शोध आलेख : कक्षा पाँच की पर्यावरण अध्ययन पुस्तक का पर्यावरण शिक्षा के सन्दर्भ में विषयवस्तु विश्लेषण / मिली सिंह, डॉ. रिंकी

कक्षा पाँच की पर्यावरण अध्ययन पुस्तक का पर्यावरण शिक्षा के सन्दर्भ में विषयवस्तु विश्लेषण
- मिली सिंह, डॉ. रिंकी

शोध सार : इस शोध पत्र में कक्षा पाँच की एनसीईआरटी (NCERT) की ईवीएस (पर्यावरण अध्ययन) पाठ्यपुस्तक का विषयवस्तु विश्लेषण किया गया है। इस शोध पत्र का प्राथमिक उद्देश्य एनसीईआरटी द्वारा प्रकाशित कक्षा पाँच की पाठ्यपुस्तक पर्यावरण अध्ययन (EVS) की विषयवस्तु विश्लेषण के द्वारा यह पता लगाना है कि पर्यावरण शिक्षा के विभिन्न पहलू किस प्रकार से इस पाठ्यपुस्तक में एकीकृत किये गए हैं। शोध पत्र तीन अध्यायों की सामग्री विश्लेषण पर आधारित हैं, इसके लिए इस पुस्तक के छः थीम्स (themes) में से एक जल थीम के अंतर्गत आने वाले तीन अध्यायों (बूँद-बूँद, दरिया-दरिया, पानी के प्रयोग, मच्छरों की दावत) का चयन किया गया है। इन तीन अध्यायों के विषयवस्तु विश्लेषण से स्पष्ट रूप से पता चला कि यद्यपि चयनित अध्यायों में पर्यावरणीय घटकों को काफी प्रभावी ढंग से एकीकृत किया गया है, लेकिन विषयवस्तु में जैविक और सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू को अधिक प्रभावी तरीके से एकीकृत करने के लिए अभी भी बहुत गुंजाइश बाकी है।

बीज शब्द : पर्यावरण शिक्षा; विज्ञान की पाठ्य पुस्तकें; विषयवस्तु विश्लेषण; वहनीयता; स्कूल के पाठ्यक्रम; पर्यावरण विज्ञान; पर्यावरण अध्ययन; पर्यावरण अध्ययन की पाठ्यपुस्तकें।

परिचय : वर्तमान समय में पूरी दुनिया पर्यावरण से सम्बंधित विभिन्न समस्याओं (जैसे कि जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई,ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण) से जूझ रही है। इन समस्याओं से निपटने के लिए और धारणीय पर्यावरण बनाने के लिए शिक्षा को एक सशक्त माध्यम के रूप में अपनाया गया है। यह माना जाता है कि विद्यालयी शिक्षा के माध्यम से हम पर्यावरणीय अनुशासित (environmentally disciplined ) नागरिक का निर्माण कर सकते हैं (Awasthi, M., & Agarwal, R. 2013) पर्यावरण शिक्षा का सीधा संबंध प्राकृतिक पर्यावरण के काम करने के तरीके, पर्यावरण को बनाए रखने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र का प्रबंधन करने के लिए मनुष्यों को कैसे व्यवहार करना चाहिए जैसे विषयों से है, इसलिए पाठ्यक्रम में पर्यावरण सम्बंधित मूल्यों और अवधारणाओं का सभी विषय की पुस्तकों में एकीकरण किया जाता रहा है (Nair, G. G., 2010) यह संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक कौशल और विशेषज्ञता प्रदान करता है। पर्यावरण शिक्षा का मुख्य उद्देश्य इससे सम्बंधित ज्ञान का प्रसार करना, जागरूकता पैदा करना, स्वस्थ दृष्टिकोण विकसित करना और पर्यावरण और पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक कौशल प्रदान करना है (Bhatt, J. L., 1994;Sarmah, S., & Dr. Bhuyan, S., 2015) वर्तमान समस्याओं के समाधान के लिए व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से कार्य करने की प्रतिबद्धता की जरुरत है इन समस्याओं का समाधान पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से बड़ी आसानी से किया जा सकता है, क्योंकि हमारी शिक्षा व्यवस्था में पाठ्यपुस्तकों की भूमिका बहुत अहम है (Maurya & Rani, 2019) शिक्षकों ने भी शिक्षण और अधिगम प्रक्रिया में पाठ्यपुस्तकों के महत्व को स्वीकार किया है (Koppal & Caldwell, 2004) पर्यावरण अध्ययन (ईवीएस) की पाठ्यपुस्तकों का विषयवस्तु विश्लेषण हमें हमारी पाठ्यपुस्तक और पर्यावरण के बीच संबंधों को देखने में मदद कर सकता है।

अनुसंधान उद्देश्य -

इस शोध पत्र का प्राथमिक उद्देश्य एनसीईआरटी (NCERT) द्वारा प्रकाशित कक्षा पाँच की पाठ्यपुस्तक पर्यावरण अध्ययन (EVS) के विषयवस्तु विश्लेषण के द्वारा यह पता लगाना है कि पर्यावरण शिक्षा के विभिन्न पहलू किस प्रकार से इस पाठ्यपुस्तक में एकीकृत किये गए हैं।

पर्यावरणीय शिक्षा के विषयवस्तु विश्लेषण के विभिन्न पहलू -

इस शोध पत्र में पर्यावरण अध्ययन के कक्षा पाँच की पाठ्यपुस्तक का विषयवस्तु विश्लेषण पाठ्यपुस्तक के निम्नलिखित तीन पहलुओं को ध्यान में रख कर किया गया है।

1. जैविक पहलू: जैविक पहलू पर्यावरण शिक्षा के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। मनुष्य, पशु, पक्षी, कीड़े, सूक्ष्मजीव एवं पौधे जैविक पहलुओं के कुछ उदाहरण हैं।

2. भौतिक पहलू: इसे प्राकृतिक पहलुओं और मानव निर्मित पहलुओं में विभाजित किया जा सकता है। प्राकृतिक भौतिक पहलुओं में वायु, जल, भूमि, जलवायु आदि सम्मिलित हैं। इसी प्रकार, मानव निर्मित भौतिक पहलू सभी मानव निर्मित चीजों जैसे सड़क, भवन, पुल, घर आदि को शामिल करते हैं।

3. सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू: सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू मानव निर्मित सामाजिक प्रथाएं, नियम और कानून और अन्य धार्मिक स्थान आदि हैं।

अतः इस पत्र में इन्ही तीन पहलुओं को आधार मान कर अध्यायों का विश्लेषण किया गया है।

निदर्श चयन -

विश्लेषण करने के लिए, कक्षा पाँचवीं एनसीईआरटी (NCERT; Nov, 2022) ईवीएस पाठ्यपुस्तक से तीन विशिष्ट अध्यायों का चयन किया गया है। एनसीईआरटी पुस्तक के कुल 6 थीम्स (themes) में से जल थीम का चयन यहाँ किया गया है इस थीम (theme) के अंतर्गत निम्नलिखित तीन अध्याय आते हैं, जिनके विषयवस्तु का विश्लेषण इस शोध पत्र में किया गया है।

अध्याय 6 - बूँद-बूँद, दरिया-दरिया

अध्याय 7 - पानी के प्रयोग

अध्याय 8 - मच्छरों की दावत ?

विषयवस्तु विश्लेषण की पद्धति -

            इस शोध पत्र में एनसीईआरटी द्वारा प्रकाशित कक्षा पाँच की पाठ्यपुस्तक पर्यावरण अध्ययन (EVS) के विषयवस्तु विश्लेषण में विश्लेषण निगमन विधि से किया गया है। इस शोध पत्र के पर्यावरण अध्ययन के कक्षा पाँच की पाठ्यपुस्तक का विषयवस्तु विश्लेषण पाठ्यपुस्तक के तीन पहलुओं को ध्यान में रख कर किया गया है, जो क्रमशः जैविक, भौतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू हैं। इन विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर पाठ्यपुस्तक के चित्रों और लिखित विषयवस्तु का विश्लेषण किया है। विषयवस्तु की कोडिंग करने के उपरांत प्राप्त डाटा को सारणीबद्ध करके विषयवस्तु के संदर्भ और अर्थ की व्याख्या करने के लिए उसका गुणात्मक विश्लेषण किया गया।

विषयवस्तु विश्लेषण का परिणाम -

अध्याय 6 (बूँद-बूँद, दरिया-दरिया) : यह अध्याय राजस्थान में पारंपरिक स्रोतों और जल व्यवस्था की तकनीकों की झलक देता है। यह मौजूदा समय के उदाहरणों का उपयोग करके जल प्रबंधन की व्याख्या करता है। इस अध्याय में भौतिक पहलुओं को बखूबी दर्शाया गया है। जल के संरक्षण और साफ़ सफ़ाई पर जोर देते हुए 650 साल पुराने राजस्थान के एक तालाब का वर्णन किया गया है जिसका उपयोग तब जल संरक्षण के लिए किया जाता था साथ ही इस बात का भी वर्णन है कि आज के समय में किस प्रकार ये सब तालाब निर्जीव और उपयोगहीन हो गए हैं। आज के समय में हम कैसे अपने कृत्य से जल को प्रदूषित कर रहे हैं यह भी इस अध्याय में निहित है अपने अपने घरों में लोग कैसे जल संरक्षित किया करते थे, इसके बारे में भी उल्लेख किया गया है चित्र -1 के माध्यम से भी इन बातों को समझाने की कोशिश की गई है।

 

चित्र-1


चित्र -2(a)


चित्र -2(b)


            इस अध्याय में जैविक पहलू भी निहित हैं किंतु यह पहलू अधिकतर मनुष्यों और उनकी जल पर निर्भरता तक ही सीमित है। पूरे अध्याय में जल और पेड़ पौधों के सम्बन्ध का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। केवल प्रथम पृष्ठ पर सजावट के लिए जल में रहने वाले पुष्प और पौधे दिखाए गए हैं। इस अध्याय में दो या तीन वाक्यों में बड़ी सरलता से पेड़-पौधों और अन्य जीवों की जल पर निर्भरता को दिखाया गया है। सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू को भी यहाँ काफी अच्छे से दर्शाया गया है, सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू में यहाँ मजदूर से लेकर बड़े व्यापारियों तक का उदाहरण दिया गया है विद्यार्थियों के स्थानीय परिवेश और सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू को भी ध्यान में रखा गया है, चित्र संख्या 3 में यह दर्शाया गया है।

 

चित्र -3


            हमारी संस्कृति में जल से जुड़े रीति रिवाजों का भी इस अध्याय में बखूबी चित्रण है। चित्र -2(b) के माध्यम से इसे दर्शाया गया है। किन्तु हमारे विचारशून्य और अविवेकी निर्णय के कारण किस प्रकार इन रोजमर्रा के रीति रिवाजों से जल प्रदूषित हो रहा है, इसका विवरण नहीं दिया गया है। हमारे किसी भी रीति रिवाज से किसी प्रकार जल प्रदूषित हो इसकी किस तरह से जन मानस में जागरूकता ला सकते है इसका भी कोई विवरण नहीं है। अतः इस अध्याय में जल की साफ़ सफाई, संरक्षण के कुछ उपाय और किस तरह से जन मानस में इसकी जागरूकता ला सकते है कुछ वाक्यों में निहित किये जा सकते थे।

अध्याय 7 (पानी के प्रयोग) - इस अध्याय में पानी के प्रयोग हैं जो हमारे रोजमर्रा के जीवन से संबंधित हैं। विद्यार्थी पानी में तैरने, डूबने और घुलने की अवधारणाएँ सीखते हैं। इस अध्याय में जैविक पहलू, भौतिक पहलू और सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू का विशेष ध्यान रखा गया है। विभिन्न प्रकार के उदाहरणों से इन सभी पहलुओं को दर्शाया गया है। अलग अलग घरों और उनके अनुरूप मौजूद संसाधनों के माध्यम से विद्यार्थियों को उदाहरण स्वरुप जल के प्रयोगों के बारे में बताया गया है, चित्र-4 और 5 के माध्यम से इसे दर्शाया गया है।

 

चित्र -4
 चित्र -5

इस अध्याय में विद्यार्थियों को कुछ सरल घरेलू गतिविधियाँ के माध्यम से जल में घुलने और घुल पाने वाली वस्तुओं और तैरने या डूबने वाली वस्तुओं से अवगत कराया गया है। इस अध्याय में डांडी यात्रा के उदहारण की सहायता से नमक बनाने की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है, जिससे बच्चे वाष्पीकरण के साथ-साथ आज़ादी के आंदोलन के बारे में भी समझ सकें इस अध्याय में उदाहरण के तौर पर प्लास्टिक के ढक्कन ,प्लास्टिक की साबुनदानी और प्लास्टिक के सामान का उपयोग किया गया है, जिसके स्थान पर पर्यावरण के लिए कम घातक तत्वों यथा स्टील, पीतल, मिट्टी की वस्तुओं का इस्तेमाल किया जा सकता था।

चित्र -6
चित्र -7


अध्याय 8 (मच्छरों की दावत ?)

यह अध्याय बच्चों के वास्तविक संवादों की मदद से रुके हुए पानी, मच्छरों, मलेरिया, रक्त परीक्षण आदि के बीच संबंध बताता है। इस अध्याय में जैविक पहलू, भौतिक पहलू और सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू का चित्रण बहुत ही सहजता और खूबसूरती से किया गया है। विभिन्न प्रकार के सामाजिक पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों की वार्ता के माध्यम से जल-जनित रोगों के बारे में अवगत कराया गया है। किस प्रकार से प्रदूषित जल बहुत सारी बीमारियों का कारण है, यह बताया गया है इस विषयवस्तु का उल्लेख करने के लिए  निम्न चित्र संख्या 8, 9, 10, 11 की मदद ली गई है।

 

चित्र -8
चित्र -9

चित्र -10,  चित्र -11

किस प्रकार से हम अपने वातावरण को साफ़ सुथरा रख के इन बीमारियों से बच सकते हैं और बीमारी हो जाने पर किस प्रकार का भोजन करने से हम जल्दी स्वस्थ हो सकते हैं यह भी बताया गया है। इस अध्याय में अपने आस-पास जमा पानी का निरीक्षण और उसकी साफ़ सफाई के बारे में भी विद्यार्थियों को विस्तृत रूप से क्रियाओं के माध्यम से समझाया गया है। अतः हम यह कह सकते हैं कि इस अध्याय के माध्यम से विद्यार्थियों में जागरूकता उत्पन्न करने का प्रयास किया गया है कि वह अपने आस-पास जैसे घर और स्कूल को कैसे स्वच्छ रखें और बीमारियों से दूर रहें।

 

चित्र -12


चित्र संख्या 12 के माध्यम से इस अध्याय में मच्छरों से बचने के उपाय स्वरुप केरोसिन तेल के इस्तेमाल के बारे में बताया गया है, परन्तु यह नहीं बताया गया है कि तेल का इस्तेमाल जरुरत से ज्यादा मात्रा में किया जाए क्योंकि यह भी जल को प्रदूषित करता है। इसी पाठ्यपुस्तक के छठे अध्याय जिस का नामबूँद-बूँद, दरिया-दरिया है का एक लक्ष्य जल को प्रदूषित होने से बचाना है, यदि हम केरोसिन तेल का विवेकसम्मत और सीमित तथा निर्धारित मात्रा में उपयोग को ध्यान में रखेंगे हैं तो यह छठे अध्याय से प्राप्त ज्ञान को मज़बूती प्रदान करने में सहयोग करेगा।

निष्कर्ष : अध्ययन के लिए चुने गए सभी तीनों अध्यायों के विषयवस्तु विश्लेषण से यह पता चल रहा है कि सभी तीनों अध्यायों में पर्यावरण शिक्षा के जैविक, भौतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक सभी आयामों को एकीकृत किया गया है, परन्तु कुछ स्थानों पर जैविक और सामाजिक-सांस्कृतिक आयामों को कम प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है। उदाहरण स्वरुप अध्याय 6 में, पानी, पौधों और अन्य प्रजातियों के बीच संबंध का उल्लेख नहीं कर इसे अनदेखा किया गया है। यह जैविक आयाम के कम प्रतिनिधित्व को दर्शाता है। इसी अध्याय में जल प्रदूषण को कम करने के लिए अपने रीति-रिवाजों और प्रथाओं से जुड़े अनुष्ठान को किस प्रकार समझदारी से करें कि लोगों में जागरूकता उत्पन्न हो, इसको भी नजरअंदाज कर दिया गया है। यह सामाजिक-सांस्कृतिक आयाम के संदर्भ में विषयवस्तु की कमी को दर्शाता है। इसके अलावा, अध्याय 7 के माध्यम से संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के मूल्य को आत्मसात करने का प्रयास किया जा सकता है। मिट्टी के तेल के उपयोग का उल्लेख करते समय, तेल को निर्धारित और न्यूनतम आवश्यक मात्रा में किस प्रकार उपयोग करें इसके बारे में जागरूकता उत्पन्न  करने पर भी जोर दिया जाना चाहिए था ऐसा करने से, यह हमारे उपयोग के लिए स्वच्छ और पीने योग्य पानी के महत्व को और मजबूती से प्रस्तुत करता, जिसकी चर्चा ईवीएस की पाठ्य पुस्तक के अध्याय 6 में भी की गई है।

            पाठ्यपुस्तकों में पर्यावरणीय घटकों का एकीकरण करना, यह पर्यावरण के प्रति अनुशासित युवाओं को तैयार करने की रणनीतियों में से एक है। अतः उपरोक्त कमियों को ध्यान में रखते हुए विषयवस्तु में सुधार अपेक्षित है मगर इस बात का ध्यान रखते हुए कि  विषयवस्तु का भार ना बढ़े। हालाँकि निष्कर्ष केवल 3 अध्यायों के विषयवस्तु विश्लेषण पर आधारित हैं, लेकिन इस बात की भी प्रबल संभावना है कि अन्य अध्यायों में भी पर्यावरण शिक्षा के एकीकरण के संदर्भ में इसी तरह की सामर्थ्य और कमजोरियाँ हो सकती हैं अतः इस शोध पत्र के निष्कर्षों के आधार पर संपूर्ण पाठ्यपुस्तक की विषयवस्तु का विश्लेषण करने के लिए और प्रयास किए जा सकते हैं। ऐसा करने से  हम पाठ्यपुस्तकों की गुणवत्ता में सुधार करके अंततः भविष्य में धारणीय (sustainable) वातावरण के निर्माण की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ सकेंगे।

सन्दर्भ :

  1. Al-Jamal, D. A., & Al-Omari, W. (2014). Thinking Green: Analyzing EFL Textbooks in Light of Ecological Education Themes. Journal of Education and Practice, 5(14).
  2. Awasthi, M., & Agarwal, R. (2013). An Analysis Of Various Aspects Of Environmental Concern Present In NCERT Science Textbook Of Class Viii. Shaikshik Parisamvad (An International Journal of Education), 3(2), 49-57.
  3. Bhatt, J. L. (1994). Indian Approach to Environment: An Ethical Perspective. Environmental Education for Sustainable Development.
  4. Imtiyaz, A., Nasreen, A., & Muhammad, N. (2017). Critical Analysis of General Science Textbooks for Inclusion of the Nature of Science Used At Elementary Level in Khyber Pakhtunkhwa. Journal of Educational Research, 20
  5. Koppal, M., & Caldwell, A. (2004). Meeting the challenge of science literacy: . Project 2061 efforts to improve science education. Cell Biology Education, 28–30.
  6. Maurya, K., & Rani, A. (2019). Studies on Content Analysis of Science Textbooks: A Literature Review. Journal of Emerging Technologies and Innovative Research, 19(19). Retrieved from www.jetir.org
  7. Nair, G. G. (2010). Environmental Education and Curriculum at Primary Level. Nature Environment and Pollution Technology, 9(2), 409-426.
  8. NCERT (Nov, 2022) Environmental Studies – Looking Around, Textbook for Class V
  9. Oguz, U. &.-H. (2004). A Look at Environmental Education through Science Teachers' Perspectives and Textbooks' Coverage. ERIC Document.
  10. Sarmah, S., & Dr. Bhuyan, S. (2015). Analysis of Environmental Education Components in the Existing Textbooks from Class V to VII, Developed and Adopted By the State Council of Educational Research and Training, Assam. International Journal of Humanities & Social Science Studies (IJHSSS), II(I), 271-277.
  11. Sharma, P. K. (2017, August). Rationale for the Approach to Environmental Education in Schools- India. Education India Journal: A Quarterly Refereed Journal of Dialogues on Education, 6(3).

मिली सिंह
रिसर्च स्कॉलर, शिक्षक शिक्षा विभाग, दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय {सीयूएसबी}, गया, बिहार
 
डॉ. रिंकी
सहायक प्रोफेसर, शिक्षक शिक्षा विभाग, दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय {सीयूएसबी}, गया, बिहार
rinki@cub.ac.in, 9472715993

अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका 
अंक-48, जुलाई-सितम्बर 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : डॉ. माणिक व डॉ. जितेन्द्र यादव चित्रांकन : सौमिक नन्दी

Post a Comment

और नया पुराने