रदेश के स्थान-स्थान पर भोजन सामग्री की सस्ती दुकानें खोलकर लाखों अकाल पीड़ित मनुष्यों को सहायता पहुचाई, साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध के समय भी पर्वतीय क्षेत्रों में नमक, मिट्टी का तेल, कपडे़ इत्यादि चीजें सस्ते मूल्य पर उपलब्ध करायी। इनफ्लुएंजा के प्रकोप के समय 1500 स्वंय सेवकों की स्काउट सेना तैयार की, जिसके द्वारा गाँव-गाँव में औषधियां बटवाकर पीड़ित लोगो की सेवा की गई। बिहार के प्रलयकारी भूकंप से पीड़ित लोगो को सर्दी से बचाने के लिये हजारों रूपयों के गरम कोट और जैकेट भेजकर दुखियों की सहायता की।(दलित सुमंनाजलि, 1934) 1936 में वे गौंड़ा जनपद उत्तर प्रदेश से निर्विरोध विधायक चुने गए और प्रान्तीय व्यवस्थापिका सभा के 1940 तक सदस्य रहे। 3 जनवरी 1945 से 13 फरवरी 1952 तक मुंशी हरि प्रसाद टम्टा अल्मोड़ा नगरपालिका के अध्यक्ष रहे। इस पद पर रहकर उन्होने नगर विकास हेतु अनेकानेक कार्य किये, जिन्हें आज भी नगर के अन्तर्गत देखा जा सकता है। चूँकि कुमाऊँ मण्डल में औपनिवेशिक काल में स्थानीय प्रशासन के अन्तर्गत सर्वप्रथम अल्मोड़ा में नगरपालिका स्थापित की गई। म्यूनिसिपल कमेटी अल्मोड़ा की स्थापना वर्ष 1864 में हुई, हांलाकि पं. बद्रीदत्त पाण्डे के अनुसार चुंगी की बोर्ड की स्थापना वर्ष 1851 में हो गई। किन्तु एंटकिसन ने अधिनियम का उल्लेख करते हुए नगरपालिका की स्थापना का वर्ष 1864 बताया है। नगरपालिका परिषद अल्मोड़ा के अनुसार भी इस नगरपालिका की स्थापना का वर्ष 1864 है। स्वंतत्रता प्राप्ति से पूर्व यह द्वितीय श्रेणी की नगरपालिका थी, उत्तर प्रदेश शासन नगरपालिका() विभाग की अधिसूचना संख्या - 11709(׀׀׀) -XI - - 1996 लखनऊ दिनांक 5 दिसबंर 1966 के द्वारा नगरपालिका अल्मोड़ा को 1 सितम्बर 1966 से प्रथम श्रेणी की नगरपालिका घोषित किया गया।6

अल्मोड़ा नगरपालिका अध्यक्ष रूप में हरि प्रसाद टम्टा - मुंशी हरि प्रसाद टम्टा के सेवाभाव ढृढ कत्वर्यनिष्ठा का परिणाम था कि उन्हें अल्मोड़ा नगर ने अपने नगरपाल के रूप में चुना। उनके नगरपालिका अध्यक्ष चुनने पर कुमाऊँ कुमुँद ने लिखा- ‘‘3 जनवरी 1945 को दिन में दो बजे स्थानीय म्युनिसिपल बोर्ड के चैयरमैन का चुनाव हुआ, बोर्ड के 12 मेंम्बरों की उपस्थिति में श्रीमान सेशन जज साहब की अध्यक्षता में चुनाव किया गया। चैयरमैन के चुनाव के लिए नामजद नामों में अलग-अलग व्यक्तियों ने अलग-अलग व्यक्तियों के नाम सुझाए, तब श्री किशन जोशी ने डॉ. खजान चन्द्र का लाला मदन मोहन अग्रवाल ने समर्थन किया। मुंशी हरि प्रसाद टम्टा का नाम श्री जहूर अन्सारी ने प्रपोज किया इसका समर्थन श्री मोहन लाल वर्मा ने किया। मेम्बरों के बीच बैलेट पेपर दिये गए। सभी ने अपनी-अपनी वोट जज को दिए। वोट की गिनती करने पर छः दो से वोट दोनों पक्षो की हुई। बाद में सबकी अनुमति से लॅाटरी डाली गई। बक्से से नाम खीचने पर राय बहादुर मुंशी हरि प्रसाद टम्टा साहब चैयरमैन स्थानीय म्युनिसिपल बोर्ड के करार दिये गए।’’7  मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने अध्यक्ष के रूप में अपना कार्यभार 3 जनवरी 1945 को संभाला और वे लगातार इस पद पर सात वर्षो तक बने रहे। इस कार्यकाल के दौरान उन्होने नगरजनों के लिए नगर के विकास के चरण को एक नई ऊँचाईयों पर पहुँचाया। नगर को हम जिस पैमाने पर मापते है उस पैमाने तक अल्मोड़ा नगर को पहुँचाने में मुंशी हरि प्रसाद टम्टा की महत्वपूर्ण भूमिका है। हांलाकि मुंशी हरि प्रसाद टम्टा नगरपालिका के अध्यक्ष बनने से पूर्व भी नगरपालिका से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े थे, वे कई बार नगरपालिका मेम्बर के रूप में चुने गए। उन्होंने अपनी इस जिम्मेदारी को पूरी लगन कर्तव्यनिष्ठा के साथ पूर्ण किया। उनकी इस सेवा भाव निष्ठा को देखते हुए ब्रिटिश सरकार के द्वारा 5 नवंबर 1921 को उनके सराहनीय कार्य के लिए यूनाईटेड प्रोविंस आगरा और अवध की ओर से सम्मान पत्र भी दिया गया।8

उनका यह सेवा भाव नगर के लोगो के लिए निस्वार्थ प्रेम लोगो से छुपा नही था। ‘‘रायबहादुर साहब ने जो कार्य किये उसकी वजह से वे शिल्पकारों के तो अनन्य नेता बने ही थे पर अन्य वर्गो की सहानुभूति और सम्मान भी उन्हें अनायास ही मिल गया। उसी के फलस्वरूप वे अल्मोड़ा नगरपालिका के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। नगरपालिका अध्यक्ष के कार्यकाल में उन्होनें अल्मोड़ा की जनभावना नगर विकास हेतु अथक प्रयास किए’’9 उनकी उदारता को कुमाँऊ कुमुँद के लेख में देखा जा सकता है वे लिखते हैं अपने पद पर आसीन होने के पश्चात मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने नगरवासियों को धन्यवाद पत्र लिखा, हमें म्युनिसिपल चैयरमैन के चुनाव हो जाने के बाद इस तरह का पत्र पहली बार देखने का सौभाग्य आज प्राप्त हुआ। उन्होनें नागरिकों से सहयोग माँगा है। यह उनके निस्वार्थ प्रेम जनता की सेवा का ही फल है कि उनके सिर पर ताज सजा’’10

अल्मोड़ा नगर विकास में मुंशी हरि प्रसाद टम्टा का योगदान - सात वर्ष तक लगातार अपने निर्वाचित पद पर बने रहना मुंशी हरि प्रसाद टम्टा की लोकप्रियता उनके कार्यो का प्रत्यक्ष ही प्रमाण प्रस्तुत करता है वह भी उस समय जब शिल्पकार वर्ग के लोगो को समाज हीन भावना से देखता था। दया शंकर टम्टा कहते हैं कि ʺनगर की समस्याओं से वे स्वंय घर-घर जाकर अवगत होते थे वे किसी किसी मुहल्ले में सप्ताह के एक दिन समस्याओं का मुआयना करने स्वंय उपस्थित होते थे और नगरवासियों द्वारा दिये गये प्रार्थना पत्रों को अपनी दुकान में बैठकर भी उन समस्याओं पर कार्यवाही करने का तत्काल विभाग को आदेश भेजते। नागरिकों पर आर्थिक भार डाले बिना ही उनके कष्टों का निवारण करना उनके कार्यो की विशेषता थी।ʺ11 मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने अपने कार्यकाल के दौरान नगर विकास हेतु जो प्रमुख लक्ष्य रखे उनमें मुख्यत -

1 कोसी से पानी पम्प द्वारा अल्मोड़ा लाने की योजना।

2 नगर में बिजली योजना।

3 डेरी फार्म के लिए सिम्तोला बोर्ड को दिलवाना।

4 नवीन नगर निर्माण के लिए सिटोली बोर्ड को दिये जाने की मांग।

5 नैनीताल नगर की भांति अल्मोड़ा में ट्यूबवैल लाये जाने की जाँच।

उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार म्युनिसिपल बोर्ड अल्मोड़ा की वर्ष 1947-48 की वार्षिक रिर्पोट में उन्होनें अपने वार्षिक कार्य का संपूर्ण ब्यौरा जनता के समक्ष प्रस्तुत किया। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रस्तुत वर्ष में वर्णित किया गया कि बोर्ड के व्यय में वृद्धि हुई पिछले वर्ष बोर्ड का व्यय जहॅा 122053 रूपये था इस वर्ष में 1581134 रूपये रहा। उन्होनें स्पष्ट तौर पर किये गये व्ययों का पूरा वितरण जनता के समक्ष प्रस्तुत किया।12

शरणार्थियों की आजिविका हेतु फड़ व्यवसाय : विभाजन के पश्चात विभिन्न प्रदेशों से आये शरणार्थियों के भरण-पोषण उनके सहातार्थ उन्हें बाजार में नगरपालिका के द्वारा जगह आंवटित करायी गयी जहॅा पर वे अपनी आजीविका चलाने हेतु फड़ व्यवसाय चला सके। इस हेतु नगरपालिका से शरणार्थी परिवारों को आर्थिक सहायता भी प्रदान की गयी। मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने व्यक्तिगत तौर पर भी इन शरणार्थियों की सहायता की।

शिक्षा के क्षेत्र में - चूँकि तत्कालीन समय में नगरपालिका के अन्तर्गत नगर की प्राइमरी शिक्षा करवायी जाती थी, मुंशी हरि प्रसाद टम्टा नगर के हर बच्चें को पढ़ाना चाहते थे फिर चाहे वह गरीब तबके से हो या अमीर। वे समझते थे शिक्षा पर समाज के सभी लोगो का बराबर अधिकार है, जब व्यक्ति शिक्षित होगा तभी समाज में समानता की भावना आवेगी। इस हेतु उन्होने शिक्षा विभाग में नये कर्मचारियों की नियुक्ति के साथ ही साथ वाचनालय में नवीन पुस्तकों का मगांया। मुंशी हरि प्रसाद टम्टा के बोर्ड में जुलाई 1948 से सारे नगर में प्राइमरी तक निशुल्क अनिवार्य शिक्षा बालको के लिए जारी की गयी। और बालिकाओं की निशुल्क शिक्षा ग्रह प्रबन्ध, संगीत, बुनाई-कताई आदि की मांग भी सरकार से की। उनका मानना था कि देश की उन्नति के लिए लड़के लड़कियों दोनों का शिक्षित होना आवश्यक है। वाचनालय में समाचार पत्रों में जैसे दैनिक अंग्रेजी, दैनिक हिन्दी, दैनिक उर्दू, साप्ताहिक अंग्रेजी, साप्ताहिक हिन्दी, मासिक अंग्रेजी, हिन्दी की व्यवस्था भी नगर में पाठकों के लिए अवगत करायी ताकि नगरवासी देश-विदेश की खबरों से रूबरू हो सके। चीनाखान, राजपुर, तिलकपुर मौहल्लेवासियों के लिए नयी प्राइमरी पाठशाला खोली साथ ही बच्चों के विकास हेतु समय-समय पर वेवी शो आयोजित कराये। और मलीन बस्तियों पर लोगों को जागरूक करने हेतु साक्षरता कार्यक्रम भी आयोजित करवाये।13

सफाई स्वास्थ्य - सन 1946 में बोर्ड ने नगर की गलियाँ, सड़कें तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों की मरम्मत तथा अनेकों स्थानों पर नव निर्माण के कार्य करवाये। नगर को बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने सरकार से विशेष आग्रह किया कि उन्हें स्कूल में मुफ्त दुध, फल दिये जाने चाहिए। जो स्वंतत्रता के कई वर्षो बाद आगनबाडी, सरकारी स्कूलों में योजनाएं चलायी गई उस विषय में हरि प्रसाद टम्टा ने आज से लगभग 80 वर्ष पूर्व ही सोच लिया था। 1945 में छोटे बच्चों के स्वास्थ्य वृद्धि के लिए ललता प्रसाद टम्टा चिल्ड्रन पार्क (वर्तमान गांधी पार्क) का निर्माण कराया। जनता ने इस पार्क का हार्दिक स्वागत किया साथ ही उनके अनुसार नगर में और भी पार्क बनाने के प्रस्ताव दिये गए। युवाओं को कुसंगत कुव्यसनों ने दूर करने के लिए चौघानपाटा (नगर के मध्य में स्थित स्थान) में व्यायामशाला का निर्माण करवाया एक प्रशिक्षक नियुक्त किया जो युवाओं को विभिन्न उपकरणों के साथ व्यायाम की ट्रेनिग देता था। मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने सफाई कर्मचारियों का विशेष ध्यान दिया। नगरपालिका में उनकी नौकरी को पक्का किया तथा सफाई कर्मचारियों को अन्य कर्मचारियों की तरह छुट्टी की सुविधा दिलवायी उनके लिये को-आपरेटिव सोसायटी की स्थापना की। उन्ही की बदौलत नगरपालिका अल्मोड़ा में महिला सफाई कर्मचारियों को प्रसूति काल में छुट्टी की सुविधा मिलना आरम्भ हुई।14 साथ ही उनके स्वास्थ्य का ध्यान में रखते हुए नगर में हेल्थ वीक भी चलवाये।  

Sanitary Report of The Muncipality Of Almora For The Year Ending 31st March 1950 के अनुसार नगर के स्वास्थ्य को संतोषजनक बताया गया था। चेचक, टाईफाइड, क्षय, शीतला जैसे रोग जहाँ तत्कालीन समय में फैले हुए थे अल्मोड़ा में कोई रोगी नहीं पाये गए। शहर की सफाई को भी संतोषजनक बताया गया था। साथ ही बताया गया कि नालियाँ पटालों की बनी हुई थी समय-समय पर बोर्ड के द्वारा उनकी मरम्मत करवायी जाती थी। रिपोर्ट के अनुसार बोर्ड के 307 पानी के निजी नल है एनटीडी में एक हैलेट रिजरवायर है, सर हैलेट के द्वारा उद्घाटन किये जाने पर इसका नाम हैलट रिजवैयर रखा गया। जिसका पानी गर्मियों में सप्लाई किया जाता है। कोशी नदी से पानी लाने की कोशिश की जा रही है। कम्पोस्ट स्कीन बनने जा रही हैं। नगरपालिका की तरफ से प्लेग, हैजा, चेचक, क्षय, तपेदिक, बुखार, दूध, भोजन आदि जन स्वास्थ्य सम्बन्धी हैन्ड बिल, किताबें आदि बाँटी जाती हैं। बोर्ड के पास संक्रामक रोगों के लिये एक अस्पताल है, जिसमें मरीजों के लिए एक चौकीदार नियुक्त है। दवाईयाँ सब बोर्ड से दी जाती है। चमड़े का व्यापार होता है जिसके लिये बायलौज बने है।15

सफाई हेतु सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति के साथ ही साथ नगर में पहली बार मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने अपने कार्यकाल में एक हेल्थ आफिसर की नियुक्ति की, राय साहब डॅा. मथुरा दत्त तेवाड़ी नगर के पहले हेल्थ आफिसर बने।16 चौघानपाटा में व्यायामशाला बनवायी ताकि नागरिकों को अपने स्वास्थ्य वृद्धि के साधन प्राप्त हो सके साथ ही खेल-कूद को बढ़ावा देने हेतु समय-समय पर बोर्ड के द्वारा फुटबाल टुनामेंट भी करवाये जाते थे। नगर की सुन्दरता पर्यटन का बढ़ावा देने हेतु मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने विशेष ध्यान दिया। शहर में जगह-जगह फूलों के गमले, फूलबाड़ी, समर हाऊस पार्क बनाये गए।

10 अप्रैल 1949 से 31 मार्च 1950 का वर्ष मुंशी हरि प्रसाद टम्टा के नगरपालिका अध्यक्षीय कार्यकाल का स्वर्णिम वर्ष माना जा सकता है जिसे नगर की जनता आने वाले हजारों वर्षो तक याद करेगी, क्योंकि इस वर्ष मुंशी हरि प्रसाद टम्टा नगर में विद्युत परियोजना को सफलतापूर्वक लाने में सफल हुये। चॅूकि 1945-46 में नगर में बिजली नहीं थी तब नगर में रोशनी के लिये नगरपालिका के द्वारा लैम्प और गैस जलाये जाते थे। मुंशी हरि प्रसाद के कार्यकाल के दौरान नगर में विद्युत परियोजना का श्रीगणेश हुआ। नगरपालिका की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार बोर्ड के बिजलीघर का शिलान्यास दिंनाक 8 मई 1949 को नगर के श्रेष्ठ नागरिक, प्रान्त के मुख्यमंत्री माननीय पण्डित गोविन्द वल्लभ पंत के द्वारा लक्ष्मेश्वर में हुआ।17 इस ऐतिहासिक पल की रिपोर्टिग करते हुये साप्ताहिक पत्र शक्ति ने लिखा ‘‘मा. मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत लक्ष्मेश्वर में विद्युतघर का शिलान्यास करने पधारे बैंड-बाजो पुष्पमाला के साथ उनका स्वागत किया गया। म्युनिसिपल बोर्ड के चैयरमैन श्री मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने जल और विद्युत योजना के 1934 से लेकर आज तक के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए माननीय पंत जी का गुणानुवाद और धन्यवाद किया कि उनकी कृपा से अल्मोड़ा की एक पुरानी साध आज पूरी हो गई और माननीय पंत जी से शिलान्यास करने की प्रार्थना की। शंख ध्वनि तथा बैंडबाजे के मध्य मा. पन्त जी ने उस मंदिर का शिलान्यास किया। जो अगले कुछ ही महीनों में अपनी जगमग ज्योति से इस नगर के अंधकार को चीरकर प्रकाशपूर्ण करने लगेगा। तत्पश्चात चीफ इंजीनियर श्री हरगोविन्द त्रिवेदी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग ने विद्युत योजना का वर्णन किया। अनन्तर श्री हरि प्रसाद टम्टा ने म्युनिसिपल बोर्ड की ओर से मानपत्र पढ़कर मा. पन्त जी को भेंट किया।18 बिजलीघर के शिलान्यास के समय आशा प्रकट की थी कि दीपावली के दिन यह नगर बिजली के प्रकाश से जगमगा उठेगा और इस आशा के अनुकूल ही नगर के इतिहास में प्रथम बार नगरवासियों ने सन् 1949 की दीपावली बिजली के देदिव्यमान प्रकाश के उल्लास के साथ मनाई। उस दिन नगर का महात्मा गांधी मार्ग तथा सारा बाजार बिजली के प्रकाश से जगमगा उठा था। बोर्ड चाहती है कि नगर के हर एक गली कूचा बिजली के प्रकाश से शीघ्रताशीघ्र आलोकित हो जावे और इस नगर का प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह अमीर हो या गरीब, बिजली की रोशनी से लाभ उठा सके। बिजली के जाने से नगर की शोभा सुविधा तो बढे़गी ही साथ ही नगर में उद्योग-धन्धो के विकास वृद्धि का सुअवसर भी सभी को प्राप्त होगा और शीघ्र ही नये कल-कारखाने खुलेगें जिससे सुख-समृद्धि होगी।19 विद्युत परियोजना के आने से नगर के विकास की गति दोगुनी हो गयी साथ ही नगर में रोजगार के अवसर भी बढ़ने प्रारम्भ हो गये। जो सपना मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने नगर के लिए देखा था धीरे-धीरे वह तेजी के साथ अग्रसर होता गया।

अल्मोड़ा में संग्रहालय स्थापना : संग्रहालय प्रत्येक सभ्य राष्ट्र के सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न अंग है प्रायः सभी प्रगतिशील देशों में संग्रहालयों की स्थापना सुव्यवस्था शिक्षा की उन्नति का अर्थ प्रधान उपकरण समझे जाते है इससे जनता के सभी वर्गो में विशेषतः विद्यार्थियों को अपने ज्ञान का विस्तार करने में बड़ी सहायता मिलती है। नगर में यह महत्वपूर्ण कार्य मुंशी हरि प्रसाद टम्टा के कार्यकाल में किया गया। तत्कालीन समय में डिप्टी कमिश्नर अल्मोड़ा के सभापत्वि में नगर में एक सार्वजनिक संग्रहालय खोलने पर विचार किया गया जिसके सदस्य तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष मुंशी हरि प्रसाद टम्टा भी रहे इसमें निश्चय किया गया कि जब तक सार्वजनिक संग्रहालय के लिए कोई केन्द्रीय स्थान या भवन उपलब्ध हो तब तक नार्मल स्कूल में जहॅा एक छोटा-मोटा संग्रहालय है, इसका श्रीगणेश किया जाए। जनता से यथाशक्ति द्रव्य, शिल्पकला, वस्त्र-आभूषण, भूगोल, खगोल, ताम्रपत्र, शिलालेख, प्राचीन हस्त लिपियाँ, मूर्तिकला के नमूने लाने की विनती की गई और नगर में संग्रहालय की स्थापना की गई।20

नगर में पेयजल व्यवस्था : नगर में पानी की समस्या का सुलझाने के लिए मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने अथक प्रयास किये। वे अल्मोड़ा नगर की पानी की समस्या को दूर करने के लिए डोल का पानी लाना चाहते थे। अल्मोड़ा नगर की पेयजल समस्या के समाधान के लिए लिहरी प्रसाद टम्टा ने डोल नामक ग्राम जो नगर की समीप पहाड़ी पर स्थित है में उपलब्ध पर्याप्त जल गुरूत्वीय बल से अल्मोड़ा नगरवासियों के लिए एक अत्यंत उपयोगी योजना तैयार की। जिसे नगरवासियों के ऊपर जलकर का आर्थिक भार भी नहीं पड़ रहा था परंतु तत्कालीन राजनीति के कारण डोल पेयजल योजना का विरोध आंरभ हो गया। शक्ति अखबार ने रिपोर्टिग करत हुए कहा कि डोल का पानी पहाड़ की चोटी के समीप स्थित है जहॅा तक विदित हो इस पहाड़ की ऊँचाई 1500 फीट के लगभग है जल के स्रोत 45000 फीट से 5000 फीट के बीच स्थित है। कहा जा सकता है डोल का पानी सत्यूग्राम से होकर आयेगा परन्तु सत्यूग्राम की ऊँचाई 5500 फीट से कम नहीं आंकी जा सकती। ऐसी परिस्थितियों में इन्जीनियरी जाने बिना पम्प के डोल का पानी हीराडुंगरी(नगर का एक भाग) इकठ्ठा नहीं किया जा सकता। इतना ही नहीं डोल के जल स्रोतों का पूर्व इतिहास किसी को ज्ञात नहीं। डोल के स्त्रोतों से पानी लाने का प्रयास करना पानी में आग लगाने जैसा है और करदाताओं के रूपयों पर पानी फेरना है।21 इस प्रकार विरोध होने के फलस्वरूप यह योजना अमल में नहीं लाई जा सकी, इस योजना को त्यागकर नगरपालिका को कोसी पेयजल योजना का चयन करना पड़ा।

कोसी नदी के पानी खींचने की योजना 5 अगस्त 1948 को स्वीकृत हुई तदुपंरात संशोधित होकर 14 दिसबंर 1950 को पुनः स्वीकृत हुई और उसी दिन इस संबंध में प्राप्त टेण्डरों की भी स्वीकृति की गई। 4 जून 1951 को बोर्ड ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर पुनः सम्पूर्ण योजना को स्वीकृत किया और यह भी निश्चय किया कि एक शिष्टमण्डल नैनीताल जाकर योजना के दूसरे भाग को कार्यान्वित करने के लिए सरकार से अनुदान मांगे। बोर्ड के निवेदन करने पर कोशी से पानी के पम्प करने की एक योजना पब्लिक हैल्थ के चीफ इन्जीनियर श्री हरगोविन्द त्रिवेदी ने बोर्ड के लिए बनवा दी और बोर्ड ने इसके लिए सरकार से सहायता मॅागी। 6 जून 1951 को नगरपालिका शिष्टमण्डल मुख्यमंत्री से मिला, और सरकार की तरफ से इस कार्य के लिए 4 लाख का ग्रान्ट और 2 लाख का ऋण बोर्ड को दिया। मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने नगरवासियों को विश्वास दिलाया कि अप्रैल 1951 तक कोशी नदी से पानी पम्प करके नगर में पहुंच जावेगा और अगले वर्ष से गर्मियों में नागरिकों को यथेष्ट पानी मिल जायेगा नगर का जल कष्ट दूर होगा।22 मुंशी हरि प्रसाद टम्टा के जीवन काल की यह एक बड़ी उपलब्धि थी जो उन्होने नगरपाल के रूप में रहकर पूर्ण की।

इसके अतिरिक्त नगर के कारीगरों शिल्पियों को अपना स्व-रोजगार खोलने के लिए अल्मोड़ा नगर में स्थित कचहरी के नीचे की तरफ बाजार में उनके लिए फड़ व्यवसाय खोला और इस स्थान का नाम कारखाना बाजार रखा।23 वर्तमान समय में इस स्थान पर पूँजीपतियों द्वारा यह स्थान धनबल से हथिया लिया गया है। खैरना अल्मोड़ा मोटर मार्ग का निर्माण उनके कार्यकाल के दौरान हुआ उनके अनुसार इस नगर की उन्नति तथा यहॅा की व्यापार वृद्धि के लिए यह परमआवश्यक है कि इसकी दूरी काठगोदाम से कम करने के लिए यह सड़क निर्माण कराया जाए। अपने कार्यकाल के दौरान मुंशी हरि प्रसाद टम्टा कई निमार्ण कार्य करवाना चाहते थे जिनमें डेरी फार्म(जहॅा शुद्ध दूध, घी मिल सकें), आधुनिक नगर निर्माण के लिए बल्ढ़ोटी के जंगल के एक भाग को आधुनिक ढंग से प्लॅाट निर्माण की अनुमति मांगी। हरि प्रसाद टम्टा नगर मोटर मार्ग का पूर्वी भाग में सड़क लाना चाहते थे ताकि वह हिस्सा उस ही समय विकसित हो सके। बजट की स्वीकृति होने पर भी कुछ अधिकारियों के आपत्ति से उनका यह सपना तत्कालीन समय में साकार हो सका। साथ ही उन्होनें सफाई कर्मिकों को क्वार्टर देने की भी बात कही थी। यातायात का सुगम बनाने हेतु अल्मोड़ा के निकट हवाई अड्डा बनाने का प्रस्ताव भी उनके द्वारा सरकार को दिया गया था जो किसी कारणवश पास हो पाया।

निष्कर्ष : निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि मुंशी हरि प्रसाद टम्टा एक महान समाज सुधारक के साथ ही एक अच्छे प्रशासक भी रहें। वे एक सच्चे साधु-पुरूष थे जिनका समूचा जीवन परोपकार, त्याग और जन सेवा में बीता। उनके द्वारा किये गये कार्यो की स्थानीय लोग आज भी प्रंशसा करते हैं। वर्षो से लंबित पड़ी नगर योजनाओं को उन्होनें अपने कार्यकाल के दौरान पूर्ण कर दिखाया। तत्कालीन समाज की विचारधारा को गलत साबित करते हुए संपूर्ण समाज के समक्ष एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया कि व्यक्ति अपने जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्मो से महानता हासिल करता है। समाजसेवा, पत्रकारिता, वकालत, प्रशासकत्व हर किरदार को उन्होने बखूबी निभाया। अपने अध्यक्षीय काल में उन्होने केवल नगर विकास हेतु अविस्मरणीय कार्य किये बल्कि निचले तबके गरीब, अपाहिज, अकालपीड़ित, अप्रवासियों की भी निस्वार्थ भाव से सेवा की। वर्तमान समय में अल्मोड़ा एक महानगर का स्वरूप लेने की ओर अग्रसर है, जो सपने उस समय में मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने नगर के लिए देखे थे वे साकार होते दिखाई देते हैं। वर्तमान बोर्ड को आज भी इतिहास के पन्नों को देखते हुए अपनी कार्यशैली को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है सिर्फ इसलिए कि वह उनके नक्शे कदमों पर चले बल्कि इसलिए भी कि अतीत में हुई गलतियों जिस किसी कारणवश तत्कालीन समय में जो योजनायें किसी कारणवश पूर्ण हो सकी उनसे सीख लेकर नगर विकास के क्रम को एक नई ऊँचाईयों तक पहुँचा दें।

संदर्भ :
1- समता साप्ताहिक समाचार पत्र, 23 फरवरी 1962 पृष्ठ संख्या-2
2- दया शंकर, टम्टा : क्रान्ति दूत, समता प्रकाशन अल्मोड़ा, 1995, पृष्ठ संख्या-4
3- वहीं, पृष्ठ संख्या-4
4- समता स्वर्ण जयंती विशेषांक, 1 अगस्त 1984
5- दया शंकर, टम्टा : क्रान्ति दूत, समता प्रकाशन अल्मोड़ा, 1995 ,पृष्ठ संख्या-1-2
6- गोविन्दा नन्द, सेमवाल, उत्तराचंल नगर और नगरपालिकायें, उत्तराखण्ड प्रकाशन हिमालय संचेतना संस्थान, आदिबद्री, चमोली की इकाई, -ब्लाक, सरस्वती विहार अजबपुर(देहरादून उत्तराचंल), पृष्ठ संख्या-428
7- साप्ताहिक समाचार पत्र, कुमाऊँ कुमुँद, 4 जनवरी 1945, पृष्ठ संख्या-1
8- संलग्न प्रमाण पत्र
9- समता साप्ताहिक समाचार पत्र, 1 मार्च 1960 पृष्ठ संख्या-10
10- साप्ताहिक समाचार पत्र, कुमाऊँ कुमुँद, 4 जनवरी 1945
11- साक्षात्कार दया शंकर टम्टा, टम्टा मौहल्ला अल्मोड़ा, उम्र- 70, दिंनाक 5 नवम्बर 2022
12- नगरपालिका वार्षिक रिपोर्ट 1947-48
13- प्रहलाद राम, आर्य, मुंशी हरि प्रसाद टम्टा तथा कुमाँऊ केसरी खुशी राम का तुलनात्मक अध्ययन, अप्रकाशित शोध प्रंबध, 2015, पृष्ठ संख्या- 146
14- वहीं
15- अल्मोड़ा नगरपालिका सैनेटरी रिपोर्ट, मार्च 1950
16- नगरपालिका वार्षिक रिपोर्ट, 1950-51
17- वहीं
18- शक्ति साप्ताहिक समाचार पत्र, 14 मई 1949, पृष्ठ-1
19- नगरपालिका वार्षिक रिपोर्ट 1950
20- शक्ति साप्ताहिक समाचार पत्र, 6 अप्रैल 1948, पृष्ठ संख्या-04
21- वहीं
22- वहींपृष्ठ संख्या-2
23- महेश प्रसाद, टम्टा, शिल्पकार टाइम्स, 5 सितम्बर 2014

 

माला
शोधार्थी, इतिहास विभाग, डी. एस. बी. परिसर, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल
malaarya1995@gmail.com
 
प्रो. संजय कुमार टम्टा
प्रोफेसर, इतिहास विभाग, डी. एस. बी. परिसर, कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल

  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका 
अंक-48, जुलाई-सितम्बर 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : डॉ. माणिक व डॉ. जितेन्द्र यादव चित्रांकन : सौमिक नन्दी

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